रक्त में मानों फनकार मारता रहा। पार्वती ने अपने मन मे कहा-- और किस बात को लेकर तेरी और मेरी तुलना होगी । किन्तु एक समय मेरी भी यह अवस्था थी, मैं भी इसी तरह सिर से पैर तक जवानी के रोम मे भरी हुई थी । किन्तु उस्र समय किसी ने उसकी ख़बर मुझे क्यो नहीं दी ? कब् वह दिन आया और कब चला गया, इसका समाचार एक बारगी किसी ने मुझे नहीं दिया ! किन्तु वाह मुझसे एक बात भी न करके केसे गर्व गौरव के साथ जानकी चली गईं ! पार्वती जब केवल गिरिस्ती को ही सब कुछ जानती थी तब ये गहने उसकी दृष्टि मे बड़े कीमती थे । तव भला क्या वह यों बेवकूफ की तरह ये गहने दम भर मे दूसरे को सौंप देतो ९ किन्तु इस समय उसे खब चीज़ों से वेराग्य सा हो गया है |
सोने के गहसे पहनकर जानकी अपने कमरे मे चली गई- उसने दस भर के लिए भी यह खयाल नहीं किया कि पार्वती ने उसे कया ख्याल नहीं किया। उसने सोचा कि चारों ओर से सब सेवा, सब सम्पत्ति और सब प्रकार का सौभाग्य रवाभाविक नियम के अनुसार उसी का मिल्ञको मिलना चाहिए। क्योंकि वह अपने पति की दुलारी जानकी है !
कुछ लोग ऐसे रोग से अस्त होते हैं कि स्वपन्न की अवस्था मे अत्यन्त संकट के मार्ग से चले जाते हे, कुछ भी नहीं सोचते। अनेक जागते हुए मनुष्यों को भी ऐसा हो रोग हो जाता है |
उन्हे कुछ भी ज्ञान नही रह्दता । वे विपत्ति के तह रास्ते में बहुत ही निश्चिचित भाव से अग्रसर होते हैं और अन्त को दारुण सर्वनास के बीज जाकर जाग पढते हैं !
हमारे सुन्दरलाल की भी ऐसी ही दशा हुई। जानकी उसके जीवन प्रत्राह् केवल एक प्रवल्ल भवर” की तरह घूमने लगी ओर वहुत दूर से विविध बहुमूल्य पदाथे आकृष्ट द्वोकर उसके भीतर समाने लगे । कंवक् ल सुन्दरलाल, का मनुष्यत्व, मासिक वेतन, पार्वती का सुख-सोभाग्य और चलमूषण ही नहीं खिचने लगे, बल्कि गुप्त रूप से मैकसेोरन कम्पनी की रोकड़ भी खिचकर आने लगो । धन ते उस रोकड से घटता था, लेकिन सुन्दरलाल को खुद यह नहीं मालूम था कि वह घन कहाँ चला जाता है। सुन्दर हर महीने यद्द सोचता था कि अब की महीने की तनख्वाह मिलने पर रेकड़ पूरी कर दूंगा। किन्तु तनख्वाह हाथ में श्राते ह्वी उसी भ्रंवरः के आकर्पण में पड़कर अ्रन्त को दुअन्नी-चबन्नी तक उसी में गायब है। जाती थी । इसी वरह धीरे-धीरे रेकड़ मे से ,बहुत सी रकम गायब हो गई |
अन्त का एक दिन भण्डा फूठ गया । पुश्तैनी नौकरी थी । साहब उसका बहुत चाइते थे। उन्होने सुन्दरलाल को तहबील पूरी करने के लिए केब्रल्त दे! दिन का समय दिया । किस तरह धीरे-वीरे रोकड़ से ढाई हज़ार रुपये गायब है गये, यह बात बहुत विचारने पर भी सुन्दर समझ न सका |
एकदम पागल की तरह होकर वह देोड़ा हुआ पारवतो पार्वती के पास गया। पार्वती के पास जाकर सुन्दर ने कहा- गज़ब हो गया ! सब हाल सुनकर पार्वती का चेहरा पीला पड़ गया |
सुन्दर ने कहा--शीघ्र गहने निकाली । पार्वती ने कहा--मेंने ते गहने जानकी को दे दिये | सुन्दर बालक की तरह अधीर ओर रुआ्रासा होकर कहने लगा--तुमने उसे क् यों दिये ? क्यों दिये ? तुमसे किसने देने के लिए कहा था
पावेती ने इसका ठीक उत्तर न देकर कहा--वे हानि क्या हो गई वे गहने कही चले थोड़े गये हैं | डरपोक सुन्दर ने कातर स्वर मे कहा--हॉ, अगर तुम कोई बहाना करके उससे गहने निकाल सके ते। अच्छी बात है। लेकिन तुम्हें मेरे सिर की कसम, उससे यह न कहना कि में गहने माँग रहा हैँ !
तब पार्वती अत्यन्त खीक और घृणा के साथ कह उठी--यही तुम्हारे बहाना करने का--आदर दिखाने का समय है। चलो ! यह कहकर स्वामी का साथ लिये पार्वती जानकी के कमरे में गईं। जानकी ने एक बात न सुनी । हर बात का यही एक उत्तर दिया कि सो में क् या जानूँ ! दुनिया की कोई चिन्ता उसे करनी होगी--स्वामी की भत्ताई-बुराई पर ध्यान देना होगा, ऐसा वादा ते उससे किया नहीं गया था । सब अपनी-अपनी चिन्ता करें और सब मिलकर
जानकी के आराम का ख्याल रखे, ऐसा ही होना चाहिए । अकस्मात् उसकी विपरीत होना छोटा बडा न्याय है ! सुन्दर जानकी के पेर पकड़कर रोने लगा । किन्तु जानकी ने उसके उत्तर मे यही कहा--यह कुछ में नहीं जानती । में अपनी चीज़ क्यों दूँ सुन्दर ने देखा, यह दुबल्ली-पतली सुन्दर सुकुमारी वालिका लोहे के संदूक की अपेक्षा भी कठिन है। सड्डूट के समय स्वामी की ऐसी कमज़ोरी देखकर पावेती घृणा से कुढ़ उठी । उसने जानकी से जबदेस्वी तालियो का गुच्छा छीन लेना चाद्दा । जानकी ने ओर उपाय न देखकर वह गच्छा दीवार के उस तरफ तालाब मे फेक दिया ।
पार्वती ने बुद्धिहीन किकत्तव्यविमूढ़ खामी से कहा-- देखते कया हो, ताला क्यो नहीं तोड़ डालते ! जानकी ने निश्चिन्त भाव से कहा --ते में फॉसी लगाकर मर जाऊँगी |--- सुन्दर ने कहा--रहने दे।, में एक और उपाय करके रोकड़ पूरी करने की चेष्टा करूँगा । ग्रत् अब वह पागल की तरह वाहर चला गया | दो घण्टे के भीतर सुन्दर ने वाप दादे का घर ढाई हज़ार रुपये में बेच डाला ! बहुत मुशकिल से हाथे मे दृथकड़ियाँ पड़ना रुक गया, किन्तु नौकरी चली गई । स्थायर ओर अस्थावर सम्पत्ति से केवल दे! स्रियोँ बच रही । उनमे से जानकी गर्भवती होकर विल्ल- कुछ ही स्थावर होकर पड़ गई | गली के भीतर किराये के एक छोटे से घर से गृहविहीन सुन्दरत्ताल ने जाकर आश्रय लिया | ,