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भाग 2

25 अगस्त 2022

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समुद्र के भीतर से, वृत्तपंक्ति से श्यामल तट-भूमि जैसे रम-णीय स्वप्न के समान, चित्र के समान जान पड़ती है वैसे किनारे पर पहुँचने से नहीं । वेघव्य के घेरे की आड़ से चमेली संसार से जितना दूर हो गई थी उसी दूरी के अलगाव के कारण उसे संसार, पर-पारवरत्ती परम रहस्यमय, प्रमोद-बन के समान जान पड़ता था |

 वह नही जानती थी कि इस जगत्यन्त्र के कल-पुझे बहुत ही जटिल हैं ओर लोहे के समान ही कठिन हैं। वे सुख- दुःख, सम्पत्ति-विपत्ति, संशय-सड्डूट, निराशा और परिताप से ढले हुए हैं। उसे जान पड़ता था कि संसार मे चल्लनना कल- नादिनी नदी के स्वच्छ जल्न-प्रवाह की तरह सहज है--सामने की' पृथ्वी के सभी मार्ग प्रशस्त और सरल हैं । 

सुख केवल उसके घर के द्वार के बाहर है ओर तृप्तिहीन आकांक्षा के उसके धड़क रहे परिताप-पूर्ण कोमल हृदय के भीतर है | विशेष करके उस समय उसके श्रन्तर्गंगन के दूर दिगन्‍त से एक जवानी की हवा ने उच्छुसित होकर सम्पूर्ण विश्व को विचित्र वसन्‍त की शोभा से विभूषित कर दिया था। सारा नील आकाश मानें उसी के हृदय की हिलोरों से पृर्णे हो गया था 

और  प्रृथ्वी मानों उसी के सुगन्ध-मर्मकाष के चारों ओर रक्त कमल की कोमल पंखड़ियों के समान तह की तह विकसित हो रही थी । घर में उसके माता-पिता और दो छोटे भाइयों के सिवा और कोई न था । दोनों भाई खबेरे खा-पीकर स्कूल चले जाते और स्कूल से आकर भेजन करने के बाद रात को नाइट स्कूल पाठाभ्यास करने के लिए जाते थे। 

बाप की थाडी सी तन- ख्वाद् मिलती थी, धर मे मास्टर बुज्ञाने की सामथ्ये न थी । काम-काज से फुस त मिलने पर चमेली अपने कमरे को खिड़की पर आकर बैठती थी । बेठ-बैठे सड़क पर लोगों का जाना-आना देखा करती थी | फेरी लगा कर सौदा बेचने वाले  तरह-तरह से आवाज लगाते चले जाते थे। उसको सुनकर वह समभती थी कि फेरीवाले, राहगीर और  फकीर भी सुखी हैं । सबेरे ओर तीसरे पहर, शास का खूब सज-धज किये, गये से छाती फुलाये मने।

हरहाथ भी उसकी नज़रों के सामने से गुजरते थ। उसकी जान पड़ता था, इस उन्नत-मस्तक सुवेश सुन्दर युवक् के सब कुछ है, और इसका सब कुछ दिया जा सकता है! बालिकाएं जेसे गुड़िया का सजीब मनुष्य मानकर खेलती हैं उसी तरह विधवा चमेली मनोहर की, मन ही सन सब प्रकार की महिमा से मण्डित करके, देवता समझ कर खेलती थी ।

कभी-कभी शाम को वह देखती थी कि मनोहरनाथ के घए में खूब रोशनी हो रही है, नाचने-गानेवाली के घुघरुओ का ओर गाने का शब्द गूँज रहा है। उस दिन वह मनेहरनाथ की दीवार पर प्रतिफलित होनेवाली चच्चल परछाहियो की रऔर लुब्ध दृष्टि से ताकती हुई बैठे ही बैठे रात बिता देती थी। उसका व्यथित पीडित हत्पिण्ड, पिंजड़े के पत्ती की तरह, हृद्य- पिज़र के ऊपर दुदोन्‍त झावेग से आधात किया करता था ।

वह क्या अपने गढ़े हुए देवता को विल्लास में लिप्त रहने की कारण अपने मन से मिड़कती थी या निनन्‍दा करती थी? नहीं, अग्नि जेसे पतड़ को नक्षत्र-लेक का प्रलोभन दिखाकर अपनी ओर खीचता है वैसे ही मनेहरनाथ का वह प्रकाशित, गाने-बजाने से गूज रहा, प्रमोद "मदिरा के उच्छूसस से पूण घर चमेल्ली का स्वगं-मरीचिका दिखाकर अपनी ओर आकृष्ट किया फरता था ।

 वह अधिक रात को अकेल्ली बेठी-बैठी उस घर के प्रकाश-छाया-सड़ीत और अपने मन की आकांच्षा और कल्पना के द्वारा एक साया का जगत्‌ गढ़ती थी ओर अपनी मानस-पुत्तलिका की उसी मायापुरी के बोच सें बिठाकर विस्मित विम॒ग्ध दृष्टि से निहारती थो भर अपने जीवन-योवन, सुख-दुःख, इद्दकाल्न-परकाल आदि स्वेस्व को वासना की आग में धूप की तरह जलाकर उस निजन सुनसान घर में मनोहरनाथ की पूजा किया करती थो । 

वह नहीं जानती थी कि उसके सामने के उस घर के भीतवर--उस्र तर्लित प्रमोद-प्रवाह के बीच--एक अत्यन्त कलान्ति, ग्ल्वानि, पड्डिलता, वीभत्स क्षुधा और प्रायक्षय- कर दाह है। विधवा को दूर से यह नहीं देख पडता था कि उस निद्राहीन रात्रि के प्रकाश के भीतर एक हृदयहीन निष्ठु- रवा की कुटिल हँसी प्रलय की क्रीड़ा किया करती है । 

चमेली अपने सुनसान कमरे की खिडकी मे बैठकर उस माया- मय स्वर्ग श्रेर कटिपत देवता को लेकर अपनी खारी ज़िन्दगी इसी प्रकार फे स्वप्न के आवेश मे बिता दे सकती थो ।

 किन्तु उसके दुर्भाग्य से देवता ने कृपा की और वह्द स्वर्ग निकटवर्त्तों होने लगा । स्वर्ग ने जब एकदम आकर प्रथ्वी को स्पशे किया तब स्वर्ग भी नष्ट हो! गया ओर जिस व्यक्ति ने अकेले बेठकर सगे की कल्पना की थी वह भी नष्ट होकर सिट्टी मे मिल गया | 

 इस विधवा पर कब मनेाहरनाथ की लुब्ध दृष्टि पडो, कब उसकी विनेदचन्द्र नाम से मिथ्या हस्ताक्षर करके चिट्री लिखकर मनेाहरनाथ ने अन्त को शड्ढा-पूण, उत्कण्ठा-पूण अशुद्ध लिखा हुआ हृदय के उच्छूास और आवेग से भरा पत्र पाया; उसके बाद कुछ दिन घात-प्रतिघात, उल्लास-सड्डोच, आशा और आशउड्ढा मे किस तरह बीते; उसके बाद प्रतलय-सदहरश भयानक सुख की अवस्था मे सारा जगत्‌ विधवा की दृष्टि के आगे कैसे-केसे प्रलोभन भन लेकर आने लगा ओर उसी अवस्था मे वह विधवा संसार का किस तरह भूल गई---उसके बाद अकस्मात्‌ एक दिन वह विधवा उस' ससार से किस तरह अलग होकर दूर चत्ती गई, इसका विस्तृत विवरण लिखने की काई आवश्यकता नहीं। 

एक दिन, आधी रात के समय, माता-पिता, भाई और घर छेोडकर चमेली  विनोदचन्द्र नामधारी मनोहरनाथ के साथ एक गाड़ी मे सवार हो! गई। देव-प्रतिमा जब उसके पास आकर बैठी तब क्ज्जा और घिक्कार के मारे चमेली मर सी गई । अन्त की गाड़ी जब हॉक दी गई तब चमेली रोकर मने- हरनाथ के पैरें पर गिर पड़ी और कहने लगी--अजी मैं तुम्हारे पेरें पड़ती हूँ, तुम मुझे मेरे घर पहुँचा दे। । मनोहर- नाथ ने दोनों हाथों से जल्दी से उसका मुँह दबा दिया | 

गाड़ो तेज़ो से चलने क्वगी | जल्न मे डूब कर मर रहे मनुष्य को दम भर में जेसे जीवन की सब घटनाएं स्पष्ट देख पड़ने लगती हैं वेसे ही उस बन्द गाड़ी के अन्धकार के भीतर चमेली का याद पड़ने लगा कि भाजन के समय उसके पिता उसकी सामने बिठल्लाये बिना भोजन न करते थे, याद पड़ा कि उसके  छोटे भाई स्कूल से आकर उसी से खाने की मॉगते थे;

 याद पड़ा कि सबेरे वह अपनी मा के साथ घर का काम-काज करती थी ओर शाम का मा अपने हाथ से उसकी चेटी बॉध देती थी !। घर का हर एक कोना ग्रेर हर दिन का हर एक छोटा काम उसे याद आने लगा--- . तब उसे अपना वह निराला जीवन और वह छोटा घर ही खगे जान पड़ने लगा । 

उस समय उसे घर का काम-काज करना, भोजन के समय पिता को पड्ढा कलना, दोपहर की माता की सेवा करना, भाइयों का उपद्रव सहना--यही सब उसे परम- शान्ति-पूर्ण दुलभ सुख के समान जान पड़ने लगा । जान पड़ने लगा, प्रथ्वी के हर एक घर मे इस समय कुल- कामिनियों गहरी नोंद में से रही होंगी । 

उस अपने घर मे, अपनी खटिया पर, रात के सन्नाटे मे निश्चिन्त निद्रा बड़े ही सुख की थी । हाय! यह बात पहले से उसे क्यो न सूझी | गृहस्थी की औरते कल सबेरे जगकर बिना किसी सड्जींच के अपने नित्य के काम करने लगेंगी और घर से निकली   हुई  |  

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रचनाएँ
गल्प गुच्छ
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कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प गुच्छ साल भर से काफ़ी चर्चा में है। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है। पूरी कथा पाठक में इतनी बेचैनी पैदा कर देती है कि वह आतंकित कर देने वाली उन परिस्थितियों और किरदारों के बारे में सोचे जो हमारे आस पास निर्मित हो चुकी हैं और उनका दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। कई बार कोई क़िताब, कोई रचना आप पढ़ना तो चाहते हैं, मगर अन्य कारणों से वह टलता रहता है। आपके चाहने के बावजूद वह छूटती रहती है। आप पछताते रहते हैं, मगर वह हाथ नहीं आती। कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प ऐसी ही पुस्तक है। पिछले सात-आठ महीनों से यह उपन्यास मेरा पीछा कर रहा था और मैं इसके पीछे लगा हुआ था, मगर पढ़ा जा सका अब। पढ़ने के बाद लगा कि अगर न पढ़ता तो कुछ छूट जाता। साल भर से यह उपन्यास काफ़ी चर्चा में है। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा नवलेखन का पुरस्कार मिलने की वज़ह से भी यह चर्चित रहा, इसकी विषयवस्तु, भाषा और उसकी शैली। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है।
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मुर्दे की मौत भाग 1

24 अगस्त 2022
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रानीहाट के जमींदार शारदाशंकर  बाबू के घर की विधवा वहू के मायके से कोई नही  था । एक-एक करके सभी मर गये। सुसराल  मे भी ठीक अपना कहलाने लायक कोई ल था। न पति था और-न पुत्र ही  था। उसके जेठ शारदाशह  का एक

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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कादम्बिनी के कपड़े मे कीचड भरा हुआ था। अद- भुत भाव के आवेश श्रोर रात के जागने से वह पागल सी हे। रही थी । उसका चेहरा देखकर लोग सचमुच ही डर सकते थे।  शायद गॉव के लडके उसे देखकर पागतव समझकर दूर से ढेले

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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इसी कारण कभी-कभी दोपहर की सूनी कंठरी में पड़ें- पड़ वह चिल्ला उठती थी  और  शाम को दीपक के प्रकाश में अपनी परछाही  देखकर उसकी रोगटे खड़े हो आते थे ।  उसके इस भय का देखकर घर के लोगों के मन मे भी एक प्र

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भाग 4

24 अगस्त 2022
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असल बात उसकी सममझ्त मे नहों आई | वह जवाब भी नहो दे सकी ओर दुबारा कुछ प्रश्न भी नहों कर सकी । मुँह फुला- कर गम्भीर भाव से वहाँ से चली गई |  रात के दस बजे होगे जब  श्री पति रानीहाट से लौट आये । उस समय

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भाग 5

24 अगस्त 2022
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कमरे भर में अन्धकार'छा गया। कादम्बिनी एकंदम कमरे की भीतर आकर खडो हा गई ।  उस समय ढाई पहर के लगभग राव बीती होगी । बाहर'जोर से पानी पढ़ रहा था । कादम्बिनी मे कहा--बहन, में तुम्हारी सखी कादम्बिनी ही हूँ

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सुधा भाग 1

24 अगस्त 2022
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कान्तिचन्द्र की अवस्था थोडी है, तथापि ज्री के मरने के उपरान्त द्वितीय स्त्री का अनुसन्धान न करके पशु-पक्तियों के शिकार से ही उन्होंने  अपना मन लगाया | उनका शरीर लम्बा, पतला, हृढ़ ओर हल्का था। दृष्टि त

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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 दूर जाकर पता लगाने की सामथ्य नहीं । घर मे भगवान्‌ की मुर्ति है, उसे छीड़कर कहीं जाना नहीं हो सकता । कान्तिचन्द्र ने कहा--नाव पर आप मुझसे अगर मिल्ल सके' ते में एक कुल्लीन अच्छा छडका बतला सकता हैँ । 

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समस्या-पूर्ण भाग 1

24 अगस्त 2022
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 देवपुर के ज़मीदार रामगोपाल अपने बड़े लङके को ज़मीदारी और घर-ग्रहस्थी सौपकर काशीवास' करने चले गये | देश के सब अनाथ दरिद्र लोग उनके लिए हाहाकार करके रोने लगे । सब यही कहने लगे कि ऐसी उदारता और  धमेनिष्

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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भेया, आल्ला  तुम्हारा भला करे' । बेटा, रमजानी का तुम बिगा- डूना नहीं। में उसे तुमका सॉंपती हूँ। उसे तुम अपना छोटा भाई समझकर उसके खाने-पीने का ज़रिया वह ज़मीन दे दे।। तुम्हारे वेशुमार दे।लत है। जितनी त

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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कष्णगोपाल् ने विस्मित होकर पूछा--इसी लिए आप काशी से इतनी दुर आये हैं ? रमज़ानी पर आपका इतना अनुग्रह क्यो है ? रामगोपाल ने कदा--यह सुनकर तुम क्‍या करोगे ? कष्णगोपाल् ने नहीं माना और कहा--अयोग्यता का व

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प्रायचित भाग 1

25 अगस्त 2022
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स्वर्ग  और  मनुष्यलोक के बीच में एक अनिर्देश्य अरा जक स्थान है, जहाँ राजा त्रिशंकु लटक रहे हैं और जह आकाशकुसुमे के ढेर पैदा  होते हैं। उस वायुदुर्गवेष्टिव महा देश का नाम है “होता तो है| सकता? । जो लोग

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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किन्तु यह बात भी, उसके सन मे आई कि उसके खामी सुसरात् में रहने के कारण आदर की अपने हाथो गँवा रहे हैं | उस् दिन से नित्य वह खामी से कहने लगी कि तुम अपने घर मुझे ले चले, अब में यहाँ नहीं रहेंगी । अनाथब

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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किन्तु स्त्री  किसी तरह इस बात पर राजी  नही  हुई | उसन अपनी राय यह जाहिर की कि बड़े भाई की रोटी और  आवाज  की गाली पर छेप्टे भाई का पारिवारिक अधिकार है, किन्तु सुसरात्त में जाकर रहना बड़ी ही बेज्जती की

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भाग 4

25 अगस्त 2022
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विन्ध्यवासिनी  ने कहा--आप वि्लायत जाने मे .रोक-टाक न करे इसलिए नही मांगे | राजकुमार बाबू  बहुत ही नाराज़ हुए। माता रोने लगी ओर बेटी भी रोने लगी । कलकत्ते मे चारों आर विचित्र स्वर से उत्सव के बाजे बज र

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भाग 5

25 अगस्त 2022
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अनाथबन्धु उत्साह  के साथ इस बात पर राज़ी हो गये । उन्होंने मन मे सोचा, जे बार-्लाइब्रेरियों मे पड़े रहनेवाले स्वदेशी बेरिस्टर उनसे डाह करते हैं और उनकी असामान्य प्रतिभा के प्रति यथरेष्ट सम्मान नहीं  द

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सुभा भाग 1

25 अगस्त 2022
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 लड़की का नाम जब सुभाषिणी रक्खा गया था तब कीन जानता था कि वह गूगी हेगी ? उसकी दो  बडी बहनें का नाम सुकेशिनी ओर सुहासिनी रखा गया था | इसी से उसी अनुप्रास पर पिता ने छोटी लडकी का नाम सुभाषिणी रखा  | इस

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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 धूप  से प्रकाशित महृत्‌ आकाश के नीचे केवल गूँगी प्रकृति और गूंगी लड़की सुभा दोनों आमने-सामने चुप- चाप बैठे-बेठे एक दूसरे को निहारा करती थीं । प्रकृति फैली हुई धूप में, ओर सुभा छोटे-छोटे पेड़ों की छाह

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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मान लो, सुभा अगर जल्लकुमारी होती; धीरे-धीरे जल से ऊपर उठकर एक नागमशि घाट पर रण जाती , प्रताप तुच्छ मछली पकडने के काये का छोड़कर उस मणि का लेकर जल मे गोता क्गाता और पाताक्न मे जाकर देखता, चॉदी के महल म

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विचारक भाग 1

25 अगस्त 2022
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अनेक अवस्थाएँ बदलने के उपरांत अन्त का गतयौबना चुन्नो ते जिस पुरुष का आश्रय श्रदण किया था वह भी जब उसे फटे कपड़े की तरह छाड़ गया तब मुट्ठी भर अन्न के लिए दूसरे आश्रय के। खे।जने की चेष्टा करने से उसे अत

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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समुद्र के भीतर से, वृत्तपंक्ति से श्यामल तट-भूमि जैसे रम-णीय स्वप्न के समान, चित्र के समान जान पड़ती है वैसे किनारे पर पहुँचने से नहीं । वेघव्य के घेरे की आड़ से चमेली संसार से जितना दूर हो गई थी उसी

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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निद्राहदीन चमेली  की रात कहाँ जाकर समाप्त होगी | उस्र निरानन्द प्रात:काल मे जब चमेली के घर सूथ्ये देव का प्रकाश प्रवेश करेगा तब वहाँ सहसा केसी लज्ना प्रकाशित हो पड़ेगी-- कैसी लाउछना, कैसा हाहाकार जग उ

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मध्यवर्तिनी भाग 1

25 अगस्त 2022
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सुन्दर निहायत मामूली ढंग का था। उसमें काव्यरस, की गन्ध तक न थी। उसके मन में कभी यह बात नहीं आई कि जीवन में उक्त रस की कुछ आवश्यकता होती है। जैसे  परिचित पुराने जूते के भीतर पेर बिलकुल् निश्चिन्तः भाव

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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के ऊपर आनन्दमयी प्रकृति की हर एक उगली जेसे फिरने लगो और हृदय के भीतर जे। एक प्रकार का सद्भीत सुन पड़ने लगा उसके ठीक भाव को वह अच्छी तरह समझ नहीं सकती थी । ऐसे समय जब उसका खामी पास बेठकर पूछता था कि क

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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 एक हीरे का ठुकड़ा मिल्लने पर उसे  तरह-तरह से घुमा-फिराकर देखने का जी चाहता है | किन्तु यह एक नौजवान सुन्दरी स्री का मन था--सुन्दरलाल के लिए बुढ़ापे मे एक बहुत ही अपूर्व और स्पृहणीय पदार्थ था ! इसका क

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भाग 4

26 अगस्त 2022
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और आनन्द-गद्द सुन्दर वार-वार प्यारी, प्यारी! कहकर उसे सचेत करने की चेष्टा कर रद्दा था | सुन्दर ने इसी बीच में बड्धिम बाबू का “चन्द्रशेखर  उप- न्यास पढ़ डाला था और वह देो-एक प्राधुनिक कवियों के खड्भार-

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भाग 5

26 अगस्त 2022
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रक्त में मानों फनकार मारता रहा। पार्वती  ने अपने मन मे कहा-- और किस बात को लेकर तेरी और मेरी तुलना होगी । किन्तु एक समय मेरी  भी यह अवस्था थी,  मैं भी इसी तरह सिर से पैर तक जवानी के रोम मे भरी हुई थी

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भाग 6

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जानकी के असतोष और असुख की सीमा नहीं रही | चह किसी तरह यह समझना  नहीं चाइती कि उसके स्वामी मे उसे सन्तुष्ट रखने की क्षमता नही है । क्षमता नहों थी ते व्याह् क्यों किया था | ऊपर के खण्ड मे कीवल दो  कमरे

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अत्याचार

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जमीदार के नायव जानकीनाथ के घर में प्यारी नास की एक महराजिन रसोई बनाने के लिए नौकर कुई। उसकी अवस्था कम थी और चरित्र अच्छा था। दूर की रहनेवाली वह ब्राह्मणों विपत्ति के फेर से पड़कर जानकीनाथ की घर आकर नो

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चुधित पाषाण भाग 1

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मैं  और  मेरे एक आत्मीय एक दिन रेल पर बेठे हुए कल्कत्ते जा रहे थे। इसी बीच से रेलगाड़ी पर एक आदमी से मुलाकात  हो गई। उसका पहनावा मुसल्लमानों का सा था | उसकी बाते सुनकर आश्चये का ठिकाना नहीं रहता था। प

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भाग 2

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किन्तु उसी घड़ी मुझे स्मरण हो आया कि में सचमुच अमुक का ज्ये्ठ पुत्र अमुक हूँ । यह भी मैंने अपने मन में सोच लिया कि इस बात की तो  हमारे महाकबि और  कवि वर ही कद्द सकते हैं कि जगत् के भ्रीतर अथवा बाहर कह

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भाग 3

26 अगस्त 2022
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इस खण्डस्वप्न के अवत्त के भीतर---इसी हिना की. महक सितार के शब्द ओर सुगन्धित जल-कणो से मिल्ले हुए पवन के भोकी के वीच---एक नायिका को दम-दम भर पर बिजली की चसक के समान देख पावा था। उसका जाफू्रानी रद्ग का

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भाग 4

26 अगस्त 2022
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खजूर: के पेड़े की छाया से, किस गृहहीन अरब देश की स्मेंणी-के-मर्भ से उत्पन्न हुई थों ! तुमकी कान लुटेरा, वस्त्र  से पुष्पक की तरह, माता की गोद से अलग करके बिजली  को तरह भागने वाले घोड़े पर चढ़ाकर मरुसू

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भाग 5

26 अगस्त 2022
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उसी वर्षों मे, पगल्ले के पास दौड़ा गया ओर उससे पूंछा--मेहर अली, क्या झूठ ठ है वह मेरी बात का कुछ उत्तर न देकर मुझे आगे से हटा- कर--अजगर के मुह के पास साह के आवेश से घूम रहे पत्तों की तरह--चिल्लाता हुआ

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