नन्दी हलवाई की अपनी पुश्तेनी दुकान थी। वो खुद ही मिठाइयाँ बनाकर बेचता था। उसकी कोयले की भट्टी पर चढ्ढे दूध को पीने सारे मोहल्ले के लोग आते थे। नन्दी अपनी छोटी सी दुकान से खुश था और अपने परिवार को अच्छे से पाल रहा था।
लेकिन अब मोहल्ले में किसी बड़े हलवाई ने अपना मिष्ठान भण्डार खोल लिया। वहाँ की चकाचौंध व अपने दिखावे के लिए लोगों ने वहीं जाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे बिक्री कम होने के कारण नंदी को अपनी पुश्तेनी दुकान बंद करनी पड़ी।
20 साल बाद उस बड़े हलवाई ने शहर में अपने कई चेन स्टोर खोल लिए थे। यहाँ पर नंदी हलवाई के बच्चे व पोते काम करते थे। इन्हें कुछ हजार रुपये ही तन्ख्वाह के मिलते थे। आज इन बड़े चेन स्टोरों या मिष्ठान भण्डारों पर नंदी हलवाई के बच्चों जैसे कई कारीगर काम करने को मजबूर हैं क्योंकि उनकी छोटी दुकानों (पुश्तेनी दुकान) पर लोग जाना पसन्द नहीं करते हैं।