भारतीय सेना एक अहम फैसला लेने जा रही है. सेना के पास जो फार्म है उसमें 1 लाख की कीमत वाली उम्दा नस्ल की गायें हैं जिन्हें वो महज 1000 रुपए में बेचने जा रही है. आपको बता दें कि सेना के पास फ्रिसवाल नस्ल की 25000 गाय हैं.
दरअसल सेना अपने 39 फार्म को बंद कर रही है. यह फैसला पिछले साल अगस्त में ही ले लिया गया था. फार्म बंद करने के लिए उसे गाय बेचनी थीं, मगर इतनी महंगी गायों का अभी तक कोई खरीददार ही नहीं मिल पाया. इकोनॉमिक टाइम्स की खबर के मुताबिक, अब सेना ने फैसला लिया है कि उम्दा नस्ल की इन गायों को स्टेड डेयरी कोऑपरेटिव्स व अन्य सरकारी विभागों को महज 1000 रुपए प्रति गाय की कीमत पर दे दिया जाए. इसके अलावा गायों को ले जाने का खर्च भी उन्हें उठाना होगा जो इन गायों को ले जाएंगे.
एक फ्रिसवाल गाय औसतन 3600 लीटर दूध (लेकटेशन पीरियड) देती है, जबकि राष्ट्रीय औसत करीब 2000 लीटर है. चुनिंदा फ्रिसवाल 7000 लीटर तक दूध देती हैं. सेना के पास कुल 39 सैन्य फार्म हैं, जिनको बंद किया जाना है मगर इन गायों की वजह से यह काम अटका हुआ है. पूरे देश में मिलिट्री फार्म सन 1889 में स्थापित किए गए थे, इनका मकसद जवानों को ताजा दूध व डेयरी प्रोडक्ट उपलब्ध कराना था.
नीलाम करने की थी योजना
फार्म हाउस बंद हो जाने से करीब 57,000 जवान फ्री हो जाएंगे, जो अभी इन फार्म के कामकाज में लगे हुए हैं. पहले सरकार की योजना इन गायों को नीलाम करने की थी मगर इसमें सफलता नहीं मिल पाई.
तीन महीने में बंद करने थे फार्म
पिछले साल अगस्त में यह आदेश जारी हुआ था कि तीन महीने के भीतर इन फार्म को बंद कर दिया जाए. मगर गायों के चलते ऐसा नहीं हो पाया. फ्रिसवाल गाय नीदरलैंड की टॉप नस्ल की गाय और भारतीय साहिवाल के क्रॉस से तैयार हुई है. ये दुधारू होती हैं, मगर इन्हें काफी देखरेख की जरूरत भी होती है.
20 हजार एकड़ जमीन मुक्त होगी
इस बात को लेकर भी चिंता थी कि अगर इन गायों को आम किसानों या प्राइवेट डेयरी मालिकों को बेचा गया तो कहीं ऐसा ना हो कि वो इसे कसाईघर भेज दें, क्योंकि इन गायों के रखरखाव में अच्छा खास खर्चा आता है. अब यह चिंता भी दूर हो गई है, इस कदम से सेना अब मेरठ, अंबाला, श्रीनगर, झांसी और लखनऊ जैसे शहरों में मौजूद अपने फार्म हाउस को बंद कर करीब 20 हजार एकड़ जमीन मुक्त करा पाएगी.
Source: Live Cities
भारतीय सेना 1000 रुपए में बेच रही है 1 लाख रुपए की गाय, 25000 गाय निकालनी हैं, जानें क्यों?