रजत ने अपने यहाँ नया किराएदार रखा था। कुछ सालों बाद उस किराएदार ने रजत के मकान पर कब्जा कर लिया। जिससे रजत को अपना मकान होते हुए भी किराए के घर में रहने को मजबूर होना पड़ा। अब रजत का काफी पैसा वकील व केस पर खर्च होने लगा। जिससे उसके बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित होने लगी लेकिन किराएदार पर मुकदमेंबाजी का कोई असर नहीं पड़ रहा था। उसका कहना था कि जितने पैसे मकान के किराये के देता वो यहाँ खर्च हो रहे हैं। मुकदमा जीत गया तो मकान मेरा नहीं तो मुझे क्या फर्क पड़ेगा कहीं और दूसरा मकान किराए पर देख लेगें। मुकदमे बाजी में रजत के परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो चुकी थी।
तीस साल बाद मुकदमे का फैसला रजत के पक्ष में आया। तब तक वो किरायेदार मर चुका था। उसके बच्चों ने अपने-अपने अलग मकान बना लिये थे। यह मकान हाथ से निकलने पर किराएदार के बच्चों पर तो कोई खास फर्क नहीं पड़ा पर इन 30 सालों में रजत के परिवार ने बहुत कुछ खो दिया था।