लोकेश की उम्र 40 साल हो गयी थी पर वो शादी नहीं करना चाहता था। अब रिश्तेदार ही नहीं पड़ोसी भी उसके पीछे हाथ धोकर पड़ गये थे कि जैसी लड़की मिले वैसी लड़की से ही शादी करले वर्ना कोई अपने घर में भी नहीं बैठाएगा। ऐसे आदमी को लोग घर भी किराये पर नहीं देते। बुढ़ापे में बहुत दिक्कत होगी आदि-आदि। अब पड़ोसियों व रिश्तेदारों ने कह दिया था कि जाति धर्म मत देखो, गोरी काली मत देखो, लम्बी छोटी मत देखो, लड़की की उम्र के चक्कर में मत पड़ो, दहेज की चिंता मत करो। अब शादी करने के लिए सारे बंधन समाज ने खत्म कर दिये थे।
लोकेश 22 साल का था तबसे उसके लिए रिश्ते आने लगे थे। इन रिश्तों में तीन बार बात शादी तक पहुंच गई थी पर कभी रिश्तेदारों ने तो कभी जान-पहचान वालों (समाज के लोग) ने उसकी शादी नहीं होने दी। पहली लड़की जो लोकेश ने पसन्द की थी उसके संग ऑफिस में काम करती थी लेकिन वो अपनी जात-बिरादरी की नहीं थी। पर 40 साल पार होते ही समाज की यह शर्त खत्म हो चुकी थी। बाकी दो लड़कियों को भी इसी प्रकार लम्बाई, रंग, दहेज आदि कारणों से मना कर दिया गया था। अब यही समाज लोकेश को शादी करने के लिए सारी छूट दे रहा था। लोकेश सोच रहा था कि यही छूट उसे पहले दे दी जाती तो वह सही उम्र में अपनी पसंद की लड़की से शादी कर लेता।