कुछ दिनों पहले की बात है... यही कोई 7:30 बजे मैं दफ़्तर से निकली. मेट्रो लेट चल रही थी तो घर पहुंचते-पहुंचते 9:15 बज गए. बरसात के कारण स्ट्रीट पर लगी लाइटें भी ख़राब थी. मैं घर से तकरीबन 1 मिनट की ही दूरी पर थी कि एक बाइक की आवाज़ पीछे से सुनाई दी.
मैंने अपना लैपटॉप बैग पीठ पर टांग रखा था, दोनों हाथों में फल-सब्ज़ी के थैले और छाता था. वो शख़्स दबे पांव मेरे पास आया और मेरी दाईं ब्रेस्ट तेज़ी से दबाकर चला गया. मैं दर्द और गुस्से से चीख उठी पर वो स्पीड बढ़ा चुका था. गली में घूमने वाले कुत्ते भौंके भी, पर वो जा चुका था.
मैं घर पहुंची और अपने आंसू रोक नहीं पाई. मैं ज़ोर से रोने लगी, वॉशरूम जाकर देखा उस शख़्स के स्पर्श के चिन्ह मौजूद थे.
दोस्तों ने ढांढस बंधाया. सवाल बना रहा कि आख़िर क्यों? क्यों होता है ऐसा? क्या ये मेरी ग़लती है कि मेरे पास ब्रेस्ट है? या ये मेरी ग़लती है कि सड़क पर लाइट नहीं जलती. या मेरी ग़लती है कि मैं ऐसे देश में रहती हूं जहां कोई भी कभी भी मुझे या किसी और को कुछ भी कर के जा सकता है?
मेरे बस में होता तो मैं उस आदमी को ढूंढ कर शायद मार डालती... पर मैं ऐसा नहीं कर सकती, लिख ज़रूर सकती हूं. सो वही कर रही हूं. ये ख़त है उस हर पुरुष/लड़के के नाम जिसने मुझे मेरी मर्ज़ी के बग़ैर छुआ और मुझे तोड़ने की कोशिश की.
आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है तुम सब अपनी-अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ रहे होगे और रात-दिन किसी न किसी महिला या बच्चे को ग़लत तरीके से छू भी रहे होंगे. कहीं भी, कभी भी, जब भी मौका मिले या मौका बनाकर उनके आगे या पीछे हाथ मारते होंगे.
रोज़ सुबह जब तुम काम के लिए(या बिना काम के भी)घर से निकलते होगे, तो तुम्हें ये पता भी नहीं होता होगा कि तुम कब, कहां और किसको छूने वाले हो. है न?
बस में या मेट्रो में मेरी या किसी अन्य लड़की की ब्रा के हुक को महसूस करके तुम्हें कौन सा दैहिक सुख मिलता है? जहां तक मुझे पता है किसी भी पुरुष में Orgasm की ताकत इतनी तो नहीं होती कि वो ब्रा की हुक को महसूस करके चरम सुख प्राप्त करे?
मैं समझना चाहती हूं. जानना चाहती हूं कि आख़िर वो कौन सी शक्ति है, जो तुम्हें दूसरों को उनकी मर्ज़ी के बग़ैर छूने के लिए मजबूर करती है.
पता है एक बार क्या हुआ था. मैं घर से निकली थी, कुछ लाने. यही कोई 8 बजे होंगे. मैं घर से निकलकर 10 कदम दूर ही पहुंची थी कि पीछे से एक ई-रिक्शा पर कुछ 15-16 साल के बच्चे शोर करते आए. मेरे पास ई-रिक्शा स्लो हुई, एक बच्चा मुझ पर कूदा और उसने मेरी गर्द पर काट लिया. सर्दियों का मौसम था, यानी कपड़े ढेर सारे पहने थे, सिर्फ़ चेहरा, हाथ और गर्दन दिख रही थी. उस बच्चे के काटने के निशान4-5 दिनों तक गले पर थे. मैं स्टॉल बांधकर दफ़्तर जाती थी.
क्या तुम्हें उस दर्द का अंदाज़ा भी है, जो मेरे दिल, दिमाग़ और मन पर लगा था? उस 15 साल के बच्चे के होंठ और दांत का स्पर्श मैं आज भी नहीं भूल पाई हूं. कई रातों त मैं डर के नींद से जाग भी जाती हूं.
तुम तो आते-जाते स्तन दबाकर, मसलकर, नोचकर चले जाते हो, पर क्या तुम्हें अंदाज़ा भी है कि कपड़ों की 2-3 परतों के बाद भी तुम्हारे स्पर्श के चिह्न रह जाते हैं? क्या तुम्हें इस बात की भनक भी है कि वो निशान जिसके शरीर पर रहते हैं, उसकी दुनिया बदल जाती है?
जैसे ही एक निशान मिटता है, दूसरा निशान लग जाता है और ऐसे ही चोटों से उसकी आत्मा दबने लगती है.
तुम्हारे लिंग को कोई दबाकर, काटकर, नोचकर चला जाए तो तुम उस व्यक्ति का क्या करोगे? लड़ना तो दूर, तुम उठ भी नहीं पाओगे.
मैं ये नहीं कहूंगी कि अपने घर में मां-बहन का ख़्याल करो, क्योंकि मैं तुमसे ये उम्मीद नहीं रखती हूं कि तुम उस क़ाबिल भी हो. बस जाते-जाते ये कह जाऊंगी कि तुम्हारी ओछी हरकतें मुझे नहीं रोक सकती. मैं जो भी हूं अपने दम पर हूं. अगर तुम ये सोचते हो कि तुम मेरे शरीर को छूकर, चोट पहुंचकर मेरी हिम्मत तोड़ दोगे, तो भूल जाओ. मैं और मेरे जैसी कई लड़कियां तुम्हारे गंदे स्पर्श के अनुभव के बाद भी हंसना और अपना काम करना जानती हैं.
तुम्हारा चेहरा कभी न देखने की आशा करते हुए
संचिता