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व्हॉट्सएप. कुछ लोग तो इस घटना से बहुत खुश हैं पर कुछ इसे दुर्घटना मान के चलते हैं. अब व्हॉट्सएप से जुड़ी एक और खबर आई है. वो ये कि मैसेज सीन करना माने मैसेज पढ़ने के बाद आने वाला नीला टिक आपको जेल पहुंचा सकता है. वो इसलिए क्योंकि व्हॉट्सएप पर लीगल नोटिस भेजा जा सकेगा और इसे एक कानूनी सबूत माना जाएगा. इस मेसेज पर ब्लू टिक आ गया तो माना जाएगा कि आपने मैसेज पढ़ लिया है और नोटिस की कॉपी आपको मिल गई है. माने आप ये नहीं कह सकेंगे कि आपको नोटिस नहीं मिला. बॉम्बे हाइकोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया.
मामला एसबीआई कार्ड्स एंड पेमंट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड और उनके एक कस्टमर रोहित जाधव के बीच था. रोहित जाधव मुंबई के नालासोपारा का रहने वाले हैं. 2010 में उन्होंने एसबीआई क्रेडिट कार्ड से 85,000 रुपए का क्रेडिट लिया. टाइम पूरा होने के बाद भी यह पैसा वापस नहीं किया. बैंक ने पूरा ब्याज जोड़ा तो यह अमाउंट करीब 1.17 लाख हो गया.
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पैसा वापस न आते देख बैंक 2015 में कोर्ट चला गया. कोर्ट ने जब नोटिस भेजा तो रोहित ने घर बदल लिया. दो साल तक वो किराए के घर बदलता रहा. ऐसे में कोर्ट का नोटिस रोहित को मिल नहीं पा रहा था. साथ ही उन्होंने बैंक के किसी फोन या मेसेज का भी जवाब नहीं दिया. बैंक ने इसके लिए नई तरकीब सोची.
बैंक ने कोर्ट नोटिस की एक पीडीएफ फाइल बनाकर रोहित जाधव के व्हॉट्सएप पर भेजी. यह मेसेज रिसीव हुआ और इसपर ब्लू टिक आया. जिसका मतलब यह मेसेज देखा जा चुका है. इस बात को कोर्ट ने भी आधार माना.
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जस्टिस जे एस पटेल ने कहा कि सिविल प्रोसीजर कोड के आदेश 21, नियम 22 के तहत भेजे गए नोटिस को स्वीकार किया जाएगा. क्योंकि न सिर्फ नोटिस का यह मेसेज रिसीवर तक पहुंचा, बल्कि रिसीवर ने मेसेज को पढ़ा. इसका मतलब है कि कोर्ट का नोटिस उस तक पहुंच गया है. अब इसी के आधार पर आगे की कार्यवाही चलेगी.
कोर्ट से किसी भी व्यक्ति को नोटिस रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजा जाता है. 2017 में एक केस का फैसला देते हुए जस्टिस जे एस पटेल ने ही कहा था कि यह कोई जरूरी नहीं है कि कोर्ट का नोटिस पुराने जमाने की तरह ढोल बजाकर ही दिया जाए. नोटिस इलेक्ट्रॉनिक माध्यम जैसे ई-मेल पर भी भेजा जा सकता है. ई-मेल पर भेजा गया नोटिस भी कोर्ट में मान्य होगा. कोर्ट के इस आदेश के बाद से अब कोर्ट का नोटिस व्हॉट्सएप पर भी भेजा जा सकेगा.
Bombay high court says legal notice sent on whatsapp is admissible in court of law