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भाग 2

24 अगस्त 2022

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कादम्बिनी के कपड़े मे कीचड भरा हुआ था। अद- भुत भाव के आवेश श्रोर रात के जागने से वह पागल सी हे। रही थी । उसका चेहरा देखकर लोग सचमुच ही डर सकते थे।

 शायद गॉव के लडके उसे देखकर पागतव समझकर दूर से ढेले भी मारते | किन्तु साभाग्यवश सबसे पहले एक राह- चलते भले आदमी मे उसे इस' अवस्था में देखा । उस भले गआ्रादमी ने पास आकर कादम्बिनी से कहा--- आप किसी भले घर की वेटी-बहू जान पडती हैं; इस' अवस्था मे इस तरह अकेले कहाँ जा रही हैं ? कादम्बिनी ने पहले कुछ उत्तर नहीं दिया, उसक्की आर ताकने लगी । 

एकाएक वह कुछ नहीं समझ सकी। वह संसार में है, वह भल्ने आदमी की बेटी-बहू जान पडती हे, राहगीर उससे यह प्रश्न करता है, ये सब बाते' उसे  स्त्री के समान मिथ्या जान पड़ने लगी | 

पथिक ने फिर उससे कहा---चलो बेटी, में तुमके तुम्हारे घर पहुँचा दूं । तुम्हारा घर कहों है ? कादम्बिनी सोचने लगी । सुसराल जाना ते हो नहीं सकता, और मायके मे कोई है ही नही । तब उसे अपने लड़कपन को सखी का स्मरण हुआ । सखी योगमाया के साथ यद्यपि लडकपन से ही वह बिछुड चुकी है तथापि बीच-बीच मे वह कादम्बिनी को चिट्ठी  लिखती थी और कादम्बिनी भी उसे चिट्टो लिखती थी । कभी- कभी चिट्ठो-पत्नो के द्वारा प्रेम की लड़ाई भी हुआ करती थो | 

कादम्बिनी यह जताना चाहती थो कि वह येगमाया को बहुत चाहती है ओर योगमाया यह जताना चाहती थी कि वह कादम्बिनी का बहुत चाहती है । इसमे किसी को रक्तो भर भी सन्देह न था कि किसी साक पर देनें का मिलन होने पर कोई भी किसी का घटी भर के लिए आँख-ओ्रेट नहो कर सकेगा। कादम्बिनी ने उस भद्र पुरुष से कहा--निशिन्दापुर में श्रापतिचरणश बाबू के धर जाऊँगी | बह पथिक कलकत्ते जा रहे थे। निशिन्दापुर यद्यपि निकट न था, 

तथापि उनकी राह में ही पढ़ता था । उस भक्त आदमी ने स्वयं प्रबन्ध करके कादसम्बिनी को श्रोपतिचरण बाबू के घर पहुँचा दिया | दाने सखियाँ बहुत दिनेा के बाद सिल्लों। पहले पह- चानने से कुछ देर हुई, किन्तु थोड़ो ही देर मे दोनों ने दोने। की अच्छी तरह पहचान लिया | 

योगमाया ने कहा---अआज हमारे बड़े भाग्य हैं | तुम्हारे दशनद पाने की ते मुझे काई भाशा ही न थो। लेकिन तुम यहाँ किस तरह आई  तुम्हारी सुसराल के लोगो ने कया तुम की छोड़ दिया  कादसम्बिनी चुप रही;  सांत का कद्दा--बहन, सुसरात की कुछ बात तुम मुझसे न पूछे । मुझे दासी की तरह अपने यहाँ रहने दे, में तुम्हारा सब काम करूँगी ।

योगमाया ने कहा --वाहजी, यह क्या बात हे ! दासी की तरह क्‍यों रहेगी ! तुम मेरी सखी द्वो, तुम मेरी--इत्यादि । इसी समय श्रोपति बाबू घर से आये। काहम्बिनी दमभर उनके चेहरे की ओर ताककर धीरे-धीरे वहाँ से दूसरी दालान में चली गई। उसने न ते घूंघट काढ़ा ओर न किसी तरह् के सट्ठटीच या लज्जा का लक्षण दिखाया | 

कही उसकी सखी फी विरुद्ध श्रीपत्ति कुछ ख़याल न कर बैठें, इसलिए व्यस्त होकर योगमाया ने वरह-वरद्द से उन्हे समभाव ना शुरू किया। किन्तु इतना कम सम्राना पडा और आपति ने इतने सहज मे योगमाया की सब बातों को मान लिया कि उससे योगमाया प्रपने मन में विशेष सन्तुष्ट नही हुई । ' 

कादम्बिनी सखी के घर ते आईं, ज्ञेकिन उससे अच्छो तरह्द हिल्ल-मसिल्ल नहो सकी, बीच मे मृत्यु का व्यवधान था । अपने सम्बन्ध मे सदा एक अकार का सन्देह ओर खयात्त रहने से दूसरे के  साथ हिलना-मिलना अमम्भव हो जाता हे | - कादम्बिनी योगमाया के मुँह की ओर ताकती है ओर न जाने क्या सोचती दै--वदह समझती है कि खामी और ग्रहस्थों को लेकर योगसाया माने बहुत दूर पर दूसरे जगत्‌ से है । स्नेह, ममता और कत्तव्य से युक्त वह माने प्रथ्वी पर का जीव है । श्रौर कादम्बिनी मानों शून्य छाया है। योगमाया सानें अस्तित्व का देश है ओर कादम्बिनी माने अनन्त में लीन है ।

 योगमाया को भी कादम्बिनी का रहना न जाने केसा लगा। वह ख़ुद भी उसे कुछ नहीं समझ सकी। बछियों का स्वभाव होता है कि वे किसी बात का छिपाना नहीं सह सकतों । 

क्‍योंकि अनिश्चित को ल्लेकर कविता की जा सकती है, वद्दादुरी दिखलाई जा सकती है, पाण्डित्य प्रकट किया जा सकता है, किन्तु गृहस्थी नही की जा सकती | इसी लिए सी जाति जिसे समझ नहीं १ती उसके अखित्व को लुप्त करके या ते! 

उसके साथ कोई सम्बन्ध नहीं रखती ओर या उसे अपने हाथ से नया रूप देकर अपने उयवहार के योग्य वस्तु बना लेती है। यदि इन दो बातों में से कोई बात नहीं कर सकती ते उसके ऊपर खीम उठती है। कादम्बिनी जितना ही योगमाया के ज्लिए एक पहेली के समान दुर्बोध होने लगी उतना ही योगमाया की खीर भी उसके ऊपर बढ़ने लगी । उसने सोचा, यह कान बला मेंने ध्यपने सिर पर ने ली | 

इस पर एक  और आफत यह थो कि कादम्बिनी आप ही अपने को डरती थी। वह अपने पास से आप ही माना भागना चाहती है, पर भागकर जा नहों सकती । जो भूत को डरते हैं उन्हे अपने पीछे भय जान पडता है--जहोँ टृष्टि नहीं पहुँचती वही भय होता है। किन्तु, काद- म्बिनी मानों अपने को ही डरती थी, बाहर से उसे कुछ भय न था |

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रचनाएँ
गल्प गुच्छ
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कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प गुच्छ साल भर से काफ़ी चर्चा में है। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है। पूरी कथा पाठक में इतनी बेचैनी पैदा कर देती है कि वह आतंकित कर देने वाली उन परिस्थितियों और किरदारों के बारे में सोचे जो हमारे आस पास निर्मित हो चुकी हैं और उनका दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। कई बार कोई क़िताब, कोई रचना आप पढ़ना तो चाहते हैं, मगर अन्य कारणों से वह टलता रहता है। आपके चाहने के बावजूद वह छूटती रहती है। आप पछताते रहते हैं, मगर वह हाथ नहीं आती। कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प ऐसी ही पुस्तक है। पिछले सात-आठ महीनों से यह उपन्यास मेरा पीछा कर रहा था और मैं इसके पीछे लगा हुआ था, मगर पढ़ा जा सका अब। पढ़ने के बाद लगा कि अगर न पढ़ता तो कुछ छूट जाता। साल भर से यह उपन्यास काफ़ी चर्चा में है। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा नवलेखन का पुरस्कार मिलने की वज़ह से भी यह चर्चित रहा, इसकी विषयवस्तु, भाषा और उसकी शैली। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है।
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मुर्दे की मौत भाग 1

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रानीहाट के जमींदार शारदाशंकर  बाबू के घर की विधवा वहू के मायके से कोई नही  था । एक-एक करके सभी मर गये। सुसराल  मे भी ठीक अपना कहलाने लायक कोई ल था। न पति था और-न पुत्र ही  था। उसके जेठ शारदाशह  का एक

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भाग 2

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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इसी कारण कभी-कभी दोपहर की सूनी कंठरी में पड़ें- पड़ वह चिल्ला उठती थी  और  शाम को दीपक के प्रकाश में अपनी परछाही  देखकर उसकी रोगटे खड़े हो आते थे ।  उसके इस भय का देखकर घर के लोगों के मन मे भी एक प्र

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भाग 4

24 अगस्त 2022
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असल बात उसकी सममझ्त मे नहों आई | वह जवाब भी नहो दे सकी ओर दुबारा कुछ प्रश्न भी नहों कर सकी । मुँह फुला- कर गम्भीर भाव से वहाँ से चली गई |  रात के दस बजे होगे जब  श्री पति रानीहाट से लौट आये । उस समय

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भाग 5

24 अगस्त 2022
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कमरे भर में अन्धकार'छा गया। कादम्बिनी एकंदम कमरे की भीतर आकर खडो हा गई ।  उस समय ढाई पहर के लगभग राव बीती होगी । बाहर'जोर से पानी पढ़ रहा था । कादम्बिनी मे कहा--बहन, में तुम्हारी सखी कादम्बिनी ही हूँ

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सुधा भाग 1

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कान्तिचन्द्र की अवस्था थोडी है, तथापि ज्री के मरने के उपरान्त द्वितीय स्त्री का अनुसन्धान न करके पशु-पक्तियों के शिकार से ही उन्होंने  अपना मन लगाया | उनका शरीर लम्बा, पतला, हृढ़ ओर हल्का था। दृष्टि त

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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 दूर जाकर पता लगाने की सामथ्य नहीं । घर मे भगवान्‌ की मुर्ति है, उसे छीड़कर कहीं जाना नहीं हो सकता । कान्तिचन्द्र ने कहा--नाव पर आप मुझसे अगर मिल्ल सके' ते में एक कुल्लीन अच्छा छडका बतला सकता हैँ । 

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समस्या-पूर्ण भाग 1

24 अगस्त 2022
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 देवपुर के ज़मीदार रामगोपाल अपने बड़े लङके को ज़मीदारी और घर-ग्रहस्थी सौपकर काशीवास' करने चले गये | देश के सब अनाथ दरिद्र लोग उनके लिए हाहाकार करके रोने लगे । सब यही कहने लगे कि ऐसी उदारता और  धमेनिष्

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भाग 2

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भेया, आल्ला  तुम्हारा भला करे' । बेटा, रमजानी का तुम बिगा- डूना नहीं। में उसे तुमका सॉंपती हूँ। उसे तुम अपना छोटा भाई समझकर उसके खाने-पीने का ज़रिया वह ज़मीन दे दे।। तुम्हारे वेशुमार दे।लत है। जितनी त

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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कष्णगोपाल् ने विस्मित होकर पूछा--इसी लिए आप काशी से इतनी दुर आये हैं ? रमज़ानी पर आपका इतना अनुग्रह क्यो है ? रामगोपाल ने कदा--यह सुनकर तुम क्‍या करोगे ? कष्णगोपाल् ने नहीं माना और कहा--अयोग्यता का व

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प्रायचित भाग 1

25 अगस्त 2022
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स्वर्ग  और  मनुष्यलोक के बीच में एक अनिर्देश्य अरा जक स्थान है, जहाँ राजा त्रिशंकु लटक रहे हैं और जह आकाशकुसुमे के ढेर पैदा  होते हैं। उस वायुदुर्गवेष्टिव महा देश का नाम है “होता तो है| सकता? । जो लोग

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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किन्तु यह बात भी, उसके सन मे आई कि उसके खामी सुसरात् में रहने के कारण आदर की अपने हाथो गँवा रहे हैं | उस् दिन से नित्य वह खामी से कहने लगी कि तुम अपने घर मुझे ले चले, अब में यहाँ नहीं रहेंगी । अनाथब

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भाग 3

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किन्तु स्त्री  किसी तरह इस बात पर राजी  नही  हुई | उसन अपनी राय यह जाहिर की कि बड़े भाई की रोटी और  आवाज  की गाली पर छेप्टे भाई का पारिवारिक अधिकार है, किन्तु सुसरात्त में जाकर रहना बड़ी ही बेज्जती की

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भाग 4

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विन्ध्यवासिनी  ने कहा--आप वि्लायत जाने मे .रोक-टाक न करे इसलिए नही मांगे | राजकुमार बाबू  बहुत ही नाराज़ हुए। माता रोने लगी ओर बेटी भी रोने लगी । कलकत्ते मे चारों आर विचित्र स्वर से उत्सव के बाजे बज र

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भाग 5

25 अगस्त 2022
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अनाथबन्धु उत्साह  के साथ इस बात पर राज़ी हो गये । उन्होंने मन मे सोचा, जे बार-्लाइब्रेरियों मे पड़े रहनेवाले स्वदेशी बेरिस्टर उनसे डाह करते हैं और उनकी असामान्य प्रतिभा के प्रति यथरेष्ट सम्मान नहीं  द

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सुभा भाग 1

25 अगस्त 2022
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 लड़की का नाम जब सुभाषिणी रक्खा गया था तब कीन जानता था कि वह गूगी हेगी ? उसकी दो  बडी बहनें का नाम सुकेशिनी ओर सुहासिनी रखा गया था | इसी से उसी अनुप्रास पर पिता ने छोटी लडकी का नाम सुभाषिणी रखा  | इस

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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 धूप  से प्रकाशित महृत्‌ आकाश के नीचे केवल गूँगी प्रकृति और गूंगी लड़की सुभा दोनों आमने-सामने चुप- चाप बैठे-बेठे एक दूसरे को निहारा करती थीं । प्रकृति फैली हुई धूप में, ओर सुभा छोटे-छोटे पेड़ों की छाह

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भाग 3

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मान लो, सुभा अगर जल्लकुमारी होती; धीरे-धीरे जल से ऊपर उठकर एक नागमशि घाट पर रण जाती , प्रताप तुच्छ मछली पकडने के काये का छोड़कर उस मणि का लेकर जल मे गोता क्गाता और पाताक्न मे जाकर देखता, चॉदी के महल म

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विचारक भाग 1

25 अगस्त 2022
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अनेक अवस्थाएँ बदलने के उपरांत अन्त का गतयौबना चुन्नो ते जिस पुरुष का आश्रय श्रदण किया था वह भी जब उसे फटे कपड़े की तरह छाड़ गया तब मुट्ठी भर अन्न के लिए दूसरे आश्रय के। खे।जने की चेष्टा करने से उसे अत

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भाग 2

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समुद्र के भीतर से, वृत्तपंक्ति से श्यामल तट-भूमि जैसे रम-णीय स्वप्न के समान, चित्र के समान जान पड़ती है वैसे किनारे पर पहुँचने से नहीं । वेघव्य के घेरे की आड़ से चमेली संसार से जितना दूर हो गई थी उसी

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भाग 3

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निद्राहदीन चमेली  की रात कहाँ जाकर समाप्त होगी | उस्र निरानन्द प्रात:काल मे जब चमेली के घर सूथ्ये देव का प्रकाश प्रवेश करेगा तब वहाँ सहसा केसी लज्ना प्रकाशित हो पड़ेगी-- कैसी लाउछना, कैसा हाहाकार जग उ

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मध्यवर्तिनी भाग 1

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सुन्दर निहायत मामूली ढंग का था। उसमें काव्यरस, की गन्ध तक न थी। उसके मन में कभी यह बात नहीं आई कि जीवन में उक्त रस की कुछ आवश्यकता होती है। जैसे  परिचित पुराने जूते के भीतर पेर बिलकुल् निश्चिन्तः भाव

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भाग 2

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के ऊपर आनन्दमयी प्रकृति की हर एक उगली जेसे फिरने लगो और हृदय के भीतर जे। एक प्रकार का सद्भीत सुन पड़ने लगा उसके ठीक भाव को वह अच्छी तरह समझ नहीं सकती थी । ऐसे समय जब उसका खामी पास बेठकर पूछता था कि क

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भाग 3

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 एक हीरे का ठुकड़ा मिल्लने पर उसे  तरह-तरह से घुमा-फिराकर देखने का जी चाहता है | किन्तु यह एक नौजवान सुन्दरी स्री का मन था--सुन्दरलाल के लिए बुढ़ापे मे एक बहुत ही अपूर्व और स्पृहणीय पदार्थ था ! इसका क

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भाग 4

26 अगस्त 2022
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और आनन्द-गद्द सुन्दर वार-वार प्यारी, प्यारी! कहकर उसे सचेत करने की चेष्टा कर रद्दा था | सुन्दर ने इसी बीच में बड्धिम बाबू का “चन्द्रशेखर  उप- न्यास पढ़ डाला था और वह देो-एक प्राधुनिक कवियों के खड्भार-

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भाग 5

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रक्त में मानों फनकार मारता रहा। पार्वती  ने अपने मन मे कहा-- और किस बात को लेकर तेरी और मेरी तुलना होगी । किन्तु एक समय मेरी  भी यह अवस्था थी,  मैं भी इसी तरह सिर से पैर तक जवानी के रोम मे भरी हुई थी

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भाग 6

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जानकी के असतोष और असुख की सीमा नहीं रही | चह किसी तरह यह समझना  नहीं चाइती कि उसके स्वामी मे उसे सन्तुष्ट रखने की क्षमता नही है । क्षमता नहों थी ते व्याह् क्यों किया था | ऊपर के खण्ड मे कीवल दो  कमरे

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अत्याचार

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जमीदार के नायव जानकीनाथ के घर में प्यारी नास की एक महराजिन रसोई बनाने के लिए नौकर कुई। उसकी अवस्था कम थी और चरित्र अच्छा था। दूर की रहनेवाली वह ब्राह्मणों विपत्ति के फेर से पड़कर जानकीनाथ की घर आकर नो

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चुधित पाषाण भाग 1

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मैं  और  मेरे एक आत्मीय एक दिन रेल पर बेठे हुए कल्कत्ते जा रहे थे। इसी बीच से रेलगाड़ी पर एक आदमी से मुलाकात  हो गई। उसका पहनावा मुसल्लमानों का सा था | उसकी बाते सुनकर आश्चये का ठिकाना नहीं रहता था। प

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किन्तु उसी घड़ी मुझे स्मरण हो आया कि में सचमुच अमुक का ज्ये्ठ पुत्र अमुक हूँ । यह भी मैंने अपने मन में सोच लिया कि इस बात की तो  हमारे महाकबि और  कवि वर ही कद्द सकते हैं कि जगत् के भ्रीतर अथवा बाहर कह

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भाग 3

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इस खण्डस्वप्न के अवत्त के भीतर---इसी हिना की. महक सितार के शब्द ओर सुगन्धित जल-कणो से मिल्ले हुए पवन के भोकी के वीच---एक नायिका को दम-दम भर पर बिजली की चसक के समान देख पावा था। उसका जाफू्रानी रद्ग का

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भाग 4

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खजूर: के पेड़े की छाया से, किस गृहहीन अरब देश की स्मेंणी-के-मर्भ से उत्पन्न हुई थों ! तुमकी कान लुटेरा, वस्त्र  से पुष्पक की तरह, माता की गोद से अलग करके बिजली  को तरह भागने वाले घोड़े पर चढ़ाकर मरुसू

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भाग 5

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उसी वर्षों मे, पगल्ले के पास दौड़ा गया ओर उससे पूंछा--मेहर अली, क्या झूठ ठ है वह मेरी बात का कुछ उत्तर न देकर मुझे आगे से हटा- कर--अजगर के मुह के पास साह के आवेश से घूम रहे पत्तों की तरह--चिल्लाता हुआ

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