shabd-logo

मुर्दे की मौत भाग 1

24 अगस्त 2022

47 बार देखा गया 47

रानीहाट के जमींदार शारदाशंकर  बाबू के घर की विधवा वहू के मायके से कोई नही  था । एक-एक करके सभी मर गये। सुसराल  मे भी ठीक अपना कहलाने लायक कोई ल था। न पति था और-न पुत्र ही  था। उसके जेठ शारदाशह  का एक    छोटा ,लड़का था। उसे वह बह बहुत  ही चंचल  था। उस लड़के के पेदा होने के बाद उसकी मा बचत ' पक बासार रही | इस' कारण उसकी विधवा चाची कार्दा ने ही पाल पोसकर उसे बड़ा किया। पराथे लडक॑ की पासकर बड़ा करने से उसके प्रति हृदय का अधिक होता है, क्योंकि उसके ऊपर अधिकार नहीं था । 

उसके ऊपर कोई सायाजिक दावा नहीं, केवल स्नेह का दाव्  होता है । किन्तु केवल स्नेह समाज के आगे अपना कोई दाव॑ प्रसाशित नहीं कर सकता और वैसा करना भ्री नही  चाहता | वह  केवल अनिश्चित ह्रदय  के स्वार्थ  को दूनी व्याकुलता के साथ चाहने लगता है | 

उस छोटे लड़के का अपने हृदय का सारा स्नेह देकर एक दिन सावन की रात की अकस्मात्‌ फ्रादस्बिनी की मृत्यु हो गईे।। एकाएक ले जाने किस कारण से उसके हृदय की गति रुक गई--सारे जगत्‌ के और सब कास बराबर. चल रहे थे, केवल उसी स्नेह -पूर्ण  हृदय की गति सदा फे लिए बन्द दो गई |

 पीछे पुलीस आकर उपद्रव न करे, इसलिए अधिक बवंडर न करफे जमींदार  के नौकर-चाकर गरीब ब्राह्मण शीघ्र ही उस मृतदेह का मसान पर ले गये |

रानीहाट का ससान बस्ती  से बहुत दूर पर था। तालाब के किनारे एक झोपड़ी पड़ी थी, उसके पास ही एक बड़ा सा पेड़ था। उस भारी जड़ल मे और कुछ न था । “उस जड़ल  पर नदी बहती थी । जिस समय का यह लिखा जा रहा है उस समय वह नदी सुख गई थी । सूखी नदी के एक अश का खेादकर इस समय मसान, लाब बनाया गया है। इस समय के लोग उस तालाब को एक पवित्र नंदी के समान समझते थे ।

मृत देह का झोपङी के भीतर  रखकर  चिता लिए लकङी आने की प्रतीक्षा में चार आदमी बैठे रहे । उन्हें :-- आने में इतनी देर जान पड़ने लगी कि उसमे हे दे। आदसी ' यह देखने के लिए चते कि लकड़ी छाते मे इतनी देर क्यो हुई। दे आदमी लाश के पास बैठे रहे । . 

सावन की अधेरी रात थी । बादल घिरा हुआ था। शब्दकोश में एक भी तारा नहीं देख पड़ता था ।  झोपङी  में देने आदमी चुपचाप बैठे हुए थे । एक आदमी फ्री चादर में दियासलाई और जेमबच्ची देँधी हुईं थी । बर- सात की दियासलाई बहुत चेष्ठा करने पर ,भी जहो जली। साथ जो लालटेन आई थी वह भी बुझ  गई थी । 

बहुत देर तक चुप रहने के बाद एक ने कहा--अगर एक चिल्लमम तमाखू साथ होती ते! बहुत अच्छा होता, जल्‍दी के मारे कुछ साथ नहीं लाये । 

दूसरे आदमी ने कहा--मैं दौड़ा जाकर चउटपट सब सामान ला सकता हूँ । 

उसके भागने के इरादे का समझकर दूसरे आदएमी से कहा--बाप रे | और मैं यहाँ अकेला बैठा रहूँगा ! . 

फिर दोनों चुप हो रहे । एक-एक सित्रद एक-एक घण्टे 'के बराबर जान पड़ने लगा। जो लोग लक्ड़ो लेने गये थे (उनकी थे लोग मन ही मन गालियों देने लगे। यह सन्देह हून लोगों के मन में धीरे-धीरे निमश्वय का रूप घारण करपे लगा कि उक्त देता आदमी कहाँ आरास से बैठे मज़े से तमाखू पीते और गपशप लड़ातें होगे ।

 कही कोई शब्द न .था। केवल उस तालाब क॑ समीप से उठ रहा लगातार सेढका और मकगुरों का शब्द सुनाई पड़ रहा था | इसी समय जान पड़ा कि लाश मानो हिल्ली--सुर्दे ने मानों करवट बदली । 

जो दो  आदमी बेठे थे वे कांपते हुए भगवान्‌ का नाम लेने लगे । एका एक उस झोपङी से एक लम्बी सॉस सुन पड़ी । दाने आादसी उसी दम झोपङी के भीतर से उछल्लकर बाहर निकले ओर सीधे गॉव की ओर भागे ।

 डेढ़ कोस के लगभग भागकर आगे पर उन्होने देखा, कि उनके देने साथी ल्लाल्टेन हाथ में लिये लौट आ रहे हैं। जो दोनों आदमी लकड़ियो  के लिए कहकर गये  थे वे सचमुच तमाखू पीने गये थे, लकडिया के लिए नहीं; वो भी उन्होने अपने देनें दोनों साथियो  से कह द्विया कि लकड़ियों, के कुन्दे चीर जा रहे हैं--दूकानदार मजदूरो के हाथ अभी भेजता हैं। तब जो दो  आदमी और झोपङी में मुर्दे का हिलते दख डरकर भाग खड़ हुए थे उन्‍होंने अपने साथियो से सुर्दे के हिलने- डुलने ओर लम्बी  साँस लेने का द्वाल्ल कहा।' जो, लकड़ी होने गये थे उन्होने, अविश्वास करके बाब का जड़ा दिया: और; अपने कार्म को छोडकर समसान  से, भाग आने को लिए उन्हे डॉटने लगे |

सम्बन्ध नहीं--में अत्यन्त भग्यानकक अकल्याण-रूप अपनी प्रेतात्मा हैँ ! '. 

यह बात मन में आते ही उसे जान पड़ा कि उप्तके चारो पख्रार से विश्व के तियमें के सभी बन्वन मानों कट गये | मानें उसे अद्भुत शक्ति और असीम स्वाधीनता प्राप्त हो गई है । श्रह्द जो चाहे कर सकती है, जहाँ चाहे जा सकती है। इस प्रभूतपूवे नवीन भाव के आविभांव से वह पागल की तरह हो- कर उस ऑओ्रापडी से निकक्तकर उसी अन्वकार में चल दी। मन मे लज्ञा, भय ओर चिन्ता का लेश भी नहों रहा | 

चलते  चलते पैर थक गये, देह  कमज़ोर होने लगी । किसी तरह वह भारी मैदान समाप्त ही नही होता। बीच-बीच से धान के खेत. ओर पानी भरा हुआ  मिलता था । जब थोड़ा- सबेरे का प्रकाश हुआ तब पास ही बस्ती के चिह्न देख पड़े ओर पक्षियों का शब्द सुन पड़ा । 

तब उसे एक प्रकार का भय मालूम पड़ने' लगा । वह यह कुछ भी नहीं जानती कि प्रथ्वी के सांथ, जीवित मनुष्यों के साथ, इस समय उसका कैसा सम्बन्ध है। जब तक वह मैदान मे थी, मसान में थी, रात के अन्धकार में थी, तब तक मानों वह निर्भय थी--अपने राज्य मे थी । दिन के प्रकाश में प्रादमियों' की बस्ती उसे अत्यन्त 'भयदडुर स्थान जान पडने छगी। मनुष्य भूत को डरता है, और भूत भी मनुष्य को रस्ता है--मुत्यु-मदी के दोनों किनारों पर दोनों रहते हैं। 

33
रचनाएँ
गल्प गुच्छ
0.0
कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प गुच्छ साल भर से काफ़ी चर्चा में है। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है। पूरी कथा पाठक में इतनी बेचैनी पैदा कर देती है कि वह आतंकित कर देने वाली उन परिस्थितियों और किरदारों के बारे में सोचे जो हमारे आस पास निर्मित हो चुकी हैं और उनका दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। कई बार कोई क़िताब, कोई रचना आप पढ़ना तो चाहते हैं, मगर अन्य कारणों से वह टलता रहता है। आपके चाहने के बावजूद वह छूटती रहती है। आप पछताते रहते हैं, मगर वह हाथ नहीं आती। कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प ऐसी ही पुस्तक है। पिछले सात-आठ महीनों से यह उपन्यास मेरा पीछा कर रहा था और मैं इसके पीछे लगा हुआ था, मगर पढ़ा जा सका अब। पढ़ने के बाद लगा कि अगर न पढ़ता तो कुछ छूट जाता। साल भर से यह उपन्यास काफ़ी चर्चा में है। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा नवलेखन का पुरस्कार मिलने की वज़ह से भी यह चर्चित रहा, इसकी विषयवस्तु, भाषा और उसकी शैली। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है।
1

मुर्दे की मौत भाग 1

24 अगस्त 2022
3
0
0

रानीहाट के जमींदार शारदाशंकर  बाबू के घर की विधवा वहू के मायके से कोई नही  था । एक-एक करके सभी मर गये। सुसराल  मे भी ठीक अपना कहलाने लायक कोई ल था। न पति था और-न पुत्र ही  था। उसके जेठ शारदाशह  का एक

2

भाग 2

24 अगस्त 2022
1
0
0

कादम्बिनी के कपड़े मे कीचड भरा हुआ था। अद- भुत भाव के आवेश श्रोर रात के जागने से वह पागल सी हे। रही थी । उसका चेहरा देखकर लोग सचमुच ही डर सकते थे।  शायद गॉव के लडके उसे देखकर पागतव समझकर दूर से ढेले

3

भाग 3

24 अगस्त 2022
0
0
0

इसी कारण कभी-कभी दोपहर की सूनी कंठरी में पड़ें- पड़ वह चिल्ला उठती थी  और  शाम को दीपक के प्रकाश में अपनी परछाही  देखकर उसकी रोगटे खड़े हो आते थे ।  उसके इस भय का देखकर घर के लोगों के मन मे भी एक प्र

4

भाग 4

24 अगस्त 2022
0
0
0

असल बात उसकी सममझ्त मे नहों आई | वह जवाब भी नहो दे सकी ओर दुबारा कुछ प्रश्न भी नहों कर सकी । मुँह फुला- कर गम्भीर भाव से वहाँ से चली गई |  रात के दस बजे होगे जब  श्री पति रानीहाट से लौट आये । उस समय

5

भाग 5

24 अगस्त 2022
0
0
0

कमरे भर में अन्धकार'छा गया। कादम्बिनी एकंदम कमरे की भीतर आकर खडो हा गई ।  उस समय ढाई पहर के लगभग राव बीती होगी । बाहर'जोर से पानी पढ़ रहा था । कादम्बिनी मे कहा--बहन, में तुम्हारी सखी कादम्बिनी ही हूँ

6

सुधा भाग 1

24 अगस्त 2022
0
0
0

कान्तिचन्द्र की अवस्था थोडी है, तथापि ज्री के मरने के उपरान्त द्वितीय स्त्री का अनुसन्धान न करके पशु-पक्तियों के शिकार से ही उन्होंने  अपना मन लगाया | उनका शरीर लम्बा, पतला, हृढ़ ओर हल्का था। दृष्टि त

7

भाग 2

24 अगस्त 2022
0
0
0

 दूर जाकर पता लगाने की सामथ्य नहीं । घर मे भगवान्‌ की मुर्ति है, उसे छीड़कर कहीं जाना नहीं हो सकता । कान्तिचन्द्र ने कहा--नाव पर आप मुझसे अगर मिल्ल सके' ते में एक कुल्लीन अच्छा छडका बतला सकता हैँ । 

8

समस्या-पूर्ण भाग 1

24 अगस्त 2022
0
0
0

 देवपुर के ज़मीदार रामगोपाल अपने बड़े लङके को ज़मीदारी और घर-ग्रहस्थी सौपकर काशीवास' करने चले गये | देश के सब अनाथ दरिद्र लोग उनके लिए हाहाकार करके रोने लगे । सब यही कहने लगे कि ऐसी उदारता और  धमेनिष्

9

भाग 2

24 अगस्त 2022
0
0
0

भेया, आल्ला  तुम्हारा भला करे' । बेटा, रमजानी का तुम बिगा- डूना नहीं। में उसे तुमका सॉंपती हूँ। उसे तुम अपना छोटा भाई समझकर उसके खाने-पीने का ज़रिया वह ज़मीन दे दे।। तुम्हारे वेशुमार दे।लत है। जितनी त

10

भाग 3

24 अगस्त 2022
0
0
0

कष्णगोपाल् ने विस्मित होकर पूछा--इसी लिए आप काशी से इतनी दुर आये हैं ? रमज़ानी पर आपका इतना अनुग्रह क्यो है ? रामगोपाल ने कदा--यह सुनकर तुम क्‍या करोगे ? कष्णगोपाल् ने नहीं माना और कहा--अयोग्यता का व

11

प्रायचित भाग 1

25 अगस्त 2022
0
0
0

स्वर्ग  और  मनुष्यलोक के बीच में एक अनिर्देश्य अरा जक स्थान है, जहाँ राजा त्रिशंकु लटक रहे हैं और जह आकाशकुसुमे के ढेर पैदा  होते हैं। उस वायुदुर्गवेष्टिव महा देश का नाम है “होता तो है| सकता? । जो लोग

12

भाग 2

25 अगस्त 2022
0
0
0

किन्तु यह बात भी, उसके सन मे आई कि उसके खामी सुसरात् में रहने के कारण आदर की अपने हाथो गँवा रहे हैं | उस् दिन से नित्य वह खामी से कहने लगी कि तुम अपने घर मुझे ले चले, अब में यहाँ नहीं रहेंगी । अनाथब

13

भाग 3

25 अगस्त 2022
0
0
0

किन्तु स्त्री  किसी तरह इस बात पर राजी  नही  हुई | उसन अपनी राय यह जाहिर की कि बड़े भाई की रोटी और  आवाज  की गाली पर छेप्टे भाई का पारिवारिक अधिकार है, किन्तु सुसरात्त में जाकर रहना बड़ी ही बेज्जती की

14

भाग 4

25 अगस्त 2022
0
0
0

विन्ध्यवासिनी  ने कहा--आप वि्लायत जाने मे .रोक-टाक न करे इसलिए नही मांगे | राजकुमार बाबू  बहुत ही नाराज़ हुए। माता रोने लगी ओर बेटी भी रोने लगी । कलकत्ते मे चारों आर विचित्र स्वर से उत्सव के बाजे बज र

15

भाग 5

25 अगस्त 2022
0
0
0

अनाथबन्धु उत्साह  के साथ इस बात पर राज़ी हो गये । उन्होंने मन मे सोचा, जे बार-्लाइब्रेरियों मे पड़े रहनेवाले स्वदेशी बेरिस्टर उनसे डाह करते हैं और उनकी असामान्य प्रतिभा के प्रति यथरेष्ट सम्मान नहीं  द

16

सुभा भाग 1

25 अगस्त 2022
0
0
0

 लड़की का नाम जब सुभाषिणी रक्खा गया था तब कीन जानता था कि वह गूगी हेगी ? उसकी दो  बडी बहनें का नाम सुकेशिनी ओर सुहासिनी रखा गया था | इसी से उसी अनुप्रास पर पिता ने छोटी लडकी का नाम सुभाषिणी रखा  | इस

17

भाग 2

25 अगस्त 2022
0
0
0

 धूप  से प्रकाशित महृत्‌ आकाश के नीचे केवल गूँगी प्रकृति और गूंगी लड़की सुभा दोनों आमने-सामने चुप- चाप बैठे-बेठे एक दूसरे को निहारा करती थीं । प्रकृति फैली हुई धूप में, ओर सुभा छोटे-छोटे पेड़ों की छाह

18

भाग 3

25 अगस्त 2022
0
0
0

मान लो, सुभा अगर जल्लकुमारी होती; धीरे-धीरे जल से ऊपर उठकर एक नागमशि घाट पर रण जाती , प्रताप तुच्छ मछली पकडने के काये का छोड़कर उस मणि का लेकर जल मे गोता क्गाता और पाताक्न मे जाकर देखता, चॉदी के महल म

19

विचारक भाग 1

25 अगस्त 2022
0
0
0

अनेक अवस्थाएँ बदलने के उपरांत अन्त का गतयौबना चुन्नो ते जिस पुरुष का आश्रय श्रदण किया था वह भी जब उसे फटे कपड़े की तरह छाड़ गया तब मुट्ठी भर अन्न के लिए दूसरे आश्रय के। खे।जने की चेष्टा करने से उसे अत

20

भाग 2

25 अगस्त 2022
0
0
0

समुद्र के भीतर से, वृत्तपंक्ति से श्यामल तट-भूमि जैसे रम-णीय स्वप्न के समान, चित्र के समान जान पड़ती है वैसे किनारे पर पहुँचने से नहीं । वेघव्य के घेरे की आड़ से चमेली संसार से जितना दूर हो गई थी उसी

21

भाग 3

25 अगस्त 2022
0
0
0

निद्राहदीन चमेली  की रात कहाँ जाकर समाप्त होगी | उस्र निरानन्द प्रात:काल मे जब चमेली के घर सूथ्ये देव का प्रकाश प्रवेश करेगा तब वहाँ सहसा केसी लज्ना प्रकाशित हो पड़ेगी-- कैसी लाउछना, कैसा हाहाकार जग उ

22

मध्यवर्तिनी भाग 1

25 अगस्त 2022
0
0
0

सुन्दर निहायत मामूली ढंग का था। उसमें काव्यरस, की गन्ध तक न थी। उसके मन में कभी यह बात नहीं आई कि जीवन में उक्त रस की कुछ आवश्यकता होती है। जैसे  परिचित पुराने जूते के भीतर पेर बिलकुल् निश्चिन्तः भाव

23

भाग 2

25 अगस्त 2022
0
0
0

के ऊपर आनन्दमयी प्रकृति की हर एक उगली जेसे फिरने लगो और हृदय के भीतर जे। एक प्रकार का सद्भीत सुन पड़ने लगा उसके ठीक भाव को वह अच्छी तरह समझ नहीं सकती थी । ऐसे समय जब उसका खामी पास बेठकर पूछता था कि क

24

भाग 3

25 अगस्त 2022
0
0
0

 एक हीरे का ठुकड़ा मिल्लने पर उसे  तरह-तरह से घुमा-फिराकर देखने का जी चाहता है | किन्तु यह एक नौजवान सुन्दरी स्री का मन था--सुन्दरलाल के लिए बुढ़ापे मे एक बहुत ही अपूर्व और स्पृहणीय पदार्थ था ! इसका क

25

भाग 4

26 अगस्त 2022
0
0
0

और आनन्द-गद्द सुन्दर वार-वार प्यारी, प्यारी! कहकर उसे सचेत करने की चेष्टा कर रद्दा था | सुन्दर ने इसी बीच में बड्धिम बाबू का “चन्द्रशेखर  उप- न्यास पढ़ डाला था और वह देो-एक प्राधुनिक कवियों के खड्भार-

26

भाग 5

26 अगस्त 2022
0
0
0

रक्त में मानों फनकार मारता रहा। पार्वती  ने अपने मन मे कहा-- और किस बात को लेकर तेरी और मेरी तुलना होगी । किन्तु एक समय मेरी  भी यह अवस्था थी,  मैं भी इसी तरह सिर से पैर तक जवानी के रोम मे भरी हुई थी

27

भाग 6

26 अगस्त 2022
0
0
0

जानकी के असतोष और असुख की सीमा नहीं रही | चह किसी तरह यह समझना  नहीं चाइती कि उसके स्वामी मे उसे सन्तुष्ट रखने की क्षमता नही है । क्षमता नहों थी ते व्याह् क्यों किया था | ऊपर के खण्ड मे कीवल दो  कमरे

28

अत्याचार

26 अगस्त 2022
0
0
0

जमीदार के नायव जानकीनाथ के घर में प्यारी नास की एक महराजिन रसोई बनाने के लिए नौकर कुई। उसकी अवस्था कम थी और चरित्र अच्छा था। दूर की रहनेवाली वह ब्राह्मणों विपत्ति के फेर से पड़कर जानकीनाथ की घर आकर नो

29

चुधित पाषाण भाग 1

26 अगस्त 2022
0
0
0

मैं  और  मेरे एक आत्मीय एक दिन रेल पर बेठे हुए कल्कत्ते जा रहे थे। इसी बीच से रेलगाड़ी पर एक आदमी से मुलाकात  हो गई। उसका पहनावा मुसल्लमानों का सा था | उसकी बाते सुनकर आश्चये का ठिकाना नहीं रहता था। प

30

भाग 2

26 अगस्त 2022
0
0
0

किन्तु उसी घड़ी मुझे स्मरण हो आया कि में सचमुच अमुक का ज्ये्ठ पुत्र अमुक हूँ । यह भी मैंने अपने मन में सोच लिया कि इस बात की तो  हमारे महाकबि और  कवि वर ही कद्द सकते हैं कि जगत् के भ्रीतर अथवा बाहर कह

31

भाग 3

26 अगस्त 2022
0
0
0

इस खण्डस्वप्न के अवत्त के भीतर---इसी हिना की. महक सितार के शब्द ओर सुगन्धित जल-कणो से मिल्ले हुए पवन के भोकी के वीच---एक नायिका को दम-दम भर पर बिजली की चसक के समान देख पावा था। उसका जाफू्रानी रद्ग का

32

भाग 4

26 अगस्त 2022
0
0
0

खजूर: के पेड़े की छाया से, किस गृहहीन अरब देश की स्मेंणी-के-मर्भ से उत्पन्न हुई थों ! तुमकी कान लुटेरा, वस्त्र  से पुष्पक की तरह, माता की गोद से अलग करके बिजली  को तरह भागने वाले घोड़े पर चढ़ाकर मरुसू

33

भाग 5

26 अगस्त 2022
0
0
0

उसी वर्षों मे, पगल्ले के पास दौड़ा गया ओर उससे पूंछा--मेहर अली, क्या झूठ ठ है वह मेरी बात का कुछ उत्तर न देकर मुझे आगे से हटा- कर--अजगर के मुह के पास साह के आवेश से घूम रहे पत्तों की तरह--चिल्लाता हुआ

---

किताब पढ़िए