छपरी बुआ हमेशा जल्दी में रहती थीं। उनका हर काम उतावलेपन में होता था। बुआ का भतीजा उनके यहाँ आया हुआ था। भतीजे को थोड़ी ही देर में बस पकड़नी थी। सफर लम्बा था, दस घण्टे के सफर में भतीजे को भूख भी लगेगी तो बुआ ने जल्दी-जल्दी खाना बनाकर सफर के लिए पैक कर दिया। सब लोग भतीजे को छोड़ने घर के बाहर आ रहे थे, तभी बुआ की नजर खाने के पैकेट पर पड़ी। जल्दी से थैली उठाकर बुआ ने भतीजे को पकड़ा दी। भतीजा बस पकड़ कर जा चुका था। घर पर सब पहले की तरह हो गया पर इस भागदौड़ में बुआ ने अपनी दवाई का पैकेट न जाने कहाँ रख दिया था। दो घण्टे हो गए पर पूरे घर में कहीं भी बुआ की दवाई नहीं दिखी।
इधर बस में भतीजे को भी पांच-छः घण्टे हो गये थे। उसे जोरों की भूख लग आई थी। ये तो भला हो बुआ का कि उन्होंने रास्ते के लिए खाना पैक कर दिया था। वर्ना यह रूट भी ऐसा था यहाँ कई घण्टे तक बस में कुछ खाने को नहीं मिलता था, कई किलोमीटर तक केवल खेत व जंगल थे। भतीजे ने जल्दी-जल्दी खाने का पैकेट खोला, चलो जल्दी से पेट की आग बुझाई जाए अब और भूख सहन नहीं हो रही। ये कह कर उसने पैकेट खोला पर ये क्या पैकेट में तो खाना था ही नहीं। इसमें तो केवल दवाईयां ही दवाईयां भरी हुई थीं।