राजकुमारी हिरानी की फिल्म संजू 29 जून को रिलीज हो गई. रणबीर कपूर के लीड रोल वाली संजय दत्त की ये बायोपिक हमने फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखी. इसके पहले संजय दत्त पर बहुत कुछ पढ़ा था. कई इंटरव्यू टेक्स्ट और वीडियो फॉर्मेट में. कई तस्वीरें. तो दिमाग में एक खाका था कि ये खास खास घटनाएं तो जरूर होंगी. संजू में कुछ हैं, काफी नहीं हैं. ये वो घटनाएं हैं जो मेरी सीमित समझ में संजय दत्त के किरदार के शेड्स बताने के लिए बेहद जरूरी हैं. ऐसी ही कुछ घटनाओं का यहां ब्यौरा
1.) फिल्म में संजय दत्त के बोर्डिंग स्कूल के दिनों का एक पंक्ति में जिक्र भर है. संजय दत्त जैसे भी बने, उसमें उनके स्कूल जाने से पहले के जीवन और स्कूल की सीखों का बहुत योग है. सुनील दत्त और नर्गिस का लाडला बेटा. दो बहनों पर एक भाई. जिसकी सब फरमाइश पूरी होती थी. जिसमें अनुशासन लाने के लिए एक्टर सुनील दत्त ने उन्हें कसौली के पहले सनावर में बने स्कूल में भेज दिया. यहां संजय दत्त बाप के लिए गुस्सा पालते रहे. बुली होते रहे. फिर बड़े होने पर बुली करते. नशा करते. और इन सबके बीच बार बार मां नर्गिस दत्त उनके पास आतीं, उन्हें हौसला देतीं. ये पार्ट फिल्म से मिसिंग है. इसकी कैफियत ये कहकर दी जा सकती है कि फिल्म को एक सीमित कालखंड में रखना था.
2.) संजय दत्त की जिंदगी को लिखने का एक तरीका ये भी हो सकता है कि वो सब औरतें जो उनके जीवन में आईं. और वो सब औरतें जिन्होंने संजय को दुलारा, संवारा या उसके हाथों प्यार पा फिर किनारे हो गईं या कर दी गईं. बिलाशक इसका पहला अध्याय नर्गिस होगा. जिन्हें वक्त लगा ये मानने में कि उनका संजू ड्रग एडिक्ट है. मगर उसके बाद की औरतें फिल्म से मिसिंग है. संजय दत्त की शुरुआती फिल्मी गर्लफ्रेंड्स को छोड़ भी दें, उन्हें सिरे से गॉसिप मैगजीन की उपज भी मान लें, तब भी. संजय दत्त की पहली शादी ऋचा शर्मा से हुई. एक बेटी हुई. त्रिशाला. फिर ऋचा को कैंसर हो गया. जब संजय का जीवन मां नर्गिस की मौत के बाद पटरी पर लौट रहा था, ये सब हो गया. संजय फिर सिरे से टूट गए. कुछ दिनों तक अमरीका में बीवी की तीमारदारी की, फिर अपनी दुनिया में आ गए. आगे बढ़ गए. ऋचा पीछे छूट गईं. दोनों परिवारों में खूब खटास रही. फिर ऋचा की मौत हो गई. बेटी पिता से दूर हो गई.
ये सब फिल्म में आता तो संजय दत्त के किरदार को समझने समझाने में सहायक होता. मगर ये नहीं है. माधुरी दीक्षित, जो मॉरीशस में आतिश के शूट तक संजय की गर्लफ्रेंड थीं. और फिर मुंबई ब्लास्ट में नाम आने के बाद सब एकदम से खत्म. रिया पिल्लई जो जेल के दिनों में संजय दत्त की साथी थीं. जिन्हें संजय ने वैलेंटाइंस डे के दिन प्रपोज किया था. फिर जो अलग हो गईं. और आखिरी में मान्यता. जिनसे जब संजू ने शादी की तो बहनें शरीक तक नहीं हुईं. ये सब भी नहीं हैं. ये सब संजय के अलग अलग फेज की स्मृतियों का अनिवार्य हिस्सा हैं. बेल पर बाहर आते संजय दत्त और साथ में रिया. संजय और उनकी बेटी त्रिशाला की तस्वीरें. संजय का अपार्टमेंट से फूल माला और मान्यता के साथ बाहर आना. ये सब. सब का सब. गायब है फिल्म से.
3.) संजय दत्त के जीवन का एक निर्णायक मोमेंट. जो उनसे ज्यादा सुनील दत्त की बेबसी और वापसी का मोमेंट था. सुनीत दत्त कांग्रेस के नेता. नेहरू-गांधी परिवार के करीबी रहे. मगर मुंबई ब्लास्ट के बाद केंद्र में राव की सरकार थी. सोनिया गांधी शोक की बाड़ के पीछे थीं. ब्लास्ट के बाद राव ने अपने रक्षा मंत्री शरद पवार को वापस मुंबई महाराष्ट्र का सीएम बनने को राजी कर लिया था. दत्त और पवार की बिलकुल नहीं पटती थी. ऐसे में संजय की गिरफ्तारी के बाद सुनील दत्त को राज्य सरकार से कोई रियायत नहीं मिली. केंद्र से भी वह एड़ी घिसकर लौटे. और आखिरी में पहुंचे अपने धुर विरोधी बाल ठाकरे के दर पर. जिन ठाकरे की सियासत का वह विरोध कर रहे थे, अब उनसे ही मदद की दरकार थी. ठाकरे ने निराश नहीं किया. संजय के पक्ष में सामना में लेख आए और माहौल बदलने लगा. उनके ऊपर से देशद्रोही और आतंकवादियों के मददगार वाले टैग हटने लगे. फिर राज्य में सरकार भी शिवसेना-भाजपा की आ गई. जमानत मिलने के बाद संजय दत्त अपने पिता के साथ ठाकरे के घर मातोश्री पहुंचे. वो बाहर आए. और बाहर आई एक तस्वीर. सर झुकाए संजय. उन्हें आशीष देते ठाकरे और बगल में मुस्कुराते सुनील दत्त. यही सुनील दत्त कुछ बरस पहले बाबरी मस्जिद के गिरने और उसके बाद हुए दंगों के बीच राहत सामग्री बांट रहे थे. और सांप्रदायिक शिवसेना को कोस रहे थे. मगर समय बलवान होता है और अपनों का मोह सबसे बड़ा विचार.
4.) संजय दत्त का डेब्यू रॉकी से हुआ. फिर वह नशे का इलाज कराते रहे. इस दौरान उनके कई प्रोजेक्ट्स अटके, खारिज या बंद हुए. संजय जब लौटे तो सिर्फ एक साल के इरादे से. मगर कोई उन्हें काम देने को राजी न था. सबको नशे में चूर संजय, बदतमीज संजय याद था. फिर आई ‘नाम’. कुमार गौरव, संजय दत्त, महेश भट्ट, सलीम खान आदि की वापसी या सफलता की शुरुआत करने वाली फिल्म. इसके बाद एक बात तय हो गई. कि संजय एक्टिंग ही करेंगे. वह करते रहे. लेकिन कुछ ऐसा नहीं हुआ कि वह सुपरस्टार हो गए हों. बीच-बीच में ‘साजन’ जैसी एक-आध हिट आ जातीं. अगर मुंबई ब्लास्ट में संजय दत्त गुनहगार के तौर पर सामने न आते. और उसके बाद उनके इर्द-गिर्द एक कल्ट न बनता तो शायद वह एक और गुजरे जमाने के एक्शन स्टार होते. जिसकी काबिलियत उसके सरनेम, कनेक्शंस और शरीर भर में बसी है. लेकिन संजय को बाद के दिनों में राजकुमार हिरानी मिले. और वह कल्ट सीन भी, जिसमें वह अपने पिता सुनील दत्त को गले लगाते हैं. गले लगाना वाला सीन ‘संजू’ में आया, मगर एक्टर संजय दत्त का शुरुआती फेज मिसिंग था.
5.) ब्रैंड संजू एक घातक और यूनीक कॉकटेल है. इसमें संजय दत्त की मुंबई धमाकों में शामिल होने वाली छवि है. अवैध हथियार हैं. नशा है. और ये सब जब पर्दे पर दिखता है तो दर्शकों का एक वर्ग अपनी बेचैनी को एकात्म कर पाता है. इसीलिए ‘खलनायक’, ‘हथियार’, ‘कारतूस’, ‘वास्तव’ और सबसे आखिर में ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ में छवियों का ये खिल निखार पाता है. मर्दानगी के सिनेमाई मुहावरे का एक पड़ाव है संजय दत्त. सड़क जिस पर खुद उनके पिता सुनील दत्त, धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन जैसे कई मर्दाना छवि वाले मील पत्थर गड़े हैं. लंबा कद, कसरती जिस्म. बेपरवाह. जंगलियों की तरह अपनी शर्तों पर प्यार करता. संजय दत्त. अपराधी मगर आतंकवादी नहीं, संजय दत्त. इस फिनॉमिना के बनने का एक प्रोसेस था. जो उनकी निजी जिंदगी की च्वाइस और सार्वजनिक जीवन में उनके बर्ताव और जाहिर तौर पर उनके रोल्स से मिलकर बना. मगर ये फिल्म में नहीं दिखा. आपको इसके कुछ हिस्से देखने हों तो यूट्यूब पर अपलोड दर्जनों वीडियो देखिए. बेलौस-बेखौफ और असली संजय दत्त. परिवार के साथ डिनर करते और इस दौरान परेशान कर रहे पत्रकारों को गाली देकर भगाते. अपने सिनेमा वाले दोस्तों की मुक्त कंठ से मदद करते यारबाज संजय. अपने एकांत से परेशान संजय.
संजू में उसके कुछ शेड्स दिखे. मोटे तौर पर तीन. एक नशे और बाप के कंट्रोल से जूझता संजय दत्त. दूसरा, मुंबई ब्लास्ट के बाद का संजय दत्त. तीसरा हीरो संजय दत्त की वापसी. फिल्मी पर्दे पर और जेल से बाहर आम जिंदगी में भी. पर ये नाकाफी हैं. ये पहले से पता हैं. ये अतिशय भावुकता से भरे हैं. ये संजय दत्त के दोस्त राजकुमार हिरानी की फिल्म का हिस्सा हैं. कल्ट डायरेक्टर राजकुमार हिरानी की फिल्म नहीं.
तो क्या संजू औसत से कुछ ऊपर की एक एंटरटेनिंग फिल्म भर है. नहीं. इसमें राजकुमार हिरानी फिल्म स्कूल के कुछ हुनर हमेशा की तरह हैं. कहानी का प्रवाह. उसके सब रंग. कॉमेडी, एक्शन, रोमैंस, सस्पेंस, थ्रिल और इन सबके ऊपर एक किस्म की सादगी से उपजती अच्छाई. फील गुड. जो जादू की झप्पी, गांधीगिरी, आल इज वेल और कोई फिरकी ले रहा है के क्रम में है. अगर कुछ देर के लिए एक्टर संजय दत्त को भूल जाएं. तो ये एक इंसान की कहानी है. जो बहुत फिसला, मगर जिसने उठना बंद नहीं किया. और यही एक इंसान के जीवन में सबसे प्रेरक चीज हो सकती है. इस फाइट को राजू कहीं-कहीं खूब ढंग से दिखाते हैं. नशे की जद से लौटना का रास्ता बहुत तकलीफ भरा है. और इस दौरान आप सब कुछ गंवा चुके हों तो और भी ज्यादा. मां, गर्लफ्रेंड और फिर पत्नी. इन सबके बीच करियर भी. इसी तरह से आतंकवाद के टैग से मुक्ति पाना बहुत जरूरी था. संजय दत्त से कहीं ज्यादा सुनील दत्त के बेटे के लिए. और आखिरी में वह वजह हासिल करना, जिसकी वजह से करोड़ों लोगों की एक आदमी में दिलचस्पी हुई. सिनेमा. जहां खलनायक का बल्लू पीछे छूट जाता है. वास्तव का रघु पीछे छूट जाता है. भाई वाली छवि याद रहती है, मगर उसके आगे मुन्ना लग जाता है. मुन्ना. अपना सा. घरेलू सा. कुछ दया से भरा. ताकतवर की दया. मुन्नाभाई. अक्खड़ लेकिन अच्छा.
ये अच्छाई हिरानी और अभिजात जोशी के लिखे की है. कुछ संजू में भी है. जैसे उन उस्तादों का जिक्र जो जीने की राह दिखाते हैं. कौन हैं ये उस्ताद. हमारी फिल्मों के गीतकार. मजरूह सुल्तानपुरी, साहिर लुधियानवी और आनंद बख्शी जैसे. अपने गीतों से जीवन का मर्म समझाते. इसे खूब दिखाया गया. और हम पत्रकारों को आईना भी खूब दिखाया. सनसनी, अपुष्ट तथ्यों के सहारे किसी की भी छवि गढ़ने वाले पत्रकार. कुछ सचेत हो जाएं. उन्हें बायोपिक के जरिए अपने सच को संवारने का मौका नहीं मिलेगा.
Sanju film: Five important incidents from the life of Sanjay Dutt which not the part of biopic