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भाग 5

11 जून 2022

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दिन दो पहर से कुछ ज्यादा चढ़ चुका है मगर मायारानी को खाने-पीने की कुछ भी सुध नहीं है। पल-पल में उसकी परेशानी बढ़ती ही जाती है। यद्यपि बिहारीसिंह, हरनामसिंह और धनपत ये तीनों उसके पास मौजूद हैं परन्तु समझाने-बुझाने की तरफ किसी का ध्यान नहीं। उसे कोई भी नहीं दिलासा देता, कोई धीरज भी नहीं बंधाता और कोई भी यह विश्वास नहीं दिलाता कि तुझ पर आई हुई बला टल जायेगी, यहां तक कि किसी के मुंह से यह भी नहीं निकलता कि सब्र कर, हम लोग ऐयारी के फन में होशियार हैं, कोई-न-कोई काम अवश्य करेंगे।

ऊपर के बयानों को पढ़कर पाठक समझ ही गये होंगे कि मायारानी की तरह उसकी सखी धनपत और उसके दोनों ऐयार बिहारीसिंह तथा हरनामसिंह किसी भारी पाप के बोझ से दबे हुए हैं और ऊपर की घटनाओं ने उन तीनों की भी जान सुखा दी है। ये तीनों ही बदहोश और परेशान हो रहे हैं, इन तीनों को भी अपनी-अपनी फिक्र पड़ी है, और इस समय इन तीनों के अतिरिक्त कोई चौथा आदमी मायारानी के सामने नहीं है, फिर उसे कौन समझावे-बुझावे इनके सिवाय कोई चौथा आदमी उसके भेदों को जानता भी नहीं और न वह किसी को अपना भेद बताने का साहस कर सकती है। मायारानी की उदासी से चारों तरफ उदासी फैली हुई है। लौंडियों, नौकरों और सिपाहियों को भी चिन्ता ने आकर घेर लिया और कोई भी नहीं जानता कि क्या हुआ या क्या होने वाला है।

बहुत देर तक चुप रहने के बाद बिहारीसिंह ने सिर उठाया और मायारानी की तरफ देखकर कहा -

बिहारीसिंह - एक तो वीरेन्द्रसिंह के ऐयार स्वयं धुरंधर हैं जिनका मुकाबला कोई कर नहीं सकता, दूसरे कमलिनी की मदद से उन लोगों का साहस और भी बढ़ गया है।

धनपत - इसमें कोई सन्देह नहीं कि आजकल जो खराबी हो रही है वह सब कमलिनी ही की बदौलत है जिसका हम लोग कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते।

मायारानी - अफसोस, वह कम्बख्त इस तिलिस्मी बाग के अन्दर आकर अपना काम कर जाय और किसी को कानोंकान खबर न हो! हाय, न मालूम हम लोगों की क्या दुर्दशा होने वाली है! क्या करूं, कहां भागकर जाऊं, अपनी जान बचाने के लिए क्या उद्योग करूं?

धनपत - अभी एकदम से हताश न हो जाना चाहिए बल्कि देखना चाहिए कि इस मुनादी का क्या असर रिआया के दिल पर होता है।

मायारानी - हां, मुझे जरा फिर से समझा के कह तो सही कि मुनादी वाले को क्या कह के पुकारने की आज्ञा मेरी तरफ से दी गई है उस समय मैं आपे में बिल्कुल न थी इससे कुछ समझ में न आया।

धनपत - आपकी तरफ से मैंने दीवान साहब को हुक्म दिया जिसका बन्दोबस्त उन्होंने पूरा-पूरा किया। मेरे सामने ही उन्होंने चार डुग्गी वालों को तलब किया और समझाकर कह दिया कि वे लोग शहर भर में पुकारकर इस बात की मुनादी कर दें कि ''सरकारी ऐयारों को मालूम हुआ है कि वीरेन्द्रसिंह का एक ऐयार राजा गोपालसिंह की सूरत बनाकर शहर में आया है, जिन्हें बैकुण्ठ पधारे पांच वर्ष के लगभग हो चुके हैं और रियाया को भड़काना चाहता है। जो कोई उस कम्बख्त का सिर काटकर लावेगा उसे एक लाख रुपया इनाम दिया जायगा।''

मायारानी - ठीक है, मगर देखना चाहिए इसका नतीजा क्या निकलता है।

बिहारीसिंह - दो दिन के अन्दर ही अन्दर कुछ काम न चला तो समझ लेना चाहिए कि इस मुनादी का असर उलटा ही होगा।

मायारानी - खैर, जो कुछ नसीब में लिखा है भोगूंगी, इस समय बदहवास होने से तो काम नहीं चलेगा। मगर यह तो कहो कि तुम दोनों ऐयार ऐसी अवस्था में मेरी सहायता किस रीति से करोगे?

बिहारीसिंह - मेरे किये तो कुछ न होगा। मैं खूब समझ चुका हूं कि वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों तथा कमलिनी का मुकाबला मैं किसी तरह नहीं कर सकता। देखो, तेजसिंह ने मेरा मुंह ऐसा काला किया कि अभी तक रंग साफ नहीं होता। न मालूम उसे कैसे-कैसे मसाले याद हैं। इसके अतिरिक्त तुम्हें अपने लिए शायद कुछ उम्मीद हो, मगर मैं तो बिल्कुल ही नाउम्मीद हो चुका हूं और अब एक घंटे के लिए भी यहां ठहरना बुरा समझता हूं।

मायारानी - क्या तुम वास्तव में ऐसा ही करोगे जैसा कह चुके हो।

बिहारीसिंह - हां बेशक मैं अपनी राय पक्की कर चुका हूं। मैं इसी समय यहां से चला जाऊंगा और फिर मेरा पता कोई भी न लगा सकेगा।

मायारानी - (हरनामसिंह की तरफ देखके) और तुम्हारी क्या राय है?

हरनामसिंह - मेरी भी वही राय है जो बिहारीसिंह की है।

मायारानी - खूब समझ-बूझकर मेरी बातों का जवाब दो।

हरनामसिंह - जो कुछ समझना था समझ चुका।

मायारानी - (कुछ सोचकर) अच्छा मैं एक तरकीब बताती हूं, अगर उससे कुछ काम न चले तो फिर जो कुछ तुम्हारी समझ में आवे करना या जहां जी चाहे जाना।

बिहारीसिंह - अब उद्योग करना वृथा है, मेरे किए कुछ भी न होगा!

मायारानी - नहीं-नहीं, घबड़ाओ मत, तुम जानते हो कि मैं इस तिलिस्म की रानी हूं और इस तिलिस्म में बहुत-सी अद्भुत चीजें हैं। मैं तुम दोनों को एक चीज देती हूं जिसे देखकर और जिसका मतलब समझकर तुम दोनों स्वयं कहोगे कि ''कोई हर्ज नहीं, अब हम लोग बात की बात में लाखों आदमियों की जान ले सकते हैं।''

हरनामसिंह - बेशक तुम इस तिलिस्म की रानी हो और तुम्हारे अधिकार में बहुत-सी अनमोल चीजें हैं परन्तु जब तक हम लोग उस वस्तु को देख नहीं लेते जिसके विषय में तुम कह रही हो, तब तक किसी तरह का वादा नहीं कर सकते।

मायारानी - मैं भी तो यही कह रही हूं, तुम दोनों मेरे साथ चलो और उस चीज को खुद देख लो, फिर अगर मन भरे तो मेरा साथ दो, नहीं तो जहां जी चाहे चले जाओ।

हरनामसिंह - खैर, पहले देखें तो सही वह कौन-सी अनूठी चीज है, जिस पर तुम्हें इतना भरोसा है।

मायारानी - हां, तुम मेरे साथ चलो, मैं अभी वह चीज तुम दोनों के हवाले करती हूं।

मायारानी उठ खड़ी हुई और धनपत तथा दोनों ऐयारों को साथ लिए हुए वहां से रवाना हुई। बाग में घूमती वह उस बुर्ज के पास गई जो बाग के पिछले कोने में था और जिसमें लाडिली और कमलिनी की मुलाकात हुई थी। उस बुर्ज के बगल ही में एक और कोठरी स्याह पत्थर से बनी हुई थी मगर यह मालूम न होता था कि उसका दरवाजा किधर से है क्योंकि पिछली तरफ तो बाग की दीवार थी और बाकी तीनों तरफ वाली कोठरी की स्याह दीवारों में दरवाजे का कहीं कोई निशान न था। मायारानी ने बिहारी से कहा, ''कमन्द लगाओ क्योंकि हम लोगों को इस कोठरी की छत पर चलना होगा।'' बिहारीसिंह ने वैसा ही किया। सबके पहले मायारानी कमन्द के सहारे उस कोठरी पर चढ़ गई और उसके बाद धनपत और दोनों ऐयार भी उसी छत पर जा पहुंचे।

ऊपर जाकर दोनों ऐयारों ने देखा कि छत के बीचोंबीच में एक दरवाजा ठीक वैसा ही है जैसा प्रायः तहखानों के मुंह पर रहता है। वह दरवाजा लकड़ी का था मगर उस पर लोहे की चादर मढ़ी हुई थी और उसमें एक साधारण ताला लगा हुआ था। मायारानी ने हरनामसिंह से कहा, ''यह ताला मामूली है, इसे किसी तरह खोलना चाहिए।''

बिहारीसिंह ने ऐयारी के बटुए में से लोहे की एक टेढ़ी सलाई निकाली और उसे ताले के मुंह में डालकर ताला खोल डाला, इसके बाद दरवाजे का पल्ला हटाकर किनारे किया। मायारानी ने दोनों ऐयारों को अन्दर जाने के लिए कहा, मगर बिहारीसिंह ने इनकार किया और कहा, ''पहले आप इसके अन्दर उतरिये तब हम लोग इसके अन्दर जायेंगे क्योंकि यहां की अद्भुत बातों से हम लोग बहुत डर गये हैं।'' लाचार होकर मायारानी कमन्द के सहारे उस कोठरी के अन्दर उतर गई और इसके बाद धनपत और दोनों ऐयार भी नीचे उतर गये।

ऊपर का दरवाजा खुला रहने से कोठरी के अन्दर चांदना पहुंच रहा था। यह कोठरी लगभग बीस हाथ के चौड़ी और इससे कुछ ज्यादा लम्बी थी। यहां की जमीन लकड़ी की थी और उस पर किसी तरह का मसाला चढ़ा हुआ था। कोठरी के बीचो-बीच में एक छोटा-सा सन्दूक पड़ा हुआ था। धनपत का हाथ पकड़े मायारानी एक किनारे खड़ी हो गई और दोनों ऐयारों की तरफ देखकर बोली, ''तुम दोनों मिलकर इस सन्दूक को मेरे पास लाओ।''

हुक्म के मुताबिक दोनों ऐयार उस सन्दूक के पास गए, मगर सन्दूक का कुण्डा पकड़ के उठाने का इरादा किया ही था कि उस जमीन का वह गोल हिस्सा जिस पर दोनों ऐयार खड़े थे किवाड़ के पल्ले की तरह एक तरफ से अन्दर की तरफ यकायक धंस गया और वे दोनों ऐयार जमीन के अन्दर जा रहे, साथ ही एक आवाज ऐसी आई जिसके सुनने से धनपत को मालूम हो गया कि दोनों ऐयार नीचे जल की तह तक पहुंच गये।

इसके बाद जमीन का वह हिस्सा जो लकड़ी का था फिर बराबर हो गया और सन्दूक भी उसी तरह दिखाई देने लगा।

यह हाल देख धनपत डर के मारे कांपने लगी और मायारानी की तरफ देखके बोली, ''क्या यह कोई कुआं है'?

मायारानी - हां, यह कुआं है और ऐसे नमकहरामों को सजा देने के लिए बनाया गया है! दोनों बेईमान ऐयार मेरा साथ छोड़के अपनी जान बचाना चाहते थे। हरामजादे पाजी नालायक, अब अपनी सजा को पहुंचे।

धनपत - इतने दिनों तक आपके साथ रहने पर भी इस कुंए का हाल मुझे मालूम न था।

मायारानी - यहां के बहुत-से भेद अभी तुम्हें मालूम नहीं हैं, खैर, अब यहां से चलना चाहिए।

धनपत को साथ लिए मायारानी उस कोठरी के बाहर निकली और दरवाजा बन्द करने बाद कमन्द के सहारे उतरकर अपने खास सोने वाले कमरे में चली आई। मायारानी की लौंडियों ने मायारानी को दोनों ऐयारों और धनपत के साथ उस कोठरी की तरफ जाते देखा था मगर अब केवल धनपत को साथ लिए लौटते देख उनको ताज्जुब हुआ लेकिन डर के मारे कुछ पूछ न सकी।

संध्या का समय हो गया। मायारानी अपने कमरे में जाकर मसहरी पर लेट गई। उस समय बहुत-सी लौंडियां उसके सामने थीं मगर इशारा पाकर सब बाहर चली गईं केवल धनपत वहां रह गई।

धनपत - आपने बहुत जल्दी की, बेचारे ऐयारों की जान व्यर्थ ही गई।

मायारानी - वे दोनों कमीने इसी लायक थे। इसीलिए मैं उनसे बार-बार पूछ रही थी, जब देख लिया कि वे अपने विचार पर दृढ़ हैं तो लाचार...।

धनपत - खैर, जो कुछ हुआ सो अच्छा हुआ लेकिन अब क्या करना चाहिए अफसोस यह है कि ऐसे समय में बेचारी मनोरमा भी नहीं है।

मायारानी - (लम्बी सांस लेकर) हाय, बेचारी मनोरमा मेरी सच्ची सहायक थी पर उसे भी तेजसिंह ने गिरफ्तार कर लिया। इसी खबर के साथ नागर ने कहला भेजा था कि भूतनाथ के कागजात अपने साथ लेकर उसे छुड़ाने जाती हूं, मगर उस बात को भी बहुत दिन बीत गए और अभी तक मालूम न हुआ कि नागर के जाने का क्या नतीजा निकला। तेजसिंह ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया हो तो ताज्जुब नहीं, सच तो यह है कि भूतनाथ को मारने में मनोरमा ने बड़ी जल्दी की।

धनपत - बेशक भूतनाथ को मारने में उसने बड़ी भूल की, भूतनाथ से बहुत-कुछ काम निकलने की आशा थी!

इतने ही में बाहर से आवाज आई, ''थी नहीं बल्कि है!'' मायारानी ने दरवाजे की तरफ देखा तो नागर पर निगाह पड़ी।

मायारानी - आह, इस समय तेरा आना बहुत ही अच्छा हुआ, आ, मेरे पास आकर बैठ।

नागर - (मायारानी के पास बैठकर) मैं देखती हूं कि आज आपकी अवस्था बिल्कुल बदली हुई है। कहिये मिजाज तो अच्छा है?

मायारानी - अच्छा क्या है बस दम निकलने की देर है।

नागर - (घबड़ाकर) सो क्यों?

मायारानी - अब आई है तो सब-कुछ सुन ही लेगी, पर पहले अपना हाल तो कह कि मेरी प्यारी सखी मनोरमा को छुड़ा लाई या नहीं और चौखट के अन्दर पैर रखते ही तूने यह क्या कहा कि 'थी नहीं बल्कि है!' क्या भूतनाथ मारा नहीं गया क्या वह खबर झूठ थी।

नागर - हां वह खबर झूठ थी, मनोरमा ने भूतनाथ की जान नहीं ली और न उसे तेजसिंह ने गिरफ्तार किया है बल्कि वह कमलिनी की कैदी है।

मायारानी - तो वह औरत जो मनोरमा की खबर लेकर तेरे पास आई थी, झूठी थी?

नागर - वह स्वयं कमलिनी थी, मनोरमा को कैद कर चुकी थी और मुझे भी गिरफ्तार किया चाहती थी, वह तो असल में भूतनाथ के कागजात ले लेने का बन्दोबस्त कर रही थी बल्कि यों कहना चाहिए कि मैं उसके धोखे में आ गई थी। उसने मुझे गिरफ्तार कर लिया और भूतनाथ के कुल कागजात भी मुझसे लेकर जला दिये।

मायारानी - यह बहुत ही बुरा हुआ, अब भूतनाथ बिल्कुल हम लोगों के कब्जे से बाहर हो गया, खैर जीता है यही बहुत है। यह कह कि तेरी जान कैसे बची?

इसके बाद नागर ने अपना पूरा-पूरा हाल मायारानी के सामने कहा और उसने बड़े गौर से सुना। अन्त में नागर ने कहा, ''इस समय भूतनाथ को अपने साथ ले आई हूं जो जी से हम लोगों की मदद करने के लिए तैयार है।''

यह सुनकर कि भूतनाथ अब हम लोगों का पक्षपाती हो गया और नागर के साथ आया है मायारानी बहुत ही खुश हुई और उसे एक प्रकार की आशा बंध गई। उसने धनपत की तरफ देखकर कहा, ''ताज्जुब नहीं कि अब वह बला मेरे सिर से टल जाय जिसके टलने की आशा न थी।''

नागर - आपने अपना हाल तो कुछ कहा ही नहीं! यह जानने के लिए मेरा जी बेचैन हो रहा है कि आप क्यों उदास हो रही हैं और आप पर क्या बला आई है?

मायारानी - थोड़ी देर में तुझे सब-कुछ मालूम हो जायगा, पहले भूतनाथ को मेरे पास बुला ला, मैं स्वयं उससे कुछ बात किया चाहती हूं!

नागर - नहीं-नहीं, पहले आप अपना कुल हाल मुझसे कहिये क्योंकि मेरी तबीयत घबड़ा रही है।

मायारानी ने अपना बिल्कुल हाल अर्थात् तेजसिंह का पागल बनके आना, उन्हें बाग के तीसरे दर्जे में कैद करना, चण्डूल का यकायक पहुंचना और उसकी अद्भुत बातें तथा लाडिली का दगा दे जाना आदि नागर से कहा, मगर अपने पुराने कैदी के छुड़ाने का और दोनों ऐयारों के मार डालने का हाल छुपा रखा, हां उसके बदले में इतना कहा कि ''वीरेन्द्रसिंह का एक ऐयार मेरे पति की सूरत बनाकर आया है जिन्हें मरे पांच वर्ष के लगभग हुए, उसी को गिरफ्तार करने के लिए बिहारीसिंह और हरनामसिंह गये हैं।''

नागर - मगर यह तो कहिए कि चण्डूल ने आपके तथा बिहारीसिंह और हरनामसिंह के कान में क्या कहा था?

मायारानी - बहुत पूछने पर भी बिहारीसिंह और हरनामसिंह ने नहीं बताया कि चण्डूल ने उनके कान में क्या कहा था।

नागर - और आपके कान में उसने क्या कहा?

मायारानी - मेरे कान में तो उसने केवल इतना ही कहा था कि 'आठ दिन के अन्दर ही यह राज्य इन्द्रजीतसिंह का हो जायगा और तू मारी जायगी।' खैर, जो होगा देखा जायगा, अब भूतनाथ को यहां ले आ, उससे मिलने की बहुत जरूरत है।

नागर - बहुत अच्छा, तो क्या इसी जगह बुला लाऊं?

मायारानी - हां-हां, इसी जगह बुला ला। वह तो ऐयार है, उससे पर्दा काहे का।

नागर कुछ सोचती-विचारती वहां से रवाना हुई और भूतनाथ को जिसे बाग के फाटक पर छोड़ गई थी, साथ लेकर बाग के अन्दर घुसी। पहरे वालों ने किसी तरह का उज्र न किया और भूतनाथ इस बाग की हर एक चीज को अच्छी तरह देखता और ताज्जुब करता हुआ मायारानी के पास पहुंचा। नागर ने मायारानी की तरफ इशारा करके कहा, ''यही हम लोगों की मायारानी हैं।'' और भूतनाथ ने यह कहकर कि ''मैं बखूबी पहचानता हूं'' मायारानी को सलाम किया।

मायारानी ने भूतनाथ की उतनी ही खातिरदारी और चापलूसी की जितनी कोई खुदगर्ज आदमी उसकी खातिरदारी करता है जिससे कुछ मतलब निकालने की आवश्यकता होती है।

मायारानी - तुम्हारी स्त्री तुम्हें मिल गई?

भूतनाथ - जी हां, मिल गई और यह उस इनाम का पहला नमूना है जो आपकी ताबेदारी करने पर मुझे मिलने की आशा है।

मायारानी - नागर ने जो कुछ प्रतिज्ञा तुमसे की है मैं अवश्य पूरी करूंगी बल्कि उससे बहुत ज्यादा इनाम हर एक काम के बदले में दिया करूंगी।

भूतनाथ - मैं दिलोजान से आपके काम में उद्योग करूंगा और कमलिनी को बुरा धोखा दूंगा। वह जितना मुझ पर विश्वास रखती है, उतना ही पछतायेगी। परन्तु आपको कई बातों का खयाल रखना चाहिए।

मायारानी - वह क्या?

भूतनाथ - एक तो जाहिर में मैं कमलिनी का दोस्त बना रहूंगा, जिससे उसे मुझ पर किसी तरह का शक न हो, यदि आपका कोई जासूस मेरे विषय में आपको इस बात का सबूत दे कि मैं कमलिनी से मिला हुआ हूं तो आप किसी तरह की चिन्ता न कीजियेगा।

मायारानी - नहीं, नहीं, ऐसी छोटी-छोटी बातें मुझे समझाने की जरूरत नहीं है, मैं खूब जानती हूं कि बिना उससे मिले किसी तरह पर काम न चलेगा।

भूतनाथ - बेशक-बेशक, और इसी वजह से मैं बहुत छिपकर आपके पास आया करूंगा।

मायारानी - ऐसा होना ही चाहिए और दूसरी बात कौन-सी है

भूतनाथ - दूसरे यह कि मुझसे आप अपने भेद न छिपाया कीजिये क्योंकि ऐयार का काम बिना ठीक-ठीक भेद जाने नहीं चल सकता।

मायारानी - मुझे तुम पर पूरा भरोसा है, इसलिए मैं अपना कोई भेद तुमसे न छिपाऊंगी।

भूतनाथ - अच्छा, अब एक बात मैं आपसे और कहूंगा।

मायारानी - कहो!

भूतनाथ - नागर की जुबानी यह तो आपको मालूम ही हुआ होगा कि काशी में मनोरमा के तिलिस्मी मकान के अन्दर किशोरी के रखने का हाल अब कमलिनी जान गई है।

मायारानी - हां, नागर वह सब हाल मुझसे कह चुकी है।

भूतनाथ - ठीक है, तो आपने यह भी विचारा होगा कि किशोरी को उस मकान से निकालकर किसी दूसरे मकान में रखना चाहिए।

मायारानी - हां, मेरी तो यही राय है।

भूतनाथ - मगर नहीं, आप किशोरी को उसी मकान में रहने दीजिये, इस बात की खबर मैं किशोरी के पक्षपातियों को दूंगा जिसे सुनकर वे लोग किशोरी को छुड़ाने की नीयत से अवश्य उस मकान के अन्दर जायेंगे, उस समय उन लोगों को ऐसे ढंग से फंसा लूंगा कि किसी को पता न लगेगा और न इसी बात का शक किसी को होगा कि मैं आपका तरफदार हूं।

मायारानी - तुम्हारी यह राय बहुत अच्छी है, मैं भी इसे पसन्द करती हूं और ऐसा ही करूंगी।

भूतनाथ - अच्छा तो अब आप यह बताइये कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह वगैरह के साथ आपने क्या बर्ताव किया जो आपके यहां कैद हैं?

मायारानी - (ऊंची सांस लेकर) अफसोस, कमलिनी उन लोगों को यहां से छुड़ा ले गई और मेरी छोटी बहिन लाडिली भी मुझे धोखा दे गई जिसका खुलासा हाल मैं तुमसे कहती हूं।

मायारानी ने अपना कुल हाल जो नागर से कहा था, भूतनाथ को कह सुनाया। मगर, अपने पुराने कैदी का हाल और यह बात कि चण्डूल ने उसके कान में क्या कहा था, भूतनाथ से भी छिपा रखा और उसके बदले में वह कहा जो नागर से कहा था। मगर, भूतनाथ ने उस जगह मुस्करा दिया जिससे मायारानी समझ गई कि भूतनाथ को मेरी बातों में कुछ शक हुआ।

मायारानी - जो कुछ मैं कह चुकी हूं, उसमें एक बात झूठ थी और एक को मैंने छिपा लिया।

भूतनाथ - (हंसकर) वह बात शायद मुझसे कहने योग्य नहीं है!

मायारानी - हां, मगर अब तो मैं वायदा कर चुकी हूं कि तुमसे कोई बात न छिपाऊंगी। इसलिए यद्यपि उस बात का भेद अभी तक मैंने नागर को भी नहीं दिया, मगर तुमसे जरूर कहूंगी। परन्तु इसके पहले एक बात तुमसे पूछूंगी। क्योंकि बहुत देर से उसके पूछने की इच्छा लगी है, पर बातों का सिलसिला दूसरी तरफ हो जाने के कारण पूछ न सकी।

भूतनाथ - खैर, अब पूछ लीजिए।

मायारानी - मनोरमा को कमलिनी की कैद से छुड़ाने के लिए तुमने क्या विचारा है?

भूतनाथ - मनोरमा को यद्यपि मैं सहज ही छुड़ा सकता हूं, परन्तु उसे भी इस ढंग से छुड़ाना चाहता हूं कि कमलिनी को मुझ पर शक न हो। अगर जरा भी शक हो जायगा तो वह सम्हल जायगी क्योंकि वह बड़ी धूर्त और शैतान है।

मायारानी - सो तो ठीक है, मगर कोई बन्दोबस्त तो करना ही चाहिए।

भूतनाथ - हां-हां, उसका बन्दोबस्त बहुत जल्द किया जायगा।

मायारानी - अच्छा, तो अब वह भेद की बात भी तुमसे कहती हूं, जिसे मैं अभी तक बड़ी कोशिश से छिपाये हुए थी, यहां तक कि अपनी प्यारी सखी मनोरमा को भी उस समय से आज तक मैंने कुछ नहीं कहा था। (नागर की तरफ देखकर) लो, तुम भी सुन लो।

मायारानी दो घण्टे तक अपने गुप्त भेदों की बात भूतनाथ से कहती रही और वह गौर से सुनता रहा और अन्त में मायारानी को कुछ समझा-बुझाकर और इनाम में हीरे की एक माला पाकर वहां से रवाना हुआ। 

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रचनाएँ
सम्पूर्ण चंद्रकांता संतति
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इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नवगढ और विजयगढ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ की राजकुमारी चंद्रकांता और नवगढ के राजकुमार वीरेन्द्र विक्रम को आपस में प्रेम है। लेकिन राज परिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नवगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का जिम्मेदार मानते है।
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चंद्रकांता संतति भाग -1

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भाग 2

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इस जगह पर थोड़ा-सा हाल महाराज शिवदत्त का भी बयान करना मुनासिब मालूम होता है। महाराज शिवदत्त को हर तरह से कुंअर वीरेंद्रसिंह के मुकाबिले में हार माननी पड़ी। लाचार उसने शहर छोड़ दिया और अपने कई पुराने ख

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भाग 3

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चुनारगढ़ किले के अंदर एक कमरे में महाराज सुरेंद्रसिंह, वीरेंद्रसिंह, जीतसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह बैठे हुए कुछ बातें कर रहे हैं। जीत - भैरो ने बड़ी होशियारी का काम किया कि अपन

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भाग 4

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खिदमतगार ने किले में पहुंचकर और यह सुनकर कि इस समय दोनों राजा एक ही जगह बैठे हैं कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब होने का हाल और सबब जो कुंअर आनंदसिंह की जुबानी सुना था महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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पंडित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और जगन्नाथ ज्योतिषी भैरोसिंह ऐयार को छुड़ाने के लिए शिवदत्तगढ़ की तरफ गए। हुक्म के मुताबिक कंचनसिंह सेनापति ने शेर वाले बाबाजी के पीछे जासूस भेजकर पता लग

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बहुत-सी तकलीफें उठाकर महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह तथा इन्हीं की बदौलत चंद्रकांता, चपला, चंपा, तेजसिंह और देवीसिंह वगैरह ने थोड़े दिन खूब सुख लूटा मगर अब वह जमाना न रहा। सच है, सुख और दुख का पह

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भाग 8

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अब इस जगह थोड़ा-सा हाल इस राज्य का और साथ ही इस माधवी का भी लिख देना जरूरी है। किशोरी की मां अर्थात शिवदत्त की रानी दो बहिनें थीं। एक जिसका नाम कलावती था शिवदत्त के साथ ब्याही थी और दूसरी मायावती गया

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चंद्रकांता संतति दूसरा भाग -1

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घंटा भर दिन बाकी है। किशोरी अपने उसी बाग में जिसका कुछ हाल पीछे लिख चुके हैं कमरे की छत पर सात-आठ सखियों के बीच में उदास तकिए के सहारे बैठी आसमान की तरफ देख रही है। सुगंधित हवा के झोंके उसे खुश किया च

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भाग 2

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किशोरी खुशी-खुशी रथ पर सवार हुई और रथ तेजी से जाने लगा। वह कमला भी उसके साथ थी, इंद्रजीतसिंह के विषय में तरह-तरह की बातें कहकर उसका दिल बहलाती जाती थी। किशोरी भी बड़े प्रेम से उन बातों को सुनने में ली

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भाग 3

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सुबह का सुहावना समय भी बड़ा ही मजेदार होता है। जबर्दस्त भी परले सिरे का है। क्या मजाल कि इसकी अमलदारी में कोई धूम तो मचावे, इसके आने की खबर दो घंटे पहले ही से हो जाती है। वह देखिए आसमान के जगमगाते हुए

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि माधवी के यहां तीन आदमी अर्थात दीवान अग्निदत्त, कुबेरसिंह सेनापति और धर्मसिंह कोतवाल मुखिया थे और तीनों मिलकर माधवी के राज्य का आनंद लेते थे। इन तीनों में अग्निदत्त का दिन बहुत म

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भाग 5

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कमला को विश्वास हो गया कि किशोरी को कोई धोखा देकर ले भागा। वह उस बाग में बहुत देर तक न ठहरी, ऐयारी के सामान से दुरुस्त थी ही, एक लालटेन हाथ में लेकर वहां से चल पड़ी और बाग से बाहर हो चारों तरफ घूम-घूम

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भाग 6

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अभी तक उस रमणीक स्थान में विराज रहे हैं। जी कितना ही बेचैन क्यों न हो मगर उन्हें लाचार माधवी के साथ दिन काटना ही पड़ता है। खैर जो होगा देखा जायगा मगर इस समय दो पहर दिन बाकी रहने पर

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भाग 7

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आपस में लड़ने वाले दोनों भाइयों के साथ जाकर सुबह की सफेदी निकलने के साथ ही कोतवाल ने माधवी की सूरत देखी और यह समझकर कि दीवान साहब को छोड़ महारानी अब मुझसे प्रेम रखा चाहती है बहुत खुश हुआ। कोतवाल साहब

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भाग 8

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इस जगह उस तालाब का हाल लिखते हैं, जिसका जिक्र कई दफे ऊपर-पीछे आ चुका है, जिसमें एक औरत को गिरफ्तार करने के लिए योगिनी और वनचरी कूदी थीं, या जिसके किनारे बैठ हमारे ऐयारों ने माधवी के दीवान, कोतवाल और स

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भाग 9

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कुंअर इंद्रजीतसिंह अब जबर्दस्ती करने पर उतारू हुए और इस ताक में लगे कि माधवी सुरंग का ताला खोले और दीवान से मिलने के लिए महल में जाय तो मैं अपना रंग दिखाऊं। तिलोत्तमा के होशियार कर देने से माधवी भी चे

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भाग 10

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जख्मी इंद्रजीतसिंह को लिए हुए उनके ऐयार लोग वहां से दूर निकल गये और बेचारी किशोरी को दुष्ट अग्निदत्त उठाकर अपने घर ले गया। यह सब हाल देख तिलोत्तमा वहां से चलती बनी और बाग के अंदर कमरे में पहुंची। देखा

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भाग 11

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हम ऊपर के बयान में सुबह का दृश्य लिखकर कह आये हैं कि राजा वीरेंद्रसिंह, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह सेना सहित किसी तरफ को जा रहे हैं। पाठक तो समझ ही गये होंगे कि इन्होंने जरूर किसी तरफ चढ़ाई की है और बे

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भाग 12

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आज पांच दिन के बाद देवीसिंह लौटकर आये हैं। जिस कमरे का हाल हम ऊपर लिख आए हैं उसी में राजा वीरेंद्रसिंह, उनके दोनों लड़के, भैरोसिंह, तारासिंह और कई सरदार लोग बैठे हैं। इंद्रजीतसिंह की तबीयत अब बहुत अच्

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भाग 13

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तो किशोरी पर जी-जान से आशिक हो चुके थे। इस बीमारी की हालत में भी उसकी याद इन्हें सता रह थी और यह जानने के लिए बेचैन हो रहे थे कि उस पर क्या बीती, वह किस अवस्था में कहां है और अब उसक

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भाग 14

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है। गयाजी में हर मुहल्ले के चौकीदार ‘जागते रहियो, होशियार रहियो’ कह-कहकर इधर से उधर घूम रहे हैं। रात अंधेरी है, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ है। यहां का मुख्य स्थान विष्णु-पादु

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भाग 15

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राजा वीरेंद्रसिंह के चुनार चले जाने के बाद दोनों भाइयों को अपनी-अपनी फिक्र पैदा हुई। क्रुंअर आनंदसिंह किन्नरी की फिक्र में पड़े और कुंअर इंद्रजीतसिंह को राजगृही की फिक्र पैदा हुई। राजगृही को फतह कर ले

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भाग 16

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भैरोसिंह को राजगृही गये आज तीसरा दिन है। यहां का हाल-चाल अभी तक कुछ मालूम नहीं हुआ, इसी सोच में आधी रात के समय अपने कमरे में पलंग पर लेटे हुए कुंअर इंद्रजीतसिंह को नींद नहीं आ रही है। किशोरी की खयाली

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भाग 17

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मकान के अंदर कमला, इंद्रजीतसिंह और तारासिंह के पहुंचने के पहले ही हम अपने पाठकों को इस मकान में ले चलकर यहां की कैफियत दिखाते हैं। इस मकान के अंदर छोटी-छोटी न मालूम कितनी कोठरियां हैं पर हमें उनसे को

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चंद्रकांता संतति तीसरा भाग - 1

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पाठक समझ ही गये होंगे कि रामशिला के सामने फलगू नदी के बीच में भयानक टीले के ऊपर रहने वाले बाबाजी के सामने जो दो औरतें गई थीं वे माधवी और उसकी सखी तिलोत्तमा थीं। बाबाजी ने उन दोनों से वादा किया था कि त

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भाग 2

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शिवदत्तगढ़ में महाराज शिवदत्त बैठा हुआ बेफिक्री का हलुआ नहीं उड़ाता। सच पूछिये तो तमाम जमाने की फिक्र ने उसको आ घेरा है। वह दिन-रात सोचा ही करता है और उसके ऐयारों और जासूसों का दिन दौड़ते ही बीतता है।

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भाग 3

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ऐयारों और थोड़े से लड़कों के सिवाय नाहरसिंह को साथ लिए हुए भीमसेन राजगृही की तरफ रवाना हुआ। उसका साथी नाहरसिंह बेशक लड़ाई के फन में बहुत ही जबर्दस्त था। उसे विश्वास था कि कोई अकेला आदमी लड़कर कभी मुझस

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भाग 4

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आधी रात का समय है और सन्नाटे की हवा चल रही है। बिल्लौर की तरह खूबी पैदा करने वाली चांदनी आशिकमिजाजों को सदा ही भली मालूम होती है लेकिन आज सर्दी ने उन्हें भी पस्त कर दिया, यह हिम्मत नहीं पड़ती कि जरा म

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भाग 5

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कुंअर इंद्रजीतसिंह नाहरसिंह और तारासिंह को साथ लिए घर आये और अपने छोटे भाई से सब हाल कहा। वे भी सुनकर बहुत उदास हुए और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। दोनों कुमार बड़े ही तरद्दुद में पड़े। अगर तारासि

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भाग 6

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इश्क भी क्या बुरी बला है! हाय, इस दुष्ट ने जिसका पीछा किया उसे खराब करके छोड़ दिया और उसके लिए दुनिया भर के अच्छे पदार्थ बेकाम और बुरे बना दिये। छिटकी हुई चांदनी उसके बदन में चिनगारियां पैदा करती है,

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भाग 7

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आधी रात से ज्यादे जा चुकी है, किशोरी अपने कमरे में मसहरी पर लेटी हुई न मालूम क्या-क्या सोच रही है, हां उसकी डबडबाई हुई आंखें जरूर इस बात की खबर देती हैं कि उसके दिल में किसी तरह का द्वंद्व मचा हुआ है।

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भाग 8

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रोहतासगढ़ किले के सामने पहाड़ी से कुछ दूर हटकर वीरेंद्रसिंह का लश्कर पड़ा हुआ है। चारों तरफ फौजी आदमी अपने-अपने काम में लगे हुए दिखाई देते हैं। कुछ फौज आ चुकी और बराबर चली ही आती है। बीच में राजा वीरे

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भाग 9

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आधी रात का समय है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, राजा वीरेंद्रसिंह के लश्कर में पहरा देने वालों के सिवाय सभी आराम की नींद सोये हुए हें, हां थोड़े से फौजी आदमियों का सोना कुछ विचित्र ढंग का है जिन्हें

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भाग 10

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कुछ रात जा चुकी है। रोहतासगढ़ किले के अंदर अपने मकान में बैसठी हुई बेचारी किशोरी न मालूम किस ध्यान में डूबी हुई है और क्या सोच रही है। कोई दूसरी औरत उसके पास नहीं है। आखिर किसी के पैर की आहट पा अपने ख

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भाग 11

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इसके बाद लाली ने दबी जुबान से किशोरी को कुछ समझाया और दो घंटे में फिर मिलने का वादा करके वहां से चली गयी। हम ऊपर कई दफे लिख आये हैं कि उस बाग में जिसमें किशोरी रहती थी एक तरफ ऐसी इमारत है जिसके दरवाज

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भाग 12

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कुंअर इंद्रजीतसिंह तालाब के किनारे खड़े उस विचित्र इमारत और हसीन औरत की तरफ देख रहे हैं। उनका इरादा हुआ कि तैरकर उस मकान में चले जायं जो इस तालाब के बीचोंबीच में बना हुआ है, मगर उस नौजवान औरत ने इन्हे

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भाग 13

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आधी रात के समय सुनसान मैदान में दो कमसिन औरतें आपस में कुछ बातें करती चली जा रही हैं। राह में छोटे-छोटे टीले पड़ते हैं जिन्हें तकलीफ के साथ लांघने और दम फूलने पर कभी ठहरकर फिर चलने से मालूम होता है कि

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भाग 14

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रोहतासगढ़ किले के चारों तरफ घना जंगल है जिसमें साखू, शीशम, तेंदू, आसन और सलई इत्यादि के बड़े-बड़े पेड़ों की घनी छाया से एक तरह को अंधकार-सा हो रहा है। रात की तो बात ही दूसरी है वहां दिन को भी रास्ते य

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चंद्रकांता संतति चौथा भाग -1

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अब हम अपने किस्से को फिर उसी जगह से शुरू करते हैं जब रोहतासगढ़ किले के अंदर लाली को साथ लेकर किशोरी सेंध की राह उस अजायबघर में घुसी जिसका ताला हमेशा बंद रहता था और दरवाजे पर बराबर पहरा पड़ा रहता था। ह

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भाग 2

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कंचनसिंह के मारे जाने और कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब हो जाने से लश्कर में बड़ी हलचल मच गई। पता लगाने के लिए चारों तरफ जासूस भेजे गये। ऐयार लोग भी इधर-उधर फैल गये और फसाद मिटाने के लिए दिलोजान से कोशिश

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भाग 3

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तेजसिंह के लौट आने से राजा वीरेंद्रसिंह बहुत खुश हुए और उस समय तो उनकी खुशी और भी ज्यादे हो गई जब तेजसिंह ने रोहतासगढ़ आकर अपनी कार्रवाई करने का खुलासा हाल कहा। रामानंद की गिरफ्तारी का हाल सुनकर हंसते

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अपनी कार्रवाई पूरी करने के बाद तेजसिंह ने सोचा कि अब असली रामानंद को तहखाने से ऐसी खूबसूरती के साथ निकाल लेना चाहिए जिससे महाराज को किसी तरह का शक न हो और यह गुमान भी न हो कि तहखाने में वीरेंद्रसिंह क

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भाग 5

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ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन दारोगा साहब अपनी गद्दी पर बैठे रोजनामचा देख रहे थे और उस तहखाने की पुरानी बातें पढ़-पढ़कर ताज्जुब कर रहे थे कि यकायक पीछे की कोठरी में खटके की आवाज आई। घबड़ाकर उठ खड़े हुए

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अब हम अपने किस्से के सिलसिले को मोड़कर दूसरी तरफ झुकते हैं और पाठकों को पुण्यधाम काशी में ले चलकर संध्या के साथ गंगा के किनारे बैठी हुई एक नौजवान औरत की अवस्था पर ध्यान दिलाते हैं। सूर्य भगवान अस्त ह

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लाल पोशाक वाली औरत की अद्भुत बातों ने नानक को हैरान कर दिया। वह घबड़ाकर चारों तरफ देखने लगा और डर के मारे उसकी अजब हालत हो गई। वह उस कुएं पर भी ठहर न सका और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता हुआ इस उम्मीद में गं

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भाग 8

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अब हम फिर उस महारानी के दरबार का हाल लिखते हैं जहां से नानक निकाला जाकर गंगा के किनारे पहुंचाया गया था। नानक को कोठरी में ढकेलकर बाबाजी लौटे तो महारानी के पास न जाकर दूसरी ही तरफ रवाना हुए और एक बारह

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अब हम रोहतासगढ़ की तरफ चलते हैं और तहखाने में बेबस पड़ी हुई बेचारी किशोरी और कुंअर आनंदसिंह इत्यादि की सुध लेते हैं। जिस समय कुंअर आनंदसिंह, भैरोसिंह और तारासिंह तहखाने के अंदर गिरफ्तार हो गए और राजा

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भाग 10

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दूसरे दिन संध्या के समय राजा वीरेंद्रसिंह अपने खेमे में बैठे रोहतासगढ़ के बारे में बातचीत करने लगे। पंडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह, तारासिंह, ज्योतिषीजी, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह उनके पास बैठे हुए थे। अपने

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भाग 11

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अब तो कुंदन का हाल जरूर ही लिखना पड़ा, पाठक महाशय उसका हाल जानने के लिए उत्कंठित हो रहे होंगे। हमने कुंदन को रोहतासगढ़ महल के उसी बाग में छोड़ा है जिसमें किशोरी रहती थी। कुंदन इस फिक्र में लगी रहती थी

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भाग 12

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दूसरे दिन दो पहर दिन चढ़े बाद किशोरी की बेहोशी दूर हुई। उसने अपने को एक गहन वन के पेड़ों की झुरमुट में जमीन पर पड़े पाया और अपने पास कुंदन और कई आदमियों को देखा। बेचारी किशोरी इन थोड़े ही दिनों में तर

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चंद्रकांता संतति- पाँचवाँ भाग 1

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बेचारी किशोरी को चिता पर बैठाकर जिस समय दुष्टा धनपत ने आग लगाई, उसी समय बहुत-से आदमी, जो उसी जंगल में किसी जगह छिपे हुए थे, हाथों में नंगी तलवारें लिये 'मारो! मारो!' कहते हुए उन लोगों पर आ टूटे। उन लो

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भाग 2

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पाठक अभी भूले न होंगे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह कहां हैं। हम ऊपर लिख आए हैं कि उस मकान में जो तालाब के अन्दर बना हुआ था, कुंअर इन्द्रजीतसिंह दो औरतों को देखकर ताज्जुब में आ गए। कुमार उन औरतों का नाम नहीं

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भाग 3

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कुमार कई दिनों तक कमलिनी के यहां मेहमान रहे। उसने बड़ी खातिरदारी और नेकनीयती के साथ इन्हें रखा। इस मकान में कई लौंडियां भी थीं जो दिलोजान से कुमार की खिदमत किया करती थीं, मगर कभी-कभी वे सब दो-दो पहर क

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भाग 4

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हम ऊपर लिख आये हैं कि देवीसिंह को साथ लेकर शेरसिह कुंअर इन्द्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए रोहतासगढ़ से रवाना हुए। शेरसिंह इस बात को तो जानते थे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह फलां जगह हैं परन्तु उन्हें तालाब के

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भाग 5

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अब हम फिर रोहतासगढ़ की तरफ मुड़ते हैं और वहां राजा वीरेन्द्रसिंह के ऊपर जो-जो आफतें आईं, उन्हें लिखकर इस किस्से के बहुत से भेद, जो अभी तक छिपे पड़े हैं, खोलते हैं। हम ऊपर लिख आये हैं कि रोहतासगढ़ फतह

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भाग 6

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आज बहुत दिनों के बाद हम कमला को आधी रात के समय रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर पूरब तरफ वाले जंगल में घूमते देख रहे हैं। यहां से किले की दीवार बहुत दूर और ऊंचे पर है। कमला न मालूम किस फिक्र में है या क्या ढूं

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भाग 7

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रोहतासगढ़ फतह होने की खबर लेकर भैरोसिंह चुनार पहुंचे और उसके दो ही तीन दिन बाद राजा दिग्विजयसिंह की बेईमानी की खबर लेकर कई सवार भी जा पहुंचे। इस समाचार के पहुंचते ही चुनारगढ़ में खलबली पड़ गई। फौज के

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बहुत दिनों से कामिनी का हाल कुछ भी मालूम न हुआ। आज उसकी सुध लेना भी मुनासिब है। आपको याद होगा कि जब कामिनी को साथ लेकर कमला अपने चाचा शेरसिंह से मिलने के लिए उजाड़ खंडहर और तहखाने में गई थी तो वहां से

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भाग 9

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गिल्लन को साथ लिये हुए बीबी गौहर रोहतासगढ़ किले के अन्दर जा पहुंची। किले के अन्दर जाने में किसी तरह का जाल न फैलाना पड़ा और न किसी तरह की कठिनाई हुई। वह बेधड़के किले के उस फाटक पर चली आई जो शिवालय के

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भाग 10

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वीरेन्द्रसिंह के तीनों ऐयारों ने रोहतासगढ़ के किले के अन्दर पहुंचकर अंधेर मचाना शुरू किया। उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि अगर दिग्विजयसिंह हमारे मालिकों को नहीं छोड़ेगा तो ऐयारी के कायदे के बाहर काम कर

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भाग 11

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इस जगह मुख्तसर ही में यह भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है कि रोहतासगढ़ तहखाने में से राजा वीरेन्द्रसिंह, कुंअर आनन्दसिंह और उनके ऐयार लोग क्योंकर छूटे और कहां गए। हम ऊपर लिख आए हैं कि जिस समय गौहर '

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भाग 12

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दो पहर दिन चढ़ने के पहले ही फौज लेकर नाहरसिंह रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर चढ़ गया। उस समय दुश्मनों ने लाचार होकर फाटक खोल दिया और लड़-भिड़कर जान देने पर तैयार हो गये। किले की कुल फौज फाटक पर उमड़ आई और फा

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भाग 13

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तहखाने में बैठी हुई कामिनी को जब किसी के आने की आहट मालूम हुई तब वह सीढ़ी की तरफ देखने लगी मगर जब उसे कई आदमियों के पैरों की धमधमाहट मालूम हुई तब वह घबड़ाई। उसका खयाल दुश्मनों की तरफ गया और वह अपने बच

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चंद्रकांता संतति छठवां भाग 1

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वे दोनों साधु, जो सन्दूक के अन्दर झांक न मालूम क्या देखकर बेहोश हो गए थे, थोड़ी देर बाद होश में आए और चीख-चीखकर रोने लगे। एक ने कहा, ''हाय-हाय इन्द्रजीतसिंह, तुम्हें क्या हो गया! तुमने तो किसी के साथ

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भाग 2

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इस समय शिवदत्त की खुशी का अन्दाज करना मुश्किल है और यह कोई ताज्जुब की बात भी नहीं है, क्योंकि लड़ाकों और दोस्त ऐयारों के सहित राजा वीरेन्द्रसिंह को उसने ऐसा बेबस कर दिया कि उन लोगों को जान बचाना कठिन

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भाग 3

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अब हम अपने पाठकों को फिर उस मैदान के बीच वाले अद्भुत मकान के पास ले चलते हैं जिसके अन्दर इन्द्रजीतसिंह, देवीसिंह, शेरसिंह और कमलिनी के सिपाही लोग जा फंसे थे अर्थात् कमन्द के सहारे दीवार पर चढ़कर अन्दर

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भाग 4

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अब तो मौसम में फर्क पड़ गया। ठंडी-ठंडी हवा जो कलेजे को दहला देती थी और बदन में कंपकंपी पैदा करती थी अब भली मालूम पड़ती है। वह धूप भी, जिसे देख चित्त प्रसन्न होता था और जो बदन में लगकर रग-रग से सर्दी न

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भाग 5

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रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज के सिवाय और किसी तरह की आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसे समय में काशी की तंग गलियों में दो आदमी, जिनमें एक औ

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भाग 6

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दूसरे दिन कुछ रात बीते कमलिनी फिर मनोरमा के मकान पर पहुंची। बाग के फाटक पर उसी दरबान को टहलते पाया जिससे कल बातचीत कर चुकी थी। इस समय बाग का फाटक खुला हुआ था और उस दरबान के अतिरिक्त और भी कई सिपाही वह

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भाग 7

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आधी रात जा चुकी है। कमलिनी उस कमरे में, जो उसके सोने के लिए मुकर्रर किया गया था, चारपाई पर लेटी हुई करवटें बदल रही है क्योंकि उसकी आंखों में नींद का नामो-निशान नहीं है। उसके दिल में तरह-तरह की बातें प

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चंद्रकांता संतति सातवाँ भाग 1

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नागर थोड़ी दूर पश्चिम जाकर घूमी और फिर उस सड़क पर चलने लगी जो रोहतासगढ़ की तरफ गई थी। पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि नागर का दिल कितना मजबूत और कठोर था। उन दिनों जो रास्ता काशी से रोहतासगढ़ को जाता था, व

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भाग 2

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हम ऊपर लिख आए हैं कि राजा वीरेन्द्रसिंह तिलिस्मी खंडहर से (जिसमें दोनों कुमार और तारासिंह इत्यादि गिरफ्तार हो गए थे) निकलकर रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए तो तेजसिंह उनसे कुछ कह-सुनकर अलग हो गए और उनके सा

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भाग 3

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। तेजसिंह उसी दो नम्बर वाले कमरे के बाहर सहन में तकिया लगाये सो रहे हैं। चिराग बालने का कोई सामान यहां मौजूद नहीं जिससे रोशनी करते, पास में कोई आदमी नहीं जिससे दिल बहलात

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भाग 4

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शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ-कुछ लाली अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की हवा बदन में कंपकंपी

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पाठकों को याद होगा कि भूतनाथ को नागर ने एक पेड़ के साथ बांध रखा है। यद्यपि भूतनाथ ने अपनी चालाकी और तिलिस्मी खंजर की मदद से नागर को बेहोश कर दिया मगर देर तक उसके चिल्लाने पर भी वहां कोई उसका मददगार न

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भाग 6

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मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग (तिलिस्मी बाग) में है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रखा है, मगर उस बाग में दो और

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चंद्रकांता संतति - आठवाँ भाग 1

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मायारानी की कमर में से ताली लेकर जब लाडिली चली गई तो उसके घंटे भर बाद मायारानी होश में आकर उठ बैठी। उसके बदन में कुछ-कुछ दर्द हो रहा था जिसका सबब वह समझ नहीं सकती थी। उसे फिर उन्हीं खयालों ने आकर घेर

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भाग 2

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कैदखाने का हाल हम ऊपर लिख चुके हैं, पुनः लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। उस कैदखाने में कई कोठरियां थीं जिनमें से आठ कोठरियों में तो हमारे बहादुर लोग कैद थे और बाकी कोठरियां खाली थीं। कोई आश्चर्य नहीं, यद

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भाग 3

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मायारानी उस बेचारे मुसीबत के मारे कैदी को रंज, डर और तरद्दुद की निगाहों से देख रही थी जबकि यह आवाज उसने सुनी, ''बेशक मायारानी की मौत आ गई!'' इस आवाज ने मायारानी को हद्द से ज्यादा बेचैन कर दिया। वह घबड

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भाग 4

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कमलिनी की आज्ञानुसार बेहोश नागर की गठरी पीठ पर लादे हुए भूतनाथ कमलिनी के उस तिलिस्मी मकान की तरफ रवाना हुआ जो एक तालाब के बीचोंबीच में था। इस समय उसकी चाल तेज थी और वह खुशी के मारे बहुत ही उमंग और लाप

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भाग 5

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दिन दो पहर से कुछ ज्यादा चढ़ चुका है मगर मायारानी को खाने-पीने की कुछ भी सुध नहीं है। पल-पल में उसकी परेशानी बढ़ती ही जाती है। यद्यपि बिहारीसिंह, हरनामसिंह और धनपत ये तीनों उसके पास मौजूद हैं परन्तु स

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भाग 6

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रात आधी जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, हवा भी एकदम बन्द है, यहां तक कि किसी पेड़ की एक पत्ती भी नहीं हिलती। आसमान में चांद तो नहीं दिखाई देता, मगर जंगल मैदान में चलने वाले मुसाफिरों को तार

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भाग 7

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राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ और भैरोसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ रवाना करके कमलिनी अपने साथियों को साथ लिए हुए मायारानी के तिलिस्मी बाग की तरफ रवाना हुई। इस समय रात नाममात्र को बाकी थी। प्राय

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भाग 8

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अपनी बहिन लाडिली, ऐयारों और दोनों कुमारों को साथ लेकर कमलिनी राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देवमन्दिर में कुछ दिन रहेगी। वहां रहकर ये लोग जो कुछ करेंगे, उ

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भाग 9

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। काशी में मनोरमा के मकान के अन्दर फर्श पर नागर बैठी हुई और उसके पास ही एक खूबसूरत नौजवान आदमी छोटे-छोटे तीन-चार तकियों का सहारा लगाये अधलेटा-सा पड़ा जमीन की तरफ देखता ह

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भाग 10

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दूसरे दिन आधी रात जाते-जाते भूतनाथ फिर उसी मकान में नागर के पास पहुंचा। इस समय नागर आराम से सोई न थी बल्कि न मालूम किस धुन और फिक्र में मकान की पिछली तरफ नजरबाग में टहल रही थी। भूतनाथ को देखते ही वह ह

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भाग 11

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ऊपर के बयान में जो कुछ लिख आये हैं उस बात को कई दिन बीत गये, आज भूतनाथ को हम फिर मायारानी के पास बैठे हुए देखते हैं। रंग-ढंग से जाना जाता है कि भूतनाथ की कार्रवाइयों से मायारानी बहुत ही प्रसन्न है और

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भाग 12

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आज से कुल आठ-दस दिन पहले मायारानी इतनी परेशान और घबड़ाई हुई थी कि जिसका कुछ हिसाब नहीं। वह जीते जी अपने को मुर्दा समझने लगी थी। राजा गोपालसिंह के छूट जाने के डर, चिन्ता, बेचैनी और घबड़ाहट ने चारों तरफ

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