अखंड सौभाग्य के लिए किया जाने वाला व्रत हरितालिका तीज 12 सितंबर को है। भाद्र शुक्ल तृतीया बुधा के चित्रा नक्षत्र को तीज व्रत रखा जाता है, जिसमें महिलाएं पतियों के सुख- सौभाग्य, निरोग्यता के लिए माता गौरी की पूजा करती हैं। आचार्य राजनाथ झा बताते हैं कि इस बार सुबह से ही यह पूजा की जा सकती है। शाम के 6:46 मिनट तक यह पूजा की जा सकेगी। वह बताते हैं कि इसी दिन चतुर्थी चंद्र पूजन (चौरचन) भी है। बतातें चलें कि इस पूजा की मिथिला में काफी महत्व है। इसके बाद 13 सितंबर को गणेश पूजा की शुरुआत होगी जो 23 सितंबर तक चलेगी।
तिथि और शुभ मुहूर्त
यह भाद्र पद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है, जो गणेश चतुर्थी के एक दिन पहले होता है। इस बार पूजा करने की तिथि 12 सितंबर को है। सूर्योदय के बाद से शाम के 6:46 मिनट तक पूजा की जा सकेगी।
सुहागिनों के लिए अहम पर्व
हरियाली तीज, कजरी तीज और करवा चौथ की तरह यह तीज सुहागिनों का व्रत है। पति की लंबी आयु के लिए यह व्रत सभी सुहागिनें निष्ठा के साथ रखती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शंकर को पाने के लिए माता पार्वती ने किया था, जिसमें उन्होंने अन्न और जल तक ग्रहण नहीं किया था। इसलिए यह व्रत महिलाएं निर्जला रखती हैं। इसमें महिलाएं भगवान शिव, माता पर्वती और गणेश जी की पूजा की जाती है। कई कुंवारी कन्या भी यह व्रत करती हैं।
इस तीज के प्रमुख नियम
यह व्रत निर्जला किया जाता है, जिसमें महिलाएं थूक तक नहीं घोंट सकती हैं। भोजपुरी बेल्ट में इस व्रत का काफी महत्व है, जहां महिलाएं गीली, काली मिट्टी या बालू रेत से भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश की मूर्ति बनाकर पूजा करती हैं। इस व्रत का यह नियम है कि इसे एक बार प्रारंभ करने पर हर साल पूरे नियम से किया जाता है। महिलाएं एकत्रित होकर रतजगा करती हैं और भजन कीर्तन पूरे रात तक करती रहती हैं।