दोनों पड़ोसी सरकार को जमकर कोस रहे थे। ये फकीर एक दिन हमको भी कटोरा पकड़वा करके जाएगा। मुझे अपनी दुकान पर काम करने के लिए एक भी नोकर नहीं मिल रहा है। मुझे खुद ही पूरी दुकान सँभालनी पड़ती है। मदन लाल की बात सुनकर भोजपाल भी बोल पड़ा। मुझे भी अपने खेत में काम करने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं। मैं कई बार गाँव जा चुका हूँ। शहर में मजदूर पैसा ज्यादा माँगते हैं। ऐसे मेरी खेती कैसे चलेगी। मैंने कभी खेत में काम नहीं किया और फसल पकने को आ रही है। इस बार बहुत नुकसान उठाना पड़ेगा।
दूसरी तरफ इनके नोकर बड़े खुश थे। उन्होंने सरकारी नीतियों के कारण अपने काम धंधे शुरू कर दिये थे। किसी ने ठेला लगाना शुरू कर दिया था तो किसी ने अपना खोखा खोल लिया था। अब वो दुकान पर काम करने से ज्यादा पैसा कमा लेते थे। गाँव में भी उन लोगों ने अपनी छोटी सी जमीन पर खुद की खेती चालू कर दी थी। जितना पैसा वो दिहाड़ी पर मजदूरी (किसानी) करके कमाते थे, उतना पैसा उन्हें अब ये जमीन का टुकड़ा दे देता था।