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सुधा भाग 1

24 अगस्त 2022

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कान्तिचन्द्र की अवस्था थोडी है, तथापि ज्री के मरने के उपरान्त द्वितीय स्त्री का अनुसन्धान न करके पशु-पक्तियों के शिकार से ही उन्होंने  अपना मन लगाया | उनका शरीर लम्बा, पतला, हृढ़ ओर हल्का था। दृष्टि तीक्ष्ण थी। निशाना कभी चूकता न था। बड़ाली होने पर भी उनका पहनावा युक्त-प्रान्त के लोगों का सा था। उनके साथ पहलवान हीरासिंह,लकनलाल और गाने-बजाने वाले उस्ताद ख़ॉ साहब, मियां साहब आदि अनेक लोग रहते हैं। बेकार मुसाहबों की भी कमी नहीं है   

दो -चार शिकारी बन्धु-बान्धवों का लेकर अगहन के महीने से कारन्तिचन्द्र नेदीधी की नदी के किनारे शिकार करने के लिए गये । नदी के बीच दो बड़ी नावे। मे उनका निवास हुआ। और भी देो-चार नावे उनके साथ थी। उनमे मोौकर-चाकरो और समुसाहबां का डेरा था। गाँव की बहु-बेटियों का पानी भरना और नहाना-धेना एक प्रकार से बन्द सा हो गया। दिन भर बन्दूक की आवाज़ से जल्न-स्थल कॉपा करता था और शाम को उस्तादों की तान से गाँव के लोगों की नींद हराम हे! रही थी |

एक दिन सबेरे कान्तिचन्द्र अपने बजरे मे बैठे अपने हाथ से बन्दूक का चोंगा साफ कर रहे थे। इसी समय पास ही बतख की आवाज़ सुनकर आऑख उठाकर उन्होने देखा, एक बालिका दोनों हाथो से दे। बत्तख्ों का छाती से लगाये हुए घाट पर लिये खड़ी है । नदी छोटी थी, उसमे प्रवाह माने था ही नहीं। जगह-जगह पर तरह-तरह की सेवार फेली हुई थी । वह लड़की दोने बत्तख़ो का पानी मे छोडकर, एकदम वे हाथ से निकलकर दूर न चल्ले जायें, इस प्रकार के त्रस्त सतक स्नेह के भाव से उन्हे पास ही रखने की चेष्टा करने लगी | जान पड़ा कि ओर दिन वह अपनी बत्तखों को पानी मे छोडकर चली जाती थी, किन्तु इन दिनों शिकारियों के डर से निश्चिन्त भाव से उन्हे छेड़्कर नहीं जा सकती |

उस लड़की का सोन्दर्य बिलकुल  ही नये ढग  का था-- मानें विश्वकर्मा ने उसे अभी गढ़कर जान डाल दी है। उसकी अवस्था का निशेय करना कठिन है। शरीर मे जवानी के चिह प्रकद हा आये हैं, किन्तु उसका सुख ऐसा भोलत। है कि संसार के   मानें उसे अभी बिल्कुल इस्पेर्स  ही नहीं किया | जवांनी के आने की ख़बर माना उसको अभी तक नहीं मिली। दमभर के लिए कान्तिचन्द्र मानो बन्दूक की नल्ली साफ करना भूल गये । मानों वे कोई स्वप्त देखने लगे ।

ऐसी जगह पर ऐसा चेहरा देखने की उन्हे स्वप्न में भी आशा नहीं थी। तथापि किसी राजा के अन्त:पुर की अपेक्षा उसी  जगह वह चेहरा भत्ञा लगता था। सोने की फूलदानी की अपेक्षा पेड से ही फूल की अधिक शोभा होतीं है। उस दिन शरद ऋतु की आस की बू दें से और सबेरे की धूप से नदी- तठ पर क्रा विकसित कासवन बहुत ही सुन्दर देख पड़ रहा था। उसी के बीच वह भोक्षा-भाज्ना सुन्दर मुख देखकर कान्तिचन्द्र मुग्ध हो गये | इसी समय एकाएक वह क्ड़की डरकर, रुआसा मुँह बना- कर, जल्दी से दाने बचख्रो को गोद में लेकर अ्रव्यक्त आत्ते शब्द करती हुईं घाट से चल दो |

कान्तिचन्द्र ने उसके कारग। का पता लगाने के लिए बजरे के बाहर आकर देखा, उनका एक रसिक मुखाहव केवल कातुक के लिए--बालिका को डराने के त्षिए---उन्न बत्तख़ों की ओर बन्दृक तान रहा है। कान्ति- चन्द्र ने पीछे से बन्दूक छोनकर एकाएक उसके गाल से एक थप्पड लगा दिया । अकस्मात्‌ रह्क मे भड़ देखकर वह मुसाहव वहाँ से टक्ष गया । कान्तिचन्द्र फिर बजरे के भीतर जाकर बन्दुक साफ करने लगे । ,

थोड़ी देर मे कान्तिचन्द्र ने एक कबूतर को गोली सारी । गोली खाकर कबूतर कुछ दूर पर गिर पड़ा। शिकार का पता लगाने के लिए कान्तिचन्द्र उस दस-पॉच घर के छोटे से गॉँव से गये । उन्हे अधिक परिश्रम नहीं करना पडा | उन्होने  देखा, एक धर के द्वार पर पीपल्न के पेड़ के नीचे वही लड़की बैठो हुई है और उसकी गोद में वह त्घायल  कवूतर है।

वह् लड़की फूल-फ्लकर रोती हुई रनेह से उस कबूतर के ऊपर हाथ फेर रही है और पास ही के एक पेड के थात्तेसे आचल भिगाकर प्यासे कबूतर के ऊुँह में पानी निचोड रही है। पात्चतू बिल्ली दाने पैर फैज्ञाये कबूतर की ओर छुव्ध दृष्टि से देख रही है । किन्तु वह बालिका उँगली दिखाकर उसके बढ़े हुए आग्रह की बार-बार दम्मन कर देती है । '

गॉँव के भीतर दोपहर के सन्नादे से यह करुण-चित्र दंखते ही कान्तिचन्द्र के ढृदय में अड्डधित हो गया! पेड़ के पतो के भीतर से छाया और धूप झाकर उस बालिका के ऊपर पड़ रही थी | उसके पास ही एक परिपुष्ट गऊ भाजन की उपरान्त बैठी हुई पागुर कर रही थी ओर सीग-पूंछ हिल्ला-हिलाकर मक्खियों हाकती जाती थी!। पास ही हवा से हिल्ल रही बॉस' की पत्तियों का शब्द सुन पड़े रहा था। सबेरे नद्दी-तट पर जे बालिका वन-ल्लक्ष्मी की तरह देख पड़ी थी वह यद्दों देपहर का स्मेह-पूर्ण यृह-लक्ष्मी के समान देख पड़ो |.

कान्तिचन्द्र बन्दूक हाथ में लिये एका एक उस बालिका के आगे आकर बहुत ही सकुचित हे पड़े । मानों चोरी के साल सहित चार पकड़  लिया गया ॥. उनकी इच्छा हुई कि किसी तरह वे प्रमाणित करे कि कबूतर मेरी गोली से घायल नहों हुआ | किस तरह इस बात की चर्चा चल्नावे,कान्तिचन्द्र यही साच रहे थे | इसी समय धर 'के भीतर से किसी ने पुकारा--- सुधा ! बालिका जेसे चौक उठी |' ' फिर किसी, ने पुकारा --

सुधा ! तब वह बालिका जल्दी से कबृतर का लेकर घर के भीतर चक्नी गईं। कान्तिचन्द्र ने अपने सन मे कहा--ताम ते बहुत ही ठीक है। सुधा | कान्तिचन्द्र तब नाव पर आकर बन्दुक॒ रखकर उसी घर के सदर दरवाज़े पर फिर उपस्थित हुए। देखा, एक सिर मुंड़ाये हुए शान्तमभूर्ति ब्राह्मण चबूतरे पर बेठे भक्तमाल पढ़ रहे हैं।

कान्तिचन्द्र ने उन ब्राह्मण के भक्ति-मण्डित मुख के गम्भीर स्निग्प शान्त भाव फे साथ उस बालिका के दयाद मुख के साहश्य का अज्ञुभव किया ।

कान्तिचन्द्र ने ब्राह्यम के नमस्कार करके कहा--प्यास लगी है मद्दाशय, क्‍या लोटा भर जल्ल मिल सकता है ? ब्राह्मण मे सादर उनका बिठलाया और भीतर से कुछ बताशे और लोटे भर पानी छोंकर कर अतिथि के सामने रख दिया |

कान्तिचन्द्र के जल्ल पी चुकने के बाद ब्राह्मण ने उत्तका परिचय पाने की इच्छा प्रकट की। कान्तिचन्द्र ने अपना परिचय देकर कद्दा--मद्दाशय, अगर मैं आपका कुछ उपकार कर सकता ते! अपने का कृताथे समझता | उन ब्राह्मण का नाम नवीनचन्द्र बनर्जों था। उन्होने कहा--बेटा, तुम मेरा क्‍या उपकार करोगे ?

एक सुधा नाम की मेरे लड़की है, उसे किसी अच्छे लड़के का सोपना ही मेरे लिए एक कार्य रह गया है। पास के स्थानों मे कहीं कोई अच्छा सुशीत्ष सुपात्र कुल्लीन लड़का नहों देख पड़ता, |

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रचनाएँ
गल्प गुच्छ
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कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प गुच्छ साल भर से काफ़ी चर्चा में है। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है। पूरी कथा पाठक में इतनी बेचैनी पैदा कर देती है कि वह आतंकित कर देने वाली उन परिस्थितियों और किरदारों के बारे में सोचे जो हमारे आस पास निर्मित हो चुकी हैं और उनका दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। कई बार कोई क़िताब, कोई रचना आप पढ़ना तो चाहते हैं, मगर अन्य कारणों से वह टलता रहता है। आपके चाहने के बावजूद वह छूटती रहती है। आप पछताते रहते हैं, मगर वह हाथ नहीं आती। कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प ऐसी ही पुस्तक है। पिछले सात-आठ महीनों से यह उपन्यास मेरा पीछा कर रहा था और मैं इसके पीछे लगा हुआ था, मगर पढ़ा जा सका अब। पढ़ने के बाद लगा कि अगर न पढ़ता तो कुछ छूट जाता। साल भर से यह उपन्यास काफ़ी चर्चा में है। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा नवलेखन का पुरस्कार मिलने की वज़ह से भी यह चर्चित रहा, इसकी विषयवस्तु, भाषा और उसकी शैली। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है।
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मुर्दे की मौत भाग 1

24 अगस्त 2022
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रानीहाट के जमींदार शारदाशंकर  बाबू के घर की विधवा वहू के मायके से कोई नही  था । एक-एक करके सभी मर गये। सुसराल  मे भी ठीक अपना कहलाने लायक कोई ल था। न पति था और-न पुत्र ही  था। उसके जेठ शारदाशह  का एक

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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कादम्बिनी के कपड़े मे कीचड भरा हुआ था। अद- भुत भाव के आवेश श्रोर रात के जागने से वह पागल सी हे। रही थी । उसका चेहरा देखकर लोग सचमुच ही डर सकते थे।  शायद गॉव के लडके उसे देखकर पागतव समझकर दूर से ढेले

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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इसी कारण कभी-कभी दोपहर की सूनी कंठरी में पड़ें- पड़ वह चिल्ला उठती थी  और  शाम को दीपक के प्रकाश में अपनी परछाही  देखकर उसकी रोगटे खड़े हो आते थे ।  उसके इस भय का देखकर घर के लोगों के मन मे भी एक प्र

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भाग 4

24 अगस्त 2022
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असल बात उसकी सममझ्त मे नहों आई | वह जवाब भी नहो दे सकी ओर दुबारा कुछ प्रश्न भी नहों कर सकी । मुँह फुला- कर गम्भीर भाव से वहाँ से चली गई |  रात के दस बजे होगे जब  श्री पति रानीहाट से लौट आये । उस समय

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भाग 5

24 अगस्त 2022
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कमरे भर में अन्धकार'छा गया। कादम्बिनी एकंदम कमरे की भीतर आकर खडो हा गई ।  उस समय ढाई पहर के लगभग राव बीती होगी । बाहर'जोर से पानी पढ़ रहा था । कादम्बिनी मे कहा--बहन, में तुम्हारी सखी कादम्बिनी ही हूँ

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सुधा भाग 1

24 अगस्त 2022
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कान्तिचन्द्र की अवस्था थोडी है, तथापि ज्री के मरने के उपरान्त द्वितीय स्त्री का अनुसन्धान न करके पशु-पक्तियों के शिकार से ही उन्होंने  अपना मन लगाया | उनका शरीर लम्बा, पतला, हृढ़ ओर हल्का था। दृष्टि त

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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 दूर जाकर पता लगाने की सामथ्य नहीं । घर मे भगवान्‌ की मुर्ति है, उसे छीड़कर कहीं जाना नहीं हो सकता । कान्तिचन्द्र ने कहा--नाव पर आप मुझसे अगर मिल्ल सके' ते में एक कुल्लीन अच्छा छडका बतला सकता हैँ । 

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समस्या-पूर्ण भाग 1

24 अगस्त 2022
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 देवपुर के ज़मीदार रामगोपाल अपने बड़े लङके को ज़मीदारी और घर-ग्रहस्थी सौपकर काशीवास' करने चले गये | देश के सब अनाथ दरिद्र लोग उनके लिए हाहाकार करके रोने लगे । सब यही कहने लगे कि ऐसी उदारता और  धमेनिष्

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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भेया, आल्ला  तुम्हारा भला करे' । बेटा, रमजानी का तुम बिगा- डूना नहीं। में उसे तुमका सॉंपती हूँ। उसे तुम अपना छोटा भाई समझकर उसके खाने-पीने का ज़रिया वह ज़मीन दे दे।। तुम्हारे वेशुमार दे।लत है। जितनी त

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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कष्णगोपाल् ने विस्मित होकर पूछा--इसी लिए आप काशी से इतनी दुर आये हैं ? रमज़ानी पर आपका इतना अनुग्रह क्यो है ? रामगोपाल ने कदा--यह सुनकर तुम क्‍या करोगे ? कष्णगोपाल् ने नहीं माना और कहा--अयोग्यता का व

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प्रायचित भाग 1

25 अगस्त 2022
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स्वर्ग  और  मनुष्यलोक के बीच में एक अनिर्देश्य अरा जक स्थान है, जहाँ राजा त्रिशंकु लटक रहे हैं और जह आकाशकुसुमे के ढेर पैदा  होते हैं। उस वायुदुर्गवेष्टिव महा देश का नाम है “होता तो है| सकता? । जो लोग

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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किन्तु यह बात भी, उसके सन मे आई कि उसके खामी सुसरात् में रहने के कारण आदर की अपने हाथो गँवा रहे हैं | उस् दिन से नित्य वह खामी से कहने लगी कि तुम अपने घर मुझे ले चले, अब में यहाँ नहीं रहेंगी । अनाथब

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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किन्तु स्त्री  किसी तरह इस बात पर राजी  नही  हुई | उसन अपनी राय यह जाहिर की कि बड़े भाई की रोटी और  आवाज  की गाली पर छेप्टे भाई का पारिवारिक अधिकार है, किन्तु सुसरात्त में जाकर रहना बड़ी ही बेज्जती की

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भाग 4

25 अगस्त 2022
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विन्ध्यवासिनी  ने कहा--आप वि्लायत जाने मे .रोक-टाक न करे इसलिए नही मांगे | राजकुमार बाबू  बहुत ही नाराज़ हुए। माता रोने लगी ओर बेटी भी रोने लगी । कलकत्ते मे चारों आर विचित्र स्वर से उत्सव के बाजे बज र

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भाग 5

25 अगस्त 2022
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अनाथबन्धु उत्साह  के साथ इस बात पर राज़ी हो गये । उन्होंने मन मे सोचा, जे बार-्लाइब्रेरियों मे पड़े रहनेवाले स्वदेशी बेरिस्टर उनसे डाह करते हैं और उनकी असामान्य प्रतिभा के प्रति यथरेष्ट सम्मान नहीं  द

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सुभा भाग 1

25 अगस्त 2022
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 लड़की का नाम जब सुभाषिणी रक्खा गया था तब कीन जानता था कि वह गूगी हेगी ? उसकी दो  बडी बहनें का नाम सुकेशिनी ओर सुहासिनी रखा गया था | इसी से उसी अनुप्रास पर पिता ने छोटी लडकी का नाम सुभाषिणी रखा  | इस

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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 धूप  से प्रकाशित महृत्‌ आकाश के नीचे केवल गूँगी प्रकृति और गूंगी लड़की सुभा दोनों आमने-सामने चुप- चाप बैठे-बेठे एक दूसरे को निहारा करती थीं । प्रकृति फैली हुई धूप में, ओर सुभा छोटे-छोटे पेड़ों की छाह

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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मान लो, सुभा अगर जल्लकुमारी होती; धीरे-धीरे जल से ऊपर उठकर एक नागमशि घाट पर रण जाती , प्रताप तुच्छ मछली पकडने के काये का छोड़कर उस मणि का लेकर जल मे गोता क्गाता और पाताक्न मे जाकर देखता, चॉदी के महल म

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विचारक भाग 1

25 अगस्त 2022
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अनेक अवस्थाएँ बदलने के उपरांत अन्त का गतयौबना चुन्नो ते जिस पुरुष का आश्रय श्रदण किया था वह भी जब उसे फटे कपड़े की तरह छाड़ गया तब मुट्ठी भर अन्न के लिए दूसरे आश्रय के। खे।जने की चेष्टा करने से उसे अत

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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समुद्र के भीतर से, वृत्तपंक्ति से श्यामल तट-भूमि जैसे रम-णीय स्वप्न के समान, चित्र के समान जान पड़ती है वैसे किनारे पर पहुँचने से नहीं । वेघव्य के घेरे की आड़ से चमेली संसार से जितना दूर हो गई थी उसी

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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निद्राहदीन चमेली  की रात कहाँ जाकर समाप्त होगी | उस्र निरानन्द प्रात:काल मे जब चमेली के घर सूथ्ये देव का प्रकाश प्रवेश करेगा तब वहाँ सहसा केसी लज्ना प्रकाशित हो पड़ेगी-- कैसी लाउछना, कैसा हाहाकार जग उ

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मध्यवर्तिनी भाग 1

25 अगस्त 2022
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सुन्दर निहायत मामूली ढंग का था। उसमें काव्यरस, की गन्ध तक न थी। उसके मन में कभी यह बात नहीं आई कि जीवन में उक्त रस की कुछ आवश्यकता होती है। जैसे  परिचित पुराने जूते के भीतर पेर बिलकुल् निश्चिन्तः भाव

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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के ऊपर आनन्दमयी प्रकृति की हर एक उगली जेसे फिरने लगो और हृदय के भीतर जे। एक प्रकार का सद्भीत सुन पड़ने लगा उसके ठीक भाव को वह अच्छी तरह समझ नहीं सकती थी । ऐसे समय जब उसका खामी पास बेठकर पूछता था कि क

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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 एक हीरे का ठुकड़ा मिल्लने पर उसे  तरह-तरह से घुमा-फिराकर देखने का जी चाहता है | किन्तु यह एक नौजवान सुन्दरी स्री का मन था--सुन्दरलाल के लिए बुढ़ापे मे एक बहुत ही अपूर्व और स्पृहणीय पदार्थ था ! इसका क

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भाग 4

26 अगस्त 2022
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और आनन्द-गद्द सुन्दर वार-वार प्यारी, प्यारी! कहकर उसे सचेत करने की चेष्टा कर रद्दा था | सुन्दर ने इसी बीच में बड्धिम बाबू का “चन्द्रशेखर  उप- न्यास पढ़ डाला था और वह देो-एक प्राधुनिक कवियों के खड्भार-

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भाग 5

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रक्त में मानों फनकार मारता रहा। पार्वती  ने अपने मन मे कहा-- और किस बात को लेकर तेरी और मेरी तुलना होगी । किन्तु एक समय मेरी  भी यह अवस्था थी,  मैं भी इसी तरह सिर से पैर तक जवानी के रोम मे भरी हुई थी

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भाग 6

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जानकी के असतोष और असुख की सीमा नहीं रही | चह किसी तरह यह समझना  नहीं चाइती कि उसके स्वामी मे उसे सन्तुष्ट रखने की क्षमता नही है । क्षमता नहों थी ते व्याह् क्यों किया था | ऊपर के खण्ड मे कीवल दो  कमरे

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अत्याचार

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जमीदार के नायव जानकीनाथ के घर में प्यारी नास की एक महराजिन रसोई बनाने के लिए नौकर कुई। उसकी अवस्था कम थी और चरित्र अच्छा था। दूर की रहनेवाली वह ब्राह्मणों विपत्ति के फेर से पड़कर जानकीनाथ की घर आकर नो

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चुधित पाषाण भाग 1

26 अगस्त 2022
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मैं  और  मेरे एक आत्मीय एक दिन रेल पर बेठे हुए कल्कत्ते जा रहे थे। इसी बीच से रेलगाड़ी पर एक आदमी से मुलाकात  हो गई। उसका पहनावा मुसल्लमानों का सा था | उसकी बाते सुनकर आश्चये का ठिकाना नहीं रहता था। प

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26 अगस्त 2022
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किन्तु उसी घड़ी मुझे स्मरण हो आया कि में सचमुच अमुक का ज्ये्ठ पुत्र अमुक हूँ । यह भी मैंने अपने मन में सोच लिया कि इस बात की तो  हमारे महाकबि और  कवि वर ही कद्द सकते हैं कि जगत् के भ्रीतर अथवा बाहर कह

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भाग 3

26 अगस्त 2022
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इस खण्डस्वप्न के अवत्त के भीतर---इसी हिना की. महक सितार के शब्द ओर सुगन्धित जल-कणो से मिल्ले हुए पवन के भोकी के वीच---एक नायिका को दम-दम भर पर बिजली की चसक के समान देख पावा था। उसका जाफू्रानी रद्ग का

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भाग 4

26 अगस्त 2022
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खजूर: के पेड़े की छाया से, किस गृहहीन अरब देश की स्मेंणी-के-मर्भ से उत्पन्न हुई थों ! तुमकी कान लुटेरा, वस्त्र  से पुष्पक की तरह, माता की गोद से अलग करके बिजली  को तरह भागने वाले घोड़े पर चढ़ाकर मरुसू

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भाग 5

26 अगस्त 2022
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उसी वर्षों मे, पगल्ले के पास दौड़ा गया ओर उससे पूंछा--मेहर अली, क्या झूठ ठ है वह मेरी बात का कुछ उत्तर न देकर मुझे आगे से हटा- कर--अजगर के मुह के पास साह के आवेश से घूम रहे पत्तों की तरह--चिल्लाता हुआ

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