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भाग 4

11 जून 2022

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शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ-कुछ लाली अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की हवा बदन में कंपकंपी भी पैदा नहीं कर सकती। हम इस समय आपको एक ऐसे मैदान की तरफ ध्यान देने के लिए कहते हैं, जिसकी लम्बाई और चौड़ाई का अन्दाज करना कठिन है। जिधर निगाह दौड़ाइये, सन्नाटा नजर आता है। कोई पेड़ भी ऐसा नहीं है, जिसके पीछे या जिस पर चढ़कर कोई आदमी अपने को छिपा सके। हां, पूरब तरफ निगाह कुछ ठोकर खाती है और एक धुंधली चीज को देखकर गौर करने वाला कह सकता है कि उस तरफ शायद कोई छोटी-सी पहाड़ी या पुराने जमाने का कोई ऊंचा टीला है।

ऐसे मैदान में तीन औरतें घोड़ियों पर सवार धीरे-धीरे उसी तरफ जा रही हैं, जिधर उस टीले या छोटी पहाड़ी की स्याही मालूम हो रही है। यद्यपि उन औरतों की पोशाक जनाना वजः की है। मगर, फिर भी चुस्त और दक्षिणी ढंग की है। तीनों के चेहरे पर नकाब पड़ी है, तथापि बदन की सुडौली और कलाई तथा नाजुक उंगलियों पर ध्यान देने से देखने वाले के दिल में यह बात जरूर पैदा होगी कि ये तीनों ही नाजुक नौजवान और खूबसूरत हैं। इन औरतों के विषय में हम अपने पाठकों को ज्यादा देर तक खटके में न डालकर इसी समय इनका परिचय दे देना उत्तम समझते हैं। वह देखिये ऊंची और मुश्की घोड़ी पर जो सवार है, वह मायारानी है। चोगर आंखों वाली सफेद पचकल्यान घोड़ी पर जो पटरी जमाये है वह उसकी छोटी बहिन लाडिली है, जिसे अभी तक हम रामभोली के नाम से लिखते चले आये हैं, और सब्जी घोड़ी पर सवार चारों तरफ निगाह दौड़ा-दौड़ाकर देखने वाली धनपत है। ये तीनों आपस में धीरे-धीरे बातें करती जा रही हैं। लीजिए तीनों ने अपने चेहरों पर से नकाबें उलट दीं, अब हमें तीनों की बातों पर ध्यान देना उचित है।

मायारानी - न मालूम चण्डूल कम्बख्त तीसरे नम्बर के बाग में क्योंकर जा पहुंचा! इसमें तो कुछ सन्देह नहीं कि जिस राह से हम लोग आते-जाते हैं उस राह से वह नहीं गया था।

लाडिली - तिलिस्म बनाने वालों ने वहां पहुंचने के लिए कई रास्ते बनाए हैं शायद उन्हीं रास्तों में से कोई रास्ता उसे मालूम हो गया हो।

धनपत - मगर उन रास्तों का हाल किसी दूसरे को मालूम हो जाना तो बड़ी भयानक बात है।

मायारानी - और यह एक ताज्जुब की बात है कि उन रास्तों का हाल जब मुझको जो तिलिस्म की रानी कहलाती है, नहीं मालूम तो किसी दूसरे को कैसे मालूम हुआ!

लाडिली - ठीक है, तिलिस्म की बहुत-सी बातें ऐसी हैं, जो तुम्हें मालूम हैं। मगर नियमानुसार तुम मुझसे भी नहीं कह सकती हो। हां, उन रास्तों का हाल जीजाजी1 को जरूर मालूम था। अफसोस, उन्हें मरे पांच वर्ष हो गये, अगर जीते होते तो...।

मायारानी - (कुछ घबड़ाकर और जल्दी से) तुम कैसे जानती हो कि उन रास्तों का हाल उन्हें मालूम था?

लाडिली - हंसी-हंसी में उन्होंने एक दिन मुझसे कहा था कि बाग के तीसरे दर्जे में जाने के लिए पांच रास्ते हैं, बल्कि वे मुझे अपने साथ वहां ले चलकर नया रास्ता दिखाने को तैयार भी थे मगर मैं तुम्हारे डर से उनके साथ न गई।

मायारानी - आज तक तूने यह हाल मुझसे क्यों न कहा?

लाडिली - मेरी समझ में यह कोई जरूरी बात न थी जो तुमसे कहती।

लाडिली की बात सुन मायारानी चुप हो गई और बड़े गौर में पड़ गई। उसकी अवस्था और उसकी सूरत पर ध्यान देने से मालूम होता था कि लाडिली की बात से उसके दिल पर एक सख्त सदमा पहुंचा है और वह थोड़ी देर के लिए अपने को बिल्कुल ही भूल गई है। मायारानी की ऐसी अवस्था क्यों हो गई और इस मामूली-सी बात से उसके दिल पर क्यों चोट लगी इसका सबब उसकी छोटी बहिन लाडिली भी न समझ सकी। कदाचित् यह कहा जाय कि वह अपने पति को याद करके इस अवस्था में पड़ गई, सो भी नहीं हो सकता। क्योंकि लाडिली खूब जानती थी कि मायारानी अपने खूबसूरत, हंसमुख और नेक चाल-चलन वाले पति को कुछ भी नहीं चाहती थी। इस समय लाडिली के दिल में एक तरह का खटका पैदा हुआ और शक की निगाह से मायारानी की तरफ देखने लगी। मगर मायारानी कुछ भी नहीं जानती थी कि उसकी छोटी बहिन उसे किस निगाह से देख रही है। लगभग दो सौ कदम चले जाने बाद वह चौंकी और लाडिली की तरफ जरा-सा मुंह फेरकर बोली, ''हां, तो वह उन रास्तों का हाल जानता था'

लाडिली के दिल में और भी खुटका पैदा हुआ बल्कि इस बात का रंज हुआ कि मायारानी ने अपने पति या लाडिली के प्यारे बहनोई की तरफ ऐसे शब्दों में इशारा किया जो किसी नीच या खिदमतगार तथा नौकर के लिए बरता जाता है। लाडिली का ध्यान धनपत की तरफ भी गया जिसके चेहरे पर उदासी और रंज की निशानी मामूली से कुछ ज्यादा पाई जाती थी और जिसकी घोड़ी भी पांच-सात कदम पीछे रह गई थी। मगर मायारानी और धनपत की ऐसी अवस्था ज्यादा देर तक न रही, उन दोनों ने बहुत जल्द अपने को सम्हाला और फिर मामूली तौर पर बातचीत करने लगीं।

धनपत - अब वह टीला भी आ पहुंचा। देखा चाहिए बाबाजी से मुलाकात होती है या नहीं!

1. जीजाजी से मतलब मायारानी के पति से है जो लाड़िली का बहनोई था।

मायारानी - मुलाकात अवश्य होगी क्योंकि वे कहीं नहीं जाते मगर अब मेरा जी नहीं चाहता कि वहां तक जाऊं या उनसे मिलूं।

लाडिली - सो क्यों! तुम तो बड़े उत्साह से उनसे मिलने के लिए आई हो!

माया - ठीक है, मगर अब जो मैं सोचती हूं तो यही जान पड़ता है कि बेचारे बाबाजी इन सब बातों का जवाब कुछ भी न दे सकेंगे।

लाडिली - खैर, जब इतनी दूर आ चुकी हो तो अब लौट चलना भी उचित नहीं।

माया - नहीं, अब मैं वहां न जाऊंगी!

इतना कहकर मायारानी ने घोड़ा फेरा, लाचार होकर लाडिली और धनपत को भी घूमना पड़ा, मगर इस कार्रवाई से लाडिली के दिल का शक और भी ज्यादा हुआ और उसे निश्चय हो गया कि मेरी बात से मायारानी के दिल पर गहरी चोट बैठी है मगर ठीक इसका सबब क्या है सो कुछ भी नहीं मालूम होता।

मायारानी ने जैसे ही घोड़े की बाग फेरी, वैसे ही उसकी निगाह तेजसिंह पर पड़ी जो तीर और कमान हाथ में लिए बहुत दूर से कदम बढ़ाए इन तीनों के पीछे-पीछे आ रहे थे। मायारानी तेजसिंह को अच्छी तरह से जानती थी। यद्यपि इस समय कुछ अंधेरा हो गया था परन्तु मायारानी की तेज निगाहों ने तेजसिंह को तुरन्त ही पहचान लिया और इसके साथ ही वह तलवार खींचकर तेजसिंह पर झपटी।

मायारानी को नंगी तलवार लिए झपटते देख तेजसिंह ने ललकारके कहा, ''खबरदार, आगे न बढ़ना, नहीं तो एक ही तीर में काम तमाम कर दूंगा!''

तेजसिंह के ललकारने से मायारानी रुक गई मगर धनपत से न रहा गया। वह तलवार खींचकर यह कहती हुई आगे बढ़ी, ''मैं तेरे तीर से डरने वाली नहीं!''

तेजसिंह - मालूम होता है तुझे अपनी जान प्यारी नहीं है, इसे खूब समझ लेना कि तेजसिंह के हाथ से छूटा तीर खाली न जायगा।

धनपत - मालूम होता है कि तू केवल एक तीर ही से हम तीनों को डराकर अपना काम निकालना चाहता है। अफसोस, इस समय मेरे पास तीर-कमान नहीं है, यदि होता तो तुझे जान पड़ता कि तीर चलाना किसे कहते हैं।

तेजसिंह - (हंसकर) न मालूम तूने औरत होने पर भी अपने को क्या समझ रखा है खैर, अब मैं एक कमसिन औरत पर तीर न चलाऊंगा।

इतना कहकर तेजसिंह ने तीर तरकस में रख लिया और कमान बगल में लटकाने के बाद ऐयारी के बटुए में से एक छोटा-सा लोहे का गोला निकालकर सामने खड़े हो गये और धनपत को वह गोला दिखाकर बोले, ''तुम लोगों के लिए यही बहुत है, मगर मैं फिर कहे देता हूं कि मुझ पर तलवार चलाकर भलाई की आशा मत रखना!''

धनपत - (मायारानी की तरफ इशारा करके) क्या तू जानता नहीं कि यह कौन हैं?

तेजसिंह - मैं तुम तीनों को खूब जानता हूं और यह भी जानता हूं कि मायारानी सैंतालीस नम्बर की कोठरी को पवित्र करके बेवा हो गई और इस बात को पांच वर्ष का जमाना हो गया।

इतना कहकर मुस्कुराते हुए तेजसिंह ने एक भेद की निगाह मायारानी पर डाली और देखा कि मायारानी का चेहरा पीला पड़ गया और शर्म से उसकी आंखें नीचे की तरफ झुकने लगीं। मगर यह अवस्था उसकी बहुत देर तक न रही, तेजसिंह के मुंह से बात निकलने के बाद जैसे ही लाडिली की ताज्जुब-भरी निगाह मायारानी पर पड़ी वैसे ही मायारानी ने अपने को सम्हालकर धनपत की तरफ देखा।

अब धनपत अपने को रोक न सकी, उसने घोड़ी बढ़ाकर तेजसिंह पर तलवार का वार किया। तेजसिंह ने फुर्ती से वार खाली देकर अपने को बचा लिया और वही लोहे का गोला धनपत की घोड़ी के सिर में इस जोर से मारा कि वह सम्हल न सकी और सिर हिलाकर जमीन पर गिर पड़ी। लोहे का गोला छिटककर दूर जा गिरा और तेजसिंह ने लपककर उसे उठा लिया।

आशा थी कि घोड़ी के गिरने से धनपत को भी कुछ चोट लगेगी मगर वह घोड़ी पर से उछल कुछ दूर जा रही और बड़ी चालाकी से गिरते-गिरते उसने अपने को बचा लिया। तेजसिंह फिर वही गोला लेकर सामने खड़े हो गए।

तेजसिंह - (गोला दिखाकर) इस गोले की करामात देखी अगर अबकी फिर वार करने का इरादा करेगी तो यह गोला तेरे घुटने पर बैठेगा और तुझे लंगड़ी होकर मायारानी का साथ देना पड़ेगा। मैं यह नहीं चाहता कि तुम लोगों को इस समय जान से मारूं मगर हां जिस काम के लिए आया हूं, उसे किए बिना लौट जाना भी मुनासिब नहीं समझता।

मायारानी - अच्छा बताओ, तुम हम लोगों के पीछे-पीछे क्यों आए हो और क्या चाहते हो

तेजसिंह - (लाडिली की तरफ इशारा करके) केवल इनसे एक बात कहनी है और कुछ नहीं।

लाडिली - कहो, क्या कहते हो?

तेजसिंह - मैं इस तरह नहीं कहना चाहता कि तुम्हारे सिवाय कोई दूसरा सुने, इन दोनों से अलग होकर सुन लो फिर मैं चला जाऊंगा। डरो मत, मैं दगाबाज नहीं हूं, यदि चाहूं तो ललकारकर तुम तीनों को यमलोक पहुंचा सकता हूं, मगर नहीं, तुमसे केवल एक बात कहने के लिए आया हूं जिसके सुनने का अधिकार सिवाय तुम्हारे और किसी को नहीं है।

कुछ सोचकर लाडिली वहां से हट गई और कुछ दूर जाकर तेजसिंह की तरफ देखने लगी मानो वह तेजसिंह की बात सुनने के लिए तैयार हो। तेजसिंह लाडिली के पास गए और बटुए में से एक चीठी निकाल उसके हाथ में देकर बोले, ''इसे जल्द पढ़ लो, देखो, मायारानी को इसका हाल न मालूम हो!''

लाडिली ने बड़े गौर से वह चीठी पढ़ी और इसके बाद टुकड़े-टुकड़े कर फेंक दी।

तेजसिंह - इसका जवाब?

लाडिली - केवल इतना ही कह देना कि 'बहुत अच्छा!'

अब तेजसिंह को ठहरने की कोई जरूरत न थी। उन्होंने उत्तर का रास्ता लिया, मगर घूम-घूमकर देखते जाते थे कि पीछे कोई आता तो नहीं। तेजसिंह के जाने के बाद मायारानी ने लाडिली से पूछा, ''वह चीठी किसकी थी और उसमें क्या लिखा था!'' लाडिली ने असल भेद तो छिपा रखा, मगर कोई विचित्र बात गढ़कर उस समय मायारानी की दिलजमई कर दी। 

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रचनाएँ
सम्पूर्ण चंद्रकांता संतति
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इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नवगढ और विजयगढ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ की राजकुमारी चंद्रकांता और नवगढ के राजकुमार वीरेन्द्र विक्रम को आपस में प्रेम है। लेकिन राज परिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नवगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का जिम्मेदार मानते है।
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चंद्रकांता संतति भाग -1

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नौगढ़ के राजा सुरेंद्रसिंह के लड़के वीरेंद्रसिंह की शादी विजयगढ़ के महाराज जयसिंह की लड़की चंद्रकांता के साथ हो गई। बारात वाले दिन तेजसिंह की आखिरी दिल्लगी के सबब चुनार के महाराज शिवदत्त को मशालची बनन

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भाग 2

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इस जगह पर थोड़ा-सा हाल महाराज शिवदत्त का भी बयान करना मुनासिब मालूम होता है। महाराज शिवदत्त को हर तरह से कुंअर वीरेंद्रसिंह के मुकाबिले में हार माननी पड़ी। लाचार उसने शहर छोड़ दिया और अपने कई पुराने ख

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भाग 3

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चुनारगढ़ किले के अंदर एक कमरे में महाराज सुरेंद्रसिंह, वीरेंद्रसिंह, जीतसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह बैठे हुए कुछ बातें कर रहे हैं। जीत - भैरो ने बड़ी होशियारी का काम किया कि अपन

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भाग 4

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खिदमतगार ने किले में पहुंचकर और यह सुनकर कि इस समय दोनों राजा एक ही जगह बैठे हैं कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब होने का हाल और सबब जो कुंअर आनंदसिंह की जुबानी सुना था महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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पंडित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और जगन्नाथ ज्योतिषी भैरोसिंह ऐयार को छुड़ाने के लिए शिवदत्तगढ़ की तरफ गए। हुक्म के मुताबिक कंचनसिंह सेनापति ने शेर वाले बाबाजी के पीछे जासूस भेजकर पता लग

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भाग 6

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बहुत-सी तकलीफें उठाकर महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह तथा इन्हीं की बदौलत चंद्रकांता, चपला, चंपा, तेजसिंह और देवीसिंह वगैरह ने थोड़े दिन खूब सुख लूटा मगर अब वह जमाना न रहा। सच है, सुख और दुख का पह

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भाग 7

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अपने भाई इंद्रजीतसिंह की जुदाई से व्याकुल हो उसी समय आनंदसिंह उस जंगल के बाहर हुए और मैदान में खड़े हो इधर - उधर निगाह दौड़ाने लगे। पश्चिम की तरफ दो औरतें घोड़ों पर सवार धीरे-धीरे जाती हुई दिखाई पड़ीं

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भाग 8

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अब थोड़ा-सा हाल शिवदत्तगढ़ का भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है। यह हम पहले लिख चुके हैं कि महाराज शिवदत्त को एक लड़का और एक लड़की भी हुई थी। इस समय लड़के की उम्र जिसका नाम भीमसेन है अठारह वर्ष की हो

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भाग 9

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भीमसेन के साथियों ने बहुत खोजा मगर भीमसेन का पता न लगा, लाचार कुछ रात आते-आते लौट आये और उसी समय महाराज शिवदत्त के पास जाकर अर्ज किया कि आज शिकार खेलने के लिए कुमार जंगल में गये थे, एक बनैले सूअर के प

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भाग 10

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अब हम अपने पाठकों को फिर उसी खोह में ले चलते हैं जिसमें कुंअर आनंदसिंह को बेहोश छोड़ आये हैं अथवा जिस खोह में जान बचाने वाले सिपाही के साथ पहुंचकर उन्होंने एक औरत को छुरे से लाश काटते देखा था और योगिन

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भाग 11

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सूर्य भगवान अस्त होने के लिए जल्दी कर रहे हैं, शाम की ठंडी हवा अपनी चाल दिखा रही है। आसमान साफ है क्योंकि अभी-अभी पानी बरस चुका है और पछुआ हवा ने रुई के पहल की तरह जमे हुए बादलों को तूम-तूमकर उड़ा दिय

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भाग 12

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अब हम आपको एक दूसरी सरजमीन में ले चलकर एक दूसरे ही रमणीक स्थान की सैर करा तथा इसके साथ-ही-साथ बड़े-बड़े ताज्जुब के खेल और अद्भुत बातों को दिखाकर अपने किस्से का सिलसिला दुरुस्त किया चाहते हैं। मगर यहां

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भाग 13

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दूसरे दिन खा-पीकर निश्चिंत होने के बाद दोपहर को जब दोनों एकांत में बैठे तो इंद्रजीतसिंह ने माधवी से कहा - ''अब मुझसे सब्र नहीं हो सकता, आज तुम्हारा ठीक-ठीक हाल सुने बिना कभी न मानूंगा और इससे बढ़कर न

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भाग 14

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इंद्रजीतसिंह ने दूसरे दिन पुनः नियत समय पर माधवी को जाने न दिया, आधी रात तक हंसी-दिल्लगी ही में काटी, इसके बाद दोनों अपने-अपने पलंग पर सो रहे। कुमार को तो खुटका लगा ही हुआ था कि आज वह काली औरत आवेगी इ

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भाग 15

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अब इस जगह थोड़ा-सा हाल इस राज्य का और साथ ही इस माधवी का भी लिख देना जरूरी है। किशोरी की मां अर्थात शिवदत्त की रानी दो बहिनें थीं। एक जिसका नाम कलावती था शिवदत्त के साथ ब्याही थी और दूसरी मायावती गया

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चंद्रकांता संतति दूसरा भाग -1

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घंटा भर दिन बाकी है। किशोरी अपने उसी बाग में जिसका कुछ हाल पीछे लिख चुके हैं कमरे की छत पर सात-आठ सखियों के बीच में उदास तकिए के सहारे बैठी आसमान की तरफ देख रही है। सुगंधित हवा के झोंके उसे खुश किया च

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भाग 2

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किशोरी खुशी-खुशी रथ पर सवार हुई और रथ तेजी से जाने लगा। वह कमला भी उसके साथ थी, इंद्रजीतसिंह के विषय में तरह-तरह की बातें कहकर उसका दिल बहलाती जाती थी। किशोरी भी बड़े प्रेम से उन बातों को सुनने में ली

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भाग 3

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सुबह का सुहावना समय भी बड़ा ही मजेदार होता है। जबर्दस्त भी परले सिरे का है। क्या मजाल कि इसकी अमलदारी में कोई धूम तो मचावे, इसके आने की खबर दो घंटे पहले ही से हो जाती है। वह देखिए आसमान के जगमगाते हुए

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि माधवी के यहां तीन आदमी अर्थात दीवान अग्निदत्त, कुबेरसिंह सेनापति और धर्मसिंह कोतवाल मुखिया थे और तीनों मिलकर माधवी के राज्य का आनंद लेते थे। इन तीनों में अग्निदत्त का दिन बहुत म

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भाग 5

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कमला को विश्वास हो गया कि किशोरी को कोई धोखा देकर ले भागा। वह उस बाग में बहुत देर तक न ठहरी, ऐयारी के सामान से दुरुस्त थी ही, एक लालटेन हाथ में लेकर वहां से चल पड़ी और बाग से बाहर हो चारों तरफ घूम-घूम

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भाग 6

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अभी तक उस रमणीक स्थान में विराज रहे हैं। जी कितना ही बेचैन क्यों न हो मगर उन्हें लाचार माधवी के साथ दिन काटना ही पड़ता है। खैर जो होगा देखा जायगा मगर इस समय दो पहर दिन बाकी रहने पर

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भाग 7

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आपस में लड़ने वाले दोनों भाइयों के साथ जाकर सुबह की सफेदी निकलने के साथ ही कोतवाल ने माधवी की सूरत देखी और यह समझकर कि दीवान साहब को छोड़ महारानी अब मुझसे प्रेम रखा चाहती है बहुत खुश हुआ। कोतवाल साहब

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भाग 8

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इस जगह उस तालाब का हाल लिखते हैं, जिसका जिक्र कई दफे ऊपर-पीछे आ चुका है, जिसमें एक औरत को गिरफ्तार करने के लिए योगिनी और वनचरी कूदी थीं, या जिसके किनारे बैठ हमारे ऐयारों ने माधवी के दीवान, कोतवाल और स

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अब जबर्दस्ती करने पर उतारू हुए और इस ताक में लगे कि माधवी सुरंग का ताला खोले और दीवान से मिलने के लिए महल में जाय तो मैं अपना रंग दिखाऊं। तिलोत्तमा के होशियार कर देने से माधवी भी चे

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जख्मी इंद्रजीतसिंह को लिए हुए उनके ऐयार लोग वहां से दूर निकल गये और बेचारी किशोरी को दुष्ट अग्निदत्त उठाकर अपने घर ले गया। यह सब हाल देख तिलोत्तमा वहां से चलती बनी और बाग के अंदर कमरे में पहुंची। देखा

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भाग 11

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हम ऊपर के बयान में सुबह का दृश्य लिखकर कह आये हैं कि राजा वीरेंद्रसिंह, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह सेना सहित किसी तरफ को जा रहे हैं। पाठक तो समझ ही गये होंगे कि इन्होंने जरूर किसी तरफ चढ़ाई की है और बे

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भाग 12

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आज पांच दिन के बाद देवीसिंह लौटकर आये हैं। जिस कमरे का हाल हम ऊपर लिख आए हैं उसी में राजा वीरेंद्रसिंह, उनके दोनों लड़के, भैरोसिंह, तारासिंह और कई सरदार लोग बैठे हैं। इंद्रजीतसिंह की तबीयत अब बहुत अच्

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तो किशोरी पर जी-जान से आशिक हो चुके थे। इस बीमारी की हालत में भी उसकी याद इन्हें सता रह थी और यह जानने के लिए बेचैन हो रहे थे कि उस पर क्या बीती, वह किस अवस्था में कहां है और अब उसक

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भाग 14

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है। गयाजी में हर मुहल्ले के चौकीदार ‘जागते रहियो, होशियार रहियो’ कह-कहकर इधर से उधर घूम रहे हैं। रात अंधेरी है, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ है। यहां का मुख्य स्थान विष्णु-पादु

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भाग 15

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राजा वीरेंद्रसिंह के चुनार चले जाने के बाद दोनों भाइयों को अपनी-अपनी फिक्र पैदा हुई। क्रुंअर आनंदसिंह किन्नरी की फिक्र में पड़े और कुंअर इंद्रजीतसिंह को राजगृही की फिक्र पैदा हुई। राजगृही को फतह कर ले

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भाग 16

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भैरोसिंह को राजगृही गये आज तीसरा दिन है। यहां का हाल-चाल अभी तक कुछ मालूम नहीं हुआ, इसी सोच में आधी रात के समय अपने कमरे में पलंग पर लेटे हुए कुंअर इंद्रजीतसिंह को नींद नहीं आ रही है। किशोरी की खयाली

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भाग 17

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मकान के अंदर कमला, इंद्रजीतसिंह और तारासिंह के पहुंचने के पहले ही हम अपने पाठकों को इस मकान में ले चलकर यहां की कैफियत दिखाते हैं। इस मकान के अंदर छोटी-छोटी न मालूम कितनी कोठरियां हैं पर हमें उनसे को

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चंद्रकांता संतति तीसरा भाग - 1

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पाठक समझ ही गये होंगे कि रामशिला के सामने फलगू नदी के बीच में भयानक टीले के ऊपर रहने वाले बाबाजी के सामने जो दो औरतें गई थीं वे माधवी और उसकी सखी तिलोत्तमा थीं। बाबाजी ने उन दोनों से वादा किया था कि त

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भाग 2

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शिवदत्तगढ़ में महाराज शिवदत्त बैठा हुआ बेफिक्री का हलुआ नहीं उड़ाता। सच पूछिये तो तमाम जमाने की फिक्र ने उसको आ घेरा है। वह दिन-रात सोचा ही करता है और उसके ऐयारों और जासूसों का दिन दौड़ते ही बीतता है।

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भाग 3

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ऐयारों और थोड़े से लड़कों के सिवाय नाहरसिंह को साथ लिए हुए भीमसेन राजगृही की तरफ रवाना हुआ। उसका साथी नाहरसिंह बेशक लड़ाई के फन में बहुत ही जबर्दस्त था। उसे विश्वास था कि कोई अकेला आदमी लड़कर कभी मुझस

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भाग 4

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आधी रात का समय है और सन्नाटे की हवा चल रही है। बिल्लौर की तरह खूबी पैदा करने वाली चांदनी आशिकमिजाजों को सदा ही भली मालूम होती है लेकिन आज सर्दी ने उन्हें भी पस्त कर दिया, यह हिम्मत नहीं पड़ती कि जरा म

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भाग 5

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कुंअर इंद्रजीतसिंह नाहरसिंह और तारासिंह को साथ लिए घर आये और अपने छोटे भाई से सब हाल कहा। वे भी सुनकर बहुत उदास हुए और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। दोनों कुमार बड़े ही तरद्दुद में पड़े। अगर तारासि

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भाग 6

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इश्क भी क्या बुरी बला है! हाय, इस दुष्ट ने जिसका पीछा किया उसे खराब करके छोड़ दिया और उसके लिए दुनिया भर के अच्छे पदार्थ बेकाम और बुरे बना दिये। छिटकी हुई चांदनी उसके बदन में चिनगारियां पैदा करती है,

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भाग 7

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है, किशोरी अपने कमरे में मसहरी पर लेटी हुई न मालूम क्या-क्या सोच रही है, हां उसकी डबडबाई हुई आंखें जरूर इस बात की खबर देती हैं कि उसके दिल में किसी तरह का द्वंद्व मचा हुआ है।

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भाग 8

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रोहतासगढ़ किले के सामने पहाड़ी से कुछ दूर हटकर वीरेंद्रसिंह का लश्कर पड़ा हुआ है। चारों तरफ फौजी आदमी अपने-अपने काम में लगे हुए दिखाई देते हैं। कुछ फौज आ चुकी और बराबर चली ही आती है। बीच में राजा वीरे

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भाग 9

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आधी रात का समय है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, राजा वीरेंद्रसिंह के लश्कर में पहरा देने वालों के सिवाय सभी आराम की नींद सोये हुए हें, हां थोड़े से फौजी आदमियों का सोना कुछ विचित्र ढंग का है जिन्हें

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भाग 10

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कुछ रात जा चुकी है। रोहतासगढ़ किले के अंदर अपने मकान में बैसठी हुई बेचारी किशोरी न मालूम किस ध्यान में डूबी हुई है और क्या सोच रही है। कोई दूसरी औरत उसके पास नहीं है। आखिर किसी के पैर की आहट पा अपने ख

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भाग 11

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इसके बाद लाली ने दबी जुबान से किशोरी को कुछ समझाया और दो घंटे में फिर मिलने का वादा करके वहां से चली गयी। हम ऊपर कई दफे लिख आये हैं कि उस बाग में जिसमें किशोरी रहती थी एक तरफ ऐसी इमारत है जिसके दरवाज

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भाग 12

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तालाब के किनारे खड़े उस विचित्र इमारत और हसीन औरत की तरफ देख रहे हैं। उनका इरादा हुआ कि तैरकर उस मकान में चले जायं जो इस तालाब के बीचोंबीच में बना हुआ है, मगर उस नौजवान औरत ने इन्हे

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भाग 13

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आधी रात के समय सुनसान मैदान में दो कमसिन औरतें आपस में कुछ बातें करती चली जा रही हैं। राह में छोटे-छोटे टीले पड़ते हैं जिन्हें तकलीफ के साथ लांघने और दम फूलने पर कभी ठहरकर फिर चलने से मालूम होता है कि

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भाग 14

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रोहतासगढ़ किले के चारों तरफ घना जंगल है जिसमें साखू, शीशम, तेंदू, आसन और सलई इत्यादि के बड़े-बड़े पेड़ों की घनी छाया से एक तरह को अंधकार-सा हो रहा है। रात की तो बात ही दूसरी है वहां दिन को भी रास्ते य

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चंद्रकांता संतति चौथा भाग -1

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अब हम अपने किस्से को फिर उसी जगह से शुरू करते हैं जब रोहतासगढ़ किले के अंदर लाली को साथ लेकर किशोरी सेंध की राह उस अजायबघर में घुसी जिसका ताला हमेशा बंद रहता था और दरवाजे पर बराबर पहरा पड़ा रहता था। ह

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भाग 2

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कंचनसिंह के मारे जाने और कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब हो जाने से लश्कर में बड़ी हलचल मच गई। पता लगाने के लिए चारों तरफ जासूस भेजे गये। ऐयार लोग भी इधर-उधर फैल गये और फसाद मिटाने के लिए दिलोजान से कोशिश

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भाग 3

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तेजसिंह के लौट आने से राजा वीरेंद्रसिंह बहुत खुश हुए और उस समय तो उनकी खुशी और भी ज्यादे हो गई जब तेजसिंह ने रोहतासगढ़ आकर अपनी कार्रवाई करने का खुलासा हाल कहा। रामानंद की गिरफ्तारी का हाल सुनकर हंसते

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भाग 4

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अपनी कार्रवाई पूरी करने के बाद तेजसिंह ने सोचा कि अब असली रामानंद को तहखाने से ऐसी खूबसूरती के साथ निकाल लेना चाहिए जिससे महाराज को किसी तरह का शक न हो और यह गुमान भी न हो कि तहखाने में वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन दारोगा साहब अपनी गद्दी पर बैठे रोजनामचा देख रहे थे और उस तहखाने की पुरानी बातें पढ़-पढ़कर ताज्जुब कर रहे थे कि यकायक पीछे की कोठरी में खटके की आवाज आई। घबड़ाकर उठ खड़े हुए

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भाग 6

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अब हम अपने किस्से के सिलसिले को मोड़कर दूसरी तरफ झुकते हैं और पाठकों को पुण्यधाम काशी में ले चलकर संध्या के साथ गंगा के किनारे बैठी हुई एक नौजवान औरत की अवस्था पर ध्यान दिलाते हैं। सूर्य भगवान अस्त ह

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भाग 7

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लाल पोशाक वाली औरत की अद्भुत बातों ने नानक को हैरान कर दिया। वह घबड़ाकर चारों तरफ देखने लगा और डर के मारे उसकी अजब हालत हो गई। वह उस कुएं पर भी ठहर न सका और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता हुआ इस उम्मीद में गं

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भाग 8

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अब हम फिर उस महारानी के दरबार का हाल लिखते हैं जहां से नानक निकाला जाकर गंगा के किनारे पहुंचाया गया था। नानक को कोठरी में ढकेलकर बाबाजी लौटे तो महारानी के पास न जाकर दूसरी ही तरफ रवाना हुए और एक बारह

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भाग 9

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अब हम रोहतासगढ़ की तरफ चलते हैं और तहखाने में बेबस पड़ी हुई बेचारी किशोरी और कुंअर आनंदसिंह इत्यादि की सुध लेते हैं। जिस समय कुंअर आनंदसिंह, भैरोसिंह और तारासिंह तहखाने के अंदर गिरफ्तार हो गए और राजा

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भाग 10

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दूसरे दिन संध्या के समय राजा वीरेंद्रसिंह अपने खेमे में बैठे रोहतासगढ़ के बारे में बातचीत करने लगे। पंडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह, तारासिंह, ज्योतिषीजी, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह उनके पास बैठे हुए थे। अपने

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भाग 11

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अब तो कुंदन का हाल जरूर ही लिखना पड़ा, पाठक महाशय उसका हाल जानने के लिए उत्कंठित हो रहे होंगे। हमने कुंदन को रोहतासगढ़ महल के उसी बाग में छोड़ा है जिसमें किशोरी रहती थी। कुंदन इस फिक्र में लगी रहती थी

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भाग 12

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दूसरे दिन दो पहर दिन चढ़े बाद किशोरी की बेहोशी दूर हुई। उसने अपने को एक गहन वन के पेड़ों की झुरमुट में जमीन पर पड़े पाया और अपने पास कुंदन और कई आदमियों को देखा। बेचारी किशोरी इन थोड़े ही दिनों में तर

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चंद्रकांता संतति- पाँचवाँ भाग 1

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बेचारी किशोरी को चिता पर बैठाकर जिस समय दुष्टा धनपत ने आग लगाई, उसी समय बहुत-से आदमी, जो उसी जंगल में किसी जगह छिपे हुए थे, हाथों में नंगी तलवारें लिये 'मारो! मारो!' कहते हुए उन लोगों पर आ टूटे। उन लो

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भाग 2

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पाठक अभी भूले न होंगे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह कहां हैं। हम ऊपर लिख आए हैं कि उस मकान में जो तालाब के अन्दर बना हुआ था, कुंअर इन्द्रजीतसिंह दो औरतों को देखकर ताज्जुब में आ गए। कुमार उन औरतों का नाम नहीं

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भाग 3

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कुमार कई दिनों तक कमलिनी के यहां मेहमान रहे। उसने बड़ी खातिरदारी और नेकनीयती के साथ इन्हें रखा। इस मकान में कई लौंडियां भी थीं जो दिलोजान से कुमार की खिदमत किया करती थीं, मगर कभी-कभी वे सब दो-दो पहर क

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि देवीसिंह को साथ लेकर शेरसिह कुंअर इन्द्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए रोहतासगढ़ से रवाना हुए। शेरसिंह इस बात को तो जानते थे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह फलां जगह हैं परन्तु उन्हें तालाब के

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भाग 5

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अब हम फिर रोहतासगढ़ की तरफ मुड़ते हैं और वहां राजा वीरेन्द्रसिंह के ऊपर जो-जो आफतें आईं, उन्हें लिखकर इस किस्से के बहुत से भेद, जो अभी तक छिपे पड़े हैं, खोलते हैं। हम ऊपर लिख आये हैं कि रोहतासगढ़ फतह

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भाग 6

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आज बहुत दिनों के बाद हम कमला को आधी रात के समय रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर पूरब तरफ वाले जंगल में घूमते देख रहे हैं। यहां से किले की दीवार बहुत दूर और ऊंचे पर है। कमला न मालूम किस फिक्र में है या क्या ढूं

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भाग 7

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रोहतासगढ़ फतह होने की खबर लेकर भैरोसिंह चुनार पहुंचे और उसके दो ही तीन दिन बाद राजा दिग्विजयसिंह की बेईमानी की खबर लेकर कई सवार भी जा पहुंचे। इस समाचार के पहुंचते ही चुनारगढ़ में खलबली पड़ गई। फौज के

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भाग 8

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बहुत दिनों से कामिनी का हाल कुछ भी मालूम न हुआ। आज उसकी सुध लेना भी मुनासिब है। आपको याद होगा कि जब कामिनी को साथ लेकर कमला अपने चाचा शेरसिंह से मिलने के लिए उजाड़ खंडहर और तहखाने में गई थी तो वहां से

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भाग 9

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गिल्लन को साथ लिये हुए बीबी गौहर रोहतासगढ़ किले के अन्दर जा पहुंची। किले के अन्दर जाने में किसी तरह का जाल न फैलाना पड़ा और न किसी तरह की कठिनाई हुई। वह बेधड़के किले के उस फाटक पर चली आई जो शिवालय के

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भाग 10

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वीरेन्द्रसिंह के तीनों ऐयारों ने रोहतासगढ़ के किले के अन्दर पहुंचकर अंधेर मचाना शुरू किया। उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि अगर दिग्विजयसिंह हमारे मालिकों को नहीं छोड़ेगा तो ऐयारी के कायदे के बाहर काम कर

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भाग 11

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इस जगह मुख्तसर ही में यह भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है कि रोहतासगढ़ तहखाने में से राजा वीरेन्द्रसिंह, कुंअर आनन्दसिंह और उनके ऐयार लोग क्योंकर छूटे और कहां गए। हम ऊपर लिख आए हैं कि जिस समय गौहर '

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भाग 12

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दो पहर दिन चढ़ने के पहले ही फौज लेकर नाहरसिंह रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर चढ़ गया। उस समय दुश्मनों ने लाचार होकर फाटक खोल दिया और लड़-भिड़कर जान देने पर तैयार हो गये। किले की कुल फौज फाटक पर उमड़ आई और फा

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भाग 13

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तहखाने में बैठी हुई कामिनी को जब किसी के आने की आहट मालूम हुई तब वह सीढ़ी की तरफ देखने लगी मगर जब उसे कई आदमियों के पैरों की धमधमाहट मालूम हुई तब वह घबड़ाई। उसका खयाल दुश्मनों की तरफ गया और वह अपने बच

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चंद्रकांता संतति छठवां भाग 1

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वे दोनों साधु, जो सन्दूक के अन्दर झांक न मालूम क्या देखकर बेहोश हो गए थे, थोड़ी देर बाद होश में आए और चीख-चीखकर रोने लगे। एक ने कहा, ''हाय-हाय इन्द्रजीतसिंह, तुम्हें क्या हो गया! तुमने तो किसी के साथ

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भाग 2

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इस समय शिवदत्त की खुशी का अन्दाज करना मुश्किल है और यह कोई ताज्जुब की बात भी नहीं है, क्योंकि लड़ाकों और दोस्त ऐयारों के सहित राजा वीरेन्द्रसिंह को उसने ऐसा बेबस कर दिया कि उन लोगों को जान बचाना कठिन

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भाग 3

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अब हम अपने पाठकों को फिर उस मैदान के बीच वाले अद्भुत मकान के पास ले चलते हैं जिसके अन्दर इन्द्रजीतसिंह, देवीसिंह, शेरसिंह और कमलिनी के सिपाही लोग जा फंसे थे अर्थात् कमन्द के सहारे दीवार पर चढ़कर अन्दर

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भाग 4

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अब तो मौसम में फर्क पड़ गया। ठंडी-ठंडी हवा जो कलेजे को दहला देती थी और बदन में कंपकंपी पैदा करती थी अब भली मालूम पड़ती है। वह धूप भी, जिसे देख चित्त प्रसन्न होता था और जो बदन में लगकर रग-रग से सर्दी न

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भाग 5

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रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज के सिवाय और किसी तरह की आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसे समय में काशी की तंग गलियों में दो आदमी, जिनमें एक औ

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भाग 6

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दूसरे दिन कुछ रात बीते कमलिनी फिर मनोरमा के मकान पर पहुंची। बाग के फाटक पर उसी दरबान को टहलते पाया जिससे कल बातचीत कर चुकी थी। इस समय बाग का फाटक खुला हुआ था और उस दरबान के अतिरिक्त और भी कई सिपाही वह

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आधी रात जा चुकी है। कमलिनी उस कमरे में, जो उसके सोने के लिए मुकर्रर किया गया था, चारपाई पर लेटी हुई करवटें बदल रही है क्योंकि उसकी आंखों में नींद का नामो-निशान नहीं है। उसके दिल में तरह-तरह की बातें प

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चंद्रकांता संतति सातवाँ भाग 1

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नागर थोड़ी दूर पश्चिम जाकर घूमी और फिर उस सड़क पर चलने लगी जो रोहतासगढ़ की तरफ गई थी। पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि नागर का दिल कितना मजबूत और कठोर था। उन दिनों जो रास्ता काशी से रोहतासगढ़ को जाता था, व

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भाग 2

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हम ऊपर लिख आए हैं कि राजा वीरेन्द्रसिंह तिलिस्मी खंडहर से (जिसमें दोनों कुमार और तारासिंह इत्यादि गिरफ्तार हो गए थे) निकलकर रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए तो तेजसिंह उनसे कुछ कह-सुनकर अलग हो गए और उनके सा

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भाग 3

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। तेजसिंह उसी दो नम्बर वाले कमरे के बाहर सहन में तकिया लगाये सो रहे हैं। चिराग बालने का कोई सामान यहां मौजूद नहीं जिससे रोशनी करते, पास में कोई आदमी नहीं जिससे दिल बहलात

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भाग 4

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शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ-कुछ लाली अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की हवा बदन में कंपकंपी

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पाठकों को याद होगा कि भूतनाथ को नागर ने एक पेड़ के साथ बांध रखा है। यद्यपि भूतनाथ ने अपनी चालाकी और तिलिस्मी खंजर की मदद से नागर को बेहोश कर दिया मगर देर तक उसके चिल्लाने पर भी वहां कोई उसका मददगार न

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मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग (तिलिस्मी बाग) में है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रखा है, मगर उस बाग में दो और

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चंद्रकांता संतति - आठवाँ भाग 1

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मायारानी की कमर में से ताली लेकर जब लाडिली चली गई तो उसके घंटे भर बाद मायारानी होश में आकर उठ बैठी। उसके बदन में कुछ-कुछ दर्द हो रहा था जिसका सबब वह समझ नहीं सकती थी। उसे फिर उन्हीं खयालों ने आकर घेर

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कैदखाने का हाल हम ऊपर लिख चुके हैं, पुनः लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। उस कैदखाने में कई कोठरियां थीं जिनमें से आठ कोठरियों में तो हमारे बहादुर लोग कैद थे और बाकी कोठरियां खाली थीं। कोई आश्चर्य नहीं, यद

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मायारानी उस बेचारे मुसीबत के मारे कैदी को रंज, डर और तरद्दुद की निगाहों से देख रही थी जबकि यह आवाज उसने सुनी, ''बेशक मायारानी की मौत आ गई!'' इस आवाज ने मायारानी को हद्द से ज्यादा बेचैन कर दिया। वह घबड

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भाग 4

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कमलिनी की आज्ञानुसार बेहोश नागर की गठरी पीठ पर लादे हुए भूतनाथ कमलिनी के उस तिलिस्मी मकान की तरफ रवाना हुआ जो एक तालाब के बीचोंबीच में था। इस समय उसकी चाल तेज थी और वह खुशी के मारे बहुत ही उमंग और लाप

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भाग 5

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दिन दो पहर से कुछ ज्यादा चढ़ चुका है मगर मायारानी को खाने-पीने की कुछ भी सुध नहीं है। पल-पल में उसकी परेशानी बढ़ती ही जाती है। यद्यपि बिहारीसिंह, हरनामसिंह और धनपत ये तीनों उसके पास मौजूद हैं परन्तु स

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भाग 6

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रात आधी जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, हवा भी एकदम बन्द है, यहां तक कि किसी पेड़ की एक पत्ती भी नहीं हिलती। आसमान में चांद तो नहीं दिखाई देता, मगर जंगल मैदान में चलने वाले मुसाफिरों को तार

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भाग 7

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राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ और भैरोसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ रवाना करके कमलिनी अपने साथियों को साथ लिए हुए मायारानी के तिलिस्मी बाग की तरफ रवाना हुई। इस समय रात नाममात्र को बाकी थी। प्राय

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भाग 8

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अपनी बहिन लाडिली, ऐयारों और दोनों कुमारों को साथ लेकर कमलिनी राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देवमन्दिर में कुछ दिन रहेगी। वहां रहकर ये लोग जो कुछ करेंगे, उ

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भाग 9

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। काशी में मनोरमा के मकान के अन्दर फर्श पर नागर बैठी हुई और उसके पास ही एक खूबसूरत नौजवान आदमी छोटे-छोटे तीन-चार तकियों का सहारा लगाये अधलेटा-सा पड़ा जमीन की तरफ देखता ह

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भाग 10

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दूसरे दिन आधी रात जाते-जाते भूतनाथ फिर उसी मकान में नागर के पास पहुंचा। इस समय नागर आराम से सोई न थी बल्कि न मालूम किस धुन और फिक्र में मकान की पिछली तरफ नजरबाग में टहल रही थी। भूतनाथ को देखते ही वह ह

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भाग 11

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ऊपर के बयान में जो कुछ लिख आये हैं उस बात को कई दिन बीत गये, आज भूतनाथ को हम फिर मायारानी के पास बैठे हुए देखते हैं। रंग-ढंग से जाना जाता है कि भूतनाथ की कार्रवाइयों से मायारानी बहुत ही प्रसन्न है और

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भाग 12

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आज से कुल आठ-दस दिन पहले मायारानी इतनी परेशान और घबड़ाई हुई थी कि जिसका कुछ हिसाब नहीं। वह जीते जी अपने को मुर्दा समझने लगी थी। राजा गोपालसिंह के छूट जाने के डर, चिन्ता, बेचैनी और घबड़ाहट ने चारों तरफ

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