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भाग 6

11 जून 2022

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अब हम अपने किस्से के सिलसिले को मोड़कर दूसरी तरफ झुकते हैं और पाठकों को पुण्यधाम काशी में ले चलकर संध्या के साथ गंगा के किनारे बैठी हुई एक नौजवान औरत की अवस्था पर ध्यान दिलाते हैं।

सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं, चारों तरफ अंधेरी घिरी आती है। गंगाजी शांत भाव से धीरे-धीरे बह रही हैं। आसमान पर छोटे-छोटे बादल के टुकड़े पूरब की तरफ से चले आकर पश्चिम की तरफ इकट्ठे हो रहे हैं। गंगा के किनारे ही पर एक नौजवान औरत जिसकी उम्र पंद्रह वर्ष से ज्यादे न होगी हथेली पर गाल रखे जल की तरफ देखती न मालूम क्या सोच रही है। इसमें कोई शक नहीं कि यह औरत नखशिख से दुरुस्त और खूबसूरत है मगर रंग इसका सांवला है, तो भी इसकी खूबसूरती और नजाकत में किसी तरह का बट्टा नहीं लगता। थोड़ी-थोड़ी देर पर यह औरत सिर उठाकर चारों तरफ देखती और फिर उसी तरह हथेली पर गाल रखकर कुछ सोचने लग जाती है।

इसके सामने ही गंगाजी में एक छोटा-सा बजड़ा खड़ा है जिस पर चार-पांच आदमी दिखाई दे रहे हैं और कुछ सफर का सामान और दो-चार हरबे भी मौजूद हैं।

थोड़ी देर में अंधेरा हो जाने पर वह औरत उठी, साथ ही बजड़े पर से दो सिपाही उतर आए और उसे सहारा देकर बजड़े पर ले गये। वह छत पर जा बैठी और किनारे की तरफ इस तरह देखने लगी जैसे किसी के आने की राह देख रही हो। बेशक ऐसा ही था, क्योंकि उसी समय हाथ में गठरी लटकाये एक आदमी आया जिसे देखते ही दो मल्लाह किनारे पर उतर आये, एक ने उसके हाथ से गठरी लेकर बजड़े की छत पर पहुंचा दिया और दूसरे ने उस आदमी को हाथ का हल्का सहारा देकर बजड़े पर चढ़ा दिया। वह भी छत पर उस औरत के सामने खड़ा हो गया और तब इशारे से पूछा कि 'अब क्या हुक्म होता है' जिसके जवाब में इशारे ही से उस औरत ने गंगा के उस पार की तरफ चलने को कहा। उस आदमी ने जो अभी आया था मांझियों को पुकारकर कहा कि बजड़ा उस पार ले चलो, इसके बाद अभी आए हुए आदमी और उस औरत में दो-चार बातें इशारे में हुईं जिसे हम कुछ नहीं समझे, हां इतना मालूम हो गया कि यह औरत गूंगी और बहरी है, मुंह से कुछ नहीं बोल सकती और न कान से कुछ सुन सकती है।

बजड़ा किनारे से खोला गया और पार की तरफ चला, चार मांझी डांड़ें लगाने लगे। वह औरत छत से उतरकर नीचे चली गई और मर्द भी अपनी गठरी जो लाया था लेकर छत से नीचे उतर आया। बजड़े में नीचे दो कोठरियां थीं, एक में सुंदर सफेद फर्श बिछा हुआ था और दूसरी में एक चारपाई बिछी और कुछ असबाब पड़ा हुआ था। यह औरत हाथ से कुछ इशारा करके फर्श पर बैठ गई और मर्द ने एक पटिया लकड़ी की और छोटी-सी टुकड़ी खड़िये की उसके सामने रख दी और आप भी बैठ गया और दोनों में बातचीत होने लगी मगर उसी लकड़ी की पटिया पर खड़िया से लिखकर। अब उन दोनों में जो बातचीत हुई हम नीचे लिखते हैं परंतु पाठक समझ रखें कि कुल बातचीत लिखकर हुई।

पहले उस औरत ने गठरी खोली और देखने लगी कि उसमें क्या है। पीतल का एक कलमदान निकला जिसे उस औरत ने खोला। पांच-सात चीठियां और पुर्जे निकले जिन्हें पढ़कर उसी तरह रख दिया और दूसरी चीजें देखने लगी। दो-चार तरह के रूमाल और कुछ पुराने सिक्के देखने के बाद टीन का एक बड़ा-सा डिब्बा खोला जिसके अंदर कोई ताज्जुब की चीज थी। डिब्बा खोलने के बाद पहले कुछ कपड़ा हटाया जो बेठन की तौर पर लगा हुआ था, इसके बाद झांककर उस चीज को देखा जो उस डिब्बे के अंदर थी।

न मालूम उस डिब्बे में क्या चीज थी कि जिसे देखते ही उस औरत की अवस्था बिल्कुल बदल गई। झांक के देखते ही वह हिचकी और पीछे की तरफ हट गई, पसीने से तर हो गई और बदन कांपने लगा, चेहरे पर हवाई उड़ने लगी और आंखें बंद हो गईं। उस आदमी ने फुर्ती से बेठन का कपड़ा डाल दिया और उस डिब्बे को उसी तरह बंद कर उस औरत के सामने से हटा लिया। उसी समय बजड़े के बाहर से एक आवाज आई, ''नानकजी!''

नानकप्रसाद उसी आदमी का नाम था जो गठरी लाया था। उसका कद न लंबा और न बहुत नाटा था। बदन मोटा, रंग गोरा और ऊपर के दांत कुछ खुड़बुड़े से थे। आवाज सुनते ही वह आदमी उठा और बाहर आया, मल्लाहों ने डांड़ लगाना बंद कर दिया था, और तीन सिपाही मुस्तैद दरवाजे पर खड़े थे।

नानक - (एक सिपाही से) क्या है?

सिपाही - (पार की तरफ इशारा करके) मुझे मालूम होता है कि उस पार बहुत से आदमी खड़े हैं। देखिए कभी-कभी बादल हट जाने से जब चंद्रमा की रोशनी पड़ती है तो साफ मालूम होता है कि वे लोग भी बहाव की तरफ हटे ही जाते हैं जिधर हमारा बजड़ा जा रहा है।

नानक - (गौर से देखकर) हां ठीक तो है।

सिपाही - क्या ठिकाना शायद हमारे दुश्मन ही हों।

नानक - कोई ताज्जुब नहीं, अच्छा तुम नाव को बहाव की तरफ जाने दो, पार मत चलो।

इतना कहकर नानकप्रसाद अंदर गया, तब तक औरत के भी हवास ठीक हो गये थे और वह उस टीन के डिब्बे की तरफ जो इस समय बंद था बड़े गौर से देख रही थी। नानक को देखकर उसने इशारे से पूछा, ''क्या है?''

इसके जवाब में नानक ने लकड़ी की पटिया पर खड़िया से लिखकर दिखाया कि ''पार की तरफ बहुत-से आदमी दिखाई पड़ते हैं, कौन ठिकाना शायद हमारे दुश्मन हों।''

औरत - (लिखकर) बजड़े को बहाव की तरफ जाने दो। सिपाहियों को कहो बंदूक लेकर तैयार रहें, अगर कोई जल में तैरकर यहां आता हुआ दिखाई पड़े तो बेशक गोली मार दें।

नानक - बहुत अच्छा।

नानक फिर बाहर आया और सिपाहियों को हुक्म सुनाकर भीतर चला गया। उस औरत ने अपने आंचल से एक ताली खोलकर नानक के हाथ में दी और इशारे से कहा कि इस टीन के डिब्बे को हमारे संदूक में रख दो।

नानक ने वैसा ही किया, दूसरी कोठरी में जिसमें पलंग बिछा हुआ था और कुछ असबाब और संदूक रखा हुआ था गया और उसी ताली से एक संदूक खोलकर वह टीन का डिब्बा रख दिया और उसी तरह ताला बंद कर ताली उस औरत के हवाले की। उसी समय बाहर से बंदूक की आवाज आई।

नानक ने तुरंत बाहर आकर पूछा, ''क्या है?''

सिपाही - देखिये कई आदमी तैरकर इधर आ रहे हैं।

दूसरा - मगर बंदूक की आवाज पाकर अब लौट चले।

नानक फिर अंदर गया और बाहर का हाल पटिया पर लिखकर औरत को समझाया। वह भी उठ खड़ी हुई और बाहर आकर पार की तरफ देखने लगी। घंटा भर यों ही गुजर गया और अब वे आदमी जो पार दिखाई दे रहे थे या तैरकर इस बजड़े की तरफ आ रहे थे कहीं चले गये, दिखाई नहीं देते। नानकप्रसाद को साथ आने का इशारा करके वह औरत फिर बजड़े के अंदर चली गई और पीछे नानक भी गया। उस गठरी में और जो-जो चीजें थीं वह गूंगी औरत देखने लगी। तीन-चार बेशकीमती मर्दाने कपड़ों के सिवाय और उस गठरी में कुछ भी न था। गठरी बांधकर एक किनारे रख दी गई और पटिया पर लिख-लिखकर दोनों में बातचीत होने लगी।

औरत - कलमदान में जो चीठियां हैं वे तुमने कहां से पार्ईं

नानक - उसी कलमदान में थीं।

औरत - और वह कलमदान कहां पर था

नानक - उसकी चारपाई के नीचे पड़ा हुआ था, घर में सन्नाटा था और कोई दिखाई न पड़ा, जो कुछ जल्दी में पाया ले आया।

औरत - खैर कोई हर्ज नहीं, हमें केवल उस टीन के डिब्बे से मतलब था। यह कलमदान मिल गया तो इन चीठी-पुर्जों से भी बहुत काम चलेगा।

इसके अलावे और कई बातें हुईं जिसके लिखने की यहां कोई जरूरत नहीं। पहर रात से ज्यादे जा चुकी थी जब वह औरत वहां से उठी और शमादान जो जल रहा था बुझा अपनी चारपाई पर जाकर लेट रही। नानक भी एक किनारे फर्श पर सो रहा और रात भर नाव बेखटके चली गई, कोई बात ऐसी नहीं हुई जो लिखने योग्य हो।

जब थोड़ी रात बाकी रही वह औरत अपनी चारपाई से उठी और खिड़की से बाहर झांककर देखने लगी। इस समय आसमान बिल्कुल साफ था, चंद्रमा के साथ ही साथ तारे भी समयानुसार अपनी चमक दिखा रहे थे और दो-तीन खिड़कियों की राह इस बजड़े के अंदर भी चांदनी आ रही थी। बल्कि जिस चारपाई पर वह औरत सोई हुई थी चंद्रमा की रोशनी अच्छी तरह पड़ रही थी। वह औरत धीरे से चारपाई के नीचे उतरी और उस संदूक को खोला जिसमें नानक का लाया हुआ टीन का डिब्बा रखवा दिया था। डिब्बा उसमें से निकालकर चारपाई पर रखा और संदूक बंद करने के बाद दूसरा संदूक खोलकर उसमें से एक मोमबत्ती निकाली और चारपाई पर आकर बैठ रही। मोमबत्ती में से मोम लेकर उसने टीन के डिब्बे की दरारों को अच्छी तरह बंद किया और हर एक जोड़ में मोम लगाया जिससे हवा तक भी उसके अंदर न जा सके। इस काम के बाद वह खिड़की के बाहर गर्दन निकालकर बैठी और किनारे की तरफ देखने लगी। दो मांझी धीरे-धीरे डांड़ खे रहे थे, जब वे थक जाते तो दूसरे दो को उठाकर उसी काम पर लगा देते और आप आराम करते।

सबेरा होते-होते वह नाव एक ऐसी जगह पहुंची जहां किनारे पर कुछ आबादी थी, बल्कि गंगा के किनारे ही एक ऊंचा शिवालय भी था और उतरकर गंगाजी में स्नान करने के लिए सीढ़ियां भी बनी हुई थीं। औरत ने उस मुकाम को अच्छी तरह देखा और जब वह बजड़ा उस शिवालय के ठीक सामने पहुंचा तब उसने टीन का डिब्बा जिसमें कोई अद्भुत वस्तु थी और जिसके सुराखों को उसने अच्छी तरह मोम से बंद कर दिया था जल में फेंक दिया और फिर अपनी चारपाई पर लेट रही। यह हाल किसी दूसरे को मालूम न हुआ। थोड़ी ही देर में वह आबादी पीछे रह गई और बजड़ा दूर निकल गया।

जब अच्छी तरह सबेरा हुआ और सूर्य की लालिमा निकल आई तो उस औरत के हुक्म के मुताबिक बजड़ा एक जंगल के किनारे पहुंचा। उस औरत ने किनारे-किनारे चलने का हुक्म दिया। यह किनारा इसी पार का था जिस तरफ काशी पड़ती है या जिस हिस्से से बजड़ा खोलकर सफर शुरू किया गया था।

बजड़ा किनारे-किनारे जाने लगा और वह औरत किनारे के दरख्तों को बड़े गौर से देखने लगी। जंगल गुंजान और रमणीक था, सुबह के सुहावने समय में तरह-तरह के पक्षी बोल रहे थे, हवा के झपेटों के साथ जंगली फूलों की मीठी खुशबू आ रही थी। वह औरत एक खिड़की में सिर रखे जंगल की शोभा देख रही थी। यकायक उसकी निगाह किसी चीज पर पड़ी जिसे देखते ही वह चौंकी और बाहर आकर बजड़ा रोकने और किनारे लगाने का इशारा करने लगी।

बजड़ा किनारे लगाया गया और वह गूंगी औरत अपने सिपाहियों को कुछ इशारा करके नानक को साथ लेकर नीचे उतरी।

घंटे भर तक वह जंगल में घूमती रही, इसी बीच में उसने अपने जरूरी काम और नहाने-धोने से छुट्टी पा ली और तब बजड़े में आकर कुछ भोजन करने के बाद उसने अपनी मर्दानी सूरत बनाई। चुस्त पायजामा, घुटने के ऊपर तक का चपकन, कमरबंद, सिर से बड़ा-सा मुंड़ासा बांधा और ढाल-तलवार-खंजर के अलावे एक छोटी-सी पिस्तौल जिसमें गोली भरी हुई थी कमर में छिपा और थोड़ी-सी गोली-बारूद भी पास रख बजड़े से उतरने के लिए तैयार हुई।

नानक ने उसकी ऐसी अवस्था देखी तो सामने अड़कर खड़ा हो गया और इशारे से पूछा कि अब हम क्या करें इसके जवाब में उस औरत ने पटिया और खड़िया मांगी और लिख-लिखकर दोनों में बातचीत होने लगी।

औरत - तुम इसी बजड़े पर अपने ठिकाने चले जाओ। मैं तुमसे आ मिलूंगी।

नानक - मैं किसी तरह तुम्हें अकेला नहीं छोड़ सकता, तुम खूब जानती हो कि तुम्हारे लिए मैंने कितनी तकलीफें उठाई हैं और नीच से नीच काम करने को तैयार रहा हूं।

औरत - तुम्हारा कहना ठीक है मगर मुझ गूंगी के साथ तुम्हारी जिंदगी खुशी से नहीं बीत सकती, हां, तुम्हारी मुहब्बत के बदले मैं तुम्हें अमीर किये देती हूं जिसके जरिये तुम खूबसूरत से खूबसूरत औरत ढूंढ़कर शादी कर सकते हो।

नानक - अफसोस, आज तुम इस तरह की नसीहत करने पर उतारू हुर्ई और मेरी सच्ची मुहब्बत का कुछ खयाल न किया। मुझे धन-दौलत की परवाह नहीं और न मुझे तुम्हारे गूंगी होने का रंज है बस मैं इस बारे में ज्यादे बातचीत नहीं करना चाहता, या तो मुझे कबूल करो या साफ जवाब दो ताकि मैं इसी जगह तुम्हारे सामने अपनी जान देकर हमेशा के लिए छुट्टी पाऊं। मैं लोगों के मुंह से यह नहीं सुना चाहता कि 'रामभोली के साथ तुम्हारी मुहब्बत सच्ची न थी और तुम कुछ न कर सके।'

रामभोली - (गूंगी औरत) अभी मैं अपने कामों से निश्चिंत नहीं हुई, जब आदमी बेफिक्र होता है तो शादी-ब्याह और हंसी-खुशी की बातें सूझती हैं, मगर इसमें शक नहीं कि तुम्हारी मुहब्बत सच्ची है और मैं तुम्हारी कद्र करती हूं।

नानक - जब तक तुम अपने कामों से छुट्टी नहीं पातीं मुझे अपने साथ रखो, मैं हर काम में तुम्हारी मदद करूंगा और जान तक दे देने को तैयार रहूंगा।

रामभोली - खैर मैं इस बात को मंजूर करती हूं, सिपाहियों को समझा दो कि बजड़े को ले जाएं और इसमें जो कुछ चीजें हैं अपनी हिफाजत में रखें, क्योंकि वह लोहे का डिब्बा भी जो तुम कल लाये थे मैं इसी नाव में छोड़े जाती हूं।

नानकप्रसाद खुशी के मारे ऐंठ गये। बाहर आकर सिपाहियों को बहुत कुछ समझाने-बुझाने के बाद आप भी हर तरह से लैस हो बदन पर हरबे लगा साथ चलने को तैयार हो गए। रामभोली और नानक बजड़े के नीचे उतरे। इशारा पाकर मांझियों ने बजड़ा खोल दिया और वह फिर बहाव की तरफ जाने लगा।

नानक को साथ लिए हुए रामभोली जंगल में घुसी। थोड़ी ही दूर जाकर वह एक ऐसी जगह पहुंची जहां बहुत-सी पगडंडियां थीं, खड़ी होकर चारों तरफ देखने लगी। उसकी निगाह एक कटे हुए साखू के पेड़ पर पड़ी जिसके पत्ते सूखकर गिर चुके थे। वह उस पेड़ के पास जाकर खड़ी हो गई और इस तरह चारों तरफ देखने लगी जैसे कोई निशान ढूंढ़ती हो। उस जगह की जमीन बहुत पथरीली और ऊंची-नीची थी। लगभग पचास गज की दूरी पर एक पत्थर का ढेर नजर आया जो आदमी के हाथ का बनाया हुआ मालूम होता था। वह उस पत्थर के ढेर के पास गई और दम लेने या सुस्ताने के लिए बैठ गई। नानक ने अपना कमरबंद खोला और एक पत्थर की चट्टान झाड़कर उसे बिछा दिया, रामभोली उसी पर जा बैठी और नानक को अपने पास बैठने का इशारा किया।

ये दोनों आदमी अभी सुस्ताये भी न थे कि सामने से एक सवार सुर्ख पोशाक पहिरे इन्हीं दोनों की तरफ आता हुआ दिखाई पड़ा। पास आने पर मालूम हुआ कि यह एक नौजवान औरत है जो बड़े ठाठ के साथ हरबे लगाये मर्दों की तरह घोड़े पर बैठी बहादुरी का नमूना दिखा रही है। वह रामभोली के पास आकर खड़ी हो गई और उस पर एक भेद वाली नजर डालकर हंसी। रामभोली ने भी उसकी हंसी का जवाब मुस्कराकर दिया और कनखियों से नानक की तरफ इशारा किया। उस औरत ने रामभोली को अपने पास बुलाया और जब वह घोड़े के पास जाकर खड़ी हो गई तो आप घोड़े से नीचे उतर पड़ी। कमर से एक छोटा-सा बटुआ खोलकर एक चीठी और एक अंगूठी निकाली जिस पर एक सुर्ख नगीना जड़ा हुआ था और रामभोली के हाथ में रख दिया।

रामभोली का चेहरा गवाही दे रहा था कि वह इस अंगूठी को पाकर हद से ज्यादे खुश हुई है। रामभोली ने इज्जत देने के ढंग पर उस अंगूठी को सिर से लगाया और इसके बाद अपनी अंगुली में पहन लिया, चीठी कमर में खोंसकर फुर्ती से उस घोड़े पर सवार हो गई और देखते ही देखते जंगल में घुसकर नजरों से गायब हो गई।

नानकप्रसाद यह तमाशा देख भौंचक-सा रह गया, कुछ करते-धरते बन न पड़ा। न मुंह से कोई आवाज निकली और न हाथ के इशारे ही से कुछ पूछ सका, पूछता भी तो किससे रामभोली ने तो नजर उठा के उसकी तरफ देखा तक नहीं। नानक बिल्कुल नहीं जानता था कि यह सुर्ख पोशाक वाली औरत कौन है, जो यकायक यहां आ पहुंची और जिसने इशारेबाजी करके रामभोली को अपने घोड़े पर सवार कर भगा दिया। वह औरत नानक के पास आई और हंस के बोली -

औरत - वह औरत जो तेरे साथ थी मेरे घोड़े पर सवार होकर चली गई, कोई हर्ज नहीं, मगर तू उदास क्यों हो गया क्या तुझसे और उससे कोई रिश्तेदारी थी?

नानक - रिश्तेदारी थी तो नहीं मगर होने वाली थी, तुमने सब चौपट कर दिया।

औरत - (मुस्कराकर) क्या उससे शादी करने की धुन समाई थी?

नानक - बेशक ऐसा ही था। वह मेरी हो चुकी थी, तुम नहीं जानती कि मैंने उसके लिए कैसी-कैसी तकलीफें उठाईं। अपने बाप-दादे की जमींदारी चौपट की और उसकी गुलामी करने पर तैयार हुआ।

औरत - (बैठकर) किसकी गुलामी?

नानक - उसी रामभोली की जो तुम्हारे घोड़े पर सवार होकर चली गई।

औरत - (चौंककर) क्या नाम लिया, जरा फिर तो कहो।

नानक - रामभोली।

औरत - (हंसकर) बहुत ठीक, तू मेरी सखी अर्थात उस औरत को कब से जानता है?

नानक - (कुछ चिढ़कर और मुंह बनाकर) उसे मैं लड़कपन से जानता हूं मगर तुम्हें सिवाय आज के कभी नहीं देखा, वह तुम्हारी सखी क्योंकर हो सकती है?

औरत - तू झूठा, बेवकूफ और उल्लू बल्कि उल्लू का इत्र है! तू मेरी सखी को क्या जाने, जब तू मुझे नहीं जानता तो उसे क्योंकर पहचान सकता है।

उस औरत की बातों ने नानक को आपे से बाहर कर दिया। वह एकदम चिढ़ गया और गुस्से में आकर म्यान से तलवार निकालकर बोला -

नानक - कम्बख्त औरत, मुझे बेवकूफ बताती है! जली-कटी बातें कहती है और मेरी आंखों में धूल डाला चाहती है! अभी तेरा सिर काट के फेंक देता हूं!!

औरत - (हंसकर) शाबाश, क्यों न हो, आप जवांमर्द जो ठहरे! (नानक के मुंह के पास चुटकियां बजाकर) चेत ऐंठासिंह, जरा होश की दवा कर!

अब नानकप्रसाद बर्दाश्त न कर सका और यह कहकर कि 'ले अपने किये का फल भोग!' उसने तलवार का वार उस औरत पर किया। औरत ने फुर्ती से अपने को बचा लिया और हाथ बढ़ा नानक की कलाई पकड़ जोर से ऐसा झटका दिया कि तलवार उसके हाथ से निकलकर दूर जा गिरी और नानक आश्चर्य में आकर उसका मुंह देखने लगा। औरत ने हंसकर नानक से कहा, ''बस इसी जवांमर्दी पर मेरी सखी से ब्याह करने का इरादा था! बस जा और हिजड़ों में मिलकर नाच कर!''

इतना कहकर औरत हट गई और पश्चिम की तरफ रवाना हुई। नानक का क्रोध अभी शांत नहीं हुआ था। उसने अपनी तलवार जो दूर पड़ी हुई थी उठाकर म्यान में रख ली और कुछ सोचता और दांत पीसता हुआ उस औरत के पीछे चला। वह औरत इस बात से भी होशियार थी कि नानक पीछे से आकर धोखे में तलवार न मारे, वह कनखियों से पीछे की तरफ देखती जाती थी।

थोड़ी दूर जाने के बाद वह औरत एक कुएं पर पहुंची जिसका संगीन चबूतरा एक पुर्से से कम ऊंचा न था। चारों तरफ चढ़ने के लिए सीढ़ियां बनी हुई थीं। कुआं बहुत बड़ा और खूबसूरत था। वह औरत कुएं पर चली गई और बैठकर धीरे-धीरे कुछ गाने लगी।

समय दोपहर का था, धूप खूब निकली थी, मगर इस जगह कुएं के चारों तरफ घने पेड़ों की ऐसी छाया थी और ठंडी-ठंडी हवा आ रही थी कि नानक की तबीयत खुश हो गई, क्रोध, रंज और बदला लेने का ध्यान बिल्कुल ही जाता रहा, तिस पर उस औरत की सुरीली आवाज ने और भी रंग जमाया। वह उस औरत के सामने जाकर बैठ गया और उसका मुंह देखने लगा। दो ही तीन तान लेकर वह औरत चुप हो गई और नानक से बोली -

औरत - अब तू मेरे पीछे-पीछे क्यों घूम रहा है जहां तेरा जी चाहे जा और अपना काम कर, व्यर्थ समय क्यों नष्ट करता है अब तुझे तेरी रामभोली किसी तरह नहीं मिल सकती, उसका ध्यान अपने दिल से दूर कर दे।

नानक - रामभोली झख मारेगी और मेरे पास आवेगी, वह मेरे कब्जे में है। उसकी एक ऐसी चीज मेरे पास है जिसे वह जीते जी कभी नहीं छोड़ सकती।

औरत - (हंसकर) इसमें कोई शक नहीं कि तू पागल है, तेरी बातें सुनने से हंसी आती है, खैर तू जाने, तेरा काम जाने मुझे इससे क्या मतलब!

इतना कहकर उस औरत ने कुएं में झांका और पुकारकर कहा, ''कूपदेव, मुझे प्यास लगी है, जरा पानी तो पिलाना।''

औरत की बात सुनकर नानक घबराया और जी में सोचने लगा कि यह अजब औरत है। कुएं पर हुकूमत चलाती है कि मुझे पानी पिला। यह औरत मुझे पागल कहती है मगर मैं इसी को पागल समझता हूं, भला कुआं इसे क्योंकर पानी पिलावेगा जो हो, मगर यह औरत खूबसूरत है और इसका गाना भी बहुत ही उम्दा है।

नानक इन बातों को सोच ही रहा था कि कोई चीज देखकर चौंक पड़ा बल्कि घबड़ाकर उठ खड़ा हुआ और कांपते हुए तथा डरी हुई सूरत से कुएं की तरफ देखने लगा। वह एक हाथ था जो चांदी के कटोरे में साफ और ठंडा जल लिए हुए कुएं के अंदर से निकला और इसी को देखकर नानक घबरा गया था।

वह हाथ किनारे आया, उस औरत ने कटोरा ले लिया और जल पीने के बाद कटोरा उसी हाथ पर रख दिया, हाथ कुएं के अंदर चला गया और वह औरत फिर उसी तरह गाने लगी। नानक ने अपने जी में कहा, ''नहीं-नहीं, यह औरत पागल नहीं बल्कि मैं ही पागल हूं, क्योंकि इसे अभी तक न पहचान सका। बेशक यह कोई गंधर्व या अप्सरा है, नहीं-नहीं देवनी है जो रूप बदलकर आई है तभी तो इसके बदन में इतनी ताकत है कि मेरी कलाई पकड़ और झटका देकर इसने तलवार गिरा दी। मगर रामभोली से इसका परिचय कहां हुआ'

गाते-गाते यकायक वह औरत उठ खड़ी हुई और बड़े जोर से चिल्लाकर उसी कुएं में कूद पड़ी। 

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रचनाएँ
सम्पूर्ण चंद्रकांता संतति
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इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नवगढ और विजयगढ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ की राजकुमारी चंद्रकांता और नवगढ के राजकुमार वीरेन्द्र विक्रम को आपस में प्रेम है। लेकिन राज परिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नवगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का जिम्मेदार मानते है।
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चंद्रकांता संतति भाग -1

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नौगढ़ के राजा सुरेंद्रसिंह के लड़के वीरेंद्रसिंह की शादी विजयगढ़ के महाराज जयसिंह की लड़की चंद्रकांता के साथ हो गई। बारात वाले दिन तेजसिंह की आखिरी दिल्लगी के सबब चुनार के महाराज शिवदत्त को मशालची बनन

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भाग 2

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इस जगह पर थोड़ा-सा हाल महाराज शिवदत्त का भी बयान करना मुनासिब मालूम होता है। महाराज शिवदत्त को हर तरह से कुंअर वीरेंद्रसिंह के मुकाबिले में हार माननी पड़ी। लाचार उसने शहर छोड़ दिया और अपने कई पुराने ख

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भाग 3

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चुनारगढ़ किले के अंदर एक कमरे में महाराज सुरेंद्रसिंह, वीरेंद्रसिंह, जीतसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह बैठे हुए कुछ बातें कर रहे हैं। जीत - भैरो ने बड़ी होशियारी का काम किया कि अपन

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भाग 4

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खिदमतगार ने किले में पहुंचकर और यह सुनकर कि इस समय दोनों राजा एक ही जगह बैठे हैं कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब होने का हाल और सबब जो कुंअर आनंदसिंह की जुबानी सुना था महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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पंडित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और जगन्नाथ ज्योतिषी भैरोसिंह ऐयार को छुड़ाने के लिए शिवदत्तगढ़ की तरफ गए। हुक्म के मुताबिक कंचनसिंह सेनापति ने शेर वाले बाबाजी के पीछे जासूस भेजकर पता लग

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भाग 6

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बहुत-सी तकलीफें उठाकर महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह तथा इन्हीं की बदौलत चंद्रकांता, चपला, चंपा, तेजसिंह और देवीसिंह वगैरह ने थोड़े दिन खूब सुख लूटा मगर अब वह जमाना न रहा। सच है, सुख और दुख का पह

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भाग 7

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अपने भाई इंद्रजीतसिंह की जुदाई से व्याकुल हो उसी समय आनंदसिंह उस जंगल के बाहर हुए और मैदान में खड़े हो इधर - उधर निगाह दौड़ाने लगे। पश्चिम की तरफ दो औरतें घोड़ों पर सवार धीरे-धीरे जाती हुई दिखाई पड़ीं

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भाग 8

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अब हम अपने पाठकों को फिर उसी खोह में ले चलते हैं जिसमें कुंअर आनंदसिंह को बेहोश छोड़ आये हैं अथवा जिस खोह में जान बचाने वाले सिपाही के साथ पहुंचकर उन्होंने एक औरत को छुरे से लाश काटते देखा था और योगिन

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भाग 11

11 जून 2022
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सूर्य भगवान अस्त होने के लिए जल्दी कर रहे हैं, शाम की ठंडी हवा अपनी चाल दिखा रही है। आसमान साफ है क्योंकि अभी-अभी पानी बरस चुका है और पछुआ हवा ने रुई के पहल की तरह जमे हुए बादलों को तूम-तूमकर उड़ा दिय

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भाग 12

11 जून 2022
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अब हम आपको एक दूसरी सरजमीन में ले चलकर एक दूसरे ही रमणीक स्थान की सैर करा तथा इसके साथ-ही-साथ बड़े-बड़े ताज्जुब के खेल और अद्भुत बातों को दिखाकर अपने किस्से का सिलसिला दुरुस्त किया चाहते हैं। मगर यहां

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भाग 13

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दूसरे दिन खा-पीकर निश्चिंत होने के बाद दोपहर को जब दोनों एकांत में बैठे तो इंद्रजीतसिंह ने माधवी से कहा - ''अब मुझसे सब्र नहीं हो सकता, आज तुम्हारा ठीक-ठीक हाल सुने बिना कभी न मानूंगा और इससे बढ़कर न

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भाग 14

11 जून 2022
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इंद्रजीतसिंह ने दूसरे दिन पुनः नियत समय पर माधवी को जाने न दिया, आधी रात तक हंसी-दिल्लगी ही में काटी, इसके बाद दोनों अपने-अपने पलंग पर सो रहे। कुमार को तो खुटका लगा ही हुआ था कि आज वह काली औरत आवेगी इ

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भाग 15

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अब इस जगह थोड़ा-सा हाल इस राज्य का और साथ ही इस माधवी का भी लिख देना जरूरी है। किशोरी की मां अर्थात शिवदत्त की रानी दो बहिनें थीं। एक जिसका नाम कलावती था शिवदत्त के साथ ब्याही थी और दूसरी मायावती गया

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चंद्रकांता संतति दूसरा भाग -1

11 जून 2022
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घंटा भर दिन बाकी है। किशोरी अपने उसी बाग में जिसका कुछ हाल पीछे लिख चुके हैं कमरे की छत पर सात-आठ सखियों के बीच में उदास तकिए के सहारे बैठी आसमान की तरफ देख रही है। सुगंधित हवा के झोंके उसे खुश किया च

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भाग 2

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किशोरी खुशी-खुशी रथ पर सवार हुई और रथ तेजी से जाने लगा। वह कमला भी उसके साथ थी, इंद्रजीतसिंह के विषय में तरह-तरह की बातें कहकर उसका दिल बहलाती जाती थी। किशोरी भी बड़े प्रेम से उन बातों को सुनने में ली

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भाग 3

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सुबह का सुहावना समय भी बड़ा ही मजेदार होता है। जबर्दस्त भी परले सिरे का है। क्या मजाल कि इसकी अमलदारी में कोई धूम तो मचावे, इसके आने की खबर दो घंटे पहले ही से हो जाती है। वह देखिए आसमान के जगमगाते हुए

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि माधवी के यहां तीन आदमी अर्थात दीवान अग्निदत्त, कुबेरसिंह सेनापति और धर्मसिंह कोतवाल मुखिया थे और तीनों मिलकर माधवी के राज्य का आनंद लेते थे। इन तीनों में अग्निदत्त का दिन बहुत म

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भाग 5

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कमला को विश्वास हो गया कि किशोरी को कोई धोखा देकर ले भागा। वह उस बाग में बहुत देर तक न ठहरी, ऐयारी के सामान से दुरुस्त थी ही, एक लालटेन हाथ में लेकर वहां से चल पड़ी और बाग से बाहर हो चारों तरफ घूम-घूम

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भाग 6

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अभी तक उस रमणीक स्थान में विराज रहे हैं। जी कितना ही बेचैन क्यों न हो मगर उन्हें लाचार माधवी के साथ दिन काटना ही पड़ता है। खैर जो होगा देखा जायगा मगर इस समय दो पहर दिन बाकी रहने पर

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भाग 7

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आपस में लड़ने वाले दोनों भाइयों के साथ जाकर सुबह की सफेदी निकलने के साथ ही कोतवाल ने माधवी की सूरत देखी और यह समझकर कि दीवान साहब को छोड़ महारानी अब मुझसे प्रेम रखा चाहती है बहुत खुश हुआ। कोतवाल साहब

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भाग 8

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इस जगह उस तालाब का हाल लिखते हैं, जिसका जिक्र कई दफे ऊपर-पीछे आ चुका है, जिसमें एक औरत को गिरफ्तार करने के लिए योगिनी और वनचरी कूदी थीं, या जिसके किनारे बैठ हमारे ऐयारों ने माधवी के दीवान, कोतवाल और स

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भाग 9

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अब जबर्दस्ती करने पर उतारू हुए और इस ताक में लगे कि माधवी सुरंग का ताला खोले और दीवान से मिलने के लिए महल में जाय तो मैं अपना रंग दिखाऊं। तिलोत्तमा के होशियार कर देने से माधवी भी चे

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भाग 10

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जख्मी इंद्रजीतसिंह को लिए हुए उनके ऐयार लोग वहां से दूर निकल गये और बेचारी किशोरी को दुष्ट अग्निदत्त उठाकर अपने घर ले गया। यह सब हाल देख तिलोत्तमा वहां से चलती बनी और बाग के अंदर कमरे में पहुंची। देखा

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भाग 11

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हम ऊपर के बयान में सुबह का दृश्य लिखकर कह आये हैं कि राजा वीरेंद्रसिंह, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह सेना सहित किसी तरफ को जा रहे हैं। पाठक तो समझ ही गये होंगे कि इन्होंने जरूर किसी तरफ चढ़ाई की है और बे

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भाग 12

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आज पांच दिन के बाद देवीसिंह लौटकर आये हैं। जिस कमरे का हाल हम ऊपर लिख आए हैं उसी में राजा वीरेंद्रसिंह, उनके दोनों लड़के, भैरोसिंह, तारासिंह और कई सरदार लोग बैठे हैं। इंद्रजीतसिंह की तबीयत अब बहुत अच्

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भाग 13

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तो किशोरी पर जी-जान से आशिक हो चुके थे। इस बीमारी की हालत में भी उसकी याद इन्हें सता रह थी और यह जानने के लिए बेचैन हो रहे थे कि उस पर क्या बीती, वह किस अवस्था में कहां है और अब उसक

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भाग 14

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है। गयाजी में हर मुहल्ले के चौकीदार ‘जागते रहियो, होशियार रहियो’ कह-कहकर इधर से उधर घूम रहे हैं। रात अंधेरी है, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ है। यहां का मुख्य स्थान विष्णु-पादु

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भाग 15

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राजा वीरेंद्रसिंह के चुनार चले जाने के बाद दोनों भाइयों को अपनी-अपनी फिक्र पैदा हुई। क्रुंअर आनंदसिंह किन्नरी की फिक्र में पड़े और कुंअर इंद्रजीतसिंह को राजगृही की फिक्र पैदा हुई। राजगृही को फतह कर ले

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भाग 16

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भैरोसिंह को राजगृही गये आज तीसरा दिन है। यहां का हाल-चाल अभी तक कुछ मालूम नहीं हुआ, इसी सोच में आधी रात के समय अपने कमरे में पलंग पर लेटे हुए कुंअर इंद्रजीतसिंह को नींद नहीं आ रही है। किशोरी की खयाली

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भाग 17

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मकान के अंदर कमला, इंद्रजीतसिंह और तारासिंह के पहुंचने के पहले ही हम अपने पाठकों को इस मकान में ले चलकर यहां की कैफियत दिखाते हैं। इस मकान के अंदर छोटी-छोटी न मालूम कितनी कोठरियां हैं पर हमें उनसे को

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चंद्रकांता संतति तीसरा भाग - 1

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पाठक समझ ही गये होंगे कि रामशिला के सामने फलगू नदी के बीच में भयानक टीले के ऊपर रहने वाले बाबाजी के सामने जो दो औरतें गई थीं वे माधवी और उसकी सखी तिलोत्तमा थीं। बाबाजी ने उन दोनों से वादा किया था कि त

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भाग 2

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शिवदत्तगढ़ में महाराज शिवदत्त बैठा हुआ बेफिक्री का हलुआ नहीं उड़ाता। सच पूछिये तो तमाम जमाने की फिक्र ने उसको आ घेरा है। वह दिन-रात सोचा ही करता है और उसके ऐयारों और जासूसों का दिन दौड़ते ही बीतता है।

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भाग 3

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ऐयारों और थोड़े से लड़कों के सिवाय नाहरसिंह को साथ लिए हुए भीमसेन राजगृही की तरफ रवाना हुआ। उसका साथी नाहरसिंह बेशक लड़ाई के फन में बहुत ही जबर्दस्त था। उसे विश्वास था कि कोई अकेला आदमी लड़कर कभी मुझस

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भाग 4

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आधी रात का समय है और सन्नाटे की हवा चल रही है। बिल्लौर की तरह खूबी पैदा करने वाली चांदनी आशिकमिजाजों को सदा ही भली मालूम होती है लेकिन आज सर्दी ने उन्हें भी पस्त कर दिया, यह हिम्मत नहीं पड़ती कि जरा म

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भाग 5

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कुंअर इंद्रजीतसिंह नाहरसिंह और तारासिंह को साथ लिए घर आये और अपने छोटे भाई से सब हाल कहा। वे भी सुनकर बहुत उदास हुए और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। दोनों कुमार बड़े ही तरद्दुद में पड़े। अगर तारासि

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भाग 6

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इश्क भी क्या बुरी बला है! हाय, इस दुष्ट ने जिसका पीछा किया उसे खराब करके छोड़ दिया और उसके लिए दुनिया भर के अच्छे पदार्थ बेकाम और बुरे बना दिये। छिटकी हुई चांदनी उसके बदन में चिनगारियां पैदा करती है,

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भाग 7

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है, किशोरी अपने कमरे में मसहरी पर लेटी हुई न मालूम क्या-क्या सोच रही है, हां उसकी डबडबाई हुई आंखें जरूर इस बात की खबर देती हैं कि उसके दिल में किसी तरह का द्वंद्व मचा हुआ है।

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भाग 8

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रोहतासगढ़ किले के सामने पहाड़ी से कुछ दूर हटकर वीरेंद्रसिंह का लश्कर पड़ा हुआ है। चारों तरफ फौजी आदमी अपने-अपने काम में लगे हुए दिखाई देते हैं। कुछ फौज आ चुकी और बराबर चली ही आती है। बीच में राजा वीरे

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भाग 9

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आधी रात का समय है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, राजा वीरेंद्रसिंह के लश्कर में पहरा देने वालों के सिवाय सभी आराम की नींद सोये हुए हें, हां थोड़े से फौजी आदमियों का सोना कुछ विचित्र ढंग का है जिन्हें

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भाग 10

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कुछ रात जा चुकी है। रोहतासगढ़ किले के अंदर अपने मकान में बैसठी हुई बेचारी किशोरी न मालूम किस ध्यान में डूबी हुई है और क्या सोच रही है। कोई दूसरी औरत उसके पास नहीं है। आखिर किसी के पैर की आहट पा अपने ख

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भाग 11

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इसके बाद लाली ने दबी जुबान से किशोरी को कुछ समझाया और दो घंटे में फिर मिलने का वादा करके वहां से चली गयी। हम ऊपर कई दफे लिख आये हैं कि उस बाग में जिसमें किशोरी रहती थी एक तरफ ऐसी इमारत है जिसके दरवाज

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भाग 12

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तालाब के किनारे खड़े उस विचित्र इमारत और हसीन औरत की तरफ देख रहे हैं। उनका इरादा हुआ कि तैरकर उस मकान में चले जायं जो इस तालाब के बीचोंबीच में बना हुआ है, मगर उस नौजवान औरत ने इन्हे

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भाग 13

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आधी रात के समय सुनसान मैदान में दो कमसिन औरतें आपस में कुछ बातें करती चली जा रही हैं। राह में छोटे-छोटे टीले पड़ते हैं जिन्हें तकलीफ के साथ लांघने और दम फूलने पर कभी ठहरकर फिर चलने से मालूम होता है कि

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भाग 14

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रोहतासगढ़ किले के चारों तरफ घना जंगल है जिसमें साखू, शीशम, तेंदू, आसन और सलई इत्यादि के बड़े-बड़े पेड़ों की घनी छाया से एक तरह को अंधकार-सा हो रहा है। रात की तो बात ही दूसरी है वहां दिन को भी रास्ते य

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चंद्रकांता संतति चौथा भाग -1

11 जून 2022
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अब हम अपने किस्से को फिर उसी जगह से शुरू करते हैं जब रोहतासगढ़ किले के अंदर लाली को साथ लेकर किशोरी सेंध की राह उस अजायबघर में घुसी जिसका ताला हमेशा बंद रहता था और दरवाजे पर बराबर पहरा पड़ा रहता था। ह

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भाग 2

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कंचनसिंह के मारे जाने और कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब हो जाने से लश्कर में बड़ी हलचल मच गई। पता लगाने के लिए चारों तरफ जासूस भेजे गये। ऐयार लोग भी इधर-उधर फैल गये और फसाद मिटाने के लिए दिलोजान से कोशिश

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भाग 3

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तेजसिंह के लौट आने से राजा वीरेंद्रसिंह बहुत खुश हुए और उस समय तो उनकी खुशी और भी ज्यादे हो गई जब तेजसिंह ने रोहतासगढ़ आकर अपनी कार्रवाई करने का खुलासा हाल कहा। रामानंद की गिरफ्तारी का हाल सुनकर हंसते

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भाग 4

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अपनी कार्रवाई पूरी करने के बाद तेजसिंह ने सोचा कि अब असली रामानंद को तहखाने से ऐसी खूबसूरती के साथ निकाल लेना चाहिए जिससे महाराज को किसी तरह का शक न हो और यह गुमान भी न हो कि तहखाने में वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन दारोगा साहब अपनी गद्दी पर बैठे रोजनामचा देख रहे थे और उस तहखाने की पुरानी बातें पढ़-पढ़कर ताज्जुब कर रहे थे कि यकायक पीछे की कोठरी में खटके की आवाज आई। घबड़ाकर उठ खड़े हुए

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भाग 6

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अब हम अपने किस्से के सिलसिले को मोड़कर दूसरी तरफ झुकते हैं और पाठकों को पुण्यधाम काशी में ले चलकर संध्या के साथ गंगा के किनारे बैठी हुई एक नौजवान औरत की अवस्था पर ध्यान दिलाते हैं। सूर्य भगवान अस्त ह

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भाग 7

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लाल पोशाक वाली औरत की अद्भुत बातों ने नानक को हैरान कर दिया। वह घबड़ाकर चारों तरफ देखने लगा और डर के मारे उसकी अजब हालत हो गई। वह उस कुएं पर भी ठहर न सका और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता हुआ इस उम्मीद में गं

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भाग 8

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अब हम फिर उस महारानी के दरबार का हाल लिखते हैं जहां से नानक निकाला जाकर गंगा के किनारे पहुंचाया गया था। नानक को कोठरी में ढकेलकर बाबाजी लौटे तो महारानी के पास न जाकर दूसरी ही तरफ रवाना हुए और एक बारह

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भाग 9

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अब हम रोहतासगढ़ की तरफ चलते हैं और तहखाने में बेबस पड़ी हुई बेचारी किशोरी और कुंअर आनंदसिंह इत्यादि की सुध लेते हैं। जिस समय कुंअर आनंदसिंह, भैरोसिंह और तारासिंह तहखाने के अंदर गिरफ्तार हो गए और राजा

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भाग 10

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दूसरे दिन संध्या के समय राजा वीरेंद्रसिंह अपने खेमे में बैठे रोहतासगढ़ के बारे में बातचीत करने लगे। पंडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह, तारासिंह, ज्योतिषीजी, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह उनके पास बैठे हुए थे। अपने

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भाग 11

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अब तो कुंदन का हाल जरूर ही लिखना पड़ा, पाठक महाशय उसका हाल जानने के लिए उत्कंठित हो रहे होंगे। हमने कुंदन को रोहतासगढ़ महल के उसी बाग में छोड़ा है जिसमें किशोरी रहती थी। कुंदन इस फिक्र में लगी रहती थी

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भाग 12

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दूसरे दिन दो पहर दिन चढ़े बाद किशोरी की बेहोशी दूर हुई। उसने अपने को एक गहन वन के पेड़ों की झुरमुट में जमीन पर पड़े पाया और अपने पास कुंदन और कई आदमियों को देखा। बेचारी किशोरी इन थोड़े ही दिनों में तर

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चंद्रकांता संतति- पाँचवाँ भाग 1

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बेचारी किशोरी को चिता पर बैठाकर जिस समय दुष्टा धनपत ने आग लगाई, उसी समय बहुत-से आदमी, जो उसी जंगल में किसी जगह छिपे हुए थे, हाथों में नंगी तलवारें लिये 'मारो! मारो!' कहते हुए उन लोगों पर आ टूटे। उन लो

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भाग 2

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पाठक अभी भूले न होंगे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह कहां हैं। हम ऊपर लिख आए हैं कि उस मकान में जो तालाब के अन्दर बना हुआ था, कुंअर इन्द्रजीतसिंह दो औरतों को देखकर ताज्जुब में आ गए। कुमार उन औरतों का नाम नहीं

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भाग 3

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कुमार कई दिनों तक कमलिनी के यहां मेहमान रहे। उसने बड़ी खातिरदारी और नेकनीयती के साथ इन्हें रखा। इस मकान में कई लौंडियां भी थीं जो दिलोजान से कुमार की खिदमत किया करती थीं, मगर कभी-कभी वे सब दो-दो पहर क

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि देवीसिंह को साथ लेकर शेरसिह कुंअर इन्द्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए रोहतासगढ़ से रवाना हुए। शेरसिंह इस बात को तो जानते थे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह फलां जगह हैं परन्तु उन्हें तालाब के

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भाग 5

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अब हम फिर रोहतासगढ़ की तरफ मुड़ते हैं और वहां राजा वीरेन्द्रसिंह के ऊपर जो-जो आफतें आईं, उन्हें लिखकर इस किस्से के बहुत से भेद, जो अभी तक छिपे पड़े हैं, खोलते हैं। हम ऊपर लिख आये हैं कि रोहतासगढ़ फतह

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भाग 6

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आज बहुत दिनों के बाद हम कमला को आधी रात के समय रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर पूरब तरफ वाले जंगल में घूमते देख रहे हैं। यहां से किले की दीवार बहुत दूर और ऊंचे पर है। कमला न मालूम किस फिक्र में है या क्या ढूं

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भाग 7

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रोहतासगढ़ फतह होने की खबर लेकर भैरोसिंह चुनार पहुंचे और उसके दो ही तीन दिन बाद राजा दिग्विजयसिंह की बेईमानी की खबर लेकर कई सवार भी जा पहुंचे। इस समाचार के पहुंचते ही चुनारगढ़ में खलबली पड़ गई। फौज के

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भाग 8

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बहुत दिनों से कामिनी का हाल कुछ भी मालूम न हुआ। आज उसकी सुध लेना भी मुनासिब है। आपको याद होगा कि जब कामिनी को साथ लेकर कमला अपने चाचा शेरसिंह से मिलने के लिए उजाड़ खंडहर और तहखाने में गई थी तो वहां से

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भाग 9

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गिल्लन को साथ लिये हुए बीबी गौहर रोहतासगढ़ किले के अन्दर जा पहुंची। किले के अन्दर जाने में किसी तरह का जाल न फैलाना पड़ा और न किसी तरह की कठिनाई हुई। वह बेधड़के किले के उस फाटक पर चली आई जो शिवालय के

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भाग 10

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वीरेन्द्रसिंह के तीनों ऐयारों ने रोहतासगढ़ के किले के अन्दर पहुंचकर अंधेर मचाना शुरू किया। उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि अगर दिग्विजयसिंह हमारे मालिकों को नहीं छोड़ेगा तो ऐयारी के कायदे के बाहर काम कर

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भाग 11

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इस जगह मुख्तसर ही में यह भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है कि रोहतासगढ़ तहखाने में से राजा वीरेन्द्रसिंह, कुंअर आनन्दसिंह और उनके ऐयार लोग क्योंकर छूटे और कहां गए। हम ऊपर लिख आए हैं कि जिस समय गौहर '

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भाग 12

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दो पहर दिन चढ़ने के पहले ही फौज लेकर नाहरसिंह रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर चढ़ गया। उस समय दुश्मनों ने लाचार होकर फाटक खोल दिया और लड़-भिड़कर जान देने पर तैयार हो गये। किले की कुल फौज फाटक पर उमड़ आई और फा

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भाग 13

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तहखाने में बैठी हुई कामिनी को जब किसी के आने की आहट मालूम हुई तब वह सीढ़ी की तरफ देखने लगी मगर जब उसे कई आदमियों के पैरों की धमधमाहट मालूम हुई तब वह घबड़ाई। उसका खयाल दुश्मनों की तरफ गया और वह अपने बच

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चंद्रकांता संतति छठवां भाग 1

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वे दोनों साधु, जो सन्दूक के अन्दर झांक न मालूम क्या देखकर बेहोश हो गए थे, थोड़ी देर बाद होश में आए और चीख-चीखकर रोने लगे। एक ने कहा, ''हाय-हाय इन्द्रजीतसिंह, तुम्हें क्या हो गया! तुमने तो किसी के साथ

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भाग 2

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इस समय शिवदत्त की खुशी का अन्दाज करना मुश्किल है और यह कोई ताज्जुब की बात भी नहीं है, क्योंकि लड़ाकों और दोस्त ऐयारों के सहित राजा वीरेन्द्रसिंह को उसने ऐसा बेबस कर दिया कि उन लोगों को जान बचाना कठिन

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भाग 3

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अब हम अपने पाठकों को फिर उस मैदान के बीच वाले अद्भुत मकान के पास ले चलते हैं जिसके अन्दर इन्द्रजीतसिंह, देवीसिंह, शेरसिंह और कमलिनी के सिपाही लोग जा फंसे थे अर्थात् कमन्द के सहारे दीवार पर चढ़कर अन्दर

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भाग 4

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अब तो मौसम में फर्क पड़ गया। ठंडी-ठंडी हवा जो कलेजे को दहला देती थी और बदन में कंपकंपी पैदा करती थी अब भली मालूम पड़ती है। वह धूप भी, जिसे देख चित्त प्रसन्न होता था और जो बदन में लगकर रग-रग से सर्दी न

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भाग 5

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रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज के सिवाय और किसी तरह की आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसे समय में काशी की तंग गलियों में दो आदमी, जिनमें एक औ

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भाग 6

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दूसरे दिन कुछ रात बीते कमलिनी फिर मनोरमा के मकान पर पहुंची। बाग के फाटक पर उसी दरबान को टहलते पाया जिससे कल बातचीत कर चुकी थी। इस समय बाग का फाटक खुला हुआ था और उस दरबान के अतिरिक्त और भी कई सिपाही वह

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भाग 7

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आधी रात जा चुकी है। कमलिनी उस कमरे में, जो उसके सोने के लिए मुकर्रर किया गया था, चारपाई पर लेटी हुई करवटें बदल रही है क्योंकि उसकी आंखों में नींद का नामो-निशान नहीं है। उसके दिल में तरह-तरह की बातें प

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चंद्रकांता संतति सातवाँ भाग 1

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नागर थोड़ी दूर पश्चिम जाकर घूमी और फिर उस सड़क पर चलने लगी जो रोहतासगढ़ की तरफ गई थी। पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि नागर का दिल कितना मजबूत और कठोर था। उन दिनों जो रास्ता काशी से रोहतासगढ़ को जाता था, व

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भाग 2

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हम ऊपर लिख आए हैं कि राजा वीरेन्द्रसिंह तिलिस्मी खंडहर से (जिसमें दोनों कुमार और तारासिंह इत्यादि गिरफ्तार हो गए थे) निकलकर रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए तो तेजसिंह उनसे कुछ कह-सुनकर अलग हो गए और उनके सा

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भाग 3

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। तेजसिंह उसी दो नम्बर वाले कमरे के बाहर सहन में तकिया लगाये सो रहे हैं। चिराग बालने का कोई सामान यहां मौजूद नहीं जिससे रोशनी करते, पास में कोई आदमी नहीं जिससे दिल बहलात

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भाग 4

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शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ-कुछ लाली अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की हवा बदन में कंपकंपी

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भाग 5

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पाठकों को याद होगा कि भूतनाथ को नागर ने एक पेड़ के साथ बांध रखा है। यद्यपि भूतनाथ ने अपनी चालाकी और तिलिस्मी खंजर की मदद से नागर को बेहोश कर दिया मगर देर तक उसके चिल्लाने पर भी वहां कोई उसका मददगार न

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भाग 6

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मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग (तिलिस्मी बाग) में है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रखा है, मगर उस बाग में दो और

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चंद्रकांता संतति - आठवाँ भाग 1

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मायारानी की कमर में से ताली लेकर जब लाडिली चली गई तो उसके घंटे भर बाद मायारानी होश में आकर उठ बैठी। उसके बदन में कुछ-कुछ दर्द हो रहा था जिसका सबब वह समझ नहीं सकती थी। उसे फिर उन्हीं खयालों ने आकर घेर

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भाग 2

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कैदखाने का हाल हम ऊपर लिख चुके हैं, पुनः लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। उस कैदखाने में कई कोठरियां थीं जिनमें से आठ कोठरियों में तो हमारे बहादुर लोग कैद थे और बाकी कोठरियां खाली थीं। कोई आश्चर्य नहीं, यद

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भाग 3

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मायारानी उस बेचारे मुसीबत के मारे कैदी को रंज, डर और तरद्दुद की निगाहों से देख रही थी जबकि यह आवाज उसने सुनी, ''बेशक मायारानी की मौत आ गई!'' इस आवाज ने मायारानी को हद्द से ज्यादा बेचैन कर दिया। वह घबड

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भाग 4

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कमलिनी की आज्ञानुसार बेहोश नागर की गठरी पीठ पर लादे हुए भूतनाथ कमलिनी के उस तिलिस्मी मकान की तरफ रवाना हुआ जो एक तालाब के बीचोंबीच में था। इस समय उसकी चाल तेज थी और वह खुशी के मारे बहुत ही उमंग और लाप

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भाग 5

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दिन दो पहर से कुछ ज्यादा चढ़ चुका है मगर मायारानी को खाने-पीने की कुछ भी सुध नहीं है। पल-पल में उसकी परेशानी बढ़ती ही जाती है। यद्यपि बिहारीसिंह, हरनामसिंह और धनपत ये तीनों उसके पास मौजूद हैं परन्तु स

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भाग 6

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रात आधी जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, हवा भी एकदम बन्द है, यहां तक कि किसी पेड़ की एक पत्ती भी नहीं हिलती। आसमान में चांद तो नहीं दिखाई देता, मगर जंगल मैदान में चलने वाले मुसाफिरों को तार

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भाग 7

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राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ और भैरोसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ रवाना करके कमलिनी अपने साथियों को साथ लिए हुए मायारानी के तिलिस्मी बाग की तरफ रवाना हुई। इस समय रात नाममात्र को बाकी थी। प्राय

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भाग 8

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अपनी बहिन लाडिली, ऐयारों और दोनों कुमारों को साथ लेकर कमलिनी राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देवमन्दिर में कुछ दिन रहेगी। वहां रहकर ये लोग जो कुछ करेंगे, उ

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भाग 9

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। काशी में मनोरमा के मकान के अन्दर फर्श पर नागर बैठी हुई और उसके पास ही एक खूबसूरत नौजवान आदमी छोटे-छोटे तीन-चार तकियों का सहारा लगाये अधलेटा-सा पड़ा जमीन की तरफ देखता ह

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भाग 10

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दूसरे दिन आधी रात जाते-जाते भूतनाथ फिर उसी मकान में नागर के पास पहुंचा। इस समय नागर आराम से सोई न थी बल्कि न मालूम किस धुन और फिक्र में मकान की पिछली तरफ नजरबाग में टहल रही थी। भूतनाथ को देखते ही वह ह

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भाग 11

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ऊपर के बयान में जो कुछ लिख आये हैं उस बात को कई दिन बीत गये, आज भूतनाथ को हम फिर मायारानी के पास बैठे हुए देखते हैं। रंग-ढंग से जाना जाता है कि भूतनाथ की कार्रवाइयों से मायारानी बहुत ही प्रसन्न है और

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भाग 12

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आज से कुल आठ-दस दिन पहले मायारानी इतनी परेशान और घबड़ाई हुई थी कि जिसका कुछ हिसाब नहीं। वह जीते जी अपने को मुर्दा समझने लगी थी। राजा गोपालसिंह के छूट जाने के डर, चिन्ता, बेचैनी और घबड़ाहट ने चारों तरफ

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