योग और अध्यात्म
धारण करना है धर्म- शास्त्र यह बतलाता
भगवत् धर्म है श्रेष्ठ- योग मार्ग पर ले जाता
विस्तार- रस- सेवा- तद्स्थिति हैं धर्मांश
धर्म अनुशीलन हीं अध्यात्मवाद दिव्यांश
तद्स्थिति प्रतिसंचर धारा
भवसागर पार है ले जाता
जीवात्मा परमात्मा मिलन-
मुक्ति मोक्ष मानव पाता
महामिलन का योगी
अभ्यास नियम से ध्यान में करते
साधना से दीर्धायु,
कुशाग्र आत्मिक विकास कर पाते
साधना सें तन मन आत्मा का
एकिकरण हो जाता
अणुमन भूमामन में
विलीन हो कर शिवत्व है पाता
सदाशिव पशुवत् मानव को
समाजिकता एवं तंत्र सिखाये
श्रीकृष्ण भगवत् गीता में
योग विराट रूप दिखा समझाये
विद्यामाया ऋषिश्रेष्ठ पतंजली
अष्टांग योग- मधुविद्या बतलाये
यम-नियम प्राणायाम-प्रत्याहार
ध्यान-धारणा में समाधी पायें
अष्टांग योग शुद्धी के अभ्यास से
प्रचेष्टित मानव पूर्णत्व है पाता
दैहिक मानसिक अध्यात्मिक विकास- मुक्ति मोक्ष गुरुकृपा से पाता
असाध्य रोगों का उपचार
निर्दिष्ट योगासनों से हीं है संभव
सत् रजस् तमस् गुणों से
कुण्ठाग्रस्त रहता है धरा का मानव
योग अभ्यास कर मन में
चेतनता ओज से साधक भर जाता
उर्जान्वित साधक मात्र परम लक्ष्य-
शिव तक पहुँच है पाता
योग दर्शन प्रचार जनहित-
सुकृत फलाफलकारी है होता
वन में तप से सिद्ध स्वार्थी,
मुक्ति मोक्ष का नहीं अधिकारी होता
समाजिक सेवा और जनकल्याण हेतु
त्याग हीं मानव को महान बनाता
मंत्राधात् से नवचक्र भेद
अमृत क्षरण का परमानंद-
मोक्ष साधक है पाता
डॉ. कवि कुमार निर्मल
DrKavi Kumar Nirmal