सुबह 9-10 बजे का समय होगा। ज्यादातर लोगों को ऑफिस या कॉलेज जाने की जल्दी थी। सड़क के किनारे एक लाश पड़ी थी। सब उसे देखकर आगे बढ़ जाते थे। स्कूटर वाले अपनी गाड़ी लाश को बचाकर वहाँ से गुजर रहे थे। किसी को इससे कोई मतलब नहीं था लाश पड़ी है तो पड़ी रहे। शर्मा जी भी वहाँ से गुजर रहे थे। उन्होंने लाश को देखा तो अपना स्कूटर वहीं पर रोक दिया। उन्होंने कुछ लोगों से मदद लेने की सोची पर कोई भी इसके लिए तैयार नहीं हुआ। शर्मा जी की उम्र 60 साल के आसपास होगी। उन्होंने उस लाश को मुर्दाघर पहुंचा दिया। कुछ दिन इन्जार करके उन्होंने अपने पैसों से उस लाश का अंतिम संस्कार करा दिया।
अगले दिन किसी ने यह अफवाह फैला दी कि लाश मुसलमान की थी और हिन्दुओं ने उसका अपने हिसाब से अन्तिम संस्कार करा दिया। कुछ ही देर में दंगे शुरू हो गए। दंगाइयों ने लोगों के घर जला दिए। जब तक पुलिस ने मोर्चा संभाला शहर में कई लाशें बिछ चुकी थीं।