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सामाजिक

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अब तक आपने पढ़ाआदि अपने दोस्तो से हट कर एक कोने में खड़ा हो गया और अनिका को देखने लगा । अब आगेअनिका को भी आज थोड़ा अजीब लग रहा था , वो समझ नहीं पा रही थी , कि आदि के देखने से आज उसे ऐसे क्यों हो

घर घर की कहानी रचना एक परिवार के हर मनुष्य के किरदार ओर उनकी कमजोरियों को बताती है । “हर समाज और हर घर में समाज के बड़े बुजुर्ग लोगों के द्वारा जो भी कह दिया जाता था। वह पत्थर की लकीर बन जाती थी” उस स

“मानव से परिवार बना,मानव से बना घर-बार। मानव से जाति धर्म बने,मानव से बने रिश्तेदार। समाज बने हैं मानव से, समय ने इनको बदल दिया। गांव,शहर,तहसील,खंड बने,प्रांत,देश से विश्व बना दिया”। मनुष्य एक सामाजिक

एक लड़की अनजानी सीपरसो रात्रि करीबन साढ़े ग्यारह बजे मे आॅफिस से घर को बाइक से निकला ही था की कुछ ही दूरी पर एक लडकी नजर आई सलवार सूट पहने मदद का हाथ लिए इशारे से... मैने बाइक रोकी तो पास से टैक्

एक था ड्रैगन, बहुत बड़ा, बहुत ही ताकतवर। जमीन पर चलता था, हवा में उड़ता था, मुंह से आग उगलता था। ऐसा बताया था, एक बुजुर्ग ने। जिसकी हर बात थी, पत्थर की लकीर। पहले भी खोल चुका था, वो कई राज। आ

एक बार एक शहर में एक घर था जो बहुत पुराना था। इस घर में एक रिश्तेदार की मौत के बाद से अनुभव किए गए थे। कई लोगों ने इस घर में भूतों की आवाज सुनी थी और इस घर के पास से गुजरना डरावना महसूस करते थे। एक द

काश्वी ने देखा तो उसका ईमेल खुला हुआ है वहीं मेल जो उत्कर्ष ने उसे किया… मेल में उत्कर्ष ने काश्वी को रिमांइड कराया कि उसे जल्द एडमिशन के बारे में फैसला करना है… काश्वी सब समझ गई… उसका डर अब उसके सामन

जी साहब हम मजदूर हैं, हमें पता है कि हिसाब क्या होता है। हमें एक-एक रूपये की कीमत पता है, खून पसीने से कमाया हुआ धन क्या होता है?? जी साहब हम मजदूर हैं, सूर्योदय की पहली किरण वहीं से शुरू होती है। खिल

अरे हो भारती तेरी बहन मिनू कहा है उसको देख जाकर की तैयार हूई क्या आज उसकी हल्दी दुल्हे को हल्दी लग चुकी है तो वो अब दुल्हन की हल्दी लेकर निकल गये है सुन रही है ना भारती हां हां मां ये है हमारी

 पापा के जाने के बाद काश्वी ने अपना फोन चेक किया, निष्कर्ष का मैसेज था, उसे भी नींद नहीं आ रही थी इसलिये मैसेज किया, काश्वी ने टाइम देखा तो रात के तीन बज रहे थे, उसने सोचा अब सुबह ही बात करेगी निष्कर्

अब तक आपने देखामिस्टर सिकरवार के तरफ मुडी और बोली 😊  — अच्छा तो अब चलिए ... कहीं देर ना हो जाए । अगर मैं वहां लेट पहुंची तो मुझे मेरी सहेली से बहुत कुछ सुनने को मिलेगा । अब आगे मि

अब तक आपने देखाइसे देखकर तो लग रहा है जैसे कि आप दो - तीन महीने के लिए जा रही हो वहां । अब आगे          माधुरी जी हंसकर बोली - अरे बेटा ऐसी कोई बात नहीं है । मैं वहा

काश्वी मुस्कुराते हुए उत्कर्ष के ऑफिस से बाहर निकली, उसे खुशी है कि निष्कर्ष अपने पापा के बारे में जो सोच रहा है वो गलत है और एक न एक दिन दोनों फिर साथ होंगे, ये कैसे होगा ये काश्वी को नहीं पता पर एक

एक और पड़ाव पार कर लिया निष्कर्ष और काश्वी ने अपनी दोस्ती का, एक महीने के अंदर ही दोनों इतने गहरे दोस्त बन गये कि अब एक दूसरे की जिंदगी से अच्छी तरह परिचित हैं   रात तो गहरी हो रही है लेकिन काश्वी को

कुछ देर तक सब शांत रहा, काश्वी की नजर पहले उत्कर्ष पर गई जो चुप हैं शायद किसी गहरी सोच में हैं, फिर उसने निष्कर्ष को देखा जो उसे ही देख रहा है, निष्कर्ष भी चुप है, कुछ सैकेंड बाद हॉल की शांति तालियों

सुबह जब निष्‍कर्ष उठा तो उसने अपने फोन पर कई मिस कॉल देखी, रात के ढाई बजे काश्‍वी क्‍यों फोन कर रही थी? ये सोचकर निष्‍कर्ष कुछ परेशान भी हुआ उसने तुंरत काश्‍वी को कॉल किया लेकिन फोन उठा नहीं, शायद अब

 अब तक आपने देखाअब मैं क्या करूं .... फिर अचानक उसके दिमाग में एक बात आई और वो मिस्टर सिकरवार के पास कॉल कर के अपनी बात कहीं । अब आगे              मान

निष्कर्ष ने काश्वी से पूछा एक बात बताओ, “तुम तो दिल्ली में रही हो हमेशा, फिर नेचर से कितनी करीबी कैसे हो गई? दिल्ली की लड़कियों को तो बड़े बड़े मॉल्स और फोरेन ट्रिप्स पर जाने का शौक होता है और तुम यहा

एक तरफ बर्फ से ढके पहाड़ इौर दूसरी तरफ रंग बिरंगा छोटा सा बाज़ार, निष्‍कर्ष और काश्‍वी अपनी थीम की तलाश करते आगे बढ़ने लगे। दुकानों के बाहर लटके रंग बिरंगी चीजें, ठंड का एहसास कराते गर्म कपड़ों से सजे

जो बात हमें तकलीफ देती है उसे दिमाग से निकालना इतना आसान नहीं होता और उसे भूलकर किसी और चीज पर ध्‍यान लगाना काफी मुश्किल होता है, निष्कर्ष और उसके पापा का रिश्‍ता अब उस स्‍टेज पर पहुंच गया है जहां दोन

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