कष्णगोपाल् ने विस्मित होकर पूछा--इसी लिए आप काशी से इतनी दुर आये हैं ? रमज़ानी पर आपका इतना अनुग्रह क्यो है ? रामगोपाल ने कदा--यह सुनकर तुम क्या करोगे ?
कष्णगोपाल् ने नहीं माना और कहा--अयोग्यता का विचार करके कितने ही लोगो के दानद्रव्य ओर सम्पत्ति को मैंने ले लिया है। उनमे बहुत से आाह्मण भी थे। लेकिन थ्रापने उन मामलों मे कुछ भी दस्तन्दाज़ी नदी की। ओर इस मुसलमान के लिए आपने इतनी चेष्टा की! मुक़दमा चलाकर अगर मैं रमजानी का छोड़ दूंगा ओर सब सम्पत्ति वापस कर दूंगा । लोग क्या कहेगे। रामगोपाल कुछ देर तक चुप रहे। अन्त का जल्दी-जरुदी कॉपती हुईं उँगलियों से माला फेरते हुए कुछ कॉप रहे स्वर में उन्होने कहा--अगर लोगो के आगे सब खुलासा करके कहना ज़रूरी है ते उनसे कहना--रमज़ानी तुम्हारा भाई, मेरा पुत्र है। कष्णगोपाल ने रोककर कहा--मुसलमानी के पेट से ?
रामगोपाल ने कहा--हॉ मैया कष्णगोपाल् ने बहुत देर तक चुपचाप खड़े रहकर कद्दा-- यह सब पीछे होगा, पहले आप घर चलिए । रामगोपाल ने कट्दा--नहीं, में तो अब घर में जाऊँगा ही। में यहों से लौटा जाता हूँ । अ्रब तुमका जे। उचित जान पड़े सा करना ।
यह कहऋर आशीर्वाद देकर वे चल दिये। उनकी आँखो में ऑसु भरे हुए थे और शरीर कॉप रहा था | क्ष्णगापाल कुछ निश्चित न कर सके कि पिता से क्या कहना चाहिए । किन्तु यह बात अवश्य उनके मन से आई कि अगले ज़माने की धर्मनिष्ठा ऐसी ही है! शिक्षा ओर चरित्र मे उन्होंने अपने के पिता की अपेक्षा बहुत श्रेष्ठ समझता | उन्होने निश्चय कर लिया कि एक निश्चित सिद्धान्त न रहने का ही यह कुफल्न है । अदालत की श्रेय जब वे आये तब उन्होंने देखा, रमज़ानी दो सिपाहियों के बीच मे हथकड़ी पहने बेठा है। उसका शरीर दुर्बल हा रहा है। ओठ सूख रहे हैं। आँखें मे एक प्रकार का तीव्र तेज झलक रहा है। एक मेला कपड़ा पहने हुए है। वह कृष्णगोपाल का भाई है! डिपुटी मजिस्ट्रेट के साथ कष्णगोपाल की दोस्ती थी । मुकदमा गोलमाल्ष करके एक तरह से ख़ारिज हे! गया | कुछ ही दिनां मे रमजानी की पहले की सी अवस्था है| गईं। किन्तु इसका कारण उसे भी नहीं मालूम हुआ कि यह छुटकारा क्यों हुआ और कृष्णगोपाल ने सब माफ़ो क्यों फिर दे डाली । अन्य लोगों को भी इस' घटना से बड़ा आश्चय हुआ । मुकदमे के समय रामगोपाल के आने की बात दमभर मे फैल गई थी । सब लोग इस बात को लेकर कानाफूसी करने लगे |
सूक्ष्म बुद्धिवाले वकीलों ने अनुमान से सब बात जान ली | हरे कृष्णा वकील का रामगोपाल ने अपने ख़चे से लिखा-पढ़ाकर इस दजे को पहुँचाया था कि वह वकील साहब कहलाते थे। वह बराबर सन्देह करता था। किन्तु इतने दिनो के बाद उसने पूरी तार से समझ लिया कि अच्छी तरह अनुसन्धान करने से सभी साधुओं की पोल खोली जा सकती है। कोई चाहे जितनी माला फेरे, प्रथ्वी पर सब मेरे ही ऐसे हैं। संसार मे साधु ओर असाधु मे अन्तर इतना द्वी है कि साधु लोग कपटी होते हैं और असाधु लोग निष्कपट होते है। अर्थात् साधु लोग चुराकर कुकर्म करते हैं और साधु लोग खुलासा । जो हो, रामगोपाल के दया-धर्म-महत्त्व आदि का कपट ठहराकर हरेकृष्ण ने इतने दिनो की समस्या हल कर ली । और न- जाने' किस युक्ति के खार उससे कृतज्ञता का बोझ भी मानों उसके सिर पर से उतर गया।