अनेक अवस्थाएँ बदलने के उपरांत अन्त का गतयौबना चुन्नो ते जिस पुरुष का आश्रय श्रदण किया था वह भी जब उसे फटे कपड़े की तरह छाड़ गया तब मुट्ठी भर अन्न के लिए दूसरे आश्रय के। खे।जने की चेष्टा करने से उसे अत्यन्त घिक्कार मालूम पड़ा ।
जवानी के अन्त में शुश्र शरद ऋतु की वरद्द एक गम्भीर प्रशान्त बचुत ही सुन्दर अवस्था आती है जब जीवन का फल फलने और “फसल” पकने का समय आता है। उस समय वसन्त के समान भरी जवानी की नहीं सोहती । इतने दिनों में घर के सँभालने का काम समाप्त हो जाता है | अनेक भलाई-बुराई, सुख-ढुःख जीवन में परिपाक को प्राप्त हो- कर भीतर के आत्मा की परिणत अवस्था से पहुँचा देते हैं ।
उस समय नवीन प्रणथय को मुग्घ-दष्टि की अपनी ओर आक करने की फिर प्रवृत्ति नहीं हेती--किन्तु पुराना साथो आर भी प्यारा हो उठता है। उस समय जवानी का सोन्दर्य धीरे धीरे शिथिल हो आता है, किन्तु बृद्धावस्था से रहित अ्रन्त:- प्रकृति बहुत काल के सद्दवास से मुख ओर नेत्रों मे मानो वहुत अच्छी तरह अड्डित दो जाती है।
कुछ मिल्ला नहीं उसकी आ्राशा छेड़कर, जो छोड़ गये हैं उनके लिए शाक समाप्त करके, जिन्हाने धोखा दिया है उनको क्षमा करके, जे पास झाये हैं-- जिन्होंने प्यार किया है--उनको हृदय से लगाकर, सुनिश्चित सुपरीक्षित चिर-परिचित लोगां के स््नेह्द के घेरे के भीतर निरापद खान बनाकर उसी के भीतर सब चेष्टाओं का प्रन्त होता है और लब आकात्षाओं की तृप्ति होती है। जवानी को उस मे, जोबन के उस शान्तिपथ में भो जिसे नये सिरे से सच्चय, नवीन परिचय और नवीन बन्धन के बुथा आश्वास में नवीन चेष्टा के लिए देडना पड़ता है--
उस समय सी जिसकी लिए विश्राम की शय्या नद्दीं विछ--उससे बढकर शेोचनीय ससार मे और कोई नहीं है । चुज्नी ने अपनी वानी के सायड्राल मे एक दिन सबेरे उठकर देखा उसका प्रणयी रात के उसका सब्चित धन और गहने लेकर भाग गया है --
घर का किराया देने के लिए भी एक पैसा नहीं छोडा--
तीन वर्ष के बच्चे को दूध लाकर पिलाने का भी ठिकाना नही रहा |
जन्न चुन्नी ने सोचकर देखा कि अपने जीवन के अडततीस वर्षों से वह एक आदमी की भरी ग्रपना नहीं कर सकी---
एक घर के कोने में भी मरने-जीने के लिए ठिकाना नही कर सकी---
जब उसे देख पडा कि आज फिर ऑसू पाछकर देने आँखों मे अब्जन लगाना होगा, ओएों मे पान की घड़ो जमाकर और दांतो में मिससी लगाकर जी येवन की तेल-पानी की चुपड़ से चमकाकर बाज़ार में बैठना दोगा, हँसते-दंसते असीम धैर्य के साथ नवीन हृदय दवरने के लिए नया जाल फेकना होगा--तब वह घर के किवाड़े बन्द कर, पृथ्वी पर लोटकर, बार-बार ज़मीन पर अपना सिर पटकने लगी ।
दिन भर बिना कुछ खाये-पिये मुद्दे की तरह पड़ी रही ! शाम ही आईं। दीपक-हीन घर के कोने से अन्घ- फार घना हो! आया | एकाएक एक पुराना प्रणयी आकर चुन्नी- चुन्नी कहकर दरवाज़ा पीटने लगा। चुन्नी अकस्मात् द्वार खेोल- कर फाड़ हाथ मे लिये बाघिन की तरह गरजकर देोडी | रसपिपासु युवक शीघ्र ही अपनी जान लेकर भाग गया | चुन्नी का बच्चा भूख के मारे शे-रोकर छाट के नीचे से गया था। वह इस गोकज्षमाल्न में जाग पडा और अन्धकार के भीतर सा, मा, कहकर रोने लगा ।
तव चुन्नो उस रो रहे बालक को प्राणपण से छाती में चिमटाकर, बिजली की तरह दोड़कर, पास फे एक कुएं से कूद पड़ी । शब्द सुनकर, प्रकाश हाथ में लिये, परोसी लोग कुए के पास आ गये | चुन्नो और उसका बच्चा निकाल लिया गया । चुज्नो उस समय बेहोश थी और लडका मर चुका था । अस्पताल में जाकर चुन्नी आराम हो गई। हङताल के अपराध मे मजिस्ट्रेट ने उसको सेशन सुपुद कर दिया ।
सेशनजज स्टेच्युटरी सिविलियन मनोहरनाथ थे । उनके कठिन विचार से चुन्नी को फॉसी की सज़ा हुई !' अभागिनी की अवस्था पर खयाल करके वकीलों ने उसे बचाने के लिए बहुत चेष्टा की, किन्तु'कुछ फल्ल न हुआ |
फल न होने का एक कारण था। मनोहरनाथ एक ओर हिन्दू महिलाओ का देवी कहते हैं, दुसरी ओर ख्रो-जाति के ग्रति उन्हे आन्तरिक अविश्वास है। उनका मत यह है कि रमणियाँ कुल के बन्धन का तोड़ने के लिए सदा तेयार रहती हैं; शासन तनिक शिथिल होने पर समाज के प्जड़े मे एक भी कुक्ष नारी नहीं दिखाई पड़ सकती । उनके ऐसे विश्वास का एक कारण भी है। वह्द कारण जानने के लिए मनाहरनाथ की जवानी का इतिहास जानना परम आवश्यक है |
मने।हर॒नाथ जब कालेज मे सेकिंड इयर मे पढ़ते थे तब आकार से और आचार में उत्तका दूसरा ही ढांग था। इस समय मनेोहरनाथ के चोटो है और वे निद्य अपने हाथ से अपनी हजामत बनाकर सफाई का परिचय दिया करते हैं । किन्तु उस समय सोने का चश्मा, फेशनेबुल दाढ़ी और साहबी ढँग के बाल उनके मुख की शोभा बढ़ाते थे ।
उस समय सज-धज पर विशेष दृष्टि थी, मद्य-मास से अरुचि न थो और इसी के साथ की एक-आध लत और भी थो । उनके घर के पास ही और एक गृहस्थ रहते थे । उनके चसेलो नाम की एक विधवा लडकी थी । उसकी अवस्था चेोदह-पन्द्रह वर्ष से अधिक न होगी ।