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भाग 3

25 अगस्त 2022

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किन्तु स्त्री  किसी तरह इस बात पर राजी  नही  हुई | उसन अपनी राय यह जाहिर की कि बड़े भाई की रोटी और  आवाज  की गाली पर छेप्टे भाई का पारिवारिक अधिकार है, किन्तु सुसरात्त में जाकर रहना बड़ी ही बेज्जती की बात है। क्योंकि उस पर कोई  दावा नहीं है । विन्ध्यवासिनी सुसराल  मे दीन- हीन की तरह रह सकती है, किंतु  बाप के यहाँ वह अपनी इज्जत    बनाये रखकर सिर उठाकर रहना चाहती है।

इसी समय गाँव के हाईस्कूल में थर्ड मास्टर की जगह खाली हुईं । अनाथबन्धु  के भाई और विन्ध्यवासिनी दोनों ही अनाथबन्धु से वहाँ नाकरी करने के लिए बारम्बार कहने त्गे। इसका भी फत्त उल्लटा ही हुआ। अपने सगे भाई और खस्लरी का ऐसी    
अत्यन्त तुन्छ नोकरी के लिए  अनुरोध करते देखकर वे बहुत कुढ़े और  संसार के सब काम -काज की ओर से उन्हें पहले से चौगनी वि क्ति हो गई। तब उनके बडे भाई से बहुत सी मीठी बातें कहकर उनको मनाया | सभी ने अपने मन में कहा--अब कुछ कद्दने की ज़रूरत नही है |

अनाथबन्धु  किसी तरह घर में ही बने रहे-- कहीं रूठकर चले न जाये--यही गनीमत है । छुट्टो समाप्त होने पर अनाथबन्धु के दादा नोकरी पर चल्ले गये | श्यामा कुछ दिन तक अपने रुद्ध आक्रोश से मुंह फुलाकर एक बड़ा भारी कुद शेन चक्र बनाये गयी । अनाथ- बन्धु ने विन्ध्यवासिनी से आकर कहा--आजकल  बिना कोई अच्छी नौकरी नही्  मिलती । में विल्लायत  जाने का इरादा करता हूँ। तुम किसी बहाने से अपने बाप से कुछ रुपये माँगा |

एक ते विल्लायत जाने की बात सुनकर विन्ध्यवासिनी के सिर पर वज्र सा गिर पडा । उसके ऊपर पिता से रुपये मॉगने की बात सुनकर वह मानें लज्जा के मारे मर गई । ससुर से भी अपने मुँह से रुपये मॉगने से अनाथबन्धु के अहंकार  ने बाघा डाली किन्तु लडकी कौशल से अपने बाप से रुपये नहीं ला सकती---इस का अर्थ  कुछ भी उनकी समझ  से नही आया। इस वात की लेकर अनाथबन्धु पर बहुत बिगड़े और स्त्री से बोेल्नना तक छोड दिया। रोते-रोते विन्ध्य- वासिनी की आँखे  फूल उठीं  । इसी तरह कुछ दिन बीत गये ।

अन्त का आखरी  का महीना और दुर्गापूजा का समय निकट आया | दुर्गापूजा बड़ालियाो का एक बडा भारी ट्यौहार होता है। कन्या ओर दाम'द का लाने के लिए राजकुमार बाबू ने बहुत से सामान के साथ आदसी भेजा । साक्ष भर के वाद कन्या अपने स्वामी के साथ पिता के घर आईं | अब की दामाद की पद्दलें से बहुत चढ़कर खातिर हुई | विन्ध्य-वासिनी भी वाप के घर आनन्द मनाने लगी । उस दिन छठ थी ) कल्न सप्तमी से पूजा का आरम्भ होगा । घूमधाम, व्यग्रता और  कालाइल का अन्त न था | दूर भर निकट के नातेदारों से राजकुमार बावू का घर भर गया ।

रात का काम-काज से थक्की हुई विन्भ्यवासिनी लेटते ही से गई। पहले जिस कमरे में विन्ध्यवासिनी रहती थी, यह वह कमरा न था। अबकी विशेष आदर जताने के लिए राजकुमार बाबू ने अपना खास कमरा विन्ध्यवासिनी केए रहने के लिए दिया है। अनाथबन्धु कत्र साने के लिए कमरे में आये, यह विन्ध्यवासिनी को माल्ुम भो नहीं हुआ। वह उस समय गहरी नींद में खराटे ले रही थी । बड़े तड़के से ही शहनाई बजने लगा । किन्तु थकी हुई विन्ध्यवासिनी की आँख नहीं रुली |

कमला और भुवन- मोहिनी नाम की दे! सखिया छिपकर ओऔःरत-मर्द की बातचीत सुनने के इशद से विन्ध्यवासिनी  के कमरे के दरवाज़े पर गई । वहां कमरा बन्द पाकर ओर बातचीत की आहट न पाकर दोनों  सखियाँ जोर से खिलखिलाकर हेंस पड़ों । उस हँसी के शब्द से विन्ध्यवासिनी की आँख खुल गई । 

अनाथबन्धु कब उसके पास से उठकर चले गये, इसकी उसे कुछ ख़ब्रन थी | लज्जित हे। पल्लेंग से नीचे पेर रखते डी उसने देखा, उलकी सा का लोहे का सन्दूकू खुला पडा है  उसके भीतर राजकुमार बाबू का जे कैशबक्स रक्‍्खा रहता था, वह भी नहों है | तब उसे याद आया कि कल्ल शाम का माता का चासियों का ग॒च्छा खेा.,जाने से बड़' खल्बली पड़ गई थी। इसमें कोई सन्देह नहीं कि उन्हीं चामियों को चुराकर किसी ने यह चोरी: की है।

 तब एकाएक उसे यह खयात्न हुआ कि चोर ने उसके खासी को किसी तरह की चोट न पहुँचाइई हो | कलेजा धक से हो। उठा। पत्केंग के नीचे नज़र डात़्कर देखा ते पाये. के पास मा की चाभियों के गुच्छे के नीचे दबी हुई एक चिट्री रक्खी है । चिट्टो उसके ख!मी के ही हाथ की लिखी हुईं थी। खोल- कर उसे पढने से मालूम हुआ कि अनाथबन्धु ने किसी सित्र की सहायता से विज्ञायत जाने क़े ल्ञिए जहाज़ का किराया प्राप्त कर लिया है। 

स्त्री  वहाँ का खचे चल्लाने के लिए और कोई उपाय न देखकर रात को ससुर का धन हथियाकर, बरामदे मे लगी हुई सीड़ों से बाग मे उत्रकर, दीवार फॉदकर वे भाग गये हैं। आज  सबेरे ही जहाज़ छूट गया है । पत्र पढ़कर विन्ध्यवासिनी के शरीर का सारा ख़ून ठण्ढा पड़ गया । वही पर खाट का पाया पकड़कर वह बैठ गई | 

उसकी देह के भीतर ओर काने में निःस्तब्ध कालराज्नि की मिल्लीकड्टठार के समात्त एक प्रकार का, भयानक करकश शब्द जैसे गूंज उठा। डस समय घर के ऑगन से, परासियों के घर से ओर दूर के मकानें से बहुत सी शहनाइयों का स्वर उठ- कर आकाश मे गूँज रहा था । कंवत्तन कलकत्ते  मे ही नहीं, सारे बड्ाल मे उस समय लोग आनन्द-मग्न हो रहे थे।

 घर भर में शरद ऋतु का उज्ज्वल घाम फैल्ञ गया | इतना दिन चढने पर भी उत्सव के दिन विन्ध्यवासिनी के कमरे का द्वार बन्द देखकर कमला और भुवनमेाहिनी हँखते-हँसते किवाड़ पीटने लगीं। तब भी कुछ उत्तर न पाकर, कुछ डर- कर, ज़ोर से विन्ध्यवालिनी को पुकारने लगों | विन्ध्यवासिनी ने भ भरी हुई आवाज़ मे कहा -आती हैं; तुम इस समय जाओ । दोनों सखियाँ विन्ध्यवासिनी की नवियत खराब होने की आशा  से उसकी मा को बुला लाई ।

माता ने आकर कहा---बिटिया, केप्ती तवीयत है--अभी तह दर्वाज्जा  क्‍यों बन्द कर रक्‍खा है ? विन्ध्यवासिनी ने उमड़े हुए ऑसुओं का रोकऋर कहा-. ज़रा बाबूजी को बुला लाओ ! मावा बहुत ही उरी । वे उसी समय पति को बुला लाई । विन्ध्यव,सिनी जल्दी से द्वार खेलकर माता और पिता को कमरे के भीतर ले गई और भीतर जाकर जल्दी  से कियाडे बन्द कर लिये | तब विन्ध्यवासिनी ने ज़मीन पर लोटकर अपने बाप के दोनों पेर पकडकर छाती फाडकर निक्र्ल रहे ऑसुओं को बहाते हुए गद गद स्वर से कहा--बाबूजी, मुझे माफ़ करो, मैंने तुम्हारे सन्दूऊ से रुपये निकाल लिये हें | माता और पिता सन्नाटे मे आकर पलेग पर बैठ गये । विन्ध्यव'सिनी ने कहा --अपने स्वामी का विज्ञायत भेजने के लिए उमने यह काम किया है  पिता ने पूछा--तूने हमसे क्‍यों नहीं मॉगा ?

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रचनाएँ
गल्प गुच्छ
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कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प गुच्छ साल भर से काफ़ी चर्चा में है। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है। पूरी कथा पाठक में इतनी बेचैनी पैदा कर देती है कि वह आतंकित कर देने वाली उन परिस्थितियों और किरदारों के बारे में सोचे जो हमारे आस पास निर्मित हो चुकी हैं और उनका दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। कई बार कोई क़िताब, कोई रचना आप पढ़ना तो चाहते हैं, मगर अन्य कारणों से वह टलता रहता है। आपके चाहने के बावजूद वह छूटती रहती है। आप पछताते रहते हैं, मगर वह हाथ नहीं आती। कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प ऐसी ही पुस्तक है। पिछले सात-आठ महीनों से यह उपन्यास मेरा पीछा कर रहा था और मैं इसके पीछे लगा हुआ था, मगर पढ़ा जा सका अब। पढ़ने के बाद लगा कि अगर न पढ़ता तो कुछ छूट जाता। साल भर से यह उपन्यास काफ़ी चर्चा में है। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा नवलेखन का पुरस्कार मिलने की वज़ह से भी यह चर्चित रहा, इसकी विषयवस्तु, भाषा और उसकी शैली। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है।
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मुर्दे की मौत भाग 1

24 अगस्त 2022
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रानीहाट के जमींदार शारदाशंकर  बाबू के घर की विधवा वहू के मायके से कोई नही  था । एक-एक करके सभी मर गये। सुसराल  मे भी ठीक अपना कहलाने लायक कोई ल था। न पति था और-न पुत्र ही  था। उसके जेठ शारदाशह  का एक

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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कादम्बिनी के कपड़े मे कीचड भरा हुआ था। अद- भुत भाव के आवेश श्रोर रात के जागने से वह पागल सी हे। रही थी । उसका चेहरा देखकर लोग सचमुच ही डर सकते थे।  शायद गॉव के लडके उसे देखकर पागतव समझकर दूर से ढेले

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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इसी कारण कभी-कभी दोपहर की सूनी कंठरी में पड़ें- पड़ वह चिल्ला उठती थी  और  शाम को दीपक के प्रकाश में अपनी परछाही  देखकर उसकी रोगटे खड़े हो आते थे ।  उसके इस भय का देखकर घर के लोगों के मन मे भी एक प्र

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भाग 4

24 अगस्त 2022
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असल बात उसकी सममझ्त मे नहों आई | वह जवाब भी नहो दे सकी ओर दुबारा कुछ प्रश्न भी नहों कर सकी । मुँह फुला- कर गम्भीर भाव से वहाँ से चली गई |  रात के दस बजे होगे जब  श्री पति रानीहाट से लौट आये । उस समय

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भाग 5

24 अगस्त 2022
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कमरे भर में अन्धकार'छा गया। कादम्बिनी एकंदम कमरे की भीतर आकर खडो हा गई ।  उस समय ढाई पहर के लगभग राव बीती होगी । बाहर'जोर से पानी पढ़ रहा था । कादम्बिनी मे कहा--बहन, में तुम्हारी सखी कादम्बिनी ही हूँ

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सुधा भाग 1

24 अगस्त 2022
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कान्तिचन्द्र की अवस्था थोडी है, तथापि ज्री के मरने के उपरान्त द्वितीय स्त्री का अनुसन्धान न करके पशु-पक्तियों के शिकार से ही उन्होंने  अपना मन लगाया | उनका शरीर लम्बा, पतला, हृढ़ ओर हल्का था। दृष्टि त

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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 दूर जाकर पता लगाने की सामथ्य नहीं । घर मे भगवान्‌ की मुर्ति है, उसे छीड़कर कहीं जाना नहीं हो सकता । कान्तिचन्द्र ने कहा--नाव पर आप मुझसे अगर मिल्ल सके' ते में एक कुल्लीन अच्छा छडका बतला सकता हैँ । 

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समस्या-पूर्ण भाग 1

24 अगस्त 2022
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 देवपुर के ज़मीदार रामगोपाल अपने बड़े लङके को ज़मीदारी और घर-ग्रहस्थी सौपकर काशीवास' करने चले गये | देश के सब अनाथ दरिद्र लोग उनके लिए हाहाकार करके रोने लगे । सब यही कहने लगे कि ऐसी उदारता और  धमेनिष्

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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भेया, आल्ला  तुम्हारा भला करे' । बेटा, रमजानी का तुम बिगा- डूना नहीं। में उसे तुमका सॉंपती हूँ। उसे तुम अपना छोटा भाई समझकर उसके खाने-पीने का ज़रिया वह ज़मीन दे दे।। तुम्हारे वेशुमार दे।लत है। जितनी त

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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कष्णगोपाल् ने विस्मित होकर पूछा--इसी लिए आप काशी से इतनी दुर आये हैं ? रमज़ानी पर आपका इतना अनुग्रह क्यो है ? रामगोपाल ने कदा--यह सुनकर तुम क्‍या करोगे ? कष्णगोपाल् ने नहीं माना और कहा--अयोग्यता का व

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प्रायचित भाग 1

25 अगस्त 2022
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स्वर्ग  और  मनुष्यलोक के बीच में एक अनिर्देश्य अरा जक स्थान है, जहाँ राजा त्रिशंकु लटक रहे हैं और जह आकाशकुसुमे के ढेर पैदा  होते हैं। उस वायुदुर्गवेष्टिव महा देश का नाम है “होता तो है| सकता? । जो लोग

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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किन्तु यह बात भी, उसके सन मे आई कि उसके खामी सुसरात् में रहने के कारण आदर की अपने हाथो गँवा रहे हैं | उस् दिन से नित्य वह खामी से कहने लगी कि तुम अपने घर मुझे ले चले, अब में यहाँ नहीं रहेंगी । अनाथब

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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किन्तु स्त्री  किसी तरह इस बात पर राजी  नही  हुई | उसन अपनी राय यह जाहिर की कि बड़े भाई की रोटी और  आवाज  की गाली पर छेप्टे भाई का पारिवारिक अधिकार है, किन्तु सुसरात्त में जाकर रहना बड़ी ही बेज्जती की

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भाग 4

25 अगस्त 2022
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विन्ध्यवासिनी  ने कहा--आप वि्लायत जाने मे .रोक-टाक न करे इसलिए नही मांगे | राजकुमार बाबू  बहुत ही नाराज़ हुए। माता रोने लगी ओर बेटी भी रोने लगी । कलकत्ते मे चारों आर विचित्र स्वर से उत्सव के बाजे बज र

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भाग 5

25 अगस्त 2022
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अनाथबन्धु उत्साह  के साथ इस बात पर राज़ी हो गये । उन्होंने मन मे सोचा, जे बार-्लाइब्रेरियों मे पड़े रहनेवाले स्वदेशी बेरिस्टर उनसे डाह करते हैं और उनकी असामान्य प्रतिभा के प्रति यथरेष्ट सम्मान नहीं  द

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सुभा भाग 1

25 अगस्त 2022
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 लड़की का नाम जब सुभाषिणी रक्खा गया था तब कीन जानता था कि वह गूगी हेगी ? उसकी दो  बडी बहनें का नाम सुकेशिनी ओर सुहासिनी रखा गया था | इसी से उसी अनुप्रास पर पिता ने छोटी लडकी का नाम सुभाषिणी रखा  | इस

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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 धूप  से प्रकाशित महृत्‌ आकाश के नीचे केवल गूँगी प्रकृति और गूंगी लड़की सुभा दोनों आमने-सामने चुप- चाप बैठे-बेठे एक दूसरे को निहारा करती थीं । प्रकृति फैली हुई धूप में, ओर सुभा छोटे-छोटे पेड़ों की छाह

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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मान लो, सुभा अगर जल्लकुमारी होती; धीरे-धीरे जल से ऊपर उठकर एक नागमशि घाट पर रण जाती , प्रताप तुच्छ मछली पकडने के काये का छोड़कर उस मणि का लेकर जल मे गोता क्गाता और पाताक्न मे जाकर देखता, चॉदी के महल म

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विचारक भाग 1

25 अगस्त 2022
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अनेक अवस्थाएँ बदलने के उपरांत अन्त का गतयौबना चुन्नो ते जिस पुरुष का आश्रय श्रदण किया था वह भी जब उसे फटे कपड़े की तरह छाड़ गया तब मुट्ठी भर अन्न के लिए दूसरे आश्रय के। खे।जने की चेष्टा करने से उसे अत

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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समुद्र के भीतर से, वृत्तपंक्ति से श्यामल तट-भूमि जैसे रम-णीय स्वप्न के समान, चित्र के समान जान पड़ती है वैसे किनारे पर पहुँचने से नहीं । वेघव्य के घेरे की आड़ से चमेली संसार से जितना दूर हो गई थी उसी

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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निद्राहदीन चमेली  की रात कहाँ जाकर समाप्त होगी | उस्र निरानन्द प्रात:काल मे जब चमेली के घर सूथ्ये देव का प्रकाश प्रवेश करेगा तब वहाँ सहसा केसी लज्ना प्रकाशित हो पड़ेगी-- कैसी लाउछना, कैसा हाहाकार जग उ

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मध्यवर्तिनी भाग 1

25 अगस्त 2022
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सुन्दर निहायत मामूली ढंग का था। उसमें काव्यरस, की गन्ध तक न थी। उसके मन में कभी यह बात नहीं आई कि जीवन में उक्त रस की कुछ आवश्यकता होती है। जैसे  परिचित पुराने जूते के भीतर पेर बिलकुल् निश्चिन्तः भाव

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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के ऊपर आनन्दमयी प्रकृति की हर एक उगली जेसे फिरने लगो और हृदय के भीतर जे। एक प्रकार का सद्भीत सुन पड़ने लगा उसके ठीक भाव को वह अच्छी तरह समझ नहीं सकती थी । ऐसे समय जब उसका खामी पास बेठकर पूछता था कि क

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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 एक हीरे का ठुकड़ा मिल्लने पर उसे  तरह-तरह से घुमा-फिराकर देखने का जी चाहता है | किन्तु यह एक नौजवान सुन्दरी स्री का मन था--सुन्दरलाल के लिए बुढ़ापे मे एक बहुत ही अपूर्व और स्पृहणीय पदार्थ था ! इसका क

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भाग 4

26 अगस्त 2022
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और आनन्द-गद्द सुन्दर वार-वार प्यारी, प्यारी! कहकर उसे सचेत करने की चेष्टा कर रद्दा था | सुन्दर ने इसी बीच में बड्धिम बाबू का “चन्द्रशेखर  उप- न्यास पढ़ डाला था और वह देो-एक प्राधुनिक कवियों के खड्भार-

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भाग 5

26 अगस्त 2022
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रक्त में मानों फनकार मारता रहा। पार्वती  ने अपने मन मे कहा-- और किस बात को लेकर तेरी और मेरी तुलना होगी । किन्तु एक समय मेरी  भी यह अवस्था थी,  मैं भी इसी तरह सिर से पैर तक जवानी के रोम मे भरी हुई थी

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भाग 6

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जानकी के असतोष और असुख की सीमा नहीं रही | चह किसी तरह यह समझना  नहीं चाइती कि उसके स्वामी मे उसे सन्तुष्ट रखने की क्षमता नही है । क्षमता नहों थी ते व्याह् क्यों किया था | ऊपर के खण्ड मे कीवल दो  कमरे

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अत्याचार

26 अगस्त 2022
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जमीदार के नायव जानकीनाथ के घर में प्यारी नास की एक महराजिन रसोई बनाने के लिए नौकर कुई। उसकी अवस्था कम थी और चरित्र अच्छा था। दूर की रहनेवाली वह ब्राह्मणों विपत्ति के फेर से पड़कर जानकीनाथ की घर आकर नो

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चुधित पाषाण भाग 1

26 अगस्त 2022
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मैं  और  मेरे एक आत्मीय एक दिन रेल पर बेठे हुए कल्कत्ते जा रहे थे। इसी बीच से रेलगाड़ी पर एक आदमी से मुलाकात  हो गई। उसका पहनावा मुसल्लमानों का सा था | उसकी बाते सुनकर आश्चये का ठिकाना नहीं रहता था। प

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26 अगस्त 2022
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किन्तु उसी घड़ी मुझे स्मरण हो आया कि में सचमुच अमुक का ज्ये्ठ पुत्र अमुक हूँ । यह भी मैंने अपने मन में सोच लिया कि इस बात की तो  हमारे महाकबि और  कवि वर ही कद्द सकते हैं कि जगत् के भ्रीतर अथवा बाहर कह

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भाग 3

26 अगस्त 2022
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इस खण्डस्वप्न के अवत्त के भीतर---इसी हिना की. महक सितार के शब्द ओर सुगन्धित जल-कणो से मिल्ले हुए पवन के भोकी के वीच---एक नायिका को दम-दम भर पर बिजली की चसक के समान देख पावा था। उसका जाफू्रानी रद्ग का

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भाग 4

26 अगस्त 2022
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खजूर: के पेड़े की छाया से, किस गृहहीन अरब देश की स्मेंणी-के-मर्भ से उत्पन्न हुई थों ! तुमकी कान लुटेरा, वस्त्र  से पुष्पक की तरह, माता की गोद से अलग करके बिजली  को तरह भागने वाले घोड़े पर चढ़ाकर मरुसू

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भाग 5

26 अगस्त 2022
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उसी वर्षों मे, पगल्ले के पास दौड़ा गया ओर उससे पूंछा--मेहर अली, क्या झूठ ठ है वह मेरी बात का कुछ उत्तर न देकर मुझे आगे से हटा- कर--अजगर के मुह के पास साह के आवेश से घूम रहे पत्तों की तरह--चिल्लाता हुआ

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