मिसेज अग्रवाल का रो-रोकर बुरा हाल था। वों न कुछ खा रही थीं न कुछ पी रही थीं। बस बेसुध सी थी। कुछ दिन पहले वह मथुरा गई थीं। वहाँ वह अपने लड्डू गोपाल को भी ले गयी थीं। पर कहीं पर उनके बाल गोपाल खो गए। बहुत ढूढ़ने पर भी वह नहीं मिले। तब से वह रोये जा रही थीं। पुलिस व अखबार में इसकी सूचना दे दी गयी थी। तीन दिन बाद किसी का फोन आया। उसने बताया कि उसे बाल गोपाल की मूर्ति मिली है। वहाँ जाकर देखा तो यह उनके ही बाल गोपाल थे। मूर्ति वापस करने वाले व्यक्ति का नाम अखबार में छपा। सब बहुत खुश थे।
कुछ दिनों बाद की बात है मिसेज अग्रवाल सोफे पर बैठी थीं। तभी वहाँ उनकी नौकरानी आयी। मिसेज अग्रवाल बोली गुनगुन इतने दिन से क्यों नहीं आई। मुझे घर का सारा काम करना पड़ रहा था। गुनगुन 10 साल की बच्ची थी जो उनके घर पर काम करती थी। गुनगुन बोली मैं बीमार थी। मिसेज अग्रवाल बोली तू बीमार थी तो अपनी जगह किसी और को भेज देती। उनका इशारा गुनगुन के छोटे भाई-बहनों (बाल गोपालों) की तरफ था।