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चुधित पाषाण भाग 1

26 अगस्त 2022

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मैं  और  मेरे एक आत्मीय एक दिन रेल पर बेठे हुए कल्कत्ते जा रहे थे। इसी बीच से रेलगाड़ी पर एक आदमी से मुलाकात  हो गई। उसका पहनावा मुसल्लमानों का सा था | उसकी बाते सुनकर आश्चये का ठिकाना नहीं रहता था। पृथ्ची की सभी बाते के विषय से वह इस तरह बाते करने  लगा जेसे विधाता पहले उसी से सल्लाह करके सब काम किया करते हैं। विश्व-ससार के भीतर जे बहुत सी अभूतपूर्व गुप्त घटनाएं होती हैं---जैसे रूसियो का भारत पर चढाई करने का इरादा, अँगरेजो  की गुप्त अभिसन्धि, देशी राज्यों की मूखंता आदि--उनके बारे मे कुछन जानने के कारण हम लोग पूर्ण रूप से निश्चिन्त थे । 

हमारे नवपरिचित मित्र ने कुछ मुसकराकर कहा -घर से बाहर दूर जाने का यहघर से बाहर दूर जाने का यह पहला ही अवसर था। हम ते। उसकी बाते” सुनऋर सन्नाटे मे आ गये। वह आदमी साधारण बातचीत मे कभी विज्ञान कहने लगता है, कभो वेद की व्याख्या करता है, कभी फारसी की शेरे उडाने लगता है । 'विज्ञान, वेद और फारसी से अपना कुछ दखल न होने के क्रारण हमारी भक्ति उस पर उत्तरात्तर बढ़ने  लगी | 

यहा तक कि हमार शियासफिस्ट मित्र के मत मे दृढ़ विश्वास हो गया कि उस नवपरिचित का किसी अलौकिक  व्यापार के साथ अव्य कुछ सम्बन्ध है। वह अलोकिक व्यापार काई अपूर्य मेग्नेटिउंम अथवा देवशक्ति, अथवा सक्षम शरीर या इसी नरह का कुछ-न-कछु हैँ। में इस प्रसाधारण पुरुष क्री हर एऋ साधारण वात की भी भ्रक्ति-विहल अुख्यभाव से सुन रहे थे मार  चुप मे तार करते जा रहे थे। सुझे जान पडा कि बह अराधारण पुरुष भी मरे मित्र के भाव का समझ गया था उस लिए प्रसन्न भी हुआ था गाणी आकर जंक्शन में ठहरी। हमारे लोग दूसरी गाड़ी की अपेज्ता से वेटिंग-रूम से जाकर जमा हुए। 

रास्ते में ग्रेजत का काई पुर्जा प्रिगड जाने के कारण सुन्र पडा कि गाडी बहुत देर में आवेगी। में टेविल्न केऊ पर विछीाना विछाकर सोने की तेयारी कर रहा था, इसी समय उस असाधारण व्यक्ति ने निम्नलिखित बृत्तान्त वर्णन करना शुरू कर दिया--- राज्य-स व्वलन का आंकलन  हे सम्बन्ध में दो-एक आयते में मतभेद होने के कारण में रियासत जूनागढ का काम छोड़कर जब दक्खिन-हैदराबाद में निजाम के यहा नोकर हो गया तब सुस्कम उमर का मजबूत आदमी देखकर पहले ही भरीच से रुईं  महसूल वसूल करने की नाकरी दी गई । भरीच बहुत अच्छी रमणीय जगह है। 

निजन पहाड़ के  नीचे भारी जड़ज्ञ के भीतर शुस्ता नदी  पथरीले  मार्ग मे निपुण नतेकी की तरह पग-पग पर टेढ़ी मेढ़ी हाकर तेज़ी से बहती हुई नाच रही सी जान पड़ती है। ठीक उसी नदी के किनारे पद्दाड़ के नीचे पत्थर के १५०० सीढ़ीवाले धाद के ऊपर एक सद्भमरमर का महल अकेला खडा हुआ है । 

उसके पास कहीं फोई आदमी नहीं रहता। भरीच का रुई छा वाजार ओर गाँव यहाँ से दूर पर है। ढाई सी वष के लगभग हुए होंगे, जब दूसरे शाह सह- समूव् ने अपने मेग-विज्ञास के लिए वह महत् ऐसे निजेन स्थान से बनवाया था । उस समय इस महल के दस्माम में फुहारे से गुजल्ञावजज्न बरसा करवा था और उसी शीतल एकान्द स्थान में सड्डमरमर की चिकिनी शिक्षाओं के ऊपर बैठकर कोमल नशभ्न पदपरक्षवो के! जलाशय के निर्मत्ष ज्ञ के ऊपर फेलाकर फारिस की जवान बेगमे नहाने के पहले बाल खेल-कर, सितार गोद में रक्खे, गजले गाया करती थीं । इस समय स ते अब वे फुद्दारे छटते हैं ओर न वह गाना हाता दै। सद्भमरमर के फुशे पर वे सुन्दर चरण भी नहीं पड़ते । इस समय वह मुझ ऐसे निर्जतवास-पीड़ित सड्डीहीन दसूल-कलेक्रों का अतिद्वद्तत् ओर अतिशून्य लिवासस्थान दे! रद्दा है। 

कभी भूलकर भी न रहूँ। मेने हँंसकर उसकी वात को जड़ा दिया । नोकरों ने कहा, वे शाम तक कास करेंगे, किन्तु रातका उस घर में नही रहेगे । वद्द घर ऐसा बदनाम था कि रात की चार भी उसमे जाने का साइस न कर सकता था |पहले पहल आने पर इस छोड़े हुए पत्थर के महल की निजनता मानें एक भयड्र भाव की तरह मेरी छाती पर बारसी रक् ्खी रहती थी । जहाँ तक होता था, मैं बाहर ही रहता था और रात की थका हुआ आकर ल्लेट रहता था ।

किन्तु एक सप्ताह भी नहीं बीवा होगा कि एक अपूर्व नशा मुझ पर आक्रमण करने लगा । श्रपनी उस अवस्था का वर्णनकरना भी कठिन है ओर उस पर लोगों का विश्वास दिल्लाना भी कठिन हैे। वह सहल्ल एक सजीव पदाथे की तरह मुफ्ेमानें अपने भीतर के मोह रस से धोरे-धीरे जीश करने लगा । जान पड़ता है, उस घर में पेर रखते ही इस प्रक्रिया काआरम्भ हो गया था। किन्तु मैंने सचेत अवस्था में जिम दिन इस भाव का अनुभव किया उस दिन की बाते स्पष्ट रूप सेमुझे याद हैं। उन दिनों गभियों की ऋतु का आरम्भ था--बाज़ार उतना चलता न था। मेरे हाथ मे कुछ काम न था। 

सूर्य अस्त होने के कुछ पहले में उसी नदी के किनारे धाट के नीचे एक ग्राराम-कुर्सी डाले बैठा हुआ था । उस समय शुस्ता का पाट बहुत कम रह्ट गया था। दूसरे किनारे पर अनेक बालू के कगारे तीसरे पहर के सूये की आभा पडने से रघ्ठीन हे। रहे थे। इस किनारे घाट की सीढियी की जड़ मे, खच्छ ज्थले जल्न मे, किरणें किलमिला रही थी । उस दिन हवा का बी  लेशभीनथा। पास क पहाड़ में उगे वन-तुक्षसी, पोदोना और से एक घनी सुगन्ध उठकर आकाश सेव्याप्त हे! रही थी। सूर्य धोरे-घोरे पहाड़ केश िखर की आड़ में अदृश्य हो गये। उसी दम दिन की नाव्यशाज्ञा के ऊपर एक लम्बी छाया का ड्रापसीन पड़ गया । यहाँ पर्बतत की आड़व्   रहने से 'सूर्यास्त्र कसेम य प्रकाश ओर छाया का सम्मिलन अधिक देर तक नहों रहता । घोड़े पर चढ़कर टइल आने के लिए उठने के। फर रहा था, इसी समय सीढ़ियों पर पेरों कीआ हट सुन पड़ो । पीछे फिरकर देखा--कोई न था '

कानों का भ्रम समझकर फिर वेठते ही एकदम अनेक पैरो की आहठ सुन पडी--जैसे बहुत लोग देड़ते हुए मेरी ओर आ रहे हैं। किच्चित् भय के साथ एक अद्भुत रोमांच से मेरा शरीर व्याप्त हो गया। यद्यपि मेरे सामने काई साकार मनुष्य न था ते भी मुझे स्पष्ट प्रत्यक्ष केस मान जान पड़ने लगा कि इस ग्रीष्म ऋतु के सायडाल मे बहुत सी प्रमोदचश्वत्न स्लियों शुस्ता केज ल मे स्नान करने के लिए उत्तर रही हैं । यक्षपि इस सन्ध्याकाल मे, पद्दाड़ के किनारे के सन्नाटे मे, नदी-__

एकाएक सन्नाठे को तोड़कर जोर से हवा का एक झोका आया। शुत्ता का स्थिर जल देखते ही देखते परी के केश-पाश फो तरह संकुचित हा। उठा और सम्ध्या की छाया से आच्छत्न वनभूमि दस सर मे एक साथ ही ममेर-ध्वनि करके माने किसी ठुःखप्न को देखते-देखते जाग पड़ो । चाहे खप्न कहा, चाहे सत्य कहे, ढाई शाल वर्ष के अतीत काल से प्रतिफलित दाकर मेरे सामने जे! एक अदृश्य मरीचिका अबतीर्श हुई थी वह दस भर में अदृश्य हा गई। जे! मायामयी रमणियों मेरे पास से देह - हीन द्रत गति से शब्द-हीन उच्च हास्य करती हुई शुस्ता के जल में उतरी थी बे भोगे कपड़े से जलती हुईं मेरे पास से ऊपर उठकर नहीं गई । हवा जेसे गन्ध को छउडा ले जाती है वेसे ही वे उस हवा के क्लोके से साने उड़कर चली गई' ।

तब सुझे बड़ी आशट्डा हुई कि शायद एक मे अकेले पाकर कविता देवी मेरे मस्तिष्क मे घुस आई हैं। में बेचारा रुई का महसूल चसूल्त करके किसी तरह अपना पेट भरता हूँ, सर्वेत्शिनी कविता शायद मेरा सर्वनाश करने के लिए उद्यत है। मैंने अपने मन से कहा, आज अच्छी तरह भेजन करना चाहिए। पेट ख़ाली रहते पर ही सब प्रकार के दुराशेग्य रोग आकर घेर लेते हैं। मैंने महराज को बुल्लाकर कहा, आज खीर, हलवा और पूरी बनाओ | दूसरे दिन सबेरे उल्लिखित व्यापार बहुत ही हास्य-जनक जान पड़ने छगा। प्रसन्नचित्त से साइवी सॉला? टोपी पहच-पहन कर  अपने हाथ से टमटस हॉककर में जॉच करने के काम पर गया | 

उस दिन तेमासिक रिपोर्ट लिखनी थी । इसलिए देर में डेरे पर आने का ख़याल  था। किन्तु शाम होने के पहले ही मानो कोई मुझे उस महल की ओर चल्लने के लिए  घसीटने लगा । कौन घसीटने लगा, से में बता नही सकता | किन्तु यह जान पड़ने लगा, अब देर करना ठोक नहीं है। जान पड़ा, वे सब मेरी प्रतीज्ञा में बैठों हुई हैं । रिपोर्ट को वैसे ही छोड़कर, टोपी सिर पर रखकर, उस सन्ध्या की आभा से धूसर और घने पेड़ो से परिपूर्ण शून्य मार्ग मेट मटस दौड़ाता हुआ में उसी महत्ल की ओर चला ।

 सीढियों के ऊपर पहुँचते ही उस महल का सामने का हाल बहुत बड़ा था। इसमे तीन बड़े-बड़ ऊँचे खम्भे थे और उनमे बहुत सी कारीगरियों से पूणण तीन फाटकलुसा दर बने हुए थे। उनके ऊपर बडी भारी छत थी। ' यह सूनसान हाल सन्नाटे से भरा रहता था | उस दिन उस' समय भी वहां रोशनी नहों की गई थी । दरवाज़ा ठेज्कर उस बड़े महल्ल के भीतर जैसे ही मैंने प्रवेश किया बेसे ही जान पड़ा कि घर के भीतर भारी घबराहट सच गई। मानों एकाएक खभा भड्ड करके चारें ओर की खिड़कियों, दरवाज़ों प्लौर बरामदों से सब इधर-उघर भाग गई'। मैं कही कुछ न देखकर सन्नाटे मे जैसे का तैसा खड़ा रह गया। शरीर में एक प्रकार के आवेश से रोमाच्व हा आया। मानों बहुत दिनों की लुप्तावशिष्ट

अतर की मृदु महक नासिका के भीतर आकर प्रवेश करते लगी। मैं उसी दीपहोन, जनहोन बड़े घर की प्राचीन पत्थर के खम्भो की कृतार के बीच खडा हुआ था। मुझे जसे सुन पड़ा कि फुहारा छूट रहा है ओर उससे निकला हुआ जल भरमार शब्द के साथ सड्डमरमर के फर्श  पर आकर गिर रहा है।

सितार भी बज रहा है। कभी सोने के गहनो की भनक, कभी घुघरुओ की खनक, कभी घण्टा बजने का शब्द, कभी बहुत दूर पर शहनाई का मीठा सुर, कभी हवा से हिल रहे भ्माड़ो के शीशे परस्पर टकराने का शब्द, कभी पालतू बुलव॒ुत्ञों कीआ वाज और कभी बाग में बेज्ञ रहे पालतू सारसे का शब्द सुनकर में पागल सा हो उठा | 

मेरे मत मेए क प्रकार का सोह उपस्थित हुआ | जान पड़ा, यह अरपृश्य, अगम्य, अवारतव व्यापार ही जगत् से एक- सात्र सत्य है, और सब मिथ्या मरीचिका है। मैं में हँ-- अथात् अमुक का वडा लड़का, रुई का महसूल वसूल करके मह्दीने मे खाढे चार सौ रुपये तनख्वाह के पाता हैँ,  मैं साला टोपी पहनकर टमटम हॉकता हुआ दफ्तर जाता हुँ--- यह सब्र मुस्ते ऐसी अद्भुत अचूक मिथ्या इसी की बात जान पड़ने लगी कि शायद मैं उस विशाल नि'स्तव्य अन्धकार-पूर्ण हॉल के बीच खड़े हा!  हा हा हा करके हँस उठा |. उसी समय मेरा नोकर लैम्प  जलाकर मेरे पास ले आया। मालूम नही, उसने मुझे पागल समझा या नही  । 

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रचनाएँ
गल्प गुच्छ
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कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प गुच्छ साल भर से काफ़ी चर्चा में है। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है। पूरी कथा पाठक में इतनी बेचैनी पैदा कर देती है कि वह आतंकित कर देने वाली उन परिस्थितियों और किरदारों के बारे में सोचे जो हमारे आस पास निर्मित हो चुकी हैं और उनका दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। कई बार कोई क़िताब, कोई रचना आप पढ़ना तो चाहते हैं, मगर अन्य कारणों से वह टलता रहता है। आपके चाहने के बावजूद वह छूटती रहती है। आप पछताते रहते हैं, मगर वह हाथ नहीं आती। कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प ऐसी ही पुस्तक है। पिछले सात-आठ महीनों से यह उपन्यास मेरा पीछा कर रहा था और मैं इसके पीछे लगा हुआ था, मगर पढ़ा जा सका अब। पढ़ने के बाद लगा कि अगर न पढ़ता तो कुछ छूट जाता। साल भर से यह उपन्यास काफ़ी चर्चा में है। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा नवलेखन का पुरस्कार मिलने की वज़ह से भी यह चर्चित रहा, इसकी विषयवस्तु, भाषा और उसकी शैली। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है।
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मुर्दे की मौत भाग 1

24 अगस्त 2022
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रानीहाट के जमींदार शारदाशंकर  बाबू के घर की विधवा वहू के मायके से कोई नही  था । एक-एक करके सभी मर गये। सुसराल  मे भी ठीक अपना कहलाने लायक कोई ल था। न पति था और-न पुत्र ही  था। उसके जेठ शारदाशह  का एक

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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कादम्बिनी के कपड़े मे कीचड भरा हुआ था। अद- भुत भाव के आवेश श्रोर रात के जागने से वह पागल सी हे। रही थी । उसका चेहरा देखकर लोग सचमुच ही डर सकते थे।  शायद गॉव के लडके उसे देखकर पागतव समझकर दूर से ढेले

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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इसी कारण कभी-कभी दोपहर की सूनी कंठरी में पड़ें- पड़ वह चिल्ला उठती थी  और  शाम को दीपक के प्रकाश में अपनी परछाही  देखकर उसकी रोगटे खड़े हो आते थे ।  उसके इस भय का देखकर घर के लोगों के मन मे भी एक प्र

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भाग 4

24 अगस्त 2022
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असल बात उसकी सममझ्त मे नहों आई | वह जवाब भी नहो दे सकी ओर दुबारा कुछ प्रश्न भी नहों कर सकी । मुँह फुला- कर गम्भीर भाव से वहाँ से चली गई |  रात के दस बजे होगे जब  श्री पति रानीहाट से लौट आये । उस समय

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भाग 5

24 अगस्त 2022
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कमरे भर में अन्धकार'छा गया। कादम्बिनी एकंदम कमरे की भीतर आकर खडो हा गई ।  उस समय ढाई पहर के लगभग राव बीती होगी । बाहर'जोर से पानी पढ़ रहा था । कादम्बिनी मे कहा--बहन, में तुम्हारी सखी कादम्बिनी ही हूँ

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सुधा भाग 1

24 अगस्त 2022
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कान्तिचन्द्र की अवस्था थोडी है, तथापि ज्री के मरने के उपरान्त द्वितीय स्त्री का अनुसन्धान न करके पशु-पक्तियों के शिकार से ही उन्होंने  अपना मन लगाया | उनका शरीर लम्बा, पतला, हृढ़ ओर हल्का था। दृष्टि त

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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 दूर जाकर पता लगाने की सामथ्य नहीं । घर मे भगवान्‌ की मुर्ति है, उसे छीड़कर कहीं जाना नहीं हो सकता । कान्तिचन्द्र ने कहा--नाव पर आप मुझसे अगर मिल्ल सके' ते में एक कुल्लीन अच्छा छडका बतला सकता हैँ । 

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समस्या-पूर्ण भाग 1

24 अगस्त 2022
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 देवपुर के ज़मीदार रामगोपाल अपने बड़े लङके को ज़मीदारी और घर-ग्रहस्थी सौपकर काशीवास' करने चले गये | देश के सब अनाथ दरिद्र लोग उनके लिए हाहाकार करके रोने लगे । सब यही कहने लगे कि ऐसी उदारता और  धमेनिष्

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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भेया, आल्ला  तुम्हारा भला करे' । बेटा, रमजानी का तुम बिगा- डूना नहीं। में उसे तुमका सॉंपती हूँ। उसे तुम अपना छोटा भाई समझकर उसके खाने-पीने का ज़रिया वह ज़मीन दे दे।। तुम्हारे वेशुमार दे।लत है। जितनी त

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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कष्णगोपाल् ने विस्मित होकर पूछा--इसी लिए आप काशी से इतनी दुर आये हैं ? रमज़ानी पर आपका इतना अनुग्रह क्यो है ? रामगोपाल ने कदा--यह सुनकर तुम क्‍या करोगे ? कष्णगोपाल् ने नहीं माना और कहा--अयोग्यता का व

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प्रायचित भाग 1

25 अगस्त 2022
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स्वर्ग  और  मनुष्यलोक के बीच में एक अनिर्देश्य अरा जक स्थान है, जहाँ राजा त्रिशंकु लटक रहे हैं और जह आकाशकुसुमे के ढेर पैदा  होते हैं। उस वायुदुर्गवेष्टिव महा देश का नाम है “होता तो है| सकता? । जो लोग

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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किन्तु यह बात भी, उसके सन मे आई कि उसके खामी सुसरात् में रहने के कारण आदर की अपने हाथो गँवा रहे हैं | उस् दिन से नित्य वह खामी से कहने लगी कि तुम अपने घर मुझे ले चले, अब में यहाँ नहीं रहेंगी । अनाथब

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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किन्तु स्त्री  किसी तरह इस बात पर राजी  नही  हुई | उसन अपनी राय यह जाहिर की कि बड़े भाई की रोटी और  आवाज  की गाली पर छेप्टे भाई का पारिवारिक अधिकार है, किन्तु सुसरात्त में जाकर रहना बड़ी ही बेज्जती की

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भाग 4

25 अगस्त 2022
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विन्ध्यवासिनी  ने कहा--आप वि्लायत जाने मे .रोक-टाक न करे इसलिए नही मांगे | राजकुमार बाबू  बहुत ही नाराज़ हुए। माता रोने लगी ओर बेटी भी रोने लगी । कलकत्ते मे चारों आर विचित्र स्वर से उत्सव के बाजे बज र

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भाग 5

25 अगस्त 2022
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अनाथबन्धु उत्साह  के साथ इस बात पर राज़ी हो गये । उन्होंने मन मे सोचा, जे बार-्लाइब्रेरियों मे पड़े रहनेवाले स्वदेशी बेरिस्टर उनसे डाह करते हैं और उनकी असामान्य प्रतिभा के प्रति यथरेष्ट सम्मान नहीं  द

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सुभा भाग 1

25 अगस्त 2022
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 लड़की का नाम जब सुभाषिणी रक्खा गया था तब कीन जानता था कि वह गूगी हेगी ? उसकी दो  बडी बहनें का नाम सुकेशिनी ओर सुहासिनी रखा गया था | इसी से उसी अनुप्रास पर पिता ने छोटी लडकी का नाम सुभाषिणी रखा  | इस

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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 धूप  से प्रकाशित महृत्‌ आकाश के नीचे केवल गूँगी प्रकृति और गूंगी लड़की सुभा दोनों आमने-सामने चुप- चाप बैठे-बेठे एक दूसरे को निहारा करती थीं । प्रकृति फैली हुई धूप में, ओर सुभा छोटे-छोटे पेड़ों की छाह

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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मान लो, सुभा अगर जल्लकुमारी होती; धीरे-धीरे जल से ऊपर उठकर एक नागमशि घाट पर रण जाती , प्रताप तुच्छ मछली पकडने के काये का छोड़कर उस मणि का लेकर जल मे गोता क्गाता और पाताक्न मे जाकर देखता, चॉदी के महल म

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विचारक भाग 1

25 अगस्त 2022
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अनेक अवस्थाएँ बदलने के उपरांत अन्त का गतयौबना चुन्नो ते जिस पुरुष का आश्रय श्रदण किया था वह भी जब उसे फटे कपड़े की तरह छाड़ गया तब मुट्ठी भर अन्न के लिए दूसरे आश्रय के। खे।जने की चेष्टा करने से उसे अत

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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समुद्र के भीतर से, वृत्तपंक्ति से श्यामल तट-भूमि जैसे रम-णीय स्वप्न के समान, चित्र के समान जान पड़ती है वैसे किनारे पर पहुँचने से नहीं । वेघव्य के घेरे की आड़ से चमेली संसार से जितना दूर हो गई थी उसी

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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निद्राहदीन चमेली  की रात कहाँ जाकर समाप्त होगी | उस्र निरानन्द प्रात:काल मे जब चमेली के घर सूथ्ये देव का प्रकाश प्रवेश करेगा तब वहाँ सहसा केसी लज्ना प्रकाशित हो पड़ेगी-- कैसी लाउछना, कैसा हाहाकार जग उ

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मध्यवर्तिनी भाग 1

25 अगस्त 2022
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सुन्दर निहायत मामूली ढंग का था। उसमें काव्यरस, की गन्ध तक न थी। उसके मन में कभी यह बात नहीं आई कि जीवन में उक्त रस की कुछ आवश्यकता होती है। जैसे  परिचित पुराने जूते के भीतर पेर बिलकुल् निश्चिन्तः भाव

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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के ऊपर आनन्दमयी प्रकृति की हर एक उगली जेसे फिरने लगो और हृदय के भीतर जे। एक प्रकार का सद्भीत सुन पड़ने लगा उसके ठीक भाव को वह अच्छी तरह समझ नहीं सकती थी । ऐसे समय जब उसका खामी पास बेठकर पूछता था कि क

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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 एक हीरे का ठुकड़ा मिल्लने पर उसे  तरह-तरह से घुमा-फिराकर देखने का जी चाहता है | किन्तु यह एक नौजवान सुन्दरी स्री का मन था--सुन्दरलाल के लिए बुढ़ापे मे एक बहुत ही अपूर्व और स्पृहणीय पदार्थ था ! इसका क

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भाग 4

26 अगस्त 2022
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और आनन्द-गद्द सुन्दर वार-वार प्यारी, प्यारी! कहकर उसे सचेत करने की चेष्टा कर रद्दा था | सुन्दर ने इसी बीच में बड्धिम बाबू का “चन्द्रशेखर  उप- न्यास पढ़ डाला था और वह देो-एक प्राधुनिक कवियों के खड्भार-

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भाग 5

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रक्त में मानों फनकार मारता रहा। पार्वती  ने अपने मन मे कहा-- और किस बात को लेकर तेरी और मेरी तुलना होगी । किन्तु एक समय मेरी  भी यह अवस्था थी,  मैं भी इसी तरह सिर से पैर तक जवानी के रोम मे भरी हुई थी

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भाग 6

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जानकी के असतोष और असुख की सीमा नहीं रही | चह किसी तरह यह समझना  नहीं चाइती कि उसके स्वामी मे उसे सन्तुष्ट रखने की क्षमता नही है । क्षमता नहों थी ते व्याह् क्यों किया था | ऊपर के खण्ड मे कीवल दो  कमरे

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अत्याचार

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जमीदार के नायव जानकीनाथ के घर में प्यारी नास की एक महराजिन रसोई बनाने के लिए नौकर कुई। उसकी अवस्था कम थी और चरित्र अच्छा था। दूर की रहनेवाली वह ब्राह्मणों विपत्ति के फेर से पड़कर जानकीनाथ की घर आकर नो

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चुधित पाषाण भाग 1

26 अगस्त 2022
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मैं  और  मेरे एक आत्मीय एक दिन रेल पर बेठे हुए कल्कत्ते जा रहे थे। इसी बीच से रेलगाड़ी पर एक आदमी से मुलाकात  हो गई। उसका पहनावा मुसल्लमानों का सा था | उसकी बाते सुनकर आश्चये का ठिकाना नहीं रहता था। प

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भाग 2

26 अगस्त 2022
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किन्तु उसी घड़ी मुझे स्मरण हो आया कि में सचमुच अमुक का ज्ये्ठ पुत्र अमुक हूँ । यह भी मैंने अपने मन में सोच लिया कि इस बात की तो  हमारे महाकबि और  कवि वर ही कद्द सकते हैं कि जगत् के भ्रीतर अथवा बाहर कह

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भाग 3

26 अगस्त 2022
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इस खण्डस्वप्न के अवत्त के भीतर---इसी हिना की. महक सितार के शब्द ओर सुगन्धित जल-कणो से मिल्ले हुए पवन के भोकी के वीच---एक नायिका को दम-दम भर पर बिजली की चसक के समान देख पावा था। उसका जाफू्रानी रद्ग का

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भाग 4

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खजूर: के पेड़े की छाया से, किस गृहहीन अरब देश की स्मेंणी-के-मर्भ से उत्पन्न हुई थों ! तुमकी कान लुटेरा, वस्त्र  से पुष्पक की तरह, माता की गोद से अलग करके बिजली  को तरह भागने वाले घोड़े पर चढ़ाकर मरुसू

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भाग 5

26 अगस्त 2022
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उसी वर्षों मे, पगल्ले के पास दौड़ा गया ओर उससे पूंछा--मेहर अली, क्या झूठ ठ है वह मेरी बात का कुछ उत्तर न देकर मुझे आगे से हटा- कर--अजगर के मुह के पास साह के आवेश से घूम रहे पत्तों की तरह--चिल्लाता हुआ

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