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भाग 2

25 अगस्त 2022

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किन्तु यह बात भी, उसके सन मे आई कि उसके खामी सुसरात् में रहने के कारण आदर की अपने हाथो गँवा रहे हैं |

उस् दिन से नित्य वह खामी से कहने लगी कि तुम अपने घर मुझे ले चले, अब में यहाँ नहीं रहेंगी ।

अनाथबन्धु के मन मे अहंकार  ते यथैष्ट था, किन्तु अपनी प्रतिष्ठा का ख़याल्न बिसकुज्ञ न था। अपने घर की गरीबी मे लाट जाने के लिए किसी तरह वे नहीं हुए। तब विन्ध्यवासिनी ने कुछ दृद्ता प्रकट करके कह--अगर तुम न ले चलेगे ता में ही जाऊँगी । अनाथत्रन्धु ने मन ही मन बहुत खीककर अपनी सी को कल्नकत्ते के बाहर छोटे गाँव मे अपने कच्चे ओर टूटे घर मे ले जाने का उद्योग किया। यात्रा के समय राजकुमार बाबू और जो ने लड़की से झर कुछ दिन मायके मे रहने के लिए अनुरेध किया | कन्या चुपचाप सिर जुकाये गस्भोर भाव से बैठी  रही और इस प्रकार उसने जता दिया कि नहीं, यह नही है ।

सहसा  उसकी यह द्रण प्रतिज्ञा देखकर पिता-माता की यह सन्देह  हुआ कि विना जाने शायद किसी बात से उसे चोट पहुँचाई गई है। राजकुमार बाबू ने व्यथ्वित भाव से उससे पूछा--बेटों, क्या हमारे किसी बतांव से तुम्हारे हृदय को चोट पहुँचों है ? विन्ध्यवासिनी ने अपने पिता की ओर करुण दृष्टि से देखकर कद्ठा--क्रमों नहीं । में यहाँ बड़े सुख से रही हैं

यह कहकर विन्ध्यवासिनी रोने लगी । किन्तु उसका इरादा वैसे ही  बना रहा । माता-पिता ने  एक लम्बी  सॉस लेकर अपने मन से कहा--- चाहे जितने स्नेह और आदर से पाती, किन्तु व्य।ह की बाद लड़की पराई हो जाती है । | अन्त का आँखों मे आँसू भरे हुए विन्ध्यवासिनी सबसे बिंदा होकर, पिता के घर ओर साथियों का छोड़कर, पालकी पर सवार हुई ।

कलकत्तें के अमीर के घर ओर देहात के गरीब के घर मे आकाश-पाताल  का अन्तर  ्होता हैं  । किन्तु विन्ध्यवासित्री ने बड़ी भर के लिए भाव अथवा आचरण से अ्सन्तोष नहीं प्रकट किया । सदा खुश रहकर गमृहस्थों के कामों में सास की सहायता करने लगी । समधियाने की गरीबी का हाल जान- कर राजकुमार बाबू ने कन्या के साथ एक दासी भेज दी थी। विन्ध्यवासिनी ने स्वामी के घर पहुँचते ही उसे बिंदा कर दिया ।

यह आशू  भी उसे असहज  जान पड़ी कि बड़े घर की दासी उसकी सुसराक्ष की ग़रीबो देखकर हर घड़ी मन ही मन साक-भों सिकोड़ा करेगी । सास स्नेह के सारे विन्ध्यवासिनी की मेहनत के काम से शकने की चेस्टा करती थी | किन्तु विन्ध्यवासित्री -आवस्य हीन अशांत भाव से प्रसन्नमुखच रहकर सब काम-काज करती थी !

इस प्रकार उसने सास के हृदय पर अधिकार जमा लिया और गॉव की औरते' भी उसके इस गुण को देखकर मुग्ध हो गई | किन्तु इसका फल सम्पुणं रूप से सन्ताष-जनक नहीं हुआ। क्योंकि संसार का नियम शिक्षावल्ली के प्रथम भाग की तरह साधुभाषा में लिखी गई सरल उपदेशावली नहों है । निष्ठुर शैतान बीच मे आकर सब उपदेश-सूत्रो मे उलकन डाल देता है। इसी से सब समय श्रच्छे काम का अच्छा ही फल नहीं होता। एकाए क काई गेालमाल उठ खड़ा होता है |

अनाथबन्धु के एक बडा और दो छोटे भाई थे। बडा भाई परदेश से नोकर था और वह महीने मे जे! पचास रुपये भेजता था उसी से घर का काम चलता था आर दोने छेटे भाई पढ़ते लिखते थे । यह कहने की कोई ज़रूरत नहीं कि पचास रुपये महीने मे घर का ख़चे चलना ही कठिन  है। किन्तु बडे भाई की सव्यी श्यामा के अहंकार  के लिए इतने रुपये ही यथाथेष्ट थे। स्वामी लगातार साल भर नोकरी मे लगा रहता …

शंकरी के ओछे हृदय में एक प्रकार की जल्लन पैदा हो गई । इसका कारण समभना और  समझाना  कठिन है। जान पड़ता है, उसने अपने मन मे सोचा कि मैँ मझली बहू बड़े घर की. लड़की होकर भी केवक्ष दिखावे क॑ लिए गृहस्थी के नीच कामे में लगी रहती है और इसका मतलब केवल ,मुभे लोगों की नज़र से गिराना ही है। चाहे जिस कारण से हो, पचास रुपये का महीना कमानेवाले स्वामी की स्नी धनी घराने की लड़की को अच्छी नजर से देख न सकी । उसे मेमली बहू की नम्नता के भीतर असह्य अभिमान के लक्षण देख पड़ने लगे |

इधर अनाथबन्धु ने गाँव मे आकर एक ल्लाइब्र री स्थापित की | दस-बीस स्कूल के छात्रों को जमा करके आप सभापति होकर अखबारों में तार द्वारा सभा के समाचार भेजने लगे | यहाँ तक कि किसी-किसी अंग. ज़ो के अखबार के विशेष संवाद- दाता बनकर उन्हे।ने गाव के लेगा का विस्मित कर दिया | किन्तु गरीबी के घर मे एक पेसा ल्ञाने की कोई सूरत नहों हुईं बल्कि व्यथे का ख़चे ओर भी बड़ गया ।

विन्ध्यवासिनी कोई नोकरी करने के लिए बारम्बार अनाथ बन्धु से कहने लगी । किन्तु उन्हेंने इस पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया। खत्री से कहा--मेरे ल्लायक नौकरियाँ ज़रूर हैं; लेकिन पक्षपाती गवर्नमेण्ट उन ज॑ हो पर बड़े-बड़े अँगरेज़ो को नौकर रखती है। बड़ाली के हजार योग्य होने पर भी उसके उन जगहों के पाने की कुछ भी आशा नहीं है ।

श्यामाशंकरी  अपने देवर और देवरानी का खुनाकर हर घड़ी स्पष्ट  रूप से वाक्यबाणों की वर्षो करने लगी ।  साथ ही अपनी गरीबी का उल्लेव करके कहने लगी  -- हम गरीब आदमी हैं, बड़े आदमी की लडकी और दामाद का पालन-पेषण कैसे करे ? वहाँ ते मज़े मे थे, काई दुःख न था--यहाॉ सूखी रोटियाँ किस तरह खाई जायेंगी ।

सास बडी वहू का डरती थीं। मझली बहू का पद  लेकर कुछ कहने का साहस उन्हे नहीं  आता  था। मंमली बहू भी पचास रुपये महीने की रोटियो और कट्वावाक्ये को चुपचाप हज़म- करने लगी । इसी बीच मे कुछ दिनों की छुट्रा पाकर अनाथबन्धु के बडे भाई घर आये और आकर नित्य अपनी त्ली के मुख से उद्दो पना- पूर्ण श्रेजस्विनी भाषा की वक्त ताएं सुनने लगे ।

अन्त का जब नित्य रात का नोंद का आना हराम हो गया तब एक दिन अता था - बन्धु को बुल्लाकर शान्त भाव से स्नेह के साथ उन्होंने कहा -- तुमका कोई नौकरी ढू की कोशिश करनी चाहिए, केवल में अकेला किप तरह गृहस्थों का वाक संभाल सकता हूँ

अनाथबन्धु ने लज्जा खाये हुए सांप की तरह लग्बी  सासे' लेकर अपने मन का भाव प्रकट किया | देख  बेला ्अत्यन्त अखाद्य रूखी रोटी मोटा भ्रात देकर ज्जी का ताने मारना और भाई-का नोकरी तलाश करने के लिए कहना ! वे उसी समय स्री को , लेकर सुसराल जाने के लिए तैयार हो गये | :

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रचनाएँ
गल्प गुच्छ
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कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प गुच्छ साल भर से काफ़ी चर्चा में है। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है। पूरी कथा पाठक में इतनी बेचैनी पैदा कर देती है कि वह आतंकित कर देने वाली उन परिस्थितियों और किरदारों के बारे में सोचे जो हमारे आस पास निर्मित हो चुकी हैं और उनका दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। कई बार कोई क़िताब, कोई रचना आप पढ़ना तो चाहते हैं, मगर अन्य कारणों से वह टलता रहता है। आपके चाहने के बावजूद वह छूटती रहती है। आप पछताते रहते हैं, मगर वह हाथ नहीं आती। कथाकार चंदन पांडेय का उपन्यास वैधानिक गल्प ऐसी ही पुस्तक है। पिछले सात-आठ महीनों से यह उपन्यास मेरा पीछा कर रहा था और मैं इसके पीछे लगा हुआ था, मगर पढ़ा जा सका अब। पढ़ने के बाद लगा कि अगर न पढ़ता तो कुछ छूट जाता। साल भर से यह उपन्यास काफ़ी चर्चा में है। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा नवलेखन का पुरस्कार मिलने की वज़ह से भी यह चर्चित रहा, इसकी विषयवस्तु, भाषा और उसकी शैली। समकालीन परिस्थितियों को यह उपन्यास गहरी संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है।
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मुर्दे की मौत भाग 1

24 अगस्त 2022
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रानीहाट के जमींदार शारदाशंकर  बाबू के घर की विधवा वहू के मायके से कोई नही  था । एक-एक करके सभी मर गये। सुसराल  मे भी ठीक अपना कहलाने लायक कोई ल था। न पति था और-न पुत्र ही  था। उसके जेठ शारदाशह  का एक

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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कादम्बिनी के कपड़े मे कीचड भरा हुआ था। अद- भुत भाव के आवेश श्रोर रात के जागने से वह पागल सी हे। रही थी । उसका चेहरा देखकर लोग सचमुच ही डर सकते थे।  शायद गॉव के लडके उसे देखकर पागतव समझकर दूर से ढेले

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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इसी कारण कभी-कभी दोपहर की सूनी कंठरी में पड़ें- पड़ वह चिल्ला उठती थी  और  शाम को दीपक के प्रकाश में अपनी परछाही  देखकर उसकी रोगटे खड़े हो आते थे ।  उसके इस भय का देखकर घर के लोगों के मन मे भी एक प्र

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भाग 4

24 अगस्त 2022
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असल बात उसकी सममझ्त मे नहों आई | वह जवाब भी नहो दे सकी ओर दुबारा कुछ प्रश्न भी नहों कर सकी । मुँह फुला- कर गम्भीर भाव से वहाँ से चली गई |  रात के दस बजे होगे जब  श्री पति रानीहाट से लौट आये । उस समय

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भाग 5

24 अगस्त 2022
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कमरे भर में अन्धकार'छा गया। कादम्बिनी एकंदम कमरे की भीतर आकर खडो हा गई ।  उस समय ढाई पहर के लगभग राव बीती होगी । बाहर'जोर से पानी पढ़ रहा था । कादम्बिनी मे कहा--बहन, में तुम्हारी सखी कादम्बिनी ही हूँ

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सुधा भाग 1

24 अगस्त 2022
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कान्तिचन्द्र की अवस्था थोडी है, तथापि ज्री के मरने के उपरान्त द्वितीय स्त्री का अनुसन्धान न करके पशु-पक्तियों के शिकार से ही उन्होंने  अपना मन लगाया | उनका शरीर लम्बा, पतला, हृढ़ ओर हल्का था। दृष्टि त

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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 दूर जाकर पता लगाने की सामथ्य नहीं । घर मे भगवान्‌ की मुर्ति है, उसे छीड़कर कहीं जाना नहीं हो सकता । कान्तिचन्द्र ने कहा--नाव पर आप मुझसे अगर मिल्ल सके' ते में एक कुल्लीन अच्छा छडका बतला सकता हैँ । 

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समस्या-पूर्ण भाग 1

24 अगस्त 2022
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 देवपुर के ज़मीदार रामगोपाल अपने बड़े लङके को ज़मीदारी और घर-ग्रहस्थी सौपकर काशीवास' करने चले गये | देश के सब अनाथ दरिद्र लोग उनके लिए हाहाकार करके रोने लगे । सब यही कहने लगे कि ऐसी उदारता और  धमेनिष्

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भाग 2

24 अगस्त 2022
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भेया, आल्ला  तुम्हारा भला करे' । बेटा, रमजानी का तुम बिगा- डूना नहीं। में उसे तुमका सॉंपती हूँ। उसे तुम अपना छोटा भाई समझकर उसके खाने-पीने का ज़रिया वह ज़मीन दे दे।। तुम्हारे वेशुमार दे।लत है। जितनी त

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भाग 3

24 अगस्त 2022
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कष्णगोपाल् ने विस्मित होकर पूछा--इसी लिए आप काशी से इतनी दुर आये हैं ? रमज़ानी पर आपका इतना अनुग्रह क्यो है ? रामगोपाल ने कदा--यह सुनकर तुम क्‍या करोगे ? कष्णगोपाल् ने नहीं माना और कहा--अयोग्यता का व

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प्रायचित भाग 1

25 अगस्त 2022
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स्वर्ग  और  मनुष्यलोक के बीच में एक अनिर्देश्य अरा जक स्थान है, जहाँ राजा त्रिशंकु लटक रहे हैं और जह आकाशकुसुमे के ढेर पैदा  होते हैं। उस वायुदुर्गवेष्टिव महा देश का नाम है “होता तो है| सकता? । जो लोग

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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किन्तु यह बात भी, उसके सन मे आई कि उसके खामी सुसरात् में रहने के कारण आदर की अपने हाथो गँवा रहे हैं | उस् दिन से नित्य वह खामी से कहने लगी कि तुम अपने घर मुझे ले चले, अब में यहाँ नहीं रहेंगी । अनाथब

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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किन्तु स्त्री  किसी तरह इस बात पर राजी  नही  हुई | उसन अपनी राय यह जाहिर की कि बड़े भाई की रोटी और  आवाज  की गाली पर छेप्टे भाई का पारिवारिक अधिकार है, किन्तु सुसरात्त में जाकर रहना बड़ी ही बेज्जती की

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भाग 4

25 अगस्त 2022
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विन्ध्यवासिनी  ने कहा--आप वि्लायत जाने मे .रोक-टाक न करे इसलिए नही मांगे | राजकुमार बाबू  बहुत ही नाराज़ हुए। माता रोने लगी ओर बेटी भी रोने लगी । कलकत्ते मे चारों आर विचित्र स्वर से उत्सव के बाजे बज र

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भाग 5

25 अगस्त 2022
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अनाथबन्धु उत्साह  के साथ इस बात पर राज़ी हो गये । उन्होंने मन मे सोचा, जे बार-्लाइब्रेरियों मे पड़े रहनेवाले स्वदेशी बेरिस्टर उनसे डाह करते हैं और उनकी असामान्य प्रतिभा के प्रति यथरेष्ट सम्मान नहीं  द

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सुभा भाग 1

25 अगस्त 2022
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 लड़की का नाम जब सुभाषिणी रक्खा गया था तब कीन जानता था कि वह गूगी हेगी ? उसकी दो  बडी बहनें का नाम सुकेशिनी ओर सुहासिनी रखा गया था | इसी से उसी अनुप्रास पर पिता ने छोटी लडकी का नाम सुभाषिणी रखा  | इस

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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 धूप  से प्रकाशित महृत्‌ आकाश के नीचे केवल गूँगी प्रकृति और गूंगी लड़की सुभा दोनों आमने-सामने चुप- चाप बैठे-बेठे एक दूसरे को निहारा करती थीं । प्रकृति फैली हुई धूप में, ओर सुभा छोटे-छोटे पेड़ों की छाह

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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मान लो, सुभा अगर जल्लकुमारी होती; धीरे-धीरे जल से ऊपर उठकर एक नागमशि घाट पर रण जाती , प्रताप तुच्छ मछली पकडने के काये का छोड़कर उस मणि का लेकर जल मे गोता क्गाता और पाताक्न मे जाकर देखता, चॉदी के महल म

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विचारक भाग 1

25 अगस्त 2022
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अनेक अवस्थाएँ बदलने के उपरांत अन्त का गतयौबना चुन्नो ते जिस पुरुष का आश्रय श्रदण किया था वह भी जब उसे फटे कपड़े की तरह छाड़ गया तब मुट्ठी भर अन्न के लिए दूसरे आश्रय के। खे।जने की चेष्टा करने से उसे अत

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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समुद्र के भीतर से, वृत्तपंक्ति से श्यामल तट-भूमि जैसे रम-णीय स्वप्न के समान, चित्र के समान जान पड़ती है वैसे किनारे पर पहुँचने से नहीं । वेघव्य के घेरे की आड़ से चमेली संसार से जितना दूर हो गई थी उसी

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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निद्राहदीन चमेली  की रात कहाँ जाकर समाप्त होगी | उस्र निरानन्द प्रात:काल मे जब चमेली के घर सूथ्ये देव का प्रकाश प्रवेश करेगा तब वहाँ सहसा केसी लज्ना प्रकाशित हो पड़ेगी-- कैसी लाउछना, कैसा हाहाकार जग उ

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मध्यवर्तिनी भाग 1

25 अगस्त 2022
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सुन्दर निहायत मामूली ढंग का था। उसमें काव्यरस, की गन्ध तक न थी। उसके मन में कभी यह बात नहीं आई कि जीवन में उक्त रस की कुछ आवश्यकता होती है। जैसे  परिचित पुराने जूते के भीतर पेर बिलकुल् निश्चिन्तः भाव

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भाग 2

25 अगस्त 2022
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के ऊपर आनन्दमयी प्रकृति की हर एक उगली जेसे फिरने लगो और हृदय के भीतर जे। एक प्रकार का सद्भीत सुन पड़ने लगा उसके ठीक भाव को वह अच्छी तरह समझ नहीं सकती थी । ऐसे समय जब उसका खामी पास बेठकर पूछता था कि क

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भाग 3

25 अगस्त 2022
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 एक हीरे का ठुकड़ा मिल्लने पर उसे  तरह-तरह से घुमा-फिराकर देखने का जी चाहता है | किन्तु यह एक नौजवान सुन्दरी स्री का मन था--सुन्दरलाल के लिए बुढ़ापे मे एक बहुत ही अपूर्व और स्पृहणीय पदार्थ था ! इसका क

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भाग 4

26 अगस्त 2022
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और आनन्द-गद्द सुन्दर वार-वार प्यारी, प्यारी! कहकर उसे सचेत करने की चेष्टा कर रद्दा था | सुन्दर ने इसी बीच में बड्धिम बाबू का “चन्द्रशेखर  उप- न्यास पढ़ डाला था और वह देो-एक प्राधुनिक कवियों के खड्भार-

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भाग 5

26 अगस्त 2022
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रक्त में मानों फनकार मारता रहा। पार्वती  ने अपने मन मे कहा-- और किस बात को लेकर तेरी और मेरी तुलना होगी । किन्तु एक समय मेरी  भी यह अवस्था थी,  मैं भी इसी तरह सिर से पैर तक जवानी के रोम मे भरी हुई थी

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भाग 6

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जानकी के असतोष और असुख की सीमा नहीं रही | चह किसी तरह यह समझना  नहीं चाइती कि उसके स्वामी मे उसे सन्तुष्ट रखने की क्षमता नही है । क्षमता नहों थी ते व्याह् क्यों किया था | ऊपर के खण्ड मे कीवल दो  कमरे

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अत्याचार

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जमीदार के नायव जानकीनाथ के घर में प्यारी नास की एक महराजिन रसोई बनाने के लिए नौकर कुई। उसकी अवस्था कम थी और चरित्र अच्छा था। दूर की रहनेवाली वह ब्राह्मणों विपत्ति के फेर से पड़कर जानकीनाथ की घर आकर नो

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चुधित पाषाण भाग 1

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मैं  और  मेरे एक आत्मीय एक दिन रेल पर बेठे हुए कल्कत्ते जा रहे थे। इसी बीच से रेलगाड़ी पर एक आदमी से मुलाकात  हो गई। उसका पहनावा मुसल्लमानों का सा था | उसकी बाते सुनकर आश्चये का ठिकाना नहीं रहता था। प

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किन्तु उसी घड़ी मुझे स्मरण हो आया कि में सचमुच अमुक का ज्ये्ठ पुत्र अमुक हूँ । यह भी मैंने अपने मन में सोच लिया कि इस बात की तो  हमारे महाकबि और  कवि वर ही कद्द सकते हैं कि जगत् के भ्रीतर अथवा बाहर कह

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भाग 3

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इस खण्डस्वप्न के अवत्त के भीतर---इसी हिना की. महक सितार के शब्द ओर सुगन्धित जल-कणो से मिल्ले हुए पवन के भोकी के वीच---एक नायिका को दम-दम भर पर बिजली की चसक के समान देख पावा था। उसका जाफू्रानी रद्ग का

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भाग 4

26 अगस्त 2022
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खजूर: के पेड़े की छाया से, किस गृहहीन अरब देश की स्मेंणी-के-मर्भ से उत्पन्न हुई थों ! तुमकी कान लुटेरा, वस्त्र  से पुष्पक की तरह, माता की गोद से अलग करके बिजली  को तरह भागने वाले घोड़े पर चढ़ाकर मरुसू

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भाग 5

26 अगस्त 2022
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उसी वर्षों मे, पगल्ले के पास दौड़ा गया ओर उससे पूंछा--मेहर अली, क्या झूठ ठ है वह मेरी बात का कुछ उत्तर न देकर मुझे आगे से हटा- कर--अजगर के मुह के पास साह के आवेश से घूम रहे पत्तों की तरह--चिल्लाता हुआ

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