नंदनी यही नाम रखा था बच्चों ने उस गाय का। मोहल्ले में वो कहीं से आ गयी थी। शहर में कच्ची जगह तो होती नहीं है कि वो घास या पत्ते खा सके। तो वह कचरे में से खाना खाकर अपना गुजारा करती थी। कभी-कभी कोई उसे अपने घर का बचा हुआ खाना या एक-आध रोटी दे जाता था। अगर वो किसी के घर के बाहर खड़ी हो जाये तो लोग उसे डण्डा मारकर भगा देते थे कि कहीं वो गोबर न कर जाये। केवल त्यौहार या श्राद्ध पक्ष में ही नंदनी की पूछ होती थी। सब उसे पूरे मोहल्ले में ढूंढते फिरते। उसे एक से बढ़िया एक पकवान जबरदस्ती खिलाये जाते। यही उसकी जिंदगी थी।
एक दिन सुबहे-सुबहे कुछ लोगों को नंदनी मरी हुई पड़ी मिली। पूरे मोहल्ले में चर्चा होने लगी। लोग उसके अन्तिम संस्कार के लिए चंदा इकठ्ठा करने लगे। उसकी शव यात्रा में पूरा मोहल्ला इकठ्ठा होकर गया।