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भाग 3

25 अगस्त 2022

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मान लो, सुभा अगर जल्लकुमारी होती; धीरे-धीरे जल से ऊपर उठकर एक नागमशि घाट पर रण जाती , प्रताप तुच्छ मछली पकडने के काये का छोड़कर उस मणि का लेकर जल मे गोता क्गाता और पाताक्न मे जाकर देखता, चॉदी के महल मे सोने के पर्लेंग पर--कौन बैठा है ?--वही वाणी- कण्ठ की गूँगी लड़की सुभा।! सुभा उसी मणिदीप्त गम्भीर निःस्तव्ध पाताज्पुरी की एकमात्र राजकन्या है। यह क्‍या हो। नही सकता था, यद्द क्‍या ऐसी ही असस्मव बात है! असल में असम्भव कुछ भी नहीं है। किच्तु तो भी सुभा प्रजाशून्य पाताल के राजवंश मे उत्पन्न न होकर वाणीकण्ठ के घर से पेदा हुई है और गोसाई' के लडके प्रताप का किसी तरह आश्चये मे सहीं डाल सकती | 

 सुभा की अवस्था धीरे-घीरे बढ़ती जाती थी। क्रमश: बह मानो अपनी अवस्था के परिवततत का अनुभव करने लगी । जेसे किसी पृणिमा का किसी समुद्र से एक्ष ज्वार का प्रवाह आकर सुभा के अन्तरात्मा का एक नवीन अनिवेचनीय चेतना शक्ति से परिपूणं कर रहा था। वह आप अपने की देखती, सोचती और प्रश्न करती थी, किन्तु उसकी समभ्त मे कुछ भी नही आता था | पृणिमा की रात्रि के एक दिन धीरे-धीरे शयन्न-गृह के द्वार को खोलकर, डरते-डरते मुंह निकालकर, सुभा ने बाहर की ओर देखा। देखा, जवानी के रहस्य मे, पुलक और विषाद से, असीम निर्जनता की एकदम शेष सीमा तक, यहाँ तक कि उसे भी नॉघक!। पूर्णिमा की “प्रकृति” भी परिपूर्ण हे। रही है--किन्तु मुख से एक बात भी नहीं कह सकती | 

निःस्तव्व व्याकुल्न प्रकृति के एक प्रान्त मे एक व्याकुल् बालिका चुपचाप खड़ी हुईं थी | इधर कन्या की अवस्था देखकर माता-पिता की चिन्ता भी दिन-दिन बढ़ने लगी । लोगों ने भी निन्‍दा करना शुरू कर दिया । यहा तक कि लोगों मे वाथीकण्ठ को जातिच्युत कर देने की चचों भी चलने लगी । वाणीकण्ठ की अवस्था अच्छी है, खाने-पीने-पहनने की सी कम्मी नहीं है। इसी लिए उलके शत्रु भरी अनेक थे । एक दिन स्त्रों और पुरुष मे इस बारे मे बहुत बातचीत हुई । कुछ दिनों के लिए वर की खोज से वाणीकण्ठ की विदेश जाना पड़ा | - 

अन्त को वहाँ से लौट झ्राकर वाणीकण्ठ ने थ्ली से कहा--- चलो, कल्कत्ते चले | विदेश-यात्रा का उद्योग होने लगा। कुहासे से ढके हुए प्रात:काल की तरह सुभा का हृदय अश्रवाष्प से एकदम भर गया। एक अनिर्दिष्ट आशडू के मारे वह कुछ दिन से बरा- बर वाक्य-हीन जन्तु की तरह माता-पिता के पास ही रहा करती थो--दोनों बड़ी-बड़ो आँखें से उनकी ओर ताककर चह मानो कुछ समझने की चेष्टा करती थीं; किन्तु वे कुछ समम्काकर न कहते थे |

इसी बीच मे एक दिन तीसरे पहर पानी से कॉटा डाल्- कर प्रताप ने हँसते हुए कद्दा--क्योरी सुभा, तेरा दुल्लहा मित्र गया है, तू व्याह करने जाती है ? देख, हम लोगो का न भूलना । यह कहकर उस्रनने फिर मछली पकड़ने की ओर मन लगाया । 

मर्मविद्ध हरिणी जेसे शिकारी की ओर ताकती है, चुपचाप कहती है कि मैंने तुम्हारा क्या अपराध किया था, वैसे ही सुभा ने भी प्रताप की ओर देखा । उस दिन वह इमली के पेड के नीचे नहीं बेठी। वाणीकण्ठ शयन-गृह से उठकर तमाखू पी रहे थे। सुभा डनके पेरों के पास बैठकर उनके मुंह की ओर ताककर रेने लगी। श्रन्त का उसे सान्त्वना देने मे वाणीकण्ठ के भी ऑसू निकल्ल आये । कल कल्कत्ते की यात्रा का दिन है । 

सुभा गोशाला मे अपनी बाल्य-खखी गडओ से बिदा होने के लिए गई। उनकी अपने हाथ से खिललाकर, उनके गले से हाथ डालकर, आँखों से यथाशक्ति अपने मन का भाव व्यक्त करती हुई सुभा उनकी ओर ताकती रही । दोनो नेत्नों से टप-टप करके आंसू गिरने लगे । उस दिन शुकु्षपक्ष को द्वादशी को रात थो । सुभा शयन्त- गृह से बाहर निकल्लकर उसी चिरपरिचित नदी-तट पर जाकर घास पर लोटने ल्गी। माने घरणी की, इस मद्दती सूक

मानव-माता को, दोना हाथों से पटाकर वह यह कहना चाहती थी कि तुम माता मुझे जाने न दो, मेरी तरह दोनों हाथ फैलाकर तुम भी मुझे लिपटा रकखे। | कलकत्ते के डेरे मे एक दिन सुभा की माता ने सुभा का खूब खड्डार किया | बाल्लों में तेल डालकर चोटी बॉघी, खूब गहने पहनाये । उसके स्वाध्षाविक सोन्दय का यथाशक्ति सज- घज से छिपा-सा दिया। सुभा की दोनों आँखे से आंसू बह रहे थे। आँखे” फूलकर ख़राब न है! जाये, इसलिए माता ने उसे झिडका भी, किन्तु ऑसुओं ने उस मिडकी का कुछ भी खयाल नहीं किया | 

मित्र के साथ वर खुद कन्या की देखने आया | कन्या के पिता चिन्तित, शट्डटित और व्यग्न होकर उठ खड़े हुए | मानों देवता खुद अपनी बलि के पशु को पसन्द करने आया हा।। माता ने भीतर बहुत कुछ डॉट-डपटकर वालिका के अश्रु-प्रवाह का ओर भी बढाकर उसे परीक्षक के सामने भेज दिया | परीक्षक ने वहुत देर तक देखकर कहा--ञ्चुरी नहीं खासकर बालिका के रोने का देखकर चर ने समक्ता कि इसमें सहृदयता भी है और मात्ता-पिता के विछुड़ने की आश। से सहृदय वालिका का हृदय व्यधित हो। उठा है। वह हृदय ब्याह के बाद मेरा ही द्वागा। सीप के मोती के समान बालिका के आसुओं ने उसका मूल्य चढ़ा दिया ।

पत्रा देखकर एक शुभ मुहूर्त  निश्चित छुआ और उंस दिन उसी वर के साथ सुभा का ब्याह हो गया । गूँगी लड़की दूसरे का सौंपकर माता-पिता अपने गॉँव 'चत्त दिये। उनकी जाति भी बची और घमंड  भो बच गया । वर युक्तप्रान्व मे नौकर था। व्याह के बाद ही वह सुभा का अपने साथ वहां जले गया। एक सप्ताह के भीतर ही उसे मालूम हो गया कि स्त्री गूंगी है। किन्तु ब्याह के पहले इस बात के न समझने का दोष वर का ही था । 

सुभा ने घाखा नहीं दिया था। उसकी दोनो आँखें ने सब खुलासा करके कह दिया था, किन्तु वर उसे समझ नदी सका। वह चारों ओर ताकती थो, पर मन का भाव व्यक्त करने की भाषा उसके पस न थी, वह क्‍या करती | बालिका के चिर-नीरव हृदय में माता-पिता और पितृ-ग्रह के वियाग की व्यथा किसी दुखिया के करुण वि्लाप की तरह गूजने लगी । अन्तयामी के सिवा उस व्यथा को कोई नहीं समभ सकता था | अबकी बार सुभा का खासी, श्राँखें और काने के द्वारा, अच्छी तरह जॉच करके एक दूसरी स्त्री व्याह लाया ।



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रचनाएँ
गल्प गुच्छ
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कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प गुच्छ साल भर से काफ़ी चर्चा में है। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है। पूरी कथा पाठक में इतनी बेचैनी पैदा कर देती है कि वह आतंकित कर देने वाली उन परिस्थितियों और किरदारों के बारे में सोचे जो हमारे आस पास निर्मित हो चुकी हैं और उनका दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। कई बार कोई क़िताब, कोई रचना आप पढ़ना तो चाहते हैं, मगर अन्य कारणों से वह टलता रहता है। आपके चाहने के बावजूद वह छूटती रहती है। आप पछताते रहते हैं, मगर वह हाथ नहीं आती। कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प ऐसी ही पुस्तक है। पिछले सात-आठ महीनों से यह उपन्यास मेरा पीछा कर रहा था और मैं इसके पीछे लगा हुआ था, मगर पढ़ा जा सका अब। पढ़ने के बाद लगा कि अगर न पढ़ता तो कुछ छूट जाता। साल भर से यह उपन्यास काफ़ी चर्चा में है। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा नवलेखन का पुरस्कार मिलने की वज़ह से भी यह चर्चित रहा, इसकी विषयवस्तु, भाषा और उसकी शैली। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है।
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मुर्दे की मौत भाग 1

24 अगस्त 2022
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रानीहाट के जमींदार शारदाशंकर  बाबू के घर की विधवा वहू के मायके से कोई नही  था । एक-एक करके सभी मर गये। सुसराल  मे भी ठीक अपना कहलाने लायक कोई ल था। न पति था और-न पुत्र ही  था। उसके जेठ शारदाशह  का एक

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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कादम्बिनी के कपड़े मे कीचड भरा हुआ था। अद- भुत भाव के आवेश श्रोर रात के जागने से वह पागल सी हे। रही थी । उसका चेहरा देखकर लोग सचमुच ही डर सकते थे।  शायद गॉव के लडके उसे देखकर पागतव समझकर दूर से ढेले

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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इसी कारण कभी-कभी दोपहर की सूनी कंठरी में पड़ें- पड़ वह चिल्ला उठती थी  और  शाम को दीपक के प्रकाश में अपनी परछाही  देखकर उसकी रोगटे खड़े हो आते थे ।  उसके इस भय का देखकर घर के लोगों के मन मे भी एक प्र

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भाग 4

24 अगस्त 2022
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असल बात उसकी सममझ्त मे नहों आई | वह जवाब भी नहो दे सकी ओर दुबारा कुछ प्रश्न भी नहों कर सकी । मुँह फुला- कर गम्भीर भाव से वहाँ से चली गई |  रात के दस बजे होगे जब  श्री पति रानीहाट से लौट आये । उस समय

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भाग 5

24 अगस्त 2022
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कमरे भर में अन्धकार'छा गया। कादम्बिनी एकंदम कमरे की भीतर आकर खडो हा गई ।  उस समय ढाई पहर के लगभग राव बीती होगी । बाहर'जोर से पानी पढ़ रहा था । कादम्बिनी मे कहा--बहन, में तुम्हारी सखी कादम्बिनी ही हूँ

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सुधा भाग 1

24 अगस्त 2022
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कान्तिचन्द्र की अवस्था थोडी है, तथापि ज्री के मरने के उपरान्त द्वितीय स्त्री का अनुसन्धान न करके पशु-पक्तियों के शिकार से ही उन्होंने  अपना मन लगाया | उनका शरीर लम्बा, पतला, हृढ़ ओर हल्का था। दृष्टि त

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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 दूर जाकर पता लगाने की सामथ्य नहीं । घर मे भगवान्‌ की मुर्ति है, उसे छीड़कर कहीं जाना नहीं हो सकता । कान्तिचन्द्र ने कहा--नाव पर आप मुझसे अगर मिल्ल सके' ते में एक कुल्लीन अच्छा छडका बतला सकता हैँ । 

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समस्या-पूर्ण भाग 1

24 अगस्त 2022
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 देवपुर के ज़मीदार रामगोपाल अपने बड़े लङके को ज़मीदारी और घर-ग्रहस्थी सौपकर काशीवास' करने चले गये | देश के सब अनाथ दरिद्र लोग उनके लिए हाहाकार करके रोने लगे । सब यही कहने लगे कि ऐसी उदारता और  धमेनिष्

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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भेया, आल्ला  तुम्हारा भला करे' । बेटा, रमजानी का तुम बिगा- डूना नहीं। में उसे तुमका सॉंपती हूँ। उसे तुम अपना छोटा भाई समझकर उसके खाने-पीने का ज़रिया वह ज़मीन दे दे।। तुम्हारे वेशुमार दे।लत है। जितनी त

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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कष्णगोपाल् ने विस्मित होकर पूछा--इसी लिए आप काशी से इतनी दुर आये हैं ? रमज़ानी पर आपका इतना अनुग्रह क्यो है ? रामगोपाल ने कदा--यह सुनकर तुम क्‍या करोगे ? कष्णगोपाल् ने नहीं माना और कहा--अयोग्यता का व

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प्रायचित भाग 1

25 अगस्त 2022
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स्वर्ग  और  मनुष्यलोक के बीच में एक अनिर्देश्य अरा जक स्थान है, जहाँ राजा त्रिशंकु लटक रहे हैं और जह आकाशकुसुमे के ढेर पैदा  होते हैं। उस वायुदुर्गवेष्टिव महा देश का नाम है “होता तो है| सकता? । जो लोग

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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किन्तु यह बात भी, उसके सन मे आई कि उसके खामी सुसरात् में रहने के कारण आदर की अपने हाथो गँवा रहे हैं | उस् दिन से नित्य वह खामी से कहने लगी कि तुम अपने घर मुझे ले चले, अब में यहाँ नहीं रहेंगी । अनाथब

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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किन्तु स्त्री  किसी तरह इस बात पर राजी  नही  हुई | उसन अपनी राय यह जाहिर की कि बड़े भाई की रोटी और  आवाज  की गाली पर छेप्टे भाई का पारिवारिक अधिकार है, किन्तु सुसरात्त में जाकर रहना बड़ी ही बेज्जती की

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भाग 4

25 अगस्त 2022
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विन्ध्यवासिनी  ने कहा--आप वि्लायत जाने मे .रोक-टाक न करे इसलिए नही मांगे | राजकुमार बाबू  बहुत ही नाराज़ हुए। माता रोने लगी ओर बेटी भी रोने लगी । कलकत्ते मे चारों आर विचित्र स्वर से उत्सव के बाजे बज र

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भाग 5

25 अगस्त 2022
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अनाथबन्धु उत्साह  के साथ इस बात पर राज़ी हो गये । उन्होंने मन मे सोचा, जे बार-्लाइब्रेरियों मे पड़े रहनेवाले स्वदेशी बेरिस्टर उनसे डाह करते हैं और उनकी असामान्य प्रतिभा के प्रति यथरेष्ट सम्मान नहीं  द

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सुभा भाग 1

25 अगस्त 2022
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 लड़की का नाम जब सुभाषिणी रक्खा गया था तब कीन जानता था कि वह गूगी हेगी ? उसकी दो  बडी बहनें का नाम सुकेशिनी ओर सुहासिनी रखा गया था | इसी से उसी अनुप्रास पर पिता ने छोटी लडकी का नाम सुभाषिणी रखा  | इस

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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 धूप  से प्रकाशित महृत्‌ आकाश के नीचे केवल गूँगी प्रकृति और गूंगी लड़की सुभा दोनों आमने-सामने चुप- चाप बैठे-बेठे एक दूसरे को निहारा करती थीं । प्रकृति फैली हुई धूप में, ओर सुभा छोटे-छोटे पेड़ों की छाह

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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मान लो, सुभा अगर जल्लकुमारी होती; धीरे-धीरे जल से ऊपर उठकर एक नागमशि घाट पर रण जाती , प्रताप तुच्छ मछली पकडने के काये का छोड़कर उस मणि का लेकर जल मे गोता क्गाता और पाताक्न मे जाकर देखता, चॉदी के महल म

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विचारक भाग 1

25 अगस्त 2022
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अनेक अवस्थाएँ बदलने के उपरांत अन्त का गतयौबना चुन्नो ते जिस पुरुष का आश्रय श्रदण किया था वह भी जब उसे फटे कपड़े की तरह छाड़ गया तब मुट्ठी भर अन्न के लिए दूसरे आश्रय के। खे।जने की चेष्टा करने से उसे अत

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भाग 2

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समुद्र के भीतर से, वृत्तपंक्ति से श्यामल तट-भूमि जैसे रम-णीय स्वप्न के समान, चित्र के समान जान पड़ती है वैसे किनारे पर पहुँचने से नहीं । वेघव्य के घेरे की आड़ से चमेली संसार से जितना दूर हो गई थी उसी

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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निद्राहदीन चमेली  की रात कहाँ जाकर समाप्त होगी | उस्र निरानन्द प्रात:काल मे जब चमेली के घर सूथ्ये देव का प्रकाश प्रवेश करेगा तब वहाँ सहसा केसी लज्ना प्रकाशित हो पड़ेगी-- कैसी लाउछना, कैसा हाहाकार जग उ

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मध्यवर्तिनी भाग 1

25 अगस्त 2022
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सुन्दर निहायत मामूली ढंग का था। उसमें काव्यरस, की गन्ध तक न थी। उसके मन में कभी यह बात नहीं आई कि जीवन में उक्त रस की कुछ आवश्यकता होती है। जैसे  परिचित पुराने जूते के भीतर पेर बिलकुल् निश्चिन्तः भाव

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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के ऊपर आनन्दमयी प्रकृति की हर एक उगली जेसे फिरने लगो और हृदय के भीतर जे। एक प्रकार का सद्भीत सुन पड़ने लगा उसके ठीक भाव को वह अच्छी तरह समझ नहीं सकती थी । ऐसे समय जब उसका खामी पास बेठकर पूछता था कि क

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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 एक हीरे का ठुकड़ा मिल्लने पर उसे  तरह-तरह से घुमा-फिराकर देखने का जी चाहता है | किन्तु यह एक नौजवान सुन्दरी स्री का मन था--सुन्दरलाल के लिए बुढ़ापे मे एक बहुत ही अपूर्व और स्पृहणीय पदार्थ था ! इसका क

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भाग 4

26 अगस्त 2022
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और आनन्द-गद्द सुन्दर वार-वार प्यारी, प्यारी! कहकर उसे सचेत करने की चेष्टा कर रद्दा था | सुन्दर ने इसी बीच में बड्धिम बाबू का “चन्द्रशेखर  उप- न्यास पढ़ डाला था और वह देो-एक प्राधुनिक कवियों के खड्भार-

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भाग 5

26 अगस्त 2022
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रक्त में मानों फनकार मारता रहा। पार्वती  ने अपने मन मे कहा-- और किस बात को लेकर तेरी और मेरी तुलना होगी । किन्तु एक समय मेरी  भी यह अवस्था थी,  मैं भी इसी तरह सिर से पैर तक जवानी के रोम मे भरी हुई थी

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भाग 6

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जानकी के असतोष और असुख की सीमा नहीं रही | चह किसी तरह यह समझना  नहीं चाइती कि उसके स्वामी मे उसे सन्तुष्ट रखने की क्षमता नही है । क्षमता नहों थी ते व्याह् क्यों किया था | ऊपर के खण्ड मे कीवल दो  कमरे

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अत्याचार

26 अगस्त 2022
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जमीदार के नायव जानकीनाथ के घर में प्यारी नास की एक महराजिन रसोई बनाने के लिए नौकर कुई। उसकी अवस्था कम थी और चरित्र अच्छा था। दूर की रहनेवाली वह ब्राह्मणों विपत्ति के फेर से पड़कर जानकीनाथ की घर आकर नो

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चुधित पाषाण भाग 1

26 अगस्त 2022
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मैं  और  मेरे एक आत्मीय एक दिन रेल पर बेठे हुए कल्कत्ते जा रहे थे। इसी बीच से रेलगाड़ी पर एक आदमी से मुलाकात  हो गई। उसका पहनावा मुसल्लमानों का सा था | उसकी बाते सुनकर आश्चये का ठिकाना नहीं रहता था। प

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किन्तु उसी घड़ी मुझे स्मरण हो आया कि में सचमुच अमुक का ज्ये्ठ पुत्र अमुक हूँ । यह भी मैंने अपने मन में सोच लिया कि इस बात की तो  हमारे महाकबि और  कवि वर ही कद्द सकते हैं कि जगत् के भ्रीतर अथवा बाहर कह

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भाग 3

26 अगस्त 2022
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इस खण्डस्वप्न के अवत्त के भीतर---इसी हिना की. महक सितार के शब्द ओर सुगन्धित जल-कणो से मिल्ले हुए पवन के भोकी के वीच---एक नायिका को दम-दम भर पर बिजली की चसक के समान देख पावा था। उसका जाफू्रानी रद्ग का

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भाग 4

26 अगस्त 2022
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खजूर: के पेड़े की छाया से, किस गृहहीन अरब देश की स्मेंणी-के-मर्भ से उत्पन्न हुई थों ! तुमकी कान लुटेरा, वस्त्र  से पुष्पक की तरह, माता की गोद से अलग करके बिजली  को तरह भागने वाले घोड़े पर चढ़ाकर मरुसू

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भाग 5

26 अगस्त 2022
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उसी वर्षों मे, पगल्ले के पास दौड़ा गया ओर उससे पूंछा--मेहर अली, क्या झूठ ठ है वह मेरी बात का कुछ उत्तर न देकर मुझे आगे से हटा- कर--अजगर के मुह के पास साह के आवेश से घूम रहे पत्तों की तरह--चिल्लाता हुआ

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