अनाथबन्धु उत्साह के साथ इस बात पर राज़ी हो गये । उन्होंने मन मे सोचा, जे बार-्लाइब्रेरियों मे पड़े रहनेवाले स्वदेशी बेरिस्टर उनसे डाह करते हैं और उनकी असामान्य प्रतिभा के प्रति यथरेष्ट सम्मान नहीं दिखाते, उन्नसे इसी उपाय से बदला चुकाना होगा ।
राजकुमार बाबू ने पण्डितों से व्यवस्था त्लिखाई । उन्होने कहा---अनाथबन्धु ने अगर विलायत से ,, .सांस न खाया हो ते बे प्रायश्चित्त करके जाति मे लिये जा सकते हैं |
विदेश से यद्यपि उक्त पशु का निषिद्ध मांस उनके प्रिय भेजनों में था, तथापि उसके भ्रेजन को अस्वीकार करे से उन्हें कुछ भी सड्डोच नहों हुआ । अपने प्रिय मित्रो से अनाथ- बन्धु ने कहा--समाज जब अपनी इच्छा से झूठ बात सुनना चाहता है तब एक ज़रा सी बात कहकर उसे अपने अनुकूल बनाने में मुझे कुछ दोष नहों देख पड़ता । जिस जीवा ने मांश खाया है उसे निन्दित पदार्थों द्वारा शुद्ध कर लेना हमारे सव्य समाज का नियम है। में मैं उस्त नियम का उल्लंघन करना नहीं चाहता |
प्रायश्चित्त करके समाज से मिलने के लिए एक शुभ दिन निश्चित हुआ । इसी बोच में अनाथबन्धु ने धोती ही नहीं पहनी, बल्कि तर्क ओर युक्तियों के द्वारा वे विलायती समाज के मुंह मे स्याही ओर हिन्दू-समाज के मुँह सें चूना भी पोतने लगे। जिसने सुना, वही खुश हो उठा |
आनन्द ओर गये से विन्ध्यवासिनी का ग्रीति-सुधा-सिच्चित कोमल हृदय उच्छूसित हो उठा । उसने मन में कहा--विलायत से जो आता है वह एकदम साहव बनकर आता है, किन्तु मेरे स्वामी बिलकुल विकारहीन भाव से लौट आये हैं। उनकी हिन्दू-धम पर भक्ति पहले से भी अब बढ़ गई है । निर्दिष्ट मुह्त्त के दिन त्राह्मण-पण्डिता से राजकुमार बाबू का घर सर गया ।
उनको खिल्लाने-पिलाने बिदाई देने का खूब गहरा प्रबन्ध किया गया था | धर के भीतर ज़नाने से भी घूमधाम की कम्मी से थी। निम- नित्रत नातेदार, इष्ट-मित्र और पास-परोसियें का खिलाने पिलाने ओर बिठाने-उठाने का बहुत अच्छा प्रबन्ध था । उस काम-काज की भीड़ के भीतर विन्ध्यवासिनी प्रसन्न मुख लिये, शरद ऋतु की धूप से उद्धासित प्रभातवायु-बाहित मेघ- खण्ड की तरह, आनन्द के आवेश में इधर-उधर फिर रही थी।
आज के दिन की संसार की सब घटनाओं का प्रधान नायक उसका सामी है। आज मानों सारी वड़भूमि एक रड्रभूमि है ओर ड्राप सीन उठाकर केवल अनाथबन्धु को वह विस्मित विश्वासी दश का के आगे उपस्थित किये हुए है। प्रायश्चित्त अपराध का सीकार नहीं है। वह माने लोगों पर अलुप्रह करना है। अनाथबन्धु विल्ञायत से आकर हिन्दू-समाज मे प्रवेश कर हिन्दू-समाज के माने गोरवशाली बना रहे हैं और उसी गौरव की छटा सारे देश से आकर विन्ध्यवासिनी के मुख पर प्रतिफलित होकर, उसके प्रेम-प्रमुदेिति मुख के ऊपर, परम सुन्दर महिमा की ज्योति को चमका रही है ।
इतने दिन के तुच्छ जीवन का सारा दुःख और अपमान आज दूर हो गया है। श्राज विन्ध्यवासिनी अपने जन-परिपूर्ण पिता के घर सें सब आत्मीय खजनों के आगे सिर ऊँचा करके गारव के भ्रासन पर अधिप्रित हुई है। स्वामी के महत्व ने आज शअ्रयाग्य स्री का संसार के निकट सम्मान का पात्र बना दिया | प्रायचित्त का कृत्य समाप्त हो गया । अनाथबन्धु समाज मे मिल गये । अभ्यागत आत्मीय, स्वजन ओर ब्राह्मणों ने अनाथबन्धु के साथ बेठकर भर पेट भोजन किया |
आत्मीय खियो ने दामाद का देखने के लिए भीतर ज़नाने में बुला भेजा। अनाथबन्धु मज़े मे पान चबाते-चबाते, प्रसन्न हँसता हुआ. चेहरा लिये, ज़मीन तक लटकती हुईं चादर लिथारते हुए भीतर गए | भोजन के बाद वाह्मथों का दक्षिणा देने का प्रबन्ध हो रहा था ओर ब्राह्मण लोग सभा मे बेठे तुसुल कलह के साथ अपना-अपना पाण्डित्य प्रकट कर रहे थे।
वृद्ध राजकुमार बाबू क्षण भर विश्राम करने की नीयत से उस सभा के बीच मे बैठे हुए स्वतियों के सम्बन्ध मे तर्क-वितर्क सुन रहे थे । इसी समय दरबान ने आकर उनके हाथ मे एक विज़िटिग कार्ड दिया और कहा--एक मेम साहब ्आई हैं ।
राजकुमार बावू चौंक उठे । उसके बा काड में देखा | उसमे अगरेज्ञो मे लिखा हुआ था --मसिसेज अनाथबन्धु सर- कार--अथात् अनाथवन्धु सरकार की जी | राजकुमार बावू बहुत देर तक निहारते रहकर भी इन कई अक्षरा के शब्बे का ठीक-ठीक मत्तत्रव न समक्त सकते |
इसी समय विश्लायत से शीघ्र ही आईं हुईं, लाल-लाल गालो- वाली, भूरे बालावाली, कंजी आँखेंवाली, दूध के समान गोरे रडवाली, हरिणय के समान चत्नेवाली एक अँगरेज़ रमणी उस सभा के बीच आकर खडो हो गई और हर एक के मुँह की गोर से निहारने लगी, किन्तु उसे अपना परिचित प्रिय मुखड़ा न देख पड़ा। अक्षस्मात् मेम की देखकर स्मृति- संहिताओं के तक जहाँ के तहाँ पडे रह गये | सभा मे मखान का सा गद्दरा सन्नाटा छा गया |
इसी समय चादर के छे(र से ज़मीच बहारते हुए अनाथ- बन्धु फिर रड़्भूसि मे आकर उपस्थित हुए। उसी दम वह अगरेज़ रमणी देड़कर उनके पास आईं, उनसे लिपटकर उनके ताम्बूल्न-रषजित ओठ में उसने एक स्त्री -पुरुष के मिलन का चिह--चुम्बन--अच्वित कर दिया | उस दिन सभा में स्मृति-प्तहिताओ के सम्बन्ध मे फिर कोई तक नहीं उठा |