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भाग 2

25 अगस्त 2022

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के ऊपर आनन्दमयी प्रकृति की हर एक उगली जेसे फिरने लगो और हृदय के भीतर जे। एक प्रकार का सद्भीत सुन पड़ने लगा उसके ठीक भाव को वह अच्छी तरह समझ नहीं सकती थी ।

ऐसे समय जब उसका खामी पास बेठकर पूछता था कि केसी तबियत है, तब उसकी आँखें में ऑसू भर आते थे । रशेग-शिथितल्ल चेहरे मे उसकी दोनो आँखे” बहुत बड़ी जान पड़ती थीं। उन्ही बड़ी -बड़ी प्रेमाद कृतज्ञता-पूण आँखें से स्वामी के मुख की ओर ताकती हुई अपने हाथ मे स्वामी का हाथ लेकर वह चुपचाप पड़ो रहती थी । स्वामी के हृदय मे भो मानों कहीं से एक अपरिचित नवीन आनन्द की किरणें आकर प्रवेश करने लगती थी ।

इसी तरह कुछ दिन बीते । एक दिन रात को, टूटी दीवार की दरार से निकले हुए, छोटे से हिल रहे पीपल के पेड़ की शाखाओं के भीतर से फॉकता हुआ चन्द्रमा आकाश से ऊपर उठ रहा था, सन्ध्याकाल के सन्नाटे की मिटाकर एका एक हवा चलने लगी थी, इसी समय प्रेमपुवेक सुन्दरलाल  के बालो के भीतर करती हुई पार्वती ने कहा-मेरे ते कोई लड़का-बाला नहीं हुआ, तुम और एक च्याह कर लो ।

पार्वती कुछ दिनो से यही बात सोच रही थी। 'मन  से जब एक प्रबल  आनन्द, एक ृ्बृहद  प्रेम का सच्चार होता है तब मनुष्य समझता है कि में सब कर सकता हूँ । तब एका- एक किसी प्रकार का स्वाथेत्याग दिखाने की इच्छा प्रबल हो उठती है। ख्लोत का उच्छूस ब्योंही कठिन तट के ऊपर बेग से आकर टकराता है त्योही प्रेम का आवेग, आनन्द का उच्छुस एक हत्वा  त्याग और बृह्द दु.ख के ऊपर मानों अपने का फेकना चाहता है |   

ऐसी ही अवस्था से एक दिन, अत्यन्त पुल॒कित प्रसन्न मन से, पार्वती  ने निश्च किया कि में अपने स्वामी के लिए कोई बड़ा भारी स्वाथत्याग दिखाऊँगी। किन्तु हाय | जितनी साध होती है उतनी शक्ति किसमें है | हाथ में कया है; क् या दिया  जाय ! ऐश्वये नहों है, बुद्धि नहों है, क्षमता नहों है; केवल प्राण हैं, उन्हे अगर कही खामी के लिए देना पड़े ते अभी देने का तैयार हूँ । किन्तु उन पापों  का भी मूल्य  क्या है ? 

फिर पाती अपने मन से कहने लगो--ओर अगर अपने स्वामी के में एक दूध के समात गोरा, मक्खन के समान कामल, बालक-कामदेव के समान सुन्दर स्नेह-पात्र बच्चा दे सकती ! किन्तु प्राशपण से इच्छा करके मर जाने पर भी ते वह नहीं कर सकती । तब पार्वती को यह ख़याल आया कि स्वामी का दुसरा ब्याह करा सकती हूँ। 

उसने  सोचा, स्त्रियों इस बात के लिए इतना कुढ़ती क् यों हैं, यह काम ते छुछ भो कठिन नहों है। स्वामी का जो स्त्री चाहती है उसके लिए सौतन  को  प्यार करना कौन सा कठिन काम है ! यह सोचकर उसका हृदय एक प्रकार के गर्व  से फूद्ध उठा । 

सुन्दर ने अपनी स्त्री के मुख से जब्र यह् अद्भुत प्रस्ताव सुना तब उसने उसे हँसकर उड़ा दिया। दूसरी तीसरी बार स्त्री केक हने पर भी उसने उघर कुछ ध्यान नही दिया। खासी की यह असम्मति और अनिच्छा देखकर  पारवती का सुख और विश्वास जितना ही बढ़ने लगा उतना ही उसकी प्रतिज्ञा और भी दृढ़ होने लगी । उधर अपनी स्त्री के मुख से बारम्बार यह  प्रस्ताव सुनकर सुन्दर के मन से उसके असम्भव द्वोने का भाव दूर होने लगा और घर के द्वार पर तमाखू पीते-पीते सन्न-परिवत्त युह्द का सुखसय चित्र उसके सन में उज्ज्वल हो उठा । 

एक दिन आप ही यह  प्रसंग उठाकर सुन्दर ने कहा--- बुढ़ापे मे एक बालिका को व्याह कर में पाल -पोसकर बड़ी न कर सकूँगा “इसके लिए तुमको  चिन्ता न करनी होगी---मैं इस काम को अपने ऊपर लेती हूँ |” यह कहते-ही पार्वती के मन से एक किशोर अवस्थावाली, सुकुमारी, शोला, माता से शीघ्र ही बिछुड़ी हुई वर -वधू के मुख  की छवि उद्ति हो आई और हृदय स्नेह से विगत हो उठा । सुन्दर ने कहा--मेरे दफुर है, काम काज है, तुम हो, बालिका-वधू को दुलराने की फुर्सत  और उमंग  मुझे नहीं है ; पार्वती ने बार- बार कहा --इसके लिए चुमका एक घड़ी नष्ट न करनी होगी, और अन्त का दिल्लगी  के तैर पर कट्टा--कहा ----- 

अच्छा तब देखूँगी, तुम्हारा काम कद्दों रहता है, तुम कहा रद्दते होा। और में कहा रहती हूँ । सुन्दर ने इस दिल् लगी का उत्तर देने की कुछ आवश्यकता  नहीं समरझी--केवल सज़ा के तार पर पावती के कपोल्ल पर एक उँगक्ी से टुनकार दिया। यह ते हुई भूमिका ।

एक छोटी सी बालिका के साथ अधेड़ सुन्दरलताल का व्याह हो गया। उस बालिका का नाम था, जानकी | सुन्दर ने सोचा, नाम बहुत मीठा है और मुँह भी दरसनीय सुन्दर है। उसके भाव को, चेहरे को, चलने-फिरने को विशेष संयोग  के साथ देखने की इच्छा होती है, किन्तु पार्वती  के सामने वेसा किया नहीं जाता । बल्कि इसके विप-रीत ऐसा भाव दिखाना पड़ता है कि के ब्याह कर में तो बड़ी आफत में पड़ गया । 

सुन्दर के इस भाव को देखकर पार्वती  अपने मन में बहुत ही प्रसन्न होती थी। कभी-कभी सुन्दर का हाथ पकड़कर कहती थी---अजी भागे कहाँ जाते हे! | यह छोटी सी बालिका कोई बाघ नहों है कि तुमका खा जायगी--- सुन्दर और भी व्यग्न भाव दिखाकर कहता था--शरे ठहरे, ठहरे, मुझे  एक ज़रूरी काम है। यह कहकर वह ऐसा! भाव दिखाता था जैसे राह नहीं मिलती । पाव॑ती हँसकर दर्वाजा रोककर कहती  थी-आज तुम भागकर जा नहीं सकते | 

अच्त को सुन्दर माना बिलकुल ही निरुपाय्र होकर कातर भाव से बेठ जाता था । पार्वती  उसके कान के पास मुँह ले जाकर कहती थी--- पराई लड़की को घर मे जाकर इस तरह श्रद्धा दिखाना ठीक बात नहीं है । यह कहकर जानकी का पक्रडकर सुन्दर की बाई ओर विठलाती और ज़बद॑स्ती घूँंघट खोलकर और ठोाड़ी प्रकड़कर उसके झुके हुए मुख को  ऊपर उठाकर सुन्दर से कहती थी---

देखे, केसा सुन्दर चाँद सा चेहरा है ! किसी-किसी दिन देानेा का एक जगह बिठाकर काम का बहाना करके कमरे के बाहर चत्ली जाती थी और बाहर से द्वार बन्द कर लेती थी। सुन्दर जानता था कि कातूहल से पूण दो ऑखे' किसी न किसी छिद्र से अवश्य झक  रही होंगी। इसलिए वह अत्यन्त उदासीन भाव से करवट बदल- कर ( नव-वधू की ओर से मुह फेरकर ) सोने का ढोंग दिखाता था।

 जानकी घूंघट काढ़कर एक कोने में सड्डोच के मारे लीन सी हेसो रारी सो रही । रहती थी | अन्त की पार्वती  ने विज्नकुल लाचार होकर इस बाद को छोड़ दिया । किन्तु इससे वह कुछ अ्रधिक दुःखित नही हुई। पावेती ने जब ऐसा करना छेड़ दिया तब स्वयं सुन्दर- लाल ने इधर ध्यान दिया । यह बड़े ही कातृहल और बड़े ही रहस्य की बात हुईं। 

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रचनाएँ
गल्प गुच्छ
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कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प गुच्छ साल भर से काफ़ी चर्चा में है। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है। पूरी कथा पाठक में इतनी बेचैनी पैदा कर देती है कि वह आतंकित कर देने वाली उन परिस्थितियों और किरदारों के बारे में सोचे जो हमारे आस पास निर्मित हो चुकी हैं और उनका दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। कई बार कोई क़िताब, कोई रचना आप पढ़ना तो चाहते हैं, मगर अन्य कारणों से वह टलता रहता है। आपके चाहने के बावजूद वह छूटती रहती है। आप पछताते रहते हैं, मगर वह हाथ नहीं आती। कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प ऐसी ही पुस्तक है। पिछले सात-आठ महीनों से यह उपन्यास मेरा पीछा कर रहा था और मैं इसके पीछे लगा हुआ था, मगर पढ़ा जा सका अब। पढ़ने के बाद लगा कि अगर न पढ़ता तो कुछ छूट जाता। साल भर से यह उपन्यास काफ़ी चर्चा में है। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा नवलेखन का पुरस्कार मिलने की वज़ह से भी यह चर्चित रहा, इसकी विषयवस्तु, भाषा और उसकी शैली। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है।
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मुर्दे की मौत भाग 1

24 अगस्त 2022
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रानीहाट के जमींदार शारदाशंकर  बाबू के घर की विधवा वहू के मायके से कोई नही  था । एक-एक करके सभी मर गये। सुसराल  मे भी ठीक अपना कहलाने लायक कोई ल था। न पति था और-न पुत्र ही  था। उसके जेठ शारदाशह  का एक

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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कादम्बिनी के कपड़े मे कीचड भरा हुआ था। अद- भुत भाव के आवेश श्रोर रात के जागने से वह पागल सी हे। रही थी । उसका चेहरा देखकर लोग सचमुच ही डर सकते थे।  शायद गॉव के लडके उसे देखकर पागतव समझकर दूर से ढेले

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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इसी कारण कभी-कभी दोपहर की सूनी कंठरी में पड़ें- पड़ वह चिल्ला उठती थी  और  शाम को दीपक के प्रकाश में अपनी परछाही  देखकर उसकी रोगटे खड़े हो आते थे ।  उसके इस भय का देखकर घर के लोगों के मन मे भी एक प्र

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भाग 4

24 अगस्त 2022
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असल बात उसकी सममझ्त मे नहों आई | वह जवाब भी नहो दे सकी ओर दुबारा कुछ प्रश्न भी नहों कर सकी । मुँह फुला- कर गम्भीर भाव से वहाँ से चली गई |  रात के दस बजे होगे जब  श्री पति रानीहाट से लौट आये । उस समय

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भाग 5

24 अगस्त 2022
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कमरे भर में अन्धकार'छा गया। कादम्बिनी एकंदम कमरे की भीतर आकर खडो हा गई ।  उस समय ढाई पहर के लगभग राव बीती होगी । बाहर'जोर से पानी पढ़ रहा था । कादम्बिनी मे कहा--बहन, में तुम्हारी सखी कादम्बिनी ही हूँ

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सुधा भाग 1

24 अगस्त 2022
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कान्तिचन्द्र की अवस्था थोडी है, तथापि ज्री के मरने के उपरान्त द्वितीय स्त्री का अनुसन्धान न करके पशु-पक्तियों के शिकार से ही उन्होंने  अपना मन लगाया | उनका शरीर लम्बा, पतला, हृढ़ ओर हल्का था। दृष्टि त

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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 दूर जाकर पता लगाने की सामथ्य नहीं । घर मे भगवान्‌ की मुर्ति है, उसे छीड़कर कहीं जाना नहीं हो सकता । कान्तिचन्द्र ने कहा--नाव पर आप मुझसे अगर मिल्ल सके' ते में एक कुल्लीन अच्छा छडका बतला सकता हैँ । 

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समस्या-पूर्ण भाग 1

24 अगस्त 2022
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 देवपुर के ज़मीदार रामगोपाल अपने बड़े लङके को ज़मीदारी और घर-ग्रहस्थी सौपकर काशीवास' करने चले गये | देश के सब अनाथ दरिद्र लोग उनके लिए हाहाकार करके रोने लगे । सब यही कहने लगे कि ऐसी उदारता और  धमेनिष्

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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भेया, आल्ला  तुम्हारा भला करे' । बेटा, रमजानी का तुम बिगा- डूना नहीं। में उसे तुमका सॉंपती हूँ। उसे तुम अपना छोटा भाई समझकर उसके खाने-पीने का ज़रिया वह ज़मीन दे दे।। तुम्हारे वेशुमार दे।लत है। जितनी त

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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कष्णगोपाल् ने विस्मित होकर पूछा--इसी लिए आप काशी से इतनी दुर आये हैं ? रमज़ानी पर आपका इतना अनुग्रह क्यो है ? रामगोपाल ने कदा--यह सुनकर तुम क्‍या करोगे ? कष्णगोपाल् ने नहीं माना और कहा--अयोग्यता का व

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प्रायचित भाग 1

25 अगस्त 2022
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स्वर्ग  और  मनुष्यलोक के बीच में एक अनिर्देश्य अरा जक स्थान है, जहाँ राजा त्रिशंकु लटक रहे हैं और जह आकाशकुसुमे के ढेर पैदा  होते हैं। उस वायुदुर्गवेष्टिव महा देश का नाम है “होता तो है| सकता? । जो लोग

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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किन्तु यह बात भी, उसके सन मे आई कि उसके खामी सुसरात् में रहने के कारण आदर की अपने हाथो गँवा रहे हैं | उस् दिन से नित्य वह खामी से कहने लगी कि तुम अपने घर मुझे ले चले, अब में यहाँ नहीं रहेंगी । अनाथब

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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किन्तु स्त्री  किसी तरह इस बात पर राजी  नही  हुई | उसन अपनी राय यह जाहिर की कि बड़े भाई की रोटी और  आवाज  की गाली पर छेप्टे भाई का पारिवारिक अधिकार है, किन्तु सुसरात्त में जाकर रहना बड़ी ही बेज्जती की

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भाग 4

25 अगस्त 2022
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विन्ध्यवासिनी  ने कहा--आप वि्लायत जाने मे .रोक-टाक न करे इसलिए नही मांगे | राजकुमार बाबू  बहुत ही नाराज़ हुए। माता रोने लगी ओर बेटी भी रोने लगी । कलकत्ते मे चारों आर विचित्र स्वर से उत्सव के बाजे बज र

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भाग 5

25 अगस्त 2022
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अनाथबन्धु उत्साह  के साथ इस बात पर राज़ी हो गये । उन्होंने मन मे सोचा, जे बार-्लाइब्रेरियों मे पड़े रहनेवाले स्वदेशी बेरिस्टर उनसे डाह करते हैं और उनकी असामान्य प्रतिभा के प्रति यथरेष्ट सम्मान नहीं  द

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सुभा भाग 1

25 अगस्त 2022
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 लड़की का नाम जब सुभाषिणी रक्खा गया था तब कीन जानता था कि वह गूगी हेगी ? उसकी दो  बडी बहनें का नाम सुकेशिनी ओर सुहासिनी रखा गया था | इसी से उसी अनुप्रास पर पिता ने छोटी लडकी का नाम सुभाषिणी रखा  | इस

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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 धूप  से प्रकाशित महृत्‌ आकाश के नीचे केवल गूँगी प्रकृति और गूंगी लड़की सुभा दोनों आमने-सामने चुप- चाप बैठे-बेठे एक दूसरे को निहारा करती थीं । प्रकृति फैली हुई धूप में, ओर सुभा छोटे-छोटे पेड़ों की छाह

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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मान लो, सुभा अगर जल्लकुमारी होती; धीरे-धीरे जल से ऊपर उठकर एक नागमशि घाट पर रण जाती , प्रताप तुच्छ मछली पकडने के काये का छोड़कर उस मणि का लेकर जल मे गोता क्गाता और पाताक्न मे जाकर देखता, चॉदी के महल म

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विचारक भाग 1

25 अगस्त 2022
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अनेक अवस्थाएँ बदलने के उपरांत अन्त का गतयौबना चुन्नो ते जिस पुरुष का आश्रय श्रदण किया था वह भी जब उसे फटे कपड़े की तरह छाड़ गया तब मुट्ठी भर अन्न के लिए दूसरे आश्रय के। खे।जने की चेष्टा करने से उसे अत

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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समुद्र के भीतर से, वृत्तपंक्ति से श्यामल तट-भूमि जैसे रम-णीय स्वप्न के समान, चित्र के समान जान पड़ती है वैसे किनारे पर पहुँचने से नहीं । वेघव्य के घेरे की आड़ से चमेली संसार से जितना दूर हो गई थी उसी

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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निद्राहदीन चमेली  की रात कहाँ जाकर समाप्त होगी | उस्र निरानन्द प्रात:काल मे जब चमेली के घर सूथ्ये देव का प्रकाश प्रवेश करेगा तब वहाँ सहसा केसी लज्ना प्रकाशित हो पड़ेगी-- कैसी लाउछना, कैसा हाहाकार जग उ

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मध्यवर्तिनी भाग 1

25 अगस्त 2022
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सुन्दर निहायत मामूली ढंग का था। उसमें काव्यरस, की गन्ध तक न थी। उसके मन में कभी यह बात नहीं आई कि जीवन में उक्त रस की कुछ आवश्यकता होती है। जैसे  परिचित पुराने जूते के भीतर पेर बिलकुल् निश्चिन्तः भाव

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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के ऊपर आनन्दमयी प्रकृति की हर एक उगली जेसे फिरने लगो और हृदय के भीतर जे। एक प्रकार का सद्भीत सुन पड़ने लगा उसके ठीक भाव को वह अच्छी तरह समझ नहीं सकती थी । ऐसे समय जब उसका खामी पास बेठकर पूछता था कि क

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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 एक हीरे का ठुकड़ा मिल्लने पर उसे  तरह-तरह से घुमा-फिराकर देखने का जी चाहता है | किन्तु यह एक नौजवान सुन्दरी स्री का मन था--सुन्दरलाल के लिए बुढ़ापे मे एक बहुत ही अपूर्व और स्पृहणीय पदार्थ था ! इसका क

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भाग 4

26 अगस्त 2022
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और आनन्द-गद्द सुन्दर वार-वार प्यारी, प्यारी! कहकर उसे सचेत करने की चेष्टा कर रद्दा था | सुन्दर ने इसी बीच में बड्धिम बाबू का “चन्द्रशेखर  उप- न्यास पढ़ डाला था और वह देो-एक प्राधुनिक कवियों के खड्भार-

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भाग 5

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रक्त में मानों फनकार मारता रहा। पार्वती  ने अपने मन मे कहा-- और किस बात को लेकर तेरी और मेरी तुलना होगी । किन्तु एक समय मेरी  भी यह अवस्था थी,  मैं भी इसी तरह सिर से पैर तक जवानी के रोम मे भरी हुई थी

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भाग 6

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जानकी के असतोष और असुख की सीमा नहीं रही | चह किसी तरह यह समझना  नहीं चाइती कि उसके स्वामी मे उसे सन्तुष्ट रखने की क्षमता नही है । क्षमता नहों थी ते व्याह् क्यों किया था | ऊपर के खण्ड मे कीवल दो  कमरे

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अत्याचार

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जमीदार के नायव जानकीनाथ के घर में प्यारी नास की एक महराजिन रसोई बनाने के लिए नौकर कुई। उसकी अवस्था कम थी और चरित्र अच्छा था। दूर की रहनेवाली वह ब्राह्मणों विपत्ति के फेर से पड़कर जानकीनाथ की घर आकर नो

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चुधित पाषाण भाग 1

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मैं  और  मेरे एक आत्मीय एक दिन रेल पर बेठे हुए कल्कत्ते जा रहे थे। इसी बीच से रेलगाड़ी पर एक आदमी से मुलाकात  हो गई। उसका पहनावा मुसल्लमानों का सा था | उसकी बाते सुनकर आश्चये का ठिकाना नहीं रहता था। प

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किन्तु उसी घड़ी मुझे स्मरण हो आया कि में सचमुच अमुक का ज्ये्ठ पुत्र अमुक हूँ । यह भी मैंने अपने मन में सोच लिया कि इस बात की तो  हमारे महाकबि और  कवि वर ही कद्द सकते हैं कि जगत् के भ्रीतर अथवा बाहर कह

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भाग 3

26 अगस्त 2022
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इस खण्डस्वप्न के अवत्त के भीतर---इसी हिना की. महक सितार के शब्द ओर सुगन्धित जल-कणो से मिल्ले हुए पवन के भोकी के वीच---एक नायिका को दम-दम भर पर बिजली की चसक के समान देख पावा था। उसका जाफू्रानी रद्ग का

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भाग 4

26 अगस्त 2022
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खजूर: के पेड़े की छाया से, किस गृहहीन अरब देश की स्मेंणी-के-मर्भ से उत्पन्न हुई थों ! तुमकी कान लुटेरा, वस्त्र  से पुष्पक की तरह, माता की गोद से अलग करके बिजली  को तरह भागने वाले घोड़े पर चढ़ाकर मरुसू

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भाग 5

26 अगस्त 2022
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उसी वर्षों मे, पगल्ले के पास दौड़ा गया ओर उससे पूंछा--मेहर अली, क्या झूठ ठ है वह मेरी बात का कुछ उत्तर न देकर मुझे आगे से हटा- कर--अजगर के मुह के पास साह के आवेश से घूम रहे पत्तों की तरह--चिल्लाता हुआ

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