जम्मू और कश्मीर में मंगलवार को उस समय राजनीतिक संकट खड़ा हो गया जब पीडीपी-बीजेपी गठबंधन सरकार से बीजेपी द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद महबूबा मुफ्ती सरकार अल्पमत में आ गई और मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा राज्यपाल को भेजना पड़ा।
बीजेपी ने आरोप लगाया है कि महबूबा मुफ्ती सरकार राज्य में आतंकी घटनाओं पर रोक लगाने में नाकाम रही है। बीजेपी के महासचिव राम माधव ने आज दोपहर गठबंधन सरकार से अपना समर्थन वापस लेने के ऐलान किया।
राज्यपाल एनएन वोहरा के अपना इस्तीफा देने के बाद पीडीपी की मंथन बैठक में महबूबा मुफ्ती ने कहा कि 2014 में हुए चुनावों में किसी दल को सरकार गठन के लिए बहुमत नहीं मिला था। पीडीपी ने कई महीनों के मंथन के बाद बीजेपी के साथ गठबंधन किया था। हमने जनता की मर्जी के बगैर बीजेपी के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाई। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने राज्य में शांति बहाली और युवाओं को नए मौके देने के लिए तमाम योजनाएं चलाईं।
पूरे शासन के दौरान घाटी में 11,000 लोगों के खिलाफ केस वापस लिए। हमने रमजान के दिनों में सीज फायर लागू करवाया। उन्होंने कहा कि हमने राज्य में शांति बहाली के हर संभव कदम उठाए। हमने पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए भी जमीन तैयार की। जबकि बीजेपी की कोशिश थी कि सीज फायर नहीं होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि पीडीपी के लोगों को इस गठबंधन में काफी तकलीफ सहन करनी पड़ीं, लेकिन फिर भी राज्य में शांति के लिए हमने इस गठबंधन को जारी रखा। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर को सख्ती की पॉलिसी नहीं चल सकती, जबकि बीजेपी यहां सख्ती अपनाना चहाती थी। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने आर्टिकल 35-ए को लेकर अपना रुख शुरू से ही स्पष्ट रखा, जबकि बीजेपी इस धारा को खत्म करना चाहती थी।
बीजेपी द्वारा समर्थन वापस लेने के सवाल पर महबूबा मुफ्ती ने कहा, ‘ बीजेपी के इस फैसले से मुझे कोई अचंभा नहीं है, हमने सत्ता के लिए यह गठबंधन नहीं किया। इस गठबंधन का एक बड़ा मकसद था- एकतरफा युद्धविराम, पीएम की पाकिस्तान यात्रा और 11,000 युवाओं के खिलाफ मामलों को वापस लेना।’
उन्होंने यह भी कहा कि राज्यपाल को इस्तीफा देने बाद उन्होंने यह साफ कर दिया है कि वह अब नए गठबंधन पर विचार नहीं करेंगी। समझाया जाए कि ये कितना जरूरी है तो निश्चित तौर पर इसका इस्तेमाल बढ़ेगा।”
Source: The Hook
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