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प्रायचित भाग 1

25 अगस्त 2022

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स्वर्ग  और  मनुष्यलोक के बीच में एक अनिर्देश्य अरा जक स्थान है, जहाँ राजा त्रिशंकु लटक रहे हैं और जह आकाशकुसुमे के ढेर पैदा  होते हैं। उस वायुदुर्गवेष्टिव महा देश का नाम है “होता तो है| सकता? । जो लोग महत्‌ कार्य करके अमरता प्राप्त कर गये हैं थे धन्‍य हो गये हैं। जो लोग  साधारण क्षमता लेकर साधारण मनुष्यों मे साधारण भाव से संसार के नित्य प्रति के कत्तव्यों के साधन में सहायता करते हैं वे भी धन्य हैं। किन्तु जे लोग भाग्य के भ्रम से इन दोनों अवस्थाओं के बीच में पड़े हुए हैं, उनके लिए और कोई उपाय नही है। वे काई एक बात होने से कुछ हो सकते थे, किन्तु उसी कारण से उन लोगों के लिए कुछ होना सबकी अपेछा असम्भव हैं | 

हमारे अनाथवन्घु बाबू वेसे ही बीच में लटके हुए विधाता से विडम्बना को प्राप्त युवक हैं। सबका यही विश्वास है कि वे इच्छा करते ते ! सभी बातों में कृतकाये हे! सकते । किन्तु किसी समय उन्होंने इच्छा भी नहीं की और किसी काम में कृतकाये भी नहीं हे! सके । इसी कारण उनके प्रति सबका विश्वास अटल बना रह गया। सबने -कहा--वे परीक्षा मे औवल नम्बर पावेगे, किन्तु उन्होने परीक्षा ही नहीं दी। सबका विश्वास है कि वे नौकरी  करते तो हर एक डिपाट मे अनायास ही अत्यन्त स्वच्छ  स्थान प्राप्त कर सकते, किन्तु उन्हेने कोई नौकरी ही नही की। साधारण लोगें फे प्रति उनका विशेष घृणा थी; क्योंकि वे अत्यन्त सामान्य हैं।

असाधारण लोगों के प्रति उन्हे कुछ भी श्रद्धा न थी, क्योंकि अगर वे चाहते ते उन्तकी भी अपेक्षा असाधारण हो सकते थे । अनाथबन्धु की ख्याति-प्रतिपत्ति-सुख-सम्पत्ति-सेोभाग्य सब देश-फाल से परे असम्भवता के भाण्डार मे निहित था। वास्तव मे विधाता ने उनका एक धनी ससुर श्री एक सुशील स्त्रो दी थी। स्त्री का नाम था विन्ध्यवासिनी । 

स्त्री का नाम अनाथबन्धु का पसन्द न था और स्त्री  को भी वे रूप ओर गुण मे अपने अयोग्य समझते थे । किन्तु स्‍त्री के मन मे स्वामी  के सोभाग्य-गर्वे की सीमा नहीं थी। सब स्त्रियों के सब स्वामियो की अपेक्षा सब बातों में विन्ध्य- वासिनी के स्वामी श्रेष्ठ हैं, इस बारे से विन्ध्यवासिनी को! कुछ सन्देह न था। उसके स्वामी का भी कुछ सन्देह न था | साथ ही सर्वसाधारण का विश्वास भी इन खासी और  घारणा के अनुकूल था । द विन्ध्यवासिनी सदा इसके लिए शड्डित रहती थी कि सखामी के गौरव का गये कही रती भर भी खण्डित न हो | वह अगर अपने हृदय के आकाश-सेदी अटल भक्ति-पर्वत के सामान करें  |  

उसे स्कालरशिप भी मिला है। सुनकर अक्वारण ही विन्ध्य- वासिनी का यह जान पड़ा कि कमला का यह भ्रानन्द विशुद्ध आनन्द नहों है--इसक भीतर उसके रवामी के प्रति एक प्रकार का गूढ व्यंग्य भी है। इसी कारण सखी के आनन्द में उल्लास न प्रकट करके बल्कि ज़बदस्तों गले पडऋर कुछ रूखे सर मे उसने सुना दिया कि एफ0  ए0  की परीक्षा  कोई परोक्षा ही नही। यहॉ तक कि विज्ञायत के किसी कालेज में बी० ए० के नीचे परोक्षा ही नहीं है। यह कहने की कोई आवश्यकता नहों कि इस ख़बर और युक्ति का उप्तने खामों के मुख से ही सुना था | 

सुसंतवाद सुनाने आकर कमला सहसा अपनी परमप्यारी  सखी की ओर से ऐसा आधात पाकर पहले कुछ विस्मित चुई। " किन्तु वह भी तो स्त्री ही थी। इसी कारण दिनभर में उसने विन्ष्यवासिनी के मन का भाव समझ लिया । भाई के अप- मान से उसी दम उसकी ज़बान में भी तीव्र  विष सच्चारित हो गया । उसने -कहा -बहन, मैं  तो विलायत तो गई नही, और विलायत से आने्वाले स्वामी से मेरा व्याह भी नहीं हुआ | ये सब बातें में केसे जान सकती हूँ । में मूर्ख औरत ठहरी । साधारणत: मेरी समभ्म मे यही आता है कि बड़ाली के लड़के का कालेज मे एफ० ए० की परीक्षा देनी होती है और वह भी सब नहों दे सकते अत्यन्त निरीह और बन्घुता के भाव से ये बाते कहकर कमला  चली गई। 

कल्लह करने की होने के कारण विन्ध्यवासिनी सुनकर चुप हो ! रही और कमरे के भ्रीतर जाकर चुपचाप रोने लगी | थोड़े ही समय के बाद और एक घटना हुई। एक दूर रहनेवाला घनी परिवार कुछ दिने के जिस  कलकत्ते मे आकर विन्ध्यवासिनी के पिता के यहाँ ठहरा | इस उपल्ष में विन्ध्य- वासिनी के पिता राजकुमार बाबू के यहाँ बडी धूम पड़ गई | 

अनाथबन्धु बाहर के जिस बड़े बैठख़ ने पर दखल जमाये हुए थे उसे अभ्यागतों के लिए खाली कर दूसरे कमरे मे कुछ दिलों के लिए रहने को उनसे अनुराध किया गया | 

इस घटना से अनाथबन्धु कुढ़ गये। पहले स्लो के पास जाकर उसके पिता की निन्दा करके, उसे रुज्लाकर, उन्होंने ससुर से बदला चुकाया | उसके बाद भोजन न करने आदि अन्यान्य उपायों से उन्होंने अपने मन का भाव प्रकट करने की चेष्टा की |यह देखकर विन्ध्यवासिनी बहुत ही ल्ज्जित हुई। उसके मन मे जो सहज आत्ममय;दा का बोध था उसी से उसने यह समझा कि ऐसी अवस्था मे सबके आगे अपने कुहने का भाव प्रकट करने से बढ़कर लज्ञा और अपने भ्रपमान की बात और नहीं है। हाथ जोड़कर, पेरों पड़कर, रो-धोकर, बड़े कष्ट से उसने अपने स्वामो का शान्त किया | विन्ध्यवासिनी विवेक से ख़ाल्ली न थी। इसी कारण इसके लिए उसने अपने पिता-माता को देषो नहीं ठहराया | उसने सोचा, यह घटना सहज और स्वाभाविक है।

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रचनाएँ
गल्प गुच्छ
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कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प गुच्छ साल भर से काफ़ी चर्चा में है। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है। पूरी कथा पाठक में इतनी बेचैनी पैदा कर देती है कि वह आतंकित कर देने वाली उन परिस्थितियों और किरदारों के बारे में सोचे जो हमारे आस पास निर्मित हो चुकी हैं और उनका दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। कई बार कोई क़िताब, कोई रचना आप पढ़ना तो चाहते हैं, मगर अन्य कारणों से वह टलता रहता है। आपके चाहने के बावजूद वह छूटती रहती है। आप पछताते रहते हैं, मगर वह हाथ नहीं आती। कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प ऐसी ही पुस्तक है। पिछले सात-आठ महीनों से यह उपन्यास मेरा पीछा कर रहा था और मैं इसके पीछे लगा हुआ था, मगर पढ़ा जा सका अब। पढ़ने के बाद लगा कि अगर न पढ़ता तो कुछ छूट जाता। साल भर से यह उपन्यास काफ़ी चर्चा में है। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा नवलेखन का पुरस्कार मिलने की वज़ह से भी यह चर्चित रहा, इसकी विषयवस्तु, भाषा और उसकी शैली। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है।
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मुर्दे की मौत भाग 1

24 अगस्त 2022
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रानीहाट के जमींदार शारदाशंकर  बाबू के घर की विधवा वहू के मायके से कोई नही  था । एक-एक करके सभी मर गये। सुसराल  मे भी ठीक अपना कहलाने लायक कोई ल था। न पति था और-न पुत्र ही  था। उसके जेठ शारदाशह  का एक

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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कादम्बिनी के कपड़े मे कीचड भरा हुआ था। अद- भुत भाव के आवेश श्रोर रात के जागने से वह पागल सी हे। रही थी । उसका चेहरा देखकर लोग सचमुच ही डर सकते थे।  शायद गॉव के लडके उसे देखकर पागतव समझकर दूर से ढेले

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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इसी कारण कभी-कभी दोपहर की सूनी कंठरी में पड़ें- पड़ वह चिल्ला उठती थी  और  शाम को दीपक के प्रकाश में अपनी परछाही  देखकर उसकी रोगटे खड़े हो आते थे ।  उसके इस भय का देखकर घर के लोगों के मन मे भी एक प्र

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भाग 4

24 अगस्त 2022
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असल बात उसकी सममझ्त मे नहों आई | वह जवाब भी नहो दे सकी ओर दुबारा कुछ प्रश्न भी नहों कर सकी । मुँह फुला- कर गम्भीर भाव से वहाँ से चली गई |  रात के दस बजे होगे जब  श्री पति रानीहाट से लौट आये । उस समय

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भाग 5

24 अगस्त 2022
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कमरे भर में अन्धकार'छा गया। कादम्बिनी एकंदम कमरे की भीतर आकर खडो हा गई ।  उस समय ढाई पहर के लगभग राव बीती होगी । बाहर'जोर से पानी पढ़ रहा था । कादम्बिनी मे कहा--बहन, में तुम्हारी सखी कादम्बिनी ही हूँ

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सुधा भाग 1

24 अगस्त 2022
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कान्तिचन्द्र की अवस्था थोडी है, तथापि ज्री के मरने के उपरान्त द्वितीय स्त्री का अनुसन्धान न करके पशु-पक्तियों के शिकार से ही उन्होंने  अपना मन लगाया | उनका शरीर लम्बा, पतला, हृढ़ ओर हल्का था। दृष्टि त

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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 दूर जाकर पता लगाने की सामथ्य नहीं । घर मे भगवान्‌ की मुर्ति है, उसे छीड़कर कहीं जाना नहीं हो सकता । कान्तिचन्द्र ने कहा--नाव पर आप मुझसे अगर मिल्ल सके' ते में एक कुल्लीन अच्छा छडका बतला सकता हैँ । 

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समस्या-पूर्ण भाग 1

24 अगस्त 2022
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 देवपुर के ज़मीदार रामगोपाल अपने बड़े लङके को ज़मीदारी और घर-ग्रहस्थी सौपकर काशीवास' करने चले गये | देश के सब अनाथ दरिद्र लोग उनके लिए हाहाकार करके रोने लगे । सब यही कहने लगे कि ऐसी उदारता और  धमेनिष्

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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भेया, आल्ला  तुम्हारा भला करे' । बेटा, रमजानी का तुम बिगा- डूना नहीं। में उसे तुमका सॉंपती हूँ। उसे तुम अपना छोटा भाई समझकर उसके खाने-पीने का ज़रिया वह ज़मीन दे दे।। तुम्हारे वेशुमार दे।लत है। जितनी त

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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कष्णगोपाल् ने विस्मित होकर पूछा--इसी लिए आप काशी से इतनी दुर आये हैं ? रमज़ानी पर आपका इतना अनुग्रह क्यो है ? रामगोपाल ने कदा--यह सुनकर तुम क्‍या करोगे ? कष्णगोपाल् ने नहीं माना और कहा--अयोग्यता का व

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प्रायचित भाग 1

25 अगस्त 2022
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स्वर्ग  और  मनुष्यलोक के बीच में एक अनिर्देश्य अरा जक स्थान है, जहाँ राजा त्रिशंकु लटक रहे हैं और जह आकाशकुसुमे के ढेर पैदा  होते हैं। उस वायुदुर्गवेष्टिव महा देश का नाम है “होता तो है| सकता? । जो लोग

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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किन्तु यह बात भी, उसके सन मे आई कि उसके खामी सुसरात् में रहने के कारण आदर की अपने हाथो गँवा रहे हैं | उस् दिन से नित्य वह खामी से कहने लगी कि तुम अपने घर मुझे ले चले, अब में यहाँ नहीं रहेंगी । अनाथब

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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किन्तु स्त्री  किसी तरह इस बात पर राजी  नही  हुई | उसन अपनी राय यह जाहिर की कि बड़े भाई की रोटी और  आवाज  की गाली पर छेप्टे भाई का पारिवारिक अधिकार है, किन्तु सुसरात्त में जाकर रहना बड़ी ही बेज्जती की

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भाग 4

25 अगस्त 2022
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विन्ध्यवासिनी  ने कहा--आप वि्लायत जाने मे .रोक-टाक न करे इसलिए नही मांगे | राजकुमार बाबू  बहुत ही नाराज़ हुए। माता रोने लगी ओर बेटी भी रोने लगी । कलकत्ते मे चारों आर विचित्र स्वर से उत्सव के बाजे बज र

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भाग 5

25 अगस्त 2022
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अनाथबन्धु उत्साह  के साथ इस बात पर राज़ी हो गये । उन्होंने मन मे सोचा, जे बार-्लाइब्रेरियों मे पड़े रहनेवाले स्वदेशी बेरिस्टर उनसे डाह करते हैं और उनकी असामान्य प्रतिभा के प्रति यथरेष्ट सम्मान नहीं  द

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सुभा भाग 1

25 अगस्त 2022
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 लड़की का नाम जब सुभाषिणी रक्खा गया था तब कीन जानता था कि वह गूगी हेगी ? उसकी दो  बडी बहनें का नाम सुकेशिनी ओर सुहासिनी रखा गया था | इसी से उसी अनुप्रास पर पिता ने छोटी लडकी का नाम सुभाषिणी रखा  | इस

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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 धूप  से प्रकाशित महृत्‌ आकाश के नीचे केवल गूँगी प्रकृति और गूंगी लड़की सुभा दोनों आमने-सामने चुप- चाप बैठे-बेठे एक दूसरे को निहारा करती थीं । प्रकृति फैली हुई धूप में, ओर सुभा छोटे-छोटे पेड़ों की छाह

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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मान लो, सुभा अगर जल्लकुमारी होती; धीरे-धीरे जल से ऊपर उठकर एक नागमशि घाट पर रण जाती , प्रताप तुच्छ मछली पकडने के काये का छोड़कर उस मणि का लेकर जल मे गोता क्गाता और पाताक्न मे जाकर देखता, चॉदी के महल म

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विचारक भाग 1

25 अगस्त 2022
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अनेक अवस्थाएँ बदलने के उपरांत अन्त का गतयौबना चुन्नो ते जिस पुरुष का आश्रय श्रदण किया था वह भी जब उसे फटे कपड़े की तरह छाड़ गया तब मुट्ठी भर अन्न के लिए दूसरे आश्रय के। खे।जने की चेष्टा करने से उसे अत

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भाग 2

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समुद्र के भीतर से, वृत्तपंक्ति से श्यामल तट-भूमि जैसे रम-णीय स्वप्न के समान, चित्र के समान जान पड़ती है वैसे किनारे पर पहुँचने से नहीं । वेघव्य के घेरे की आड़ से चमेली संसार से जितना दूर हो गई थी उसी

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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निद्राहदीन चमेली  की रात कहाँ जाकर समाप्त होगी | उस्र निरानन्द प्रात:काल मे जब चमेली के घर सूथ्ये देव का प्रकाश प्रवेश करेगा तब वहाँ सहसा केसी लज्ना प्रकाशित हो पड़ेगी-- कैसी लाउछना, कैसा हाहाकार जग उ

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मध्यवर्तिनी भाग 1

25 अगस्त 2022
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सुन्दर निहायत मामूली ढंग का था। उसमें काव्यरस, की गन्ध तक न थी। उसके मन में कभी यह बात नहीं आई कि जीवन में उक्त रस की कुछ आवश्यकता होती है। जैसे  परिचित पुराने जूते के भीतर पेर बिलकुल् निश्चिन्तः भाव

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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के ऊपर आनन्दमयी प्रकृति की हर एक उगली जेसे फिरने लगो और हृदय के भीतर जे। एक प्रकार का सद्भीत सुन पड़ने लगा उसके ठीक भाव को वह अच्छी तरह समझ नहीं सकती थी । ऐसे समय जब उसका खामी पास बेठकर पूछता था कि क

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भाग 3

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 एक हीरे का ठुकड़ा मिल्लने पर उसे  तरह-तरह से घुमा-फिराकर देखने का जी चाहता है | किन्तु यह एक नौजवान सुन्दरी स्री का मन था--सुन्दरलाल के लिए बुढ़ापे मे एक बहुत ही अपूर्व और स्पृहणीय पदार्थ था ! इसका क

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भाग 4

26 अगस्त 2022
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और आनन्द-गद्द सुन्दर वार-वार प्यारी, प्यारी! कहकर उसे सचेत करने की चेष्टा कर रद्दा था | सुन्दर ने इसी बीच में बड्धिम बाबू का “चन्द्रशेखर  उप- न्यास पढ़ डाला था और वह देो-एक प्राधुनिक कवियों के खड्भार-

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भाग 5

26 अगस्त 2022
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रक्त में मानों फनकार मारता रहा। पार्वती  ने अपने मन मे कहा-- और किस बात को लेकर तेरी और मेरी तुलना होगी । किन्तु एक समय मेरी  भी यह अवस्था थी,  मैं भी इसी तरह सिर से पैर तक जवानी के रोम मे भरी हुई थी

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भाग 6

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जानकी के असतोष और असुख की सीमा नहीं रही | चह किसी तरह यह समझना  नहीं चाइती कि उसके स्वामी मे उसे सन्तुष्ट रखने की क्षमता नही है । क्षमता नहों थी ते व्याह् क्यों किया था | ऊपर के खण्ड मे कीवल दो  कमरे

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अत्याचार

26 अगस्त 2022
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जमीदार के नायव जानकीनाथ के घर में प्यारी नास की एक महराजिन रसोई बनाने के लिए नौकर कुई। उसकी अवस्था कम थी और चरित्र अच्छा था। दूर की रहनेवाली वह ब्राह्मणों विपत्ति के फेर से पड़कर जानकीनाथ की घर आकर नो

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चुधित पाषाण भाग 1

26 अगस्त 2022
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मैं  और  मेरे एक आत्मीय एक दिन रेल पर बेठे हुए कल्कत्ते जा रहे थे। इसी बीच से रेलगाड़ी पर एक आदमी से मुलाकात  हो गई। उसका पहनावा मुसल्लमानों का सा था | उसकी बाते सुनकर आश्चये का ठिकाना नहीं रहता था। प

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किन्तु उसी घड़ी मुझे स्मरण हो आया कि में सचमुच अमुक का ज्ये्ठ पुत्र अमुक हूँ । यह भी मैंने अपने मन में सोच लिया कि इस बात की तो  हमारे महाकबि और  कवि वर ही कद्द सकते हैं कि जगत् के भ्रीतर अथवा बाहर कह

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भाग 3

26 अगस्त 2022
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इस खण्डस्वप्न के अवत्त के भीतर---इसी हिना की. महक सितार के शब्द ओर सुगन्धित जल-कणो से मिल्ले हुए पवन के भोकी के वीच---एक नायिका को दम-दम भर पर बिजली की चसक के समान देख पावा था। उसका जाफू्रानी रद्ग का

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भाग 4

26 अगस्त 2022
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खजूर: के पेड़े की छाया से, किस गृहहीन अरब देश की स्मेंणी-के-मर्भ से उत्पन्न हुई थों ! तुमकी कान लुटेरा, वस्त्र  से पुष्पक की तरह, माता की गोद से अलग करके बिजली  को तरह भागने वाले घोड़े पर चढ़ाकर मरुसू

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भाग 5

26 अगस्त 2022
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उसी वर्षों मे, पगल्ले के पास दौड़ा गया ओर उससे पूंछा--मेहर अली, क्या झूठ ठ है वह मेरी बात का कुछ उत्तर न देकर मुझे आगे से हटा- कर--अजगर के मुह के पास साह के आवेश से घूम रहे पत्तों की तरह--चिल्लाता हुआ

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