उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जनता दरबार लगाकर बैठे थे. ताकि जनता अपनी परेशानी लेकर सीधे उनके पास आ सके. एक महिला अध्यापक अपनी अपील लेकर आईं. उनका कहना था कि पिछले 25 सालों से उनका तबादला दुर्गम इलाके में हो रखा है. उनके पति की मौत हो चुकी है. सो बच्चों की परवरिश में दिक्कत आती है. इसके जवाब में मुख्यमंत्री ने महिला को को हिरासत में लेने का आदेश दिया. कहा कि उसे तुरंत सस्पेंड कर दिया जाए. दाहिनी तरफ हैं वो महिला अध्यापक. बाईं तरफ लाल घेरे में CM साहब.
कहते हैं कि शहंशाह अकबर रात को भेष बदलकर राज्य में निकलते थे. ताकि अपनी आंखों से देख और जान सकें. कि जनता किस हाल में है. सब ठीक चल रहा है कि नहीं. ऐसे ही कई मुख्यमंत्री अपने यहां जनता दरबार लगाते हैं. ताकि जनता सीधे उन तक पहुंचे और अपनी परेशानी बता सके. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी ऐसा करते हैं. 28 जून, 2018 को भी उनका जनता दरबार लगा था. मुख्यमंत्री अपने कुछ अधिकारियों और मंत्रियों के साथ एक हॉल के मंच पर बैठे थे. लोग आते और दूर खड़े रहकर अपनी परेशानी बताते. इन्हीं लोगों में एक महिला भी आई. अधेड़ उम्र की महिला. पेशे से शिक्षक. वो मुख्यमंत्री से अपने तबादले की दरख्वास्त करने पहुंची थीं. होना ये था कि वो अपनी कहतीं, CM सुनते और देखते कि बात कितनी सही है. मगर ऐसा नहीं हुआ. गर्मागर्मी हो गई. महिला को जबरन बाहर निकाल दिया गया. एक तरफ गुस्से में वो CM को सुना रही थीं. दूसरी तरफ CM कहते सुनाई दिए कि इसको बाहर निकालो. इस घटना का विडियो सोशल मीडिया पर खूब घूम रहा है.
एक महिला उत्तराखंड के भाजपा के मुख्यमंत्री से सवाल पूछती है ओर बदले में BJP का CM उसे सस्पेंड कर देता है ओर पुलिस को उसे हिरासत में लेने को कहता है.
जो पता है, जितना पता है
जो पता चला है, उसके मुताबिक महिला का नाम उत्तरा पंत बहुगुणा है. वो पिछले 25 सालों से नौगांव में पोस्टेड हैं. ये जगह उत्तरकाशी जिले में आती है. एकदम दूर-दराज का इलाका है. उनके पति नहीं हैं. बच्चों की सारी जिम्मेदारी उनके ही ऊपर है. वो चाहती हैं कि उनका तबादला हो जाए, तो वो अपने बच्चों की देखभाल अच्छे से कर पाएं. अभी उनका एक पैर अपनी नौकरी वाली जगह और दूसरा पैर बच्चों के पास रहता है.
हुआ क्या? बात क्या थी?
हमने बताया कि वो महिला पेशे से शिक्षक थीं. उनका तबादला बहुत सालों से किसी दूर-दराज की जगह पर हो रखा था. वो अपना तबादला करवाना चाहती थीं. तबादले का ये मुद्दा कई राज्यों में बहुत बड़ा सवाल है. इतना बड़ा कि मुख्यमंत्री तक पहुंचे बिना न तो कोई आपकी बात सुनता है, न कुछ होता है. भले आपकी जरूरत कितनी भी बड़ी क्यों न हो. उत्तराखंड में भी ये बहुत बड़ा मुद्दा है. तो ये महिला भी जनता दरबार पहुंची थीं. उन्होंने मुख्यमंत्री से कहा-
25 साल से हम कर रहे हैं वहां पर सर्विस. मेरी समस्या ये है कि मेरे पति गुजर चुके हैं. मेरे बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं है. मैं अकेली हूं अपने बच्चों का सहारा. मैं अपने बच्चों को अनाथ नहीं छोड़ सकती हूं और न ही नौकरी छोड़ सकती हूं. आपको मेरे साथ न्याय करना पड़ेगा.
मुख्यमंत्री: जब नौकरी की थी, तब क्या लिखकर दिया था?
महिला: लिखकर दिया था सर. लेकिन ये नहीं पता था कि मैं वनवास भोगूंगी जिंदगी भर. ये आपका है- बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ. ये नहीं कि वनवास के लिए भेज दे रहे हैं.
मुख्यमंत्री: अध्यापिका हो न. नौकरी करती हो.
महिला: हां, हूं. अध्यापिका के क्या गुण होते हैं?
मुख्यमंत्री: सभ्यता सीखो जरा. ज्यादा बोलो मत, सस्पेंड कर दूंगा यहीं पर.
महिला: क्या करोगे सस्पेंड. मैं खुद ही घर बैठी हूं.
मुख्यमंत्री: यहीं सस्पेंड हो जाओगी.
फिर वहां मौजूद सुरक्षाकर्मी महिला को बाहर निकालने लगे. महिला उन्हें रोकने की कोशिश करती हुई बिल्कुल रुआंसी होकर कहती है-
हर कोई नेता होता है. हमारी भी भावनाएं होती हैं.
एक तरफ सुरक्षाकर्मी महिला को जबरन पकड़कर बाहर निकालने की कोशिश करते हैं. और पीछे से मुख्यमंत्री की आवाज आती है-
अभी सस्पेंड हो जाओगी. बता दिया है.
महिला खुद को पकड़ रहे सुरक्षाकर्मियों पर नाराज होती हुई कहती है-
चोर-उचक्के कहीं के.
पीछे से मुख्यमंत्री-
बंद करो इसको. ले जाओ इसे. कस्टडी में लो इसको. ले जाओ, जाकर कस्टडी में रख दो इसको. सस्पेंड कर दो इसको. सस्पेंड करो इसको आज ही.
इसके बाद भी हंगामा चलता रहा. पुलिस ने महिला को घेर लिया. उन्हें जबरन पकड़कर बाहर ले जाया गया. वो भी जोर-जोर से चीख रही थी. ऐसा लग रहा था कि बौखला गई हैं. एक तो निराशा, दूसरा इस तरह निकाला जाना. पुलिसवाले उन्हें उठाकर ले जा रहे थे और वो गुस्से में बोले जा रही थीं. बाद में पत्रकारों ने मुख्यमंत्री से बात की. वो साहब बोले-
ऐसा नहीं कि जनता की शिकायतों का स्थानीय स्तर पर समाधान नहीं होता. अगर समाधान नहीं होता, तो लोग आते क्यों हैं? इसका मतलब है कि समाधान होता है.
वोट मांगने जाएंगे, तब भी ऐसी ही बदतमीजी दिखाएंगे CM?
मुझे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से कहना है. कि आप जनता दरबार में कैसे लोगों की बात सुनते हैं और कैसा समाधान करते हैं, इसका सैंपल हमने विडियो में देख लिया है? ये है उनका तरीका? निहायत बदतमीजी दिखाई उन्होंने. वो बेचारी महिला अपील लेकर पहुंची थी. और ये उसको अध्यापिका के फर्ज याद दिलाने लगे. ये क्या तरीका है? फिर उसको सस्पेंड करने की धमकी दी. उसको हिरासत में रखने का ऑर्डर दिया. CM की बातें और उनका अंदाज, दोनों में न केवल बदतमीजी थी बल्कि अकड़ भी थी. जब उनकी पार्टी उत्तराखंड के लोगों से वोट मांगने गई थी, तब भी क्या इसी बदतमीजी और अकड़ से बात की थी? नहीं. तब तो ये नेता बहुत सभ्य और शालीन बनकर हाथ जोड़े पहुंचते हैं. जनता की मुश्किलें दूर करने का वादा करते नहीं थकते. चुनाव जीतने पर ऐटीट्यूड इतना बदल गया? और तुर्रा ये कि जनता की सुनने के लिए जनता दरबार लगाकर बैठे हैं. क्या ‘जनता दरबार’ लगाने के पीछे जनता की मुश्किल दूर करने की नीयत नहीं है? बस गिनाने को चाहिए. कि हम सुन रहे हैं. एक और भी बात है. मुख्यमंत्री उस महिला को अध्यापिका के फर्ज याद दिला रहे थे. मगर उनको मुख्यमंत्री का फर्ज, मुख्यमंत्री होने का मतलब कौन याद दिलाएगा? रत्तीभर सी भी संवेदनशीलता नहीं दिखाई. उन्हें देखकर लगा ही नहीं कि उन्हें पद और जिम्मेदारी की गंभीरता का एहसास है. और ये सब बेहद शर्मनाक है.
सबके सामने धमका सकते हैं, बाद में तो जाने क्या करें!
जिस तरह से CM ने महिला अध्यापक को सबके सामने धमकाया है. उसके बाद तो ये भी आशंका लगती है कि वो और उनका सिस्टम उस महिला को टारगेट करेंगे. उसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेंगे. क्योंकि जो मुख्यमंत्री लोगों की और कैमरे की मौजूदगी में ऐसी बातें कर सकता है, वो ओट में क्या कर डालेगा?
ट्रांसफर और तबादले का क्या हिसाब है?
कई राज्यों में ट्रांसफर-पोस्टिंग और तबादले के नाम पर खूब घपला होता है. जान-बूझकर कर्मचारियों का तबादला उनके घर से दूर के इलाकों में कर दिया जाता है. और फिर तबादला करवाने के लिए खूब ऊपर की पैरवी लगानी पड़ती है. मोटी रिश्वत देनी पड़ती है. अगर पति-पत्नी दोनों कामकाजी हैं, तो मुश्किल सोचिए उनकी. पति एक जगह है. पत्नी दूसरी जगह है. और जरूरी नहीं कि वो जहां पोस्टेड हैं, वहां अच्छे स्कूल-कॉलेज हों. बच्चों की परवरिश में दिक्कत होती है. और आधी जिंदगी तो परिवार की यूं ही निकल जाती है. एक-दूसरे से अलग अलग. कई बार दूर-दराज के इलाके इतने अविकसित होते हैं कि वहां जीना भी बड़ा मुश्किल हो जाता है. पैसा भी ज्यादा खर्च होता है. ये चीजें तो हैं ही. फिर ऐसे भी आरोप लगते हैं कि नेताओं और मंत्रियों के रिश्तेदारों को पूरी सहूलियत मिलती है.
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