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भाग 5

11 जून 2022

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कुंअर इंद्रजीतसिंह नाहरसिंह और तारासिंह को साथ लिए घर आये और अपने छोटे भाई से सब हाल कहा। वे भी सुनकर बहुत उदास हुए और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। दोनों कुमार बड़े ही तरद्दुद में पड़े। अगर तारासिंह को पता लगाने के लिए भेजें तो गया में कोई ऐयार न रह जायगा और यह बात अगर उनके पिता सुनें तो बहुत रंज हों, जिसका खयाल उन्हें सबसे ज्यादा था। दो पहर दिन चढ़े तक दोनों भाई बड़े ही तरद्दुद में पड़े रहे, दोपहर बाद उनका तरद्दुद कुछ कम हुआ जब पंडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह और जगन्नाथ ज्योतिषी वहां आ मौजूद हुए। तीनों के वहां पहुंचने से दोनों कुमार बहुत खुश हुए और समझा कि अब हमारा काम अटका न रहेगा।

कुंअर इंद्रजीतसिंह आनंदसिंह, तारासिंह, पंडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह और ज्योतिषीजी ये सब बाग की बारहदरी में एकांत समझकर चले गये और बातचीत करने लगे। 

आनंद - लीजिए साहब अब तो दुश्मन लोग यहां भी बहुत से हो गये।

ज्योतिषी - कोई हर्ज नहीं।

इंद्र - भैरोसिंह, पहले तुम अपना हाल कहो, यहां से जाने के बाद क्या हुआ

भैरो - मुझे तो रास्ते में ही मालूम हो गया था कि किशोरी वहां नहीं है।

इंद्र - यह सब हाल मुझे भी मालूम हुआ था।

भैरो - ठीक है, वह आदमी आपके पास भी आया होगा जिसने मुझे खबर दी थी।

इंद्र - खैर तब क्या हुआ

भैरो - फिर भी मैं वहां चला गया (बद्रीनाथ और ज्योतिषीजी की तरफ इशारा करके) और इन लोगों के साथ मिलकर काम करने लगा। ये लोग दो सौ बहादुरों के साथ वहां पहले से मौजूद थे। आखिर यह हुआ कि दीवान अग्निदत्त और दो-तीन उसके साथी गिरफ्तार करके चुनार भेज दिये गये। माधवी का पता नहीं कि वह कहां गई, वहां की रियाया सब अग्निदत्त से रंज थी इसलिए राजगृही अपने कब्जे में कर लेना हम लोगों को बहुत ही सहज हुआ। अब उन्हीं दो सौ आदमियों के साथ पन्नालाल को वहां छोड़ आया हूं।

बद्री - आप यहां का हाल भी कहिये। सुना है यहां बड़े-बड़े बेढब मामले हो गये हैं!

इंद्र - यहां का हाल भैरोसिंह की जबानी आपने सुना ही होगा, इसके बाद आज रात को एक अजीब बात हो गई है।

तारासिंह ने रात भर का कुल हाल उन लोगों से कहा जिसे सुन वे लोग बहुत ही तरद्दुद में पड़ गये।

इन लोगों की बातचीत हो रही थी कि एक चोबदार ने आकर अर्ज किया कि ''अखंडनाथ बाबाजी बाहर खड़े हैं और यहां आना चाहते हैं।'' अखंडनाथ नाम सुन ये लोग सोचने लगे कि कौन हैं और कहां से आये हैं। आखिर इंद्रजीतसिंह ने उन्हें अपने पास बुलाया और सूरत देखते ही पहचान लिया।

पाठक, ये अखंडनाथ बाबाजी वही हैं जो रामशिला के सामने फलगू के बीच भयानक टीले पर रहते थे, जिनके पास माधवी जाती थी, तथा जिन्होंने उस समय किशोरी की जान बचाई थी जब खंडहर में उसकी छाती पर सवार हो भीमसेन खंजर उसके कलेजे में भोंका ही चाहता था और जिसका कुल हाल इसी भाग के तीसरे बयान में हम लिख आये हैं। इन बाबाजी को तारासिंह भी पहचानते थे क्योंकि कल रात यह भी इंद्रजीतसिंह के साथ ही थे।

इंद्रजीतसिंह ने उठकर बाबाजी को प्रणाम किया। इनको उठते देख और सब लोग भी उठ खड़े हुए। कुमार ने अपने पास बाबाजी को बैठाया और ऐयारों की तरफ देख के कहा, ''इन्हीं का हाल मैं कह चुका हूं, इन्होंने ही उस खंडहर में किशोरी की जान बचाई थी।''

बाबा - जान बचाने वाला तो ईश्वर है मैं क्या कर सकता हूं। खैर, यह तो कहिये उस मामले के बाद की भी आपको खबर है कि क्या हुआ!

इंद्रजीत - कुछ भी नहीं, हम लोग इस समय इसी सोच-विचार में पड़े हैं।

बाबा - अच्छा तो फिर मुझसे सुनिये। दो औरतें और जो उस मकान में थीं उनका हाल तो मुझे मालूम नहीं कि किशोरी की खोज में कहां गईं, मगर किशोरी का हाल मैं खूब जानता हूं।

बाबाजी की बातों ने सभों का दिल अपनी तरफ खींच लिया और सब लोग एकाग्र होकर उनकी बातें सुनने लगे। बाबाजी ने यों कहना शुरू किया -

''नाहरसिंह से जब कुमार लड़ रहे थे उस समय भीमसेन के साथियों को जो उसी जगह छिपे हुए थे मौका मिला और वे लोग किशोरी को लेकर शिवदत्तगढ़ की तरफ भागे, मगर ले न जा सके क्योंकि रास्ते ही में रोहतासगढ़1 के राजा के ऐयार लोग छिपे हुए थे जिन लोगों ने लड़कर किशोरी को छीन लिया और रोहतासगढ़ ले गये। किशोरी की खूबसूरती का हाल सुनकर रोहतासगढ़ के राजा ने इरादा कर लिया कि अपने लड़के के साथ उसे ब्याहेगा और बहुत दिन से उसके ऐयार लोग किशोरी की धुन में लगे हुए भी थे। अब मौका पाकर वे लोग अपना काम कर गये। अगर आप लोग जल्द उसके छुड़ाने की फिक्र न करेंगे तो बेचारी के बचने की उम्मीद जाती रहेगी। लड़-भिड़कर रोहतासगढ़ के किले को फतह करना बहुत मुश्किल है, चाहे फौज और दौलत में आप लोग बढ़ के क्यों न हों मगर पहाड़ के ऊपर के उस आलीशान किले के अंदर घुसना बड़ा ही कठिन है मगर फिर भी चाहे जो हो आप लोग हिम्मत न हारें। किशोरी का खयाल चाहे न भी हो मगर यह सोचकर कि आपके समीप का यह मजबूत किला आप ही के

1.रोहतासगढ़ बिहार के इलाके में मशहूर है। यह किला पहाड़ के ऊपर है। उस जमाने में इस किले की लंबाई-चौड़ाई लगभग दस कोस की होगी। बड़े-बड़े राजा लोग भी इसको फतह करने का हौसला नहीं कर सकते थे। आजकल यह इमारत बिल्कुल टूट-फूट गई है तो भी देखने योग्य है।

योग्य है, जरूर मेहनत करनी चाहिए। ईश्वर आपको विजय देगा और जहां तक हो सकेगा मैं आपकी मदद करूंगा।''

बाबाजी की जुबानी सब हाल सुनकर कुंअर इंद्रजीतसिंह बहुत प्रसन्न हुए। एक तो किशोरी का पता लगने की खुशी दूसरे रोहतासगढ़ के राजा से बड़ी भारी लड़ाई लड़कर जवानी का हौसला निकालने और मशहूर किले पर अपना दखल जमाने की खुशी से गद्गद हो गये और जोश भरी आवाज में बाबाजी से बोले -

इंद्रजीतसिंह - बड़े-बड़े वीरों की आत्माएं स्वर्ग से झांककर देखेंगी कि रोहतासगढ़ की लड़ाई कैसी होती है और किस तरह हम लोग उस किले को फतह करते हैं। रोहतासगढ़ का हाल हम बखूबी जानते हैं, मगर बिना कोई सबब हाथ लगे ऐसा इरादा नहीं कर सकते थे।

बाबा - अच्छा एक लोटा जल मंगाइये।

तुरंत जल आया। बाबाजी ने अपनी दाढ़ी नोचकर फेंक दी और मुंह धो डाला। अब तो सभों ने पहचान लिया कि ये देवीसिंह हैं।

पाठक, रामशिला पहाड़ी के सामने भयानक टीले पर रहने वाले बाबाजी से देवीसिंह का मिलना आप भूले न होंगे और आपको यह भी याद होगा कि देवीसिंह से बाबाजी ने कहा था कि 'कल इस स्थान को हम छोड़ देंगे।' बस बाबाजी के जाने के बाद देवीसिंह ही उनकी सूरत में उस गद्दी पर जा विराजे और जो कुछ काम किया आप जानते ही हैं। उस दिन बाबाजी की सूरत में देवीसिंह ही थे जिस दिन माधवी ने मिलकर कहा था कि 'हमारी मदद के लिए भीमसेन आ गया है।' असली बाबाजी भी उस पहाड़ी पर देवीसिंह से मिल चुके हैं जहां हमने लिखा है कि एक ही सूरत के दो बाबाजी इकट्ठे हुए हैं और उन्हीं बाबाजी की जुबानी रोहतासगढ़ का मामला देवीसिंह ने सुना था।

देवीसिंह ने अपना बिल्कुल हाल दोनों कुमारों से कहा और आखिर में बोले, ''अब रोहतासगढ़ पर हम जरूर चढ़ाई करेंगे।''

इंद्र - बहुत अच्छी बात है, हम लोगों का हौसला भी तभी दिखाई देगा! हां यह तो कहिए नाहरसिंह से कैसा बर्ताव किया जाय

देवी - कौन नाहरसिंह

इंद्र - उस खंडहर में जो मुझसे लड़ा था बड़ा ही बहादुर है। उसने प्रण कर रखा था कि जो मुझे जीतेगा उसी का मैं ताबेदार हो जाऊंगा। अब उसने भीमसेन का साथ छोड़ दिया और हम लोगों के साथ रहने को तैयार है।

देवी - ऐसे बहादुर पर जरूर मेहरबानी करनी चाहिए मगर आज हम उसे आजमावेंगे। आज से उसके लिए एक मकान दे दें और हर तरह के आराम का बंदोबस्त कर दें।

इंद्र - बहुत अच्छा।

कुंअर इंद्रजीतसिंह ने उसी समय नाहरसिंह को अपने पास बुलाया और बड़ी मेहरबानी के साथ पेश आये। एक मकान देकर अपने सेनापति की पदवी उसे दी और भीमसेन को कैद में रखने का हुक्म दिया।

अपने ऊपर कुमार की इतनी मेहरबानी देख नाहरसिंह बहुत प्रसन्न हुआ। कुछ देर तक बातें करता रहा, तब सलाम करके अपने ठिकाने चला गया और सेनापति के काम को ईमानदारी के साथ पूरा करने का उद्योग करने लगा।

आधी रात जा चुकी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। गलियों और सड़कों पर चौकीदारों के ''जागते रहियो, होशियार रहियो'' पुकारने की आवाज आ रही है। नाहरसिंह अपने मकान में पलंग पर लेटा हुआ कोई किताब देख रहा है और सिरहाने शमादान जल रहा है।

नाहरसिंह के हाथ में श्रुति स्मृति या पुराण की कोई पुस्तक नहीं है, उसके हाथ में तस्वीरों की एक किताब है जिसके पन्ने वह उलटता है और एक-एक तस्वीर को देर तक बड़े गौर से देखता है। इन तस्वीरों में बड़े-बड़े राजाओं और बहादुरों की मशहूर लड़ाइयों का नक्शा दिखाया गया है और पहलवानों की बहादुरी और दिलावरों की दिलावरी का खाका उतरा हुआ है जिसे देख-देखकर नाहरसिंह की रगें जोश मारती हैं और वह चाहता है कि ऐसी लड़ाइयों में हमें भी कभी हौसला निकालने का मौका मिले।

तस्वीरें देखते-देखते बहुत देर हो गई और नाहरसिंह की नींद भरी आंखें भी बंद होने लगीं। आखिर उसने किताब बंद करके एक तरफ रख दी और थोड़ी ही देर बाद गहरी नींद में सो गया।

इस मकान के किसी कोने में एक आदमी न मालूम कब का छिपा हुआ था जो नाहरसिंह को सोता जानकर उस कमरे में चला आया और पलंग के पास खड़ा हो उसे गौर से देखने लगा। इस आदमी को हम नहीं पहचानते क्योंकि यह मुंह पर नकाब डाले हुए है। थोड़ी देर बाद अपनी जेब से उसने एक पुड़िया निकाली और एक चुटकी बुकनी नाहरसिंह की नाक के पास ले गया। सांस के साथ धूरा दिमाग में पहुंचा और वह छींक मारकर बेहोश हो गया।

उस आदमी ने अपनी कमर से एक रस्सी खोली और नाहरसिंह के हाथ-पैर मजबूती से बांधकर उसे होशियार करने के बाद तलवार खेंच मुंह पर से नकाब हटा सामने खड़ा हो गया। होश में आते ही नाहरसिंह ने अपने को बेबस और हाथ में नंगी तलवार लिए महाराज शिवदत्त को सामने मौजूद पाया।

शिव - क्यों नाहरसिंह, एक नाजुक समय में हमारे लड़के का साथ छोड़ देना और उसे दुश्मनों के हाथ में फंसा देना क्या तुम्हें मुनासिब था

नाहर - जब तक बहादुर इंद्रजीतसिंह ने मुझ पर फतह नहीं पाई तब तक मैं बराबर तुम्हारे लड़के का साथ देता रहा, जब कुमार ने मुझे जीत लिया था तो अपने कौल के मुताबिक मैंने उनकी ताबेदारी कबूल कर ली। मेरे कौल को तुम भी जानते ही थे।

शिव - जो कुछ तुमने किया है उसकी सजा देने के लिए इस समय मैं मौजूद हूं।

नाहर - खैर ईश्वर की जो मर्जी।

शिव - अब भी अगर तुम हमारा साथ देना मंजूर करो तो छोड़ सकता हूं।

नाहर - यह नहीं हो सकता। ऐसे बहादुर का साथ छोड़ तुम्हारे ऐसे बेईमान का संग करना मुझे मंजूर नहीं।

शिव - (डपटकर और तलवार उठाकर) क्या तुम्हें अपनी जान देना मंजूर है?

नाहर - खुशी से मंजूर है मगर मालिक का संग छोड़ना कबूल नहीं है!

शिव - देखो फिर तुम्हें समझाता हूं, सोचो और मेरा साथ दो!

नाहर - बस, बहुत बकवाद करने की जरूरत नहीं, जो कुछ तुम कर सको कर लो। मैं ऐसी बातें नहीं सुनना चाहता।

शिवदत्त ने बहुत समझाया और डराया-धमकाया मगर बहादुर नाहरसिंह की नीयत न बदली। आखिर लाचार होकर शिवदत्त ने अपने हाथ से तलवार दूर फेंक दी और नाहरसिंह की पीठ ठोंककर बोला -

''शाबाश बहादुर! तुम्हारे ऐसे जवांमर्द का दिल अगर ऐसा न होगा तो किसका होगा मैं शिवदत्त नहीं हूं, कुमार का ऐयार देवीसिंह हूं, तुम्हें आजमाने के लिए आया था!''

इतना कहकर उन्होंने नाहरसिंह की मुश्कें खोल दीं और वहां से फौरन चले गये। देवीसिंह ने यह हाल दोनों कुमारों से कहकर नाहरसिंह की तारीफ की मगर बहादुर नाहरसिंह ने अपनी जिंदगी भर इस आजमाने का हाल किसी से न कहा।

दूसरे दिन देवीसिंह चुनार चले गये और कह गए कि रोहतासगढ़ की चढ़ाई का बंदोबस्त करके मैं बहुत जल्द आऊंगा।

यह जानकर कि किशोरी को रोहतासगढ़ वाले ले गये हैं कुंअर इंद्रजीतसिंह की बेचैनी हद से ज्यादे बढ़ गई। दम भर के लिए भी आराम करना मुश्किल हो गया, दो ही पहर में सूरत बदल गई। किसी का बुलाना या कुछ पूछना उन्हें जहर-सा मालूम पड़ने लगा। इनकी ऐसी हालत देख भैरोसिंह से न रहा गया, निराले में बैठे उन्हें समझाने लगा।

इंद्र - तुम्हारे समझाने से मेरी हालत किसी तरह बदल नहीं सकती और किशोरी की जान का खतरा जो मुझे लगा हुआ है किसी तरह कम नहीं हो सकता।

भैरो - किशोरी को अगर शिवदत्तगढ़ वाले ले जाते तो बेशक उसकी जान का खतरा था, क्योंकि शिवदत्त रंज के मारे बिना उसकी जान लिये न रहता, मगर अब तो वह रोहतासगढ़ के राजा के कब्जे में है और वह अपने लड़के से उसकी शादी किया चाहता है, ऐसी हालत में किशोरी की जान का दुश्मन वह क्योंकर हो सकेगा

इंद्र - मगर जबर्दस्ती किशोरी की शादी कर दी गई तब क्या होगा

भैरो - हां, अगर ऐसा हो तो जरूर रंज होगा, खैर आप चिंता न करिये, ईश्वर चाहेगा तो पांच ही सात दिन में कुल बखेड़ा तय कर देता हूं।

इंद्र - क्या किशोरी को वहां से ले आओगे

भैरो - रोहतासगढ़ के किले में घुसकर किशोरी को निकाल लाना तो दो-तीन दिन का काम नहीं, इसके अतिरिक्त क्या रोहतासगढ़ का किला ऐयारों से खाली होगा

इंद्र - फिर तुम पांच-सात दिन में क्या करोगे

भैरो - कोई ऐसा काम जरूर करूंगा जिससे किशोरी की शादी रुक जाय।

इंद्र - वह क्या

भैरो - जिस तरह बनेगा वहां के राजकुमार कल्याणसिंह को पकड़ लाऊंगा, जब हम लोगों का फैसला हो जायेगा तब छोड़ दूंगा।

इंद्र - हां अगर ऐसा करो तो क्या बात है!

भैरो - आप चिंता न कीजिए। मैं अभी यहां से रवाना होता हूं, आप किसी से मेरे जाने का हाल न कहिएगा।

इंद्र - क्या अकेले जाओगे

भैरो - जी हां।

इंद्र - वाह! कहीं फंस जाओ तो मैं तुम्हारी राह ही देखता रह जाऊं, कोई खबर देने वाला भी नहीं।

भैरो - ऐसी उम्मीद न रखिए।

कुंअर इंद्रजीतसिंह से वादा करके भैरोसिंह रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए, मगर भैरोसिंह का अकेले रोहतासगढ़ जाना इंद्रजीतसिंह को न भाया। उस समय तो भैरोसिंह की जिद से चुप हो रहे मगर उसके बाद कुमार ने सब हाल पंडित बद्रीनाथ से कहकर दोस्त की मदद के लिए जाने का हुक्म दिया। हुक्म पाते ही पंडित बद्रीनाथ भी रोहतासगढ़ रवाना हुए और रास्ते में ही भैरोसिंह से जा मिले।

दो रोज चलकर ये दोनों आदमी रोहतासगढ़1 पहुंचे और पहाड़ के ऊपर चढ़ किले में दाखिल हुए। यह बहुत बड़ा किला पहाड़ पर निहायत खूबी का बना हुआ था और इसी के अंदर शहर भी बसा था जो बड़े-बड़े सौदागरों, महाजनों, व्यापारियों और जौहरियों के कारबार से अपनी चमक-दमक दिखा रहा था। इस शहर की खूबी और सजावट का हाल इस जगह लिखने की कोई जरूरत नहीं मालूम होती और इतना समय भी नहीं है, हां मौके पर दो-चार दफे पढ़कर इसकी खूबी का हाल पाठक मालूम कर लेंगे।

1. राजा शिवप्रसाद सितारेहिंद ने अपनी किताब जान-जहांनुमा में लिखा है - ''आरे से करीब पचहत्तर मील के दक्खिन-पश्चिम को झुकता हुआ हजार फीट ऊंचे पहाड़ के ऊपर का एक बड़ा ही मजबूत किला ''रोहतासगढ़'' जिसका असल नाम ''रोहताश्म'' है दस मील मुरब्बा की बसअत में सोन नदी के बाएं किनारे पर उजाड़ पड़ा हुआ है। उसमें जाने के वास्ते सिर्फ एक ही रास्ता दो कोस की चौड़ाई का तंग-सा बना है बाकी सब तरफ वह पहाड़, जंगल और नदियों से ऐसा घिरा हुआ है कि किसी तौर से वहां आदमी का गुजर नहीं हो सकता। उस किले के अंदर दो मंदिर अगले जमाने के अभी मौजूद हैं बाकी सब इमारतें महल, बाग, तालाब वगैरह जिनका अब सिर्फ निशान भर रह गया है मुसलमान बादशाहों के बनाये हुए हें।''

(ग्रंथकर्ता) - मगर अकबर के जमाने में जो ''बिहार'' का हाल लिखा गया है उससे मालूम होता है कि यह मुकाम मुसलमानों की अमलदारी के पहले से बना हुआ है।

इस किले के अंदर एक छोटा किला और भी था जिसमें महाराज और उनके आपस वाले रहा करते थे और लोगों में वह महल के नाम से मशहूर था।

इस पहाड़ पर छोटे झरने और तालाब बहुत हैं। ऊपर जाने के लिए केवल एक ही राह है और वह भी बहुत बारीक है। उसके चारों तरफ घना जंगल इस ढंग का है कि जरा भी आदमी कूदा और राह भूलकर कई दिन तक भटकने की नौबत आई। दुश्मनों का और किसी तरह से इस पहाड़ पर चढ़ना बहुत ही मुश्किल है और वह बारीक राह भी इस लायक नहीं कि पांच-सात आदमी से ज्यादा एक साथ चढ़ सकें। भेष बदले हुए हमारे दोनों ऐयार रोहतासगढ़ पहुंचे और वहां की रंगत देखकर समझ गये कि इस किले को फतह करने में बहुत मुश्किल पड़ेंगी।

भैरोसिंह और पंडित बद्रीनाथ मथुरिया चौबे बने हुए रोहतासगढ़ में घूमने और एक-एक चीज को अच्छी तरह देखने लगे। दोपहर के समय एक शिवालय पर पहुंचे जो बहुत ही खूबसूरत और बड़ा बना हुआ था, सभामंडल इतना बड़ा था कि सौ-डेढ़ सौ आदमी अच्छी तरह उसमें बैठ सकते थे। उसके चारों तरफ खुला-सा सहन था जिस पर कई ब्राह्मण और पुजारी बैठे धूप सेंक रहे थे। उन्हीं लोगों के पास जाकर हमारे दोनों ऐयार खड़े हो गये और गरजकर बोले - ''जै जमुना मैया की!''

पुजारियों ने हमारे दोनों चौबों को खातिदारी से बैठाया और बातचीत करने लगे।

एक पुजारी - कहिये चौबेजी, कब आना हुआ

बद्री - बस अभी चले ही तो आते हैं महाराज! पहाड़ पर चढ़ते-चढ़ते थक गये, गला सूख गया, कृपा करके सिल-लुढ़िया दो तो भंग छने और चित्त ठिकाने हो।

पुजारी - लीजिये, सिल-लुढ़िया लीजिये, मसाला लीजिये, चीनी लीजिये, खूब भंग छानिये।

भैरो - भंग मसाला तो हमारे साथ है, आप ब्राह्मणों का क्यों नुकसान करें।

पुजारी - नहीं, नहीं, हमारा कुछ नहीं है, यहां सब चीजें महाराज के हुक्म से मौजूद रहती हैं, ब्राह्मण परदेशी जो कोई आवे सभी को देने का हुक्म है।

बद्री - वाह-वाह, तब क्या बात है! लाइये फिर महाराज की जयजयकार मनावें!

पुजारी ने इन दोनों को सब सामान दिया और इन दोनों ने भंग बनाई, आप भी पी और पुजारियों को भी पिलाई। दोनों ऐयारों ने बातचीत और मसखरेपन से वहां के पुजारियों को अपने बस में कर लिया। बड़े पुजारी बहुत प्रसन्न हुए और बोले, ''चौबेजी महाराज, बड़े भाग्य से आप लोगों के दर्शन हुए हैं। आप लोग दो-चार रोज यहां जरूर रहिये! इसी जगह आपको महाराजकुमार से भी मिलावेंगे और आप लोगों को बहुत कुछ दिलावेंगे। महाराजकुमार बहुत ही हंसमुख, नेक और बुद्धिमान हैं। आप उन्हें देख बहुत प्रसन्न होंगे!''

बद्री - बहुत खूब महाराज, आप लोगों की इतनी कृपा है तो हम जरूर रहेंगे और आपके महाराजकुमार से भी मिलेंगे। वे यहां कब आते हैं

पुजारी - प्रातः और सायंकाल दोनों समय यहां आते हैं और इसी मंदिर में संध्या-पूजा करते हैं।

भैरो - तो आज भी उनके दर्शन होंगे

पुजारी - अवश्य।

यह मंदिर किले की दीवार के पास ही था। इसके पीछे की तरफ एक छोटी-सी लोहे की खिड़की थी जिसकी राह ये लोग किले के बाहर जंगल में जा सकते थे। पुजारी के हुक्म से भंग पीने के बाद दोनों ऐयार उसी राह से जंगल में गए और मैदान होकर लौट आये, पुजारी लोग भी उसी राह से जंगल मैदान गये।

संध्या समय महाराजकुमार भी वहां आये और मंदिर के अंदर दरवाजा बंद करके घंटे भर से ज्यादे देर तक संध्या-पूजा करते रहे। उस समय केवल एक बड़ा पुजारी उस मंदिर में तब तक मौजूद रहा जब तक महाराजकुमार नित्य नेम करते रहे। दोनों ऐयारों ने भी महाराजकुमार को अच्छी तरह देखा मगर पुजारी को कह दिया था कि आज महाराजकुमार को यह मत कहना कि यहां दो चौबे आये हैं, कल सायंकाल को हम लोगों का सामना कराना।

दोनों ऐयारों ने रात भर उसी मंदिर में गुजारा किया और अपने मसखरेपन से पुजारी महाशय को बहुत ही प्रसन्न किया, साथ ही इसके उन्हें इस बात का भी विश्वास दिलाया कि इस पहाड़ के नीचे एक बड़े भारी महात्मा आये हुए हैं, आपको उनसे जरूर मिलावेंगे, हम लोगों पर उनकी बड़ी कृपा रहती है।

सबेरे उठकर इन दोनों ने फिर भंग घोटकर पी और सभों को पिलाने के बाद उसी खिड़की की राह मैदान गये। दोनों ऐयार तो अपनी धुन में थे, महाराजकुमार को यहां से उड़ाने की फिक्र-सोच में रहे थे तथा उसी खिड़की की राह निकल जाने का उन्होंने मौका तजवीजा था, इसलिए मैदान जाते समय इस जंगल को दोनों आदमी अच्छी तरह देखने लगे कि इधर से सीधी सड़क पर निकल जाने का क्योंकर हम लोगों को मौका मिल सकता है। इस काम में उन्होंने दिन भर बिता दिया और रास्ता अच्छी तरह समझ-बूझकर शाम होते-होते मंदिर में लौट आये।

पुजारी - कहिये चौबेजी महाराज! आप लोग कहां चले गये थे

बद्री - अजी महाराज, कुछ न पूछो! जरा आगे क्या बढ़ गये बस जहन्नुम में मिल गये। ऐसा रास्ता भूले कि बस हमारा ही जी जानता है।

भैरो - ईश्वर की ही कृपा से इस समय लौट आये नहीं तो कोई उम्मीद यहां पहुंचने की न थी।

पुजारी - राम-राम, यह जंगल बड़ा ही भयानक है, कई दफे तो हम लोग इसमें भूल गये हैं और दो-दो दिन तक भटकते ही रह गये हैं, आप बेचारे तो नये ठहरे। आइये, बैठिये, कुछ जलपान कीजिये।

भैरो - अजी कहां का खाना कैसा पीना! होश तो ठिकाने ही नहीं हैं, बस भंग पीकर खूब सोवेंगे। घूमते-घूमते ऐसे थके कि तमाम बदन चूर-चूर हो गया। कृपानिधान, आज भी हम लोगों की इत्तिला कुमार से ना कीजिएगा, हम लोग मिलाने लायक नहीं हैं, इस समय तो खूब गहरी छनेगी!!

पुजारी - खैर ऐसा ही सही! (हंसकर) आइये, बैठिये तो।

दोनों ऐयारों ने भंग पी और बाकी लोगों को भी पिलाई। इसके बाद कुछ देर आराम करके बाजार में घूमने-फिरने के लिए गये और अच्छी तरह देख-भालकर लौट आये। सोते समय फिर उन्हीं महात्मा का जिक्र पुजारी से करने लगे जिनसे मिलाने का वादा कर चुके थे और यहां तक उनकी तारीफ की कि पुजारीजी उनसे मिलने के लिए जल्दी करने लगे और बोले, ''यह तो कहिये, कल आप उनके दर्शन करावेंगे या नहीं'

बद्री - जरूर, बस कुमार यहां से संध्या-पूजा करके लौट जायं तो चले चलिये, मगर अकेले आप ही चलिए, नहीं तो महात्मा बड़ा बिगड़ेंगे कि इतने आदमियों को क्यों ले आए। वह जल्दी किसी से मिलने वाले नहीं हैं।

पुजारी - हमें क्या गरज पड़ी है जो किसी को साथ ले जायें, अकेले आपके साथ चलेंगे।

भैरो - बस तभी तो ठीक होगा।

दूसरे दिन जब महाराजकुमार संध्या-पूजा करके लौट गए तो बद्रीनाथ और भैरोसिंह पुजारी को साथ ले वहां से रवाना हुए और पहाड़ के नीचे उतरने के बाद बोले, ''बस अब यहीं बूटी छान लें तब आगे चलें इसीलिए लुटिया लेता आया हूं।

पुजारी - क्या हर्ज है, बूटी छान लीजिए।

बद्री - आपके हिस्से की भी बनाऊं न

पुजारी - इस दोपहर के समय क्या बूटी पिलाइएगा! हमें तो इतनी आदत न थी, आप ही लोगों के सबब दो दिन से खूब पीने में आती है।

बद्री - क्या हर्ज है, थोड़ा-सा पी लीजिएगा।

पुजारी - जैसी आपकी मर्जी।

हमारे बहादुर ऐयारों ने एक पत्थर की चट्टान पर भंग घोंटकर पी और नजर बचा थोड़ी-सी बेहोशी की दवा मिला पुजारी को भी पिलाई। थोड़ी ही देर में पुजारीजी महाराज तो चीं बोल गए और गहरी बेहोशी में मस्त हो गए। दोनों ऐयार उन्हें उठाकर ले गए और एक झाड़ी में छिपा आए।

बद्री - अब क्या करना चाहिए

भैरो - आप यहां रहिए मैं उसी तरकीब से कुमार को उठा लाता हूं।

बद्री - अच्छी बात है, मैं अपने हाथ से इस पुजारी की सूरत तुम्हें बनाता हूं।

भैरो - बनाइए।

पुजारी की सूरत बना बद्रीनाथ को उसी जगह छोड़ भैरोसिंह लौटे। संध्या होने के पहले ही मंदिर में पहुंचे। लोगों ने पूछा, ''कहिये पुजारीजी महात्मा से मुलाकात हुई या नहीं और अकेले क्यों लौटे, चौबेजी कहां रह गए'

नकली पुजारी ने कहा - ''महात्मा से मुलाकात हुई। वाह क्या बात है, महात्मा क्या वह तो पूरे सिद्ध हैं। दोनों चौबों को बहुत मानते हैं। उन्हें तो आने न दिया मगर मैं चला आया। अब चौबेजी कल आवेंगे।''

समय पर महाराजकुमार भी आ पहुंचे और संध्या करने के लिए मंदिर के अंदर घुसे। मामूली तौर पर पुजारी के बदले में नकली पुजारी अर्थात भैरोसिंह मंदिर के अंदर रहे और कुमार के अंदर आने पर भीतर से किवाड़ बंद कर लिया। संध्या करने के समय महाराजकुमार के साथ मंदिर के अंदर घुसकर पुजारी क्या-क्या करते थे यह दोनों ऐयारों ने उनसे बातों-बातों में पहले ही दरियाफ्त कर लिया था। पुजारीजी मंदिर के अंदर बैठे कुछ विशेष काम नहीं करते थे, केवल पूजा का सामान कुमार के आगे जमा कर देते और एक किनारे बैठे रहते थे। चलती समय प्रसादी में माला कुमार को देते थे और वे उसे सूंघ आंखों से लगा उसी जगह रख चले जाते थे। आज इन सब कामों को हमारे ऐयार पुजारीजी ने ही पूरा किया।

इस मंदिर में चारों तरफ चार दरवाजे थे। आगे की तरफ तो कई आदमी और पहरे वाले बैठे रहते थे बाईं तरफ के दरवाजे पर होम करने का कुंड बना हुआ था, दाहिने दरवाजे पर फूलों के कई गमले रखे हुए थे, और पिछला दरवाजा बिल्कुल सन्नाटा पड़ता था।

मंदिर के अंदर दरवाजा बंद करके कुमार संध्या करने लगे। प्राणायाम के समय मौका जानकर नकली पुजारी ने आशीर्वाद में देने वाली फूलों की माला में बेहोशी का धूरा मिलाया। जब कुमार चलने लगे, पुजारी ने माला गले में डाली, कुमार ने उसे गले से निकाल सूंघा और माथे से लगाकर उसी जगह रख दिया।

माला सूंघने के साथ ही कुमार का सिर घूमा और वे बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े। भैरोसिंह ने झटपट उनकी गठरी बांधी और पिछले दरवाजे की राह बाहर निकल आये, इसके बाद उसी छोटी खिड़की की राह किले के बाहर हो जंगल का रास्ता लिया और दो ही घंटे में उस जगह जा पहुंचे जहां पंडित बद्रीनाथ को छोड़ गये थे। वे दोनों कुमार कल्याणसिंह को ले गयाजी की तरफ रवाना हुए। 

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रचनाएँ
सम्पूर्ण चंद्रकांता संतति
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इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नवगढ और विजयगढ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ की राजकुमारी चंद्रकांता और नवगढ के राजकुमार वीरेन्द्र विक्रम को आपस में प्रेम है। लेकिन राज परिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नवगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का जिम्मेदार मानते है।
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चंद्रकांता संतति भाग -1

11 जून 2022
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नौगढ़ के राजा सुरेंद्रसिंह के लड़के वीरेंद्रसिंह की शादी विजयगढ़ के महाराज जयसिंह की लड़की चंद्रकांता के साथ हो गई। बारात वाले दिन तेजसिंह की आखिरी दिल्लगी के सबब चुनार के महाराज शिवदत्त को मशालची बनन

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भाग 2

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इस जगह पर थोड़ा-सा हाल महाराज शिवदत्त का भी बयान करना मुनासिब मालूम होता है। महाराज शिवदत्त को हर तरह से कुंअर वीरेंद्रसिंह के मुकाबिले में हार माननी पड़ी। लाचार उसने शहर छोड़ दिया और अपने कई पुराने ख

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भाग 3

11 जून 2022
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चुनारगढ़ किले के अंदर एक कमरे में महाराज सुरेंद्रसिंह, वीरेंद्रसिंह, जीतसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह बैठे हुए कुछ बातें कर रहे हैं। जीत - भैरो ने बड़ी होशियारी का काम किया कि अपन

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भाग 4

11 जून 2022
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खिदमतगार ने किले में पहुंचकर और यह सुनकर कि इस समय दोनों राजा एक ही जगह बैठे हैं कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब होने का हाल और सबब जो कुंअर आनंदसिंह की जुबानी सुना था महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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पंडित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और जगन्नाथ ज्योतिषी भैरोसिंह ऐयार को छुड़ाने के लिए शिवदत्तगढ़ की तरफ गए। हुक्म के मुताबिक कंचनसिंह सेनापति ने शेर वाले बाबाजी के पीछे जासूस भेजकर पता लग

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भाग 6

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बहुत-सी तकलीफें उठाकर महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह तथा इन्हीं की बदौलत चंद्रकांता, चपला, चंपा, तेजसिंह और देवीसिंह वगैरह ने थोड़े दिन खूब सुख लूटा मगर अब वह जमाना न रहा। सच है, सुख और दुख का पह

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भाग 7

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अपने भाई इंद्रजीतसिंह की जुदाई से व्याकुल हो उसी समय आनंदसिंह उस जंगल के बाहर हुए और मैदान में खड़े हो इधर - उधर निगाह दौड़ाने लगे। पश्चिम की तरफ दो औरतें घोड़ों पर सवार धीरे-धीरे जाती हुई दिखाई पड़ीं

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भाग 8

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अब थोड़ा-सा हाल शिवदत्तगढ़ का भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है। यह हम पहले लिख चुके हैं कि महाराज शिवदत्त को एक लड़का और एक लड़की भी हुई थी। इस समय लड़के की उम्र जिसका नाम भीमसेन है अठारह वर्ष की हो

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भाग 9

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भीमसेन के साथियों ने बहुत खोजा मगर भीमसेन का पता न लगा, लाचार कुछ रात आते-आते लौट आये और उसी समय महाराज शिवदत्त के पास जाकर अर्ज किया कि आज शिकार खेलने के लिए कुमार जंगल में गये थे, एक बनैले सूअर के प

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भाग 10

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अब हम अपने पाठकों को फिर उसी खोह में ले चलते हैं जिसमें कुंअर आनंदसिंह को बेहोश छोड़ आये हैं अथवा जिस खोह में जान बचाने वाले सिपाही के साथ पहुंचकर उन्होंने एक औरत को छुरे से लाश काटते देखा था और योगिन

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भाग 11

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सूर्य भगवान अस्त होने के लिए जल्दी कर रहे हैं, शाम की ठंडी हवा अपनी चाल दिखा रही है। आसमान साफ है क्योंकि अभी-अभी पानी बरस चुका है और पछुआ हवा ने रुई के पहल की तरह जमे हुए बादलों को तूम-तूमकर उड़ा दिय

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भाग 12

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अब हम आपको एक दूसरी सरजमीन में ले चलकर एक दूसरे ही रमणीक स्थान की सैर करा तथा इसके साथ-ही-साथ बड़े-बड़े ताज्जुब के खेल और अद्भुत बातों को दिखाकर अपने किस्से का सिलसिला दुरुस्त किया चाहते हैं। मगर यहां

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भाग 13

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दूसरे दिन खा-पीकर निश्चिंत होने के बाद दोपहर को जब दोनों एकांत में बैठे तो इंद्रजीतसिंह ने माधवी से कहा - ''अब मुझसे सब्र नहीं हो सकता, आज तुम्हारा ठीक-ठीक हाल सुने बिना कभी न मानूंगा और इससे बढ़कर न

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भाग 14

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इंद्रजीतसिंह ने दूसरे दिन पुनः नियत समय पर माधवी को जाने न दिया, आधी रात तक हंसी-दिल्लगी ही में काटी, इसके बाद दोनों अपने-अपने पलंग पर सो रहे। कुमार को तो खुटका लगा ही हुआ था कि आज वह काली औरत आवेगी इ

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भाग 15

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अब इस जगह थोड़ा-सा हाल इस राज्य का और साथ ही इस माधवी का भी लिख देना जरूरी है। किशोरी की मां अर्थात शिवदत्त की रानी दो बहिनें थीं। एक जिसका नाम कलावती था शिवदत्त के साथ ब्याही थी और दूसरी मायावती गया

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चंद्रकांता संतति दूसरा भाग -1

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घंटा भर दिन बाकी है। किशोरी अपने उसी बाग में जिसका कुछ हाल पीछे लिख चुके हैं कमरे की छत पर सात-आठ सखियों के बीच में उदास तकिए के सहारे बैठी आसमान की तरफ देख रही है। सुगंधित हवा के झोंके उसे खुश किया च

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भाग 2

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किशोरी खुशी-खुशी रथ पर सवार हुई और रथ तेजी से जाने लगा। वह कमला भी उसके साथ थी, इंद्रजीतसिंह के विषय में तरह-तरह की बातें कहकर उसका दिल बहलाती जाती थी। किशोरी भी बड़े प्रेम से उन बातों को सुनने में ली

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भाग 3

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सुबह का सुहावना समय भी बड़ा ही मजेदार होता है। जबर्दस्त भी परले सिरे का है। क्या मजाल कि इसकी अमलदारी में कोई धूम तो मचावे, इसके आने की खबर दो घंटे पहले ही से हो जाती है। वह देखिए आसमान के जगमगाते हुए

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि माधवी के यहां तीन आदमी अर्थात दीवान अग्निदत्त, कुबेरसिंह सेनापति और धर्मसिंह कोतवाल मुखिया थे और तीनों मिलकर माधवी के राज्य का आनंद लेते थे। इन तीनों में अग्निदत्त का दिन बहुत म

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भाग 5

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कमला को विश्वास हो गया कि किशोरी को कोई धोखा देकर ले भागा। वह उस बाग में बहुत देर तक न ठहरी, ऐयारी के सामान से दुरुस्त थी ही, एक लालटेन हाथ में लेकर वहां से चल पड़ी और बाग से बाहर हो चारों तरफ घूम-घूम

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भाग 6

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अभी तक उस रमणीक स्थान में विराज रहे हैं। जी कितना ही बेचैन क्यों न हो मगर उन्हें लाचार माधवी के साथ दिन काटना ही पड़ता है। खैर जो होगा देखा जायगा मगर इस समय दो पहर दिन बाकी रहने पर

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भाग 7

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आपस में लड़ने वाले दोनों भाइयों के साथ जाकर सुबह की सफेदी निकलने के साथ ही कोतवाल ने माधवी की सूरत देखी और यह समझकर कि दीवान साहब को छोड़ महारानी अब मुझसे प्रेम रखा चाहती है बहुत खुश हुआ। कोतवाल साहब

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भाग 8

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इस जगह उस तालाब का हाल लिखते हैं, जिसका जिक्र कई दफे ऊपर-पीछे आ चुका है, जिसमें एक औरत को गिरफ्तार करने के लिए योगिनी और वनचरी कूदी थीं, या जिसके किनारे बैठ हमारे ऐयारों ने माधवी के दीवान, कोतवाल और स

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भाग 9

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अब जबर्दस्ती करने पर उतारू हुए और इस ताक में लगे कि माधवी सुरंग का ताला खोले और दीवान से मिलने के लिए महल में जाय तो मैं अपना रंग दिखाऊं। तिलोत्तमा के होशियार कर देने से माधवी भी चे

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भाग 10

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जख्मी इंद्रजीतसिंह को लिए हुए उनके ऐयार लोग वहां से दूर निकल गये और बेचारी किशोरी को दुष्ट अग्निदत्त उठाकर अपने घर ले गया। यह सब हाल देख तिलोत्तमा वहां से चलती बनी और बाग के अंदर कमरे में पहुंची। देखा

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भाग 11

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हम ऊपर के बयान में सुबह का दृश्य लिखकर कह आये हैं कि राजा वीरेंद्रसिंह, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह सेना सहित किसी तरफ को जा रहे हैं। पाठक तो समझ ही गये होंगे कि इन्होंने जरूर किसी तरफ चढ़ाई की है और बे

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भाग 12

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आज पांच दिन के बाद देवीसिंह लौटकर आये हैं। जिस कमरे का हाल हम ऊपर लिख आए हैं उसी में राजा वीरेंद्रसिंह, उनके दोनों लड़के, भैरोसिंह, तारासिंह और कई सरदार लोग बैठे हैं। इंद्रजीतसिंह की तबीयत अब बहुत अच्

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भाग 13

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तो किशोरी पर जी-जान से आशिक हो चुके थे। इस बीमारी की हालत में भी उसकी याद इन्हें सता रह थी और यह जानने के लिए बेचैन हो रहे थे कि उस पर क्या बीती, वह किस अवस्था में कहां है और अब उसक

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भाग 14

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है। गयाजी में हर मुहल्ले के चौकीदार ‘जागते रहियो, होशियार रहियो’ कह-कहकर इधर से उधर घूम रहे हैं। रात अंधेरी है, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ है। यहां का मुख्य स्थान विष्णु-पादु

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भाग 15

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राजा वीरेंद्रसिंह के चुनार चले जाने के बाद दोनों भाइयों को अपनी-अपनी फिक्र पैदा हुई। क्रुंअर आनंदसिंह किन्नरी की फिक्र में पड़े और कुंअर इंद्रजीतसिंह को राजगृही की फिक्र पैदा हुई। राजगृही को फतह कर ले

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भाग 16

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भैरोसिंह को राजगृही गये आज तीसरा दिन है। यहां का हाल-चाल अभी तक कुछ मालूम नहीं हुआ, इसी सोच में आधी रात के समय अपने कमरे में पलंग पर लेटे हुए कुंअर इंद्रजीतसिंह को नींद नहीं आ रही है। किशोरी की खयाली

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भाग 17

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मकान के अंदर कमला, इंद्रजीतसिंह और तारासिंह के पहुंचने के पहले ही हम अपने पाठकों को इस मकान में ले चलकर यहां की कैफियत दिखाते हैं। इस मकान के अंदर छोटी-छोटी न मालूम कितनी कोठरियां हैं पर हमें उनसे को

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चंद्रकांता संतति तीसरा भाग - 1

11 जून 2022
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पाठक समझ ही गये होंगे कि रामशिला के सामने फलगू नदी के बीच में भयानक टीले के ऊपर रहने वाले बाबाजी के सामने जो दो औरतें गई थीं वे माधवी और उसकी सखी तिलोत्तमा थीं। बाबाजी ने उन दोनों से वादा किया था कि त

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भाग 2

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शिवदत्तगढ़ में महाराज शिवदत्त बैठा हुआ बेफिक्री का हलुआ नहीं उड़ाता। सच पूछिये तो तमाम जमाने की फिक्र ने उसको आ घेरा है। वह दिन-रात सोचा ही करता है और उसके ऐयारों और जासूसों का दिन दौड़ते ही बीतता है।

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भाग 3

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ऐयारों और थोड़े से लड़कों के सिवाय नाहरसिंह को साथ लिए हुए भीमसेन राजगृही की तरफ रवाना हुआ। उसका साथी नाहरसिंह बेशक लड़ाई के फन में बहुत ही जबर्दस्त था। उसे विश्वास था कि कोई अकेला आदमी लड़कर कभी मुझस

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भाग 4

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आधी रात का समय है और सन्नाटे की हवा चल रही है। बिल्लौर की तरह खूबी पैदा करने वाली चांदनी आशिकमिजाजों को सदा ही भली मालूम होती है लेकिन आज सर्दी ने उन्हें भी पस्त कर दिया, यह हिम्मत नहीं पड़ती कि जरा म

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भाग 5

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कुंअर इंद्रजीतसिंह नाहरसिंह और तारासिंह को साथ लिए घर आये और अपने छोटे भाई से सब हाल कहा। वे भी सुनकर बहुत उदास हुए और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। दोनों कुमार बड़े ही तरद्दुद में पड़े। अगर तारासि

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भाग 6

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इश्क भी क्या बुरी बला है! हाय, इस दुष्ट ने जिसका पीछा किया उसे खराब करके छोड़ दिया और उसके लिए दुनिया भर के अच्छे पदार्थ बेकाम और बुरे बना दिये। छिटकी हुई चांदनी उसके बदन में चिनगारियां पैदा करती है,

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भाग 7

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है, किशोरी अपने कमरे में मसहरी पर लेटी हुई न मालूम क्या-क्या सोच रही है, हां उसकी डबडबाई हुई आंखें जरूर इस बात की खबर देती हैं कि उसके दिल में किसी तरह का द्वंद्व मचा हुआ है।

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भाग 8

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रोहतासगढ़ किले के सामने पहाड़ी से कुछ दूर हटकर वीरेंद्रसिंह का लश्कर पड़ा हुआ है। चारों तरफ फौजी आदमी अपने-अपने काम में लगे हुए दिखाई देते हैं। कुछ फौज आ चुकी और बराबर चली ही आती है। बीच में राजा वीरे

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भाग 9

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आधी रात का समय है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, राजा वीरेंद्रसिंह के लश्कर में पहरा देने वालों के सिवाय सभी आराम की नींद सोये हुए हें, हां थोड़े से फौजी आदमियों का सोना कुछ विचित्र ढंग का है जिन्हें

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भाग 10

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कुछ रात जा चुकी है। रोहतासगढ़ किले के अंदर अपने मकान में बैसठी हुई बेचारी किशोरी न मालूम किस ध्यान में डूबी हुई है और क्या सोच रही है। कोई दूसरी औरत उसके पास नहीं है। आखिर किसी के पैर की आहट पा अपने ख

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भाग 11

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इसके बाद लाली ने दबी जुबान से किशोरी को कुछ समझाया और दो घंटे में फिर मिलने का वादा करके वहां से चली गयी। हम ऊपर कई दफे लिख आये हैं कि उस बाग में जिसमें किशोरी रहती थी एक तरफ ऐसी इमारत है जिसके दरवाज

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भाग 12

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तालाब के किनारे खड़े उस विचित्र इमारत और हसीन औरत की तरफ देख रहे हैं। उनका इरादा हुआ कि तैरकर उस मकान में चले जायं जो इस तालाब के बीचोंबीच में बना हुआ है, मगर उस नौजवान औरत ने इन्हे

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भाग 13

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आधी रात के समय सुनसान मैदान में दो कमसिन औरतें आपस में कुछ बातें करती चली जा रही हैं। राह में छोटे-छोटे टीले पड़ते हैं जिन्हें तकलीफ के साथ लांघने और दम फूलने पर कभी ठहरकर फिर चलने से मालूम होता है कि

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भाग 14

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रोहतासगढ़ किले के चारों तरफ घना जंगल है जिसमें साखू, शीशम, तेंदू, आसन और सलई इत्यादि के बड़े-बड़े पेड़ों की घनी छाया से एक तरह को अंधकार-सा हो रहा है। रात की तो बात ही दूसरी है वहां दिन को भी रास्ते य

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चंद्रकांता संतति चौथा भाग -1

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अब हम अपने किस्से को फिर उसी जगह से शुरू करते हैं जब रोहतासगढ़ किले के अंदर लाली को साथ लेकर किशोरी सेंध की राह उस अजायबघर में घुसी जिसका ताला हमेशा बंद रहता था और दरवाजे पर बराबर पहरा पड़ा रहता था। ह

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भाग 2

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कंचनसिंह के मारे जाने और कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब हो जाने से लश्कर में बड़ी हलचल मच गई। पता लगाने के लिए चारों तरफ जासूस भेजे गये। ऐयार लोग भी इधर-उधर फैल गये और फसाद मिटाने के लिए दिलोजान से कोशिश

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भाग 3

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तेजसिंह के लौट आने से राजा वीरेंद्रसिंह बहुत खुश हुए और उस समय तो उनकी खुशी और भी ज्यादे हो गई जब तेजसिंह ने रोहतासगढ़ आकर अपनी कार्रवाई करने का खुलासा हाल कहा। रामानंद की गिरफ्तारी का हाल सुनकर हंसते

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भाग 4

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अपनी कार्रवाई पूरी करने के बाद तेजसिंह ने सोचा कि अब असली रामानंद को तहखाने से ऐसी खूबसूरती के साथ निकाल लेना चाहिए जिससे महाराज को किसी तरह का शक न हो और यह गुमान भी न हो कि तहखाने में वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन दारोगा साहब अपनी गद्दी पर बैठे रोजनामचा देख रहे थे और उस तहखाने की पुरानी बातें पढ़-पढ़कर ताज्जुब कर रहे थे कि यकायक पीछे की कोठरी में खटके की आवाज आई। घबड़ाकर उठ खड़े हुए

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भाग 6

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अब हम अपने किस्से के सिलसिले को मोड़कर दूसरी तरफ झुकते हैं और पाठकों को पुण्यधाम काशी में ले चलकर संध्या के साथ गंगा के किनारे बैठी हुई एक नौजवान औरत की अवस्था पर ध्यान दिलाते हैं। सूर्य भगवान अस्त ह

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भाग 7

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लाल पोशाक वाली औरत की अद्भुत बातों ने नानक को हैरान कर दिया। वह घबड़ाकर चारों तरफ देखने लगा और डर के मारे उसकी अजब हालत हो गई। वह उस कुएं पर भी ठहर न सका और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता हुआ इस उम्मीद में गं

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भाग 8

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अब हम फिर उस महारानी के दरबार का हाल लिखते हैं जहां से नानक निकाला जाकर गंगा के किनारे पहुंचाया गया था। नानक को कोठरी में ढकेलकर बाबाजी लौटे तो महारानी के पास न जाकर दूसरी ही तरफ रवाना हुए और एक बारह

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भाग 9

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अब हम रोहतासगढ़ की तरफ चलते हैं और तहखाने में बेबस पड़ी हुई बेचारी किशोरी और कुंअर आनंदसिंह इत्यादि की सुध लेते हैं। जिस समय कुंअर आनंदसिंह, भैरोसिंह और तारासिंह तहखाने के अंदर गिरफ्तार हो गए और राजा

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भाग 10

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दूसरे दिन संध्या के समय राजा वीरेंद्रसिंह अपने खेमे में बैठे रोहतासगढ़ के बारे में बातचीत करने लगे। पंडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह, तारासिंह, ज्योतिषीजी, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह उनके पास बैठे हुए थे। अपने

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भाग 11

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अब तो कुंदन का हाल जरूर ही लिखना पड़ा, पाठक महाशय उसका हाल जानने के लिए उत्कंठित हो रहे होंगे। हमने कुंदन को रोहतासगढ़ महल के उसी बाग में छोड़ा है जिसमें किशोरी रहती थी। कुंदन इस फिक्र में लगी रहती थी

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भाग 12

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दूसरे दिन दो पहर दिन चढ़े बाद किशोरी की बेहोशी दूर हुई। उसने अपने को एक गहन वन के पेड़ों की झुरमुट में जमीन पर पड़े पाया और अपने पास कुंदन और कई आदमियों को देखा। बेचारी किशोरी इन थोड़े ही दिनों में तर

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चंद्रकांता संतति- पाँचवाँ भाग 1

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बेचारी किशोरी को चिता पर बैठाकर जिस समय दुष्टा धनपत ने आग लगाई, उसी समय बहुत-से आदमी, जो उसी जंगल में किसी जगह छिपे हुए थे, हाथों में नंगी तलवारें लिये 'मारो! मारो!' कहते हुए उन लोगों पर आ टूटे। उन लो

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भाग 2

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पाठक अभी भूले न होंगे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह कहां हैं। हम ऊपर लिख आए हैं कि उस मकान में जो तालाब के अन्दर बना हुआ था, कुंअर इन्द्रजीतसिंह दो औरतों को देखकर ताज्जुब में आ गए। कुमार उन औरतों का नाम नहीं

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भाग 3

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कुमार कई दिनों तक कमलिनी के यहां मेहमान रहे। उसने बड़ी खातिरदारी और नेकनीयती के साथ इन्हें रखा। इस मकान में कई लौंडियां भी थीं जो दिलोजान से कुमार की खिदमत किया करती थीं, मगर कभी-कभी वे सब दो-दो पहर क

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि देवीसिंह को साथ लेकर शेरसिह कुंअर इन्द्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए रोहतासगढ़ से रवाना हुए। शेरसिंह इस बात को तो जानते थे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह फलां जगह हैं परन्तु उन्हें तालाब के

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भाग 5

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अब हम फिर रोहतासगढ़ की तरफ मुड़ते हैं और वहां राजा वीरेन्द्रसिंह के ऊपर जो-जो आफतें आईं, उन्हें लिखकर इस किस्से के बहुत से भेद, जो अभी तक छिपे पड़े हैं, खोलते हैं। हम ऊपर लिख आये हैं कि रोहतासगढ़ फतह

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भाग 6

11 जून 2022
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आज बहुत दिनों के बाद हम कमला को आधी रात के समय रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर पूरब तरफ वाले जंगल में घूमते देख रहे हैं। यहां से किले की दीवार बहुत दूर और ऊंचे पर है। कमला न मालूम किस फिक्र में है या क्या ढूं

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भाग 7

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रोहतासगढ़ फतह होने की खबर लेकर भैरोसिंह चुनार पहुंचे और उसके दो ही तीन दिन बाद राजा दिग्विजयसिंह की बेईमानी की खबर लेकर कई सवार भी जा पहुंचे। इस समाचार के पहुंचते ही चुनारगढ़ में खलबली पड़ गई। फौज के

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भाग 8

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बहुत दिनों से कामिनी का हाल कुछ भी मालूम न हुआ। आज उसकी सुध लेना भी मुनासिब है। आपको याद होगा कि जब कामिनी को साथ लेकर कमला अपने चाचा शेरसिंह से मिलने के लिए उजाड़ खंडहर और तहखाने में गई थी तो वहां से

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भाग 9

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गिल्लन को साथ लिये हुए बीबी गौहर रोहतासगढ़ किले के अन्दर जा पहुंची। किले के अन्दर जाने में किसी तरह का जाल न फैलाना पड़ा और न किसी तरह की कठिनाई हुई। वह बेधड़के किले के उस फाटक पर चली आई जो शिवालय के

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भाग 10

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वीरेन्द्रसिंह के तीनों ऐयारों ने रोहतासगढ़ के किले के अन्दर पहुंचकर अंधेर मचाना शुरू किया। उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि अगर दिग्विजयसिंह हमारे मालिकों को नहीं छोड़ेगा तो ऐयारी के कायदे के बाहर काम कर

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भाग 11

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इस जगह मुख्तसर ही में यह भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है कि रोहतासगढ़ तहखाने में से राजा वीरेन्द्रसिंह, कुंअर आनन्दसिंह और उनके ऐयार लोग क्योंकर छूटे और कहां गए। हम ऊपर लिख आए हैं कि जिस समय गौहर '

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भाग 12

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दो पहर दिन चढ़ने के पहले ही फौज लेकर नाहरसिंह रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर चढ़ गया। उस समय दुश्मनों ने लाचार होकर फाटक खोल दिया और लड़-भिड़कर जान देने पर तैयार हो गये। किले की कुल फौज फाटक पर उमड़ आई और फा

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भाग 13

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तहखाने में बैठी हुई कामिनी को जब किसी के आने की आहट मालूम हुई तब वह सीढ़ी की तरफ देखने लगी मगर जब उसे कई आदमियों के पैरों की धमधमाहट मालूम हुई तब वह घबड़ाई। उसका खयाल दुश्मनों की तरफ गया और वह अपने बच

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चंद्रकांता संतति छठवां भाग 1

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वे दोनों साधु, जो सन्दूक के अन्दर झांक न मालूम क्या देखकर बेहोश हो गए थे, थोड़ी देर बाद होश में आए और चीख-चीखकर रोने लगे। एक ने कहा, ''हाय-हाय इन्द्रजीतसिंह, तुम्हें क्या हो गया! तुमने तो किसी के साथ

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भाग 2

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इस समय शिवदत्त की खुशी का अन्दाज करना मुश्किल है और यह कोई ताज्जुब की बात भी नहीं है, क्योंकि लड़ाकों और दोस्त ऐयारों के सहित राजा वीरेन्द्रसिंह को उसने ऐसा बेबस कर दिया कि उन लोगों को जान बचाना कठिन

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भाग 3

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अब हम अपने पाठकों को फिर उस मैदान के बीच वाले अद्भुत मकान के पास ले चलते हैं जिसके अन्दर इन्द्रजीतसिंह, देवीसिंह, शेरसिंह और कमलिनी के सिपाही लोग जा फंसे थे अर्थात् कमन्द के सहारे दीवार पर चढ़कर अन्दर

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भाग 4

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अब तो मौसम में फर्क पड़ गया। ठंडी-ठंडी हवा जो कलेजे को दहला देती थी और बदन में कंपकंपी पैदा करती थी अब भली मालूम पड़ती है। वह धूप भी, जिसे देख चित्त प्रसन्न होता था और जो बदन में लगकर रग-रग से सर्दी न

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भाग 5

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रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज के सिवाय और किसी तरह की आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसे समय में काशी की तंग गलियों में दो आदमी, जिनमें एक औ

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भाग 6

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दूसरे दिन कुछ रात बीते कमलिनी फिर मनोरमा के मकान पर पहुंची। बाग के फाटक पर उसी दरबान को टहलते पाया जिससे कल बातचीत कर चुकी थी। इस समय बाग का फाटक खुला हुआ था और उस दरबान के अतिरिक्त और भी कई सिपाही वह

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भाग 7

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आधी रात जा चुकी है। कमलिनी उस कमरे में, जो उसके सोने के लिए मुकर्रर किया गया था, चारपाई पर लेटी हुई करवटें बदल रही है क्योंकि उसकी आंखों में नींद का नामो-निशान नहीं है। उसके दिल में तरह-तरह की बातें प

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चंद्रकांता संतति सातवाँ भाग 1

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नागर थोड़ी दूर पश्चिम जाकर घूमी और फिर उस सड़क पर चलने लगी जो रोहतासगढ़ की तरफ गई थी। पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि नागर का दिल कितना मजबूत और कठोर था। उन दिनों जो रास्ता काशी से रोहतासगढ़ को जाता था, व

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भाग 2

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हम ऊपर लिख आए हैं कि राजा वीरेन्द्रसिंह तिलिस्मी खंडहर से (जिसमें दोनों कुमार और तारासिंह इत्यादि गिरफ्तार हो गए थे) निकलकर रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए तो तेजसिंह उनसे कुछ कह-सुनकर अलग हो गए और उनके सा

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भाग 3

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। तेजसिंह उसी दो नम्बर वाले कमरे के बाहर सहन में तकिया लगाये सो रहे हैं। चिराग बालने का कोई सामान यहां मौजूद नहीं जिससे रोशनी करते, पास में कोई आदमी नहीं जिससे दिल बहलात

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भाग 4

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शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ-कुछ लाली अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की हवा बदन में कंपकंपी

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पाठकों को याद होगा कि भूतनाथ को नागर ने एक पेड़ के साथ बांध रखा है। यद्यपि भूतनाथ ने अपनी चालाकी और तिलिस्मी खंजर की मदद से नागर को बेहोश कर दिया मगर देर तक उसके चिल्लाने पर भी वहां कोई उसका मददगार न

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भाग 6

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मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग (तिलिस्मी बाग) में है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रखा है, मगर उस बाग में दो और

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चंद्रकांता संतति - आठवाँ भाग 1

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मायारानी की कमर में से ताली लेकर जब लाडिली चली गई तो उसके घंटे भर बाद मायारानी होश में आकर उठ बैठी। उसके बदन में कुछ-कुछ दर्द हो रहा था जिसका सबब वह समझ नहीं सकती थी। उसे फिर उन्हीं खयालों ने आकर घेर

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भाग 2

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कैदखाने का हाल हम ऊपर लिख चुके हैं, पुनः लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। उस कैदखाने में कई कोठरियां थीं जिनमें से आठ कोठरियों में तो हमारे बहादुर लोग कैद थे और बाकी कोठरियां खाली थीं। कोई आश्चर्य नहीं, यद

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भाग 3

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मायारानी उस बेचारे मुसीबत के मारे कैदी को रंज, डर और तरद्दुद की निगाहों से देख रही थी जबकि यह आवाज उसने सुनी, ''बेशक मायारानी की मौत आ गई!'' इस आवाज ने मायारानी को हद्द से ज्यादा बेचैन कर दिया। वह घबड

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भाग 4

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कमलिनी की आज्ञानुसार बेहोश नागर की गठरी पीठ पर लादे हुए भूतनाथ कमलिनी के उस तिलिस्मी मकान की तरफ रवाना हुआ जो एक तालाब के बीचोंबीच में था। इस समय उसकी चाल तेज थी और वह खुशी के मारे बहुत ही उमंग और लाप

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दिन दो पहर से कुछ ज्यादा चढ़ चुका है मगर मायारानी को खाने-पीने की कुछ भी सुध नहीं है। पल-पल में उसकी परेशानी बढ़ती ही जाती है। यद्यपि बिहारीसिंह, हरनामसिंह और धनपत ये तीनों उसके पास मौजूद हैं परन्तु स

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भाग 6

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रात आधी जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, हवा भी एकदम बन्द है, यहां तक कि किसी पेड़ की एक पत्ती भी नहीं हिलती। आसमान में चांद तो नहीं दिखाई देता, मगर जंगल मैदान में चलने वाले मुसाफिरों को तार

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राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ और भैरोसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ रवाना करके कमलिनी अपने साथियों को साथ लिए हुए मायारानी के तिलिस्मी बाग की तरफ रवाना हुई। इस समय रात नाममात्र को बाकी थी। प्राय

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अपनी बहिन लाडिली, ऐयारों और दोनों कुमारों को साथ लेकर कमलिनी राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देवमन्दिर में कुछ दिन रहेगी। वहां रहकर ये लोग जो कुछ करेंगे, उ

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भाग 9

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। काशी में मनोरमा के मकान के अन्दर फर्श पर नागर बैठी हुई और उसके पास ही एक खूबसूरत नौजवान आदमी छोटे-छोटे तीन-चार तकियों का सहारा लगाये अधलेटा-सा पड़ा जमीन की तरफ देखता ह

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भाग 10

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दूसरे दिन आधी रात जाते-जाते भूतनाथ फिर उसी मकान में नागर के पास पहुंचा। इस समय नागर आराम से सोई न थी बल्कि न मालूम किस धुन और फिक्र में मकान की पिछली तरफ नजरबाग में टहल रही थी। भूतनाथ को देखते ही वह ह

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भाग 11

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ऊपर के बयान में जो कुछ लिख आये हैं उस बात को कई दिन बीत गये, आज भूतनाथ को हम फिर मायारानी के पास बैठे हुए देखते हैं। रंग-ढंग से जाना जाता है कि भूतनाथ की कार्रवाइयों से मायारानी बहुत ही प्रसन्न है और

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भाग 12

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आज से कुल आठ-दस दिन पहले मायारानी इतनी परेशान और घबड़ाई हुई थी कि जिसका कुछ हिसाब नहीं। वह जीते जी अपने को मुर्दा समझने लगी थी। राजा गोपालसिंह के छूट जाने के डर, चिन्ता, बेचैनी और घबड़ाहट ने चारों तरफ

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