रात का समय था। ज्यादातर यात्री सो चुके थे। तभी हमारी रेल में कई पुलिस वाले चढ़ आये। उनका लीडर चिल्ला रहा था, एक भी भगवा आतंकवादी बचना नहीं चाहिए। वो बीच-बीच में फोन पर अपने आकाओं को वहाँ की स्थिति भी बता रहा था। ये सभी दिग्विजय सिंह के पालतू कुत्ते थे। मेरे डिब्बे में किसी हिन्दू संगठन के कई युवा सफर कर रहे थे। पुलिस वालों ने आते ही इन लोगो को पकड़ना और गालियां देना शुरु कर दिया। इनका लीडर कह रहा था आतंकियों तुम्हें ऐसी जगह सड़ाऊँगा की भगवान भी तुम्हें नहीं ढूढ़ पायेगा। कुछ युवकों ने इसका विरोध किया। बात धक्का मुक्की और मारा मारी पर आ गयी। इस पर पुलिस वालों ने कुछ युवकों को चलती रेल बाहर फेंक दिया। इसे देखकर कुछ युवकों ने भागने की कोशिश की। जिस पर पुलिस के मुखिया ने एक युवक को गोली मार दी।
मैं महाबलेश्वर मन्दिर होकर आया था। इसलिये मैं भी हिन्दूवादी लग रहा था। मैं बहुत घबरा गया कहीं ये लोग मुझे भी न मार दें। पर इनकी मुझ पर नजर नहीं पड़ी थी। मैं किसी तरह पुलिस वालों से बचता हुआ डिब्बे से बाहर आ गया। और डिब्बे को जोड़ने वाले ज्वाइंट पर बैठ गया। जहाँ मुझे मौत का खतरा था पर अन्दर तो मौत निश्चित थी। मैने पूरी रात वहीं बितायी। किसी तरह मध्य प्रदेश का बार्डर पार हो जाये। मैं अपने हिन्दू होने पर अफसोस कर रहा था और भारत में पैदा होने पर अपने आपको कोस रहा था।