ईरानी खानम, जीना सिखा गयी
डॉ शोभा भारद्वाज
पलवल शटल से जा रही थी गाड़ी चलने से पहले एक महिला डिब्बे में चढ़ीं उनको देख
कर यात्रियों ने तुरंत बैठने के लिए सीट दे दी जबकि मैं पहले से खड़ी थी महिला ने
मेरे लिए भी अपने पास जगह बना दी मैं उनको एकटक देख रही थी , बोलने के मीठे लहजे
में ईरानी शिष्टाचार था नीली आँखे सुतवा नाक और लम्बी गर्दन सफेद रंग मुझे लग रहा
था यह महिला ईरानी है जबकि उसने सलवार कमीज पहनी थी अच्छी हिंदी बोल रहीं थीं लेकिन
कहीं - कहीं एक आध लफ्ज फ़ारसी बोल देती थीं इधर उधर की बातें करने के बाद मैने
उनकी आँखों में आँखे डाल कर कहा आप खानम ईरानी हो शिराजी या अस्फहानी वह हँसने लगी
अरे नहीं पर आप कैसे मुझे ईरानी समझ रहीं हैं मैने बताया वर्षों ईरान में रही हूँ
तुम्हारा बोलने का सलीका मुझे हिंदी नहीं लग रहा उसने हँस कर कहा मैं पाकिस्तानी
भी हो सकती हूँ नहीं पाकिस्तानी खालिस उर्दू बोलते हैं| उसने माना वह फरीबा शिराजी
अर्थात शिराज की है ,मेरे शौहर दिल्ली के हैं मेरा अगला सवाल था मुस्लिम या हिन्दू
न-न हिन्दू मुझे हैरानी हुई मैंने किसी हिन्दू की ईरानी से शादी कम ही सुनी थी,
ईरानी कानून के अनुसार निकाह ही सम्भव है | आपका निकाह हुआ था ?नहीं आर्य समाज
मन्दिर में हमारी शादी हिन्द में ही हुई थी | जबसे ईरान में इस्लामिक सरकार आई थी
ईरानी अपना वतन किसी भी कीमत पर छोड़ने के लिए मजबूर थे अपने वतन में उनका दम घुटता
था आज भी हालात बदले नहीं
है लेकिन ईरानी कहावत याद आती है अव्वल सद साल मुश्किल होते हैं (पहले सौ साल
मुश्किल हैं फिर आदत बन जाती है) |
वह कई वर्षों से दिल्ली में रह रहीं थी ,समाज मे
इतनी घुल मिल गयी हैं खालिस भारतीय लगती थीं अपनी बात बढ़ाते हुए बताया मेरे बाबा
शाह के रिजीम में बड़े ऊंचे पद पर थे शाह
के वफादार हमारी खुशहाल जिन्दगी थी | उसने बात आगे बढ़ाई मेरा निकाह शिराज के बैंक
मिली के मैनेजर से हुआ था ,मजहर लम्बा चौड़ा शानदार व्यक्तित्व नीली आँखें थी मैने
हैरानी से कहा आप भी खानम कम नहीं हो वह हंसी आप जानती है शिराज में सुन्दरता की
कमी नहीं है मजहर से एक बेटा है बहरूश | जिन्दगी के दिन गुजर रहे थे लेकिन एक दिन
मजहर एक और निकाह कर दूसरी खानम ले आया मैं वहुत दुखी थी क्या कर नहीं सकती थी?
मजहर के पास मजहब की आड़ थी |मजहर की दूसरी खानम बला की खूबसूरत थी मैं उसे देखती
रह गयी कमर इतनी पतली बैठने के लिए कुशन का सहारा लेना पड़ता था ऐसा तराशा बदन
अजन्ता एलोरा की मूर्तियों में ही देखा है |
उन दिनों ईरान में शाह का विरोध शुरू हो गया था किसी उच्च अधिकारी के घर की
शोभा बनने वाली लड़की का न जाने कैसे मजहर से निकाह हो गया |वह खामोश रहती थी मेरे
से उसका कोई झगड़ा नहीं था मुझे भी न जाने क्यों उससे लगाव होता जा रहा था मजहर उसे
और मुझे मिलने वालों के यहाँ साथ ले जाता था उसे फख्र था वह दो शानदार खानमों को
रखने की हैसियत रखता है मैं उसे स्नेह से वीनस कहती थी| मजहर महीने में एक बार उसे
बम्बई लेकर जरूर जाता था लेकिन वीनस के चेहरे पर घूमने जाने का कोई उत्साह नजर
नहीं आता |एक दिन मजहर ने मुझसे साफ़ कहा वह दो खानमों का खर्चा नहीं उठा सकता
इसलिए काजी की अदालत में अर्जी दे रहा हूँ आसानी से तलाक हो जाएगा उसने मुझ पर
बदअख्लाकी का इल्जाम लगाया जब काजी मुझसे सवाल पूछ रहे थे उनके चेहरे पर भी हैरानी
थी सच पूछा जाये मजहर को मेरी जरूरत नहीं थी हमारे यहाँ मेहर की रकम निकाह के समय
अदा कर दी जाती है | काजी ने तलाक का निर्णय सुनाने से पहले मजहर से कहा आगा एक
बार फिर से सोच लो, सोचना उसे था मैं मजहर द्वारा आजाद कर दी गयी|
इन दिनों हमारा परिवार बड़े मुश्किल के
दौर से गुजर रहा था रजा शाह पहलवी का विरोध बढ़ता जा रहा था| शाह ने शहरों को पैरिस
बना दिया था लेकिन गाँव की तरफ ध्यान नहीं दिया था |गावों से बेरोजगार नौजवान
शहरों की तरफ झुण्ड बना कर आ रहे थे हर खियाबान में मरग-बा शाह आजादी-आजादी के नारे लगाते भीड़ के आगे शाह बेबस
हो गये |आगा ए- इमाम खुमैनी पेरिस से तेहरान पधारे शियाओं में इमाम का बहुत महत्व
है तेहरान की सड़कों पर भीड़ ही भीड़ नजर आ रही थी| उनके स्वागत में ‘अल्लाहो अकबर
खुमैनी रहबर के नारे गूँज रहे थे’ ईरानी इतने उत्साहित थे उन्हें लग रहा था अब
ईरान जन्नत बन जायेगा, क्रूड आयल की दौलत सबमें बाँट दी जायेगी उनके लीडर वह लोग
भी थें जिन्हें शाह ने विदेशों में पढ़ने के लिए भेजा गया था अब उन्हें शाह के शासन
से मुक्ति चाहिए थी ,प्रजातंत्र की तलब थी | मैने कहा खानम उसी अभिजात्य वर्ग को मैने रोते और कहते
देखा हैं दीनी सियासत का कोई तोड़ नहीं है, अव्वल सद साल मुश्किल पहले सौ साल
मुश्किल कटते हैं उसके बाद आदत पड़ जाती है |
तलाक के बाद मैं बुरी तरह टूट गयी थी
हमारे यहाँ तलाक, फिर शादी मुश्किल नहीं है मेरी सोच थी मजहर के घर से ही मेरा जनाजा
उठे इसका मतलब यह नहीं था मैं मजहर से प्यार करती थी प्यार हमारे नसीब में कहाँ ?
मर्द के पास पैसा होना चाहिए एक से एक सुंदर खानम मौजूद है हाँ जिनके पास मेहर
देने के लिए मोटी रकम नहीं होती उनके नसीब में तलाक शुदा आती है बच्चे बाबा को
सोंप दिए जाते हैं हाँ मेरा तलाक हुआ मुझसे बहरूष छोड़ा नहीं गया मजहर को भी उसकी
जरूरत नहीं थी | मेरे बाबा परेशान थे देश के हालात दिनों दिन खराब होते जा रहे थे
| उन दिनों डाक्टर साहब शिराज के अस्पताल में अपने विभाग के इंचार्ज थे |वह शाह के
रिजीम में ईरान आये थे तब वहाँ काम करना लोग सौभाग्य समझते थे डाक्टरों का जब पहला
ग्रुप तेहरान आया था रेड कारपेट बिछा कर उनका स्वागत किया गया था |डाक्टर साहब
शिराज के नामी डाक्टर थे उनके पास मरीजों की भीड़ रहती थी शाह का तख्ता कभी भी पलटा
जा सकता था सरकारी पदों पर बैठे लोग परेशान थे, डाक्टर साहब साईकेट्रिस्ट थे मुझे
उनके पास भेजा गया मैं इतनी दुखी थी मेरे लिए खड़े होना भी मुश्किल था डाक्टर साहब
ने मेरी समस्या सुनी उन्होंने हँस कर कहा तुम्हें कोई बिमारी नहीं है बस खानम आपने
अपने आप को बीमार मान लिया है |
मैं अक्सर बिमारिस्तान जाने लगी मुझे डाक्टर साहब का साथ बहुत अच्छा लगता था
उनको हमारे यहाँ खाने पर भी बुलाया जाता था उनके खाने के लिए विशेष आयोजन किया
जाता जैसा सिफरा बिछाया जाता वैसी ही रौशनी और उसी रंग के प्रिंट की क्रौकरी वह गोश्त नहीं खाते थे अत:
उनके लिए ईरानी चावल पकता उसे सोया और
बाकला से सजाया जाता हाँ खाने में फल और मेवे अधिक रखते |हम अब इतने नजदीक आ चुके
थे अक्सर जिस दिन डाक्टर साहब की छुट्टी होती थी हम परसीपोलिस घूमने जाते यहाँ का
लाईट एंड साउंड प्रोग्राम बड़ा दिलचस्प है यह हमें 522 ईसा पूर्व में ले जाता है हम
वहाँ एक दूसरे का हाथ पकड़ कर घूमते मैने उसे बताया फरी इस्लामिक सरकार की अब ईरान
के पुराने इतिहास में कोई रूचि नहीं है लाईट एंड साउंड प्रोग्राम अब बंद कर दिया
गया है | ओह उसने लम्बी साँस ली ,कभी कभी हाफिज सादी की मजार के बाग़ में घंटों
बैठे रहते मैं उन्हें सादी की किताब गुलिस्तान बोस्तान का तर्जुमा सुनाती |अब बस
निकाह कैसे हो समझ नहीं आ रहा था वह हिन्दू मैं मुस्लिम तय हुआ मैं उनके साथ भारत
जाऊँगी और आर्य समाज मन्दिर में हमारी शादी हो जायेगी न उनका मजहब जाएगा न मेरा
उन्हें बहरूष से कोई एतराज नहीं था |