भेया, आल्ला तुम्हारा भला करे' । बेटा, रमजानी का तुम बिगा- डूना नहीं। में उसे तुमका सॉंपती हूँ। उसे तुम अपना छोटा भाई समझकर उसके खाने-पीने का ज़रिया वह ज़मीन दे दे।। तुम्हारे वेशुमार दे।लत है। जितनी तुम्दारी ज़मीन उसके पास है उतनी ज़मीन से तुम्हारा कुछ बन-विगड़ नही सकता । अधिक अवस्था की स्वाभाविक प्रगल्भता के कारण बुढ़िया नाता जाडने आई है, यह देखकर कृष्णगोपाल बहुत ही सखी उठे |
उन्होंने कहा--ठुम औरत दो, इन वातें को नहीं समझ सकती । अगर कुछ कहना हो ते अपने लड़के को भेज देना । अहमसदी ने अपने लड़के ओर पराये लडके दोनों से सुना कि वह इस मासले मे कुछ नहीं समझ सकती ! अल्ला का नाम लेकर ऑसू पोछते-पोछते वह घर लौट गई । ;
मुकृहमा फौजदारी से दोबानी, दीवानी से डिट्रिक्ट कोर्ट और वजहों से हाई कोर्ट पहुँचा। इसी मे डेढ़ वर्ष बीत गया ! रमज़ानी जब ऋण में चोटी तक डूब गया तब अपीक्ष से उसकी आंशिक जय हुईं । किन्तु खवग से गिरा तो खजूर में अटका। महाजन ने मै।का देखकर डिक्री जारी करा दी। रमज़ानी का सर्वस्व नीलाम होने का दिन निश्चित हो गया। क् उस दिन सोमवार, बाज़ार का दिन था। एक छोटी सी नदी के किनारे बाज़ार लगती थी। बरसात मे नदी भरी हुई थी। बहुत से सौदे विक रहे थे। असाढ़ का महीना था। कटहल खूब बिक रहे थे। बादल घिरे हुए थे। शीघ्र ही पामी बरसात जान पड़ता था ।'
रमज़ानी भी बाज़ार सें सादा खरीदने आया था, लेकिन उसके पास एक पैसा भी न था। आजकल उसे उधार भी >हीं मिलता । वह एक बड़ा चाकू और थाली लेकर बाज़ार स्राया था। इन्ही दोनों चीज़ों को गिरो रखकर आज वह सोदा लेनेवाला था । तीसरे पहर कृष्णगापाल भी हवा खाने निकले थे। दो- तीच सिपाही भी लम्बी लाठी लिये उनके साथ थे | बाज़ार का शोर- गुल सुनकर ऋष्णगोपाल उघर ही चले। बाज़ार मे घुस- कर एक आादमी से कृष्णगोपाल बाते' करने लगे।
इसी समय चाकू. तानकर रमज़ानी शेर की तरह गरजता हुआ उसी ओर भपटा । लोगों ने राह में ही पकड़कर उसका चाकू छीन लिया । तुरन्त वह पु्लीस मे दे दिया गया ओर फिर डसी तरह बाज़ार की ख़रीद-फरोख्त का केश दोने लगे । इस घटना से कृष्णगोपाल कुछ प्रसन्न नहों हुए। हम जिसका शिकार करना चाहते हो वह अगर हम पर वार करने ञ्रावे तो उसकी ऐसी बदज़ाती ओर बे-अदबी नहीं सही जा सकती | जो हो, जैसा बदमाश था वैसी ही सज़ा उसे मिल्लेगी । इस घटना का हल सुनकर ऋष्णगोपाल के घर मे औरतों फे रोंगटे खडे हा आये। सबने कहा--बड़ा पाजी है।
उसे उचित दण्ड मिलने की बाकी। सान्तना प्राप्त हुईं।....... इधर उसी रात की विधवा अहमदी को पुत्रहीन, अन्नहीन घर मृत्यु से भी अधिक भयानक जान पड़ने छगा। इस बात का सब लोग भूल गये। सबने भाजन किया। खा-पीकर सब सो गये। केवल्ष बुढ़िया श्रहमदी के लिए प्रथ्वो पर को सब घटनाओं की अपेत्ता यद्दो घटना सबसे झुख्य हो उठी । तथापि इस धटना के विरुद्ध युद्ध करने के लिए प्रथ्वो भर पर ओर काई नहीं है। केवल दोप-हीन औपड़ी मे वही चुढ़िया गल्ञा-अज्ञा कर रही थी ।
इसी तरह तीन दिन बीत गये। कल डिपुटी मजिस्ट्र के इजलास में रमज़ानी का विचार होगा। कृष्णगोपाल का गवाही देने के लिए जाना होगा। अब से पहले जमींदार कभी गवाही के कटघरे में नहीं खड़े हुए। किन्तु इस मामले मे गवाही देने जाने में कृष्णगोपाल को कोई आपत्ति नहीं हे । दूसरे दिन ठोक समय पर धघडी लगाकर, पगड़ी पहनकर, पालकी पर चढ़कर कृष्णगोपाल कचहरी से गये। डिपुटी मजिस्ट्रट ने इज्त के साथ उनकी अपने बराबर कुर्सी दी | इजलास में आज बडी भीड़ थी। अदालत में इतना जमाव आज तक कभी नही हुआ ।
मुकदमा पेश होने मे कुछ भी देर न थी , इसी ससय कृष्णगोपाल के एक सिपाही ने आकर उन्तके कान में कुछ कहा । वे उसी समय “एक ज़रूरत है?” कहकर अदात्वत से उठकर बाहर आये | बाहर आकर देखा, कुछ दूर पर बर्गद के पेड़ के नीचे उनके काशीवासी बृद्ध पिता खड़े हुए हैं। नंगे पैर, राम- तामी दुपट्टा ओढ़े और हाथ में माला लिये जप रहे हैं ।
उनके दुबवल शरीर मे एक प्रकार की स्निग्ध ज्योति ऋत्षक रही: थी। मस्तक से एक प्रकार की प्रशान्त करुणा जगत् के ऊपर जेसे बरस रही थी । चपकन वगेरह पहने कृष्णगोपाल ने बड़े कष्ट से अपने पिता का प्रथाभ किया । सिर को पगड़ो गिरते-गिरते बचो, जेब से घड़ी बाहर निकल पड़ी ।
उन्हें ठीक, करके कृष्ण- गोपाल ने पिता से, पास ही एक वकील के तख्त पर चलकर, बैठने के लिए अनुरोध किया । रामगोपाल--नही, मुझे जे। कुछ कहता है. यहीं कहूँगा । कृष्णगोपाल के सिपाही कातूहली लेगें की भोड़ को दुर हटाने की चेष्टा करने लगे । | रामगोपाल ने कहा--रसज़ानी को छुड़ाने की चेष्टा होगी, और उसकी सम्पत्ति जे! तुमने ले ली है वह लौटा देनी होगी ।