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भाग 2

11 जून 2022

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कैदखाने का हाल हम ऊपर लिख चुके हैं, पुनः लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। उस कैदखाने में कई कोठरियां थीं जिनमें से आठ कोठरियों में तो हमारे बहादुर लोग कैद थे और बाकी कोठरियां खाली थीं। कोई आश्चर्य नहीं, यदि हमारे पाठक महाशय उन बहादुरों के नाम भूल गये हों जो इस समय मायारानी के कैदखाने में बेबस पड़े हैं अस्तु एक दफे पुनः याद दिला देते हैं। उस कैदखाने में कुंअर इन्द्रजीतसिंह, कुंअर आनन्दसिंह, तारासिंह, भैरोसिंह, देवीसिंह और शेरसिंह के अतिरिक्त एक कुमारी भी थी जिसके मुख की सुन्दर आभा ने उस कैदखाने में उजाला कर रखा था। पाठक समझ ही गये होंगे कि हमारा इशारा कामिनी की तरफ है। यद्यपि वह ऐसी कोठरी में बन्द थी जिसके अन्दर मर्दों की निगाह नहीं जा सकती थी तथापि कुंअर आनन्दसिंह को इस बात पर ढाढ़स थी कि उनकी प्यारी कामिनी उनसे दूर नहीं है, मगर कुंअर इन्द्रजीतसिंह के रंज का कोई ठिकाना न था। वे कुछ भी नहीं जानते थे कि उनकी प्यारी किशोरी कहां और किस अवस्था में है।

इस कैदखाने में छत के सहारे शीशे की एक कन्दील लटक रही थी। उसी में मायारानी का एक आदमी रोज जाकर रोशनी ठीक कर देता था। ठीक कर देना हम इसलिए कहते हैं, कि उस कैदखाने में अंधेरा रहने के कारण दिन-रात बत्ती जला करती थी और ठीक समय पर आदमी जाकर उसे दुरुस्त कर दिया करता था। खाने-पीने का सामान आठ पहर में एक दफे कैदियों को दिया जाता था। कैदखाने की भयानक अवस्था लिखने में हम विशेष समय नष्ट करना नहीं चाहते, क्योंकि हमें किस्सा बहुत लिखना है और जगह कम है।

अब हम उस संध्या का हाल लिखते हैं जिस दिन मायारानी से और चण्डूल से बातचीत हुई थी, या जब कमलिनी से लाडिली मिली थी। यों तो तहखाने के अन्दर दिन-रात समान था और कैदियों को इस बात का ज्ञान बिल्कुल नहीं हो सकता था कि सूर्य कब उदय और कब अस्त हुआ, तथापि बाहरी हिसाब से हमें समय लिखना ही पड़ता है।

संध्या होने के बाद एक आदमी कैदखाने में आया और कैदियों की तरफ देखकर बोला, ''मायारानी की तरफ से इस समय मैं आप लोगों के पास यह कहने के लिए आया हूं कि कल पहर दिन चढ़ने के पहले ही आप लोग इस दुनिया से उठा दिए जायंगे। इसके अतिरिक्त अपनी तरफ से अफसोस के साथ आपको इत्तिला देता हूं कि राजा वीरेन्द्रसिंह और रानी चन्द्रकांता को भी हमारी मायारानी ने गिरफ्तार कर लिया है। उन्हीं के सामने आप लोग मारे जायंगे, और इसके बाद उन दोनों की भी जान ली जायगी।''

इस आदमी के आने के पहले कैदी लोग सुस्त और उदास बैठे हुए थे, मगर जब इस आदमी ने आकर ऊपर लिखी बातें कहीं तो सभी की अवस्था बदल गई। क्रोध से सभी का चेहरा लाल हो गया और बदन कांपने लगा, लेकिन उस आदमी की बात का जवाब किसी ने भी कुछ न दिया।

कैदियों को सन्देशा देने के बाद मायारानी का आदमी उस कोठरी में गया, जिसमें हथकड़ी और बेड़ी से बेबस बेचारी कामिनी कैद थी। थोड़ी ही देर बाद कामिनी को साथ लिए हुए वह आदमी बाहर निकला। उस समय सभी की निगाह उस बेचारी पर पड़ी। देखा कि रंज, गम और दुःख के मारे वह सूखकर कांटा हो गई है। मालूम होता है मानो वर्षों से बीमार है। सिर के बाल खुले और फैले हुए हैं, साड़ी मैली और खराब हो गई है, मगर भोलापन, खूबसूरती और नजाकत ने इस अवस्था में भी उसका साथ नहीं छोड़ा है। उसके दोनों हाथ बंधे थे, और वह बेड़ी के सबब से अच्छी तरह कदम नहीं उठा सकती थी।

सभी को देखते-देखते कामिनी को साथ लिए हुए मायारानी का आदमी कैदखाने के बाहर चला गया और कैदखाने का दरवाजा फिर बन्द हो गया। ताली भरने की आवाज भी बहादुर कैदियों के कानों में पड़ी। यों तो वहां जितने कैदी थे, सभी क्रोध के मारे कांप रहे थे, मगर हमारे आनन्दसिंह की अवस्था कुछ और ही थी। एक तो अपने मां-बाप का हाल सुनकर जोश में आ ही चुके थे, दूसरे कामिनी को जो इस बेबसी के साथ कैदखाने के बाहर जाते देखा, और भी उबल पड़े, क्रोध सम्हाल न सके, उठके खड़े हो गए और जंगले वाली कोठरी में जिसमें कैद थे टहलने लगे। जिस जंगले वाली कोठरी में कुंअर इन्द्रजीतसिंह थे, वह आनन्दसिंह के ठीक सामने थी और ऐयार लोग भी उन्हें अच्छी तरह देख सकते थे। टहलने के साथ आनन्दसिंह के पैर की जंजीरी बोली, जिससे सभी का ध्यान उनकी तरफ जा रहा।

इन्द्रजीतसिंह - आनन्द!

आनन्दसिंह - आज्ञा!

इन्द्रजीतसिंह - क्या बेबसी हम लोगों का साथ न छोड़ेगी?

आनन्दसिंह - बेशक छोड़ेगी, अब हम लोग इस अवस्था में कदापि नहीं रह सकते। हम लोग जंगली शेर नहीं हैं जो जंगले के अन्दर बन्द पड़े रहें।

इन्द्रजीतसिंह - (खड़े होकर) हां, ऐसा ही है, यह लोहे की तार अब हमें रोक नहीं सकती!

इतना कहके इन्द्रजीतसिंह ने इष्टदेव का ध्यान कर अपनी कलाई उमेठी, और जोर करके हथकड़ी तोड़ डाली। बड़े भाई की देखादेखी आनन्दसिंह ने भी वैसा ही किया। हथकड़ी तोड़ने के बाद दोनों ने अपने पैरों की बेड़ियां खोलीं, और तब जंगले के बाहर निकलने का उद्योग करने लगे। दोनों हाथों से लोहे का छड़ जो जंगले में लगा हुआ था पकड़ के और लात अड़ा के खींचने लगे। इसमें कोई सन्देह नहीं कि दोनों कुमार बड़े बहादुर और ताकतवर थे। छड़ टेढ़े हो-होकर छेदों से बाहर निकलने लगे और बात-की-बात में दोनों शेर जंगले वाली कोठरी के बाहर निकलके खड़े हो गये। दोनों गले मिले, और इसके बाद हर एक जंगले के छड़ों को निकालकर दोनों भाइयों ने अपने ऐयारों को भी छुड़ाया, और जोश में आकर बोले, ''उद्योग से बढ़के दुनिया में कोई पदार्थ नहीं!''

आनन्दसिंह - ईश्वर चाहेगा तो अब थोड़ी देर में हम लोग इस कैदखाने के बाहर भी निकल जायंगे।

इन्द्रजीतसिंह - हां, अब हम लोगों को इसके लिए भी उद्योग करना चाहिए।

भैरोसिंह - हम लोग जोर करके तहखाने का दरवाजा उखाड़ डालेंगे, और इसी समय कम्बख्त मायारानी के सामने जा खड़े होंगे।

ऐयारों को साथ लिए हुए दोनों भाई सदर दरवाजे के पास गये जो बाहर से बन्द था। यह दरवाजा चार अंगुल मोटे लोहे का बना था और इसकी मजबूत चूल भी जमीन में बहुत गहरी घुसी हुई थी। इसलिए पूरे दो घण्टे तक मेहनत करने पर भी कोई नतीजा न निकला। क्रोध में आकर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह ने लोहे का छड़ जो जंगले में से निकला था उठा लिया, और बाईं तरफ की दीवार जो चूना और ईंटों से बनी हुई थी, तोड़ने लगे। उस समय ऐयारों ने दोनों भाइयों के हाथ से छड़ ले लिया, और दीवार तोड़ना शुरू किया।

पहर भर की मेहनत से दीवार में इतना बड़ा छेद हो गया कि आदमी उसकी राह बखूबी निकल जाय। भैरोसिंह ने झांककर देखा, उस तरफ बिल्कुल अंधेरा था और इस बात का ज्ञान जरा-भी नहीं हो सकता था कि दीवार के दूसरी तरफ क्या है। हम ऊपर लिख आए हैं कि इस कैदखाने में छत के सहारे शीशे की एक कन्दील लटकती थी। इस समय ऐयारों ने उसी कन्दील की रोशनी से काम लेना चाहा। तारासिंह ने भैरोसिह के कन्धे पर चढ़कर कन्दील उतार ली और उसे हाथ में लिए हुए उस सूराख की राह दूसरी तरफ निकल गये। इनके पीछे दोनों कुमार और ऐयार लोग भी गए। अब मालूम हुआ कि यह कोठरी है जो लगभग तीस हाथ के लम्बी और पन्द्रह हाथ से कम चौड़ी है। कुमार तथा ऐयार लोग अगर बिना रोशनी के इस कोठरी में आते तो जरूर दुःख भोगते, क्योंकि यहां जमीन बराबर न थी, बीचोंबीच में एक कुआं था और उसके चारों तरफ जमीन में चार दरवाजे बने हुए थे, जिनके देखने से मालूम होता था कि यहां कई तहखाने हैं, और ये दरवाजे नहीं, तहखानों के रास्ते हैं। इस समय उन दरवाजों के पल्ले जो लकड़ी के थे अच्छी तरह देखने से मालूम हुआ कि नीचे उतरने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं, और उस कुएं में भी लोहे की एक जंजीर लटक रही थी। इसके अतिरिक्त चारों तरफ की दीवारें बराबर थीं, अर्थात् किसी तरफ कोई दरवाजा न था, जिसे खोलकर ये लोग बाहर जाने की इच्छा करते।

इन्द्रजीतसिंह - मालूम होता है कि यहां आने या यहां से जाने के लिए इन तहखानों के सिवाय कोई राह नहीं है।

आनन्दसिंह - मैं भी यही समझता हूं।

देवीसिंह - इन तहखानों में उतरे बिना काम न चलेगा।

तारासिंह - आज्ञा हो तो मैं रोशनी लेकर एक तहखाने में उतरूं और देखूं कि क्या है।

इन्द्रजीतसिंह - खैर, जाओ, कोई हर्ज नहीं।

आज्ञा पाकर तारासिंह एक तहखाने के मुंह पर गये, मगर जब नीचे उतरने लगे तो कुछ देखकर रुक गये। कुंअर इन्द्रजीतसिंह ने रुकने का सबब पूछा। जिसके जवाब में तारासिंह ने कहा, ''इस तहखाने में रोशनी मालूम होती है और धीरे-धीरे वह रोशनी तेज होती जाती है। मालूम होता है कि सुरंग है, और कोई आदमी हाथ में बत्ती लिये इसी तरफ आ रहा है।''

दोनों कुमार और ऐयार लोग भी वहां गये और झांककर देखने लगे। थोड़ी देर में दो कमसिन औरतें नजर पड़ीं, जो सीढ़ी के पास आकर ऊपर चढ़ने का इरादा कर रही थीं। एक के हाथ में मोमबत्ती थी, जिसे देखते ही कुमार ने पहचान लिया कि यह कमलिनी है, साथ में लाडिली भी थी, मगर उसे वे पहचानते न थे। हां, जब कैदी बनकर मायारानी के दरबार में लाए गये थे, तो मायारानी की बगल में बैठे हुए उसे देखा था और समझते थे कि वह भी हम लोगों की दुश्मन है। इस समय कमलिनी के साथ उसे देखकर कुमार को शक मालूम हुआ, क्योंकि इन्द्रजीतसिंह कमलिनी को दोस्त समझते थे और दोस्त के साथ दुश्मन का होना बेशक खटके की बात है।

कमलिनी जब सीढ़ी के पास पहुंची तो ऊपर रोशनी देखकर रुक गई। साथ ही कुमार ने पुकारकर कहा, ''डरो मत, ऊपर चली आओ, मैं हूं इन्द्रजीतसिंह!''

कमलिनी ने कुमार की आवाज पहचान ली और लाडिली को साथ लिये ऊपर चली आई, मगर दोनों कुमारों और उनके ऐयारों को वहां देखकर ताज्जुब करने लगी।

कमलिनी - आप लोग यहां कैसे आये?

इन्द्रजीतसिंह - यही बात मैं तुमसे पूछने वाला था!

कमलिनी - मैं तो आपको छुड़ाने के लिए आई हूं, मगर मालूम होता है कि मेरे आने के पहले ही, किसी ने पहुंचकर आप लोगों को छुड़ा दिया।

देवीसिंह - कोई दूसरा नहीं आया, दोनों कुमारों ने स्वयं अपनी-अपनी हथकड़ी तोड़ डाली, जंगलों के सींखचे खींचकर बाहर निकाल दिये और हम लोगों को भी कैद से छुड़ाया, इसके बाद दीवार तोड़कर हम लोग अभी थोड़ी देर हुई इधर आये हैं!

कमलिनी - (हंसकर) बहादुर हैं, यह न ऐसा करेंगे तो दूसरा कौन करेगा!

इन्द्रजीतसिंह - हम एक बात तुमसे और पूछना चाहते हैं।

कमलिनी - आपका मतलब मैं समझ गई। (लाडिली की तरफ देखकर) शायद इसके बारे में आप कुछ पूछेंगे!

इन्द्रजीतसिंह - हां ठीक है, क्योंकि इन्हें हमने उसके पास बैठा देखा था, जिसके फरेब ने हमारी यह दशा की है, और लोगों की बातों से यह भी मालूम हुआ कि उसका नाम मायारानी है।

कमलिनी - बहुत दिनों तक साथ रहने पर भी आपको मेरा भेद कुछ भी मालूम नहीं हुआ, मगर इस समय मैं इतना कह देना उचित समझती हूं कि यह मेरी छोटी बहिन है और मायारानी बड़ी बहिन है। हम तीनों बहिनें हैं। लेकिन अनबन होने के कारण मैं उससे अलग हो गई और आज इसने भी उसका साथ छोड़ दिया। आज से पहले वह मेरी ही दुश्मन थी, मगर आज से इसकी भी जिसका नाम लाडिली है, जान की प्यासी हो गयी, मगर इतना सुनने पर भी मैं समझती हूं कि आप मुझे अपना दुश्मन न समझते होंगे।

इन्द्रजीतसिंह - नहीं-नहीं, कदापि नहीं। मैं तुम्हें अपना हमदर्द समझता हूं, तुमने मेरे साथ बहुत-कुछ नेकी की है।

कमलिनी - आप लोगों को छुड़ाने के लिए तेजसिंह भी यहां आये थे, मगर गिरफ्तार हो गये!

इन्द्रजीतसिंह - क्या तेजसिंह भी गिरफ्तार हो गये लेकिन वे उस कैदखाने में नहीं लाये गये जहां हम लोग थे।

कमलिनी - वह दूसरी जगह रखे गये थे। मैंने उन्हें भी कैद से छुड़ाया है, अब थोड़ी ही देर में आप उनसे मिलना चाहते हैं।

आनन्दसिंह चुपचाप इन दोनों की बातें सुन रहे थे, और छिपी निगाहों से लाडिली के रूप की अलौकिक छटा का भी आनन्द ले रहे थे। लाडिली भी प्रेम की निगाहों से उन्हें देख रही थी। इस बात को कमलिनी ने भी जान लिया, मगर वह तरह दे गई। जब आनन्दसिंह ने तेजसिंह का हाल सुना तब चौंके और कमलिनी की तरफ देखकर बोले -

आनन्दसिंह - सुना है कि हमारे माता-पिता भी...।

कमलिनी - हां, उन दोनों को भी कम्बख्त मायारानी ने फंसा लिया है! हाय, मैंने सुना है कि वे दोनों बेचारे बड़े संकट में हैं और सहज ही में उन दोनों का छूटना मुश्किल है, तथापि उद्योग में विलम्ब न करना चाहिए। अब आप कोई सवाल न कीजिये और यहां से जल्द निकल चलिये।

राजा वीरेन्द्रसिंह और रानी चन्द्रकांता का हाल सुनकर सबके सब घबड़ा गये और आगे कुछ सवाल करने की हिम्मत न पड़ी। कुमार कमलिनी के साथ चलने के लिए तैयार हो गये और सभी को साथ लिए हुए कमलिनी फिर उसी तहखाने में उतर गई, जहां से आई थी। कुंअर इन्द्रजीतसिंह किशोरी का और आनन्दसिंह कामिनी का हाल पूछने के लिए बेचैन थे, मगर मौका न समझकर चुप रह गये।

नीचे जाने पर मालूम हुआ कि वह एक सुरंग का रास्ता था, मगर यह सुरंग साधारण न थी। इसकी चौड़ाई केवल इतनी थी कि दो आदमी बराबर मिलकर जा सकते थे। ऊंचाई की यह अवस्था थी कि हर एक मर्द हाथ ऊंचा करके उसकी छत छू सकता था। दोनों तरफ की दीवार स्याह पत्थर की थी, जिस पर तरह-तरह की खूबसूरत, भयानक और कहीं-कहीं आश्चर्यजनक तस्वीरें मुसौवरों की कारीगरी का नमूना दिखा रही थीं, अर्थात् रंगों से बनी थीं। पत्थर गढ़कर नहीं बनाई गई थीं, परन्तु उन तस्वीरों के रंग की भी यह अवस्था थी कि अभी दो-चार दिन की बनी मालूम होती थीं जिन्हें देख हमारे कुमारों और ऐयारों को बहुत ही ताज्जुब मालूम हो रहा था।

कमलिनी - (इन्द्रजीतसिंह से) आप चाहते होंगे कि इन विचित्र तस्वीरों को अच्छी तरह देखें!

इन्द्रजीतसिंह - बेशक ऐसा ही है, किंतु इस दौड़ादौड़ में ऐसी उत्तम तस्वीरों के देखने का आनन्द कुछ भी नहीं मिल सकता और यहां की एक-एक तस्वीर ध्यान देकर देखने योग्य है, परन्तु क्या किया जाय, जब से अपने माता-पिता का हाल तुम्हारी जुबानी सुना है, जी बेचैन हो रहा है, यही इच्छा होती है कि जहां तक जल्द हो सके, उनके पास पहुंचें और उन्हें कैद से छुड़ावें। तुम स्वयं कह चुकी हो कि वह बड़े संकट में पड़े हैं, परन्तु यह न जाना गया कि उन्हें किस प्रकार का संकट है!

कमलिनी - आपका कहना बहुत ठीक है, इन तस्वीरों को देखने के लिए बहुत समय चाहिए बल्कि इनका हाल और मतलब जानने के लिए कई दिन चाहिए, और यह समय यहां अटकने का नहीं है, मगर साथ ही इसके यह भी याद रखिये कि आप दो-चार या दस घण्टे के अन्दर ठिकाने पहुंचकर भी अपने माता-पिता को नहीं छुड़ा सकते। मुझे ठीक-ठीक मालूम नहीं कि वह किस कैदखाने में कैद हैं, पहले तो इसी बात का पता लगाने के लिए कई दिन नहीं तो कई पहर चाहिए।

इन्द्रजीतसिंह - तो क्या तुमने उन्हें अपनी आंखों से नहीं देखा?

कमलिनी - नहीं, मगर इतना जानती हूं कि इस बाग के चौथे दर्जे में किसी ठिकाने वे कैद हैं।

इन्द्रजीतसिंह - क्या इस बाग के कई दर्जे हैं, जिसमें मायारानी रहती है और जहां हम लोग बेबस करके लाये गये थे?

कमलिनी - हां, इस बाग के चार दर्जे हैं। पहले में तो सिपाहियों और नौकरों के ठहरने का ठिकाना है, दूसरे दर्जे में स्वयं मायारानी रहती है, तीसरे और चौथे दर्जे में कोई नहीं रहता। हां, यदि कोई ऐसा कैदी हो जिसे बहुत ही गुप्त रखना मंजूर हो तो वहां भेज दिया जाता है। तीसरे और चौथे दर्जे को तिलिस्म कहना चाहिए, बल्कि चौथा दर्जा तो (कांपकर) ओफ, बड़ी-बड़ी भयानक चीजों से भरा हुआ है।

इन्द्रजीतसिंह - तो उसी चौथे दर्जे में हमारे माता-पिता कैद हैं?

कमलिनी - जी हां।

आनन्दसिंह - शायद तुम्हारी छोटी बहिन कुछ जानती हों जो तुम्हारे साथ हैं?

कमलिनी - नहीं - नहीं, यह बेचारी तीसरे और चौथे दर्जे का हाल कुछ भी नहीं जानती।

लाडिली - बल्कि तीसरे और चौथे दर्जे का पूरा-पूरा हाल मायारानी को भी नहीं मालूम। कमलिनी बहिन को मालूम न था, मगर दो ही चार महीनों में न मालूम क्योंकर वहां का विचित्र हाल इन्हें मालूम हो गया। देखिये, इसी सुरंग को जिसमें हम लोग जा रहे हैं, मायारानी भी नहीं जानती और मुझे तो इसका कुछ गुमान भी न था।

यहां पर कमलिनी के साथ की वह मोमबत्ती जलकर पूरी हो गयी और कमलिनी ने उसे जमीन पर फेंक दिया। अब इस सुरंग में केवल उस कन्दील की रोशनी रह गई, जो ये लोग कैदखाने में से लाये थे और इस समय तारासिंह उसे अपने हाथ में लटकाये सभी के पीछे-पीछे आ रहे थे। कमलिनी के कहे मुताबिक तारासिंह अब कन्दील लिए हुए आगे-आगे चलने लगे। लगभग बीस कदम जाने के बाद एक चौमुहानी मिली, अर्थात् वहां से चारों तरफ सुरंगें गई हुई थीं। कमलिनी ने रुककर इन्द्रजीतसिंह की तरफ देखा और कहा, ''अब यहां से अगर हम लोग चाहें तो इस तिलिस्मी मकान के बाहर निकल जा सकते हैं।''

इन्द्रजीतसिंह - यह सामने वाला रास्ता कहां गया है?

कमलिनी - बाग के तीसरे और चौथे दर्जे में जाने के लिए यही रास्ता है और बायीं तरफ वाली सुरंग उस दूसरे दर्जे में गई है, जिसमें मायारानी रहती है।

आनन्दसिंह - और दाहिनी तरफ जाने से हम लोग कहां पहुंचेंगे?

कमलिनी - इस तिलिस्मी मकान या बाग से बाहर जाने के लिए वही राह है।

इन्द्रजीतसिंह - तो अब तुम हम लोगों को कहां ले जाना चाहती हो?

कमलिनी - जहां आप कहिए।

आनन्दसिंह - अगर मायारानी के बाग में ले चलो तो हम उसे इसी समय गिरफ्तार कर लें, इसके बाद सब काम सहज ही में हो जायगा।

कमलिनी - यह काम सहज नहीं है और इसके सिवाय जहां तक मैं समझती हूं, मायारानी इस समय अपने कमरे में न होगी या यदि होगी भी तो हर तरह से होशियार होगी। केवल इतना ही नहीं वहां जाने से और भी कई प्रकार का धोखा है। एक तो उस बाग की चहारदीवारी के बाहर कूदकर या कमन्द लगाकर निकल जाना असंभव है, दूसरे उस बाग की हिफाजत के लिए पांच सौ सिपाही मुकर्रर हैं जो हमेशा मुस्तैद और सहज ही मायारानी के पास पहुंच जाने के लिए तैयार रहते हैं। मायारानी को गिरफ्तार करके बाग के बाहर ले जाना कठिन है। मेरी समझ में तो आपको एक दफे यहां से बाहर निकल जाना चाहिए।

इन्द्रजीतसिंह - मगर मैं कुछ और ही चाहता हूं।

कमलिनी - वह क्या?

इन्द्रजीतसिंह - यदि तुमसे हो सके तो हमें किसी ऐसी जगह ले चलो, जो इस बाग की सरहद के अन्दर हो और जहां दो-तीन रोज तक गुप्त रीति से हम लोग रह भी सकें।

कमलिनी - (कुछ सोचकर) हां, यह हो सकता है और इस राय को मैं भी पसंद करती हूं।

लाडिली - (कमलिनी से) तुमने कौन-सी ऐसी जगह सोची है?

कमलिनी - ऐसी जगह बाग के तीसरे दर्जे में है, बल्कि चौथे दर्जे में भी है।

लाडिली - चौथे दर्जे में जाकर दो-तीन दिन तक रहना उचित नहीं क्योंकि वह बड़ी भयानक जगह है, क्या तुम वहां के भेद अच्छी तरह जानती हो?

कमलिनी - हरे कृष्ण गोविन्द! वहां का हाल जानना क्या खिलवाड़ है हां, एक मकान के अन्दर जाने का रास्ता जरूर मालूम है, जहां कोई दूसरा नहीं पहुंच सकता।

इन्द्रजीतसिंह - तो फिर उसी जगह हम लोगों को क्यों नहीं ले चलती हो?

कमलिनी - (कुछ सोचकर) हां, मुझे अब याद आया, इतनी देर से व्यर्थ भटक रही हूं। अच्छा आप लोग मेरे पीछे-पीछे चले आइये।

सभी को साथ लिए हुए कमलिनी रवाना हुई। थोड़ी दूर जाने के बाद एक बन्द दरवाजा मिला। वह दरवाजा लोहे का था। मगर यह नहीं मालूम होता था कि वह किस तरह खुलेगा क्योंकि न तो उसमें कहीं ताली लगाने की जगह थी, और न कोई जंजीर या कुंडी ही दिखाई देती थी। दरवाजे की दोनों बगल दीवार में तीन-तीन हाथ ऊंचे दो हाथी बने हुए थे। ये हाथी चांदी के थे और इनके धड़ का अगला हिस्सा कुछ आगे की तरफ बढ़ा हुआ था। एक हाथी की सूंड में दूसरे हाथी की सूंड गुंथी थी। इन दोनों हाथियों के अगले एक-एक पैर आगे बढ़े और कुछ जमीन की तरफ इस प्रकार मुड़े हुए थे, जिसके देखने से मालूम होता था कि दो सफेद हाथी क्रोध में आकर सूंड मिला रहे हैं और लड़ने के लिए तैयार हैं।

कमलिनी - एक ग्रन्थ के पढ़ने से मुझे मालूम हुआ कि दरवाजा कमानी के सहारे से खुलता और बन्द होता है और इसकी कमानी इन दोनों हाथियों के पेट में है, जिस पर दोनों सूंडों के दबाने से दबाव पहुंचता है, अस्तु यहां ताकत का काम है। इस दोनों सूंडों को जोर के साथ यहां तक झुकाना और दबाना चाहिए कि दरवाजे के साथ लग जायें। मैं देखना चाहती हूं कि आपके ऐयारों में कितनी ताकत है।

देवीसिंह - अगर किसी आदमी के झुकाये यह झुक सकता है, तो पहले मुझे उद्योग करने दीजिए।

कमलिनी - आइये-आइये, लीजिये, मैं हट जाती हूं।

देवीसिंह ने दोनों सूंडों पर हाथ रखा और छाती से अड़ाकर जोर किया, मगर एक बित्ते से ज्यादा न दबा सके और दरवाजा दो हाथ की दूरी पर था, इसलिए दो हाथ दबाकर ले जाने की आवश्यकता थी। आखिर देवीसिंह यह कहते हुए पीछे हटे, ''यह राक्षसी काम है।''

इसके बाद और ऐयारों ने भी जोर किया, मगर देवीसिंह से ज्यादा काम न कर सके। तब कमलिनी कुमारों की तरफ देखकर हंसी और बोली, ''सिवाय आप दोनों के यह काम किसी तीसरे से न हो सकेगा!''

आनन्दसिंह - (इन्द्रजीतसिंह की तरफ देखकर) यदि आज्ञा हो तो मैं भी जोर करूं

इन्द्रजीतसिंह - क्या हर्ज है, तुम यह काम बखूबी कर सकते हो!

आज्ञा पाते ही कुंअर आनन्दसिंह ने दोनों सूंडों पर हाथ रखके जोर किया और पहले ही जोर में दरवाजे के साथ लगा दिया। यह हाल देखते ही लाडिली ने जोश में आकर कहा, ''वाह-वाह! कैद की मुसीबत उठाकर कमजोर होने पर भी यह हाल है!''

दरवाजे के साथ सूंडों का लगना था कि हाथियों के चिंघाड़ने की हलकी आवाज आई और दरवाजा जो एक ही पल्ले का था, सरसर करता जमीन के अन्दर घुस गया। कमलिनी ने आनन्दसिंह से कहा, ''अब सूंड को पीछे की तरफ हटाइये, मगर पहले सूंड के नीचे से या उसके ऊपर से लांघकर दूसरी तरफ निकल चलिए।

हाथ में कंदील लिए हुए पहले तारासिंह टप गये और दरवाजे के उस पार जा खड़े हुए, तब इन्द्रजीतसिंह दरवाजे के उस पार पहुंचे, उसके बाद कुंअर आनन्दसिंह जाना ही चाहते थे कि एक नई घटना ने सब खेल ही बिगाड़ दिया।

दरवाजे के उस पार एक आदमी न मालूम कब से छिपा बैठा था। उसने फुर्ती से आगे बढ़कर एक लात उस कन्दील में मारी जो तारासिंह के हाथ में थी। कंदील हाथ से छूटकर जमीन पर तो न गिरी मगर बुझ गई और एकदम अन्धकार हो गया। यद्यपि यह काम उसने बड़ी फुर्ती से किया, तथापि इन लोगों की निगाह उस पर पड़ ही गई, लेकिन उसकी असली सूरत नजर न पड़ी क्योंकि वह काला कपड़ा पहने और अपने चेहरे को नकाब से छिपाये हुए था।

अंधेरा होते ही उसने दूसरा काम किया। भुजाली उसके पास थी, जिसका एक भरपूर हाथ उसने कुंअर इन्द्रजीतसिंह के सिर पर जमाया। अंधेरे के सबब से निशाने में फर्क पड़ गया तो भी कुमार के बायें मोढ़े पर गहरी चोट बैठी। चोट खाते ही कुमार ने पुकारकर कहा, ''सब कोई होशियार रहना! दुश्मन के हाथ में हर्बा है और वह मुझे जख्मी भी कर चुका है!''

यह हाल देख और सुनकर कमलिनी ने झट अपने तिलिस्मी खंजर से काम लिया। हम ऊपर लिख आये हैं कि उसकी कमर में दो तिलिस्मी खंजर हैं। उसने एक खंजर हाथ में लेकर उसका कब्जा दबाया और उसमें से बिजली की तरह चमक पैदा हुई जिससे कमलिनी के सिवाय जो आदमी वहां थे, कोई भी उस चमक को न सह सका और सभी ने अपनी-अपनी आंखें बन्द कर लीं।

दरवाजे के उस पार भी उसी तरह की सुरंग थी। कमलिनी ने देखा कि दुश्मन अपना काम करके सामने की तरफ भागा जा रहा है, मगर इस खंजर की चमक ने उसे भी चौंधिया दिया था। जिसका नतीजा यह हुआ कि कमलिनी बहुत जल्द ही उसके पास जा पहुंची और खंजर उसके बदन से लगा दिया, जिसके साथ ही वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा। खंजर कमर में रखकर कमलिनी लौटी और उसने अपने बटुए में से सामान निकालकर एक मोमबत्ती जलाई तथा इतने में हमारे ऐयार लोग भी दरवाजे के दूसरी तरफ जा पहुंचे।

कुंअर इन्द्रजीतसिंह के मोढ़े से खून निकल रहा था। यद्यपि कुमार को उसकी कुछ पहवाह न थी और उनके चेहरे पर भी किसी प्रकार का रंज न मालूम होता था तथापि देवीसिंह ने जख्म बांधने का इरादा किया, मगर कमलिनी ने रोककर अपने बटुए में से किसी प्रकार के तेल की एक शीशी निकाली और अपने नाजुक हाथों से घाव पर तेल लगाया, जिससे तुरन्त ही खून बन्द हो गया। इसके बाद अपने आंचल में से थोड़ा कपड़ा फाड़कर जख्म बांधा। उसके अहसान ने कुंअर इन्द्रजीतसिंह को पहले ही अपना कर लिया था, अब उसकी मुहब्बत और हमदर्दी ने उन्हें अच्छी तरह अपने काबू में कर लिया।

इन्द्रजीतसिंह - (कमलिनी से) तुम्हारे अहसानों के बोझ से मैं दबा ही जाता हूं। (मुस्कुराकर और धीरे से) देखना चाहिए, सिर उठाने का दिन भी कभी आता है या नहीं।

कमलिनी - (मुस्कुराकर) बस, रहने दीजिये, बहुत बातें न बनाइये।

आनन्दसिंह - मालूम होता है, वह शैतान भाग गया।

कमलिनी - नहीं-नहीं, मेरे सामने से भागकर निकल जाना जरा मुश्किल है, आगे चलकर आप उसे जमीन पर बेहोश पड़ा हुआ देखेंगे।

इन्द्रजीतसिंह - इस समय तो तुमने वह काम किया है जिसे करामात कहना चाहिए!

कमलिनी - मैं बेचारी क्या कर सकती हूं, इस समय तो (खंजर की तरफ इशारा करके) इसने बड़ा काम किया।

इन्द्रजीतसिंह - बेशक यह अनूठी चीज है, इसकी चमक ने तो आंखें बन्द कर दीं, कुछ देख भी न सके कि तुमने क्या किया।

कमलिनी - यह तिलिस्मी खंजर है और इसमें बहुत से गुण हैं।

इन्द्रजीतसिंह - मैं सुनना चाहता हूं कि इस खंजर में क्या-क्या गुण हैं। बल्कि और भी कई बातें पूछना चाहता हूं मगर यकायक दुश्मन के पहुंचने से...।

कमलिनी - खैर, ईश्वर की मर्जी, मैं खूब जानती हूं कि सिवाय इस शैतान के और कोई यहां तक नहीं आ सकता, तिस पर भी इस दरवाजे को खोलने की इसे सामर्थ्य न थी, इसी से चुपचाप दुबका हुआ था। मगर फिर भी इसका यहां तक पहुंच जाना ताज्जुब मालूम होता है।

इन्द्रजीतसिंह - क्या तुम उसे पहचानती हो

कमलिनी - हां, कुछ-कुछ शक तो होता है मगर निश्चय किये बिना कुछ नहीं कह सकती।

इन्द्रजीतसिंह - जो हो, मगर अब हम लोगों को यहां से निकल चलने के लिए जल्दी करनी चाहिए।

कमलिनी - पहले इस दरवाजे को बन्द कर लीजिये नहीं तो इस राह से दुश्मन के आ पहुंचने का डर रहेगा।

दरवाजे के दूसरी तरफ भी उसी प्रकार के दो हाथी बने हुए थे। कमलिनी के कहे मुताबिक आनन्दसिंह ने जोर से सूंड को दरवाजे की तरफ हटाया जिससे उस तरफ वाले हाथियों की सूंड ज्यों-की-त्यों सीधी हो गई और दरवाजा भी बन्द हो गया।

इन्द्रजीतसिंह - मालूम होता है कि इस तरफ से कोई दरवाजा खोलना चाहे तो इन हाथियों की सूंडों को, जो इस समय दरवाजे के साथ लगी हुई हैं, अपनी तरफ खींचकर सीधा करना पड़ेगा और ऐसा करने से उस तरफ के हाथियों की सूंडें दरवाजे के पास आ लगेंगी।

कमलिनी - आपका सोचना बहुत ठीक है, वास्तव में ऐसा ही है।

इन्द्रजीतसिंह - अच्छा, अब यहां से चल देना चाहिए, चलते-चलते इस खंजर का गुण भी कहो जिसकी करामात मैं अभी देख चुका हूं।

कमलिनी - चलते-चलते कहने की कोई जरूरत नहीं, मैं इसी जगह अच्छी तरह समझाकर एक खंजर आपके हवाले करती हूं।

उस खंजर में जो-जो गुण था उसके विषय में ऊपर कई जगह लिखा जा चुका है, कमलिनी ने कुंअर इन्द्रजीतसिंह को सब समझाया और इसके बाद खंजर के जोड़ की अंगूठी उनके हाथ में पहनाकर एक खंजर उनके हवाले किया, जिसे पाकर कुमार बहुत प्रसन्न हुए।

लाडिली - (कमलिनी से) एक खंजर छोटे कुमार को भी देना चाहिए।

कमलिनी - (मुस्कुराकर) आपकी सिफारिश की कोई जरूरत नहीं है, मैं खुद एक खंजर छोटे कुमार को दूंगी।

आनन्दसिंह - कब?

कमलिनी - यह दूसरा खंजर उसी तरह का मेरे पास है। इसे मैं आपको अभी दे देती मगर इसलिए रख छोड़ा है कि आप ही के लिए इस घर में अभी कई तरह का काम करना है, शायद कभी दुश्मनों के...।

आनन्दसिंह - नहीं-नहीं, यह खंजर, जो तुम्हारे पास रह गया है, लेकर मैं तुम्हें खतरे में नहीं डाल सकता, कल-परसों या दस दिन में जब मौका हो तब मुझे देना।

कमलिनी - जरूर दूंगी, अच्छा अब यहां से चलना चाहिए।

दोनों कुमारों और ऐयारों को साथ लिये हुए कमलिनी वहां से रवाना हुई और उस ठिकाने पहुंची जहां वह शैतान बेहोश पड़ा हुआ था जिसने कन्दील बुझाकर कुमार को जख्मी किया था। चेहरे पर से नकाब हटाते ही कमलिनी चौंकी और बोली, ''हैं, यह तो कोई दूसरा ही है! मैं समझे हुए थी कि दारोगा, किसी तरह राजा वीरेन्द्रसिंह की कैद से छूटकर आ गया होगा, मगर इसे तो मैं बिल्कुल नहीं पहचानती। (कुछ रुककर) उसनेमेरे साथ दगा तो नहीं की! कौन ठिकाना, ऐसे आदमी का विश्वास न करना चाहिए, मगर मैंने तो उसके साथ...''

ऊपर लिखी बातें कह कमलिनी चुप हो गई और थोड़ी देर तक किसी गम्भीर चिन्ता में डूबी-सी दिखाई पड़ी। आखिर कुंअर इन्द्रजीतसिंह से रहा न गया, धीरे से कमलिनी की उंगली पकड़कर बोले -

इन्द्रजीतसिंह - तुम्हें इस अवस्था में देखकर मुझे जान पड़ता है कि शायद कोई नयी मुसीबत आने वाली है जिसके विषय में तुम कुछ सोच रही हो।

कमलिनी - हां, ऐसा ही है, मेरे कामों में विघ्न पड़ता दिखाई देता है। अच्छा मर्जी परमेश्वर की! आपके लिए कष्ट उठाना क्या, जान तक देने को तैयार हूं। (कुछ रुककर) अब देर करना उचित नहीं, यहां से निकल ही जाना चाहिए।

इन्द्रजीतसिंह - क्या मायारानी के अनूठे बाग के बाहर निकलने को कहती हो?

कमलिनी - हां।

इन्द्रजीतसिंह - मैं तो सोचे हुए था कि माता-पिता को छुड़ाकर तभी यहां से जाऊंगा।

कमलिनी - मैंने भी यही निश्चय किया था, परन्तु अब क्या किया जाय, सबके पहले अपने को बचाना उचित है, यदि आप ही आफत में फंसेंगे तो उन्हें कौन छुड़ायेगा!

इन्द्रजीतसिंह - यहां की अद्भुत बातों से मैं अनजान हूं इसलिए जो कुछ करने को कहोगी करना ही पड़ेगा, नहीं तो मेरी राय तो यहां से भागने की न थी, क्योंकि जब मेरे हाथ-पैर खुले हैं और सचेत हूं तो एक क्या पांच सौ से भी डर नहीं सकता। जिस पर तुम्हारा दिया हुआ यह अनूठा तिलिस्मी खंजर पाकर तो साक्षात् काल का भी मुकाबला करने से बाज न आऊंगा।

कमलिनी - आपका कहना ठीक है, मैं आपकी बहादुरी को अच्छी तरह जानती हूं, परन्तु इस समय नीति यही कहती है कि यहां से निकल जाओ।

इन्द्रजीतसिंह - अगर ऐसा ही है तो चलो मैं चलता हूं। (धीरे-से कान में) तुम्हारी बुद्धिमानी पर मुझे डाह होता है।

कमलिनी - (धीरे से) डाह कैसा?

इन्द्रजीतसिंह - (दो कदम आगे ले जाकर) डाह इस बात का कि वह बड़ा ही भाग्यशाली होगा जिसके तुम पाले पड़ोगी।

इसके जवाब में कमलिनी ने कुमार को एक हल्की चुटकी काटी और धीरे से कहा, ''मुझे तो तुमसे बढ़कर भाग्यशाली कोई दिखाई नहीं पड़ता मगर...!''

आह, कमलिनी की इस बात ने तो कुमार को फड़का दिया लेकिन इस 'मगर' शब्द ने भी बड़ा अंधेर किया जिसका सबब हमारे मनचले पाठक स्वयं समझ जायंगे क्योंकि वे कमलिनी और कुंअर इन्द्रजीतसिंह की पहली बातें अभी भूले न होंगे, जो तालाब के बीच वाले उस मकान में हुई थीं जहां कमलिनी रहा करती थी।

कमलिनी - (देवीसिंह से) इस आदमी को जो बेहोश पड़ा है उठाके ले चलना चाहिए।

देवीसिंह - हां-हां, इसे मैं उठाकर ले चलूंगा।

इन्द्रजीतसिंह - शायद हम लोगों को फिर लौटना पड़े क्योंकि बाहर निकलने का रास्ता पीछे छोड़ आये हैं।

कमलिनी - हां, सुगम रास्ता तो यही था मगर अब मैं उधर न जाऊंगी। कौन ठिकाना हाथी वाले दरवाजे के उस तरफ दुश्मन लोग आ गये हों, क्योंकि कैदखाने की दीवार आप तोड़ ही चुके हैं और उधर वाली सुरंग का मुंह खुला रहने के कारण किसी का आना कठिन नहीं है।

इन्द्रजीतसिंह - तब दूसरी राह कौन-सी है क्या उधर चलोगी जिधर से यह दुश्मन आया है

कमलिनी - नहीं, उधर भी दुश्मनों का गुमान है, आइये मैं एक और ही राह से ले चलती हूं।

आगे - आगे कमलिनी और उसके पीछे दोनों कुमार और ऐयार लोग रवाना हुए।

यहां भी दोनों तरफ दीवारों पर सुन्दर तस्वीरें बनी हुई थीं। दस-बारह कदम आगे जाने के बाद बगल की दीवार पर एक छोटा-सा खुला हुआ दरवाजा था जिसे देखकर कमलिनी ने इन्द्रजीतसिंह से कहा, ''यह आदमी इसी राह से आया होगा, क्योंकि अभी तक दरवाजा खुला हुआ है, मगर मैं दूसरी ही राह से चलूंगी जो जरा कठिन है।''

कुमार - मैं तो कहता हूं कि इसी राह से चलो। दरवाजे पर दस-पांच दुश्मन मिल ही जायंगे तो क्या होगा।

कमलिनी - खैर, तब चलिये।

सब कोई उस राह से बाहर हुए और कमलिनी ने उस दरवाजे को जो एक खटके के सहारे खुलता और बन्द होता था बन्द कर दिया। उस तरफ भी थोड़ी दूर सुरंग में ही जाना पड़ा। जब सुरंग का अन्त हुआ तो छोटी-छोटी सीढ़ियां ऊपर चढ़ने के लिए मिलीं। कमलिनी ने ऊपर की तरफ देखा और कहा, ''यहां का दरवाजा तो बन्द है।'' सबके आगे कमलिनी और फिर दोनों कुमार और ऐयार लोग ऊपर चढ़े। ये सीढ़ियां घूमती हुई ऊपर गई थीं, मालूम होता था कि किसी बुर्ज पर चढ़ रहे हैं।

जब सीढ़ियों का अन्त हुआ तो एक चक्कर पहिए की तरह बना हुआ दिखाई दिया जिसे कमलिनी ने चार-पांच दफे घुमाया। खटके की आवाज के साथ पत्थर की चट्टान अलग हो गई और सभी लोग उस राह से निकलकर बाहर मैदान में दिखाई देने लगे। बाहर सन्नाटा देखकर कमलिनी ने कहा, ''शुक्र है कि यहां हमारा दुश्मन कोई नहीं दिखाई देता।''

जिस राह से कुमार और ऐयार लोग बाहर निकले वह पत्थर का एक चबूतरा था, जिसके ऊपर महादेव का लिंग स्थापित था। चबूतरे के नीचे की तरफ का बगल वाला पत्थर खुलकर जमीन के साथ सट गया था और वही बाहर निकलने का रास्ता बन गया था। लिंग की बगल में तांबे का बड़ा-सा नन्दी (बैल) बना हुआ था और उसके मोढ़े पर लोहे का एक सर्प कुण्डली मारे बैठा था। कमलिनी ने सांप के सिर को दोनों हाथ से पकड़कर उभाड़ा और साथ ही नन्दी ने मुंह खोल दिया, तब कमलिनी ने उसके मुंह में हाथ डालकर कोई पेंच घुमाया। वह पत्थर की चट्टान जो अलग हो गई थी फिर ज्यों-की-त्यों हो गई और सुरंग का मुंह बन्द हो गया। कमलिनी ने सांप के फन को फिर दबा दिया और बैल ने भी अपना मुंह बन्द कर लिया।

इन्द्रजीतसिंह - (कमलिनी से) यह दरवाजा भी अजब तरह से खुलता और बन्द होता है।

कमलिनी - हां, बड़ी कारीगरी से बनाया गया है।

इन्द्रजीतसिंह - इसके खोलने और बन्द करने की तरकीब मायारानी को मालूम होगी!

कमलिनी - जी हां, बल्कि (लाडिली की तरफ इशारा करके) यह भी जानती है, क्योंकि बाग के तीसरे दर्जे में जाने के लिए यह भी एक रास्ता है जिसे हम तीनों बहिनें जानती हैं, मगर उस हाथी वाले दरवाजे का हाल, जिसे आपने खोला था, सिवाय मेरे और कोई भी नहीं जानता।

आनन्दसिंह - यह जगह बड़ी भयानक मालूम पड़ती है!

कमलिनी - जी हां, यह पुराना मसान है और गंगाजी भी यहां से थोड़ी ही दूर पर हैं। किसी जमाने में जब का यह मसान है, गंगाजी इसी जगह पास ही में बहती थीं मगर अब कुछ दूर हट गईं और इस जगह बालू पड़ गया है।

आनन्दसिंह - खैर, अब क्या करना और कहां चलना चाहिए?

कमलिनी - अब हमको गंगा पार होकर जमानिया में पहुंचना चाहिए। वहां मैंने एक मकान किराये पर ले रखा है जो बहुत ही गुप्त स्थान में है, उसी में दो-तीन दिन रहकर कार्रवाई करूंगी।

इन्द्रजीतसिंह - गंगा के पार किस तरह जाना होगा?

कमलिनी - थोड़ी ही दूर पर गंगा के किनारे एक किश्ती बंधी हुई है जिस पर मैं आई थी, मैं समझती हूं वह किश्ती अभी तक वहां ही होगी।

सबेरा होने में कुछ विलम्ब न था। मन्द-मन्द दक्षिणी हवा चल रही थी और आसमान पर केवल दस-पांच तारे दिखाई पड़ रहे थे जिनके चेहरे की चमक-दमक चला-चली की उदासी के कारण मन्द पड़ती जा रही थी, जबकि कमलिनी और कुमार इत्यादि सब कोई वहां से रवाना हुए और उसी किश्ती पर सवार होकर जिसका जिक्र कमलिनी ने किया था, गंगापार हो गये। 

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रचनाएँ
सम्पूर्ण चंद्रकांता संतति
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इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नवगढ और विजयगढ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ की राजकुमारी चंद्रकांता और नवगढ के राजकुमार वीरेन्द्र विक्रम को आपस में प्रेम है। लेकिन राज परिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नवगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का जिम्मेदार मानते है।
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चंद्रकांता संतति भाग -1

11 जून 2022
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नौगढ़ के राजा सुरेंद्रसिंह के लड़के वीरेंद्रसिंह की शादी विजयगढ़ के महाराज जयसिंह की लड़की चंद्रकांता के साथ हो गई। बारात वाले दिन तेजसिंह की आखिरी दिल्लगी के सबब चुनार के महाराज शिवदत्त को मशालची बनन

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भाग 2

11 जून 2022
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इस जगह पर थोड़ा-सा हाल महाराज शिवदत्त का भी बयान करना मुनासिब मालूम होता है। महाराज शिवदत्त को हर तरह से कुंअर वीरेंद्रसिंह के मुकाबिले में हार माननी पड़ी। लाचार उसने शहर छोड़ दिया और अपने कई पुराने ख

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भाग 3

11 जून 2022
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चुनारगढ़ किले के अंदर एक कमरे में महाराज सुरेंद्रसिंह, वीरेंद्रसिंह, जीतसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह बैठे हुए कुछ बातें कर रहे हैं। जीत - भैरो ने बड़ी होशियारी का काम किया कि अपन

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भाग 4

11 जून 2022
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खिदमतगार ने किले में पहुंचकर और यह सुनकर कि इस समय दोनों राजा एक ही जगह बैठे हैं कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब होने का हाल और सबब जो कुंअर आनंदसिंह की जुबानी सुना था महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

11 जून 2022
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पंडित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और जगन्नाथ ज्योतिषी भैरोसिंह ऐयार को छुड़ाने के लिए शिवदत्तगढ़ की तरफ गए। हुक्म के मुताबिक कंचनसिंह सेनापति ने शेर वाले बाबाजी के पीछे जासूस भेजकर पता लग

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भाग 6

11 जून 2022
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बहुत-सी तकलीफें उठाकर महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह तथा इन्हीं की बदौलत चंद्रकांता, चपला, चंपा, तेजसिंह और देवीसिंह वगैरह ने थोड़े दिन खूब सुख लूटा मगर अब वह जमाना न रहा। सच है, सुख और दुख का पह

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भाग 7

11 जून 2022
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अपने भाई इंद्रजीतसिंह की जुदाई से व्याकुल हो उसी समय आनंदसिंह उस जंगल के बाहर हुए और मैदान में खड़े हो इधर - उधर निगाह दौड़ाने लगे। पश्चिम की तरफ दो औरतें घोड़ों पर सवार धीरे-धीरे जाती हुई दिखाई पड़ीं

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भाग 8

11 जून 2022
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अब थोड़ा-सा हाल शिवदत्तगढ़ का भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है। यह हम पहले लिख चुके हैं कि महाराज शिवदत्त को एक लड़का और एक लड़की भी हुई थी। इस समय लड़के की उम्र जिसका नाम भीमसेन है अठारह वर्ष की हो

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भाग 9

11 जून 2022
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भीमसेन के साथियों ने बहुत खोजा मगर भीमसेन का पता न लगा, लाचार कुछ रात आते-आते लौट आये और उसी समय महाराज शिवदत्त के पास जाकर अर्ज किया कि आज शिकार खेलने के लिए कुमार जंगल में गये थे, एक बनैले सूअर के प

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भाग 10

11 जून 2022
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अब हम अपने पाठकों को फिर उसी खोह में ले चलते हैं जिसमें कुंअर आनंदसिंह को बेहोश छोड़ आये हैं अथवा जिस खोह में जान बचाने वाले सिपाही के साथ पहुंचकर उन्होंने एक औरत को छुरे से लाश काटते देखा था और योगिन

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भाग 11

11 जून 2022
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सूर्य भगवान अस्त होने के लिए जल्दी कर रहे हैं, शाम की ठंडी हवा अपनी चाल दिखा रही है। आसमान साफ है क्योंकि अभी-अभी पानी बरस चुका है और पछुआ हवा ने रुई के पहल की तरह जमे हुए बादलों को तूम-तूमकर उड़ा दिय

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भाग 12

11 जून 2022
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अब हम आपको एक दूसरी सरजमीन में ले चलकर एक दूसरे ही रमणीक स्थान की सैर करा तथा इसके साथ-ही-साथ बड़े-बड़े ताज्जुब के खेल और अद्भुत बातों को दिखाकर अपने किस्से का सिलसिला दुरुस्त किया चाहते हैं। मगर यहां

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भाग 13

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दूसरे दिन खा-पीकर निश्चिंत होने के बाद दोपहर को जब दोनों एकांत में बैठे तो इंद्रजीतसिंह ने माधवी से कहा - ''अब मुझसे सब्र नहीं हो सकता, आज तुम्हारा ठीक-ठीक हाल सुने बिना कभी न मानूंगा और इससे बढ़कर न

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भाग 14

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इंद्रजीतसिंह ने दूसरे दिन पुनः नियत समय पर माधवी को जाने न दिया, आधी रात तक हंसी-दिल्लगी ही में काटी, इसके बाद दोनों अपने-अपने पलंग पर सो रहे। कुमार को तो खुटका लगा ही हुआ था कि आज वह काली औरत आवेगी इ

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भाग 15

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अब इस जगह थोड़ा-सा हाल इस राज्य का और साथ ही इस माधवी का भी लिख देना जरूरी है। किशोरी की मां अर्थात शिवदत्त की रानी दो बहिनें थीं। एक जिसका नाम कलावती था शिवदत्त के साथ ब्याही थी और दूसरी मायावती गया

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चंद्रकांता संतति दूसरा भाग -1

11 जून 2022
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घंटा भर दिन बाकी है। किशोरी अपने उसी बाग में जिसका कुछ हाल पीछे लिख चुके हैं कमरे की छत पर सात-आठ सखियों के बीच में उदास तकिए के सहारे बैठी आसमान की तरफ देख रही है। सुगंधित हवा के झोंके उसे खुश किया च

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भाग 2

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किशोरी खुशी-खुशी रथ पर सवार हुई और रथ तेजी से जाने लगा। वह कमला भी उसके साथ थी, इंद्रजीतसिंह के विषय में तरह-तरह की बातें कहकर उसका दिल बहलाती जाती थी। किशोरी भी बड़े प्रेम से उन बातों को सुनने में ली

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भाग 3

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सुबह का सुहावना समय भी बड़ा ही मजेदार होता है। जबर्दस्त भी परले सिरे का है। क्या मजाल कि इसकी अमलदारी में कोई धूम तो मचावे, इसके आने की खबर दो घंटे पहले ही से हो जाती है। वह देखिए आसमान के जगमगाते हुए

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि माधवी के यहां तीन आदमी अर्थात दीवान अग्निदत्त, कुबेरसिंह सेनापति और धर्मसिंह कोतवाल मुखिया थे और तीनों मिलकर माधवी के राज्य का आनंद लेते थे। इन तीनों में अग्निदत्त का दिन बहुत म

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भाग 5

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कमला को विश्वास हो गया कि किशोरी को कोई धोखा देकर ले भागा। वह उस बाग में बहुत देर तक न ठहरी, ऐयारी के सामान से दुरुस्त थी ही, एक लालटेन हाथ में लेकर वहां से चल पड़ी और बाग से बाहर हो चारों तरफ घूम-घूम

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भाग 6

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अभी तक उस रमणीक स्थान में विराज रहे हैं। जी कितना ही बेचैन क्यों न हो मगर उन्हें लाचार माधवी के साथ दिन काटना ही पड़ता है। खैर जो होगा देखा जायगा मगर इस समय दो पहर दिन बाकी रहने पर

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भाग 7

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आपस में लड़ने वाले दोनों भाइयों के साथ जाकर सुबह की सफेदी निकलने के साथ ही कोतवाल ने माधवी की सूरत देखी और यह समझकर कि दीवान साहब को छोड़ महारानी अब मुझसे प्रेम रखा चाहती है बहुत खुश हुआ। कोतवाल साहब

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भाग 8

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इस जगह उस तालाब का हाल लिखते हैं, जिसका जिक्र कई दफे ऊपर-पीछे आ चुका है, जिसमें एक औरत को गिरफ्तार करने के लिए योगिनी और वनचरी कूदी थीं, या जिसके किनारे बैठ हमारे ऐयारों ने माधवी के दीवान, कोतवाल और स

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भाग 9

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अब जबर्दस्ती करने पर उतारू हुए और इस ताक में लगे कि माधवी सुरंग का ताला खोले और दीवान से मिलने के लिए महल में जाय तो मैं अपना रंग दिखाऊं। तिलोत्तमा के होशियार कर देने से माधवी भी चे

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भाग 10

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जख्मी इंद्रजीतसिंह को लिए हुए उनके ऐयार लोग वहां से दूर निकल गये और बेचारी किशोरी को दुष्ट अग्निदत्त उठाकर अपने घर ले गया। यह सब हाल देख तिलोत्तमा वहां से चलती बनी और बाग के अंदर कमरे में पहुंची। देखा

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भाग 11

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हम ऊपर के बयान में सुबह का दृश्य लिखकर कह आये हैं कि राजा वीरेंद्रसिंह, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह सेना सहित किसी तरफ को जा रहे हैं। पाठक तो समझ ही गये होंगे कि इन्होंने जरूर किसी तरफ चढ़ाई की है और बे

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भाग 12

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आज पांच दिन के बाद देवीसिंह लौटकर आये हैं। जिस कमरे का हाल हम ऊपर लिख आए हैं उसी में राजा वीरेंद्रसिंह, उनके दोनों लड़के, भैरोसिंह, तारासिंह और कई सरदार लोग बैठे हैं। इंद्रजीतसिंह की तबीयत अब बहुत अच्

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भाग 13

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तो किशोरी पर जी-जान से आशिक हो चुके थे। इस बीमारी की हालत में भी उसकी याद इन्हें सता रह थी और यह जानने के लिए बेचैन हो रहे थे कि उस पर क्या बीती, वह किस अवस्था में कहां है और अब उसक

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भाग 14

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है। गयाजी में हर मुहल्ले के चौकीदार ‘जागते रहियो, होशियार रहियो’ कह-कहकर इधर से उधर घूम रहे हैं। रात अंधेरी है, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ है। यहां का मुख्य स्थान विष्णु-पादु

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भाग 15

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राजा वीरेंद्रसिंह के चुनार चले जाने के बाद दोनों भाइयों को अपनी-अपनी फिक्र पैदा हुई। क्रुंअर आनंदसिंह किन्नरी की फिक्र में पड़े और कुंअर इंद्रजीतसिंह को राजगृही की फिक्र पैदा हुई। राजगृही को फतह कर ले

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भाग 16

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भैरोसिंह को राजगृही गये आज तीसरा दिन है। यहां का हाल-चाल अभी तक कुछ मालूम नहीं हुआ, इसी सोच में आधी रात के समय अपने कमरे में पलंग पर लेटे हुए कुंअर इंद्रजीतसिंह को नींद नहीं आ रही है। किशोरी की खयाली

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भाग 17

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मकान के अंदर कमला, इंद्रजीतसिंह और तारासिंह के पहुंचने के पहले ही हम अपने पाठकों को इस मकान में ले चलकर यहां की कैफियत दिखाते हैं। इस मकान के अंदर छोटी-छोटी न मालूम कितनी कोठरियां हैं पर हमें उनसे को

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चंद्रकांता संतति तीसरा भाग - 1

11 जून 2022
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पाठक समझ ही गये होंगे कि रामशिला के सामने फलगू नदी के बीच में भयानक टीले के ऊपर रहने वाले बाबाजी के सामने जो दो औरतें गई थीं वे माधवी और उसकी सखी तिलोत्तमा थीं। बाबाजी ने उन दोनों से वादा किया था कि त

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भाग 2

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शिवदत्तगढ़ में महाराज शिवदत्त बैठा हुआ बेफिक्री का हलुआ नहीं उड़ाता। सच पूछिये तो तमाम जमाने की फिक्र ने उसको आ घेरा है। वह दिन-रात सोचा ही करता है और उसके ऐयारों और जासूसों का दिन दौड़ते ही बीतता है।

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भाग 3

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ऐयारों और थोड़े से लड़कों के सिवाय नाहरसिंह को साथ लिए हुए भीमसेन राजगृही की तरफ रवाना हुआ। उसका साथी नाहरसिंह बेशक लड़ाई के फन में बहुत ही जबर्दस्त था। उसे विश्वास था कि कोई अकेला आदमी लड़कर कभी मुझस

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भाग 4

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आधी रात का समय है और सन्नाटे की हवा चल रही है। बिल्लौर की तरह खूबी पैदा करने वाली चांदनी आशिकमिजाजों को सदा ही भली मालूम होती है लेकिन आज सर्दी ने उन्हें भी पस्त कर दिया, यह हिम्मत नहीं पड़ती कि जरा म

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भाग 5

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कुंअर इंद्रजीतसिंह नाहरसिंह और तारासिंह को साथ लिए घर आये और अपने छोटे भाई से सब हाल कहा। वे भी सुनकर बहुत उदास हुए और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। दोनों कुमार बड़े ही तरद्दुद में पड़े। अगर तारासि

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भाग 6

11 जून 2022
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इश्क भी क्या बुरी बला है! हाय, इस दुष्ट ने जिसका पीछा किया उसे खराब करके छोड़ दिया और उसके लिए दुनिया भर के अच्छे पदार्थ बेकाम और बुरे बना दिये। छिटकी हुई चांदनी उसके बदन में चिनगारियां पैदा करती है,

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भाग 7

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है, किशोरी अपने कमरे में मसहरी पर लेटी हुई न मालूम क्या-क्या सोच रही है, हां उसकी डबडबाई हुई आंखें जरूर इस बात की खबर देती हैं कि उसके दिल में किसी तरह का द्वंद्व मचा हुआ है।

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भाग 8

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रोहतासगढ़ किले के सामने पहाड़ी से कुछ दूर हटकर वीरेंद्रसिंह का लश्कर पड़ा हुआ है। चारों तरफ फौजी आदमी अपने-अपने काम में लगे हुए दिखाई देते हैं। कुछ फौज आ चुकी और बराबर चली ही आती है। बीच में राजा वीरे

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भाग 9

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आधी रात का समय है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, राजा वीरेंद्रसिंह के लश्कर में पहरा देने वालों के सिवाय सभी आराम की नींद सोये हुए हें, हां थोड़े से फौजी आदमियों का सोना कुछ विचित्र ढंग का है जिन्हें

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भाग 10

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कुछ रात जा चुकी है। रोहतासगढ़ किले के अंदर अपने मकान में बैसठी हुई बेचारी किशोरी न मालूम किस ध्यान में डूबी हुई है और क्या सोच रही है। कोई दूसरी औरत उसके पास नहीं है। आखिर किसी के पैर की आहट पा अपने ख

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भाग 11

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इसके बाद लाली ने दबी जुबान से किशोरी को कुछ समझाया और दो घंटे में फिर मिलने का वादा करके वहां से चली गयी। हम ऊपर कई दफे लिख आये हैं कि उस बाग में जिसमें किशोरी रहती थी एक तरफ ऐसी इमारत है जिसके दरवाज

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भाग 12

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तालाब के किनारे खड़े उस विचित्र इमारत और हसीन औरत की तरफ देख रहे हैं। उनका इरादा हुआ कि तैरकर उस मकान में चले जायं जो इस तालाब के बीचोंबीच में बना हुआ है, मगर उस नौजवान औरत ने इन्हे

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भाग 13

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आधी रात के समय सुनसान मैदान में दो कमसिन औरतें आपस में कुछ बातें करती चली जा रही हैं। राह में छोटे-छोटे टीले पड़ते हैं जिन्हें तकलीफ के साथ लांघने और दम फूलने पर कभी ठहरकर फिर चलने से मालूम होता है कि

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भाग 14

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रोहतासगढ़ किले के चारों तरफ घना जंगल है जिसमें साखू, शीशम, तेंदू, आसन और सलई इत्यादि के बड़े-बड़े पेड़ों की घनी छाया से एक तरह को अंधकार-सा हो रहा है। रात की तो बात ही दूसरी है वहां दिन को भी रास्ते य

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चंद्रकांता संतति चौथा भाग -1

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अब हम अपने किस्से को फिर उसी जगह से शुरू करते हैं जब रोहतासगढ़ किले के अंदर लाली को साथ लेकर किशोरी सेंध की राह उस अजायबघर में घुसी जिसका ताला हमेशा बंद रहता था और दरवाजे पर बराबर पहरा पड़ा रहता था। ह

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भाग 2

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कंचनसिंह के मारे जाने और कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब हो जाने से लश्कर में बड़ी हलचल मच गई। पता लगाने के लिए चारों तरफ जासूस भेजे गये। ऐयार लोग भी इधर-उधर फैल गये और फसाद मिटाने के लिए दिलोजान से कोशिश

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भाग 3

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तेजसिंह के लौट आने से राजा वीरेंद्रसिंह बहुत खुश हुए और उस समय तो उनकी खुशी और भी ज्यादे हो गई जब तेजसिंह ने रोहतासगढ़ आकर अपनी कार्रवाई करने का खुलासा हाल कहा। रामानंद की गिरफ्तारी का हाल सुनकर हंसते

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भाग 4

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अपनी कार्रवाई पूरी करने के बाद तेजसिंह ने सोचा कि अब असली रामानंद को तहखाने से ऐसी खूबसूरती के साथ निकाल लेना चाहिए जिससे महाराज को किसी तरह का शक न हो और यह गुमान भी न हो कि तहखाने में वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन दारोगा साहब अपनी गद्दी पर बैठे रोजनामचा देख रहे थे और उस तहखाने की पुरानी बातें पढ़-पढ़कर ताज्जुब कर रहे थे कि यकायक पीछे की कोठरी में खटके की आवाज आई। घबड़ाकर उठ खड़े हुए

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भाग 6

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अब हम अपने किस्से के सिलसिले को मोड़कर दूसरी तरफ झुकते हैं और पाठकों को पुण्यधाम काशी में ले चलकर संध्या के साथ गंगा के किनारे बैठी हुई एक नौजवान औरत की अवस्था पर ध्यान दिलाते हैं। सूर्य भगवान अस्त ह

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भाग 7

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लाल पोशाक वाली औरत की अद्भुत बातों ने नानक को हैरान कर दिया। वह घबड़ाकर चारों तरफ देखने लगा और डर के मारे उसकी अजब हालत हो गई। वह उस कुएं पर भी ठहर न सका और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता हुआ इस उम्मीद में गं

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भाग 8

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अब हम फिर उस महारानी के दरबार का हाल लिखते हैं जहां से नानक निकाला जाकर गंगा के किनारे पहुंचाया गया था। नानक को कोठरी में ढकेलकर बाबाजी लौटे तो महारानी के पास न जाकर दूसरी ही तरफ रवाना हुए और एक बारह

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भाग 9

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अब हम रोहतासगढ़ की तरफ चलते हैं और तहखाने में बेबस पड़ी हुई बेचारी किशोरी और कुंअर आनंदसिंह इत्यादि की सुध लेते हैं। जिस समय कुंअर आनंदसिंह, भैरोसिंह और तारासिंह तहखाने के अंदर गिरफ्तार हो गए और राजा

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भाग 10

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दूसरे दिन संध्या के समय राजा वीरेंद्रसिंह अपने खेमे में बैठे रोहतासगढ़ के बारे में बातचीत करने लगे। पंडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह, तारासिंह, ज्योतिषीजी, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह उनके पास बैठे हुए थे। अपने

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भाग 11

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अब तो कुंदन का हाल जरूर ही लिखना पड़ा, पाठक महाशय उसका हाल जानने के लिए उत्कंठित हो रहे होंगे। हमने कुंदन को रोहतासगढ़ महल के उसी बाग में छोड़ा है जिसमें किशोरी रहती थी। कुंदन इस फिक्र में लगी रहती थी

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भाग 12

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दूसरे दिन दो पहर दिन चढ़े बाद किशोरी की बेहोशी दूर हुई। उसने अपने को एक गहन वन के पेड़ों की झुरमुट में जमीन पर पड़े पाया और अपने पास कुंदन और कई आदमियों को देखा। बेचारी किशोरी इन थोड़े ही दिनों में तर

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चंद्रकांता संतति- पाँचवाँ भाग 1

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बेचारी किशोरी को चिता पर बैठाकर जिस समय दुष्टा धनपत ने आग लगाई, उसी समय बहुत-से आदमी, जो उसी जंगल में किसी जगह छिपे हुए थे, हाथों में नंगी तलवारें लिये 'मारो! मारो!' कहते हुए उन लोगों पर आ टूटे। उन लो

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भाग 2

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पाठक अभी भूले न होंगे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह कहां हैं। हम ऊपर लिख आए हैं कि उस मकान में जो तालाब के अन्दर बना हुआ था, कुंअर इन्द्रजीतसिंह दो औरतों को देखकर ताज्जुब में आ गए। कुमार उन औरतों का नाम नहीं

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भाग 3

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कुमार कई दिनों तक कमलिनी के यहां मेहमान रहे। उसने बड़ी खातिरदारी और नेकनीयती के साथ इन्हें रखा। इस मकान में कई लौंडियां भी थीं जो दिलोजान से कुमार की खिदमत किया करती थीं, मगर कभी-कभी वे सब दो-दो पहर क

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि देवीसिंह को साथ लेकर शेरसिह कुंअर इन्द्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए रोहतासगढ़ से रवाना हुए। शेरसिंह इस बात को तो जानते थे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह फलां जगह हैं परन्तु उन्हें तालाब के

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भाग 5

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अब हम फिर रोहतासगढ़ की तरफ मुड़ते हैं और वहां राजा वीरेन्द्रसिंह के ऊपर जो-जो आफतें आईं, उन्हें लिखकर इस किस्से के बहुत से भेद, जो अभी तक छिपे पड़े हैं, खोलते हैं। हम ऊपर लिख आये हैं कि रोहतासगढ़ फतह

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भाग 6

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आज बहुत दिनों के बाद हम कमला को आधी रात के समय रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर पूरब तरफ वाले जंगल में घूमते देख रहे हैं। यहां से किले की दीवार बहुत दूर और ऊंचे पर है। कमला न मालूम किस फिक्र में है या क्या ढूं

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भाग 7

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रोहतासगढ़ फतह होने की खबर लेकर भैरोसिंह चुनार पहुंचे और उसके दो ही तीन दिन बाद राजा दिग्विजयसिंह की बेईमानी की खबर लेकर कई सवार भी जा पहुंचे। इस समाचार के पहुंचते ही चुनारगढ़ में खलबली पड़ गई। फौज के

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भाग 8

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बहुत दिनों से कामिनी का हाल कुछ भी मालूम न हुआ। आज उसकी सुध लेना भी मुनासिब है। आपको याद होगा कि जब कामिनी को साथ लेकर कमला अपने चाचा शेरसिंह से मिलने के लिए उजाड़ खंडहर और तहखाने में गई थी तो वहां से

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भाग 9

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गिल्लन को साथ लिये हुए बीबी गौहर रोहतासगढ़ किले के अन्दर जा पहुंची। किले के अन्दर जाने में किसी तरह का जाल न फैलाना पड़ा और न किसी तरह की कठिनाई हुई। वह बेधड़के किले के उस फाटक पर चली आई जो शिवालय के

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भाग 10

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वीरेन्द्रसिंह के तीनों ऐयारों ने रोहतासगढ़ के किले के अन्दर पहुंचकर अंधेर मचाना शुरू किया। उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि अगर दिग्विजयसिंह हमारे मालिकों को नहीं छोड़ेगा तो ऐयारी के कायदे के बाहर काम कर

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भाग 11

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इस जगह मुख्तसर ही में यह भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है कि रोहतासगढ़ तहखाने में से राजा वीरेन्द्रसिंह, कुंअर आनन्दसिंह और उनके ऐयार लोग क्योंकर छूटे और कहां गए। हम ऊपर लिख आए हैं कि जिस समय गौहर '

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भाग 12

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दो पहर दिन चढ़ने के पहले ही फौज लेकर नाहरसिंह रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर चढ़ गया। उस समय दुश्मनों ने लाचार होकर फाटक खोल दिया और लड़-भिड़कर जान देने पर तैयार हो गये। किले की कुल फौज फाटक पर उमड़ आई और फा

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भाग 13

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तहखाने में बैठी हुई कामिनी को जब किसी के आने की आहट मालूम हुई तब वह सीढ़ी की तरफ देखने लगी मगर जब उसे कई आदमियों के पैरों की धमधमाहट मालूम हुई तब वह घबड़ाई। उसका खयाल दुश्मनों की तरफ गया और वह अपने बच

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चंद्रकांता संतति छठवां भाग 1

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वे दोनों साधु, जो सन्दूक के अन्दर झांक न मालूम क्या देखकर बेहोश हो गए थे, थोड़ी देर बाद होश में आए और चीख-चीखकर रोने लगे। एक ने कहा, ''हाय-हाय इन्द्रजीतसिंह, तुम्हें क्या हो गया! तुमने तो किसी के साथ

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भाग 2

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इस समय शिवदत्त की खुशी का अन्दाज करना मुश्किल है और यह कोई ताज्जुब की बात भी नहीं है, क्योंकि लड़ाकों और दोस्त ऐयारों के सहित राजा वीरेन्द्रसिंह को उसने ऐसा बेबस कर दिया कि उन लोगों को जान बचाना कठिन

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भाग 3

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अब हम अपने पाठकों को फिर उस मैदान के बीच वाले अद्भुत मकान के पास ले चलते हैं जिसके अन्दर इन्द्रजीतसिंह, देवीसिंह, शेरसिंह और कमलिनी के सिपाही लोग जा फंसे थे अर्थात् कमन्द के सहारे दीवार पर चढ़कर अन्दर

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भाग 4

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अब तो मौसम में फर्क पड़ गया। ठंडी-ठंडी हवा जो कलेजे को दहला देती थी और बदन में कंपकंपी पैदा करती थी अब भली मालूम पड़ती है। वह धूप भी, जिसे देख चित्त प्रसन्न होता था और जो बदन में लगकर रग-रग से सर्दी न

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भाग 5

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रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज के सिवाय और किसी तरह की आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसे समय में काशी की तंग गलियों में दो आदमी, जिनमें एक औ

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भाग 6

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दूसरे दिन कुछ रात बीते कमलिनी फिर मनोरमा के मकान पर पहुंची। बाग के फाटक पर उसी दरबान को टहलते पाया जिससे कल बातचीत कर चुकी थी। इस समय बाग का फाटक खुला हुआ था और उस दरबान के अतिरिक्त और भी कई सिपाही वह

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आधी रात जा चुकी है। कमलिनी उस कमरे में, जो उसके सोने के लिए मुकर्रर किया गया था, चारपाई पर लेटी हुई करवटें बदल रही है क्योंकि उसकी आंखों में नींद का नामो-निशान नहीं है। उसके दिल में तरह-तरह की बातें प

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चंद्रकांता संतति सातवाँ भाग 1

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नागर थोड़ी दूर पश्चिम जाकर घूमी और फिर उस सड़क पर चलने लगी जो रोहतासगढ़ की तरफ गई थी। पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि नागर का दिल कितना मजबूत और कठोर था। उन दिनों जो रास्ता काशी से रोहतासगढ़ को जाता था, व

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भाग 2

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हम ऊपर लिख आए हैं कि राजा वीरेन्द्रसिंह तिलिस्मी खंडहर से (जिसमें दोनों कुमार और तारासिंह इत्यादि गिरफ्तार हो गए थे) निकलकर रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए तो तेजसिंह उनसे कुछ कह-सुनकर अलग हो गए और उनके सा

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भाग 3

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। तेजसिंह उसी दो नम्बर वाले कमरे के बाहर सहन में तकिया लगाये सो रहे हैं। चिराग बालने का कोई सामान यहां मौजूद नहीं जिससे रोशनी करते, पास में कोई आदमी नहीं जिससे दिल बहलात

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भाग 4

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शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ-कुछ लाली अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की हवा बदन में कंपकंपी

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पाठकों को याद होगा कि भूतनाथ को नागर ने एक पेड़ के साथ बांध रखा है। यद्यपि भूतनाथ ने अपनी चालाकी और तिलिस्मी खंजर की मदद से नागर को बेहोश कर दिया मगर देर तक उसके चिल्लाने पर भी वहां कोई उसका मददगार न

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मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग (तिलिस्मी बाग) में है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रखा है, मगर उस बाग में दो और

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चंद्रकांता संतति - आठवाँ भाग 1

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मायारानी की कमर में से ताली लेकर जब लाडिली चली गई तो उसके घंटे भर बाद मायारानी होश में आकर उठ बैठी। उसके बदन में कुछ-कुछ दर्द हो रहा था जिसका सबब वह समझ नहीं सकती थी। उसे फिर उन्हीं खयालों ने आकर घेर

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भाग 2

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कैदखाने का हाल हम ऊपर लिख चुके हैं, पुनः लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। उस कैदखाने में कई कोठरियां थीं जिनमें से आठ कोठरियों में तो हमारे बहादुर लोग कैद थे और बाकी कोठरियां खाली थीं। कोई आश्चर्य नहीं, यद

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भाग 3

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मायारानी उस बेचारे मुसीबत के मारे कैदी को रंज, डर और तरद्दुद की निगाहों से देख रही थी जबकि यह आवाज उसने सुनी, ''बेशक मायारानी की मौत आ गई!'' इस आवाज ने मायारानी को हद्द से ज्यादा बेचैन कर दिया। वह घबड

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भाग 4

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कमलिनी की आज्ञानुसार बेहोश नागर की गठरी पीठ पर लादे हुए भूतनाथ कमलिनी के उस तिलिस्मी मकान की तरफ रवाना हुआ जो एक तालाब के बीचोंबीच में था। इस समय उसकी चाल तेज थी और वह खुशी के मारे बहुत ही उमंग और लाप

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भाग 5

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दिन दो पहर से कुछ ज्यादा चढ़ चुका है मगर मायारानी को खाने-पीने की कुछ भी सुध नहीं है। पल-पल में उसकी परेशानी बढ़ती ही जाती है। यद्यपि बिहारीसिंह, हरनामसिंह और धनपत ये तीनों उसके पास मौजूद हैं परन्तु स

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भाग 6

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रात आधी जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, हवा भी एकदम बन्द है, यहां तक कि किसी पेड़ की एक पत्ती भी नहीं हिलती। आसमान में चांद तो नहीं दिखाई देता, मगर जंगल मैदान में चलने वाले मुसाफिरों को तार

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भाग 7

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राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ और भैरोसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ रवाना करके कमलिनी अपने साथियों को साथ लिए हुए मायारानी के तिलिस्मी बाग की तरफ रवाना हुई। इस समय रात नाममात्र को बाकी थी। प्राय

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भाग 8

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अपनी बहिन लाडिली, ऐयारों और दोनों कुमारों को साथ लेकर कमलिनी राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देवमन्दिर में कुछ दिन रहेगी। वहां रहकर ये लोग जो कुछ करेंगे, उ

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भाग 9

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। काशी में मनोरमा के मकान के अन्दर फर्श पर नागर बैठी हुई और उसके पास ही एक खूबसूरत नौजवान आदमी छोटे-छोटे तीन-चार तकियों का सहारा लगाये अधलेटा-सा पड़ा जमीन की तरफ देखता ह

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भाग 10

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दूसरे दिन आधी रात जाते-जाते भूतनाथ फिर उसी मकान में नागर के पास पहुंचा। इस समय नागर आराम से सोई न थी बल्कि न मालूम किस धुन और फिक्र में मकान की पिछली तरफ नजरबाग में टहल रही थी। भूतनाथ को देखते ही वह ह

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भाग 11

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ऊपर के बयान में जो कुछ लिख आये हैं उस बात को कई दिन बीत गये, आज भूतनाथ को हम फिर मायारानी के पास बैठे हुए देखते हैं। रंग-ढंग से जाना जाता है कि भूतनाथ की कार्रवाइयों से मायारानी बहुत ही प्रसन्न है और

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भाग 12

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आज से कुल आठ-दस दिन पहले मायारानी इतनी परेशान और घबड़ाई हुई थी कि जिसका कुछ हिसाब नहीं। वह जीते जी अपने को मुर्दा समझने लगी थी। राजा गोपालसिंह के छूट जाने के डर, चिन्ता, बेचैनी और घबड़ाहट ने चारों तरफ

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