जमीदार के नायव जानकीनाथ के घर में प्यारी नास की एक महराजिन रसोई बनाने के लिए नौकर कुई। उसकी अवस्था कम थी और चरित्र अच्छा था। दूर की रहनेवाली वह ब्राह्मणों विपत्ति के फेर से पड़कर जानकीनाथ की घर आकर नोकर हुई ही थी कि एक दिन, मालिक की अलुराग- दृष्टि से अपने का बचाने के लिए, उसे माक्षकिन के आगे रोना पडा | मालकिन ने कहा-- महराजिन, तुम ओर कही नोकरी कर लो, यहां तुम्हारा रहना अच्छा नहीं !
किन्तु वहाँ से भाग जाना सहज नहीं था। पास पूजी भी कह आने पेसे ही थी । इस कारण महराजिस ने गॉव मे चन्द्र- भूषण भट्ट के यहाँ जाकर आश्रय लिया । समझदार लडकों ने कहा--आप क्यों जान-बुझ कर विपत्ति को अ्रपने घर बु्लाते हैं! भट्टजी ने कहा-- विपत्ति यदि आपसे आकर आश्रय की प्राथना करे ते में उसे विमुख लौटा देना उचित नहीं समझता।
एक दिन नायब साहब ने आकर भट्टजी को साष्टाड़ प्रणाम किया ओर कहा--भद्टजी, आपने हमारी महराजिन के क्यों अपने यहाँ रख लिया है ? धर में रसोई वनानेवाले के विना बड़ी दिक्कृत हो रही है। इसके उत्तर में मद्टजी ने दे।- 'एक सच्ची बाते कड़ाई के साथ सुना दी । वह प्रतिष्ठित और सच्चे आदमी थे। किसी की ख़ातिर से कोई बात घुमा-फिरा- कर कहने का उनको अभ्यास नहों था
नायब मन ही सन उस चोटी के साथ भट्टजी की तुलना करते चले गये जिसके पर निकल आते हैं। जाते समय खूब आड्बर के साथ प्रणाम किया |
दे ही चार दिन के बाद भट्टजी के घर पुलिस पधारी | भसदट्टजी की स्त्री की तकिया के नीचे से नायब की स्त्री के जडाऊ करनफ़ूल--चोरी का माल--बरामद हुए । महराजिन चोर साबित होकर जे्ल गई। भट्रजी देशप्रसिद्ध प्रतिपत्ति के बल्ल से चोरी का माल्ष रखने के अभियोग में जेल्ल गये बिना ही छुट- कारा पा गये । अद्वजी ने निश्चय कर ल्लिया कि मेरे आश्रय देने से हो महराजिन की यह दशा हुई | उनके हृदय में यह बात कांटे की तरह खटकने लगी । लड़कों नेक हा, घर-बार छेइकर कहीं बाहर चलिए। अब यहाँ रहना नहों हो सकता । भरद्टजी ने कहा--में बाप-दादे के घर का नहीं छोड़ सकता | जो भाग्य मे बदा होता है वही होता है । विपत्ति कहाँ नहीं आ सकती ।
इसी बीच मे नायब ने जमीन पर बचुत अधिक लगान बॉघने की चेष्टा की, इससे प्रजा ने विद्रोह खड़ा कर दिया | भट्टजी के पास जितनी ज़मीन थी वह दान मे उन्हें मिल्ली हुई थी | उसके साथ ज़्मीदार का कुछ सम्बन्ध न था। नायब ने अपने मालिक से कहा--भट्टजी प्रजा को बहकाकर विद्रोही बना रहे हैं |
ज़मींदार नेक कहा--जिस तरह हे सके, भट्ट का नीचा दिखाओ । नायब फिर भ्रट्ट के पास आये ओर उसी तरह प्रणाम करके कहा--भट्ट जी, सामने की यह जमीन परगने की सरहद में पड़ती है, वह आपको छोड देनी पड़ेगी। भट्ट ने कहा--यह क्या है | वह तो बहुत दिने से मेरी है । भट्टजी के घर से मिलती हुई ज़मीन के लिए जमोंदार की ओर से नालिश हुई। भट्ट ने कहा--जुमीन चाहे छूट जाय, सगर मैं बुढ़ापे मे अदालत न जाऊँगा। लड़का ने कहा - अगर यही ज़मीन छेड देंगे ते घर मे कैसे रहेंगे ?
प्राणाधिक बाप-दादे के घर की समता मे पड़कर वृद्ध भट्टजी काँपते हुए इजल्लास के सामने हाज़िर हुए। मुन्खिफ साहब ने उन्ही की गवाही पर विश्वास करके मुकृहमा डिसमिस कर दिया। भट्टजी को ज़मीन से रहनेवाली प्रजा ने इस उपच्त्त मे वड़ा भारी उत्सव किया। भट्ट ने जल्दी से जाकर उन सबकी ऐसा करने से रोका ।
नायब ने फिर आकर उसी तरह भट्टजी को प्रणाम किया आर अपील दाखिल कर दी | वकील लोग भट्टजी से मेदनताना नहीं लेते थे। उन्होंने बारम्बार ब्राह्मण का आखश्वास दिया कि मुकदमे में द्वारमे को काई सभा - वना नहीं है। दिन कया कभी रात हो! सकता है ? एक दिन नायव के यहाँ बड़ी धूमधाम से सत्यनारायणथ की कथा हुई। मामला कया है ? भट्टजी की पीछे से व्रील के द्वारा मालूम हुआ कि अपील मे उनकी हार हो गईं |
भट्टजी ने माथा ठोककर वकील से पुछा--आप क्या कहते हैं ? मेरी क्या दशा होगी दिन किस तरह रात है| गया, इसका गूढ कारण वकील साहब ने इस तरह बतलाया--हाल मे जो नये एडिशनल जज होकर आये हैं वह जब मुन्सिफ थे तब उन मुन्सिफ साहब से, जिन्होंने भट्टजी के मुकदमे का फेसला किया था, उनकी खटपट थी। उस समय यह उनका कुछ नहीं कर सके थे । अब जज होकर आये हैं और इसी से मुन्सिफ साहब के खिलाफ अपीलो का फैसला करते हैं । इसी कारण आपकी हार हो गई ।
व्याकुल भट्टजी ने पुछा--हाईकोर्ट में इसकी कुछ सुनवाई हो सकती है ? वकील ने कहा--जज साहब ने ऐसी राय लिखी है कि -हाईकोर्ट लड़ने से भी कुछ लाभ नहीं हो! सकता । उन्होंने आपकी गवाही पर विश्वास न करके उधर की गवाही पर ही विश्वास किया है। आँखे! मे ऑसू भरे हुए वृद्ध ने पूछा--ने फिर मेरे ए लिया उपाय है ( वकील ने बहुत ही विजता के साथ सिर हिलाकर कहा--उपाय ते कुछ नहीं देख पड़ता | दूसरे दिन नायब बड़ो धूमधाम से बहुत से आदंभियों के साथ आकर भट्टजी को प्रणाम कर गया, और जाते समय कह गया कि प्रभु तुम्हारी इच्छा ।