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भाग 3

25 अगस्त 2022

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 एक हीरे का ठुकड़ा मिल्लने पर उसे  तरह-तरह से घुमा-फिराकर देखने का जी चाहता है | किन्तु यह एक नौजवान सुन्दरी स्री का मन था--सुन्दरलाल के लिए बुढ़ापे मे एक बहुत ही अपूर्व और स्पृहणीय पदार्थ था ! इसका कितनी ही तरह से छूकर, हाथ मे लेकर, भीतर से, सामने से, इधर-उधर से देखना पड़ता है!

कभी एक बार कान का करन फूल हिलाकर, कभी घूँघट खोलकर कर, कभी बिजली  की तरह चकित दृष्टि से  देख  कर और  कभी नक्षत्र की तरह तक तवाक कर नवीन-नवीन सीन्दर्यों की सीमा का आविष्कार करना पड़ता है । मैकमोरन  कम्पनी के दफुर दफ्तर के श्रीयुत बाबू सुन्दर- लाख की अब से पहले कभी ऐसी अभिज्ञता नहीं नसीब हुई थी । पहले जब व्याह  हुआ था तब वह बालक था। जब जवानी आई तब  उसके लिए चिरपरिचित थी।

पार्वती  को वह प्यार अवश्य करता था, किन्तु कभी उसकी मन में इस तरह क्रम-क्रम करके प्रेम का स्चेतन सब्म्चार सचेतन संचार  नहीं हुआ था । एकदम पक्के आम में जे पतग पेदा हुआ हो, जिसे कभी  रस की खेोज न करनी पड़ी हो, जिसने थोड़ा-धाड़ा करक रस का स्वाद न लिया दो, उसे एक बार ऋतु के विक- सित फूछ-बाग में छोड दे--देखा, अधखिले गुलाब के अ्रध- खुले मुख के पास चक्कर लगाने के लिए उसे कितना आग्रह होता है ! कुछ ही सुगन्ध ओर कुछ ही मधुर स्वाद  मिलता है, लेकिन उसी में मस्त रहता है ।

सुन्दर पहले कभी वि्लायती चीनी  खिलौने, कभी एसेन्स की शीशी, कभी कुछ मिठाई बाज़ार से लाकर गुप्त रूप से जानकी को देने लगा |... इस प्रकार दोनों में धनिष्ठता का  सूत्रपात हुआ । अन्त को एक दिन पार्वती ने घर के काम से फुसंत पाकर कमरे के द्वार पर आकर किवाड़े के छेद से देखा सुन्दर और जानकी बेठे हुए पचीसी खेल रहे हैं | बुढापे का यही खेल है ! सुन्दर सबेरे भोजन आदि करके दफ्तर गया था| लेकिन वास्तव मे दफ्तर न जाकर छिपकर घर में आ गया ! इस दगाबाज़ी की क्या  ज़रूरत थी | एकाएक जलती हुई सल्लाई से किसी ने माने पार्वती  की आँखें खोल दीं ।

उसके  तीव्र ताप से आँखे का पानी भाप बनकर सूख गया ! पार्वती  ने मन से कहा--मैंने ही आग्रह करके दूसरा ब्याह कराया, मेंने ही मिलन न करा दिया और फिर मुझसे ही धोखेबाज़ी ! जैसे  में ही दोनों  के सुख मे कॉटा हू  !  पार्वती  जानकी को घर का काम-काज सिखाती थी ।.एक दिन सुन्दर ने स्पष्ट शब्दों मे कहा--वह अभी बच्ची है। तुम उससे बहुत परिश्रम कराती हो, उसमे इतनी ताकत नहीं है । बहुत ही  तीव उत्तर का पार्वती   मुख के पास आकर लौटा ले गई। कुछ नही कहा | 

तब से पार्वती  जानकी को घर के किसी काम में हाथ लगाने नहीं देती थी । रसोई” आदि सब काम काम  ही करती थी। ऐसा! हुआ कि जानकी ने जगह से हिलना छोड़: दिया |   

पार्वती दासी की तरह उसकी सेवा करती थी और सुन्दर विदूषक की तरह उसका  मनोरंजन करता था। घर का काम- काज करने की, अपने को छोड़कर दूसरे को देखने की, शिक्षा ही उसे नहीं हुई । पार्वती जो दासी की तरह चुपचाप घर का काम करलोलोलल  ने की  उसका उसे' भारी गर्व  था। उसके भीतर हीनता या दीनता नहीं थी। उसने कहा --तुम' दोनों बच्चे मिलकर खेलो घर के काम की देख-रेख में करूँगी !

हाय, आज कहा वह बल है जिस बल के भरोसे पार्वती  ने सोचा था कि वह स्वामी के लिए सदा के वास्ते अपने प्रेस का आधा अधिकार सुपूवेक छोड़ देगी । एकाएक एक  दिन पूणिमा की रात्रि को जब जीवन-अवाह से ज्वार आता है तब मनुष्य उमड़ के मारे समझता है कि मेरी सीसा कहीं नहों है। तब वह जो बड़ी भारी प्रतिज्ञा कर बैठता है, जीवन- प्रवाह के सुधींग भाटे के समय उस प्रतिज्ञा की रक्षा करने में बड़ो कठिनाई का सामना करना पड़ता है। मनुष्य अकस्मात् ऐश्वये के दिन में एक बार कलम चलाकर जो दान-पत्र लिख देता है, चिरदारिद्रय के दिन कौड़ी-कौडी करके वह दान चुकाना पड़ता है। तब जान पड़ता है कि मनुष्य बहुत ही हीन है , बहुत ही दुबल है | उसकी क्षमता बहुत ही साधारण है। 

 बहुत दिना की बीमारी के बाद क्षोण, रक्तहीन, पीली पड़ गई पार्वत्ती उस दिन शुक्ल  पक्ष की द्वितीया के चन्द्रमा के समान

एक शीशे रेखामात्र थी--संसार में बहुत ही हल्की होकर उड़ी -उड़ी फिर रही थो। उस समय उसे जान पड़ा था कि कुछ भी न हो ते मेरा काम चल् सकता है। किन्तु धीरे-  धीरे शरीर पुष्ट और सबल हो आया, रक्त का तेज बढ़ने लगा। उस समय पार्वत्ती के मन मे कुछ प्रवृत्तियो ने आकर कहा--तुमने तो  दान-पत्र लिख दिया है, मगर हम अपना दावा किसी तरह नहीं छोड सकती । पार्वत्ती  ने   जिस  दिन साफ तौर से अपनी अवस्था को .  समझ  लिया उस दिन अपना कमरा सुन्दर और जानकी के लिए ख़ाली करके आप दूसरी कोठरी मे अकेली जाकर सो रही ।  

तेरह-चौदह वर्ष की अवस्था मे पहले पहल जिस पलंग  पर उसने पेर रक्खा था, आज  सत्ताईंस वर्ष बाद उस शब्या  को त्याग कर दिया। दीपक बुकर वह सधवी  रमणी नवीन  वेघव्यशय्या पर लेट रही । उस समय गल्ली के मोड़ पर एक शाकीन नौजवान बिहाग की एक चीज़ गा रहा  था, एक आदमी बाय? बजा रहा था और  सुननेवाले इष्टमित्र हा हा हा हा करके हँसते और आनन्द प्रकट कर रहे थे । वह गाना-बजाना उस्र चॉदनी रात से पास के कमरे से लेटे हुए सुन्दरलाल को बहुत    अच्छा जान पड रहा था। उस समय चालिका जानकी नींद के मारे झूम रही थी  

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रचनाएँ
गल्प गुच्छ
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कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प गुच्छ साल भर से काफ़ी चर्चा में है। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है। पूरी कथा पाठक में इतनी बेचैनी पैदा कर देती है कि वह आतंकित कर देने वाली उन परिस्थितियों और किरदारों के बारे में सोचे जो हमारे आस पास निर्मित हो चुकी हैं और उनका दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। कई बार कोई क़िताब, कोई रचना आप पढ़ना तो चाहते हैं, मगर अन्य कारणों से वह टलता रहता है। आपके चाहने के बावजूद वह छूटती रहती है। आप पछताते रहते हैं, मगर वह हाथ नहीं आती। कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प ऐसी ही पुस्तक है। पिछले सात-आठ महीनों से यह उपन्यास मेरा पीछा कर रहा था और मैं इसके पीछे लगा हुआ था, मगर पढ़ा जा सका अब। पढ़ने के बाद लगा कि अगर न पढ़ता तो कुछ छूट जाता। साल भर से यह उपन्यास काफ़ी चर्चा में है। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा नवलेखन का पुरस्कार मिलने की वज़ह से भी यह चर्चित रहा, इसकी विषयवस्तु, भाषा और उसकी शैली। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है।
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मुर्दे की मौत भाग 1

24 अगस्त 2022
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रानीहाट के जमींदार शारदाशंकर  बाबू के घर की विधवा वहू के मायके से कोई नही  था । एक-एक करके सभी मर गये। सुसराल  मे भी ठीक अपना कहलाने लायक कोई ल था। न पति था और-न पुत्र ही  था। उसके जेठ शारदाशह  का एक

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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कादम्बिनी के कपड़े मे कीचड भरा हुआ था। अद- भुत भाव के आवेश श्रोर रात के जागने से वह पागल सी हे। रही थी । उसका चेहरा देखकर लोग सचमुच ही डर सकते थे।  शायद गॉव के लडके उसे देखकर पागतव समझकर दूर से ढेले

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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इसी कारण कभी-कभी दोपहर की सूनी कंठरी में पड़ें- पड़ वह चिल्ला उठती थी  और  शाम को दीपक के प्रकाश में अपनी परछाही  देखकर उसकी रोगटे खड़े हो आते थे ।  उसके इस भय का देखकर घर के लोगों के मन मे भी एक प्र

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भाग 4

24 अगस्त 2022
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असल बात उसकी सममझ्त मे नहों आई | वह जवाब भी नहो दे सकी ओर दुबारा कुछ प्रश्न भी नहों कर सकी । मुँह फुला- कर गम्भीर भाव से वहाँ से चली गई |  रात के दस बजे होगे जब  श्री पति रानीहाट से लौट आये । उस समय

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भाग 5

24 अगस्त 2022
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कमरे भर में अन्धकार'छा गया। कादम्बिनी एकंदम कमरे की भीतर आकर खडो हा गई ।  उस समय ढाई पहर के लगभग राव बीती होगी । बाहर'जोर से पानी पढ़ रहा था । कादम्बिनी मे कहा--बहन, में तुम्हारी सखी कादम्बिनी ही हूँ

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सुधा भाग 1

24 अगस्त 2022
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कान्तिचन्द्र की अवस्था थोडी है, तथापि ज्री के मरने के उपरान्त द्वितीय स्त्री का अनुसन्धान न करके पशु-पक्तियों के शिकार से ही उन्होंने  अपना मन लगाया | उनका शरीर लम्बा, पतला, हृढ़ ओर हल्का था। दृष्टि त

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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 दूर जाकर पता लगाने की सामथ्य नहीं । घर मे भगवान्‌ की मुर्ति है, उसे छीड़कर कहीं जाना नहीं हो सकता । कान्तिचन्द्र ने कहा--नाव पर आप मुझसे अगर मिल्ल सके' ते में एक कुल्लीन अच्छा छडका बतला सकता हैँ । 

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समस्या-पूर्ण भाग 1

24 अगस्त 2022
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 देवपुर के ज़मीदार रामगोपाल अपने बड़े लङके को ज़मीदारी और घर-ग्रहस्थी सौपकर काशीवास' करने चले गये | देश के सब अनाथ दरिद्र लोग उनके लिए हाहाकार करके रोने लगे । सब यही कहने लगे कि ऐसी उदारता और  धमेनिष्

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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भेया, आल्ला  तुम्हारा भला करे' । बेटा, रमजानी का तुम बिगा- डूना नहीं। में उसे तुमका सॉंपती हूँ। उसे तुम अपना छोटा भाई समझकर उसके खाने-पीने का ज़रिया वह ज़मीन दे दे।। तुम्हारे वेशुमार दे।लत है। जितनी त

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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कष्णगोपाल् ने विस्मित होकर पूछा--इसी लिए आप काशी से इतनी दुर आये हैं ? रमज़ानी पर आपका इतना अनुग्रह क्यो है ? रामगोपाल ने कदा--यह सुनकर तुम क्‍या करोगे ? कष्णगोपाल् ने नहीं माना और कहा--अयोग्यता का व

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प्रायचित भाग 1

25 अगस्त 2022
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स्वर्ग  और  मनुष्यलोक के बीच में एक अनिर्देश्य अरा जक स्थान है, जहाँ राजा त्रिशंकु लटक रहे हैं और जह आकाशकुसुमे के ढेर पैदा  होते हैं। उस वायुदुर्गवेष्टिव महा देश का नाम है “होता तो है| सकता? । जो लोग

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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किन्तु यह बात भी, उसके सन मे आई कि उसके खामी सुसरात् में रहने के कारण आदर की अपने हाथो गँवा रहे हैं | उस् दिन से नित्य वह खामी से कहने लगी कि तुम अपने घर मुझे ले चले, अब में यहाँ नहीं रहेंगी । अनाथब

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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किन्तु स्त्री  किसी तरह इस बात पर राजी  नही  हुई | उसन अपनी राय यह जाहिर की कि बड़े भाई की रोटी और  आवाज  की गाली पर छेप्टे भाई का पारिवारिक अधिकार है, किन्तु सुसरात्त में जाकर रहना बड़ी ही बेज्जती की

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भाग 4

25 अगस्त 2022
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विन्ध्यवासिनी  ने कहा--आप वि्लायत जाने मे .रोक-टाक न करे इसलिए नही मांगे | राजकुमार बाबू  बहुत ही नाराज़ हुए। माता रोने लगी ओर बेटी भी रोने लगी । कलकत्ते मे चारों आर विचित्र स्वर से उत्सव के बाजे बज र

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भाग 5

25 अगस्त 2022
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अनाथबन्धु उत्साह  के साथ इस बात पर राज़ी हो गये । उन्होंने मन मे सोचा, जे बार-्लाइब्रेरियों मे पड़े रहनेवाले स्वदेशी बेरिस्टर उनसे डाह करते हैं और उनकी असामान्य प्रतिभा के प्रति यथरेष्ट सम्मान नहीं  द

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सुभा भाग 1

25 अगस्त 2022
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 लड़की का नाम जब सुभाषिणी रक्खा गया था तब कीन जानता था कि वह गूगी हेगी ? उसकी दो  बडी बहनें का नाम सुकेशिनी ओर सुहासिनी रखा गया था | इसी से उसी अनुप्रास पर पिता ने छोटी लडकी का नाम सुभाषिणी रखा  | इस

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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 धूप  से प्रकाशित महृत्‌ आकाश के नीचे केवल गूँगी प्रकृति और गूंगी लड़की सुभा दोनों आमने-सामने चुप- चाप बैठे-बेठे एक दूसरे को निहारा करती थीं । प्रकृति फैली हुई धूप में, ओर सुभा छोटे-छोटे पेड़ों की छाह

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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मान लो, सुभा अगर जल्लकुमारी होती; धीरे-धीरे जल से ऊपर उठकर एक नागमशि घाट पर रण जाती , प्रताप तुच्छ मछली पकडने के काये का छोड़कर उस मणि का लेकर जल मे गोता क्गाता और पाताक्न मे जाकर देखता, चॉदी के महल म

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विचारक भाग 1

25 अगस्त 2022
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अनेक अवस्थाएँ बदलने के उपरांत अन्त का गतयौबना चुन्नो ते जिस पुरुष का आश्रय श्रदण किया था वह भी जब उसे फटे कपड़े की तरह छाड़ गया तब मुट्ठी भर अन्न के लिए दूसरे आश्रय के। खे।जने की चेष्टा करने से उसे अत

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भाग 2

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समुद्र के भीतर से, वृत्तपंक्ति से श्यामल तट-भूमि जैसे रम-णीय स्वप्न के समान, चित्र के समान जान पड़ती है वैसे किनारे पर पहुँचने से नहीं । वेघव्य के घेरे की आड़ से चमेली संसार से जितना दूर हो गई थी उसी

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भाग 3

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निद्राहदीन चमेली  की रात कहाँ जाकर समाप्त होगी | उस्र निरानन्द प्रात:काल मे जब चमेली के घर सूथ्ये देव का प्रकाश प्रवेश करेगा तब वहाँ सहसा केसी लज्ना प्रकाशित हो पड़ेगी-- कैसी लाउछना, कैसा हाहाकार जग उ

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मध्यवर्तिनी भाग 1

25 अगस्त 2022
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सुन्दर निहायत मामूली ढंग का था। उसमें काव्यरस, की गन्ध तक न थी। उसके मन में कभी यह बात नहीं आई कि जीवन में उक्त रस की कुछ आवश्यकता होती है। जैसे  परिचित पुराने जूते के भीतर पेर बिलकुल् निश्चिन्तः भाव

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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के ऊपर आनन्दमयी प्रकृति की हर एक उगली जेसे फिरने लगो और हृदय के भीतर जे। एक प्रकार का सद्भीत सुन पड़ने लगा उसके ठीक भाव को वह अच्छी तरह समझ नहीं सकती थी । ऐसे समय जब उसका खामी पास बेठकर पूछता था कि क

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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 एक हीरे का ठुकड़ा मिल्लने पर उसे  तरह-तरह से घुमा-फिराकर देखने का जी चाहता है | किन्तु यह एक नौजवान सुन्दरी स्री का मन था--सुन्दरलाल के लिए बुढ़ापे मे एक बहुत ही अपूर्व और स्पृहणीय पदार्थ था ! इसका क

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भाग 4

26 अगस्त 2022
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और आनन्द-गद्द सुन्दर वार-वार प्यारी, प्यारी! कहकर उसे सचेत करने की चेष्टा कर रद्दा था | सुन्दर ने इसी बीच में बड्धिम बाबू का “चन्द्रशेखर  उप- न्यास पढ़ डाला था और वह देो-एक प्राधुनिक कवियों के खड्भार-

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भाग 5

26 अगस्त 2022
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रक्त में मानों फनकार मारता रहा। पार्वती  ने अपने मन मे कहा-- और किस बात को लेकर तेरी और मेरी तुलना होगी । किन्तु एक समय मेरी  भी यह अवस्था थी,  मैं भी इसी तरह सिर से पैर तक जवानी के रोम मे भरी हुई थी

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भाग 6

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जानकी के असतोष और असुख की सीमा नहीं रही | चह किसी तरह यह समझना  नहीं चाइती कि उसके स्वामी मे उसे सन्तुष्ट रखने की क्षमता नही है । क्षमता नहों थी ते व्याह् क्यों किया था | ऊपर के खण्ड मे कीवल दो  कमरे

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अत्याचार

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जमीदार के नायव जानकीनाथ के घर में प्यारी नास की एक महराजिन रसोई बनाने के लिए नौकर कुई। उसकी अवस्था कम थी और चरित्र अच्छा था। दूर की रहनेवाली वह ब्राह्मणों विपत्ति के फेर से पड़कर जानकीनाथ की घर आकर नो

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चुधित पाषाण भाग 1

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मैं  और  मेरे एक आत्मीय एक दिन रेल पर बेठे हुए कल्कत्ते जा रहे थे। इसी बीच से रेलगाड़ी पर एक आदमी से मुलाकात  हो गई। उसका पहनावा मुसल्लमानों का सा था | उसकी बाते सुनकर आश्चये का ठिकाना नहीं रहता था। प

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किन्तु उसी घड़ी मुझे स्मरण हो आया कि में सचमुच अमुक का ज्ये्ठ पुत्र अमुक हूँ । यह भी मैंने अपने मन में सोच लिया कि इस बात की तो  हमारे महाकबि और  कवि वर ही कद्द सकते हैं कि जगत् के भ्रीतर अथवा बाहर कह

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भाग 3

26 अगस्त 2022
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इस खण्डस्वप्न के अवत्त के भीतर---इसी हिना की. महक सितार के शब्द ओर सुगन्धित जल-कणो से मिल्ले हुए पवन के भोकी के वीच---एक नायिका को दम-दम भर पर बिजली की चसक के समान देख पावा था। उसका जाफू्रानी रद्ग का

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खजूर: के पेड़े की छाया से, किस गृहहीन अरब देश की स्मेंणी-के-मर्भ से उत्पन्न हुई थों ! तुमकी कान लुटेरा, वस्त्र  से पुष्पक की तरह, माता की गोद से अलग करके बिजली  को तरह भागने वाले घोड़े पर चढ़ाकर मरुसू

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भाग 5

26 अगस्त 2022
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उसी वर्षों मे, पगल्ले के पास दौड़ा गया ओर उससे पूंछा--मेहर अली, क्या झूठ ठ है वह मेरी बात का कुछ उत्तर न देकर मुझे आगे से हटा- कर--अजगर के मुह के पास साह के आवेश से घूम रहे पत्तों की तरह--चिल्लाता हुआ

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