चुनाव में वोट के लिए राजनीति क पार्टिया अनेक तरह के हथकंडे अपनाती है। कभी धर्म के नाम पर वोट मांगे जाते रहे है तो कभी आज़ादी में योगदान देने वाले महापुरुषों के नाम पर। अब सोशल मीडिया पर एक ट्वीट सामने आया है जो पीएम मोदी द्वारा हाल ही में कर्नाटक चुनाव को लेकर दिए गए बयान को झूठा साबित कर रहा है। हाल ही में पीएम मोदी ने एक बयान देकर आरोप लगाये हुए कहा था कि कांग्रेस खाली भ्रष्ट लोगो से मिलने जाती है। पीएम मोदी ने पूछा था कि क्या कांग्रेस कभी आज़ादी के लिए लड़ने वालो से मिलने गई थी।
दरअसल पीएम मोदी आजकल कर्नाटक में आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर अपनी पार्टी भाजपा के लिए ज़ोरों-शोर में प्रचार कर रहे है। पीएम मोदी ने बुधवार को कर्नाटक के बीदर में एक रैली में कहा था कि जब देश की आजादी के लिए लड़ रहे महान शाख्सियतो जैसे शहीद भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त, वीर सावरकर जेल में थे, तब क्या कोई कांग्रेस नेता उनसे मिलने गया था? लेकिन कांग्रेस नेता वैसे भ्रष्ट नेताओं से मिलने जाते है, जिन्हें जेल हो चुकी है। आपको बता दें कि चारा घोटाले के दोषी लालू प्रसाद यादव से मुलाक़ात करने हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी एम्स गए थे।
पीएम मोदी के इस बयान के सामने आते ही सोशल मीडिया पर एक ट्वीट सामने आया है जिसमे पीएम मोदी के दावों पर सवाल खड़ा हो रहा है। इस ट्वीट के अनुसार देश के पहले प्रधानमंत्री और कांग्रेस नेता पंडित नेहरु ने भगत सिंह और दुसरे कैदियों से जेल में मुलाक़ात की थी। इस ट्वीट के अनुसार लाहौर में 9 अगस्त 1929 को नेहरु ने कहा था कि मै कल सेंट्रल जेल और बोरस्ट्राल जेल गया था और सरदार भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त, जतिन्द्रनाथ दस और लाहौर षड़यंत्र मामले में कैद दुसरे कैदियों को देखा. यह सभी सभी लोग भूख हड़ताल पर थे। जिन्हें जबरन नहीं खिलाया जा सका। वे लोग धीरे-धीरे मौत की ओर बढ़ रहे है, और लगता है दुःख का समय आने में ज्यादा देर नहीं लगेगी। इन बहादुर लोगो से मिलना मेरे लिए दुखदाई था। इस ट्वीट के साथ बताया गया कि इसका सोर्स (Selected Works of Jawaharlal Nehru Volume-4/ Page13) है।
आपको बता दें कि विधानसभा में बम फेंकने के मामले में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी। जब वह लाहौर की जेल में सज़ा काट रहे थे तब उन्होंने भूख हड़ताल शुरू कर दी थी और 10 जुलाई 1929 को भगत सिंह , बटुकेश्वर दत्त और अन्य कैदियों के खिलाफ सुनवाई शुरू हुई और इसके बाद अन्य कैदियों ने भी भूख हड़ताल शुरू कर दी। इसके बाद भगत सिंह, सुखदेव थापर और राजगुरु को अग्रेज़ अदालत ने साल 1930, 7 अक्टूबर में मौत की सज़ा सुना दी और अगले वर्ष 23 मार्च को इन्हें फांसी दे दी गयी।
सामने आया सबूत, क्या पीएम मोदी कर्नाटक चुनाव में कर रहे है झूठी बयानबाज़ी? |