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भाग 10

11 जून 2022

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दूसरे दिन संध्या के समय राजा वीरेंद्रसिंह अपने खेमे में बैठे रोहतासगढ़ के बारे में बातचीत करने लगे। पंडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह, तारासिंह, ज्योतिषीजी, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह उनके पास बैठे हुए थे। अपने-अपने तौर पर सभों ने रोहतासगढ़ के तहखाने का हाल कह सुनाया और अन्त में वीरेंद्रसिंह से बातचीत होने लगी।

वीरेंद्र - रोहतासगढ़ के बारे में अब क्या करना चाहिए

तेज - इसमें तो कोई शक नहीं कि रोहतासगढ़ के मालिक आप हो चुके। जब राजा और दीवान दोनों आपके कब्जे में आ गये तो अब किस बात की कसर रह गई हां अब यह सोचना है कि राजा दिग्विजयसिंह के साथ क्या सलूक करना चाहिए

वीरेंद्र - और किशोरी के लिए क्या बंदोबस्त करना चाहिए

तेज - जी हां यही दो बातें हैं। किशोरी के बारे में तो मैं अभी कुछ कह नहीं सकता, बाकी राजा दिग्विजयसिंह के बारे में पहले आपकी राय सुनना चाहता हूं।

वीरेंद्र - मेरी राय तो यही हे कि यदि वह सच्चे दिल से ताबेदारी कबूल करे तो रोहतासगढ़ पर खिराज (मालगुजारी) मुकर्रर करके उसे छोड़ देना चाहिए।

तेज - मेरी भी यही राय है।

भैरो - यदि वह इस समय कबूल करने के बाद पीछे बेईमानी पर कमर बांधे तो

तेज - ऐसी उम्मीद नहीं है। जहां तक मैंने सुना है वह ईमानदार, सच्चा और बहादुर जाना गया है, ईश्वर न करे यदि उसकी नीयत कुछ दिन बाद बदल भी जाए तो हम लोगों को इसकी परवाह न करनी चाहिए।

वीरेंद्र - इसका विचार कहां तक किया जाएगा! (तारासिंह की तरफ देखकर) तुम जाओ दिग्विजयसिंह को ले आओ, मगर मेरे सामने हथकड़ी-बेड़ी के साथ मत लाना।

'जो हुक्म' कहकर तारासिंह दिग्विजयसिंह को लाने के लिए चले गये और थोड़ी ही देर में उन्हें अपने साथ लेकर हाजिर हुए, तब तक इधर-उधर की बात होती रहीं। दिग्विजयसिंह ने अदब के साथ राजा वीरेंद्रसिंह को सलाम किया और हाथ जोड़कर सामने खड़ा हो गया।

वीरेंद्र - कहिये, अब क्या इरादा है

दिग्विजय - यही कि जन्म भर आपके साथ रहूं और ताबेदारी करूं।

वीरेंद्र - नीयत में किसी तरह का फर्क तो नहीं है

दिग्विजय - आप जैसे प्रतापी राजा के साथ खुटाई रखने वाला पूरा कम्बख्त है। वह पूरा बेवकूफ है जो किसी तरह पर आपसे जीतने की उम्मीद रखे। इसमें कोई शक नहीं कि आपके एक ऐयार दस-दस राज्य गारत कर देने की सामर्थ्य रखते हैं। मुझे इस रोहतासगढ़ किले की मजबूती पर बड़ा भरोसा था, मगर अब निश्चय हो गया कि वह मेरी भूल थी। आप जिस राज्य को चाहें बिना लड़े फतह कर सकते हैं। मेरी तो अक्ल नहीं काम करती, कुछ समझ में नहीं आता कि क्या हुआ और आपके ऐयारों ने क्या तमाशा कर दिया। सैकड़ों वर्षों से जिस तहखाने का हाल एक भेद के तौर पर छिपा चला आता था, बल्कि सच तो यह है कि जहां का ठीक-ठीक हाल अभी तक मुझे भी मालूम न हुआ उसी तहखाने पर बात की बात में आपके ऐयारों ने कब्जा कर लिया, यह करामात नहीं तो क्या है! बेशक ईश्वर की आप पर कृपा है और यह सब सच्चे दिल से उपासना का प्रताप है। आपसे दुश्मनी रखना अपने हाथ से अपना सिर काटना है।

दिग्विजयसिंह की बात सुनकर राजा वीरेंद्रसिंह मुस्कराए और उनकी तरफ देखने लगे। दिग्विजयसिंह ने जिस ढंग से ऊपर लिखी बातें कहीं उसमें सचाई की बू आती थी। वीरेंद्रसिंह बहुत खुश हुए और दिग्विजयसिंह को अपने पास बैठाकर बोले -

वीरेंद्र - सुनो दिग्विजयसिंह, हम तुम्हें छोड़ देते हैं और रोहतासगढ़ की गद्दी पर अपनी तरफ से तुम्हें बैठाते हें मगर इस शर्त पर कि तुम हमेशा अपने को हमारा मातहत समझो और खिराज की तौर पर कुछ मालगुजारी दिया करो।

दिग्विजय - मैं तो अपने को आपका ताबेदार समझ चुका अब क्या समझूंगा, बाकी रही रोहतासगढ़ की गद्दी, सो मुझे मन्जूर नहीं। इसके लिए आप कोई दूसरा नायब मुकर्रर कीजिए और मुझे अपने साथ रहने का हुक्म कीजिये।

वीरेंद्र - तुमसे बढ़कर और कोई नायब रोहतासगढ़ के लिए मुझे दिखाई नहीं देता।

दिग्विजय - (हाथ जोड़कर) बस मुझ पर कृपा कीजिये, अब राज्य का जंजाल मैं नहीं उठा सकता।

आधे घंटे तक यही हुज्जत रही। वीरेंद्रसिंह अपने हाथ से रोहतासगढ़ की गद्दी पर दिग्विजयसिंह को बैठाना चाहते थे और दिग्विजयसिंह इन्कार करते थे, लेकिन आखिर लाचार होकर दिग्विजयसिंह को वीरेंद्रसिंह का हुक्म मंजूर करना पड़ा, मगर साथ ही इसके उन्होंने वीरेंद्रसिंह से इस बात का इकरार करा लिया कि महीने भर तक आपको मेरा मेहमान बनना पड़ेगा और इतने दिनों तक रोहतासगढ़ में रहना पड़ेगा।

वीरेंद्रसिंह ने इस बात को खुशी से मंजूर कर लिया, क्योंकि रोहतासगढ़ के तहखाने का हाल उन्हें बहुत कुछ मालूम करना था। वीरेंद्रसिंह और तेजसिंह को विश्वास हो गया था कि वह तहखाना जरूर कोई तिलिस्म है।

राजा दिग्विजयसिंह ने हाथ जोड़कर तेजसिंह की तरफ देखा और कहा, ''कृपा कर मुझे समझा दीजिये कि आप और आपके मातहत ऐयार लोगों ने रोहतासगढ़ में क्या किया, अभी तक मेरी अक्ल हैरान है।''

तेजसिंह ने सब बात खुलासे तौर पर कह सुनायी। दीवान रामानंद का हाल सुन दिग्विजयसिंह खूब हंसे बल्कि उन्हें अपनी बेवकूफी पर भी हंसी आई और बोले, ''आप लोगों से कोई बात दूर नहीं है।'' इसके बाद दीवान रामानंद भी उसी जगह बुलवाये गये और दिग्विजयसिंह के हवाले किये गए और दिग्विजयसिंह के लड़के कुंअर कल्याणसिंह को लाने के लिए भी कई आदमी चुनारगढ़ रवाना किए गए।

इन सब कामों से छुट्टी पाकर लाली के बारे में बातचीत होने लगी। तेजसिंह ने दिग्विजयसिंह से पूछा कि लाली कौन है और आपके यहां कब से है इसके जवाब में दिग्विजयसिंह ने कहा कि लाली को हम बखूबी नहीं जानते। महीने भर से ज्यादा न हुआ होगा कि चार-पांच दिन के आगे-पीछे लाली और कुंदन दो नौजवान औरतें मेरे यहां पहुंचीं। उनकी चालढाल और पोशाक से मुझे मालूम हुआ कि किसी इज्जतदार घराने की लड़कियां हैं। पूछने पर उन दोनों ने अपने को इज्जतदार घराने की लड़की जाहिर भी किया और कहा कि मैं अपनी मुसीबत के दो-तीन महीने आपके यहां काटना चाहती हूं। रहम खाकर मैंने उन दोनों को इज्जत के साथ अपने यहां रखा, बस इसके सिवाय और मैं कुछ नहीं जानता।

तेज - बेशक इसमें कोई भेद है, वे दोनों साधारण औरतें नहीं हैं।

ज्योतिषी - एक ताज्जुब की बात मैं सुनाता हूं।

तेज - वह क्या?

ज्योतिषी - आपको याद होगा कि तहखाने का हाल कहते समय मैंने कहा था कि जब तहखाने में किशोरी और लाली को मैंने देखा तो दोनों का नाम लेकर पुकारा जिससे उन दोनों को आश्चर्य हुआ।

तेज - हां-हां, मुझे याद है, मैं यह पूछने ही वाला था कि लाली को आपने कैसे पहचाना?

ज्योतिषी - बस यही वह ताज्जुब की बात है जो अब मैं आपसे कहता हूं।

तेज - कहिए, जल्द कहिए।

ज्योतिषी - एक दफे रोहतासगढ़ के तहखाने में बैठे-बैठे मेरी तबीयत घबड़ाई तो मैं कोठरियों को खोल-खोलकर देखने लगा। उस ताली के झब्बे में जो मेरे हाथ लगा था एक ताली सबसे बड़ी है जो तहखाने की सब कोठरियों में लगती है मगर बाकी बहुत-सी तालियों का पता मुझे अभी तक नहीं लगा कि कहां की हैं।

तेज - खैर तब क्या हुआ

ज्योतिषी - सब कोठरियों में अंधेरा था, चिराग ले जाकर मैं कहां तक देखता, मगर एक कोठरी में दीवार के साथ चमकती हुई कोई चीज दिखाई दी। यद्यपि कोठरी में बहुत अंधेरा था तो भी अच्छी तरह मालूम हो गया कि यह कोई तस्वीर है। उस पर ऐसा मसाला लगा हुआ था कि अंधेरे में भी वह तस्वीर साफ मालूम होती थी, आंख, कान, नाक बल्कि बाल तक मालूम होते थे। तस्वीर के नीचे 'लाली' ऐसा लिखा हुआ था। मैं बड़ी देर तक ताज्जुब से उस तस्वीर को देखता रहा, आखिर कोठरी बंद करके अपने ठिकाने चला आया, उसके बाद जब किशोरी के साथ मैंने लाली को देखा तो साफ पहचान लिया कि वह तस्वीर इसी की है। मैंने तो सोचा था कि लाली उसी जगह की रहने वाली है। इसीलिए उसकी तस्वीर वहां पाई गई, मगर इस समय महाराज दिग्विजयसिंह की जुबानी उसका हाल सुनकर ताज्जुब होता है, लाली अगर वहां की रहने वाली नहीं तो उसकी तस्वीर वहां कैसे पहुंची।

दिग्विजय - मैंने अभी तक वह तस्वीर नहीं देखी, ताज्जुब है!

वीरेंद्र - अभी क्या जब मैं आपको साथ लेकर अच्छी तरह उस तहखाने की छानबीन करूंगा तो बहुत-सी बातें ताज्जुब की दिखाई पड़ेंगी।

दिग्विजय - ईश्वर करे जल्द ऐसा मौका आये, अब तो आपको बहुत जल्द रोहतासगढ़ चलना चाहिए।

वीरेंद्र - (तेजसिंह की तरफ देखकर) इंद्रजीतसिंह के बारे में क्या बंदोबस्त हो रहा है

तेज - मैं बेफिक्र नहीं हूं, जासूस लोग चारों तरफ भेजे गये हैं इस समय तक रोहतासगढ़ की कार्रवाई में फंसा हुआ था, अब स्वयं उनकी खोज में जाऊंगा, कुछ पता लगा भी है।

वीरेंद्र - हां! क्या पता लगा है

तेज - इसका हाल कल कहूंगा आज भर और सब्र कीजिये।

राजा वीरेंद्रसिंह अपने दोनों लड़कों को बहुत चाहते थे, इंद्रजीतसिंह के गायब होने का रंज उन्हें बहुत था, मगर वह अपने चित्त के भाव को भी खूब ही छिपाते थे और समय का ध्यान उन्हें बहुत रहता था। तेजसिंह का भरोसा उन्हें बहुत था और उन्हें मानते भी बहुत थे, जिस काम से उन्हें तेजसिंह रोकते थे उसका नाम फिर वह जुबान पर तब तक न लाते थे जब तक तेजसिंह स्वयं उसका जिक्र न छेड़ते, यही सबब था कि इस समय वे तेजसिंह के सामने इंद्रजीतसिंह के बारे में कुछ न बोले।

दूसरे दिन महाराज दिग्विजयसिंह सेना सहित तेजसिंह को रोहतासगढ़ किले में ले गये। कुंअर आनंदसिंह के नाम का डंका बजाया गया। यह मौका ऐसा था कि खुशी के जलसे होते मगर कुंअर इंद्रजीतसिंह के खयाल से किसी तरह की खुशी न की गई।

राजा दिग्विजयसिंह के बर्ताव और खातिरदारी से राजा वीरेंद्रसिंह और उनके साथी लोग बहुत प्रसन्न हुए। दूसरे दिन दीवानखाने में थोड़े आदमियों की कमेटी इसलिए की गई कि अब क्या करना चाहिए। इस कमेटी में केवल नीचे लिखे बहादुर और ऐयार लोग इकट्ठे थे - राजा वीरेंद्रसिंह, कुंअर आनंदसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, पंडित बद्रीनाथ, ज्योतिषीजी, महाराज दिग्विजयसिंह और रामानंद। इनके अतिरिक्त एक और आदमी मुंह पर नकाब डाले मौजूद था जिसे तेजसिंह अपने साथ लाये थे और उसे अपनी जमानत पर कमेटी में शरीक किया था।

वीरेंद्र - (तेजसिंह की तरफ देखकर) इस नकाबपोश आदमी के सामने जिसे तुम अपने साथ लाये हो हम लोग भेद की बातें कर सकते हैं

तेज - हां-हां, कोई हर्ज की बात नहीं है।

वीरेंद्र - अच्छा तो अब हम लोगों को एक तो किशोरी का पता लगाने का, दूसरे यहां के तहखाने से जो बहुत-सी बातें जानने और विचारने लायक हैं उनके मालूम करने का, तीसरे इंद्रजीतसिंह के खोजने का बंदोबस्त सबसे पहले करना चाहिए। (तेजसिंह की तरफ देखकर) तुमने कहा था कि इंद्रजीतसिंह का कुछ हाल मालूम हो चुका है।

तेज - जी हां बेशक मैंने कहा था और उसका खुलासा हाल इस समय आपको मालूम हुआ चाहता है, मगर इसके पहले मैं दो-चार बातें राजा साहब से (दिग्विजयसिंह की तरफ इशारा करके) पूछा चाहता हूं जो बहुत जरूरी हैं, इसके बाद अपने मामले में बातचीत करूंगा।

वीरेंद्र - कोई हर्ज नहीं।

दिग्वि - हां-हां पूछिये।

तेज - आपके यहां शेरसिंह1 नाम का कोई ऐयार था?

दिग्वि - हां था, बेचारा बहुत ही नेक, ईमानदार, मेहनती आदमी था और ऐयारी के फन में पूरा ओस्ताद था, रामानंद और गोविंदसिंह उसी के चेले हैं। उसके भाग जाने का मुझे बहुत ही रंज है। आज के दो-तीन दिन पहले दूसरे तरह का रंज था मगर आज और तरह का अफसोस है।

तेज - दो तरह के रंज और अफसोस का मतलब मेरी समझ में नहीं आया, कृपा करके साफ-साफ कहिये।

दिग्वि - पहले उसके भाग जाने का अफसोस क्रोध के साथ था मगर आज इस बात का अफसोस है कि जिन बातों को सोचकर वह भागा वे बहुत ठीक थीं, उसकी तरफ से मेरा रंज होना अनुचित था, यदि इस समय वह होता तो बड़ी खुशी से आपके काम में मदद करता।

तेज - उससे आप क्यों रंज हुए थे और वह क्यों भाग गया था

दिग्वि - इसका सबब यह था कि जब मैंने किशोरी को अपने कब्जे में कर लिया तो उसने मुझे बहुत कुछ समझाया और कहा कि 'आप ऐसा काम न कीजिए बल्कि किशोरी को राजा वीरेंद्रसिंह के यहां भेज दीजिए।' यह बात मैंने मंजूर न की बल्कि उससे रंज होकर मैंने इरादा कर लिया कि उसे कैद कर लूं। असल बात यह है कि मुझसे और रणधीरसिंह से दोस्ती थी, शेरसिंह मेरे यहां रहता था और उसका छोटा भाई गदाधरसिंह जिसकी लड़की कमला है, आप उसे जानते होंगे!...

तेज - हां-हां, हम सब कोई उसे अच्छी तरह जानते हैं।

दिग्वि - खैर तो गदाधरसिंह रणधीरसिंह के यहां रहता था। गदाधरसिंह को मरे बहुत दिन हो गये, इसी बीच में मुझसे और रणधीरसिंह से भी कुछ बिगड़ गई, इधर जब मैंने रणधीरसिंह की नतिनी किशोरी को अपने लड़के के साथ ब्याहने का बंदोबस्त किया तो शेरसिंह को बहुत बुरा

1. शेरसिंह कमला का चाचा, जिसका हाल इस संतति के तीसरे भाग के तेहरवें बयान में लिखा गया है।

मालूम हुआ। मेरी तबीयत भी शेरसिंह से फिर गई। मैंने सोचा कि शेरसिंह की भतीजी कमला हमारे यहां से किशोरी को निकाल ले जाने का जरूर उद्योग करेगी और इस काम में अपने चाचा शेरसिंह से मदद लेगी। यह बात मेरे दिल में बैठ गई और मैंने शेरसिंह को कैद करने का विचार किया। उसे मेरा इरादा मालूम हो गया और वह चुपचाप न मालूम कहां भाग गया।

तेज - अब आप क्या सोचते हैं! उसका कोई कसूर था या नहीं

दिग्वि - नहीं, नहीं, वह बिल्कुल बेकसूर था बल्कि मेरी ही भूल थी जिसके लिए आज मैं अफसोस करता हूं, ईश्वर करे उसका पता लग जाय तो मैं उससे अपना कसूर माफ कराऊं।

तेज - आप मुझे कुछ इनाम दें तो मैं शेरसिंह का पता लगा दूं!

दिग्वि - आप जो मांगेंगे मैं दूंगा और इसके अतिरिक्त आपका भारी अहसान मुझ पर होगा।

तेज - बस मैं यही इनाम चाहता हूं कि यदि शेरसिंह को ढूंढ़कर ले आऊं तो उसे आप हमारे राजा वीरेंद्रसिंह के हवाले कर दें! हम उसे अपना साथी बनाना चाहते हैं।

दिग्व - मैं खुशी से इस बात को मंजूर करता हूं, वादा करने की क्या जरूरत है जबकि मैं स्वयं राजा वीरेंद्रसिंह का ताबेदार हूं।

इसके बाद तेजसिंह ने उस नकाबपोश की तरफ देखा जो उनके पास बैठा हुआ था और जिसे वह अपने साथ इस कमेटी में लाये थे। नकाबपोश ने अपने मुंह पर से नकाब उतारकर फेंक दिया और यह कहता हुआ राजा दिग्विजयसिंह के पैरों पर गिर पड़ा कि 'आप मेरा कसूर माफ करें।' राजा दिग्विजयसिंह ने शेरसिंह को पहचाना, बड़ी खुशी से उठाकर गले लगा लिया और कहा, ''नहीं-नहीं, तुम्हारा कोई कसूर नहीं बल्कि मेरा कसूर है जो मैं तुमसे क्षमा कराया चाहता हूं।''

शेरसिंह तेजसिंह के पास जा बैठे। तेजसिंह ने कहा, ''सुनो शेरसिंह, अब तुम हमारे हो चुके हो!''

शेर - बेशक मैं आपका हो चुका हूं, जब आपने महाराज से वचन ले लिया तो अब क्या उज्र हो सकता है

राजा वीरेंद्रसिंह ताज्जुब से ये बातें सुन रहे थे, अंत में तेजसिंह की तरफ देखकर बोले, ''तुम्हारी मुलाकात शेरसिंह से कैसे हुई'

तेज - शेरसिंह ने मुझसे स्वयं मिलकर सब हाल कहा, असल तो यह है कि हम लोगों पर भी शेरसिंह ने भारी अहसान किया है।

वीरेंद्र - वह क्या

तेज - कुंअर इंद्रजीतसिंह का पता लगाया है और अपने कई आदमी उनकी हिफाजत के लिए तैनात कर चुके हैं, इस बात का भी निश्चय दिला दिया है कि कुंअर इंद्रजीतसिंह को किसी तरह की तकलीफ न होने पावेगी।

वीरेंद्र - (खुश होकर और शेरसिंह की तरफ देखकर) हां! कहां पता लगा और किस हालत में है

शेर - वह सब हाल जो कुछ मुझे मालूम था मैं दीवान साहब (तेजसिंह) से कह चुका हूं वह आपसे कह देंगे, आप उसके जानने की जल्दी न करें। मैं इस समय यहां जिस काम के लिए आया था मेरा वह काम हो चुका अब मैं यहां ठहरना मुनासिब नहीं समझता। आप लोग अपने मतलब की बातचीत करें क्योंकि मदद के लिए मैं बहुत जल्द कुंअर इंद्रजीतसिंह के पास पहुंचा चाहता हूं। हां यदि आप कृपा करके अपना एक ऐयार मेरे साथ कर दें तो उत्तम हो और काम भी शीघ्र हो जाय।

वीरेंद्र - (खुश होकर) अच्छी बात है, आप जाइये और मेरे जिस ऐयार को चाहें लेते जाइये।

शेर - अगर आप मेरी मर्जी पर छोड़ते हैं तो देवीसिंह को अपने साथ के लिए मांगता हूं।

तेज - हां आप खुशी से उन्हें ले जायं। (देवीसिंह की तरफ देखकर) आप तैयारी कीजिए।

देवी - मैं हरदम तैयार रहता हूं। (शेरसिंह से) चलिए अब इन लोगों का पीछा छोड़िए।

देवीसिंह को साथ लेकर शेरसिंह रवाना हुए और इधर इन लोगों में विचार होने लगा कि अब क्या करना चाहिए। घंटे भर में यह निश्चय हुआ कि लाली से कुछ विशेष पूछने की जरूरत नहीं है क्योंकि वह अपना हाल ठीक-ठीक कभी न कहेगी, हां उसे हिफाजत में रखना चाहिए और तहखाने को अच्छी तरह देखना और वहां का हाल मालूम करना चाहिए। 

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रचनाएँ
सम्पूर्ण चंद्रकांता संतति
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चंद्रकांता संतति दूसरा भाग -1

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भाग 8

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इस जगह उस तालाब का हाल लिखते हैं, जिसका जिक्र कई दफे ऊपर-पीछे आ चुका है, जिसमें एक औरत को गिरफ्तार करने के लिए योगिनी और वनचरी कूदी थीं, या जिसके किनारे बैठ हमारे ऐयारों ने माधवी के दीवान, कोतवाल और स

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भाग 9

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अब जबर्दस्ती करने पर उतारू हुए और इस ताक में लगे कि माधवी सुरंग का ताला खोले और दीवान से मिलने के लिए महल में जाय तो मैं अपना रंग दिखाऊं। तिलोत्तमा के होशियार कर देने से माधवी भी चे

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भाग 10

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जख्मी इंद्रजीतसिंह को लिए हुए उनके ऐयार लोग वहां से दूर निकल गये और बेचारी किशोरी को दुष्ट अग्निदत्त उठाकर अपने घर ले गया। यह सब हाल देख तिलोत्तमा वहां से चलती बनी और बाग के अंदर कमरे में पहुंची। देखा

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भाग 11

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हम ऊपर के बयान में सुबह का दृश्य लिखकर कह आये हैं कि राजा वीरेंद्रसिंह, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह सेना सहित किसी तरफ को जा रहे हैं। पाठक तो समझ ही गये होंगे कि इन्होंने जरूर किसी तरफ चढ़ाई की है और बे

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भाग 12

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आज पांच दिन के बाद देवीसिंह लौटकर आये हैं। जिस कमरे का हाल हम ऊपर लिख आए हैं उसी में राजा वीरेंद्रसिंह, उनके दोनों लड़के, भैरोसिंह, तारासिंह और कई सरदार लोग बैठे हैं। इंद्रजीतसिंह की तबीयत अब बहुत अच्

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भाग 13

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तो किशोरी पर जी-जान से आशिक हो चुके थे। इस बीमारी की हालत में भी उसकी याद इन्हें सता रह थी और यह जानने के लिए बेचैन हो रहे थे कि उस पर क्या बीती, वह किस अवस्था में कहां है और अब उसक

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भाग 14

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है। गयाजी में हर मुहल्ले के चौकीदार ‘जागते रहियो, होशियार रहियो’ कह-कहकर इधर से उधर घूम रहे हैं। रात अंधेरी है, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ है। यहां का मुख्य स्थान विष्णु-पादु

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भाग 15

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राजा वीरेंद्रसिंह के चुनार चले जाने के बाद दोनों भाइयों को अपनी-अपनी फिक्र पैदा हुई। क्रुंअर आनंदसिंह किन्नरी की फिक्र में पड़े और कुंअर इंद्रजीतसिंह को राजगृही की फिक्र पैदा हुई। राजगृही को फतह कर ले

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भाग 16

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भैरोसिंह को राजगृही गये आज तीसरा दिन है। यहां का हाल-चाल अभी तक कुछ मालूम नहीं हुआ, इसी सोच में आधी रात के समय अपने कमरे में पलंग पर लेटे हुए कुंअर इंद्रजीतसिंह को नींद नहीं आ रही है। किशोरी की खयाली

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भाग 17

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मकान के अंदर कमला, इंद्रजीतसिंह और तारासिंह के पहुंचने के पहले ही हम अपने पाठकों को इस मकान में ले चलकर यहां की कैफियत दिखाते हैं। इस मकान के अंदर छोटी-छोटी न मालूम कितनी कोठरियां हैं पर हमें उनसे को

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चंद्रकांता संतति तीसरा भाग - 1

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पाठक समझ ही गये होंगे कि रामशिला के सामने फलगू नदी के बीच में भयानक टीले के ऊपर रहने वाले बाबाजी के सामने जो दो औरतें गई थीं वे माधवी और उसकी सखी तिलोत्तमा थीं। बाबाजी ने उन दोनों से वादा किया था कि त

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भाग 2

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शिवदत्तगढ़ में महाराज शिवदत्त बैठा हुआ बेफिक्री का हलुआ नहीं उड़ाता। सच पूछिये तो तमाम जमाने की फिक्र ने उसको आ घेरा है। वह दिन-रात सोचा ही करता है और उसके ऐयारों और जासूसों का दिन दौड़ते ही बीतता है।

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भाग 3

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ऐयारों और थोड़े से लड़कों के सिवाय नाहरसिंह को साथ लिए हुए भीमसेन राजगृही की तरफ रवाना हुआ। उसका साथी नाहरसिंह बेशक लड़ाई के फन में बहुत ही जबर्दस्त था। उसे विश्वास था कि कोई अकेला आदमी लड़कर कभी मुझस

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भाग 4

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आधी रात का समय है और सन्नाटे की हवा चल रही है। बिल्लौर की तरह खूबी पैदा करने वाली चांदनी आशिकमिजाजों को सदा ही भली मालूम होती है लेकिन आज सर्दी ने उन्हें भी पस्त कर दिया, यह हिम्मत नहीं पड़ती कि जरा म

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भाग 5

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कुंअर इंद्रजीतसिंह नाहरसिंह और तारासिंह को साथ लिए घर आये और अपने छोटे भाई से सब हाल कहा। वे भी सुनकर बहुत उदास हुए और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। दोनों कुमार बड़े ही तरद्दुद में पड़े। अगर तारासि

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भाग 6

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इश्क भी क्या बुरी बला है! हाय, इस दुष्ट ने जिसका पीछा किया उसे खराब करके छोड़ दिया और उसके लिए दुनिया भर के अच्छे पदार्थ बेकाम और बुरे बना दिये। छिटकी हुई चांदनी उसके बदन में चिनगारियां पैदा करती है,

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भाग 7

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है, किशोरी अपने कमरे में मसहरी पर लेटी हुई न मालूम क्या-क्या सोच रही है, हां उसकी डबडबाई हुई आंखें जरूर इस बात की खबर देती हैं कि उसके दिल में किसी तरह का द्वंद्व मचा हुआ है।

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भाग 8

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रोहतासगढ़ किले के सामने पहाड़ी से कुछ दूर हटकर वीरेंद्रसिंह का लश्कर पड़ा हुआ है। चारों तरफ फौजी आदमी अपने-अपने काम में लगे हुए दिखाई देते हैं। कुछ फौज आ चुकी और बराबर चली ही आती है। बीच में राजा वीरे

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भाग 9

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आधी रात का समय है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, राजा वीरेंद्रसिंह के लश्कर में पहरा देने वालों के सिवाय सभी आराम की नींद सोये हुए हें, हां थोड़े से फौजी आदमियों का सोना कुछ विचित्र ढंग का है जिन्हें

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भाग 10

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कुछ रात जा चुकी है। रोहतासगढ़ किले के अंदर अपने मकान में बैसठी हुई बेचारी किशोरी न मालूम किस ध्यान में डूबी हुई है और क्या सोच रही है। कोई दूसरी औरत उसके पास नहीं है। आखिर किसी के पैर की आहट पा अपने ख

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भाग 11

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इसके बाद लाली ने दबी जुबान से किशोरी को कुछ समझाया और दो घंटे में फिर मिलने का वादा करके वहां से चली गयी। हम ऊपर कई दफे लिख आये हैं कि उस बाग में जिसमें किशोरी रहती थी एक तरफ ऐसी इमारत है जिसके दरवाज

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भाग 12

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तालाब के किनारे खड़े उस विचित्र इमारत और हसीन औरत की तरफ देख रहे हैं। उनका इरादा हुआ कि तैरकर उस मकान में चले जायं जो इस तालाब के बीचोंबीच में बना हुआ है, मगर उस नौजवान औरत ने इन्हे

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भाग 13

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आधी रात के समय सुनसान मैदान में दो कमसिन औरतें आपस में कुछ बातें करती चली जा रही हैं। राह में छोटे-छोटे टीले पड़ते हैं जिन्हें तकलीफ के साथ लांघने और दम फूलने पर कभी ठहरकर फिर चलने से मालूम होता है कि

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भाग 14

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रोहतासगढ़ किले के चारों तरफ घना जंगल है जिसमें साखू, शीशम, तेंदू, आसन और सलई इत्यादि के बड़े-बड़े पेड़ों की घनी छाया से एक तरह को अंधकार-सा हो रहा है। रात की तो बात ही दूसरी है वहां दिन को भी रास्ते य

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चंद्रकांता संतति चौथा भाग -1

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अब हम अपने किस्से को फिर उसी जगह से शुरू करते हैं जब रोहतासगढ़ किले के अंदर लाली को साथ लेकर किशोरी सेंध की राह उस अजायबघर में घुसी जिसका ताला हमेशा बंद रहता था और दरवाजे पर बराबर पहरा पड़ा रहता था। ह

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भाग 2

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कंचनसिंह के मारे जाने और कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब हो जाने से लश्कर में बड़ी हलचल मच गई। पता लगाने के लिए चारों तरफ जासूस भेजे गये। ऐयार लोग भी इधर-उधर फैल गये और फसाद मिटाने के लिए दिलोजान से कोशिश

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भाग 3

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तेजसिंह के लौट आने से राजा वीरेंद्रसिंह बहुत खुश हुए और उस समय तो उनकी खुशी और भी ज्यादे हो गई जब तेजसिंह ने रोहतासगढ़ आकर अपनी कार्रवाई करने का खुलासा हाल कहा। रामानंद की गिरफ्तारी का हाल सुनकर हंसते

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अपनी कार्रवाई पूरी करने के बाद तेजसिंह ने सोचा कि अब असली रामानंद को तहखाने से ऐसी खूबसूरती के साथ निकाल लेना चाहिए जिससे महाराज को किसी तरह का शक न हो और यह गुमान भी न हो कि तहखाने में वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन दारोगा साहब अपनी गद्दी पर बैठे रोजनामचा देख रहे थे और उस तहखाने की पुरानी बातें पढ़-पढ़कर ताज्जुब कर रहे थे कि यकायक पीछे की कोठरी में खटके की आवाज आई। घबड़ाकर उठ खड़े हुए

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भाग 6

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अब हम अपने किस्से के सिलसिले को मोड़कर दूसरी तरफ झुकते हैं और पाठकों को पुण्यधाम काशी में ले चलकर संध्या के साथ गंगा के किनारे बैठी हुई एक नौजवान औरत की अवस्था पर ध्यान दिलाते हैं। सूर्य भगवान अस्त ह

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भाग 7

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लाल पोशाक वाली औरत की अद्भुत बातों ने नानक को हैरान कर दिया। वह घबड़ाकर चारों तरफ देखने लगा और डर के मारे उसकी अजब हालत हो गई। वह उस कुएं पर भी ठहर न सका और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता हुआ इस उम्मीद में गं

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भाग 8

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अब हम फिर उस महारानी के दरबार का हाल लिखते हैं जहां से नानक निकाला जाकर गंगा के किनारे पहुंचाया गया था। नानक को कोठरी में ढकेलकर बाबाजी लौटे तो महारानी के पास न जाकर दूसरी ही तरफ रवाना हुए और एक बारह

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अब हम रोहतासगढ़ की तरफ चलते हैं और तहखाने में बेबस पड़ी हुई बेचारी किशोरी और कुंअर आनंदसिंह इत्यादि की सुध लेते हैं। जिस समय कुंअर आनंदसिंह, भैरोसिंह और तारासिंह तहखाने के अंदर गिरफ्तार हो गए और राजा

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भाग 10

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दूसरे दिन संध्या के समय राजा वीरेंद्रसिंह अपने खेमे में बैठे रोहतासगढ़ के बारे में बातचीत करने लगे। पंडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह, तारासिंह, ज्योतिषीजी, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह उनके पास बैठे हुए थे। अपने

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भाग 11

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अब तो कुंदन का हाल जरूर ही लिखना पड़ा, पाठक महाशय उसका हाल जानने के लिए उत्कंठित हो रहे होंगे। हमने कुंदन को रोहतासगढ़ महल के उसी बाग में छोड़ा है जिसमें किशोरी रहती थी। कुंदन इस फिक्र में लगी रहती थी

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भाग 12

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दूसरे दिन दो पहर दिन चढ़े बाद किशोरी की बेहोशी दूर हुई। उसने अपने को एक गहन वन के पेड़ों की झुरमुट में जमीन पर पड़े पाया और अपने पास कुंदन और कई आदमियों को देखा। बेचारी किशोरी इन थोड़े ही दिनों में तर

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चंद्रकांता संतति- पाँचवाँ भाग 1

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बेचारी किशोरी को चिता पर बैठाकर जिस समय दुष्टा धनपत ने आग लगाई, उसी समय बहुत-से आदमी, जो उसी जंगल में किसी जगह छिपे हुए थे, हाथों में नंगी तलवारें लिये 'मारो! मारो!' कहते हुए उन लोगों पर आ टूटे। उन लो

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भाग 2

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पाठक अभी भूले न होंगे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह कहां हैं। हम ऊपर लिख आए हैं कि उस मकान में जो तालाब के अन्दर बना हुआ था, कुंअर इन्द्रजीतसिंह दो औरतों को देखकर ताज्जुब में आ गए। कुमार उन औरतों का नाम नहीं

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भाग 3

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कुमार कई दिनों तक कमलिनी के यहां मेहमान रहे। उसने बड़ी खातिरदारी और नेकनीयती के साथ इन्हें रखा। इस मकान में कई लौंडियां भी थीं जो दिलोजान से कुमार की खिदमत किया करती थीं, मगर कभी-कभी वे सब दो-दो पहर क

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि देवीसिंह को साथ लेकर शेरसिह कुंअर इन्द्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए रोहतासगढ़ से रवाना हुए। शेरसिंह इस बात को तो जानते थे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह फलां जगह हैं परन्तु उन्हें तालाब के

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भाग 5

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अब हम फिर रोहतासगढ़ की तरफ मुड़ते हैं और वहां राजा वीरेन्द्रसिंह के ऊपर जो-जो आफतें आईं, उन्हें लिखकर इस किस्से के बहुत से भेद, जो अभी तक छिपे पड़े हैं, खोलते हैं। हम ऊपर लिख आये हैं कि रोहतासगढ़ फतह

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भाग 6

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आज बहुत दिनों के बाद हम कमला को आधी रात के समय रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर पूरब तरफ वाले जंगल में घूमते देख रहे हैं। यहां से किले की दीवार बहुत दूर और ऊंचे पर है। कमला न मालूम किस फिक्र में है या क्या ढूं

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भाग 7

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रोहतासगढ़ फतह होने की खबर लेकर भैरोसिंह चुनार पहुंचे और उसके दो ही तीन दिन बाद राजा दिग्विजयसिंह की बेईमानी की खबर लेकर कई सवार भी जा पहुंचे। इस समाचार के पहुंचते ही चुनारगढ़ में खलबली पड़ गई। फौज के

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भाग 8

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बहुत दिनों से कामिनी का हाल कुछ भी मालूम न हुआ। आज उसकी सुध लेना भी मुनासिब है। आपको याद होगा कि जब कामिनी को साथ लेकर कमला अपने चाचा शेरसिंह से मिलने के लिए उजाड़ खंडहर और तहखाने में गई थी तो वहां से

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भाग 9

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गिल्लन को साथ लिये हुए बीबी गौहर रोहतासगढ़ किले के अन्दर जा पहुंची। किले के अन्दर जाने में किसी तरह का जाल न फैलाना पड़ा और न किसी तरह की कठिनाई हुई। वह बेधड़के किले के उस फाटक पर चली आई जो शिवालय के

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भाग 10

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वीरेन्द्रसिंह के तीनों ऐयारों ने रोहतासगढ़ के किले के अन्दर पहुंचकर अंधेर मचाना शुरू किया। उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि अगर दिग्विजयसिंह हमारे मालिकों को नहीं छोड़ेगा तो ऐयारी के कायदे के बाहर काम कर

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भाग 11

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इस जगह मुख्तसर ही में यह भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है कि रोहतासगढ़ तहखाने में से राजा वीरेन्द्रसिंह, कुंअर आनन्दसिंह और उनके ऐयार लोग क्योंकर छूटे और कहां गए। हम ऊपर लिख आए हैं कि जिस समय गौहर '

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भाग 12

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दो पहर दिन चढ़ने के पहले ही फौज लेकर नाहरसिंह रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर चढ़ गया। उस समय दुश्मनों ने लाचार होकर फाटक खोल दिया और लड़-भिड़कर जान देने पर तैयार हो गये। किले की कुल फौज फाटक पर उमड़ आई और फा

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भाग 13

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तहखाने में बैठी हुई कामिनी को जब किसी के आने की आहट मालूम हुई तब वह सीढ़ी की तरफ देखने लगी मगर जब उसे कई आदमियों के पैरों की धमधमाहट मालूम हुई तब वह घबड़ाई। उसका खयाल दुश्मनों की तरफ गया और वह अपने बच

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चंद्रकांता संतति छठवां भाग 1

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वे दोनों साधु, जो सन्दूक के अन्दर झांक न मालूम क्या देखकर बेहोश हो गए थे, थोड़ी देर बाद होश में आए और चीख-चीखकर रोने लगे। एक ने कहा, ''हाय-हाय इन्द्रजीतसिंह, तुम्हें क्या हो गया! तुमने तो किसी के साथ

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भाग 2

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इस समय शिवदत्त की खुशी का अन्दाज करना मुश्किल है और यह कोई ताज्जुब की बात भी नहीं है, क्योंकि लड़ाकों और दोस्त ऐयारों के सहित राजा वीरेन्द्रसिंह को उसने ऐसा बेबस कर दिया कि उन लोगों को जान बचाना कठिन

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भाग 3

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अब हम अपने पाठकों को फिर उस मैदान के बीच वाले अद्भुत मकान के पास ले चलते हैं जिसके अन्दर इन्द्रजीतसिंह, देवीसिंह, शेरसिंह और कमलिनी के सिपाही लोग जा फंसे थे अर्थात् कमन्द के सहारे दीवार पर चढ़कर अन्दर

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भाग 4

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अब तो मौसम में फर्क पड़ गया। ठंडी-ठंडी हवा जो कलेजे को दहला देती थी और बदन में कंपकंपी पैदा करती थी अब भली मालूम पड़ती है। वह धूप भी, जिसे देख चित्त प्रसन्न होता था और जो बदन में लगकर रग-रग से सर्दी न

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भाग 5

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रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज के सिवाय और किसी तरह की आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसे समय में काशी की तंग गलियों में दो आदमी, जिनमें एक औ

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भाग 6

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दूसरे दिन कुछ रात बीते कमलिनी फिर मनोरमा के मकान पर पहुंची। बाग के फाटक पर उसी दरबान को टहलते पाया जिससे कल बातचीत कर चुकी थी। इस समय बाग का फाटक खुला हुआ था और उस दरबान के अतिरिक्त और भी कई सिपाही वह

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भाग 7

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आधी रात जा चुकी है। कमलिनी उस कमरे में, जो उसके सोने के लिए मुकर्रर किया गया था, चारपाई पर लेटी हुई करवटें बदल रही है क्योंकि उसकी आंखों में नींद का नामो-निशान नहीं है। उसके दिल में तरह-तरह की बातें प

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चंद्रकांता संतति सातवाँ भाग 1

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नागर थोड़ी दूर पश्चिम जाकर घूमी और फिर उस सड़क पर चलने लगी जो रोहतासगढ़ की तरफ गई थी। पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि नागर का दिल कितना मजबूत और कठोर था। उन दिनों जो रास्ता काशी से रोहतासगढ़ को जाता था, व

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भाग 2

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हम ऊपर लिख आए हैं कि राजा वीरेन्द्रसिंह तिलिस्मी खंडहर से (जिसमें दोनों कुमार और तारासिंह इत्यादि गिरफ्तार हो गए थे) निकलकर रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए तो तेजसिंह उनसे कुछ कह-सुनकर अलग हो गए और उनके सा

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भाग 3

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। तेजसिंह उसी दो नम्बर वाले कमरे के बाहर सहन में तकिया लगाये सो रहे हैं। चिराग बालने का कोई सामान यहां मौजूद नहीं जिससे रोशनी करते, पास में कोई आदमी नहीं जिससे दिल बहलात

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भाग 4

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शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ-कुछ लाली अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की हवा बदन में कंपकंपी

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पाठकों को याद होगा कि भूतनाथ को नागर ने एक पेड़ के साथ बांध रखा है। यद्यपि भूतनाथ ने अपनी चालाकी और तिलिस्मी खंजर की मदद से नागर को बेहोश कर दिया मगर देर तक उसके चिल्लाने पर भी वहां कोई उसका मददगार न

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मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग (तिलिस्मी बाग) में है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रखा है, मगर उस बाग में दो और

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चंद्रकांता संतति - आठवाँ भाग 1

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मायारानी की कमर में से ताली लेकर जब लाडिली चली गई तो उसके घंटे भर बाद मायारानी होश में आकर उठ बैठी। उसके बदन में कुछ-कुछ दर्द हो रहा था जिसका सबब वह समझ नहीं सकती थी। उसे फिर उन्हीं खयालों ने आकर घेर

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भाग 2

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कैदखाने का हाल हम ऊपर लिख चुके हैं, पुनः लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। उस कैदखाने में कई कोठरियां थीं जिनमें से आठ कोठरियों में तो हमारे बहादुर लोग कैद थे और बाकी कोठरियां खाली थीं। कोई आश्चर्य नहीं, यद

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भाग 3

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मायारानी उस बेचारे मुसीबत के मारे कैदी को रंज, डर और तरद्दुद की निगाहों से देख रही थी जबकि यह आवाज उसने सुनी, ''बेशक मायारानी की मौत आ गई!'' इस आवाज ने मायारानी को हद्द से ज्यादा बेचैन कर दिया। वह घबड

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भाग 4

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कमलिनी की आज्ञानुसार बेहोश नागर की गठरी पीठ पर लादे हुए भूतनाथ कमलिनी के उस तिलिस्मी मकान की तरफ रवाना हुआ जो एक तालाब के बीचोंबीच में था। इस समय उसकी चाल तेज थी और वह खुशी के मारे बहुत ही उमंग और लाप

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भाग 5

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दिन दो पहर से कुछ ज्यादा चढ़ चुका है मगर मायारानी को खाने-पीने की कुछ भी सुध नहीं है। पल-पल में उसकी परेशानी बढ़ती ही जाती है। यद्यपि बिहारीसिंह, हरनामसिंह और धनपत ये तीनों उसके पास मौजूद हैं परन्तु स

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भाग 6

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रात आधी जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, हवा भी एकदम बन्द है, यहां तक कि किसी पेड़ की एक पत्ती भी नहीं हिलती। आसमान में चांद तो नहीं दिखाई देता, मगर जंगल मैदान में चलने वाले मुसाफिरों को तार

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भाग 7

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राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ और भैरोसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ रवाना करके कमलिनी अपने साथियों को साथ लिए हुए मायारानी के तिलिस्मी बाग की तरफ रवाना हुई। इस समय रात नाममात्र को बाकी थी। प्राय

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भाग 8

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अपनी बहिन लाडिली, ऐयारों और दोनों कुमारों को साथ लेकर कमलिनी राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देवमन्दिर में कुछ दिन रहेगी। वहां रहकर ये लोग जो कुछ करेंगे, उ

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भाग 9

11 जून 2022
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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। काशी में मनोरमा के मकान के अन्दर फर्श पर नागर बैठी हुई और उसके पास ही एक खूबसूरत नौजवान आदमी छोटे-छोटे तीन-चार तकियों का सहारा लगाये अधलेटा-सा पड़ा जमीन की तरफ देखता ह

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भाग 10

11 जून 2022
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दूसरे दिन आधी रात जाते-जाते भूतनाथ फिर उसी मकान में नागर के पास पहुंचा। इस समय नागर आराम से सोई न थी बल्कि न मालूम किस धुन और फिक्र में मकान की पिछली तरफ नजरबाग में टहल रही थी। भूतनाथ को देखते ही वह ह

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भाग 11

11 जून 2022
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ऊपर के बयान में जो कुछ लिख आये हैं उस बात को कई दिन बीत गये, आज भूतनाथ को हम फिर मायारानी के पास बैठे हुए देखते हैं। रंग-ढंग से जाना जाता है कि भूतनाथ की कार्रवाइयों से मायारानी बहुत ही प्रसन्न है और

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भाग 12

11 जून 2022
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आज से कुल आठ-दस दिन पहले मायारानी इतनी परेशान और घबड़ाई हुई थी कि जिसका कुछ हिसाब नहीं। वह जीते जी अपने को मुर्दा समझने लगी थी। राजा गोपालसिंह के छूट जाने के डर, चिन्ता, बेचैनी और घबड़ाहट ने चारों तरफ

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