वैज्ञानिक किसी तरह इंसानों की आयु बढ़ाने में लगे हैं. लेकिन लगता है कि कि सफलता रेलवे के हाथ लगी है क्योंकि उसने एक आदमी को एक हजार साल बाद का टिकट जारी किया.
सत्तर वर्षीय विष्णु कांत शुक्ल, हिंदी के प्रोफेसर हिमगिरी एक्प्रेस में बैठकर अपने शहर सहरानपुर से जौनपुर जा रहे थे. जौनपुर में उनके दोस्त की बीवी का देहांत हो गया था. मतलब कि ये एक अर्जेंसी थी. ये 2013 की बात है.
ट्रेन में जब टीटी ने उनका टिकट चेक किया तो पता चला कि टिकट में यात्रा की तारीख़ – 19 – 11 – 3013 लिखी हुई है.
देखा जाए तो ये कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी क्यूंकि अक्सर ऐसी टाइपिंग की गलतियां हो जाती हैं. लेकिन जैसा कि लोग कहते हैं कि भूल होने से कोई दिक्कत नहीं, मगर वही अगर सुधारी न जाए तो आपदा बन जाती है. तो ऐसा ही कुछ इस केस में भी हुआ.
टीटी ने इसे रेलवे की भूल मानने से इनकार कर दिया और बुजुर्ग प्रोफेसर को ही दोष देने लगा. कहा कि ये टिकट फेक है. और साथ ही उम्र, ओहदे का ख्याल रखे बिना उन्हें बीच के स्टेशन (मुरादाबाद) पर ही उतार दिया.
रिटायर्ड प्रोफेसर अपने अधिकारों के प्रति जागरूक थे इसलिए उन्होंने कन्ज्यूमर कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया.
अब पांच साल के बाद उन्हें न्याय मिला है. इस दौरान कोर्ट ने पाया कि –
70 साल के किसी बुजुर्ग आदमी को बीच यात्रा में ट्रेन से उतार देना बहुत ज़्यादा दुखद है. उनकी (बुजुर्ग की) हालत समझी जा सकती है कि वो उस वक्त किस मानसिक दबाव और शारीरिक पीड़ाओं से दो-चार हुए होंगे.
कोर्ट ने रेलवे को आदेश दिया कि वो विष्णुकांत शुक्ल को दस हज़ार रुपये की पेनेल्टी तीन हज़ार रुपये का मुआवज़ा दे.
वैसे अगर वो बुजुर्ग हिंदी के प्रोफेसर विष्णुकांत शुक्ल न होकर हिंदी के कवि विनोद कुमार शुक्ल होते तो कहते –
‘कि मैं किसी भी दिन को – जैसे 19 नवंबर के दिन को
कविता के रोजनामचे में दर्ज़ कराता हूं.’– यह दिन उम्र की रोज़ी है (विनोद कुमार शुक्ल)