उसी वर्षों मे, पगल्ले के पास दौड़ा गया ओर उससे पूंछा--मेहर अली, क्या झूठ ठ है वह मेरी बात का कुछ उत्तर न देकर मुझे आगे से हटा- कर--अजगर के मुह के पास साह के आवेश से घूम रहे पत्तों की तरह--चिल्लाता हुआ उस महत्तन के चारों ओर घूमने लगा | केवल प्राणपण से अपने की सावधान करने के लिए बार-बार यह कहता जाता था कि अल्लग रहो, हटे रहा, सब रूठ है--सब रूठ है !
में उसी श्रॉधी-पानी मे पागल की तरह आफिस जाकर करीम खाँ से बेला--इसका क् या अथे है, मुझसे खुलासा करके कहे |वृद्ध करीम खो ने जा कहा उसका सारांश यही था कि . उक्त बादशाही मसहत्त मे एक समय अनेक अप वासना औरअनेक उन्मत्त-सम्भाग की ज्वालाएं उठा करती थों। उन्हीं सब दिलों की जलन से---उन सब निष्फल कामनाआं के अभिशाप से--इस महत्व का हर एक पत्थर भूखा और प्यासा हो रहा है। सजीव मनुष्य की पाकर, लुव्ध पिशाच की तरह, उसे वह महत्त मानो लील लेना चाहता है। जो तीन रात तक इस महल से रहा है वह फिर बाहर नहीं निकलना ।
हॉ, केवल मेहर अक्ली पागल होकर बाहर निकल्न आया है । मैंने पृछा--अब मेरे उद्धार की क् या काई राह नही है बुद्ध ने कहा--फेव्ल एक उपाय है, लेकिन वह बहुत कठिन है। सुने, किन्तु वह उपाय वताने के पहले गुलवाग पाषाण की एक इरशानी बॉदोी का कुछ पुराना इतिहास कहना ज़रूरी जान पड़ता है। बैसा आश्वये और बैसी हृद्यविंदारक घटना जगत् में दूसरी नहीं हुई होगी ।
इसी समय कुलियों नेआ कर खबर दी कि गाड़ी आ रही है। इतनी जल्दी ? जल्दी के साथ बिछेने-बिस्तर वगेरह बॉघते-बाँधते गाडी आ गई ! उस गाड़ो के भीतर फटे छास मे एक सेकर तुरन्त उठा हुआ अगरेज़, खिद़की के भीतर से सिर निकाले हुए, स्टेशन का नाम पढ़ने की चेष्टा कर रहा था।
हमारे सहयात्री उक्त पुरुष की देखते ही “हेलो ” कहकर बह्द खुशी से चिल्ला उठा। उस अंगरेज़ ने उक्त पुरुष को अपने पास बिठा लिया। हम लोग भी सेकिड क्लास की गाड़ी पर सवार हुए। उक्त पुरुष का फिर पता नहीं लगा और इस किससे का शेप अश भी सुनने को नद्दीं मिला | मैंने अपने मित्र थियासफिस्ट से कहा--वह आादमी हम लोगो को गूँगे केस मान देखकर बेवकूफ बना गया है । यह किस्सा शुरू से आखीर तक बनाया हुआ है | इस तक के कारण थियासफिस्ट मित्र के साथ जन्म भर के लिए मेरी खटपट हो गई |