shabd-logo

भाग 3

11 जून 2022

16 बार देखा गया 16

अब हम अपने पाठकों को फिर उस मैदान के बीच वाले अद्भुत मकान के पास ले चलते हैं जिसके अन्दर इन्द्रजीतसिंह, देवीसिंह, शेरसिंह और कमलिनी के सिपाही लोग जा फंसे थे अर्थात् कमन्द के सहारे दीवार पर चढ़कर अन्दर की तरफ झांकने के बाद हंसते-हंसते उस मकान में कूद पड़े थे। हम लिख आये हैं कि जब वे लोग मकान के अन्दर कूद गए तो न मालूम क्या समझकर कमलिनी हंसी और अपनी ऐयारा तारा को साथ ले वहां से रवाना हो गई।

तारा को साथ लिए और बातें करती हुई कमलिनी दक्खिन की तरफ रवाना हुई जिधर का जंगल घना और सुहावना था। लगभग दो कोस चले जाने के बाद जंगल बहुत ही रमणीक मिला, बल्कि यों कहना चाहिए कि जैसे-जैसे वे दोनों बढ़ती जाती थीं, जंगल सुहावना और खुशबूदार जंगली फूलों की महक से बसा हुआ मिलता था। यहां तक कि दोनों एक ऐसे सुन्दर चश्मे के किनारे पहुंचीं जिसका जल बिल्लौर की तरह साफ था और जिसके दोनों किनारों पर दूर-दूर तक मौलसिरी के पेड़ लगे हुए थे। इस चश्मे का पाट दस हाथ का होगा और गहराई दो हाथ से ज्यादा न होगी। यहां की जमीन पथरीली और पहाड़ी थी।

अब ये दोनों उस चश्मे के किनारे-किनारे चलने लगीं। ज्यों-ज्यों आगे जाती थीं, जमीन ऊंची मिलती जाती थी, जिससे समझ लेना चाहिए कि यह मुकाम किसी पहाड़ी की तराई में है। लगभग आधा कोस जाने के बाद वे दोनों ऐसी जगह पहुंचीं जहां चश्मे के दोनों किनारे वाले मौलसिरी1 के पेड़ झुककर आपस में मिल गये थे और जिसके सबब से चश्मा अच्छी तरह से ढंककर मुसाफिरों का दिल लुभा लेने वाली छटा दिखा रहा था। इस जगह चश्मे के किनारे एक छोटा-सा चबूतरा था जिसकी ऊंचाई पुर्सा भर से कम न होगी। चबूतरे पर एक छोटी-सी पिण्डी इस ढब से बनी हुई थी जिसे देखते ही लोगों को विश्वास हो जाय कि किसी साधु की समाधि है।

इस ठिकाने पर पहुंचकर वे दोनों रुकीं और घोड़े से नीचे उतर पड़ीं। तारा ने अपने घोड़े का असबाब नहीं उतारा अर्थात् उसे कसा-कसाया छोड़ दिया परन्तु कमलिनी ने अपने घोड़े का चारजामा उतार लिया और लगाम उतारकर घोड़े को यों ही छोड़ दिया। घोड़ा पहले तो चश्मे के किनारे आया और पानी पीने के बाद कुछ दूर जाकर सब्ज जमीन पर चरने और खुशी-खुशी घूमने लगा। तारा ने भी अपने घोड़े को पानी पिलाया और बागडोर के सहारे एक पेड़ से बांध दिया। इसके बाद कमलिनी और तारा चश्मे के किनारे पत्थर की एक बड़ी-सी चट्टान पर बैठ गयीं और यों बातचीत करने लगीं -

कमलिनी - अब इसी जगह से मैं तुमसे अलग होऊंगी।

तारा - अफसोस, यह दुश्मनी अब हद्द से ज्यादा बढ़ चली!

कमलिनी - फिर क्या किया जाय, तू ही बता, इसमें मेरा क्या कसूर है।

तारा - तुम्हें कोई भी दोषी नहीं ठहरा सकता। इसमें कोई सन्देह नहीं कि महारानी अपने पैर में आप कुल्हाड़ी मार रही है।

कमलिनी - हर एक लक्षण पर ध्यान देने से अब महारानी को भी निश्चय हुआ है कि ये ही दोनों भाई तिलिस्म के मालिक होंगे, फिर उसके लिए जिद करना और उन दोनों की जान लेने का उद्योग करना भूल नहीं तो क्या है?

तारा - बेशक भूल है और इसकी वह सजा पावेंगी। तुमने बहुत अच्छा किया कि उनका साथ छोड़ दिया। (मुस्कराकर) इसके बदले में जरूर तुम्हारी मुराद पूरी होगी।

कमलिनी - (ऊंची सांस लेकर) देखें, क्या होता है।

तारा - होना क्या है क्या उनकी आंखों ने उनके दिल का हाल तुमसे नहीं कह दिया?

कमलिनी - हां, ठीक है। खैर, इस समय तो उन पर भारी मुसीबत आ पड़ी है। जहां तक हो सके उन्हें जल्द बचाना चाहिए।

तारा - मगर मुझे ताज्जुब मालूम होता है कि उनके छुड़ाने का कोई उद्योग किए बिना ही तुम यहां चली आयीं।

कमलिनी - क्या तुझे मालूम नहीं कि नानक ने इसी ठिकाने मुझसे मिलने का वादा लिया है उसने कहा था कि जब मिलना हो, इसी ठिकाने आना।

1. इसका नाम 'मौलिश्री' भी है।

तारा - (कुछ सोचकर) हां - हां, ठीक है, अब याद आया। तो क्या वह यही जगह है

कमलिनी - हां, यही जगह है।

तारा - मगर तुम तो इस तरह घोड़ा फेंके चली आयीं, जैसे कई दफे जाने-आने के कारण यहां का रास्ता तुम्हें बखूबी याद हो।

कमलिनी - बेशक मैं यहां कई दफे आ चुकी हूं। बल्कि नानक को इस ठिकाने का पता पहले मैंने ही बताया था, और यहां का कुछ भेद भी कहा था।

तारा - अफसोस, इस जगह का भेद तुमने आज तक मुझसे कुछ नहीं कहा।

कमलिनी - यद्यपि तू ऐयारा है और मैं तुझे चाहती हूं, परन्तु तिलिस्मी कायदे के मुताबिक मेरे भेदों को तू नहीं जान सकती।

तारा - सो तो मैं जानती हूं मगर अफसोस इस बात का है कि मुझसे तो तुमने छिपाया और नानक को यहां का भेद बता दिया। न मालूम, नानक की कौन-सी बात पर तुम रीझ गई हो

कमलिनी - (कुछ हंसकर और तारा के गाल पर धीरे से चपत मारकर) बदमाश कहीं की, मैं नानक पर क्यों रीझने लगी?

तारा - (झुंझलाकर) तो फिर ऐसा क्यों किया

कमलिनी - अरे, उससे उस कोठरी की ताली जो लेनी है, जिसमें खून से लिखी हुई किताब रखी है।

तारा - तो फिर ताली लेने के पहले ही यहां का भेद उसे क्यों बता दिया अगर वह ताली न दे तब

कमलिनी - ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि भूतनाथ ने मेरी दिलजमई कर दी है और वह भूतनाथ के कब्जे में है।

''हां-हां, वह मेरे कब्जे में है - '' उसी समय यह आवाज पेड़ों के झुरमुट में से, जो कमलिनी के पीछे की तरफ था, आई और कमलिनी ने फिरकर देखा तो भूतनाथ की सूरत दिखाई पड़ी।

कमलिनी - अजी आओ भूतनाथ, तुम कहां थे मैं बड़ी देर से यहां बैठी हूं, नानक कहां है

बात की बात में नानक भी वहां आ पहुंचा और कमलिनी को सलाम करके खड़ा हो गया।

कमलिनी - कहो जी नानकप्रसाद, अब वादा पूरा करने में क्या देर है

नानक - कुछ देर नहीं। मैं तैयार हूं, परन्तु आप भी अपना वादा पूरा कीजिये और समाधि पर हाथ रखकर कसम खाइये।

कमलिनी - हां-हां, लो, मैं अपना वादा पूरा करती हूं।

भूतनाथ - मेरा भी ध्यान रखना।

कमलिनी - अवश्य।

कमलिनी उठी और समाधि के पास जाकर खड़ी हो गयी। पहले तो उसने समाधि के सामने अदब से सिर झुकाया और तब उस पर हाथ रखकर यों बोली -

''मैं उस महात्मा की समाधि पर हाथ रखकर कसम खाती हूं जो अपना सानी नहीं रखता था, हर एक शास्त्र का पूरा पण्डित, पूरा योगी, भूत-भविष्य और वर्तमान का हाल जानने वाला और ईश्वर का सच्चा भक्त था। यद्यपि यह उसकी समाधि है परन्तु मुझे विश्वास है कि योगिराज सजीव हैं और मेरी रक्षा का ध्यान उन्हें सदैव रहता है। (हाथ जोड़कर) योगिराज से मैं प्रार्थना करती हूं कि मेरी प्रतिज्ञा को निबाहें। (समाधि पर हाथ रखकर) यदि नानक मुझे वह ताली दे देगा तो मैं उसके साथ कभी दगा न करूंगी, उसे अपने भाई के समान मानूंगी और उसी काम में उद्योग करूंगी जिसमें उसकी खुशी हो। मैं उस आदमी के लिए भी कसम खाती हूं जिसने अपना नाम भूतनाथ रखा हुआ है। उसे मैं अपने सहोदर भाई के समान मानूंगी और जब तक वह मेरे साथ बुराई न करेगा, मैं उसकी भलाई करती रहूंगी।''

इतना कहकर कमलिनी समाधि से अलग हो गयी। नानक ने एक छोटी-सी डिबिया कमलिनी के हाथ में दी। और उसके पैरों पर गिर पड़ा। कमलिनी ने पीठ ठोंककर उसे उठाया। और उस डिबिया को इज्जत के साथ सिर से लगाया। इसके बाद चारों आदमी फिर उस पत्थर की चट्टान पर आकर बैठ गये और बातचीत होने लगी।

भूतनाथ - (कमलिनी से) जब आपने मुझे और नानक को अपने भाई के समान मान लिया तो मुझे जो कुछ आपसे कहना हो, दिल खोलकर कह सकता हूं और जो कुछ मांगना हो मांग सकता हूं चाहे आप दें अथवा न दें।

कमलिनी - (मुस्कुराकर) हां - हां, जो कुछ कहना हो कहो और जो मांगना हो, मांगो।

भूतनाथ - इसमें कोई सन्देह नहीं कि आपके पास एक से एक बढ़कर अनमोल चीजें होंगी, अस्तु मुझे और नानक को कोई ऐसी चीज दीजिए जो समय पर काम आये और दुश्मनों को धमकाने और उन पर फतह पाने के लिए बेनजीर हो।

कमलिनी - इसके कहने की तो कोई जरूरत न थी, मैं स्वयं चाहती थी कि तुम दोनों को कोई अनमोल वस्तु दूं, खैर ठहरो, मैं अभी ला देती हूं।

इतना कहकर कमलिनी उठी और चश्मे के जल में कूद पड़ी। उस जगह जल बहुत गहरा था, इसलिए मालूम न हुआ कि वह कहां चली गयी। कमलिनी के इस काम ने सभी को ताज्जुब में डाल दिया और तीनों आदमी टकटकी बांधकर उसी तरफ देखने लगे।

आधे घण्टे बाद कमलिनी जल के बाहर निकली। उसके एक हाथ में छोटी-सी कपड़े की गठरी और दूसरे हाथ में लोहे की जंजीर थी। यद्यपि कमलिनी जल में से निकली थी और उसके कपड़े गीले हो रहे थे, तथापि उस कपड़े की गठरी पर जल ने कुछ भी असर न किया था, जिसे कमलिनी लाई थी।

कमलिनी ने कपड़े की गठरी पत्थर की चट्टान पर रख दी और लोहे की जंजीर भूतनाथ के हाथ में देकर बोली, ''इसे तुम दोनों आदमी मिलकर खींचो।'' उस जंजीर के साथ लोहे का एक छोटा-सा मगर हलका सन्दूक बंधा हुआ था, जिसे भूतनाथ और नानक ने खींचकर बाहर निकाला।

कमलिनी ने एक खटका दबाकर सन्दूक खोला। इसके अन्दर चार खंजर, एक नेजा और पांच अंगूठियां थीं। कमलिनी ने पहले एक अंगूठी निकाली और अपनी अंगुली में उसे पहिन लिया, इसके बाद एक खंजर निकाला और उसे म्यान से बाहर कर तारा, भूतनाथ और नानक को दिखाकर बोली, ''देखो इस खंजर का लोहा कितना उम्दा है।''

भूतनाथ - बेशक बहुत उम्दा लोहा है।

कमलिनी - अब इसके गुण सुनो। यह खंजर जिस चीज पर पड़ेगा उसे दो टुकड़े कर देगा चाहे वह चीज लोहा, पत्थर, अष्टधातु या फौलादी हर्बा क्यों न हो। इसके अतिरिक्त जब इसका कब्जा दबाओगे तो इसमें बिजली की तरह चमक पैदा होगी, उस समय यदि सौ आदमी भी तुम्हें घेरे हुए खड़े होंगे तो चमक से सभी की आंखें बन्द हो जायंगी। यद्यपि इस समय दिन है और किसी तरह की चमक सूर्य का मुकाबला नहीं कर सकती, तथापि इसका मजा मैं तुम्हें दिखाती हूं।

इतना कहकर कमलिनी ने खंजर का कब्जा दबाया। यकायक इतनी ज्यादा चमक उसमें से पैदा हुई कि दिन का समय होने पर भी उन तीनों की आंखें बन्द हो गईं। मालूम हुआ कि एक बिजली-सी आंख के सामने चमक गई।

कमलिनी - सिवाय इसके इस खंजर को जो कोई छूएगा या जिसके बदन से यह खंजर छुआ दोगे उसके खून में एक प्रकार की बिजली दौड़ जायगी और वह तुरत बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ेगा। लो, इसे तुम लोग छूकर देखो, यही अद्भुत खंजर मैं तुम लोगों को दूंगी।

कमलिनी ने खंजर भूतनाथ के आगे रख दिया। भूतनाथ ने उसे उठाना चाहा मगर हाथ लगाने के साथ ही वह कांपा और बदहवास होकर जमीन पर गिर पड़ा। कमलिनी ने अपना दूसरा हाथ, जिसमें अंगूठी थी, उसके बदन पर फेरा तब उसे होश आया।

भूतनाथ - चीज तो बहुत अच्छी है मगर इसका छूना गजब है।

कमलिनी - (सन्दूक में से कई अंगूठियां निकालकर) पहले इन अंगूठियों को तुम लोग पहिनो तब इस खंजर को हाथ में ले सकोगे और तभी इसकी तेज चमक भी तुम्हारी आंखों पर अपना पूरा असर न कर सकेगी अर्थात् जो कोई मुकाबले में या तुम्हारे चारों तरफ होगा उसकी आंखें तो बन्द हो जायेंगी, मगर तुम्हारी आंखें खुली रहेंगी और तुम दुश्मनों को बखूबी मार सकोगे।

इतना कहकर कमलिनी ने एक-एक अंगूठी तीनों को पहिना दी और इसके बाद एक-एक खंजर तीनों के हवाले किया। तारा, भूतनाथ और नानक ऐसा अद्भुत खंजर पाकर हद से ज्यादा खुश हुए और घड़ी-घड़ी उसका कब्जा दबाकर उसकी चमक का मजा लेते रहे।

कमलिनी - अब एक खंजर और एक अंगूठी बच गई सो कुंअर इन्द्रजीतसिंह के लिए अपने पास रखूंगी। जिस समय उनसे मुलाकात होगी उनके हवाले करूंगी, और यह अंगूठी जो मेरी उंगली में है और यह नेजा, जो अपने वास्ते लाई हूं, इसमें भी वही गुण हैं जो खंजर में हैं मगर फर्क इतना है कि बनिस्बत खंजर के इस नेजे में बिजली का असर बहुत ज्यादे है।

उस नेजे के चार टुकड़े थे जो पेंच पर चढ़ाकर एक कर दिये जाते थे। कमलिनी ने इन चारों टुकड़ों को एक कर दिया और अब वह पूरा नेजा हो गया।

भूतनाथ - इसमें कोई सन्देह नहीं कि आपने हम लोगों को अद्भुत और अनमोल चीज दी, इसकी बदौलत हम लोगों के हाथ से बड़े-बड़े काम निकलेंगे।

इसके बाद कमलिनी ने वह कपड़े की गठरी खोली। इसमें स्याह रंग की एक साड़ी, एक चोली और एक बोतल थी। कमलिनी उठकर समाधि के पीछे गई और गीले कपड़े उतारकर वही काली साड़ी और चोली पहिरकर अपने ठिकाने आ बैठी। वह साड़ी और चोली रेशमी थी और उसमें एक प्रकार का रोगन चढ़ा हुआ था जिसके सबब उस कपड़े पर पानी का असर नहीं होता था। कमलिनी ने वह गीली साड़ी और चोली तारा के सामने रख दी और बोली, ''इसे तू पेड़ पर डाल दे जिससे झटपट सूख जाय, इसके बाद तू कमलिनी बन जा अर्थात् मेरी तरह अपनी सूरत बना ले और इसी साड़ी और चोली को पहिरकर मेरे घर अर्थात् उस तालाब वाले मकान में जाकर बैठ जिससे नौकरों को मेरे गायब होने का हाल मालूम न हो, वे यही समझें कि तारा कहीं गई हुई है!

तारा - बहुत अच्छा, मगर आप कहां जायंगी?

कमलिनी - मेरा कोई ठिकाना नहीं, मुझे बहुत काम करना है। (भूतनाथ और नानक की तरफ देखकर) आप लोग भी जाइये और जहां तक हो सके, राजा वीरेन्द्रसिंह की भलाई का उद्योग कीजिये।

नानकप्रसाद - बहुत अच्छा। (हाथ जोड़कर) मेरी बात का जवाब दीजिए तो बड़ी कृपा होगी।

कमलिनी - वह क्या?

नानकप्रसाद - इस प्रकार का खंजर उन लोगों के पास भी है या नहीं?

कमलिनी - (हंसकर) क्या उन लोगों के पास पुनः जाने की इच्छा है अपनी रामभोली को देखा चाहता है?

नानकप्रसाद - हां, यदि मौका मिलेगा तो।

कमलिनी - अच्छा जा, कोई हर्ज नहीं, इस प्रकार की कोई वस्तु उन लोगों के पास नहीं है और न इसका पता ही उन्हें मिल सकता है। मगर जो कुछ करना, होशियारी के साथ।

इसके बाद कमलिनी ने वह बोतल खोली जो कपड़े की गठरी में थी। उसमें किसी प्रकार का अर्क था। समाधि के पीछे जाकर कमलिनी ने वह अर्क अपने तमाम बदन में लगाया जिससे बात की बात में उसका रंग बहुत ही काला हो गया, तब वह फिर तारा के पास आई और उससे दो लम्बे बनावटी दांत लेकर अपने मुंह में लगाने के बाद नेजा हाथ में लेकर खड़ी हो गई।

तारा ने भी अपनी सूरत बदली और कमलिनी बनकर तैयार हो गई । इस काम में भूतनाथ ने उसकी मदद की। कमलिनी के हुक्म से वह सन्दूक और जंजीर पानी में डाल दी गई।

कमलिनी ने अपने घोड़े को आवाज दी। यद्यपि वह कुछ दूर पर चर रहा था, परन्तु मालिक की आवाज के साथ ही दौड़ता हुआ पास आ गया। तारा ने उसे पकड़ लिया और चारजामा कसकर उस पर सवार हो गई तथा कमलिनी तारा के घोड़े पर सवार हुई। अन्त में चारों आदमी कुछ सलाह करके अलग हुए और चारों ने अपना-अपना रास्ता लिया अर्थात् उसी जगह से चारों आदमी जुदा हो गए।

इस वारदात के कई दिन बाद कमलिनी इसी राक्षसी वेश में नेजा लिए रोहतासगढ़ की पहाड़ी पर कब्रिस्तान में कमला से मिली थी, इसी ने राजा वीरेन्द्रसिंह वगैरह को कैद से छुड़ाया, और फिर भी कई दफे उनके काम आई थी, जिसका हाल पिछले बयानों में लिखा जा चुका है। 

96
रचनाएँ
सम्पूर्ण चंद्रकांता संतति
0.0
इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नवगढ और विजयगढ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ की राजकुमारी चंद्रकांता और नवगढ के राजकुमार वीरेन्द्र विक्रम को आपस में प्रेम है। लेकिन राज परिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नवगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का जिम्मेदार मानते है।
1

चंद्रकांता संतति भाग -1

11 जून 2022
1
0
0

नौगढ़ के राजा सुरेंद्रसिंह के लड़के वीरेंद्रसिंह की शादी विजयगढ़ के महाराज जयसिंह की लड़की चंद्रकांता के साथ हो गई। बारात वाले दिन तेजसिंह की आखिरी दिल्लगी के सबब चुनार के महाराज शिवदत्त को मशालची बनन

2

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

इस जगह पर थोड़ा-सा हाल महाराज शिवदत्त का भी बयान करना मुनासिब मालूम होता है। महाराज शिवदत्त को हर तरह से कुंअर वीरेंद्रसिंह के मुकाबिले में हार माननी पड़ी। लाचार उसने शहर छोड़ दिया और अपने कई पुराने ख

3

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

चुनारगढ़ किले के अंदर एक कमरे में महाराज सुरेंद्रसिंह, वीरेंद्रसिंह, जीतसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह बैठे हुए कुछ बातें कर रहे हैं। जीत - भैरो ने बड़ी होशियारी का काम किया कि अपन

4

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

खिदमतगार ने किले में पहुंचकर और यह सुनकर कि इस समय दोनों राजा एक ही जगह बैठे हैं कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब होने का हाल और सबब जो कुंअर आनंदसिंह की जुबानी सुना था महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह क

5

भाग 5

11 जून 2022
1
0
0

पंडित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और जगन्नाथ ज्योतिषी भैरोसिंह ऐयार को छुड़ाने के लिए शिवदत्तगढ़ की तरफ गए। हुक्म के मुताबिक कंचनसिंह सेनापति ने शेर वाले बाबाजी के पीछे जासूस भेजकर पता लग

6

भाग 6

11 जून 2022
1
0
0

बहुत-सी तकलीफें उठाकर महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह तथा इन्हीं की बदौलत चंद्रकांता, चपला, चंपा, तेजसिंह और देवीसिंह वगैरह ने थोड़े दिन खूब सुख लूटा मगर अब वह जमाना न रहा। सच है, सुख और दुख का पह

7

भाग 7

11 जून 2022
1
0
0

अपने भाई इंद्रजीतसिंह की जुदाई से व्याकुल हो उसी समय आनंदसिंह उस जंगल के बाहर हुए और मैदान में खड़े हो इधर - उधर निगाह दौड़ाने लगे। पश्चिम की तरफ दो औरतें घोड़ों पर सवार धीरे-धीरे जाती हुई दिखाई पड़ीं

8

भाग 8

11 जून 2022
1
0
0

अब थोड़ा-सा हाल शिवदत्तगढ़ का भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है। यह हम पहले लिख चुके हैं कि महाराज शिवदत्त को एक लड़का और एक लड़की भी हुई थी। इस समय लड़के की उम्र जिसका नाम भीमसेन है अठारह वर्ष की हो

9

भाग 9

11 जून 2022
1
0
0

भीमसेन के साथियों ने बहुत खोजा मगर भीमसेन का पता न लगा, लाचार कुछ रात आते-आते लौट आये और उसी समय महाराज शिवदत्त के पास जाकर अर्ज किया कि आज शिकार खेलने के लिए कुमार जंगल में गये थे, एक बनैले सूअर के प

10

भाग 10

11 जून 2022
1
0
0

अब हम अपने पाठकों को फिर उसी खोह में ले चलते हैं जिसमें कुंअर आनंदसिंह को बेहोश छोड़ आये हैं अथवा जिस खोह में जान बचाने वाले सिपाही के साथ पहुंचकर उन्होंने एक औरत को छुरे से लाश काटते देखा था और योगिन

11

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

सूर्य भगवान अस्त होने के लिए जल्दी कर रहे हैं, शाम की ठंडी हवा अपनी चाल दिखा रही है। आसमान साफ है क्योंकि अभी-अभी पानी बरस चुका है और पछुआ हवा ने रुई के पहल की तरह जमे हुए बादलों को तूम-तूमकर उड़ा दिय

12

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

अब हम आपको एक दूसरी सरजमीन में ले चलकर एक दूसरे ही रमणीक स्थान की सैर करा तथा इसके साथ-ही-साथ बड़े-बड़े ताज्जुब के खेल और अद्भुत बातों को दिखाकर अपने किस्से का सिलसिला दुरुस्त किया चाहते हैं। मगर यहां

13

भाग 13

11 जून 2022
0
0
0

दूसरे दिन खा-पीकर निश्चिंत होने के बाद दोपहर को जब दोनों एकांत में बैठे तो इंद्रजीतसिंह ने माधवी से कहा - ''अब मुझसे सब्र नहीं हो सकता, आज तुम्हारा ठीक-ठीक हाल सुने बिना कभी न मानूंगा और इससे बढ़कर न

14

भाग 14

11 जून 2022
0
0
0

इंद्रजीतसिंह ने दूसरे दिन पुनः नियत समय पर माधवी को जाने न दिया, आधी रात तक हंसी-दिल्लगी ही में काटी, इसके बाद दोनों अपने-अपने पलंग पर सो रहे। कुमार को तो खुटका लगा ही हुआ था कि आज वह काली औरत आवेगी इ

15

भाग 15

11 जून 2022
0
0
0

अब इस जगह थोड़ा-सा हाल इस राज्य का और साथ ही इस माधवी का भी लिख देना जरूरी है। किशोरी की मां अर्थात शिवदत्त की रानी दो बहिनें थीं। एक जिसका नाम कलावती था शिवदत्त के साथ ब्याही थी और दूसरी मायावती गया

16

चंद्रकांता संतति दूसरा भाग -1

11 जून 2022
0
0
0

घंटा भर दिन बाकी है। किशोरी अपने उसी बाग में जिसका कुछ हाल पीछे लिख चुके हैं कमरे की छत पर सात-आठ सखियों के बीच में उदास तकिए के सहारे बैठी आसमान की तरफ देख रही है। सुगंधित हवा के झोंके उसे खुश किया च

17

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

किशोरी खुशी-खुशी रथ पर सवार हुई और रथ तेजी से जाने लगा। वह कमला भी उसके साथ थी, इंद्रजीतसिंह के विषय में तरह-तरह की बातें कहकर उसका दिल बहलाती जाती थी। किशोरी भी बड़े प्रेम से उन बातों को सुनने में ली

18

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

सुबह का सुहावना समय भी बड़ा ही मजेदार होता है। जबर्दस्त भी परले सिरे का है। क्या मजाल कि इसकी अमलदारी में कोई धूम तो मचावे, इसके आने की खबर दो घंटे पहले ही से हो जाती है। वह देखिए आसमान के जगमगाते हुए

19

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

हम ऊपर लिख आये हैं कि माधवी के यहां तीन आदमी अर्थात दीवान अग्निदत्त, कुबेरसिंह सेनापति और धर्मसिंह कोतवाल मुखिया थे और तीनों मिलकर माधवी के राज्य का आनंद लेते थे। इन तीनों में अग्निदत्त का दिन बहुत म

20

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

कमला को विश्वास हो गया कि किशोरी को कोई धोखा देकर ले भागा। वह उस बाग में बहुत देर तक न ठहरी, ऐयारी के सामान से दुरुस्त थी ही, एक लालटेन हाथ में लेकर वहां से चल पड़ी और बाग से बाहर हो चारों तरफ घूम-घूम

21

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

कुंअर इंद्रजीतसिंह अभी तक उस रमणीक स्थान में विराज रहे हैं। जी कितना ही बेचैन क्यों न हो मगर उन्हें लाचार माधवी के साथ दिन काटना ही पड़ता है। खैर जो होगा देखा जायगा मगर इस समय दो पहर दिन बाकी रहने पर

22

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

आपस में लड़ने वाले दोनों भाइयों के साथ जाकर सुबह की सफेदी निकलने के साथ ही कोतवाल ने माधवी की सूरत देखी और यह समझकर कि दीवान साहब को छोड़ महारानी अब मुझसे प्रेम रखा चाहती है बहुत खुश हुआ। कोतवाल साहब

23

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

इस जगह उस तालाब का हाल लिखते हैं, जिसका जिक्र कई दफे ऊपर-पीछे आ चुका है, जिसमें एक औरत को गिरफ्तार करने के लिए योगिनी और वनचरी कूदी थीं, या जिसके किनारे बैठ हमारे ऐयारों ने माधवी के दीवान, कोतवाल और स

24

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

कुंअर इंद्रजीतसिंह अब जबर्दस्ती करने पर उतारू हुए और इस ताक में लगे कि माधवी सुरंग का ताला खोले और दीवान से मिलने के लिए महल में जाय तो मैं अपना रंग दिखाऊं। तिलोत्तमा के होशियार कर देने से माधवी भी चे

25

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

जख्मी इंद्रजीतसिंह को लिए हुए उनके ऐयार लोग वहां से दूर निकल गये और बेचारी किशोरी को दुष्ट अग्निदत्त उठाकर अपने घर ले गया। यह सब हाल देख तिलोत्तमा वहां से चलती बनी और बाग के अंदर कमरे में पहुंची। देखा

26

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

हम ऊपर के बयान में सुबह का दृश्य लिखकर कह आये हैं कि राजा वीरेंद्रसिंह, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह सेना सहित किसी तरफ को जा रहे हैं। पाठक तो समझ ही गये होंगे कि इन्होंने जरूर किसी तरफ चढ़ाई की है और बे

27

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

आज पांच दिन के बाद देवीसिंह लौटकर आये हैं। जिस कमरे का हाल हम ऊपर लिख आए हैं उसी में राजा वीरेंद्रसिंह, उनके दोनों लड़के, भैरोसिंह, तारासिंह और कई सरदार लोग बैठे हैं। इंद्रजीतसिंह की तबीयत अब बहुत अच्

28

भाग 13

11 जून 2022
0
0
0

कुंअर इंद्रजीतसिंह तो किशोरी पर जी-जान से आशिक हो चुके थे। इस बीमारी की हालत में भी उसकी याद इन्हें सता रह थी और यह जानने के लिए बेचैन हो रहे थे कि उस पर क्या बीती, वह किस अवस्था में कहां है और अब उसक

29

भाग 14

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात से ज्यादे जा चुकी है। गयाजी में हर मुहल्ले के चौकीदार ‘जागते रहियो, होशियार रहियो’ कह-कहकर इधर से उधर घूम रहे हैं। रात अंधेरी है, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ है। यहां का मुख्य स्थान विष्णु-पादु

30

भाग 15

11 जून 2022
0
0
0

राजा वीरेंद्रसिंह के चुनार चले जाने के बाद दोनों भाइयों को अपनी-अपनी फिक्र पैदा हुई। क्रुंअर आनंदसिंह किन्नरी की फिक्र में पड़े और कुंअर इंद्रजीतसिंह को राजगृही की फिक्र पैदा हुई। राजगृही को फतह कर ले

31

भाग 16

11 जून 2022
0
0
0

भैरोसिंह को राजगृही गये आज तीसरा दिन है। यहां का हाल-चाल अभी तक कुछ मालूम नहीं हुआ, इसी सोच में आधी रात के समय अपने कमरे में पलंग पर लेटे हुए कुंअर इंद्रजीतसिंह को नींद नहीं आ रही है। किशोरी की खयाली

32

भाग 17

11 जून 2022
0
0
0

मकान के अंदर कमला, इंद्रजीतसिंह और तारासिंह के पहुंचने के पहले ही हम अपने पाठकों को इस मकान में ले चलकर यहां की कैफियत दिखाते हैं। इस मकान के अंदर छोटी-छोटी न मालूम कितनी कोठरियां हैं पर हमें उनसे को

33

चंद्रकांता संतति तीसरा भाग - 1

11 जून 2022
0
0
0

पाठक समझ ही गये होंगे कि रामशिला के सामने फलगू नदी के बीच में भयानक टीले के ऊपर रहने वाले बाबाजी के सामने जो दो औरतें गई थीं वे माधवी और उसकी सखी तिलोत्तमा थीं। बाबाजी ने उन दोनों से वादा किया था कि त

34

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

शिवदत्तगढ़ में महाराज शिवदत्त बैठा हुआ बेफिक्री का हलुआ नहीं उड़ाता। सच पूछिये तो तमाम जमाने की फिक्र ने उसको आ घेरा है। वह दिन-रात सोचा ही करता है और उसके ऐयारों और जासूसों का दिन दौड़ते ही बीतता है।

35

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

ऐयारों और थोड़े से लड़कों के सिवाय नाहरसिंह को साथ लिए हुए भीमसेन राजगृही की तरफ रवाना हुआ। उसका साथी नाहरसिंह बेशक लड़ाई के फन में बहुत ही जबर्दस्त था। उसे विश्वास था कि कोई अकेला आदमी लड़कर कभी मुझस

36

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात का समय है और सन्नाटे की हवा चल रही है। बिल्लौर की तरह खूबी पैदा करने वाली चांदनी आशिकमिजाजों को सदा ही भली मालूम होती है लेकिन आज सर्दी ने उन्हें भी पस्त कर दिया, यह हिम्मत नहीं पड़ती कि जरा म

37

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

कुंअर इंद्रजीतसिंह नाहरसिंह और तारासिंह को साथ लिए घर आये और अपने छोटे भाई से सब हाल कहा। वे भी सुनकर बहुत उदास हुए और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। दोनों कुमार बड़े ही तरद्दुद में पड़े। अगर तारासि

38

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

इश्क भी क्या बुरी बला है! हाय, इस दुष्ट ने जिसका पीछा किया उसे खराब करके छोड़ दिया और उसके लिए दुनिया भर के अच्छे पदार्थ बेकाम और बुरे बना दिये। छिटकी हुई चांदनी उसके बदन में चिनगारियां पैदा करती है,

39

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात से ज्यादे जा चुकी है, किशोरी अपने कमरे में मसहरी पर लेटी हुई न मालूम क्या-क्या सोच रही है, हां उसकी डबडबाई हुई आंखें जरूर इस बात की खबर देती हैं कि उसके दिल में किसी तरह का द्वंद्व मचा हुआ है।

40

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

रोहतासगढ़ किले के सामने पहाड़ी से कुछ दूर हटकर वीरेंद्रसिंह का लश्कर पड़ा हुआ है। चारों तरफ फौजी आदमी अपने-अपने काम में लगे हुए दिखाई देते हैं। कुछ फौज आ चुकी और बराबर चली ही आती है। बीच में राजा वीरे

41

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात का समय है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, राजा वीरेंद्रसिंह के लश्कर में पहरा देने वालों के सिवाय सभी आराम की नींद सोये हुए हें, हां थोड़े से फौजी आदमियों का सोना कुछ विचित्र ढंग का है जिन्हें

42

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

कुछ रात जा चुकी है। रोहतासगढ़ किले के अंदर अपने मकान में बैसठी हुई बेचारी किशोरी न मालूम किस ध्यान में डूबी हुई है और क्या सोच रही है। कोई दूसरी औरत उसके पास नहीं है। आखिर किसी के पैर की आहट पा अपने ख

43

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

इसके बाद लाली ने दबी जुबान से किशोरी को कुछ समझाया और दो घंटे में फिर मिलने का वादा करके वहां से चली गयी। हम ऊपर कई दफे लिख आये हैं कि उस बाग में जिसमें किशोरी रहती थी एक तरफ ऐसी इमारत है जिसके दरवाज

44

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

कुंअर इंद्रजीतसिंह तालाब के किनारे खड़े उस विचित्र इमारत और हसीन औरत की तरफ देख रहे हैं। उनका इरादा हुआ कि तैरकर उस मकान में चले जायं जो इस तालाब के बीचोंबीच में बना हुआ है, मगर उस नौजवान औरत ने इन्हे

45

भाग 13

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात के समय सुनसान मैदान में दो कमसिन औरतें आपस में कुछ बातें करती चली जा रही हैं। राह में छोटे-छोटे टीले पड़ते हैं जिन्हें तकलीफ के साथ लांघने और दम फूलने पर कभी ठहरकर फिर चलने से मालूम होता है कि

46

भाग 14

11 जून 2022
0
0
0

रोहतासगढ़ किले के चारों तरफ घना जंगल है जिसमें साखू, शीशम, तेंदू, आसन और सलई इत्यादि के बड़े-बड़े पेड़ों की घनी छाया से एक तरह को अंधकार-सा हो रहा है। रात की तो बात ही दूसरी है वहां दिन को भी रास्ते य

47

चंद्रकांता संतति चौथा भाग -1

11 जून 2022
0
0
0

अब हम अपने किस्से को फिर उसी जगह से शुरू करते हैं जब रोहतासगढ़ किले के अंदर लाली को साथ लेकर किशोरी सेंध की राह उस अजायबघर में घुसी जिसका ताला हमेशा बंद रहता था और दरवाजे पर बराबर पहरा पड़ा रहता था। ह

48

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

कंचनसिंह के मारे जाने और कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब हो जाने से लश्कर में बड़ी हलचल मच गई। पता लगाने के लिए चारों तरफ जासूस भेजे गये। ऐयार लोग भी इधर-उधर फैल गये और फसाद मिटाने के लिए दिलोजान से कोशिश

49

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

तेजसिंह के लौट आने से राजा वीरेंद्रसिंह बहुत खुश हुए और उस समय तो उनकी खुशी और भी ज्यादे हो गई जब तेजसिंह ने रोहतासगढ़ आकर अपनी कार्रवाई करने का खुलासा हाल कहा। रामानंद की गिरफ्तारी का हाल सुनकर हंसते

50

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

अपनी कार्रवाई पूरी करने के बाद तेजसिंह ने सोचा कि अब असली रामानंद को तहखाने से ऐसी खूबसूरती के साथ निकाल लेना चाहिए जिससे महाराज को किसी तरह का शक न हो और यह गुमान भी न हो कि तहखाने में वीरेंद्रसिंह क

51

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन दारोगा साहब अपनी गद्दी पर बैठे रोजनामचा देख रहे थे और उस तहखाने की पुरानी बातें पढ़-पढ़कर ताज्जुब कर रहे थे कि यकायक पीछे की कोठरी में खटके की आवाज आई। घबड़ाकर उठ खड़े हुए

52

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

अब हम अपने किस्से के सिलसिले को मोड़कर दूसरी तरफ झुकते हैं और पाठकों को पुण्यधाम काशी में ले चलकर संध्या के साथ गंगा के किनारे बैठी हुई एक नौजवान औरत की अवस्था पर ध्यान दिलाते हैं। सूर्य भगवान अस्त ह

53

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

लाल पोशाक वाली औरत की अद्भुत बातों ने नानक को हैरान कर दिया। वह घबड़ाकर चारों तरफ देखने लगा और डर के मारे उसकी अजब हालत हो गई। वह उस कुएं पर भी ठहर न सका और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाता हुआ इस उम्मीद में गं

54

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

अब हम फिर उस महारानी के दरबार का हाल लिखते हैं जहां से नानक निकाला जाकर गंगा के किनारे पहुंचाया गया था। नानक को कोठरी में ढकेलकर बाबाजी लौटे तो महारानी के पास न जाकर दूसरी ही तरफ रवाना हुए और एक बारह

55

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

अब हम रोहतासगढ़ की तरफ चलते हैं और तहखाने में बेबस पड़ी हुई बेचारी किशोरी और कुंअर आनंदसिंह इत्यादि की सुध लेते हैं। जिस समय कुंअर आनंदसिंह, भैरोसिंह और तारासिंह तहखाने के अंदर गिरफ्तार हो गए और राजा

56

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

दूसरे दिन संध्या के समय राजा वीरेंद्रसिंह अपने खेमे में बैठे रोहतासगढ़ के बारे में बातचीत करने लगे। पंडित बद्रीनाथ, भैरोसिंह, तारासिंह, ज्योतिषीजी, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह उनके पास बैठे हुए थे। अपने

57

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

अब तो कुंदन का हाल जरूर ही लिखना पड़ा, पाठक महाशय उसका हाल जानने के लिए उत्कंठित हो रहे होंगे। हमने कुंदन को रोहतासगढ़ महल के उसी बाग में छोड़ा है जिसमें किशोरी रहती थी। कुंदन इस फिक्र में लगी रहती थी

58

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

दूसरे दिन दो पहर दिन चढ़े बाद किशोरी की बेहोशी दूर हुई। उसने अपने को एक गहन वन के पेड़ों की झुरमुट में जमीन पर पड़े पाया और अपने पास कुंदन और कई आदमियों को देखा। बेचारी किशोरी इन थोड़े ही दिनों में तर

59

चंद्रकांता संतति- पाँचवाँ भाग 1

11 जून 2022
0
0
0

बेचारी किशोरी को चिता पर बैठाकर जिस समय दुष्टा धनपत ने आग लगाई, उसी समय बहुत-से आदमी, जो उसी जंगल में किसी जगह छिपे हुए थे, हाथों में नंगी तलवारें लिये 'मारो! मारो!' कहते हुए उन लोगों पर आ टूटे। उन लो

60

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

पाठक अभी भूले न होंगे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह कहां हैं। हम ऊपर लिख आए हैं कि उस मकान में जो तालाब के अन्दर बना हुआ था, कुंअर इन्द्रजीतसिंह दो औरतों को देखकर ताज्जुब में आ गए। कुमार उन औरतों का नाम नहीं

61

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

कुमार कई दिनों तक कमलिनी के यहां मेहमान रहे। उसने बड़ी खातिरदारी और नेकनीयती के साथ इन्हें रखा। इस मकान में कई लौंडियां भी थीं जो दिलोजान से कुमार की खिदमत किया करती थीं, मगर कभी-कभी वे सब दो-दो पहर क

62

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

हम ऊपर लिख आये हैं कि देवीसिंह को साथ लेकर शेरसिह कुंअर इन्द्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए रोहतासगढ़ से रवाना हुए। शेरसिंह इस बात को तो जानते थे कि कुंअर इन्द्रजीतसिंह फलां जगह हैं परन्तु उन्हें तालाब के

63

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

अब हम फिर रोहतासगढ़ की तरफ मुड़ते हैं और वहां राजा वीरेन्द्रसिंह के ऊपर जो-जो आफतें आईं, उन्हें लिखकर इस किस्से के बहुत से भेद, जो अभी तक छिपे पड़े हैं, खोलते हैं। हम ऊपर लिख आये हैं कि रोहतासगढ़ फतह

64

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

आज बहुत दिनों के बाद हम कमला को आधी रात के समय रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर पूरब तरफ वाले जंगल में घूमते देख रहे हैं। यहां से किले की दीवार बहुत दूर और ऊंचे पर है। कमला न मालूम किस फिक्र में है या क्या ढूं

65

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

रोहतासगढ़ फतह होने की खबर लेकर भैरोसिंह चुनार पहुंचे और उसके दो ही तीन दिन बाद राजा दिग्विजयसिंह की बेईमानी की खबर लेकर कई सवार भी जा पहुंचे। इस समाचार के पहुंचते ही चुनारगढ़ में खलबली पड़ गई। फौज के

66

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

बहुत दिनों से कामिनी का हाल कुछ भी मालूम न हुआ। आज उसकी सुध लेना भी मुनासिब है। आपको याद होगा कि जब कामिनी को साथ लेकर कमला अपने चाचा शेरसिंह से मिलने के लिए उजाड़ खंडहर और तहखाने में गई थी तो वहां से

67

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

गिल्लन को साथ लिये हुए बीबी गौहर रोहतासगढ़ किले के अन्दर जा पहुंची। किले के अन्दर जाने में किसी तरह का जाल न फैलाना पड़ा और न किसी तरह की कठिनाई हुई। वह बेधड़के किले के उस फाटक पर चली आई जो शिवालय के

68

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

वीरेन्द्रसिंह के तीनों ऐयारों ने रोहतासगढ़ के किले के अन्दर पहुंचकर अंधेर मचाना शुरू किया। उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि अगर दिग्विजयसिंह हमारे मालिकों को नहीं छोड़ेगा तो ऐयारी के कायदे के बाहर काम कर

69

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

इस जगह मुख्तसर ही में यह भी लिख देना मुनासिब मालूम होता है कि रोहतासगढ़ तहखाने में से राजा वीरेन्द्रसिंह, कुंअर आनन्दसिंह और उनके ऐयार लोग क्योंकर छूटे और कहां गए। हम ऊपर लिख आए हैं कि जिस समय गौहर '

70

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

दो पहर दिन चढ़ने के पहले ही फौज लेकर नाहरसिंह रोहतासगढ़ पहाड़ी के ऊपर चढ़ गया। उस समय दुश्मनों ने लाचार होकर फाटक खोल दिया और लड़-भिड़कर जान देने पर तैयार हो गये। किले की कुल फौज फाटक पर उमड़ आई और फा

71

भाग 13

11 जून 2022
1
0
0

तहखाने में बैठी हुई कामिनी को जब किसी के आने की आहट मालूम हुई तब वह सीढ़ी की तरफ देखने लगी मगर जब उसे कई आदमियों के पैरों की धमधमाहट मालूम हुई तब वह घबड़ाई। उसका खयाल दुश्मनों की तरफ गया और वह अपने बच

72

चंद्रकांता संतति छठवां भाग 1

11 जून 2022
1
0
0

वे दोनों साधु, जो सन्दूक के अन्दर झांक न मालूम क्या देखकर बेहोश हो गए थे, थोड़ी देर बाद होश में आए और चीख-चीखकर रोने लगे। एक ने कहा, ''हाय-हाय इन्द्रजीतसिंह, तुम्हें क्या हो गया! तुमने तो किसी के साथ

73

भाग 2

11 जून 2022
1
0
0

इस समय शिवदत्त की खुशी का अन्दाज करना मुश्किल है और यह कोई ताज्जुब की बात भी नहीं है, क्योंकि लड़ाकों और दोस्त ऐयारों के सहित राजा वीरेन्द्रसिंह को उसने ऐसा बेबस कर दिया कि उन लोगों को जान बचाना कठिन

74

भाग 3

11 जून 2022
1
0
0

अब हम अपने पाठकों को फिर उस मैदान के बीच वाले अद्भुत मकान के पास ले चलते हैं जिसके अन्दर इन्द्रजीतसिंह, देवीसिंह, शेरसिंह और कमलिनी के सिपाही लोग जा फंसे थे अर्थात् कमन्द के सहारे दीवार पर चढ़कर अन्दर

75

भाग 4

11 जून 2022
1
0
0

अब तो मौसम में फर्क पड़ गया। ठंडी-ठंडी हवा जो कलेजे को दहला देती थी और बदन में कंपकंपी पैदा करती थी अब भली मालूम पड़ती है। वह धूप भी, जिसे देख चित्त प्रसन्न होता था और जो बदन में लगकर रग-रग से सर्दी न

76

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज के सिवाय और किसी तरह की आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसे समय में काशी की तंग गलियों में दो आदमी, जिनमें एक औ

77

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

दूसरे दिन कुछ रात बीते कमलिनी फिर मनोरमा के मकान पर पहुंची। बाग के फाटक पर उसी दरबान को टहलते पाया जिससे कल बातचीत कर चुकी थी। इस समय बाग का फाटक खुला हुआ था और उस दरबान के अतिरिक्त और भी कई सिपाही वह

78

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

आधी रात जा चुकी है। कमलिनी उस कमरे में, जो उसके सोने के लिए मुकर्रर किया गया था, चारपाई पर लेटी हुई करवटें बदल रही है क्योंकि उसकी आंखों में नींद का नामो-निशान नहीं है। उसके दिल में तरह-तरह की बातें प

79

चंद्रकांता संतति सातवाँ भाग 1

11 जून 2022
0
0
0

नागर थोड़ी दूर पश्चिम जाकर घूमी और फिर उस सड़क पर चलने लगी जो रोहतासगढ़ की तरफ गई थी। पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि नागर का दिल कितना मजबूत और कठोर था। उन दिनों जो रास्ता काशी से रोहतासगढ़ को जाता था, व

80

भाग 2

11 जून 2022
0
0
0

हम ऊपर लिख आए हैं कि राजा वीरेन्द्रसिंह तिलिस्मी खंडहर से (जिसमें दोनों कुमार और तारासिंह इत्यादि गिरफ्तार हो गए थे) निकलकर रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए तो तेजसिंह उनसे कुछ कह-सुनकर अलग हो गए और उनके सा

81

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। तेजसिंह उसी दो नम्बर वाले कमरे के बाहर सहन में तकिया लगाये सो रहे हैं। चिराग बालने का कोई सामान यहां मौजूद नहीं जिससे रोशनी करते, पास में कोई आदमी नहीं जिससे दिल बहलात

82

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

शाम का वक्त है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं तथापि पश्चिम तरफ आसमान पर कुछ-कुछ लाली अभी तक दिखाई दे रही है। ठण्डी हवा मन्द गति से चल रही है। गरमी तो नहीं मालूम होती लेकिन इस समय की हवा बदन में कंपकंपी

83

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

पाठकों को याद होगा कि भूतनाथ को नागर ने एक पेड़ के साथ बांध रखा है। यद्यपि भूतनाथ ने अपनी चालाकी और तिलिस्मी खंजर की मदद से नागर को बेहोश कर दिया मगर देर तक उसके चिल्लाने पर भी वहां कोई उसका मददगार न

84

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग (तिलिस्मी बाग) में है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रखा है, मगर उस बाग में दो और

85

चंद्रकांता संतति - आठवाँ भाग 1

11 जून 2022
1
0
0

मायारानी की कमर में से ताली लेकर जब लाडिली चली गई तो उसके घंटे भर बाद मायारानी होश में आकर उठ बैठी। उसके बदन में कुछ-कुछ दर्द हो रहा था जिसका सबब वह समझ नहीं सकती थी। उसे फिर उन्हीं खयालों ने आकर घेर

86

भाग 2

11 जून 2022
1
0
0

कैदखाने का हाल हम ऊपर लिख चुके हैं, पुनः लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। उस कैदखाने में कई कोठरियां थीं जिनमें से आठ कोठरियों में तो हमारे बहादुर लोग कैद थे और बाकी कोठरियां खाली थीं। कोई आश्चर्य नहीं, यद

87

भाग 3

11 जून 2022
0
0
0

मायारानी उस बेचारे मुसीबत के मारे कैदी को रंज, डर और तरद्दुद की निगाहों से देख रही थी जबकि यह आवाज उसने सुनी, ''बेशक मायारानी की मौत आ गई!'' इस आवाज ने मायारानी को हद्द से ज्यादा बेचैन कर दिया। वह घबड

88

भाग 4

11 जून 2022
0
0
0

कमलिनी की आज्ञानुसार बेहोश नागर की गठरी पीठ पर लादे हुए भूतनाथ कमलिनी के उस तिलिस्मी मकान की तरफ रवाना हुआ जो एक तालाब के बीचोंबीच में था। इस समय उसकी चाल तेज थी और वह खुशी के मारे बहुत ही उमंग और लाप

89

भाग 5

11 जून 2022
0
0
0

दिन दो पहर से कुछ ज्यादा चढ़ चुका है मगर मायारानी को खाने-पीने की कुछ भी सुध नहीं है। पल-पल में उसकी परेशानी बढ़ती ही जाती है। यद्यपि बिहारीसिंह, हरनामसिंह और धनपत ये तीनों उसके पास मौजूद हैं परन्तु स

90

भाग 6

11 जून 2022
0
0
0

रात आधी जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, हवा भी एकदम बन्द है, यहां तक कि किसी पेड़ की एक पत्ती भी नहीं हिलती। आसमान में चांद तो नहीं दिखाई देता, मगर जंगल मैदान में चलने वाले मुसाफिरों को तार

91

भाग 7

11 जून 2022
0
0
0

राजा गोपालसिंह और देवीसिंह को काशी की तरफ और भैरोसिंह को रोहतासगढ़ की तरफ रवाना करके कमलिनी अपने साथियों को साथ लिए हुए मायारानी के तिलिस्मी बाग की तरफ रवाना हुई। इस समय रात नाममात्र को बाकी थी। प्राय

92

भाग 8

11 जून 2022
0
0
0

अपनी बहिन लाडिली, ऐयारों और दोनों कुमारों को साथ लेकर कमलिनी राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देवमन्दिर में कुछ दिन रहेगी। वहां रहकर ये लोग जो कुछ करेंगे, उ

93

भाग 9

11 जून 2022
0
0
0

रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। काशी में मनोरमा के मकान के अन्दर फर्श पर नागर बैठी हुई और उसके पास ही एक खूबसूरत नौजवान आदमी छोटे-छोटे तीन-चार तकियों का सहारा लगाये अधलेटा-सा पड़ा जमीन की तरफ देखता ह

94

भाग 10

11 जून 2022
0
0
0

दूसरे दिन आधी रात जाते-जाते भूतनाथ फिर उसी मकान में नागर के पास पहुंचा। इस समय नागर आराम से सोई न थी बल्कि न मालूम किस धुन और फिक्र में मकान की पिछली तरफ नजरबाग में टहल रही थी। भूतनाथ को देखते ही वह ह

95

भाग 11

11 जून 2022
0
0
0

ऊपर के बयान में जो कुछ लिख आये हैं उस बात को कई दिन बीत गये, आज भूतनाथ को हम फिर मायारानी के पास बैठे हुए देखते हैं। रंग-ढंग से जाना जाता है कि भूतनाथ की कार्रवाइयों से मायारानी बहुत ही प्रसन्न है और

96

भाग 12

11 जून 2022
0
0
0

आज से कुल आठ-दस दिन पहले मायारानी इतनी परेशान और घबड़ाई हुई थी कि जिसका कुछ हिसाब नहीं। वह जीते जी अपने को मुर्दा समझने लगी थी। राजा गोपालसिंह के छूट जाने के डर, चिन्ता, बेचैनी और घबड़ाहट ने चारों तरफ

---

किताब पढ़िए