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समस्या-पूर्ण भाग 1

24 अगस्त 2022

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 देवपुर के ज़मीदार रामगोपाल अपने बड़े लङके को ज़मीदारी और घर-ग्रहस्थी सौपकर काशीवास' करने चले गये | देश के सब अनाथ दरिद्र लोग उनके लिए हाहाकार करके रोने लगे । सब यही कहने लगे कि ऐसी उदारता और  धमेनिष्ठा कलियुग मे नहीं देख पडती !

उनके पुत्र कृष्णगोपाल आजकल्ल के एक सुशिक्षित बी० ए० हैं। दाढ़ी है, चश्मा लगाते हैं, किसी के पास अधिक उठते-बैठते नही । अत्यन्त सच्चरित हैं, यहाँ तक कि तमाखू भी नहीं खाते। प्रत्यन्त भलेमानुस का सा चेहरा है। लेकिन मिज्ञाज कडा है  ।

उनकी प्रजा का शीघ्र ही इस बात का अनुभव हो गया | बुढ़े मात्तिक से वश चलता था, किन्तु यह मालिक एक पैसा  भी छाोडने वाले नही । निर्दष्ट समय मे भी एक दिन को रियायत नहीं होती ।

कृष्णुगापाल के हाथ मे अधिकार आते ही उन्होंने देखा कि बहुत से ब्राह्मणों के पास बिना लगान की ज़मोन है श्रौर बहुत से लोगो के पास कम लगान पर भो ज़मोन है। राम-गोपाल से अगर कोई कुछ प्रार्थना  करता था ते वे उसे पूरे किये बिना नही रहते थे । यह उनमे एक कमज़ोरी थी।

कष्णगोपाल ने कहा --यह कभी  नहीं हो सकता। में आधी ज़मीन बिना गान  के नहीं दे सकता। उन्हे निम्न- लिखित दो युक्तियाँ सूझी |

एक यह कि जो निकम्मे लोग घर से बैठे-बैठे इस ज़मीन का मुनाफा खा-खाकर मोटे हो रहे हैं वे अधिकांश ही अप- दाथे और दया के अथोग्य हैं। इस प्रकार का दान देना मानों आजल्षस्य को प्रश्नय देना है ।

दूसरे यह कि उनके बाप-दादे के समय की अपेक्षा इस समय जीविका बहुत ही दुलंभ हो गई है, ख़चे भी वहुत बढ़ गया है। इस समय अपनी मान-सर्यादा बनाये रखकर चलने में चोगुना खर्च  करना पडता है। अतएवं उनके पिता जिस प्रकार निश्चिन्त होकर दोनों हाथों से सम्पत्ति लुटा गये हैं वैसा करने से काम नहीं चल सकता । बल्कि उस बिखरी हुईं सम्पत्ति का घर में बटोर लाना ही कर्तव्य  है।

कत्तव्य-बुद्धि ने जो  कहा वही करना उन्होने शुरू कर दिया। वे एक सिद्धान्त पकंडकर चलने लगे ।

घर से जो बाहर चला गया था वह फिर धीरे-धीरे घर मे आने लगा । उन्हेने पिता के बहुत थाड़े से दान का बहाल रक्‍खा । और जो रक्खा भो उसके लिए ऐसा ढड़ कर दिया जिसमे वह चिरस्थायी दान न समझा  जाय ।

रामगोपात्त की काशी में हो प्रजा के दुःख का हात्त सुन पड़ा । यहाँ तक कि कोई-काई असामी उनके पास जाकर अपने दुःख की गाथा सुना आया । रासम- गोपाल ने ऋष्णयोपात्न को चिट्टी लिखी कि यह काम अच्छा नहों होता |

कृष्णगोपाल ने उत्तर में लिखा कि पहले जिस तरह दान किया जाता था उस तरह्द आमदनी की सूरते' भ्रो बहुत सी थो | तब जमोंदार प्रजा का देता था ओर प्रजा ज्मींदार की देती थी । इस समय नये आईन के शअ्रनुसार तरह-तरह से ज़मीदारों की आमदनी बन्द दे गई है, केवल लगान मित्नता है। ओर केवल्तल लगान वसूल करने के सिवा ज्ञमींदार के अन्यान्य गोरव-जनक अधिकार भी उठ गये हैं। अतएव आजकल यदि में अपनी उचित आमदनी पर कड़ी दृष्टि न रकते खारऊँ क्या | इस समय प्रजा भी मुझे कुछ अधिक न देगी और मैं भी उसे कुछ अधिक न दूंगा। दान और खैरात करने से कुछ दिन मे ही कंगाल  हो! जाना पड़ेगा-- इज्ज़त और कुलगौरव की रक्षा करना कठिन हो। जायगा )

रामगोपाल समय के इतने अधिक परिवत्तेन से चिन्तित हो उठे । उन्होने सोचा, आजकल के लड़के आजकल के अलुसार हो काम करते हैं--मेरे समय के नियम अब काम नहीं दे सकते । मैं दूर बेठे रहकर इस काम मे हस्तक्षेप करूंगा ते छड़के कहेंगे कि तुम अपनी सम्पत्ति ज्ञो--हमसे इसकी  रक्षा न हो सकेगी। काम क्या है भाई, में जीवन के अन्तिम दिन भगवड्जन में ही बिताऊँगा।

इसी तरह काम चलने लगा। प्रनेक मुकदमे चलाकर, दड़ा-हड्ञामा करके, कृष्णगेपात्त ने सब ढड़ अपने मन के माफिक्‌ कर लिया ।

बहुत सी प्रजा ने डरकर सब प्रकार से. कृष्णगोपाल के अनुगत होना स्वीकार कर लिया । केवल अहमदी का लड़का रमज़ानी किसी तरह काबू में नही आया । कृष्णगोपाल का आक्रोश भी उसी पर सबसे अधिक था। ब्राह्मत का माफी देने का ते। कुछ अ्थे भी समझ से आता है, लेकिन मुसलसान के लडके को माफी देने का क्‍या मतलब  एक सामूली मुस्लमान विधवा का लड़का याँव के ख़ैराती स्कूल मे थाडा सा लिखना-पढ़ना सीखकर ऐसा घमण्डी हो गया है कि किसी की मानता ही नही ।

कृष्णगोपाल को पुराने कमंचारियाो से मालूम हुआ कि रमज़ानी और  उस  स्त्री की मा पर बहुत दिनों से रामगोपाल का अनुग्रह चल्ला जाता है। इस अनुग्रह का कोई विशेष कारण वे बतला नहीं सके । शायद अनाथ विधवा का हुःख देखकर ही रामगोपाल को उस पर दया आ गईं थो ।

किन्तु ऋष्णगोपाल की पिता का यद्ध अनुमह सबसे बढ़- कर अयोग्य 'जान पड़ा।

पहले की गरीबी की हालत कृष्णगोपाल ने देखी नहों | इस समय हाथ-पेर फैलने की अवस्था मे रमज़ानी की बढ़ा-बढ़ी ओर दम्भ देखकर कृष्णगोपाल  को जान पड़ता था कि मानों रमज़ानी की मा अहमदी ने दया-दुबेज्ञ रामगोपाल को धोखा देकर उनकी सम्पत्ति का एक अश ठग लिया है।

रमज़ानी भी उद्धत प्रकृति का युवक था । उसने कहा--- जान चली जायगी ते भी में माफी की एक तिल्न भी ज़मीन न का डूंगा। दोनों ओर से मुकृहमेबाज़ी शुरू हो गई । रमज़ानी की विधवा माता ने लड़के को बार-बार समम्ता- कर कहा कि ज़मींदार के साथ भरगड़ा करने की कोई ज़रूरत नहीं है। अब तक जिनकी कृपा पर निभर करके जीवन बिताया है उन्हीं की कृपा पर निर्भर रहना इस समय भी कतंव्य है । ज़मींदार के कद्दने के अनुसार कुछ माफी छोड़ दे। ।

रमज़ानी ने कहा--अम्मा, तुम इन मामलों मे कुछ भी नहीं जानती । मुकदमेबाज़ी मे रसज़ानी की हार दोने लगी; किन्तु जितना ही वह हारने खगा उतनी ही उसकी ज़िद बढ़ने छगी । उसने अपनी माफी की रक्षा करने में स्वेस्व का दाव लगा दिया | एक दिन तीसरे पहर अहमदी उपहार-स्वरूप अपने खेत की कुछ तरकारी लेकर, लड़के से चुराकर, कृष्णगोपाल  से मिलने गई । बुढ़िया माने अपनी सकरुण मात्दृष्टि के द्वारा सनेह पूर्वक कृष्णगोपाल के सारे शरीर पर द्वाथ फेरकर बोली---

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रचनाएँ
गल्प गुच्छ
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कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प गुच्छ साल भर से काफ़ी चर्चा में है। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है। पूरी कथा पाठक में इतनी बेचैनी पैदा कर देती है कि वह आतंकित कर देने वाली उन परिस्थितियों और किरदारों के बारे में सोचे जो हमारे आस पास निर्मित हो चुकी हैं और उनका दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। कई बार कोई क़िताब, कोई रचना आप पढ़ना तो चाहते हैं, मगर अन्य कारणों से वह टलता रहता है। आपके चाहने के बावजूद वह छूटती रहती है। आप पछताते रहते हैं, मगर वह हाथ नहीं आती। कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प ऐसी ही पुस्तक है। पिछले सात-आठ महीनों से यह उपन्यास मेरा पीछा कर रहा था और मैं इसके पीछे लगा हुआ था, मगर पढ़ा जा सका अब। पढ़ने के बाद लगा कि अगर न पढ़ता तो कुछ छूट जाता। साल भर से यह उपन्यास काफ़ी चर्चा में है। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा नवलेखन का पुरस्कार मिलने की वज़ह से भी यह चर्चित रहा, इसकी विषयवस्तु, भाषा और उसकी शैली। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है।
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मुर्दे की मौत भाग 1

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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कादम्बिनी के कपड़े मे कीचड भरा हुआ था। अद- भुत भाव के आवेश श्रोर रात के जागने से वह पागल सी हे। रही थी । उसका चेहरा देखकर लोग सचमुच ही डर सकते थे।  शायद गॉव के लडके उसे देखकर पागतव समझकर दूर से ढेले

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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इसी कारण कभी-कभी दोपहर की सूनी कंठरी में पड़ें- पड़ वह चिल्ला उठती थी  और  शाम को दीपक के प्रकाश में अपनी परछाही  देखकर उसकी रोगटे खड़े हो आते थे ।  उसके इस भय का देखकर घर के लोगों के मन मे भी एक प्र

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भाग 4

24 अगस्त 2022
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असल बात उसकी सममझ्त मे नहों आई | वह जवाब भी नहो दे सकी ओर दुबारा कुछ प्रश्न भी नहों कर सकी । मुँह फुला- कर गम्भीर भाव से वहाँ से चली गई |  रात के दस बजे होगे जब  श्री पति रानीहाट से लौट आये । उस समय

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भाग 5

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कमरे भर में अन्धकार'छा गया। कादम्बिनी एकंदम कमरे की भीतर आकर खडो हा गई ।  उस समय ढाई पहर के लगभग राव बीती होगी । बाहर'जोर से पानी पढ़ रहा था । कादम्बिनी मे कहा--बहन, में तुम्हारी सखी कादम्बिनी ही हूँ

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सुधा भाग 1

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कान्तिचन्द्र की अवस्था थोडी है, तथापि ज्री के मरने के उपरान्त द्वितीय स्त्री का अनुसन्धान न करके पशु-पक्तियों के शिकार से ही उन्होंने  अपना मन लगाया | उनका शरीर लम्बा, पतला, हृढ़ ओर हल्का था। दृष्टि त

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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 दूर जाकर पता लगाने की सामथ्य नहीं । घर मे भगवान्‌ की मुर्ति है, उसे छीड़कर कहीं जाना नहीं हो सकता । कान्तिचन्द्र ने कहा--नाव पर आप मुझसे अगर मिल्ल सके' ते में एक कुल्लीन अच्छा छडका बतला सकता हैँ । 

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समस्या-पूर्ण भाग 1

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 देवपुर के ज़मीदार रामगोपाल अपने बड़े लङके को ज़मीदारी और घर-ग्रहस्थी सौपकर काशीवास' करने चले गये | देश के सब अनाथ दरिद्र लोग उनके लिए हाहाकार करके रोने लगे । सब यही कहने लगे कि ऐसी उदारता और  धमेनिष्

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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भेया, आल्ला  तुम्हारा भला करे' । बेटा, रमजानी का तुम बिगा- डूना नहीं। में उसे तुमका सॉंपती हूँ। उसे तुम अपना छोटा भाई समझकर उसके खाने-पीने का ज़रिया वह ज़मीन दे दे।। तुम्हारे वेशुमार दे।लत है। जितनी त

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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कष्णगोपाल् ने विस्मित होकर पूछा--इसी लिए आप काशी से इतनी दुर आये हैं ? रमज़ानी पर आपका इतना अनुग्रह क्यो है ? रामगोपाल ने कदा--यह सुनकर तुम क्‍या करोगे ? कष्णगोपाल् ने नहीं माना और कहा--अयोग्यता का व

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प्रायचित भाग 1

25 अगस्त 2022
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स्वर्ग  और  मनुष्यलोक के बीच में एक अनिर्देश्य अरा जक स्थान है, जहाँ राजा त्रिशंकु लटक रहे हैं और जह आकाशकुसुमे के ढेर पैदा  होते हैं। उस वायुदुर्गवेष्टिव महा देश का नाम है “होता तो है| सकता? । जो लोग

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भाग 2

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किन्तु यह बात भी, उसके सन मे आई कि उसके खामी सुसरात् में रहने के कारण आदर की अपने हाथो गँवा रहे हैं | उस् दिन से नित्य वह खामी से कहने लगी कि तुम अपने घर मुझे ले चले, अब में यहाँ नहीं रहेंगी । अनाथब

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भाग 3

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किन्तु स्त्री  किसी तरह इस बात पर राजी  नही  हुई | उसन अपनी राय यह जाहिर की कि बड़े भाई की रोटी और  आवाज  की गाली पर छेप्टे भाई का पारिवारिक अधिकार है, किन्तु सुसरात्त में जाकर रहना बड़ी ही बेज्जती की

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भाग 4

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विन्ध्यवासिनी  ने कहा--आप वि्लायत जाने मे .रोक-टाक न करे इसलिए नही मांगे | राजकुमार बाबू  बहुत ही नाराज़ हुए। माता रोने लगी ओर बेटी भी रोने लगी । कलकत्ते मे चारों आर विचित्र स्वर से उत्सव के बाजे बज र

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भाग 5

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अनाथबन्धु उत्साह  के साथ इस बात पर राज़ी हो गये । उन्होंने मन मे सोचा, जे बार-्लाइब्रेरियों मे पड़े रहनेवाले स्वदेशी बेरिस्टर उनसे डाह करते हैं और उनकी असामान्य प्रतिभा के प्रति यथरेष्ट सम्मान नहीं  द

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सुभा भाग 1

25 अगस्त 2022
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 लड़की का नाम जब सुभाषिणी रक्खा गया था तब कीन जानता था कि वह गूगी हेगी ? उसकी दो  बडी बहनें का नाम सुकेशिनी ओर सुहासिनी रखा गया था | इसी से उसी अनुप्रास पर पिता ने छोटी लडकी का नाम सुभाषिणी रखा  | इस

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भाग 2

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 धूप  से प्रकाशित महृत्‌ आकाश के नीचे केवल गूँगी प्रकृति और गूंगी लड़की सुभा दोनों आमने-सामने चुप- चाप बैठे-बेठे एक दूसरे को निहारा करती थीं । प्रकृति फैली हुई धूप में, ओर सुभा छोटे-छोटे पेड़ों की छाह

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भाग 3

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मान लो, सुभा अगर जल्लकुमारी होती; धीरे-धीरे जल से ऊपर उठकर एक नागमशि घाट पर रण जाती , प्रताप तुच्छ मछली पकडने के काये का छोड़कर उस मणि का लेकर जल मे गोता क्गाता और पाताक्न मे जाकर देखता, चॉदी के महल म

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विचारक भाग 1

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अनेक अवस्थाएँ बदलने के उपरांत अन्त का गतयौबना चुन्नो ते जिस पुरुष का आश्रय श्रदण किया था वह भी जब उसे फटे कपड़े की तरह छाड़ गया तब मुट्ठी भर अन्न के लिए दूसरे आश्रय के। खे।जने की चेष्टा करने से उसे अत

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भाग 2

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समुद्र के भीतर से, वृत्तपंक्ति से श्यामल तट-भूमि जैसे रम-णीय स्वप्न के समान, चित्र के समान जान पड़ती है वैसे किनारे पर पहुँचने से नहीं । वेघव्य के घेरे की आड़ से चमेली संसार से जितना दूर हो गई थी उसी

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भाग 3

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निद्राहदीन चमेली  की रात कहाँ जाकर समाप्त होगी | उस्र निरानन्द प्रात:काल मे जब चमेली के घर सूथ्ये देव का प्रकाश प्रवेश करेगा तब वहाँ सहसा केसी लज्ना प्रकाशित हो पड़ेगी-- कैसी लाउछना, कैसा हाहाकार जग उ

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मध्यवर्तिनी भाग 1

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सुन्दर निहायत मामूली ढंग का था। उसमें काव्यरस, की गन्ध तक न थी। उसके मन में कभी यह बात नहीं आई कि जीवन में उक्त रस की कुछ आवश्यकता होती है। जैसे  परिचित पुराने जूते के भीतर पेर बिलकुल् निश्चिन्तः भाव

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भाग 2

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के ऊपर आनन्दमयी प्रकृति की हर एक उगली जेसे फिरने लगो और हृदय के भीतर जे। एक प्रकार का सद्भीत सुन पड़ने लगा उसके ठीक भाव को वह अच्छी तरह समझ नहीं सकती थी । ऐसे समय जब उसका खामी पास बेठकर पूछता था कि क

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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 एक हीरे का ठुकड़ा मिल्लने पर उसे  तरह-तरह से घुमा-फिराकर देखने का जी चाहता है | किन्तु यह एक नौजवान सुन्दरी स्री का मन था--सुन्दरलाल के लिए बुढ़ापे मे एक बहुत ही अपूर्व और स्पृहणीय पदार्थ था ! इसका क

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भाग 4

26 अगस्त 2022
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और आनन्द-गद्द सुन्दर वार-वार प्यारी, प्यारी! कहकर उसे सचेत करने की चेष्टा कर रद्दा था | सुन्दर ने इसी बीच में बड्धिम बाबू का “चन्द्रशेखर  उप- न्यास पढ़ डाला था और वह देो-एक प्राधुनिक कवियों के खड्भार-

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भाग 5

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रक्त में मानों फनकार मारता रहा। पार्वती  ने अपने मन मे कहा-- और किस बात को लेकर तेरी और मेरी तुलना होगी । किन्तु एक समय मेरी  भी यह अवस्था थी,  मैं भी इसी तरह सिर से पैर तक जवानी के रोम मे भरी हुई थी

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जानकी के असतोष और असुख की सीमा नहीं रही | चह किसी तरह यह समझना  नहीं चाइती कि उसके स्वामी मे उसे सन्तुष्ट रखने की क्षमता नही है । क्षमता नहों थी ते व्याह् क्यों किया था | ऊपर के खण्ड मे कीवल दो  कमरे

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अत्याचार

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जमीदार के नायव जानकीनाथ के घर में प्यारी नास की एक महराजिन रसोई बनाने के लिए नौकर कुई। उसकी अवस्था कम थी और चरित्र अच्छा था। दूर की रहनेवाली वह ब्राह्मणों विपत्ति के फेर से पड़कर जानकीनाथ की घर आकर नो

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चुधित पाषाण भाग 1

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मैं  और  मेरे एक आत्मीय एक दिन रेल पर बेठे हुए कल्कत्ते जा रहे थे। इसी बीच से रेलगाड़ी पर एक आदमी से मुलाकात  हो गई। उसका पहनावा मुसल्लमानों का सा था | उसकी बाते सुनकर आश्चये का ठिकाना नहीं रहता था। प

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किन्तु उसी घड़ी मुझे स्मरण हो आया कि में सचमुच अमुक का ज्ये्ठ पुत्र अमुक हूँ । यह भी मैंने अपने मन में सोच लिया कि इस बात की तो  हमारे महाकबि और  कवि वर ही कद्द सकते हैं कि जगत् के भ्रीतर अथवा बाहर कह

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भाग 3

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इस खण्डस्वप्न के अवत्त के भीतर---इसी हिना की. महक सितार के शब्द ओर सुगन्धित जल-कणो से मिल्ले हुए पवन के भोकी के वीच---एक नायिका को दम-दम भर पर बिजली की चसक के समान देख पावा था। उसका जाफू्रानी रद्ग का

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खजूर: के पेड़े की छाया से, किस गृहहीन अरब देश की स्मेंणी-के-मर्भ से उत्पन्न हुई थों ! तुमकी कान लुटेरा, वस्त्र  से पुष्पक की तरह, माता की गोद से अलग करके बिजली  को तरह भागने वाले घोड़े पर चढ़ाकर मरुसू

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भाग 5

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उसी वर्षों मे, पगल्ले के पास दौड़ा गया ओर उससे पूंछा--मेहर अली, क्या झूठ ठ है वह मेरी बात का कुछ उत्तर न देकर मुझे आगे से हटा- कर--अजगर के मुह के पास साह के आवेश से घूम रहे पत्तों की तरह--चिल्लाता हुआ

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