विन्ध्यवासिनी ने कहा--आप वि्लायत जाने मे .रोक-टाक न करे इसलिए नही मांगे | राजकुमार बाबू बहुत ही नाराज़ हुए। माता रोने लगी ओर बेटी भी रोने लगी । कलकत्ते मे चारों आर विचित्र स्वर से उत्सव के बाजे बज रहे थे । जे विन्ध्यवासिनी बाप से भी कभी रुपये नहीं मंग सकी और जे। स्लो स्वामी के लेश भर असम्मात्त की अपने सगे भी छिपाने में प्राशथपण कर सकती थी उसका बह आत्मासि- मान और पति के ग़ौरव का दम्म चूर्ण होकर प्रिय ओर अप्रिय, परिचित और अपरिचित सबके पैरो के नीचे धूल की तरह ठाकरे खाने लगा।
पहले से ही सलाह करके, कुचक्र रच- कर, चाभी चुराकर, स्त्री की सद्दायता से रात का ही चोरी करके अनाथत्रन्धु विज्ञायत भाग गये हैं। इस ब'त की चर्चा नातेदारा से भरे घर मे चारो ओर ज़ोर शोर से होने लगी | दर्वाज़ं के पास खड़े होकर भुवनमेोहिनी, कमला, अनेक स्वजन, पड़ोसी और ने।नौकर -चाकरे ने सब बाते सुनी थीं |
लड़की के बन्द कमरे से उत्कण्ठा और घबराहट के साथ राज- कुमार बाबू और उनकी स्त्रो के जाते देखकर सभी लोग केतू- हल और प्राशइड. के मारे व्यग्न होकर वहाँ जमा हे! गये थे । विन्ध्यवासिनी ने किसी की भी मुँह नहों दिखाया। दर्वाज़ा बन्द किये खाना-पीना छेडकर उसी कमरे मे पड़ी रही । उसके इस शाक से किसी की दुःख नहों हुआ । कुचक्र रचनेवाली की दुष्ट बुद्धि पर सबक बडा विस्मय हुआ | सेचा, मौका न पड़ने के कारण अब तक आचरण छिपे हुए थे। निरानन्द घर में किसी तरह का उत्सव सम्पन्न हो गया ।, अपमान और विषाद से सिर झुकाए हुए सुसराल आई । वहाँ पुत्र के वियोग से कातर विधवा के साथ पति के विरह् से पीडित बहू का मेल ओर भी गया।
दोनों परस्पर एक दूसरे के दुःख का अनुभव हुईं चुपचाप शोक की छाया के नीचे गहरी सहिष्णुता के ह घर के छोटे से छाटे काम को भी श्रपने हाथ से सम्पन्न क लगीं। सास जितना निकद राई, पिता-माता उतना ही चले गये । विन्ध्यवासिनी ने अपने मन मे अनुभव किया | सास गरीब है और में भी गरीब हूँ। हम दोनों एक दुःख के बन्धन मे पड़ी हुई हैं। माता-पिता अमीर है अवस्था और हमारी अवस्था मे बड़ा अन्तर है। एक ते गरी होने के कारण विन्ध्यवासिनी उनसे बहुत दूर है, उसके इन चोरी स्वीक्षार करके वह और भी बहुत नीचे गिर गई है कौन जाने, स्नेह, के सम्बन्ध का वन्धन इतनी बड़ो का के बोझ का सह सकता हे या नहीं !, अनाथबन्धु विज्ञायत जाने पर पहले तो स्त्री का बराबर चिट्ठी लिखते रहे । किन्तु धीरे-धीरे चिट्ठियो का आना दो! चला और जे चिट्वियों आती भी थीं उनमे अपेक्षित भाव से एक प्रकार का घृणा का भाव भी कक्षकता था। अनाथ- बन्धु 'की अशिक्षिता, घर के काम-काज में लगी रहने वाल्, वाले स्त्री की अपेक्षा विय्या-त्रुद्धि और रूप-गुण मे अत्यन्त श्रेष्ठ अनेक अगरेज़-कन्याएं उनका सुयोग्य, और सुरूप कहकर उनका आदर करती थी ।
ऐसी अवस्था मे अगर अनाथबन्धु अपनी धोती पहनने वाली, घूँघट काढे रहने वाली, काली औरत को अपने योग्य न समझते तो कोई विचित्र बात नही । किन्तु ! भी रुपये की कमी हुई तब इस वड़ाली के लड़के का उसी औरत की तार देने मे कुछ भी नहीं मालूम हुआ । और उस बगाली औरत ने ही दोनों हाथो से केवल चूड़ियाँ रखकर एक-एक करके सब गहने बेच स्वामी के पास रुपये भेजे । गांव में सुरक्षित स्थान न हाने के कारण विन्ध्यवासिनी के सब कीमती ज्वर पिता -के यद्दों ही रखे हुए थे। खाश नातेदारी और परिवार से काम-काज के अवसर पर जाने का बह ना करके विन्ध्यवासिनी ने अपने सब गहने मेँगा लिये। अन्त को अपनी बनारसी साड़ो और दुशाल्ला तक्र बेंचकर विन्ध्यवसिनी ने रुपये भेजे और बहुत्त अनुनय-विनय करके,। से पन्न की हर एक लाइन भिगो- कर, पति का लिखा कि तुम घर लौट आओ | अनाथबन्धु एलबट फैशन दाढ़ों रखाकर, -पतलून पहन- कर, बेरिस्टरी पास करके लौट आये।
आकर वे कलकत्ते जब घर का खचे चलना कठिन हो ! गया तव अनाथबन्धु ने के साथ यह ठद्दराया कि पतित भारत में गुण का आदर नहीं है और उनके हमपेशा लोग गुप्त रूप से डाह के मारे उनकी उन्नति ओर प्रसिद्धि के मार्ग में बाधा डालते है। जब उनके खाने की टेबिल्न पर अण्डों के अभाव को साग-खब्जी पूर्ण करने लगी--भुने हुए सुर्गे के सम्मानकर स्थान पर झोंगा मछली देख पड़ने लगी--वेश-भूषा, ठाट-बाट चिकने मुख की गये से ज्वलंत ज्योति फीकी पड चली ---
जब सुतीब निषाद से सिली हुईं जीवन-तन्त्रो धीरे-धोरे मध्यम्त की ओर उतर चल्ली तव, उसी समय, राजकुमार वाबू के यहाँ एक भारी दुधेटना है| जाने से अनाथबन्धु के जोवन का प्रवाह् एकाएक दूसरी ओर फिर गया । राजकुमार बाबू का बेटा हरीश कुमार अपने मामा के घर से बालक समेत घर की ओर आ रहा था। मामा का घर गंगा के किनारे पर एक गाँव मे था। नाव पर हरीश कुमार आ रहा था। एकाएक नाव उलट जाने से पृत्र-त्यो- सहित हरीश कुमार की मृत्यु हो गई। इस दुघटना के बाद विध्यवासिनी की सिवा राजकुमार की सम्पत्ति का उत्तरा- धकारी ओर कोई नही रहा | दारुण शोक कुछ शान्त द्वोने पर राजकुमार ने अनाथ- बँधो के पास जाकर बहुत कुछ अनुनय-विनय करके कहा--- बेटा, तुमको प्रायश्चित्त करके जाति मे मिलना होगा | तुम्हारे सेवा अब सेरे कोई नहीं है ।