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हवाई यात्रा के लिए बिहार देश का छाया प्रदेश

28 मई 2022

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किसी भी देश के विकास में यातायात और उसमें भी वायु यातायात का योगदान अन्यतम है। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने एक अध्ययन के हवाले से बताया है कि किस तरह वायु सेवा से तेजी से आर्थिक विकास सम्भव होता है। यदि वायु सेवा पर 100 रुपए खर्च किए जाएँ तो अर्थव्यवस्था में 326 रुपये वापस आते हैं और यदि 100 लोगों को वायु सेवा के क्षेत्र में काम मिलता है तो 610 लोगों के लिए आनुषंगिक रोजगार के अवसर पैदा होते हैं। पर यातायात के लिए यह आवश्यक है कि यह हर रूप में तथा हर जगह उपलब्ध हो। अन्यथा क्षेत्रीय असंतुलन की आशंका उत्पन्न होती है। इस दृष्टि से देश की आर्थिक व सामाजिक विकास को गति देने वाली भारत सरकार की ‘उड़ान’ योजना – ‘उड़े देश का आम नागरिक’ – अद्भुत है। इस योजना के लागू होने के दूरगामी परिणाम होंगे।

पिछले हफ्ते ही इस क्रांतिकारी उड़ान योजना की घोषणा की गई है। इसके तहत पहली उड़ान अगले महीने से ही आरम्भ होने वाली है। इसके लिए 27 प्रस्ताव स्वीकार किए गए हैं जिनसे देश के 128 वायुमार्गों पर उड़ान की शुरुआत होगी। इस योजना के तहत पहली बार 31 नए एयरपोर्ट वायुमार्ग से जुड़ेंगे। प्रत्येक वायुयान की आधी सीटें सिर्फ 2500 रुपए में उपलब्ध होंगी ताकि आम लोग आसानी से इस सेवा का लाभ उठा सकें। अपने आप में यह एक बड़ी परिवर्तनकारी योजना है क्योंकि यदि समय की बचत की दृष्टि से देखा जाए तो अभी तक हमारे देश में हवाई यात्रा का कोई विकल्प नहीं है। वैसे दुनिया के कई देशों में तीव्र गति वाली रेल यात्रा एक विकल्प के रूप में उभरी है। पर हमारे यहाँ यह अभी दूर की कौड़ी है। इसी तरह विकसित देशों में अच्छे राजमार्गों के कारण तीव्र गति के वाहन दूसरा विकल्प बन जाते हैं। पर यह भी अन्यान्य कारणों से हमारे यहाँ अभी व्यावहारिक नहीं दिखता है। ऐसे में संभवतः भारत को हवाई यात्रा की कहीं अधिक जरूरत है। आश्चर्य नहीं कि हाल के बरसों में भारत का हवाई यात्रा का घरेलू बाजार इतनी तेजी से बढ़ा है कि यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बाजार बन गया है।

परंतु परम्परा से हमारे देश में हवाई यात्रा सदा आभिजात्य वर्ग के लिए आरक्षित सी रही है। 1990 के दशक तक हवाई यात्रा मध्य वर्ग की पहुँच से बाहर थी। एयर इंडिया का महाराजा लोगो सचमुच यह बताता रहा है कि हमारे यहाँ हवाई यात्रा सिर्फ राजा या राजा समतुल्यों के लिए ही उपलब्ध हो सकती है। वर्तमान शताब्दी में निजी हवाई कंपनियों के आ जाने और तत्जनित प्रतिस्पर्द्धा के फलस्वरूप हवाई यात्रा मध्य वर्ग की पहुँच में आई। फिर भी दो बड़ी बाधाएं बनी रहीं। पहली यह कि अभी भी हवाई यात्रा महंगी है जिससे मध्य और निम्न मध्य वर्ग बड़ी आसानी से इस यात्रा का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। यदि दूसरे देशों की हवाई यात्रा से तुलना की जाए तब भी यह दिखता है कि हमारे यहाँ की हवाई यात्रा महंगी है। कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि दिल्ली से तिरुवनंतपुरम तक की यात्रा दिल्ली से बैंकॉक, सिंगापुर या कुआलालम्पुर से महंगी है। दूसरी बाधा जो पहली से भी बड़ी है वह यह कि देश के खासकर पिछड़े हिस्सों में दूर-दूर तक हवाई यात्रा की कोई सुविधा नहीं है। इसलिए यदि कोई अधिक पैसा खर्च करने को तैयार भी हो जाए तब भी उसे यह सुविधा नहीं मिलेगी।

इस सन्दर्भ में ध्यान देने योग्य बात यह है कि जिन 128 वायुमार्गों पर यात्रा आरम्भ होने वाली है उनमें एक भी मार्ग बिहार में नहीं है। बिहार का मानचित्र देखने से पता चलता है कि इस प्रदेश का अधिकांश पहले से ही वायुमार्ग से अछूता है। बिहार के दोनों एयरपोर्ट दक्षिण बिहार के पटना और गया में हैं। इस प्रकार प्रदेश के उत्तरी तथा पूर्वी हिस्से वायुमार्ग से बहुत दूर हैं। यहाँ ध्यातव्य है कि आबादी के हिसाब से बिहार के दस सबसे बड़े जिलों में आठ – पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर, मधुबनी, समस्तीपुर, सारण, पश्चिमी चंपारण, दरभंगा और वैशाली – गंगा के उत्तर में हैं। इन आठ जिलों की आबादी 3.4 करोड़ बैठती है। वैसे भी बिहार और बंगाल देश की सबसे घनी आबादी वाले राज्य हैं और बिहार में भी गंगा से उत्तर का हिस्सा दक्षिण की तुलना में अधिक घनी आबादी वाला क्षेत्र है।

यहाँ यह भी उल्लेखनीय कि बिहार का उत्तरी हिस्सा पारम्परिक यातायात के मामले में बहुत पिछड़ा है। हाजीपुर और पटना को जोड़ने वाला एक मात्र गांधी सेतु बरसों से जर्जर है। एक अनुमान के मुताबिक अभी तीन साल लगेंगे इस सेतु के पुनरुद्धार में। यानी तब तक उत्तरी बिहार के लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा। इसी तरह रेल मार्ग से भी आसानी से गंगा पार पटना नहीं जाया जा सकता। कहते हैं कि अभी रेलमार्ग में भी समय लगेगा। ऐसे में अच्छा होता यदि कम-से-कम मुजफ्फरपुर से नियमित उड़ान की शुरुआत होती। इससे एक साथ मुजफ्फरपुर के अलावा दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण जैसे जिलों में पहुंचना आसान हो जाता। इसी तरह बिहार के पूर्वी हिस्से के लिए भागलपुर को भी वायुमार्ग से जोड़ने की जरुरत है।

परंतु यह घोर विडम्बना ही है कि 10 करोड़ से भी अधिक जनसंख्या वाला देश का तीसरा सबसे बड़ा राज्य – बिहार – इस योजना से पूरी तरह बाहर है। यह चौंकाने वाली बात है कि जहाँ छत्तीसगढ़, उड़ीसा, असम जैसे राज्यों के अपेक्षाकृत कई छोटे-छोटे शहर नियमित वायुसेवा से लाभान्वित होंगे वहीँ इन राज्यों से बड़ा राज्य इस सुविधा से वंचित रहेगा।

हवाई यात्रा किसी शहर के विकास में कितनी सहायक होती है यह बताने की आवश्यकता नहीं है। पर्यटन, स्वास्थ्य और शिक्षा के अतिरिक्त बड़ी-बड़ी गोष्ठियों-सम्मेलनों के लिए भी हवाई यात्रा अत्यंत आवश्यक है। किसी प्रमुख पर्यटन केंद्र की आज कल्पना करना भी कठिन है जहाँ हवाई यात्रा की सुविधा न हो। बिहार जैसी जगह में भी गया में एयरपोर्ट का होना इस बात का सबूत है। इस तरह वायु मार्ग से जुड़ना विकास का एक प्रमाणपत्र है। इस नाते यह स्पष्ट है कि बिहार अभी भी अति पिछड़ा है।

वैसे तो मार्गों के चयन के लिए अनेक कारक उत्तरदायी हैं। परंतु राज्य सरकार की सक्रिय भूमिका और एयरलाइन की उपलब्धता प्रमुख कारक माने जा सकते हैं। बिहार इन दोनों कारकों में पिछड़ गया। पर इससे भी बड़ा कारण संभवतः यह है कि आज भी बिहार अत्यंत निर्धन राज्य है। इसकी प्रति व्यक्ति आय की तुलना में छत्तीसगढ़ और उड़ीसा की प्रति व्यक्ति आय ढाई से तीन गुनी ज्यादा है। प्रति व्यक्ति आय यदि अधिक हो तो क्रय शक्ति भी ज्यादा होती है और उसके अनुसार लोगों की इच्छाएं और आकांक्षाएं भी बढ़ती हैं जिससे सरकार पर दबाव बनता है और उसकी प्राथमिकता निर्धारित होती है। कहने की आवश्यकता नहीं कि अभी हवाई यात्रा सरकार की प्राथमिकता में शामिल नहीं है।

वैसे अन्य मार्गों पर हवाई यात्रा आरम्भ करने के लिए फिर से निविदाएं मंगाई जाएँगी और आशा है कि अगली बार बिहार का कोई शहर वायु मार्ग से जुड़ेगा। परंतु समस्या यह है कि बिहार के पास समय नहीं है। जैसे मुट्ठी से रेत निकलती है वैसे ही बिहार के हाथ से समय निकल रहा है। बिहार को अब एक-एक कदम नहीं बल्कि छलांग लगाकर आगे बढ़ना है।

जिस देश में एक ओर हिमालय की छाती चीरकर जम्मू और श्रीनगर के बीच 9.2 किलोमीटर लंबी सुरंग बन जाती हो और जो एशिया की सबसे लंबी और आधुनिकतम सुरंगों में गिनी जाती हो। उसी देश के दूसरे हिस्से में एक अदद जर्जर पुल के सहारे करोड़ों लोग देश के बाकी हिस्से से जुड़ने को मजबूर हैं। ऐसे में यही लगता है कि कम-से-कम हवाई यात्रा की दृष्टि से बिहार देश का छाया प्रदेश है।

लेखक निवेश एवं लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग , वित्त मंत्रालय ,भारत सरकार में संयुक्त सचिव हैं। लेख में व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं ।

4  सितम्बर 2018 

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