ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन दारोगा साहब अपनी गद्दी पर बैठे रोजनामचा देख रहे थे और उस तहखाने की पुरानी बातें पढ़-पढ़कर ताज्जुब कर रहे थे कि यकायक पीछे की कोठरी में खटके की आवाज आई। घबड़ाकर उठ खड़े हुए और पीछे की तरफ देखने लगे। फिर आवाज आई। ज्योतिषीजी दरवाजा खोलकर अंदर गये, मालूम हुआ कि उस कोठरी के दूसरे दरवाजे से कोई भागा जाता है। कोठरी में बिल्कुल अंधेरा था, ज्योतिषीजी कुछ आगे बढ़े ही थे कि जमीन पर पड़ी हुई एक लाश उनके पैर में अड़ी जिसकी ठोकर खा वे गिर पड़े मगर फिर सम्हलकर आगे बढ़े लेकिन ताज्जुब करते थे कि यह लाश किसकी है। मालूम होता है यहां कोई खून हुआ है, और ताज्जुब नहीं कि वह भागने ही वाला खूनी हो!
वह आदमी आगे-आगे सुरंग में भागा जाता था और पीछे-पीछे ज्योतिषीजी हाथ में खंजर लिए दौड़े जा रहे थे मगर उसे किसी तरह पकड़ न सके। यकायक सुरंग के मुहाने पर रोशनी मालूम हुई। ज्योतिषीजी समझे कि अब वह बाहर निकल गया। दम भर में ये भी वहां पहुंचे और सुरंग के बाहर निकल चारों तरफ देखने लगे। ज्योतिषीजी की पहली निगाह जिस पर पड़ी वह पंडित बद्रीनाथ थे, देखा कि एक औरत को पकड़े हुए बद्रीनाथ खड़े हैं और दिन आधी घड़ी से कम बाकी है।
बद्री - दारोगा साहब, देखिये आपके यहां चोर घुसे और आपको खबर भी न हो!
ज्यो - अगर खबर न होती तो पीछे-पीछे दौड़ा हुआ यहां तक क्यों आता!
बद्री - फिर भी आपके हाथ से तो चोर निकल ही गया था, अगर इस समय हम न पहुंच पाते तो आप इसे न पा सकते।
ज्यो - हां बेशक, इसे मैं मानता हूं। क्या आप पहचानते हैं कि यह कौन है याद आता है कि इस औरत को मैंने कभी देखा है।
बद्री - जरूर देखा होगा, खैर इसे तहखाने में ले चलो फिर देखा जायगा। इसका तहखाने से खाली हाथ निकलना मुझे ताज्जुब में डालता है।
ज्यो - यह खाली हाथ नहीं बल्कि हाथ साफ करके आई है। इसके पीछे आती समय एक लाश मेरे पैर में अड़ी थी मगर पीछा करने की धुन में मैं कुछ जांच न कर सका।
पंडित बद्रीनाथ और ज्योतिषीजी उस औरत को गिरफ्तार किए हुए तहखाने में आये और उस दालान या बारहदरी में जिसमें दारोगा साहब की गद्दी लगी रहती थी पहुंचे। उस औरत को खंभे के साथ बांध दिया और हाथ में लालटेन ले उस लाश को देखने गये जो ज्योतिषीजी के पैर में अड़ी थी। बद्रीनाथ ने देखते ही उस लाश को पहचान लिया और बोले, ''यह तो माधवी है!''
ज्यो - यह यहां क्योंकर आई! (माधवी की नाक पर हाथ रखकर) अभी दम है, मरी नहीं। यह देखिए इसके पेट में जख्म लगा है। जख्म भारी नहीं है, बच सकती है।
बद्री - (नब्ज देखकर) हां बच सकती है, खैर इसके जख्म पर पट्टी बांधकर इसी तरह छोड़ दो, फिर बूझा जायगा। हां थोड़ा-सा अर्क इसके मुंह में डाल देना चाहिए।
बद्रीनाथ ने माधवी के जख्म पर पट्टी बांधी और थोड़ा-सा अर्क भी उसके मुंह में डालकर उसे वहां से उठा दूसरी कोठरी में ले गए। इस तहखाने में कई जगह से रोशनी और हवा पहुंचा करती थी, कारीगरों ने इसके लिए अच्छी तरकीब की थी। बद्रीनाथ और ज्योतिषीजी माधवी को उठाकर एक ऐसी कोठरी में ले गये जहां बादाकश की राह से ठंडी-ठंडी हवा आ रही थी और उसे उसी जगह छोड़ आप बारहदरी में आए जहां उस औरत को जिसने माधवी को घायल किया था खंभे के साथ बांधा था। बद्रीनाथ ने धीरे से ज्योतिषीजी से कहा कि ''आज कुंअर आनंदसिंह और उनके थोड़ी ही देर बाद मैं बीस-पचीस आदमियों को साथ लेकर यहां आऊंगा। अब मैं जाता हूं, वहां बहुत कुछ काम है, केवल इतना ही कहने के लिए आया था। मेरे जाने के बाद तुम इस औरत से पूछताछ लेना कि यह कौन है, मगर एक बात का खौफ है।''
ज्यो - वह क्या है
बद्री - यह औरत हम लोगों को पहचान गई है, कहीं ऐसा न हो कि तुम महाराज को बुलाओ और वे आ जाएं तो यह कह उठे कि दारोगा साहब तो राजा वीरेंद्रसिंह के ऐयार हैं!
ज्यो - जरूर ऐसा होगा, इसका भी बंदोबस्त कर लेना चाहिए।
बद्री - खैर कोई हर्ज नहीं, मेरे पास मसाला तैयार है। (बटुए में से एक डिबिया निकालकर और ज्योतिषीजी के हाथ में देकर) इसे आप रखें जब मौका हो तो इसमें से थोड़ी-सी दवा इसकी जबान पर जबर्दस्ती मल दीजिएगा, बात की बात में जुबान ऐंठ जायगी फिर यह साफ तौर पर कुछ भी न कह सकेगी। तब जो आपके जी में आवे महाराज को समझा दें।
बद्रीनाथ वहां से चले गये। उनके जाने के बाद उस औरत को डरा-धमका और कुछ मार-पीटकर ज्योतिषीजी ने उसका हाल मालूम करना चाहा मगर कुछ न हो सका, पहरों की मेहनत बर्बाद गई। आखिर उस औरत ने ज्योतिषीजी से कहा, ''ज्योतिषीजी, मैं आपको अच्छी तरह से जानती हूं। आप यह न समझिए कि माधवी को मैंने मारा है, उसको घायल करने वाला कोई दूसरा ही था, खैर इन सब बातों से कोई मतलब नहीं क्योंकि अब तो माधवी भी आपके कब्जे में नहीं रही।''
ज्यो - माधवी मेरे कब्जे में से कहां जा सकती है
औरत - जहां जा सकती थी वहां गई, जहां आप रख आये थे वहां जाकर देखिये है या नहीं।
औरत की बात सुनकर ज्योतिषीजी बहुत घबड़ाए और उठ खड़े हुए, वहां गए जहां माधवी को छोड़ आए थे। उस औरत की बात सच निकली। माधवी का वहां पता भी न था। हाथ में लालटेन ले घंटों ज्योतिषीजी इधर-उधर खोजते रहे मगर कुछ फायदा न हुआ, आखिर लौटकर फिर उस औरत के पास आये और बोले, ''तेरी बात ठीक निकली मगर अब मैं तेरी जान लिये बिना नहीं रहता, और अगर सच-सच अपना हाल बता दे तो छोड़ दूं।''
ज्योतिषीजी ने हजार सिर पटका मगर उस औरत ने कुछ भी न कहा। इसी औरत के चिल्लाने या बोलने की आवाज किशोरी और लाली ने इस तहखाने में आकर सुनी थी जिसका हाल इस भाग के पहले बयान में लिख आये हैं क्योंकि इसी समय लाली और किशोरी भी वहां आ पहुंची थीं।
ज्योतिषीजी ने किशोरी को पहचाना, किशोरी के साथ लाली का नाम लेकर भी पुकारा, मगर अभी यह नहीं मालूम हुआ कि लाली को ज्योतिषीजी क्योंकर और कब से जानते थे, हां किशोरी और लाली को इस बात का ताज्जुब था कि दारोगा ने उन्हें क्योंकर पहचान लिया क्योंकि ज्योतिषीजी दारोगा के भेष में थे।
ज्योतिषीजी ने किशोरी और लाली को अपने पास बुलाकर कुछ बात करना चाहा मगर मौका न मिला। उसी समय घंटे के बजने की आवाज आई और ज्योतिषीजी समझ गये कि महाराज आ रहे हैं। मगर इस समय महाराज क्यों आते हैं! शायद इस वजह से कि लाली और किशोरी इस तहखाने में घुस आई हैं और इसका हाल महाराज को मालूम हो गया है।
जल्दी के मारे ज्योतिषीजी सिर्फ दो काम कर सके, एक तो किशोरी और लाली की तरफ देखकर बोले, ''अफसोस, अगर आधी घड़ी की भी मोहलत मिलती तो तुम्हें यहां से निकाल ले जाता, क्योंकि यह सब बखेड़ा तुम्हारे ही लिए हो रहा है।'' दूसरे उस औरत की जुबान पर मसाला लगा सके जिससे वह महाराज के सामने कुछ कह न सके। इतने ही में मशालचियों और कई जल्लादों को लेकर महाराज आ पहुंचे और ज्योतिषीजी की तरफ देखकर बोले, ''इस तहखाने में किशोरी और लाली आई हैं, तुमने देखा है'
दारोगा - (खड़े होकर) जी अभी तक तो यहां नहीं पहुंचीं।
राजा - खोजो कहां हैं, यह औरत कौन है
दारोगा - मालूम नहीं कौन है और क्यों आई है मैंने इसी तहखाने में इसे गिरफ्तार किया है, पूछने से कुछ नहीं बताती।
राजा - खैर किशोरी और लाली के साथ इसे भी भूतनाथ पर चढ़ा देना (बलि देना) चाहिए क्योंकि यहां का बंधा कायदा है कि लिखे आदमी के सिवा दूसरा जो इस तहखाने को देख ले उसे तुरंत बलि दे देना चाहिए।
सब लोग किशोरी और लाली को खोजने लगे। इस समय ज्योतिषीजी घबड़ाये और ईश्वर से प्रार्थना करने लगे कि कुंअर आनंदसिंह और हमारे ऐयार लोग जल्द यहां आवें जिससे किशोरी की जान बचे।
किशोरी और लाली कहीं दूर न थीं, तुरंत गिरफ्तार कर ली गईं और उनकी मुश्कें बंध गयीं। इसके बाद उस औरत से महाराज ने कुछ पूछा जिसकी जुबान पर ज्योतिषीजी ने दवा मल दी थी, पर उसने महाराज की बात का कुछ भी जवाब न दिया। आखिर खंभे से खोलकर उसकी भी मुश्कें बांध दी गईं और तीनों औरतें एक दरवाजे की राह दूसरी संगीन बारहदरी में पहुंचाई गयीं जिसमें सिंहासन के ऊपर स्याह पत्थर की वह भयानक मूरत बैठी हुई थी जिसका हाल इस संतति के तीसरे भाग के आखिरी बयान में हम लिख आये हैं। इसी समय आनंदसिंह, भैरोसिंह और तारासिंह वहां पहुंचे और उन्होंने अपनी आंखों से उस औरत के मारे जाने का दृश्य देखा जिसकी जुबान पर दवा लगा दी गई थी। जब किशोरी को मारने की बारी आई तब कुंअर आनंदसिंह और दोनों ऐयारों से न रहा गया और उन्होंने खंजर निकालकर उस झुंड पर टूट पड़ने का इरादा किया मगर न हो सका क्योंकि पीछे से कई आदमियों ने आकर इन तीनों को पकड़ लिया।